Class : 9 – Hindi : Lesson 9. सवैये
संक्षिप्त लेखक परिचय
रसखान हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि थे। उनका जन्म 17वीं शताब्दी में हुआ था। वे मुस्लिम धर्म में जन्मे, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में इतने लीन हो गए कि कृष्ण भक्त कवियों की श्रेणी में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। उनका असली नाम सैयद इब्राहीम था, लेकिन भक्ति और काव्य के क्षेत्र में वे “रसखान” के नाम से प्रसिद्ध हुए।
रसखान ने ब्रजभाषा में कविता की और कृष्ण की बाल लीलाओं, सखाभाव, रासलीला और वृंदावन की सौंदर्यता का अत्यंत कोमल, प्रेममय और भावनात्मक चित्रण किया। उनकी रचनाओं में भक्ति-भाव, माधुर्य रस और सरल भाषा का अद्भुत समन्वय है।
उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं – सुजान रसखान, प्रेम वाटिका आदि।
रसखान सांप्रदायिक सद्भाव, प्रेम, और भक्ति के प्रतीक हैं। वे मुस्लिम होते हुए भी कृष्ण की भक्ति में इतना डूबे कि जीवनभर ब्रजभूमि में ही निवास किया।
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन

कवि परिचय
रसखान का मूल नाम सैयद इब्राहिम था। उनका जन्म सन् 1548 ई. के आसपास मुगल राजवंश से संबंधित एक प्रतिष्ठित पठान परिवार में दिल्ली में हुआ था। मूलतः मुसलमान होते हुए भी वे जीवन-भर कृष्ण की भक्ति में डूबे रहे। गोस्वामी विट्ठलनाथ जी ने उन्हें अपना शिष्य बनाया था। सन् 1628 ई. के आसपास उनका निधन हो गया था।
रसखान की दो मुख्य रचनाएं
सुजान रसखान – इसमें कृष्ण-प्रेम पर कवित्त और सवैये हैं
प्रेमवाटिका – इसमें प्रेम विषयक दोहे हैं
प्रथम सवैया (मानुष हौं तो वही रसखान)
मूल छंद (चार पंक्तियों के साथ):
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन॥
भावार्थ:
इस सवैये में रसखान ने कृष्ण की जन्मभूमि ब्रज के प्रति अपनी गहरी आस्था व्यक्त की है। वे कहते हैं कि यदि अगले जन्म में वे मनुष्य बनें तो गोकुल गाँव के ग्वालों के बीच निवास करना चाहते हैं। यदि पशु बनें तो नन्द की गायों के मध्य चरना चाहते हैं। यदि पत्थर बनें तो गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनना चाहते हैं, जिसे श्री कृष्ण ने इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिए छत्र की तरह धारण किया था। यदि पक्षी बनें तो यमुना के किनारे कदम्ब की डालियों पर बसेरा करना चाहते हैं।
द्वितीय सवैया (या लकुटी अरु कामरिया पर)
मूल छंद (चार पंक्तियों के साथ):
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं॥
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं॥
भावार्थ:
इस सवैये में रसखान अपने कृष्ण-प्रेम की पराकाष्ठा दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि श्री कृष्ण की लाठी और कम्बल के लिए वे तीनों लोकों का राज्य भी त्याग देने को तैयार हैं। आठों सिद्धियों और नौ निधियों के सुख को भी वे नंद की गायों को चराने के आनंद के सामने तुच्छ समझते हैं। कवि की तीव्र इच्छा है कि वे अपनी आँखों से ब्रज के वन, बाग और तालाब को देख सकें। वे सोने-चाँदी के करोड़ों महलों को भी ब्रज की काँटेदार करील की कुंजों पर न्योछावर करने को तैयार हैं।
तृतीय सवैया (मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं)
मूल छंद (चार पंक्तियों के साथ):
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥
भावार्थ:
इस सवैये में गोपियों के कृष्ण-प्रेम का मनोवैज्ञानिक चित्रण किया गया है। एक गोपी अपनी सखी से कहती है कि वह कृष्ण का रूप धारण करने को तैयार है। वह मोर के पंख से बना मुकुट सिर पर रखेगी, गुंज की माला गले में पहनेगी, पीतांबर ओढ़कर हाथ में लाठी लेकर ग्वालों के साथ वन में गाय चराने जाएगी। परंतु एक शर्त है – वह कृष्ण की मुरली को अपने होठों पर नहीं रखेगी। इसके पीछे दो कारण हैं – पहला, मुरली कृष्ण के अधरों का स्पर्श पाई है इसलिए वह पवित्र है; दूसरा, गोपियाँ मुरली को अपनी सौतन मानती हैं क्योंकि वह सदैव कृष्ण के पास रहती है।
चतुर्थ सवैया (काननि दै अंगुरी रहिबो)
मूल छंद (चार पंक्तियों के साथ):
काननि दै अंगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तौ गैहै॥
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझैहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै॥
भावार्थ:
इस अंतिम सवैये में गोपियों की विवशता का मार्मिक चित्रण है। एक गोपी अपनी सखी से कहती है कि जब कृष्ण मुरली की मधुर धुन बजाएंगे तो वह अपने कानों में उंगली डाल लेगी ताकि उस मोहक स्वर को न सुन सके। कृष्ण चाहे ऊंचे भवनों पर चढ़कर गायों के लिए मनमोहक तान गाएं, उस पर ध्यान नहीं देगी। गोपी सारे ब्रज के लोगों को पुकारकर कहती है कि कल कोई उसे कितना भी समझाए, परंतु कृष्ण के मुख की मुस्कान इतनी मनमोहक है कि उससे वह अपने को नहीं संभाल सकती।
सवैया छंद की विशेषताएं
सवैया छंद चार चरणों का वर्णिक छंद है जिसमें 22 से 26 वर्ण होते हैं। यह ब्रजभाषा का बहुप्रचलित छंद रहा है। चारों चरण समतुकांत होते हैं। सवैया किसी गण पर आश्रित होता है जिसकी 7 या 8 आवृत्ति रहती है।
साहित्यिक विशेषताएं
रसखान की काव्य-रचना का मुख्य विषय कृष्ण भक्ति है। उन्होंने ब्रजभाषा का अत्यंत सरस और मनोरम प्रयोग किया है। उनकी भाषा में कहीं शब्दों का आडंबर नहीं, कहीं अलंकारों की भरमार नहीं। उनके शब्दों में झरने-सा मधुर प्रवाह है।
रसखान के सवैयों में भक्ति, प्रेम की तन्मयता, भाव-विह्वलता और तल्लीनता का अद्भुत चित्रण मिलता है। वे कृष्ण से संबंधित प्रत्येक वस्तु पर मुग्ध हैं और उनकी रचनाओं में कृष्ण का रूप-सौंदर्य, वेशभूषा, मुरली और बाल-क्रीड़ाएं मुख्य विषय हैं।
रसखान के सवैयों में प्रेम की विभिन्न अवस्थाओं का चित्रण है – समर्पण, त्याग, ईर्ष्या, विरह और मिलन की तीव्र अभिलाषा। ये सवैये न केवल भक्ति काव्य की अमूल्य निधि हैं बल्कि मानवीय प्रेम की गहरी मनोवैज्यानिक अभिव्यक्ति भी हैं।
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1
ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है?
उत्तर: ब्रजभूमि के प्रति कवि रसखान का प्रेम अनेक रूपों में अभिव्यक्त हुआ है। कवि का ब्रजभूमि से इतना गहरा लगाव है कि वे अगले जन्म में भी यहीं रहना चाहते हैं। यदि उन्हें मनुष्य का जन्म मिले तो वे ब्रज के गोकुल गाँव के ग्वाले बनकर रहना चाहते हैं। पशु का जन्म मिले तो नंद की धेनुओं को चराना चाहते हैं। पहाड़ बनना पड़े तो गोवर्धन पर्वत बनना चाहते हैं क्योंकि इसे श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर धारण किया था। पक्षी बनना पड़े तो कालिंदी के कूल कदंब की डाल पर बसेरा करना चाहते हैं।
प्रश्न 2
कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं?
उत्तर: कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे मुख्य कारण यह है कि इन स्थानों पर श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं हुई थीं। ये वही स्थान हैं जहाँ कृष्ण ने गोप-गोपियों के साथ विविध लीलाएं की थीं। इसलिए कवि इन पावन स्थलों को देखकर धन्य हो जाना चाहते हैं। इन स्थानों में कृष्ण की स्मृतियाँ बसी हुई हैं, जिससे कवि को आध्यात्मिक आनंद और शांति प्राप्त होती है।
प्रश्न 3
एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है?
उत्तर: एक लकुटी (लाठी) और कामरिया (कम्बल) श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई वस्तुएँ हैं। कवि रसखान के लिए श्रीकृष्ण ही सर्वस्व हैं। वे अपने आराध्य की प्रत्येक वस्तु को अत्यंत पवित्र और मूल्यवान मानते हैं। लकुटी और कामरिया कृष्ण के द्वारा धारण की गई वस्तुएँ हैं, इसलिए कवि इन पर अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है। भक्त के लिए भगवान की प्रत्येक वस्तु परम सुखकारी होती है।
प्रश्न 4
सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर: सखी ने गोपी से कृष्ण के समान सुंदर रूप धारण करने का आग्रह किया था। उसने कहा था कि वह अपने सिर पर मोरपंख का मुकुट रखे, गले में गुंजों की माला पहने। शरीर पर पीत वस्त्र (पीले कपड़े) धारण करे और हाथ में लकुटी (लाठी) लेकर गोधन (गायों के झुंड) के साथ ग्वालों के समान वन में विचरण करे। यह श्रीकृष्ण का पारंपरिक ग्वाल रूप था जो अत्यंत मनमोहक और आकर्षक था।
प्रश्न 5
आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है?
उत्तर: कवि रसखान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त हैं। उनकी भक्ति की तीव्रता इतनी अधिक है कि वे किसी भी रूप में, किसी भी जन्म में अपने आराध्य का सान्निध्य चाहते हैं। यह सच्ची भक्ति का प्रतीक है जहाँ भक्त केवल अपने इष्ट के निकट रहना चाहता है। पशु, पक्षी या पहाड़ बनकर भी वे कृष्ण के प्रेम में निमग्न रह सकते हैं। इससे उनकी भक्ति-भावना तृप्त होती है और वे आध्यात्मिक आनंद प्राप्त करते हैं।
प्रश्न 6
चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने आप को क्यों विवश पाती हैं?
उत्तर: चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ श्रीकृष्ण के मोहक रूप और उनकी मुरली की मधुर ध्वनि के कारण अपने आप को विवश पाती हैं। कृष्ण का सुंदर व्यक्तित्व और उनकी मुरली की तान इतनी मादक है कि गोपियाँ इससे बचने में असमर्थ हो जाती हैं। वे कृष्ण की सुंदरता और उनकी मुस्कान पर मोहित हो जाती हैं। कृष्ण के मुख की मुस्कान इतनी आकर्षक है कि गोपियाँ उसे संभाल नहीं पातीं और उसके सामने विवश हो जाती हैं।
प्रश्न 7
भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
उत्तर: इस पंक्ति का भाव यह है कि कवि रसखान ब्रज की कंटीली झाड़ियों (करील के कुंज) पर करोड़ों सोने-चांदी के महलों को न्योछावर करने को तैयार हैं। कवि कह रहे हैं कि ब्रज की प्राकृतिक सुंदरता को निहारने में जो आनंद है, वह सांसारिक धन-संपत्ति और भव्य महलों के सुख से कहीं अधिक है। ब्रज की साधारण सी कंटीली झाड़ियाँ भी उनके लिए अनमोल हैं क्योंकि वहाँ कृष्ण की स्मृतियाँ बसी हुई हैं।
(ख) माइ री वा मुख की मुस्कानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
उत्तर: इस पंक्ति में गोपी अपनी सखी से कह रही है कि श्रीकृष्ण के मुख की मधुर मुस्कान को संभालना उसके बस की बात नहीं है। कृष्ण की मुस्कान इतनी मोहक और आकर्षक है कि उसके प्रभाव से बचना असंभव है। “न जैहै” की तीन बार आवृत्ति से गोपी की असहायता और विवशता का पता चलता है। वह कह रही है कि कृष्ण की मुस्कान का प्रभाव इतना तीव्र है कि वह उससे बच नहीं सकती।
प्रश्न 8
‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर: ‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में अनुप्रास अलंकार है। इस पंक्ति में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति बार-बार हो रही है – कालिंदी, कूल, कदंब। जब किसी वर्ण की आवृत्ति से चमत्कार उत्पन्न होता है तो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। यहाँ ‘क’ वर्ण के प्रयोग से काव्य में संगीतमयता और लयबद्धता आ गई है जो अनुप्रास अलंकार की मुख्य विशेषता है।
प्रश्न 9
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए – या मुरली मुरलीधर की अधरन धरी अधरा न धरौंगी।
उत्तर: इस पंक्ति में गोपी कह रही है कि वह कृष्ण के समान रूप तो धारण कर लेगी लेकिन मुरलीधर की मुरली को अपने होठों पर नहीं रखेगी। गोपी के लिए मुरली एक सौत के समान है क्योंकि कृष्ण हमेशा मुरली को अपने होठों से लगाए रखते हैं।
काव्य-सौंदर्य की दृष्टि से:
यहाँ ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग है
‘म’ और ‘ध’ वर्णों की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार है
गोपी के ईर्ष्या-भाव का मनोवैज्ञानिक चित्रण है
सवैया छंद का उत्कृष्ट प्रयोग है
भक्ति रस की अभिव्यक्ति है।
प्रश्न 10 (रचना और अभिव्यक्ति)
प्रस्तुत सवैयों में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को अभिव्यक्ति कीजिए।
उत्तर: जिस प्रकार कवि रसखान ने ब्रजभूमि के प्रति अपना असीम प्रेम व्यक्त किया है, उसी प्रकार हमारी मातृभूमि भारत भी हमारे लिए अत्यंत पूज्यनीय है। भारत की पावन धरती, यहाँ की संस्कृति, यहाँ के तीर्थ स्थान, नदियाँ, पर्वत, वन सभी हमारे लिए गर्व की वस्तु हैं। हमारी मातृभूमि ने हमें जन्म दिया है, पाला-पोसा है। यहाँ की माटी में हमारे पूर्वजों की स्मृतियाँ बसी हुई हैं। हम भी अपनी मातृभूमि के लिए सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हैं और आजीवन इसकी सेवा करना चाहते हैं।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1: रसखान के अनुसार ब्रजभूमि का महत्व क्यों है?
उत्तर: रसखान के अनुसार ब्रजभूमि केवल एक साधारण भूमि नहीं है, बल्कि यह श्रीकृष्ण की लीलाओं की भूमि है। यहाँ की धूलि, ग्वाल-बाल, गायें, यमुना, कदम्ब के वृक्ष आदि सब पावन हैं। ब्रजभूमि में निवास करने मात्र से जीवन सफल हो जाता है।
प्रश्न 2: कवि रसखान ने किस स्थान पर जन्म लेने की इच्छा प्रकट की है और क्यों?
उत्तर: कवि रसखान ने गोप-बालक के रूप में गोकुल में जन्म लेने की इच्छा प्रकट की है, ताकि वे नंदलाल श्रीकृष्ण के साथ गायें चरा सकें और उनके साथ खेल सकें।
प्रश्न 3: कवि ने किस प्रकार ब्रज की तुलना अन्य स्थानों से की है?
उत्तर: कवि रसखान ने ब्रजभूमि की तुलना काशी, काबा, काशी के मणिकर्णिका घाट, हरिद्वार आदि पावन स्थलों से करते हुए कहा है कि ये सब स्थान ब्रज के आगे तुच्छ हैं। क्योंकि ब्रजभूमि में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं विचरण करते हैं।
प्रश्न 4: रसखान ने किस रूप में जन्म लेना श्रेष्ठ माना है?
उत्तर: रसखान ने गोप-बालक, गाय, वृक्ष, जल आदि किसी भी रूप में ब्रजभूमि में जन्म लेना श्रेष्ठ माना है। उनके अनुसार ब्रजभूमि में जन्म लेकर श्रीकृष्ण की सेवा करना ही जीवन का परम लक्ष्य है।
प्रश्न 5: रसखान के अनुसार श्रीकृष्ण का स्वरूप कैसा है?
उत्तर: रसखान के अनुसार श्रीकृष्ण अत्यंत सुंदर, मनमोहक, प्रेममय और लीलाओं से परिपूर्ण हैं। वे गायों को चराते हैं, मुरली बजाते हैं और ग्वाल-बालों के साथ खेलते हैं।
प्रश्न 6: रसखान ने ब्रजभूमि के किन-किन स्थलों और वस्तुओं का विशेष उल्लेख किया है?
उत्तर: रसखान ने ब्रजभूमि में यमुना तट, गोप-बाल, गायें, कदम्ब वृक्ष, गोकुल, मथुरा आदि का विशेष उल्लेख किया है और इन्हें अत्यंत पावन और प्रिय बताया है।
प्रश्न 7: रसखान किस प्रकार की भक्ति के उदाहरण हैं?
उत्तर: रसखान मुस्लिम होते हुए भी श्रीकृष्ण के प्रति अपार प्रेम और भक्ति रखते थे। वे सगुण भक्ति और सखा भाव भक्ति के उदाहरण हैं।
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