Class 9, Hindi

Class : 9 – Hindi : Lesson 5. प्रेमचंद के फटे जूते

संक्षिप्त लेखक परिचय


✨ हरिशंकर परसाई – लेखक परिचय


🏞 जीवन परिचय
🔹 जन्म: 22 अगस्त 1924, जमानी, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश
🔹 मृत्यु: 10 अगस्त 1995, जबलपुर, मध्य प्रदेश
🔹 हिंदी साहित्य के अद्वितीय व्यंग्यकार, निबंधकार और विचारक।
🔹 शिक्षा नागपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त की।
🔹 सामाजिक सरोकार, ईमानदारी और व्यंग्य-बोध उनकी पहचान बने।

📚 साहित्यिक योगदान
🌟 हरिशंकर परसाई ने हिंदी साहित्य में व्यंग्य को सशक्त और प्रभावशाली विधा के रूप में स्थापित किया।
💠 उनकी रचनाएँ केवल हँसी उत्पन्न करने के लिए नहीं, बल्कि समाज की विसंगतियों, राजनीतिक भ्रष्टाचार और नैतिक पतन पर तीखा प्रहार करती हैं।
💠 भाषा सरल, सहज और आमजन के लिए समझने योग्य है, जिसमें तीक्ष्ण व्यंग्य और गहरी संवेदना का मेल है।
💠 प्रमुख कृतियाँ — रानी नागफनी की कहानी, भोलाराम का जीव, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, विकलांग श्रद्धा का दौर, सदाचार का ताबीज, मेरा बचपन मेरे कंधे पर।


💠 उन्होंने व्यंग्य को सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम बनाया, जिससे उनकी रचनाएँ साहित्यिक होने के साथ-साथ जन-जागरण का कार्य भी करती हैं।
💠 उनके लेखन में तर्क, तथ्य और हास्य का अद्भुत संतुलन है।
💠 उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
💠 परसाई की लेखनी आज भी समाज को आईना दिखाने में सक्षम है।

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन

🌸 विषयवस्तु और संदर्भ
हरिशंकर परसाई का व्यंग्य निबंध “प्रेमचंद के फटे जूते” हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण व्यंग्यात्मक रचना है। यह निबंध प्रेमचंद के एक फोटो से प्रेरित है जिसमें प्रेमचंद जी अपनी पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं और उनके पैर में फटा हुआ जूता है जिसमें से उंगली दिख रही है। लेखक ने इस सामान्य सी घटना को समाज की विसंगतियों पर तीखे व्यंग्य का माध्यम बनाया है।

🎯 व्यंग्य की विशेषताएं और तकनीक
🎭 प्रतीकात्मकता
फटे जूते केवल एक भौतिक वस्तु नहीं हैं बल्कि एक प्रतीक हैं। यह प्रतीक अनेक अर्थ व्यक्त करता है:
🪙 साहित्यकार की आर्थिक दुर्दशा का प्रतीक
💔 समाज की उदासीनता का प्रतीक जो अपने महान लेखकों की उपेक्षा करता है
🌿 सच्चाई और संघर्ष का प्रतीक जो दिखावे के विपरीत है

⚖️ तुलनात्मक व्यंग्य
लेखक अपने जूते की तुलना प्रेमचंद के जूते से करता है:
👞 लेखक का जूता: ऊपर से ठीक दिखता है पर नीचे से घिसा हुआ है – यह आधुनिक समाज के दिखावेपन का प्रतीक है
🥾 प्रेमचंद का जूता: ऊपर से फटा है पर नीचे से सुरक्षित है – यह प्रामाणिकता और ईमानदारी का प्रतीक है

🧠 चरित्र चित्रण और मनोविश्लेषण
👤 प्रेमचंद का व्यक्तित्व चित्रण
💪 निर्भीकता और आत्मविश्वास – फटे जूते के बावजूद उनके चेहरे पर आत्मविश्वास झलकता है
🚫 समझौताहीन स्वभाव – उनका जूता किसी सख्त चीज़ को ठोकर मारने से फटा होगा, जो उनके संघर्षशील स्वभाव का प्रतीक है
🌱 सादगी और प्रामाणिकता – वे जैसे हैं वैसे ही फोटो खिंचवा लेते हैं, दिखावे की परवाह नहीं

😏 व्यंग्यात्मक मुस्कान का अर्थ
प्रेमचंद की अधूरी मुस्कान समाज के दिखावे पर कटाक्ष करती है, जो सच्चाई छुपाकर झूठे आवरण में जीता है।

🌐 समसामयिक सामाजिक व्यंग्य
💥 दिखावे की संस्कृति पर प्रहार
✨ लोग ऊपरी चमक-दमक को महत्व देते हैं
📉 वास्तविक गुणों की उपेक्षा करते हैं
🪞 पर्दे का महत्व समझते हैं पर सत्य की उपेक्षा करते हैं

📚 साहित्यकार की उपेक्षा
🏆 समाज महान साहित्यकारों को सम्मान तो देता है पर उनकी आर्थिक स्थिति की चिंता नहीं करता
👞 प्रेमचंद जैसे उपन्यास सम्राट के पास भी फोटो खिंचाने के लिए अच्छे जूते नहीं थे

🖋 भाषा और शैली की विशेषताएं
🎯 व्यंग्यात्मक शैली
🗡 तीखे और चुटीले वाक्य
❓ व्यंग्यात्मक प्रश्न जो सोचने पर मजबूर करें
😂 हास्य के माध्यम से गंभीर संदेश देना

🗣 भाषिक विशेषताएं
🪶 सहज, सरल और प्रवाहमान भाषा
🗨 बोलचाल की शैली
🌐 उर्दू, अंग्रेजी और हिंदी शब्दों का मिश्रण

🔍 व्यंग्य की गहराई और व्यापकता
🌀 बहुस्तरीय व्यंग्य
🙋 व्यक्तिगत स्तर – लेखक स्वयं पर व्यंग्य करता है
🏛 सामाजिक स्तर – समाज के दोहरे मापदंडों पर व्यंग्य
📖 साहित्यिक स्तर – साहित्यकारों की स्थिति पर व्यंग्य

🎯 संदेश और उद्देश्य
🌟 प्रामाणिकता को प्रोत्साहन देना
🚫 दिखावेपन का विरोध करना
🤝 मानवीय मूल्यों की स्थापना करना

🎨 कलात्मकता और शिल्प
❤️ संवेदनात्मक अभिव्यक्ति
💧 प्रेमचंद की दुर्दशा देखकर रोने का मन होता है
🙂 पर उनकी व्यंग्यात्मक मुस्कान रोक देती है

🎭 नाटकीयता
❓ प्रश्नोत्तर शैली
👥 सीधे संवाद
⚔ मानसिक द्वंद का चित्रण

🏆 व्यंग्य विधा में योगदान
📈 व्यंग्य को गंभीर विधा का दर्जा दिलाना
💡 व्यंग्य को सामाजिक चिंतन से जोड़ना
📏 नए मापदंड स्थापित करना

📌 समसामयिक प्रासंगिकता
📱 सोशल मीडिया युग में दिखावा और बढ़ गया
🎭 वास्तविक प्रतिभा की उपेक्षा जारी
💰 भौतिकवादी मानसिकता और प्रबल

🏁 निष्कर्ष
“प्रेमचंद के फटे जूते” समाज के चेहरे पर लगा आईना है। हरिशंकर परसाई ने दिखावे और वास्तविकता के बीच की खाई को उजागर किया है। यह निबंध हमें ईमानदारी और प्रामाणिकता का संदेश देता है और हिंदी व्यंग्य साहित्य की श्रेष्ठतम कृतियों में गिना जाता है।

📜 सारांश
“प्रेमचंद के फटे जूते” हरिशंकर परसाई का प्रसिद्ध व्यंग्य निबंध है। प्रेमचंद के एक फोटो में उनका फटा जूता देखकर लेखक समाज की विसंगतियों पर व्यंग्य करता है। फटा जूता साहित्यकार की गरीबी और समाज की उदासीनता का प्रतीक है। लेखक अपने और प्रेमचंद के जूते की तुलना करके दिखावे और वास्तविकता के अंतर को उजागर करता है। प्रेमचंद की व्यंग्यात्मक मुस्कान समाज के झूठेपन पर कटाक्ष करती है। यह निबंध प्रामाणिकता को प्रोत्साहन देकर सामाजिक सुधार का संदेश देता है।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न


❓ प्रश्न 1. हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?
✅ उत्तर:
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ नामक व्यंग्य को पढ़कर प्रेमचंद के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं:
🌟 संघर्षशील लेखक: प्रेमचंद आजीवन संघर्ष करते रहे। उन्होंने मार्ग में आने वाली चट्टानों को ठोकरें मारीं। अगल-बगल के रास्ते नहीं खोजे। समझौते नहीं किए। लेखक के शब्दों में – “तुम किसी सख्त चीज़ को ठोकर मारते रहे हो। ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया।”
🛡️ अपराजेय व्यक्तित्व: प्रेमचंद का व्यक्तित्व अपराजेय था। उन्होंने कष्ट सहकर भी कभी हार नहीं मानी। यदि वे मनचाहा परिवर्तन नहीं कर पाए, तो कम-से-कम कमजोरियों पर हँसे तो सही। उन्होंने निराश-हताश जीने की बजाय मुसकान बनाए रखी।
💔 कष्टग्रस्त जीवन: प्रेमचंद जीवन-भर आर्थिक संकट झेलते रहे। उन्होंने गरीबी को सहर्ष स्वीकार किया। वे बहुत सीधे-सादे वस्त्र पहनते थे। उनके पास पहनने को ठीक-से जूते भी नहीं थे।
🌿 सहजता: प्रेमचंद अंदर-बाहर से एक थे। लेखक के शब्दों में – “इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी-इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं है।”
⚖️ मर्यादित जीवन: प्रेमचंद ने जीवन-भर मानवीय मर्यादाओं को निभाया। उन्होंने अपने नेम-धरम को, अर्थात् लेखकीय गरिमा को बनाए रखा।

❓ प्रश्न 2. सही कथन के सामने (✓) का निशान लगाइए-
(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फ़ोटो खिंचाते हैं जिससे फ़ोटो में खुशबू आ जाए।
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुसकान मेरे हौसले बढ़ाती है।
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो?
✅ उत्तर:
(क) ✗
(ख) ✓
(ग) ✗
(घ) ✗

❓ प्रश्न 3. नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए-
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
💡 उत्तर: जीवन में यह विडंबना है कि जिसका स्थान पाँव में हैं, अर्थात् नीचे है, उसे अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता रहा है। जिसका स्थान ऊँचा है, जो सिर पर बिठाने योग्य है, उसे कम सम्मान मिलता रहा है। आजकल तो जूतों का अर्थात् धनवानों का मान-सम्मान और भी अधिक बढ़ गया है। एक धनवान पर पच्चीसों गुणी लोग न्योछावर होते हैं। गुणी लोग भी धनवानों की जी-हुजूरी करते नजर आते हैं।


(ख) तुम परदे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुरबान हो रहे हैं।
💡 उत्तर: प्रेमचंद ने कभी पर्दे को अर्थात् लुकाव-छिपाव को महत्त्व नहीं दिया। उन्होंने वास्तविकता को कभी ढंकने का प्रयत्न नहीं किया। वे इसी में संतुष्ट थे कि उनके पास छिपाने-योग्य कुछ नहीं था। वे अंदर-बाहर से एक थे। यहाँ तक कि उनका पहनावा भी अलग-अलग न था।
लेखक अपनी तथा अपने युग की मनोभावना पर व्यंग्य करता है कि हम पर्दा रखने को बड़ा गुण मानते हैं। जो व्यक्ति अपने कष्टों को छिपाकर समाज के सामने सुखी होने का ढोंग करता है, हम उसी को महान मानते हैं।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो?
💡 उत्तर: लेखक कहता है – प्रेमचंद ने समाज में जिसे भी घृणा-योग्य समझा, उसकी ओर हाथ की अँगुली से नहीं, बल्कि अपने पाँव की अँगुली से इशारा किया। अर्थात् उसे अपनी ठोकरों पर रखा, अपने जूते की नोक पर रखा, उसके विरुद्ध संघर्ष किए रखा।

❓ प्रश्न 4. पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फ़ोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती हैं?
✅ उत्तर:
मेरे विचार से प्रेमचंद के बारे में लेखक का विचार यह रहा होगा कि समाज की परंपरा-सी है कि वह अच्छे अवसरों पर पहनने के लिए अपने वे कपड़े अलग रखता है, जिन्हें वह अच्छा समझता है। प्रेमचंद के कपड़े ऐसे न थे जो फ़ोटो खिंचाने लायक होते। ऐसे में घर पहनने वाले कपड़े और भी खराब होते।
लेखक को तुरंत ही ध्यान आता है कि प्रेमचंद सादगी पसंद और आडंबर तथा दिखावे से दूर रहने वाले व्यक्ति हैं। उनका रहन-सहन दूसरों से अलग है, इसलिए उसने टिप्पणी बदल दी।

❓ प्रश्न 5. आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं?
✅ उत्तर:
मुझे इस व्यंग्य की सबसे आकर्षक बात लगती है – विस्तारण शैली। लेखक एक संदर्भ से दूसरे संदर्भ की ओर बढ़ता चला जाता है। वह बूंद में समुद्र खोजने का प्रयत्न करता है। जैसे बीज में से क्रमश: अंकुर का, फिर पल्लव का, फिर पौधे और तने का; तथा अंत में फूल-फल का विकास होता चला जाता है, उसी प्रकार इस निबंध में प्रेमचंद के फटे जूते से बात शुरू होती है। वह बात खुलते-खुलते प्रेमचंद के पूरे व्यक्तित्व को उद्घाटित कर देती है। बात से बात निकालने की यह व्यंग्य शैली बहुत आकर्षक बन पड़ी है।

❓ प्रश्न 6. पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा?
✅ उत्तर:
टीला शब्द ‘राह’ आनेवाली बाधा का प्रतीक है। जिस तरह चलते-चलते रास्ते में टीला आ जाने पर व्यक्ति को उसे पार करने के लिए विशेष परिश्रम करते हुए सावधानी से आगे बढ़ना पड़ता है उसी प्रकार सामाजिक विषमता, छुआछूत, गरीबी, निरक्षरता, अंधविश्वास आदि भी मनुष्य की उन्नति में बाधक बनती है। इन्हीं बुराइयों के संदर्भ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग हुआ है।

❓ प्रश्न 7. प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बनाकर परसाई जी ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।
✅ उत्तर:
मेरे हाथ में मेरे जिस मित्र का हाथ है, उसकी एक चीज़ का मैं हमेशा से कायल हूँ। वह है उसकी टाई की गाँठ। ऐसी साफ-सुथरी गाँठ आपके देखने में नहीं आई होगी। लगता है, जैसे जन्मजात ऐसी ही हो। कोई सिलवट नहीं, कोई बिखरावट नहीं। ऐसा नहीं है कि वे यह टाई सूट के साथ पहनते हों। गर्मियों में कमीज के साथ भी वे टाई पहनते हैं। तब भी टाई की गाँठ इसी तरह रहती है।
सच बताऊँ! मुझे एक भी ऐसा दृश्य याद नहीं आता, जब मैंने उन्हें टाई के बिना देखा हो। हाँ, एक बार मैं सुबह-सुबह उनके घर चला गया था। उस समय भी उन्होंने मुझे 45 मिनट प्रतीक्षा कराई। जब ड्राइंग रूम में आए तो टाई लगाए हुए थे। गाँठ तब भी वैसी थी, जैसे जन्मजात हो।
मैं सोचता हूँ इन्हें गाँठ लगाने का इतना शौक क्यों है? शायद इसलिए कि वे बिखराव को नहीं, गठन को पसंद करते हैं। इसलिए जब भी बोलते हैं, सँभलकर बोलते हैं। मैंने आज तक उन्हें व्यर्थ की गप्पें लड़ाते नहीं देखी। चुटकले सुनाते नहीं देखा। सुनाते क्या, चुटकलों पर हँसते भी नहीं देखा। यदि कोई उनके सामने कोई चुटकले पर हँस दे तो वे उसे ‘बेहूदा’ या ‘बेशऊर’ कहकर घंटों तक अपना मुँह बिगाड़े रहते हैं।

❓ प्रश्न 8. आपकी दृष्टि में वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?
✅ उत्तर:
वेशभूषा के प्रति लोगों की सोच में बहुत बदलाव आया है। लोग वेशभूषा को सामाजिक प्रतिष्ठा का सूचक मानने लगे हैं। लोग उस व्यक्ति को ज्यादा मान-सम्मान और आदर देने लगे हैं जिसकी वेशभूषा अच्छी होती है। वेशभूषा से ही व्यक्ति का दूसरों पर पहला प्रभाव पड़ता है। हमारे विचारों का प्रभाव तो बाद में पड़ता है। आज किसी अच्छी-सी पार्टी में कोई धोती-कुरता पहनकर जाए तो उसे पिछड़ा समझा जाता है। इसी प्रकार कार्यालयों के कर्मचारी गण हमारी वेशभूषा के अनुरूप व्यवहार करते हैं। यही कारण है कि लोगों विशेषकर युवाओं में आधुनिक बनने की होड़ लगी है।

❓ प्रश्न 9. पाठ में आए मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
✅ उत्तर:
💬 हौसला पस्त करना – उत्साह नष्ट करना।
वाक्य – अनिल कुंबले की फिरकी गेंदों ने श्रीलंका के खिलाड़ियों के हौसले पस्त कर दिए।
💬 ठोकर मारना – चोट करना।
वाक्य – प्रेमचंद ने राह के संकटों पर खूब ठोकरें मारी।
💬 टीला खड़ा होना – बाधाएँ आना।
वाक्य – जीवन जीना सरल नहीं है। यहाँ पग-पग पर टीले खड़े हैं।
💬 पहाड़ फोड़ना – बाधाएँ नष्ट करना।
वाक्य – प्रेमचंद उन संघर्षशील लेखकों में से थे जिन्होंने पहाड़ फोड़ना सीखा था, बचना नहीं।
💬 जंजीर होना – बंधन होना।
वाक्य – स्वतंत्रता से जीने वाले पथ की सब जंजीरें तोड़कर आगे बढ़ते हैं।

❓ प्रश्न 10. प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है उनकी सूची बनाइए।
✅ उत्तर:
✒️ जनता के लेखक
📖 महान कथाकार
🕰️ साहित्यिक पुरखे
🔥 युग प्रवर्तक
👑 उपन्यास-सम्राट

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न


🌟 5 MCQ प्रश्न (बहुविकल्पीय प्रश्न)
❓ 1. ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ किस विधा की रचना है?
🔹 (a) कहानी
🔹 (b) व्यंग्य ✅
🔹 (c) संस्मरण
🔹 (d) निबंध


❓ 2. प्रेमचंद के फटे जूते में से क्या दिखाई देता है?
🔹 (a) पैर की एड़ी
🔹 (b) पैर की उंगली ✅
🔹 (c) पैर का अंगूठा
🔹 (d) पैर का तलुवा


❓ 3. लेखक के अनुसार आजकल एक जूते पर कितनी टोपियां न्योछावर होती हैं?
🔹 (a) दस
🔹 (b) पंद्रह
🔹 (c) पचीस ✅
🔹 (d) पचास


❓ 4. लेखक का अपना जूता किस तरफ से घिसा हुआ है?
🔹 (a) ऊपर से
🔹 (b) नीचे से ✅
🔹 (c) बगल से
🔹 (d) पीछे से


❓ 5. हरिशंकर परसाई किस प्रकार के साहित्यकार हैं?
🔹 (a) व्यंग्यकार ✅
🔹 (b) कहानीकार
🔹 (c) उपन्यासकार
🔹 (d) नाटककार

🌟 5 लघु उत्तरीय प्रश्न (15 शब्दों में)
❓ 1. प्रेमचंद का जूता कैसे फटा होगा?
💠 प्रेमचंद का जूता किसी सख्त चीज को ठोकर मारने से फटा होगा।


❓ 2. लेखक प्रेमचंद की तुलना किससे करता है?
💠 लेखक प्रेमचंद की तुलना अपने आप से और आज के लोगों से करता है।


❓ 3. प्रेमचंद की मुस्कान में क्या विशेषता है?
💠 प्रेमचंद की मुस्कान में व्यंग्य है जो समाज के दिखावे पर कटाक्ष करती है।


❓ 4. फटे जूते का प्रतीकात्मक अर्थ क्या है?
💠 फटे जूते साहित्यकार की गरीबी, संघर्ष और समाज की उदासीनता के प्रतीक हैं।


❓ 5. लेखक के अनुसार प्रेमचंद में कौन सा गुण नहीं है?
💠 प्रेमचंद में पोशाकें बदलने का गुण नहीं है, वे सहज और प्रामाणिक हैं।

🌟 4 मध्यम उत्तरीय प्रश्न (70 शब्दों में)
❓ 1. लेखक और प्रेमचंद के जूते में क्या अंतर है?
💠 लेखक का जूता ऊपर से ठीक दिखता है लेकिन नीचे से घिसा है जो आधुनिक समाज के दिखावेपन का प्रतीक है। वहीं प्रेमचंद का जूता ऊपर से फटा है लेकिन तलुवा मजबूत है जो प्रामाणिकता का प्रतीक है। लेखक के जूते में झूठा आवरण है जबकि प्रेमचंद के जूते में सच्चाई है। यह अंतर दोनों की व्यक्तित्व और जीवन दृष्टि को दर्शाता है।


❓ 2. प्रेमचंद की फोटो में कौन सी विशेषताएं दिखती हैं?
💠 प्रेमचंद की फोटो में उनके चेहरे पर आत्मविश्वास दिखता है। फटे जूते के बावजूद वे शर्मिंदा नहीं हैं। उनकी मुस्कान में व्यंग्य है जो समाज की कमजोरियों पर कटाक्ष करती है। उनका व्यक्तित्व सहज और निर्भीक दिखता है। वे किसी प्रकार का दिखावा नहीं कर रहे बल्कि अपनी वास्तविकता के साथ खड़े हैं। यह उनकी ईमानदारी और प्रामाणिकता को दर्शाता है।


❓ 3. व्यंग्य विधा की दृष्टि से इस रचना की विशेषताएं बताइए।
💠 यह रचना हिंदी की श्रेष्ठ व्यंग्य रचना है। लेखक ने एक साधारण वस्तु को आधार बनाकर गहरे सामाजिक सत्य उजागर किए हैं। भाषा सहज और प्रभावी है। व्यंग्य तीखा लेकिन मर्यादित है। लेखक ने प्रतीकों का सुंदर प्रयोग किया है। फटा जूता, टोपी, परदा आदि सभी प्रतीकात्मक अर्थ रखते हैं। व्यंग्य के माध्यम से समाज सुधार का संदेश दिया गया है।


❓ 4. आधुनिक समाज पर लेखक की क्या टिप्पणी है?
💠 लेखक के अनुसार आधुनिक समाज दिखावे को प्रधानता देता है। लोग बाहरी चमक-दमक को देखकर व्यक्ति की पहचान करते हैं। धन और पद का सम्मान करते हैं लेकिन गुणों की अवहेलना करते हैं। समाज में परदे का महत्व बढ़ गया है, सच्चाई का नहीं। लोग अपनी वास्तविकता छुपाकर झूठा आवरण ओढ़ते हैं। यह दिखावेपन की संस्कृति मानवीय मूल्यों के लिए हानिकारक है।

🌟 1 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
❓ हरिशंकर परसाई की व्यंग्य शैली की विशेषताओं का विश्लेषण ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ के आधार पर कीजिए।
💠 हरिशंकर परसाई हिंदी के सर्वश्रेष्ठ व्यंग्यकार हैं और ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ उनकी व्यंग्य शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है।
💠 भाषा की दृष्टि से उनकी शैली सहज, सरल और बोलचाल के निकट है। वे कठिन शब्दावली का प्रयोग नहीं करते।
💠 व्यंग्य की तकनीक में वे प्रतीकों का सुंदर प्रयोग करते हैं – फटा जूता, टोपी, परदा सभी गहरे अर्थ रखते हैं।
💠 संवेदनशीलता उनके व्यंग्य की विशेषता है। वे कड़वे सत्य को भी मधुर व्यंग्य में व्यक्त करते हैं।
💠 तुलनात्मक शैली का प्रयोग करके वे अपनी और प्रेमचंद की स्थिति की तुलना करते हैं।
💠 मनोवैज्ञानिक विश्लेषण से वे प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उजागर करते हैं।
💠 उनका व्यंग्य रचनात्मक है, केवल आलोचना नहीं करता बल्कि सुधार की दिशा भी दिखाता है।
💠 यह व्यंग्य हास्य उत्पन्न करने के साथ-साथ गंभीर चिंतन भी करवाता है।

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