Class : 9 – Hindi : Lesson (2) ल्हासा की ओर
संक्षिप्त लेखक परिचय
लेखक का नाम: राहुल सांकृत्यायन
राहुल सांकृत्यायन हिंदी साहित्य के महानतम यात्रा-वृत्तांत लेखक, इतिहासकार, दार्शनिक और समाज-सुधारक माने जाते हैं। इनका जन्म 9 अप्रैल 1893 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पन्दहा गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम केदारनाथ पाण्डे था। बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर उन्होंने ‘राहुल’ नाम अपनाया और ‘सांकृत्यायन’ गोत्र के कारण पूर्ण नाम राहुल सांकृत्यायन हो गया।
वे बहुभाषाविद् थे और संस्कृत, पाली, तिब्बती, उर्दू, हिंदी आदि भाषाओं पर गहरी पकड़ रखते थे। उन्होंने बौद्ध ग्रंथों के अनुवाद, इतिहास और दर्शन पर महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्हें ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ का जनक कहा जाता है। उन्होंने तिब्बत, श्रीलंका, रूस, जापान आदि देशों की यात्राएँ कीं।
उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – मेरी जीवन यात्रा, दर्शन-दिग्दर्शन, ल्हासा की ओर, भागवत धर्म की रूपरेखा, बौद्ध दर्शन आदि। 1963 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 14 अप्रैल 1963 को इनका निधन हुआ। वे ज्ञान, तर्क और साहस के प्रतीक माने जाते हैं।
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन

“ल्हासा की ओर” राहुल सांकृत्यायन द्वारा रचित एक यात्रा-वृत्तांत है, जिसमें लेखक की तिब्बत यात्रा के कुछ मार्मिक, साहसी और जीवन-दर्शन से भरे अनुभवों का चित्रण किया गया है। यह रचना केवल भौगोलिक स्थल का वर्णन नहीं करती, बल्कि लेखक की संवेदनशील दृष्टि, साहसिक प्रवृत्ति, जिज्ञासु चेतना और मानवीयता की विशद झलक प्रस्तुत करती है।
पाठ की शुरुआत में लेखक ने नेपाल से तिब्बत तक के सफर को अत्यंत सजीव चित्रण के साथ वर्णित किया है। घोड़े पर यात्रा करते समय रास्ते की कठिनाइयों, ऊँचाइयों, पत्थरों और नदी की धाराओं से सामना करते हुए भी लेखक के हृदय में जिज्ञासा और आगे बढ़ने का उत्साह कम नहीं होता। रास्ते में उन्हें स्थानीय जनजीवन, वेशभूषा, बोलचाल और खान-पान से परिचय होता है, जिससे पाठक तिब्बती संस्कृति के अनेक आयामों से अवगत होता है।
लेखक ने तिब्बत के प्राकृतिक सौंदर्य को अत्यंत सूक्ष्म दृष्टि से देखा है। ऊँचे पर्वत, गहराती घाटियाँ, बर्फीली हवाएँ और आसमान से बातें करते बादल—इन सबका वर्णन न केवल दृश्यात्मक है, बल्कि भावात्मक भी। उन्हें हर चोटी, हर पत्थर, और हर झोंपड़ी में मानवीय संघर्ष, प्रकृति से सामंजस्य और सांस्कृतिक सादगी दिखाई देती है।
इस यात्रा में लेखक को धार्मिक, सामाजिक और भाषायी विविधता का भी अनुभव होता है। तिब्बत में बौद्ध धर्म की व्यापकता, वहां के लामाओं की जीवन शैली, और धार्मिक प्रतीकों की उपस्थितियाँ दर्शाती हैं कि धर्म वहाँ के लोगों के जीवन का मूल आधार है। लेकिन लेखक केवल धर्म के प्रति आस्थावान होकर नहीं देखते, वे उस संस्कृति की वैज्ञानिकता, सामाजिक ताने-बाने और मानवीय व्यवहार की गहराई में उतरते हैं।
“ल्हासा की ओर” केवल यात्रा का वृत्तांत नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक खोज, मनुष्य के धैर्य, साहस, और संस्कृति की खोज की यात्रा है। लेखक रास्ते की कड़ी ठंड, ऊँचाई पर कम ऑक्सीजन, घोड़ों की थकान, और स्थानीय भोजन की कठिनाइयों से गुज़रते हुए भी अपने मनोबल को नहीं खोते। यह उनके अविचल साहस और अदम्य जिज्ञासा का प्रमाण है।
यह पाठ एक पक्ष से यात्रा-वृत्तांत, तो दूसरे पक्ष से संवेदनात्मक आत्मकथा जैसा जान पड़ता है। इसमें लेखक ने अपनी आँखों से देखे जीवन के कटु–मधुर अनुभवों को इतनी सहजता और गहराई से प्रस्तुत किया है कि पाठक स्वयं को भी उसी यात्रा का सहभागी अनुभव करता है।
राहुल सांकृत्यायन की “ल्हासा की ओर” न केवल एक भौगोलिक मार्ग की यात्रा है, बल्कि वह एक भारतीय लेखक की अंतरात्मा की वैश्विक खोज है, जिसमें साहस, करुणा, संस्कृति और मनुष्यत्व की पहचान होती है। यह पाठ जिज्ञासु विद्यार्थियों को जीवन में देखने, अनुभव करने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
1.
थोंगला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला, जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश में भी उन्हें उचित स्थान नहीं मिला। क्यों?
उत्तर:
लेखक जब पहली बार भिखमंगे के वेश में पहुँचे, तब उनके साथियों ने वहाँ के लोगों को यह बताया कि वह एक साधु हैं जो गूढ़ ज्ञान और धार्मिक अध्ययन हेतु यात्रा कर रहे हैं। तिब्बती समाज में साधु और भिक्षु को उच्च सम्मान प्राप्त होता है। अतः उन्हें पूरा आदर और सुविधाएँ दी गईं। लेकिन दूसरी बार जब लेखक भद्र वेश में आए—अर्थात अच्छे कपड़े पहने, सभ्य रूप में—तो वहाँ के लोग उन्हें सामान्य गृहस्थ या व्यापारी समझ बैठे। इस कारण न उन्हें विशेष सम्मान मिला और न ही उचित ठहराव का स्थान। इससे यह स्पष्ट होता है कि तिब्बती समाज में वेशभूषा के पीछे छिपे उद्देश्य के आधार पर लोगों का व्यवहार तय होता था।
2.
उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था?
उत्तर:
तिब्बत में उस समय हथियार रखने या प्रयोग करने पर कोई विशेष सरकारी नियंत्रण नहीं था। इस कारण कई डाकू, लुटेरे तथा स्वार्थी लोग सशस्त्र होकर यात्रा मार्गों पर घात लगाकर बैठे रहते थे। विशेषकर निर्जन डाँड़ों, ऊँचे पहाड़ों और सुनसान स्थानों पर ये डाकू यात्रियों को लूटने के लिए पहले ही उनकी हत्या कर देते थे। यात्री असहाय होते थे—ना कोई प्रहरी होता था, ना प्रशासनिक सुरक्षा। इस वजह से यात्रियों के मन में निरंतर भय बना रहता कि कब, कहाँ और किस समय कोई अनहोनी घट जाए। लेखक स्वयं इस यात्रा में कई बार इसी भय के बीच से गुज़रे।
3.
लेखक लड्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया?
उत्तर:
लड्कोर की ओर जाते समय लेखक अपने दो अन्य साथियों के साथ चल रहा था। यात्रा में एक स्थान पर अचानक लेखक को एक ऊँची चढ़ाई पार करनी पड़ी, जिसके कारण वह शारीरिक रूप से थक गया। साथ ही, जिस तिब्बती टट्टू (घोड़ा) पर वह सवार था, वह चढ़ाई में अधिक धीरे-धीरे चलता था। इस कारण उसके साथी आगे बढ़ गए और लेखक पीछे छूट गया। इसके अतिरिक्त लेखक कभी-कभी रास्ते में रुककर आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य को निहारता, कुछ स्थल चिन्हित करता—जिससे भी वह पिछड़ जाता था। अतः शारीरिक थकान, धीमा घोड़ा और स्वभावगत उत्सुकता—इन तीन कारणों से लेखक साथियों से पिछड़ गया।
4.
लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका, परंतु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया?
उत्तर:
पहली बार जब लेखक ने सुमति को उनके यजमानों के साथ जाते देखा, तो उन्होंने नैतिकता और सावधानी के नाते उन्हें रोका। लेकिन दूसरी बार लेखक ने देखा कि सुमति उसी राह पर पुनः जा रही हैं। लेखक ने अनुमान लगाया कि सुमति की अपनी इच्छाएँ और स्वतंत्रता हो सकती हैं—उन्हें बार-बार रोकना व्यर्थ होगा। साथ ही, लेखक को यह भी लगा कि तिब्बती संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था में ऐसे व्यवहार पर उतनी आपत्ति नहीं की जाती जितनी भारतीय समाज में। इस कारण लेखक ने दूसरी बार उन्हें नहीं रोका और मौन सहमति से उन्हें जाने दिया। यह लेखक की मानसिक परिपक्वता और सांस्कृतिक समझ का परिचायक है।
5.
अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
लेखक की यात्रा अत्यंत दुर्गम, साहसिक और जोखिमभरी थी। उन्हें कठिन पहाड़ी रास्तों, बर्फीली हवाओं और ऊँचाई के कारण शारीरिक थकान का सामना करना पड़ा। भोजन का अभाव, स्थानीय लोगों की बेरुखी, रात्रि विश्राम के लिए सुरक्षित स्थान की कमी, और लगातार डाकुओं का भय जैसी समस्याएँ लगातार उनके साथ थीं। इसके अतिरिक्त भाषा की बाधा और तिब्बती संस्कृति को समझने की जिज्ञासा भी यात्रा को और जटिल बनाती थी। फिर भी लेखक का साहस, उत्सुकता और अध्यवसाय इन सभी कठिनाइयों को पार कर लेता है।
6.
प्रस्तुत यात्रा‑वृत्तांत के आधार पर बताइए कि उस समय का तिब्बती समाज कैसा था?
उत्तर:
उस समय का तिब्बती समाज धार्मिक और पारंपरिक था, जहाँ भिक्षुओं को अत्यधिक सम्मान मिलता था। समाज में बाहरी लोगों को पहचानने और उनके उद्देश्य को समझने की गहरी प्रवृत्ति थी। साधु या भिक्षु के रूप में आने वालों को सहजता से भोजन, विश्राम और आदर दिया जाता था, परंतु सामान्य यात्री को शक की दृष्टि से देखा जाता था। लोग भोले थे पर स्वाभाव से सतर्क। उनके जीवन में संयम, विश्वास और क्षेत्रीयता की गहरी जड़ें थीं। हथियारों की स्वतंत्रता, सीमित प्रशासनिक नियंत्रण, और आत्मनिर्भरता जैसे गुण उनके सामाजिक ढाँचे की झलक देते हैं।
7.
“मैं अब पुस्तकों के भीतर था।” नीचे दिए गए विकल्पों में से कौन‑सा इस वाक्य का अर्थ बतलाता है—
(क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।
(ख) लेखक पुस्तकों की शेल्फ़ के भीतर चला गया।
(ग) लेखक के चारों ओर पुस्तकें ही थीं।
(घ) पुस्तक में लेखक का परिचय और चित्र छपा था।
उत्तर:
सही विकल्प है — (ग) लेखक के चारों ओर पुस्तकें ही थीं।
इस वाक्य का आशय यह है कि लेखक एक ऐसे पुस्तकालय या विहार में पहुँच गया था जहाँ चारों ओर केवल ग्रंथ, पांडुलिपियाँ और धार्मिक पुस्तकें रखी हुई थीं। वह स्वयं उन पुस्तकों से घिरा हुआ था। यहाँ ‘पुस्तकों के भीतर’ का तात्पर्य शाब्दिक नहीं, प्रतीकात्मक है—लेखक ज्ञान और अध्ययन के सागर में डूब गया था।
8.
सुमति के यजमान और अन्य परिचित लोग लगभग हर गाँव में मिले। इस आधार पर आप सुमति के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का चित्रण कर सकते हैं?
उत्तर:
सुमति का व्यक्तित्व अत्यंत सामाजिक, मिलनसार और व्यावहारिक प्रतीत होता है। वह यात्रा मार्गों से भलीभाँति परिचित थी और विभिन्न गाँवों में उसके परिचित और यजमान मौजूद थे। इससे सिद्ध होता है कि सुमति न केवल व्यवहारकुशल थी, बल्कि लोगों से संबंध बनाए रखने में भी कुशल थी। उसकी बातचीत में अपनत्व, वाणी में आत्मीयता और आचरण में सहृदयता रही होगी, तभी वह हर स्थान पर स्वीकृत और स्वागतयोग्य थी। सुमति तिब्बती समाज की एक आत्मनिर्भर, स्वतंत्र और परिपक्व नारी का प्रतीक बनकर उभरती है।
9.
“हालाँकि उस वक्त मेरा रूप ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी ख़याल करना चाहिए था।” — इस कथन के अनुसार हमारे आचार‑व्यवहार के तरीके वेशभूषा के आधार पर तय होते हैं। आपकी समझ से यह उचित है अथवा अनुचित? विचार व्यक्त करें।
उत्तर:
यह धारणा सामाजिक रूप से तो आम है, पर नैतिक दृष्टि से अनुचित है। व्यक्ति के वेशभूषा से उसकी योग्यता, नीयत या गरिमा का आकलन नहीं किया जाना चाहिए। वस्त्र तो एक बाह्य आवरण हैं, जबकि वास्तविक मूल्य उसकी सोच, आचरण और व्यवहार में होते हैं। लेखक का कथन यह उजागर करता है कि लोग पहले उसके भिक्षु वेश को देखकर सम्मान करते हैं, लेकिन सभ्य वस्त्रों में संदेह करते हैं—यह समाज की सतही मानसिकता को दर्शाता है। हमें आंतरिक गुणों को प्राथमिकता देनी चाहिए, न कि केवल बाह्य वेश को।
10.
यात्रा‑वृत्तांत गद्य साहित्य की एक विधा है। आपकी इस पाठ्यपुस्तक में कौन‑कौन सी विधाएँ हैं? प्रस्तुत विधा उनसे किन मायनों में अलग है?
उत्तर:
इस पाठ्यपुस्तक में निबंध, संस्मरण, आत्मकथा, कथा, जीवनी, और नाटक जैसी गद्य विधाएँ शामिल हैं। यात्रा-वृत्तांत इन सबसे अलग इस अर्थ में है कि इसमें लेखक अपनी व्यक्तिगत यात्रा का वर्णन करते हुए स्थान, लोग, प्रकृति, संस्कृति, अनुभव और भावनाओं का मिश्रण प्रस्तुत करता है। यह न केवल यात्रा की भौगोलिक जानकारी देता है, बल्कि लेखक के भीतर की संवेदनाओं, सोच और परिवेश के साथ संबंध को भी प्रकट करता है। यह विधा पाठक को लेखक के साथ यात्रा पर ले जाती है।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
1–7: बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ) — उत्तर सहित
1. ‘ल्हासा की ओर’ पाठ के लेखक कौन हैं?
A. प्रेमचंद
B. राहुल सांकृत्यायन
C. महादेवी वर्मा
D. सुभद्राकुमारी चौहान
उत्तर: B. राहुल सांकृत्यायन
2. लेखक किस यात्रा का वर्णन करते हैं?
A. मानसरोवर यात्रा
B. ल्हासा यात्रा
C. हिमालय पर्वत यात्रा
D. नेपाल यात्रा
उत्तर: B. ल्हासा यात्रा
3. यात्रा के दौरान लेखक किस भाषा के विद्वान थे?
A. तिब्बती
B. नेपाली
C. उर्दू
D. अंग्रेज़ी
उत्तर: A. तिब्बती
4. लेखक ने यात्रा में किस स्थान से आरंभ किया?
A. श्रीनगर
B. कटसंग
C. लद्दाख
D. गंगटोक
उत्तर: B. कटसंग
5. लेखक ने किन लोगों को रास्ते में सफर करते देखा?
A. साधु-संत
B. व्यापारी
C. सैनिक
D. बौद्ध भिक्षु और व्यापारी
उत्तर: D. बौद्ध भिक्षु और व्यापारी
6. तिब्बत में मुख्य रूप से कौन-सा धर्म प्रचलित था?
A. हिन्दू धर्म
B. इस्लाम
C. बौद्ध धर्म
D. जैन धर्म
उत्तर: C. बौद्ध धर्म
7. लेखक ने रास्ते में किस प्राकृतिक कठिनाई का सामना किया?
A. तूफान
B. भारी वर्षा
C. ऊँचाई और ऑक्सीजन की कमी
D. गर्मी
उत्तर: C. ऊँचाई और ऑक्सीजन की कमी
8–14: अति लघु उत्तरीय प्रश्न (एक पंक्ति/शब्द में उत्तर दें)
8. ‘ल्हासा की ओर’ यात्रा किस देश की ओर की गई थी?
उत्तर: तिब्बत
9. यात्रा के समय लेखक का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
उत्तर: तिब्बती बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन
10. लेखक किस प्रकार के यात्री थे?
उत्तर: घुमक्कड़ और विद्वान यात्री
11. तिब्बत के निवासी लेखक को क्या समझते थे?
उत्तर: बौद्ध भिक्षु
12. लेखक ने यात्रा में किस पशु पर सामान लादा?
उत्तर: याक
13. लेखक को यात्रा में सबसे अधिक क्या प्रभावित करता है?
उत्तर: वहाँ की संस्कृति और बौद्ध जीवन शैली
14. तिब्बती लोग यात्रियों के साथ कैसा व्यवहार करते थे?
उत्तर: अतिथि-सत्कार से भरपूर और आदर से
15–18: लघु उत्तरीय प्रश्न (50–60 शब्दों में उत्तर दीजिए)
15. ‘ल्हासा की ओर’ यात्रा लेखक के लिए क्यों विशेष थी?
उत्तर: यह यात्रा लेखक के बौद्ध अध्ययन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण थी। तिब्बती संस्कृति, धर्म और भाषा को समझने का यह एक दुर्लभ अवसर था। उन्होंने इसे एक साधक की तरह लिया और कठिनाइयों के बावजूद ज्ञान प्राप्ति के उद्देश्य को प्राथमिकता दी।
16.लेखक ने यात्रा में किस प्रकार की प्राकृतिक कठिनाइयों का सामना किया?
उत्तर: लेखक ने ऊँचाई के कारण ऑक्सीजन की कमी, ठंडी हवाएँ, बर्फीले रास्ते, दुर्गम पहाड़ी मार्ग और याक पर सामान ढोने जैसी कठिनाइयों का सामना किया। इसके बावजूद उन्होंने साहस और उत्साह से यात्रा पूरी की।
17. लेखक का तिब्बती भाषा का ज्ञान यात्रा में कैसे सहायक हुआ?
उत्तर: लेखक तिब्बती भाषा के विद्वान थे, जिससे उन्हें आम तिब्बती लोगों से संवाद करने, बौद्ध ग्रंथों को समझने और वहाँ की संस्कृति में समाहित होने में सहायता मिली। भाषा ज्ञान ने उन्हें एक भिक्षु के रूप में स्वीकार्यता दिलाई।
18. लेखक ने तिब्बती समाज की कौन-सी विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर: लेखक ने तिब्बती समाज की धार्मिकता, सादगी, अतिथि-सत्कार, सामूहिकता और बौद्ध परंपराओं के प्रति आस्था की सराहना की है। वे जीवन की कठिनाइयों में भी संतुलित और शांतचित्त रहते हैं।
19–20: दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (120–150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
19. ‘ल्हासा की ओर’ यात्रा लेखक के दृष्टिकोण से किस प्रकार एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अन्वेषण थी?
उत्तर: ‘ल्हासा की ओर’ यात्रा केवल एक भौगोलिक भ्रमण नहीं थी, बल्कि यह लेखक के लिए एक गहन सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अन्वेषण भी थी। लेखक राहुल सांकृत्यायन ने बौद्ध धर्म के गूढ़ ग्रंथों को जानने की ललक में यह यात्रा की। तिब्बत की संस्कृति, आस्था, धार्मिक स्थल, और लोगों की जीवनशैली को उन्होंने आत्मसात किया। उन्होंने स्वयं को एक भिक्षु की भाँति ढाला ताकि वे सामाजिक और धार्मिक व्यवहार को भीतर से अनुभव कर सकें। यह यात्रा उन्हें न केवल बौद्ध ज्ञान प्रदान करती है, बल्कि उन्हें आत्म-अन्वेषण और भारतीय सभ्यता की तुलनात्मक समझ भी देती है। यह एक ऐसी खोज थी, जिसमें लेखक ने बाह्य संसार के साथ-साथ अंतर्मन की यात्रा भी की।
20. राहुल सांकृत्यायन की यात्रा वृत्तांत शैली की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर: राहुल सांकृत्यायन की यात्रा-वृत्तांत शैली सजीव वर्णन, आत्मीय अनुभव और तथ्यात्मक जानकारी से युक्त होती है। वे अपने विवरणों में दृश्यात्मकता और गहराई लाते हैं जिससे पाठक स्वयं को यात्रा का भाग महसूस करता है। ‘ल्हासा की ओर’ में उन्होंने संवाद, भाव, समाज और प्रकृति का चित्रण अत्यंत सरल किंतु प्रभावशाली भाषा में किया है। उनके वर्णन में शोधात्मक दृष्टिकोण भी रहता है, जिससे पाठक को बौद्धिक संतुष्टि मिलती है। वे स्थान विशेष की भौगोलिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक पक्षों को बारीकी से प्रस्तुत करते हैं। उनकी लेखनी ज्ञान और संवेदना का अद्भुत संगम है जो यात्रा को आत्मीय बना देती है।
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