Class : 9 – Hindi : Lesson 15. इस जल प्रलय में
संक्षिप्त लेखक परिचय
फणीश्वरनाथ रेणु हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित कथाकार और उपन्यासकार थे, जिन्हें ग्रामीण जीवन के सजीव चित्रण के लिए जाना जाता है। उनका जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के पूर्णिया ज़िले के औराही हिंगना गाँव में हुआ था। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया और सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहे।
रेणु को हिंदी साहित्य में आंचलिक कथा साहित्य का प्रवर्तक माना जाता है। उन्होंने अपने उपन्यासों और कहानियों में बिहार के ग्रामीण जनजीवन, बोली, संस्कृति और समस्याओं को अत्यंत जीवंतता से चित्रित किया। उनकी भाषा में स्थानीय बोलियों का सहज और प्रभावशाली प्रयोग देखने को मिलता है।
उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं – मैला आँचल (उपन्यास), परती परिकथा, ठुमरी (कहानी), पंचलाइट (कहानी), तीसरी कसम (जिस पर प्रसिद्ध फिल्म भी बनी)।
उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनका निधन 11 अप्रैल 1977 को हुआ। रेणु का साहित्य आज भी ग्राम्य भारत की आत्मा को उजागर करता है।
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन

इस जल प्रलय में – सारांश
पाठ परिचय
“इस जल प्रलय में” महान साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा रचित एक मार्मिक रिपोर्ताज है जो कक्षा 9 की हिंदी पुस्तक कृतिका में संकलित है। यह रचना 1975 में पटना शहर में आई विनाशकारी बाढ़ के लेखक के व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित है।
लेखक का परिचय और पृष्ठभूमि
लेखक फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म बिहार के ऐसे क्षेत्र में हुआ था जो प्रतिवर्ष कोसी, पनार, महानंदा और गंगा नदियों की बाढ़ से प्रभावित होता रहता है। दस वर्ष की आयु से ही वे बाढ़ पीड़ितों की सहायता में राहत कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते आए थे। हाई स्कूल में बाढ़ पर लेख लिखकर उन्होंने प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त किया था।
मुख्य घटनाक्रम
बाढ़ की आहट
रेणु जी ने अपनी कई रचनाओं में बाढ़ की विनाशलीला का चित्रण किया था, परंतु स्वयं कभी बाढ़ का प्रत्यक्ष अनुभव नहीं किया था। जब 1975 में पटना में अठारह घंटे की अविरल वर्षा के कारण पुनपुन नदी का पानी राजेंद्र नगर, कंकड़बाग और अन्य निचले हिस्सों में घुस आया, तब उन्होंने पहली बार शहरी व्यक्ति की हैसियत से बाढ़ का सामना किया।
तैयारियाँ और प्रतीक्षा
बाढ़ की सूचना मिलते ही लेखक और उनके परिवार ने घर में आवश्यक सामान एकत्रित करना शुरू किया। ईंधन, आलू, मोमबत्ती, दियासलाई, पीने का पानी और कंपोज की गोलियाँ जमा की गईं। एक सप्ताह तक पढ़ने के लिए हिंदी, बांग्ला और अंग्रेजी की फिल्मी पत्रिकाएं भी खरीदीं।
शहर की स्थिति
दिन भर में राजभवन और मुख्यमंत्री निवास प्लावित हो गया। गोलघर जल से घिर गया था। शहर के लोग उत्सुकता से पानी का हाल जानने के लिए निकल रहे थे और सबकी जुबान पर एक ही जिज्ञासा थी – “पानी कहाँ तक आ गया है?”
स्मृतियों का सिलसिला
1947 का अनुभव
लेखक की स्मृति में 1947 में मनिहारी क्षेत्र की बाढ़ का वर्णन आता है जब वे अपने गुरु भादुड़ी जी के साथ नाव पर दवा, तेल, दियासलाई आदि लेकर बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए गए थे। एक टीले के समीप पहुंचकर उन्होंने देखा कि लोग लोकनृत्य कर रहे थे और मछली पकाकर खा रहे थे।
मानवीय संवेदना
1949 में महानंदा की बाढ़ के दौरान एक रोगी युवक और उसके कुत्ते की घटना का मार्मिक वर्णन है। जब डॉक्टर साहब ने कुत्ते को नाव पर चढ़ने से मना किया तो युवक ने कहा – “हमार कुकुर नहीं जाएगा तो हम हुं नहीं जाएगा”। यह घटना मानव और पशु के बीच गहरे प्रेम और स्वामिभक्ति को दर्शाती है।
चरम स्थिति का वर्णन
सुबह साढ़े पांच बजे जब लेखक को जगाया गया तो चारों ओर पानी ही पानी था। मोहल्ले के लोग शोर मचा रहे थे। लेखक ने सोचा कि काश उनके पास कैमरा या टेप रिकॉर्डर होता तो वे इस सारे दृश्य को कैद कर लेते। परंतु उनके पास कुछ भी नहीं था, यहाँ तक कि कलम भी चोरी हो गई थी।
संदेश और शिक्षा
यह रिपोर्ताज प्राकृतिक आपदाओं के समय मानवीय संवेदनाओं, पारस्परिक सहयोग और जीवटता का संदेश देता है। लेखक ने दिखाया है कि आपदा के समय अमीर-गरीब, छोटे-बड़े सभी समान रूप से प्रभावित होते हैं। साथ ही यह भी संकेत करता है कि हमें प्राकृतिक आपदाओं के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए और एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिए।
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
1. बाढ़ की खबर सुनकर लोग किस तरह की तैयारी करने लगे?
उत्तर: बाढ़ की खबर सुनकर लोग अत्यावश्यक सामानों को इकट्ठा करने में जुट गए। उन्होंने आवश्यक ईंधन, आलू, मोमबत्ती, दियासलाई, पीने का पानी और कम्पोज की गोलियाँ इकट्ठी करना शुरू कर दिया ताकि बाढ़ में घिर जाने पर कुछ दिनों तक गुजारा चल सके। दुकानदारों ने अपनी दुकानों का सामान निचली जगहों से हटाकर ऊपर करना शुरू कर दिया और सभी लोग बाढ़ के आने की प्रतीक्षा करने लगे।
2. बाढ़ की सही जानकारी लेने और बाढ़ का रूप देखने के लिए लेखक क्यों उत्सुक था?
उत्तर: मनुष्य होने के नाते लेखक भी जिज्ञासा से भरे थे। उन्होंने पहले बाढ़ का अनुभव नहीं किया था लेकिन फिर भी वह बाढ़ पर कहानी, उपन्यास व रिपोर्ताज लिख चुके थे। उन्होंने हाईस्कूल में बाढ़ पर लेख लिखकर प्रथम पुरस्कार भी पाया था। लेखक को बाढ़ के पानी को शहर में घुसते देखने और उसकी विनाशलीला के बारे में जानने की बड़ी उत्सुकता थी। यह उनके लिए बिल्कुल नया अनुभव था।
3. सबकी जुबान पर एक ही जिज्ञासा-‘पानी कहाँ तक आ गया है?’-इस कथन से जनसमूह की कौन-सी भावनाएँ व्यक्त होती हैं?
उत्तर: सभी के मन में यह जिज्ञासा थी कि पानी कहाँ तक आ गया है। ‘पानी कहाँ तक आ गया है’ यह सुनकर हमारी उत्सुकता, कौतूहल, और सुरक्षा की भावना उमड़ने लगी। इस कथन से जनसमूह में जिज्ञासा के भाव उठते हुए जान पड़ते हैं। लोग बाढ़ की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए उस जगह जा रहे थे। उनके मन में अभी बाढ़ के पानी का भय नहीं सता रहा था, वे बस बाढ़ के पानी की गति के विषय में जिज्ञासु थे।
4. ‘मृत्यु का तरल दूत’ किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर: बाढ़ के निरंतर बढ़ते गए स्रोत को ‘मृत्यु का तरल दूत’ कहा गया है। बढ़ते हुए जल ने भयानक संकट का संकेत दे दिया था। बाढ़ के इस बढ़ते जल स्रोत ने न जाने कितने प्राणियों को उजाड़ दिया था और बेघर करके मौत की नींद सुला दिया था। इस तरल जल के कारण काफी लोगों को मरना पड़ा इसलिए इसे ‘मृत्यु का तरल दूत’ कहा जाता है।
5. आपदाओं से निपटने के लिए अपनी तरफ़ से कुछ सुझाव दीजिए।
उत्तर: आपदाओं से निपटने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए:
सरकार को सभी प्रकार के संभावित खतरों से निपटने के लिए साधन तैयार रखने चाहिए। उस सामान की लगातार देखरेख होनी चाहिए ताकि आपदा के समय उनका सदुपयोग किया जा सके।
आपदाएं किसी को बताकर या संकेत देकर नहीं आतीं।
आपदाओं से निपटने के लिए सभी को तैयार रहना चाहिए।
जनता व सरकार दोनों को संकट की घड़ी में शांति से काम लेना चाहिए।
6. ‘ईह! जब दानापुर डूब रहा था तो पटनियाँ बाबू लोग उलटकर देखने भी नहीं गए…अब बूझो!’-इस कथन द्वारा लोगों की किस मानसिकता पर चोट की गई है?
उत्तर: उक्त कथन द्वारा लोगों में पाई जाने वाली ईर्ष्या जो किसी दूसरे को दुखी देखकर मिलने वाली खुशी की ओर इशारा कर रही है। यहाँ लोगों की मानसिकता को दिखाया जा रहा है कि लोग किस प्रकार दूसरे की तरक्की से दुखी होते हैं। लोग संकट में एक दूसरे की मदद करने की बजाए अपने निजी स्वार्थ के बारे में पहले सोचते हैं। यह स्वार्थपरक और संकीर्ण मानसिकता पर व्यंग्य है।
7. खरीद-बिक्री बंद हो चुकने पर भी पान की बिक्री अचानक क्यों बढ़ गई थी?
उत्तर: उक्त समय लोग बाढ़ को देखने के लिए बड़ी संख्या में इकट्ठे हो रहे थे। वह बाढ़ के आने से दुखी नहीं थे बल्कि वह खुशी-खुशी बाढ़ को देखना चाहते थे। ऐसे समय में पान उनके लिए समय काटने का एक साधन था जिसे वह बाढ़ आते देखते समय खाना चाहते थे। इसलिए अन्य सामान की दुकानें बंद होने लगीं लेकिन पान की दुकान पर सबसे ज्यादा बिक्री होने लगी थी।
8. जब लेखक को यह अहसास हुआ कि उसके इलाके में भी पानी घुसने की संभावना है तो उसने क्या-क्या प्रबंध किए?
उत्तर: जब लेखक को एहसास होने लगा कि उसके यहाँ भी बाढ़ का पानी घुसने की संभावना है तो वह रोजमर्रा की चीजों को इकट्ठा करने लगा। उन्होंने आवश्यक सामान जैसे मोमबत्ती, आलू, ईंधन आदि चीजों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया और पीने का पानी भी। उन्होंने किताबें भी खरीद लीं और यह भी सोच रखा था कि बाढ़ का पानी ज्यादा भरने पर वह छत पर जाकर इनको पढ़ेंगे।
9. बाढ़ पीड़ित क्षेत्र में कौन-कौन सी बीमारियों के फैलने की आशंका रहती है?
उत्तर: बाढ़ पीड़ित जगहों पर कई बीमारियां जन्म लेने लगती हैं जैसे मलेरिया, हैजा, टाइफाइड, उल्टी, पेचिश, बुखार, डायरिया, कॉलरा आदि बीमारियों के फैलने की संभावना होती है। साथ-साथ पानी का बार-बार पैरों पर लगने से पाव होने के आसार बन जाते हैं।
10. नौजवान के पानी में उतरते ही कुत्ता भी पानी में कूद गया। दोनों ने किन भावनाओं के वशीभूत होकर ऐसा किया?
उत्तर: वह नौजवान और कुत्ता एक दूसरे को बेहद पसंद करते थे। दोनों ही एक-दूसरे के सच्चे साथी थे और दोनों में ही बहुत गहरा लगाव था। दोस्त होने के नाते वह एक दूसरे को मानव और पशु की तरह नहीं देखते थे। वह एक दूसरे के बिना नहीं जी सकते थे। यहाँ तक कि नौजवान को कुत्ते के बिना मृत्यु भी बर्दाश्त नहीं थी और इसी प्यार व लगाव के कारण कुत्ता भी पानी में कूद गया था।
11. ‘अच्छा है, कुछ भी नहीं। कलम थी, वह भी चोरी चली गई। अच्छा है, कुछ भी नहीं- मेरे पास।’-मूवी कैमरा, टेप रिकॉर्डर आदि की तीव्र उत्कंठा होते हुए भी लेखक ने अंत में उपर्युक्त कथन क्यों कहा?
उत्तर: लेखक का कलाकार प्रवृत्ति का होने के कारण उन्हें कैमरे, टेप रेकॉर्डर की आवश्यकता महसूस हुई ताकि वह इस बाढ़ का चित्रण कर सकते परंतु अगर वह ऐसा करते तो वह केवल दर्शक बन जाते और बाढ़ को साक्षात् अनुभव करने का मौका उनके हाथ से निकल जाता। इसलिए उन्होंने उपर्युक्त कथन कहा कि अच्छा हुआ मेरे पास कुछ नहीं है।
12. आपने भी देखा होगा कि मीडिया द्वारा प्रस्तुत की गई घटनाएँ कई बार समस्याएँ बन जाती हैं, ऐसी किसी घटना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: जहाँ मीडिया प्रचार प्रसार कर समाज को जाग्रत करता है वहीं कुछ समस्याएं बढ़ा भी देता है। उदाहरण स्वरूप किसानों वाला किस्सा ही ले लीजिए। इस घटना को मीडिया ने इतना तोड़-मरोड़कर दिखाया कि लोग सरदारों को गलत नज़र से देखने लगे। जिसके कारण सरदारों को काफी कुछ देखना पड़ा। मीडिया कभी-कभी तथ्यों को सही तरीके से प्रस्तुत नहीं करता और इससे समाज में भ्रम फैलता है।
13. अपनी देखी-सुनी किसी आपदा का वर्णन कीजिए।
उत्तर: अपने अनुभव से स्वयं कीजिए कोई बाढ़, भूकंप , भूस्खलन आदि किसी भी एक घटना का वर्णन करे .
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🔵 प्रश्न 1: ‘इस जल प्रलय में’ किस वर्ष की बाढ़ का वर्णन है?
🟢 (क) सन् 1947
🟡 (ख) सन् 1967
🔴 (ग) सन् 1975
🟣 (घ) सन् 1980
✔️ उत्तर: (ख) सन् 1967
🔵 प्रश्न 2: पटना में बाढ़ किस नदी के पानी से आई थी?
🟢 (क) गंगा नदी
🟡 (ख) यमुना नदी
🔴 (ग) पुनपुन नदी
🟣 (घ) कोसी नदी
✔️ उत्तर: (ग) पुनपुन नदी
🔵 प्रश्न 3: लेखक ने बाढ़ के पानी को क्या कहा है?
🟢 (क) जीवन का स्रोत
🟡 (ख) मृत्यु का तरल दूत
🔴 (ग) प्रकृति का वरदान
🟣 (घ) पानी का प्रवाह
✔️ उत्तर: (ख) मृत्यु का तरल दूत
🔵 प्रश्न 4: बाढ़ के समय केवल कौन सी दुकानें खुली थीं?
🟢 (क) किराने की दुकानें
🟡 (ख) कपड़े की दुकानें
🔴 (ग) पान की दुकानें
🟣 (घ) दवा की दुकानें
✔️ उत्तर: (ग) पान की दुकानें
🔵 प्रश्न 5: ‘इस जल प्रलय में’ किस विधा की रचना है?
🟢 (क) कहानी
🟡 (ख) निबंध
🔴 (ग) रिपोर्ताज
🟣 (घ) आत्मकथा
✔️ उत्तर: (ग) रिपोर्ताज
🔵 प्रश्न 6: बाढ़ की खबर सुनकर लोगों ने क्या तैयारी की?
🟢 उत्तर: लोगों ने घर में ईंधन, आलू, मोमबत्ती, दियासलाई, पीने का पानी और कंपोज की गोलियाँ जमा कर लीं।
🔵 प्रश्न 7: लेखक कितने घंटे की वर्षा के बाद बाढ़ आई?
🟢 उत्तर: अट्ठारह घंटे की अविराम वृष्टि के बाद पुनपुन नदी का पानी शहर में घुस आया।
🔵 प्रश्न 8: बाढ़ के समय कौन से गाने बज रहे थे?
🟢 उत्तर: ‘हवा में उड़ता जाए मोरा लाल दुपट्टा मलमल का’ और ‘नैया तोरी मंझधार’ गाने बज रहे थे।
🔵 प्रश्न 9: लेखक ने बाढ़ को किस तरह भोगा था?
🟢 उत्तर: लेखक ने पहली बार शहरी भाँति बाढ़ की विभीषिका को पटना शहर में भोगा था।
🔵 प्रश्न 10: ‘धनुष्कोटि’ क्या है?
🟢 उत्तर: धनुष्कोटि समुद्र किनारे स्थित एक स्थान है जो एक भयंकर तूफान में नष्ट हो गया था।
🔵 प्रश्न 11: लेखक ने बाढ़ के पानी को ‘मृत्यु का तरल दूत’ क्यों कहा है?
🟢 उत्तर: लेखक ने बाढ़ के पानी को ‘मृत्यु का तरल दूत’ इसलिए कहा है क्योंकि वह पानी भयंकर, विनाशकारी और तेज गति से आगे बढ़ रहा था। उसका रंग गेरुआ था और उसमें झाग-फेन था। यह पानी अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को बहा ले जाने में सक्षम था। इसकी भयावहता को देखकर लगता था जैसे यह मृत्यु का संदेश लेकर आ रहा हो। लेखक इस पानी के सामने मनुष्य की असहायता और भय को व्यक्त करना चाहते हैं।
🔵 प्रश्न 12: “अब बूझो!” — इस कथन के माध्यम से लेखक ने किस मानसिकता पर प्रहार किया है?
🟢 उत्तर: इस कथन के माध्यम से लेखक ने शहरी लोगों की स्वार्थी और संवेदनहीन मानसिकता पर तीखा व्यंग्य किया है। जब दानापुर (ग्रामीण क्षेत्र) में बाढ़ आई थी तो पटना के शहरी लोगों ने उस पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन जब स्वयं पटना में बाढ़ आई तो वे व्याकुल हो गए। ग्रामीण लोग एक प्रकार की संतुष्टि महसूस कर रहे थे कि अब शहरी लोगों को भी बाढ़ की पीड़ा का अनुभव हो रहा है। यह कथन सामाजिक विभाजन और ओछी मानसिकता को दर्शाता है।
🔵 प्रश्न 13: बाढ़ देखने के लिए उत्सुक लोगों की भीड़ में केवल पान की दुकानें ही क्यों खुली थीं?
🟢 उत्तर: बाढ़ के समय लोग बड़ी संख्या में बाढ़ का दृश्य देखने के लिए इकट्ठा हो रहे थे। वे बाढ़ से भयभीत नहीं थे, बल्कि हँसी-खुशी और कौतूहल से भरे हुए थे। ऐसे समय में पान खाना उनके लिए समय गुजारने और मनोरंजन का साधन बन गया। पान की दुकानदारों ने इस अवसर का लाभ उठाया और अपनी दुकानें खोल दीं जबकि अन्य दुकानें बंद थीं। यह दुकानदारों की व्यावसायिक समझ और परिस्थिति का लाभ उठाने की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
🔵 प्रश्न 14: लेखक को मूवी कैमरा और टेप रिकॉर्डर की इच्छा क्यों हुई? बाद में उन्होंने ‘अच्छा है, कुछ भी नहीं’ क्यों कहा?
🟢 उत्तर: लेखक को बाढ़ की भयावहता को कैद करने के लिए मूवी कैमरा और टेप रिकॉर्डर की तीव्र इच्छा हुई ताकि वह उस दृश्य को यथावत रिकॉर्ड कर सके। लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि कुछ दृश्य इतने हृदयविदारक और संवेदनशील होते हैं कि उन्हें कैमरे में कैद करना उचित नहीं। बाढ़ में फँसे लोगों की पीड़ा, उनकी त्रासदी और असहायता को रिकॉर्ड करना उनके दुःख का मज़ाक उड़ाने जैसा होता। इसलिए उन्होंने कहा — “अच्छा है, कुछ भी नहीं”।
🔵 प्रश्न 15: ‘इस जल प्रलय में’ रिपोर्ताज के आधार पर बाढ़ की विभीषिका और उसके प्रति लोगों की प्रतिक्रियाओं का वर्णन कीजिए। लेखक ने इसमें किन सामाजिक पहलुओं को उजागर किया है?
🟢 उत्तर: फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा लिखित ‘इस जल प्रलय में’ सन् 1967 में पटना शहर में आई प्रलयंकारी बाढ़ का आँखों देखा हाल है। अट्ठारह घंटे की अविराम वर्षा के बाद पुनपुन नदी का पानी राजेंद्रनगर, कंकड़बाग और अन्य निचले इलाकों में घुस आया था। बाढ़ का पानी गेरुआ रंग का था और झाग-फेन से भरा हुआ था, जिसे लेखक ने ‘मृत्यु का तरल दूत’ कहा है।
बाढ़ की खबर सुनते ही लोगों ने तैयारियाँ शुरू कर दीं। घरों में ईंधन, आलू, मोमबत्ती, दियासलाई, पीने का पानी और दवाइयाँ जमा की जाने लगीं। दुकानों से सामान ऊपर की ओर ले जाया जाने लगा। लेकिन लोगों की प्रतिक्रियाएँ विरोधाभासी थीं — कुछ भयभीत थे तो कुछ बाढ़ का दृश्य देखने निकल पड़े। पान की दुकानें खुली थीं और लोग कौतूहलवश बाढ़ को देखने जा रहे थे।
लेखक ने इस रिपोर्ताज में कई सामाजिक पहलुओं को उजागर किया है। उन्होंने शहरी और ग्रामीण लोगों के बीच के विभाजन को दिखाया है — जब दानापुर में बाढ़ आई तो शहर उदासीन रहा, पर जब पटना डूबा तो सब घबराए। “अब बूझो!” जैसे कथन से स्वार्थी मानसिकता पर व्यंग्य किया गया है।
साथ ही, लेखक ने मीडिया और समाज की संवेदनहीनता पर भी प्रहार किया है। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक आपदा के समय मनुष्य का असली चेहरा और सामाजिक सोच कैसे उजागर होती है — कोई सहयोग करता है, तो कोई तमाशा देखता है। यह रचना मानवता, संवेदना और सामाजिक चेतना का जीवंत चित्र प्रस्तुत करती है।
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