Class 12 : हिंदी साहित्य – अध्याय 9.घनानंद
संक्षिप्त लेखक परिचय
🌟 घनानंद – परिचय
💠 जीवन परिचय
🌸 घनानंद 18वीं शताब्दी के प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि थे, जिनका वास्तविक नाम प्राणचंद था।
🏰 वे मुगल सम्राट मोहम्मद शाह ‘रंगीला’ के दरबार से जुड़े रहे और दरबारी कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
💖 दरबारी जीवन के साथ-साथ उनका व्यक्तिगत जीवन भी चर्चित रहा, विशेषकर सुंदरिका रूपमती के साथ उनका गहन प्रेम।
📜 रूपमती से बिछुड़ने के बाद उनके काव्य में वियोग, पीड़ा और करुणा का मार्मिक चित्रण मिलने लगा।
🌿 दिल्ली उनके जीवन का केंद्र रहा, जहाँ उन्होंने अपनी काव्य साधना को परिपूर्णता दी।
💠 साहित्यिक योगदान
✍️ घनानंद को रीतिकाल के श्रृंगार रस के सर्वश्रेष्ठ कवियों में गिना जाता है, विशेषकर वियोगात्मक श्रृंगार में उनकी अद्वितीय पकड़ है।
🌸 उनकी कविताओं में करुणा, संवेदना और आत्मीयता का गहरा मेल देखने को मिलता है, जो पाठक को हृदय से छू लेता है।
🎨 उन्होंने अपने नायक-नायिका के माध्यम से प्रेम के सूक्ष्म भावों, मनोव्यथाओं और मान-मनुहार के कोमल क्षणों को अत्यंत सजीव बना दिया।
💎 उनके काव्य की भाषा ब्रजभाषा है, जिसमें कोमलता, मधुरता और लयात्मकता का अद्भुत संगम है।
📚 उनकी रचनाएँ न केवल भावुकता में डूबी हैं, बल्कि उनमें जीवन के गहरे अनुभव और प्रेम की अनंतता की झलक भी है, जो उन्हें अमर कवियों की श्रेणी में स्थापित करती है।
————————————————————————————————————————————————————————————————————————————
पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन
🌟 पहले कवित्त की व्याख्या
📖 पाठ
बहुत दिनान को अवधि आसपास परे,
खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को।
कहि कहि आवन छबीले मनभावन को,
गहि गहि राखति हो दे दे सनमान को।।
झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास है कै,
अब ना घिरत घर आनंद निदान को।
अधर लगे हैं आनि करि के पयान प्रान,
चाहत चलन ये संदेसो लै सुजान को।।
💠 भावार्थ और विश्लेषण
बहुत दिनों से कवि प्रतीक्षा कर रहा है।
मिलने का समय निकट आता है, तो प्राण अत्यधिक घबराहट से भर जाते हैं।
“कहि कहि” और “गहि गहि” में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
कवि बार-बार सुजान के आने की कल्पना कर अपने प्राणों को सम्मान देते हुए रोकता है।
झूठे वादों से निराशा है, अब घर में आनंद नहीं आता।
प्राण होठों पर आकर सुजान का संदेश लेकर जाना चाहते हैं।
केवल उस संदेश की आशा में ही प्राण शरीर में टिके हैं।
🌟 दूसरे कवित्त की व्याख्या
📖 पाठ
आनाकानी आरसी निहारिबो करौगे बोलौं?
कहन मो चकित दशा त्यों न दीठि डोलिहै।
मौन हूं सौं देखिहौं कितेक पन पालिहौ जू,
पूकभरी मूकता बुलाय आपि बोलिहै।।
जान घनआनंद यों मोहिं तुम्हैं पैज परी,
जानिहै गो टेक तरें कौन धौं मलोलिहै।
रुई दिए रहौगे कहां लौं बहरायबे की?
कबहूं तौ मेरिहै पुकार कान खोलिहै।।

💠 भावार्थ और विश्लेषण
प्रेमिका की उदासीनता और आनाकानी पर कवि की पीड़ा है।
कवि पूछता है कि टालमटोल करते हुए दर्पण देखना कब तक चलेगा।
मेरी चकित और व्याकुल दशा क्यों नहीं देखती।
मौन रहकर देखूंगा कि प्रेमिका कितने दिन तक प्रेम-व्रत निभाएगी।
पुकार भरी मुद्रा से बुलाने पर भी क्या वह बोलेगी या नहीं।
“घनआनंद” नाम लेकर कवि अपने प्रेम की गहराई समझाने की कोशिश करता है।
प्रश्न करता है कि कब तक कानों में रुई डालकर बहरी बनी रहोगी।
कभी तो मेरी करुण पुकार सुनकर कान खोलोगी।
🌟 काव्यगत विशेषताएं
💖 भाव पक्ष
वियोग श्रृंगार की प्रधानता।
प्रेम की गहरी पीड़ा और विरह की व्यथा का चित्रण।
स्वानुभूत और जीवन-अनुभव से उपजा प्रेम।
प्रेम में एकनिष्ठता और गहराई।
लौकिक प्रेम का अंततः कृष्ण-भक्ति में परिवर्तन।
🎨 कला पक्ष
भाषा शुद्ध ब्रजभाषा, कोमल और मधुर।
अरबी-फारसी के शब्दों का प्रयोग।
छंद मुख्यतः कवित्त और सवैया।
मुक्तक शैली का प्रभाव।
अलंकार –
अनुप्रास: “अवधि आसपास”, “घिरत घन आनंद निदान”
पुनरुक्ति प्रकाश: “कहि कहि”, “गहि गहि”
यमक: “जान अजान”
विरोधाभास: प्रिय अलंकार
लक्षणा और व्यंजना का उत्कृष्ट प्रयोग।
मुहावरों और लोकोक्तियों से भाषा को जीवंत बनाना।
कवित्तों में गेयता और लयबद्धता।
🌟 साहित्यिक महत्व
रीतिकाल में अपवादस्वरूप स्वच्छंद प्रेम की अभिव्यक्ति।
भावनाप्रधान और आत्मानुभूत काव्य।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार – “प्रेम की गूढ़ अंतर्दशा का उद्घाटन जैसा घनानंद में है, वैसा हिंदी के अन्य श्रृंगारी कवि में नहीं।”
भक्तिकाल और आधुनिकता के बीच सेतु का कार्य।
वैयक्तिकता और स्वानुभूति की प्रवृत्ति आधुनिक काव्य की पूर्व-पीठिका।
🌟 सारांश
घनानंद के कवित्तों में प्रेमिका सुजान के विरह में व्याकुल प्रेमी की दशा का सजीव चित्रण है।
पहले कवित्त में प्राण केवल संदेश की आशा में टिके हैं।
दूसरे कवित्त में प्रेमिका की उदासीनता और आनाकानी पर पीड़ा व्यक्त है।
वियोग श्रृंगार, स्वानुभूत प्रेम, ब्रजभाषा, अलंकार योजना और संगीतात्मकता उनकी रचनाओं की प्रमुख विशेषताएं हैं।
वे निस्संदेह प्रेम की पीर के अमर कवि हैं।
————————————————————————————————————————————————————————————————————————————
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
🌸 1. कवि ने ‘चाहत चलन ये संदेसो ले सुजान को’ क्यों कहा है?
उत्तर:
💠 इस पंक्ति में कवि अपनी प्रेयसी सुजान से मिलने की अतिशय व्यग्रता व्यक्त कर रहा है।
💠 वह कहता है कि इतने समय से मैं तुम्हारे संदेश या आगमन की प्रतीक्षा में जी रहा हूँ कि मेरे प्राण अटक कर रह गए हैं।
💠 एक बार तुम्हारा संदेश आ जाए, तो मैं चैन से मृत्यु को प्राप्त हो जाऊँगा।
💠 इस प्रकार प्रेमी का पूरा अस्तित्व ही प्रिय के संदेश पर आश्रित हो गया है और इसी आशा में वह प्राणों को थामे बैठा है।
🌸 2. कवि मौन होकर प्रेमिका के कौन से प्रण पालन को देखना चाहता है?
उत्तर:
💠 कवि यह देखना चाहता है कि उसका मौन—यानी बिना बोले रहना—कब तक उसकी प्रण-पालनशील प्रेमिका सुजान को उसके प्रेम के प्रति वचनबद्ध रहने के लिए विवश कर पाता है।
💠 वह मौन साध कर प्रतीक्षा करता है कि कब उसकी चुप्पी उसकी पुकार से उसे प्रेम-व्रत निभाने पर अमल करने के लिए प्रेरित करेगी।
🌸 3. कवि ने किस प्रकार की पुकार से ‘कान खोलि है’ की बात कही है?
उत्तर:
💠 ‘कान खोलि है’ से कवि अभिप्रेत करता है कि उसकी करुण पुकार प्रिय के कानों तक एक दिन अवश्य पहुँचेगी।
💠 वह यही देखना चाहता है कि कब तक उसकी प्रेमिका रूई भरी चुप्पी बनाए रखेगी और कब उसकी करुण ध्वनि उसे पिघला कर उसके कान खोलने पर विवश करेगी।
🌸 4. प्रथम सवैये के आधार पर बताइए कि प्राण पहले कैसे पल रहे थे और अब क्यों दुखी हैं?
उत्तर:
💠 प्रथम सवैये में कवि बताता है कि संयोगावस्था में प्रिय सुजान के पास होने से उसके प्राण सहजता से प्रेम के पोषण पर पलते थे।
💠 पर अब वियोगवश प्रेम का सहारा छूट जाने पर उसके प्राण क्रोधित-पिड़ित होकर दुखी रहते हैं।
💠 इसका कारण यह है कि उन्हें पुनः उसी प्रेम-पोषण की तीव्र अभिलाषा है।
🌸 5. घनानंद की रचनाओं की भाषिक विशेषताएँ
उत्तर:
✨ गहन अलंकार प्रयोग – अनुप्रास, उपमा, रूपक इत्यादि का सूक्षम एवं सजीव उपयोग।
🌿 ब्रजभाषा की प्रवीणता – शुद्ध, सुसंस्कृत एवं तात्कालिक जीवनाभिव्यक्ति में निपुण।
💎 शब्द-संयुक्तता – संक्षिप्त होने पर भी भावनाओं का विस्तृत संचार।
🎨 रचनात्मकता – परंपरागत भावों में नवीनता व ताजगी बनाए रखने की क्षमता।
🌸 6. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों की पहचान कीजिए
उत्तर:
(क) कहि-कहि आवन छबीले मनभावन को, गहि-गहि राखति ही दैं-दै सनमान को।
✅ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार (‘कहि-कहि’, ‘गहि-गहि’, ‘दैं-दै’)
(ख) कूक भरी मूकता बुलाए आप बोलि है।
✅ उपमा अलंकार; कवि ने चुप्पी की मौनता की तुलना कोयल की कूक से की है।
(ग) अब न घिरत घन आनंद निदान को।
✅ अनुप्रास अलंकार; ‘घिरत’, ‘घन’, ‘अनंद’ में ‘घ’ ध्वनि की आवृत्ति।
————————————————————————————————————————————————————————————————————————————
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🌸 I. बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ)
🌼 1. “कवित्त” में घनानंद ने किस भाषा का प्रयोग प्रमुख रूप से किया है?
A. अवधी
B. ब्रजभाषा
C. खड़ी बोली
D. भोजपुरी
✅ उत्तर: B. ब्रजभाषा
🌼 2. घनानंद की कवित्त रचना में जो अलंकार सबसे अधिक देखने को मिलता है, वह है:
A. उपमा
B. रूपक
C. अनुप्रास
D. मानवीकरण
✅ उत्तर: C. अनुप्रास
🌼 3. निम्नलिखित में से किस भाव का अभिव्यंजन ‘कवित्त’ में मुख्यतः दिखता है?
A. वीरता
B. विरह-पीड़ा
C. भक्ति
D. हास्य
✅ उत्तर: B. विरह-पीड़ा
🌼 4. घनानंद के “कवित्त” में प्रेमी का मौन-स्थापक धैर्य किससे तुलना किया गया है?
A. शांत सरिता
B. सूनी पत्थर
C. कोयल की कूक
D. मंद पवन
✅ उत्तर: C. कोयल की कूक
🌼 5. “कवित्त” की संरचना किस काव्यशैली से प्रभावित है?
A. पद्यात्मक गद्य
B. मुक्तछंद
C. दोहा
D. सवैया
✅ उत्तर: D. सवैया
🌸 II. लघुत्तर उत्तर प्रश्न
🌿 1. घनानंद ने विरह-पीड़ा को व्यंग्यात्मक ढंग से कैसे प्रस्तुत किया है?
उत्तर: उन्होंने प्रेयसी के न आने पर प्राणों की कराह को हास्यस्पद ढंग से व्यक्त किया है, जैसे “प्राण ठिठके रहें” कहकर विरह की तीव्र व्यथा में मनोवैज्ञानिक विडंबना दिखलाई।
🌿 2. “कवित्त” में अनुप्रास अलंकार का क्या प्रभाव है?
उत्तर: अनुप्रास अलंकार से शब्दों का संगीत और लय बढ़ती है, जिससे पाठक में भावनात्मक सहानुभूति और काव्यात्मक माधुर्य उत्पन्न होता है।
🌿 3. प्रेमी का मौन-धीर्यता का कौन-सा पक्ष रचना में प्रमुख है?
उत्तर: मौन से प्रेमी की अनुभूत चुप्पी उसकी आत्मसंयमशीलता और प्रिय के प्रति अटूट विश्वास का परिचायक बनती है।
🌿 4. “कवित्त” में कोयल की कूक का प्रतीकात्मक अर्थ क्या है?
उत्तर: कोयल की कूक प्रेयसी को प्रेमी की पुकार बतलाती है, जिसका प्रतीक्षा-तप्त हृदय सुनने की आकांक्षा करता है।
🌿 5. घनानंद की भाषा-संरचना में ब्रजभाषा का क्या योगदान है?
उत्तर: ब्रजभाषा ने भावाभिव्यक्ति को पारंपरिक माधुर्य और लोक-सुगमता दोनों प्रदान किए, जिससे रचना में सहजता और सांस्कृतिक गहराई बनी।
🌸 III. मध्यतर उत्तर प्रश्न
🌻 1. “कवित्त” में विरह-भावना के क्या विविध आयाम दिखते हैं?
उत्तर: इसमें विरह-भावना को केवल वेदना ही नहीं, बल्कि प्रेम-पुष्टि, आत्मसंयम, और व्याकुलता सहित कई पहलुओं में दर्शाया गया है। प्रेयसी के अभाव में प्राणों की कराह, मौन साधना, और पुकार की प्रतीक्षा—यह सब मिलकर विरह के विविध रंग प्रदर्शित करते हैं।
🌻 2. “कवित्त” में अलंकारों के प्रयोग से पाठक पर क्या प्रभाव पड़ता है? उदाहरण सहित।
उत्तर: उपमा, अनुप्रास एवं पुनरुक्ति अलंकारों से काव्य में माधुर्य और लयात्मकता आती है। जैसे “कहि-कहि आवन छबीले” में पुनरुक्ति अलंकार से ध्वनि का खेल प्रकट होता है, जो पाठक को काव्य के संगीत से बांध लेता है।
🌻 3. घनानंद के “कवित्त” का संरचनात्मक विश्लेषण कीजिए।
उत्तर: रचना चार सवैयों में विभाजित है, जिनमें प्रेम-आशा, मौन प्रतीक्षा, पुकार, और आत्मसमर्पण की अवस्थाएँ हैं। छंदबद्धता और लय पर विशेष ध्यान दिया गया है, जिससे प्रत्येक सवैया आपस में सामंजस्य बनाए रखता है।
🌻 4. “कवित्त” में मौन का क्या दार्शनिक महत्व है?
उत्तर: मौन आत्मनिरीक्षण और आंतरिक शक्ति का प्रतीक है। यह विरह की स्थायी पीड़ा में भी प्रेमी को संयमित रखता है और भावों की गहन अभिव्यक्ति करता है।
🌸 IV. विस्तृत उत्तर प्रश्न
🌷 1. “कवित्त” में विरह-पीड़ा, मौन प्रतीक्षा और पुकार के माध्यम से प्रेम की रहस्यमयी अवस्थाएँ
उत्तर: घनानंद तीन मुख्य अवस्थाएँ प्रस्तुत करते हैं—
🌺 विरह-पीड़ा: प्रेमी प्रेयसी के अभाव की क्लेशपूर्ण अनुभूति करता है, जहाँ प्राण “ठिठक” जाते हैं। यह अवस्था विक्षोभ और व्यथा की प्रतिमूर्ति है।
🌺 मौन प्रतीक्षा: यहाँ प्रेमी शब्दों से परे धैर्य और आंतरिक शांति प्रदर्शित करता है। यह मौन अंतर्निहित विश्वास और आत्मसंयम का द्योतक है।
🌺 पुकार: मौन में दबी आह्वान कोयल-सी कूक बनकर प्रिय तक पहुँचने की आकांक्षा प्रकट करती है। इसमें आत्मसमर्पण और विनती का मेल है।
इन तीनों अवस्थाओं के माध्यम से प्रेम केवल वेदना नहीं, बल्कि एक दैवीय शक्ति के रूप में चित्रित होता है, जो मौन के मंदिर में गूँजती पुकारों से जीवंत रहता है। यह रचना संवेदना, धैर्य, विश्वास और आत्मसमर्पण के सूक्ष्मतम आयामों को उजागर करती है।
————————————————————————————————————————————————————————————————————————————
अतिरिक्त ज्ञान
————————————————————————————————————————————————————————————————————————————
दृश्य सामग्री
————————————————————————————————————————————————————————————————————————————