Class 12, HINDI LITERATURE

Class 12 : हिंदी साहित्य – अध्याय 18.सूरदास की झोपड़ी


संक्षिप्त लेखक परिचय

🔷 लेखक परिचय: मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद हिंदी और उर्दू के महान कथाकार, उपन्यासकार और साहित्यिक समाज सुधारक थे। इनका जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के पास लमही गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, लेकिन साहित्य में वे “प्रेमचंद” नाम से प्रसिद्ध हुए। प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज की सच्चाइयों, शोषण, गरीबी, जातिवाद, नारी-सशक्तिकरण और किसानों की समस्याओं को उजागर किया। उनकी भाषा सरल, सजीव और जनमानस से जुड़ी हुई होती है। उन्होंने हिंदी कथा-साहित्य को यथार्थवाद की दिशा दी। उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में गोदान, गबन, निर्मला, सेवासदन और कहानियों में पंच परमेश्वर, ईदगाह, कफ़न प्रमुख हैं। प्रेमचंद को “उपन्यास सम्राट” की उपाधि दी गई। उनका निधन 8 अक्टूबर 1936 को हुआ। आज भी वे हिंदी साहित्य की अमर विभूति माने जाते हैं।

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन

पाठ परिचय
“सूरदास की झोपड़ी” प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यास “रंगभूमि” का एक महत्वपूर्ण अंश है। यह पाठ कक्षा 12 की हिंदी एलेक्टिव पुस्तक “अंतराल” में संकलित है। इस कथा में एक दृष्टिहीन भिखारी सूरदास के संघर्ष और उसकी अदम्य जीवनशक्ति का मार्मिक चित्रण है। प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से मानवीय गुणों की विजय और अन्याय के विरुद्ध आत्मबल की शक्ति को प्रदर्शित किया है।

पाठ की जानकारी
“सूरदास की झोंपड़ी” कक्षा 12वीं की हिंदी ऐच्छिक पुस्तक अंतराल का पहला पाठ है। यह मुंशी प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यास “रंगभूमि” का एक अंश है। इस कहानी में सूरदास नामक एक अंधे भिखारी के संघर्ष और उसकी झोंपड़ी जल जाने की घटना का वर्णन है। झोपड़ी भैरो ने जलाई है, क्योंकि वो सूरदास से बदला लेना चाहता है. भैरो सुभागी को लेकर सूरदास के चरित्र पर भी सवाल उठाता है. रंगभूमि उपन्यास के इस सूरदास के ,व्यक्तित्व पर पर लोग महात्मा गांधी का प्रभाव देखते है क्योंकि उस समय महात्मा गांधी का प्रभाव चरम पर था, सूरदास का सारा व्यक्तिव,सूरदास की झोपड़ी पाठ का सार रस वाक्य में है कि “तो हम सौ लाख बार बनायेंगे” अर्थात् सूरदास बदला लेने में विश्वास नहीं रखता पुनर्निर्माण एवं सृजन में विश्वास रखता है.

कथानक का विस्तृत विवरण
मुख्य घटनाएं
रात्रि के दो बजे अकस्मात् सूरदास की झोपड़ी में आग लग जाती है। फूस की झोपड़ी में धधकती ज्वालाएं देखकर पूरा मोहल्ला जाग जाता है। लोग आग बुझाने का प्रयास करते हैं, किंतु ईर्ष्या की आग कभी नहीं बुझती। सूरदास दौड़कर आता है और ज्वाला के प्रकाश में खड़ा हो जाता है।

जगधर उससे पूछता है कि क्या आज चूल्हा ठंडा नहीं किया था। नायकराम व्यंग्य से उत्तर देता है, “चूल्हा ठंडा किया होता तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता?” इस कथन से स्पष्ट होता है कि आग लगाना एक षडयंत्र था।

षडयंत्र की जड़ें
भैरों की पत्नी सुभागी को भैरों की मार से बचने के लिए सूरदास के यहाँ शरण लेनी पड़ी थी। सूरदास ने अपनी दयालुता के कारण उसे आश्रय दिया था। इस घटना को लेकर पूरे मोहल्ले में सूरदास की बदनामी हुई। भैरों को यह बात असहनीय लगी और उसने अपने अपमान का बदला लेने की ठान ली।

जगधर को सूरदास से ईर्ष्या थी क्योंकि सूरदास चैन से रहता था, खाता-पीता था और उसके चेहरे पर निराशा नहीं झलकती थी, जबकि जगधर के खाने-कमाने के लाले पड़े रहते थे। भैरों को भड़काने में जगधर की प्रमुख भूमिका थी।

धन की चोरी
भैरों ने सूरदास की झोपड़ी में आग लगाने से पहले उसकी जीवनभर की जमा पूंजी चुरा ली थी। यह राशि पांच सौ रुपयों से अधिक थी। सूरदास ने यह धन भिक्षा मांगकर इकट्ठा किया था। उसकी तीन मुख्य अभिलाषाएं थीं:

पितरों का पिंडदान करवाना

मिठुआ (अनाथ बालक) की शादी करवाना

गांव में कुआं खुदवाना

सूरदास की मानसिक स्थिति
झोपड़ी जलने के बाद सूरदास को सबसे अधिक दुख उस पोटली के जल जाने का था जिसमें उसकी जीवनभर की कमाई थी। वह राख में अपने रुपयों को ढूंढता है। प्रेमचंद लिखते हैं, “यह फूस की राख न थी, उसकी अभिलाषाओं की राख थी।” यह वाक्य कहानी की मूल संवेदना को व्यक्त करता है।

चरित्र चित्रण
सूरदास का चरित्र
सूरदास का चरित्र अत्यंत प्रेरणादायक है। उसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

सहनशीलता और धैर्य: सूरदास अपनी सारी संपत्ति के नष्ट हो जाने पर भी धैर्य रखता है। वह किसी से प्रतिशोध लेने में विश्वास नहीं रखता।

दयालुता और सहानुभूति: वह सुभागी को आश्रय देता है और मिठुआ नामक अनाथ बालक का पालन-पोषण करता है।

आत्मविश्वास और संकल्प: झोपड़ी जल जाने के बाद भी वह हताश नहीं होता। मिठुआ के प्रश्न पर वह दृढ़ता से कहता है, “सौ लाख बार आग लगाएंगे तो हम सौ लाख बार बनाएंगे।”

सच्चा खिलाड़ी: घीसू के कहने पर कि “खेल में रोते हो”, सूरदास को अहसास होता है कि जीवन एक खेल है और सच्चे खिलाड़ी कभी नहीं रोते। वे बाजी-पर-बाजी हारते हैं, चोट-पर-चोट खाते हैं लेकिन मैदान में डटे रहते हैं।

भैरों और जगधर के चरित्र
भैरों: वह एक नकारात्मक पात्र है जो अपनी पत्नी को मारता है और सूरदास से बदला लेने के लिए उसकी झोपड़ी में आग लगाता है। वह चोरी भी करता है और अपने कार्यों का कोई पछतावा नहीं दिखाता।

जगधर: वह ईर्ष्यालु व्यक्ति है जो सूरदास की शांति और संतुष्टि को देखकर जलता है। वह भैरों को भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

मुख्य संदेश और विषय
सत्य और न्याय की विजय
कहानी का मूल संदेश यह है कि सत्य और न्याय की अंततः विजय होती है। सूरदास का चरित्र इस बात का प्रमाण है कि व्यक्ति की आंतरिक शक्ति और नैतिकता बाहरी कठिनाइयों से कहीं अधिक प्रभावशाली होती है।

मानवीय मूल्यों का महत्व
प्रेमचंद ने दिखाया है कि ईर्ष्या, चोरी, ग्लानि और बदले की भावना जैसे नकारात्मक मानवीय पहलुओं पर अकेले सूरदास का व्यक्तित्व भारी पड़ता है। उसकी दयालुता, सहनशीलता और क्षमाशीलता आदर्श मानवीय गुण हैं।

जीवन दर्शन
“जीवन खेल है, हंसने के लिए, दिल बहलाने के लिए है, रोने के लिए नहीं” – यह वाक्य कहानी का केंद्रीय दर्शन है। सूरदास का यह दृष्टिकोण जीवन की समस्याओं का सामना करने की एक सकारात्मक पद्धति प्रस्तुत करता है।

पुनर्निर्माण की शक्ति
सूरदास का “सौ लाख बार बनाएंगे” कहना केवल एक झोपड़ी बनाने की बात नहीं है, बल्कि यह जीवन के पुनर्निर्माण की अदम्य इच्छाशक्ति का प्रतीक है। यह संदेश आज के समय में भी अत्यंत प्रासंगिक है।

भाषा और शैली
प्रेमचंद की भाषा सजीव, मुहावरेदार और बोलचाल के निकट है। उन्होंने संस्कृत के प्रचलित शब्दों के साथ-साथ उर्दू की रवानी का प्रयोग किया है। कहानी में प्रतीकात्मकता का सुंदर प्रयोग है – राख केवल फूस की राख नहीं बल्कि अभिलाषाओं की राख है।

वर्तमान समय में प्रासंगिकता
इस पाठ की वर्तमान समय में अत्यधिक प्रासंगिकता है:

सामाजिक समानता: यह पाठ हमें सामाजिक समानता और मानवता के महत्व को समझाता है। आज भी समाज में असमानता और भेदभाव की समस्याएं हैं।

नैतिक शिक्षा: सूरदास का चरित्र नैतिकता और ईमानदारी की शिक्षा देता है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

संवेदनशीलता: यह पाठ हमें सहानुभूति और संवेदनशीलता की भावना विकसित करने के लिए प्रेरित करता है।

सादगी और संतोष: आज के भौतिकवादी युग में यह कहानी सादगी और संतोष का महत्व बताती है।

निष्कर्ष
“सूरदास की झोपड़ी” केवल एक कहानी नहीं है बल्कि मानवीय मूल्यों और जीवन दर्शन का एक संपूर्ण दस्तावेज है। प्रेमचंद ने सूरदास के चरित्र के माध्यम से यह संदेश दिया है कि वास्तविक शक्ति भौतिक संपत्ति में नहीं बल्कि आत्मबल, संकल्प और नैतिक मूल्यों में निहित है। यह पाठ हमें सिखाता है कि जीवन की कठिनाइयों का सामना करने के लिए धैर्य, साहस और आशावाद की आवश्यकता होती है। सूरदास का “सौ लाख बार बनाएंगे” का संकल्प हर युग के लिए प्रेरणास्रोत है।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न


प्रश्न 1: ‘चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता?’ नायकराम के इस कथन में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: यह कथन नायकराम ने कहा था। इस कथन में निहित भाव इस प्रकार है कि सूरदास के जल रहे घर से उसके शत्रुओं को प्रसन्नता हो रही होगी। जगधर के पूछने पर कि आज चूल्हा ठंडा नहीं किया था? इसके उत्तर में नायकराम ने यह उत्तर दिया था कि चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता। नायकराम कहना चाहता है कि इस घटना से उसके शत्रुओं को प्रसन्न होने का अवसर मिल रहा है। लोगों ने यह सोचा कि सूरदास के चूल्हे में जो अंगारे बचे थे, उनकी हवा से शायद यह आग लगी थी। परंतु सच यह नहीं था। भैरों ने सूरदास के झोपड़े में जान बूझकर आग लगाई थी।

प्रश्न 2: भैरों ने सूरदास की झोपड़ी क्यों जलाई?
उत्तर: भैरों सूरदास से बहुत नाराज़ था। जब भैरों तथा उसकी पत्नी के बीच में लड़ाई हुई, तो नाराज़ सुभागी सूरदास के घर रहने चली गई। भैरों को यह बात अच्छी नहीं लगी। सूरदास हताश सुभागी को बेसहारा नहीं करना चाहता था। अतः वह उसे मना नहीं कर पाया और उसे अपने घर में रहने दिया। भैरों के लिए यह बात असहनीय थी। भैरों को सूरदास का यह करना अपना अपमान लगा। उसी दिन से उसने सूरदास से बदला लेने की ठान ली। वह सूरदास को सबक सिखाना चाहता था।

प्रश्न 3: ‘यह फूस की राख न थी, उसकी अभिलाषाओं की राख थी।’ संदर्भ सहित विवेचन कीजिए।
उत्तर: सूरदास एक अंधा भिखारी था। उसकी संपत्ति में एक झोपड़ी, जमीन का छोटा-सा टुकड़ा और जीवनभर जमा की गई पूंजी थी। यही सब उसके जीवन के आधार थे। ज़मीन उसके किसी काम की नहीं थी। उस पर सारे गाँव के जानवर चरा करते थे। सूरदास उसी में प्रसन्न था। झोपड़ी जल गई पर वह दोबारा भी बनाई जा सकती थी लेकिन उस आग में उसकी जीवनभर की जमापूंजी जलकर राख हो गई थी। उसमें 500 रुपए थे। उस पूंजी से उसकी बहुत-सी अभिलाषाएं थीं। वह गाँववालों के लिए कुआ बनवाना चाहता था, अपने बेटे की शादी करवाना चाहता था तथा अपने पितरों का पिंडदान करवाना चाहता था। झोपड़ी के साथ ही पूंजी के जल जाने से अब उसकी कोई भी अभिलाषा पूरी नहीं हो सकती थी।

प्रश्न 4: जगधर के मन में किस तरह का ईर्ष्या-भाव जगा और क्यों?
उत्तर: जगधर जब भैरों के घर यह पता करने पहुंचा कि सूरदास के घर आग किसने लगवाई है, तो उसे पता लगा कि भैरों ने ही सूरदास के घर आग लगवाई थी। इसके साथ ही उसने सूरदास की पूरे जीवन की जमापूंजी भी हथिया ली थी। यह राशि पांच सौ रुपए से अधिक की थी। जगधर को भैरों के पास इतना रुपया देखकर अच्छा न लगा। वह जानता था कि यह इतना रुपया है, जिससे भैरों की जिंदगी की सारी कठिनाई पलभर में दूर हो सकती है। भैरों की चांदी होते देख, उससे रहा न गया। वह मन-ही-मन भैरों से ईर्ष्या करने लगा। भैरों के इतने रुपए लेकर आराम से जिंदगी जीने के ख्याल से ही वह तड़प उठता।

प्रश्न 5: सूरदास जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त क्यों रखना चाहता था?
उत्तर: सूरदास एक अंधा भिखारी था। वह लोगों के दान पर ही जीता था। एक अंधे भिखारी के पास इतना धन होना लोगों के लिए हैरानी की बात हो सकती थी। इस धन के पता चलने पर लोग उस पर संदेह कर सकते थे कि उसके पास इतना धन कहां से आया। वह जानता था कि एक भिखारी को धन जोड़कर रखना सुहाता नहीं है। लोग उसके प्रति तरह-तरह की बात कर सकते हैं। अतः जब जगधर ने उससे उन रुपयों के बारे में पूछा, तो वह सकपका गया। वह जगधर को इस बारे में बताना नहीं चाहता था। वह स्वयं को समाज के आगे लज्जित नहीं करना चाहता था।

प्रश्न 6: ‘सूरदास उठ खड़ा हुआ और विजय-गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा।’ इस कथन के संदर्भ में सूरदास की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर: सूरदास अपने रुपए की चोरी की बात से दुखी हो चुका था। उसे लगा कि उसके जीवन में अब कुछ शेष नहीं बचा है। उसके मन में परेशानी, दुख ग्लानि तथा नैराश्य के भाव उसे नहला रहे थे। अचानक घीसू द्वारा मिठुआ को यह कहते हुए सुना कि खेल में रोते हो। इन कथनों की सूरदास की मनोदशा पर चमत्कारी परिवर्तन कर दिया। दुखी और निराश सूरदास जैसे जी उठा। उसे अहसास हुआ कि जीवन संघर्षों का नाम है। इसमें हार-जीत लगी रहती है। इंसान को चोट तथा धक्कों से डरना नहीं चाहिए। बल्कि जीवन संघर्षों का डटकर सामना करना चाहिए।

प्रश्न 7: ‘तो हम सौ लाख बार बनाएंगे।’ इस कथन के संदर्भ में सूरदास के चरित्र का विवेचन कीजिए।
उत्तर: इस कथन को ध्यान से समझने पर हमें सूरदास के चरित्र की निम्नलिखित बातें सामने आती हैं:

(क) दृढ़ निश्चयी: वह एक दृढ़ निश्चयी व्यक्ति है। रुपए के जल जाने की बात ने उसे कुछ समय के लिए दुखी तो किया परंतु बच्चों की बातों ने जैसे उसे दोबारा खड़ा कर दिया। उसे अहसास हुआ कि परिश्रमी मनुष्य दोबारा खड़ा हो सकता है।

(ख) परिश्रमी: वह भाग्य के भरोसे रहने वाला नहीं था। उसे स्वयं पर विश्वास था। अतः वह उठ खड़ा हुआ और परिश्रम करने के लिए तत्पर हो गया।

(ग) बहादुर: सूरदास बेशक शारीरिक रूप से अपंग था परंतु वह डरपोक नहीं था। मुसीबतों से सामना करना जानता था। इतने कठिन समय में भी वह स्वयं को बिना किसी सहारे के तुरंत संभाल सकता था।

महत्वपूर्ण बिंदु
इस पाठ के माध्यम से प्रेमचंद जी ने सामाजिक न्याय, मानवीय संघर्ष, धैर्य और आत्मविश्वास के विषयों को उजागर किया है। सूरदास का चरित्र हमें यह सिखाता है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयां आएं, हमें हार नहीं मानना चाहिए और संघर्ष करते रहना चाहिए।

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

🌸 प्रश्न 1. भैरों ने सूरदास की झोपड़ी में आग क्यों लगाई?
(A) धन-लालच
(B) ईर्ष्या और बदला
(C) दुर्घटनावश
(D) समाज की आज्ञा
✅ उत्तर: (B) ईर्ष्या और बदला

🌸 प्रश्न 2. सूरदास ने पाँच सौ रुपए किस उद्देश्य से संचित किए थे?
(A) खेत खरीदने के लिए
(B) मिठुआ की पढ़ाई हेतु
(C) पितरों का पिंडदान, मिठुआ का विवाह, गाँव के लिए कुआँ
(D) मंदिर निर्माण
✅ उत्तर: (C) पितरों का पिंडदान, मिठुआ का विवाह, गाँव के लिए कुआँ

🌸 प्रश्न 3. झोपड़ी जलने के बाद सूरदास को सबसे अधिक क्या दुःख हुआ?
(A) बरतन टूटने का
(B) झोपड़ी के नष्ट होने का
(C) पोटली खोने का
(D) सुभागी के जाने का
✅ उत्तर: (C) पोटली खोने का

🌸 प्रश्न 4. निम्न में से किस पात्र ने भैरों को अधिक उकसाया?
(A) नायकराम
(B) जगधर
(C) बजरंगी
(D) मिठुआ
✅ उत्तर: (B) जगधर

🌸 प्रश्न 5. “तो हम सौ लाख बार बनाएँगे” कथन किसका अटूट आत्मविश्वास प्रकट करता है?
(A) भैरों
(B) नायकराम
(C) सूरदास
(D) जगधर
✅ उत्तर: (C) सूरदास

🔶 प्रश्न 6. सुभागी बार-बार सूरदास की झोपड़ी में क्यों आती थी?
उत्तर: सुभागी घरेलू हिंसा से बचने के लिए सूरदास की करुणा व निर्भीकता के कारण वहाँ आश्रय लेती थी।

🔶 प्रश्न 7. झोपड़ी-दहन के समय गाँववालों की प्रतिक्रिया कैसी थी?
उत्तर: अधिकांश ग्रामीण तमाशा देखते रहे, कुछ ने आग बुझाने का प्रयास किया, परन्तु भीतर ही भीतर वे आलोचना और चुगली में लिप्त थे।

🔶 प्रश्न 8. मिठुआ ने बार-बार “फिर बना लेंगे” क्यों कहा?
उत्तर: बाल मन के आकर्षण व पिता के आत्मबल से प्रेरित होकर मिठुआ ने पुनर्निर्माण के विश्वास को बार-बार दुहराया।

🔶 प्रश्न 9. सूरदास पोटली खोजते समय किस मानसिक द्वंद्व से गुज़रा?
उत्तर: वह आशा और निराशा के बीच जूझता रहा; कभी उम्मीद, कभी हताशा उसे विचलित करती रही।

🔶 प्रश्न 10. भैरों का अपराध स्वीकारने पर जगधर को क्या भय था?
उत्तर: जगधर को डर था कि भैरों पकड़ा जाएगा तो चोरी में उसका नाम भी आएगा, इसलिए वह डर से छटपटा रहा था।

🟠 प्रश्न 11. “यह फूस की राख न थी, उसकी अभिलाषाओं की राख थी”—इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: राख केवल झोपड़ी की नहीं, सूरदास के वर्षों के सपनों की थी—पिंडदान, विवाह, कुआँ—सभी आशाएँ उसी राख में मिल गईं।

🟠 प्रश्न 12. पाठ में ‘ईर्ष्या’ किन रूपों में प्रकट होती है?
उत्तर: भैरों की पत्नी के प्रति, जगधर की आर्थिक व सामाजिक जलन और गाँववालों के शक्की व्यवहार में ईर्ष्या मुखर रूप में दिखाई देती है।

🟠 प्रश्न 13. “तो हम सौ लाख बार बनाएँगे”—इस कथन में गांधीवादी विचार कैसे झलकते हैं?
उत्तर: अहिंसा व आत्मबल से प्रेरित यह विचार दर्शाता है कि हिंसा के उत्तर में सृजन से जवाब देना ही सच्ची जिजीविषा है।

🟠 प्रश्न 14. दृष्टिहीन पात्र को ‘दूरदर्शी’ दिखाने में लेखक की क्या विशेषता रही?
उत्तर: प्रेमचंद ने सूरदास के माध्यम से दिखाया कि शारीरिक अक्षमता के बावजूद मानवीय करुणा व विवेक से कोई व्यक्ति दूरदर्शी हो सकता है।

🔵 प्रश्न 15. झोपड़ी-दहन के बाद सूरदास के चरित्र में आए परिवर्तन का वर्णन कीजिए।
उत्तर: प्रारंभ में सूरदास टूट गया था, परन्तु अंततः उसने दृढ़ निश्चय किया कि वह हार नहीं मानेगा। उसका आत्मबल और सृजन का विश्वास पुनः जाग उठा—उसने स्वयं को आश्रित नहीं, निर्माणकर्ता माना।

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