Class 12 : हिंदी साहित्य – अध्याय 17.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
संक्षिप्त लेखक परिचय
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
🌟 जीवन परिचय
✨ नाम: आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
🎯 जन्म: 19 अगस्त 1907, बलिया, उत्तर प्रदेश
🌼 बचपन का नाम: वैद्यनाथ द्विवेदी
👨👩👦 पिता: पंडित अनमोल द्विवेदी (संस्कृत विद्वान)
👩👦 माता: ज्योतिष्मती देवी
💍 पत्नी: भगवती देवी
🌅 निधन: 19 मई 1979
बलिया के दुबे का छपरा गांव में जन्मे, काशी हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की और शांतिनिकेतन में 20 वर्षों तक अध्यापन किया।
🏆 साहित्यिक अवदान
📚 प्रमुख विधाएं एवं कृतियां
🎭 उपन्यास:
⭐ बाणभट्ट की आत्मकथा (1946)
💫 चारु चंद्रलेख (1963)
🌟 पुनर्नवा (1973)
✴️ अनामदास का पोथा (1976)
📝 निबंध संग्रह:
🌸 अशोक के फूल (1948)
🌿 कुटज (1964)
💎 आलोक पर्व (1972)
🌺 कल्पलता (1951)
📖 आलोचना एवं शोध:
🔍 कबीर (1942)
🎨 नाथ संप्रदाय (1950)
📜 हिंदी साहित्य का आदिकाल (1952)
🏛️ हिंदी साहित्य की भूमिका (1940)
द्विवेदी जी हिंदी निबंध विधा के श्रेष्ठ हस्ताक्षर थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति व मध्यकालीन धार्मिक आंदोलनों पर गहन शोध किया। संस्कृत, बंगाली, पाली-प्राकृत के विद्वान होने से उनकी रचनाओं में गहराई आई। 1957 में पद्म भूषण और 1973 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए। उनकी भाषा परिष्कृत, संस्कृतनिष्ठ और सहज थी, जिसने हिंदी आलोचना को नई दिशा दी।
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन

कुटज – आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
🌸 व्याख्या एवं विवेचन (900 शब्द)
🌿 पाठ परिचय और विषय-वस्तु
“कुटज” आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का एक प्रसिद्ध ललित निबंध है, जो उनके निबंध-संग्रह कुटज (1964) में संकलित है। यह निबंध केवल एक फूलदार पहाड़ी वृक्ष का सौंदर्य-वर्णन नहीं है, बल्कि जीवन-दर्शन, आत्मनिर्भरता, स्वाभिमान और विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग रहने की प्रेरणा का गहन आख्यान है। द्विवेदी जी ने कुटज वृक्ष को केवल वनस्पति के रूप में नहीं देखा, बल्कि उसके माध्यम से मनुष्य के चरित्र और जीवन दृष्टि के आदर्श प्रस्तुत किए हैं।
🌺 भौगोलिक पृष्ठभूमि और वातावरण
🔹 निबंध की शुरुआत हिमालय की शिवालिक पर्वत-श्रेणी के वर्णन से होती है।
🔹 लेखक इसे शिव के जटाजूट का निचला भाग मानते हैं।
🔹 यहाँ का भूभाग नीरस, बंजर और सूखा है, जहाँ बहुत कम वनस्पतियां पाई जाती हैं।
🔹 इसी कठोर और पथरीली भूमि में कुटज के ठिगने किन्तु हरे-भरे वृक्ष, अपनी श्वेत पुष्प-शोभा से वातावरण को सौंदर्य और जीवंतता प्रदान करते हैं।
🌼 नाम और रूप का दार्शनिक विश्लेषण
🔸 लेखक जब इस वृक्ष का नाम याद नहीं कर पाते, तो मन में प्रश्न उठता है – नाम बड़ा है या रूप?
🔸 उनका निष्कर्ष है कि रूप व्यक्ति-सत्य है, पर नाम समाज-सत्य।
🔸 नाम को समाज की स्वीकृति और प्रमाण प्राप्त होता है, अतः वह स्थायी पहचान का साधन है।
🔸 रूप क्षणिक है, पर नाम स्मृति और इतिहास में जीवित रहता है।
🌹 साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संदर्भ
🔹 लेखक को स्मरण आता है कि यह वृक्ष कुटज है, जिसका उल्लेख कालिदास ने मेघदूत में किया है।
🔹 वहाँ विरही यक्ष ने मेघ को कुटज पुष्प अर्पित किए थे क्योंकि सूने पहाड़ी अंचल में वही उपलब्ध थे।
🔹 इस कारण द्विवेदी जी कुटज को “गाढ़े का साथी” कहते हैं।
🔹 रहीमदास ने भी कुटज का उल्लेख किया –
“वे रहीम अब बिरछ कहँ, जिनकर छाँह गंभीर।
बागन बिच-बिच देखियत सेंहुड़, कुटज, करीर।।”
🔹 यह दोहा उस समय की स्थिति दर्शाता है जब विशाल, छायादार वृक्षों का स्थान छोटे, सीमित वृक्षों ने ले लिया था।
🌳 शब्द-व्युत्पत्ति पर चिंतन
🔸 द्विवेदी जी ने “कुटज” शब्द की व्युत्पत्ति पर भाषाशास्त्रीय दृष्टि से विचार किया।
🔸 ‘कुट’ के अर्थ – घड़ा और घर – से इसे जोड़ा, तथा ‘कुटज’ का एक संदर्भ अगस्त्य मुनि से जोड़ा गया जिन्हें घड़े से उत्पन्न होने के कारण ‘कुटज’ कहा गया।
🔸 ‘कुटिया’, ‘कुटीर’, ‘कुटहारिका’ जैसे शब्दों का भी उल्लेख करते हुए उन्होंने इसे संभवतः आग्नेय भाषा-परिवार का शब्द माना।
🌻 अपराजेय जीवनी शक्ति
🔹 कुटज की सबसे प्रेरक विशेषता उसकी अडिग जीवनी-शक्ति है।
🔹 तपते ग्रीष्म में भी यह हरा-भरा और पुष्पित रहता है।
🔹 इसकी जड़ें पाषाण को भेदकर गहराई में जाकर जल खींच लाती हैं।
🔹 लेखक के शब्दों में –
“जीना चाहते हो? पाषाण को भेदकर, पाताल की छाती चीरकर अपना भोग्य संग्रह करो; वायुमंडल को चूसकर, तूफानों से टकराकर अपना प्राप्य प्राप्त करो।”
🌷 स्वाभिमान और निर्भीकता
🔸 कुटज एक अवधूत की भांति है – वह किसी से भीख नहीं मांगता।
🔸 सत्ता के आगे नहीं झुकता, और बिना स्वार्थ के जीता है।
🔸 उसमें न चापलूसी है, न भय।
🔸 यह मनुष्य के लिए स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता का आदर्श प्रस्तुत करता है।
🌼 मन पर नियंत्रण का दर्शन
🔹 द्विवेदी जी मानते हैं – “सुखी वही है जिसका मन वश में है”।
🔹 कुटज अपने मन पर स्वामी की भांति शासन करता है, इसलिए परिस्थितियां उसे विचलित नहीं करतीं।
🔹 यह राजा जनक की तरह वैरागी है – संसार में रहकर भी भोगों से मुक्त।
🌸 समसामयिक संदेश
🔸 आज के प्रतिस्पर्धी, अशांत और तनावपूर्ण युग में कुटज का संदेश अत्यंत प्रासंगिक है।
🔸 यह हमें “सकारात्मक सोचो और आशावान रहो” का जीवन-मंत्र देता है।
🔸 विपरीत परिस्थितियों में हार मानने के बजाय उनसे जूझकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
🌺 भाषा-शैली की विशेषताएं
🔹 यह निबंध ललित निबंध शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है।
🔹 इसमें भाव और विचार का सुंदर समन्वय, आत्मीयता, रोचकता और व्यक्तित्व-व्यंजकता है।
🔹 तत्सम प्रधान, पर सहज हिंदी के साथ संस्कृत, उर्दू शब्दों का संतुलित प्रयोग, लोकोक्तियों और मुहावरों का सुंदर समावेश इसकी भाषा को प्रभावशाली बनाता है।
🌿 निष्कर्ष
“कुटज” केवल एक वृक्ष-वर्णन नहीं, बल्कि जीवन का आदर्श है –
“चाहे सुख हो या दुख, जो मिले उसे अपराजित भाव से, गरिमा और आनंद के साथ स्वीकार करो।”
कुटज का जीवन हमें सिखाता है कि आत्मबल, स्वाभिमान और मनोबल से हर विपरीत परिस्थिति में हरा-भरा रहा जा सकता है।
🌟 सारांश (100 शब्द)
“कुटज” आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का प्रेरणादायक ललित निबंध है। शिवालिक की बंजर भूमि में उगने वाला कुटज वृक्ष कठिन परिस्थितियों में भी हरा-भरा और पुष्पित रहता है। लेखक ने इसके माध्यम से आत्मनिर्भरता, स्वाभिमान और अपराजेय जीवनी-शक्ति का संदेश दिया है। यह पाषाण को भेदकर जल प्राप्त करता है और बिना स्वार्थ के शान से जीता है। कुटज का जीवन-दर्शन है – सुख-दुख में अपराजित रहो और मन को अपने वश में रखो। यह निबंध प्रकृति के माध्यम से मानव जीवन के उच्च आदर्श स्थापित करता है।
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
❇️ प्रश्न 1
कुटज को ‘गाढ़े का साथी’ क्यों कहा गया है?
उत्तर:
🌸 कालिदास ने आषाढ़ माह के पहले दिन रामगिरी पर्वत पर यक्ष को जब मेघ की उपासना के लिए नियोजित किया, तो उन्हें कुटज के ताजे फूलों की अंजलि देकर संतोष करना पड़ा।
🌸 उस पर्वत पर अन्य कोई पुष्प न मिलने से यक्ष पुष्पांजलि से वंचित हो जाते।
🌸 ऐसे कठिन समय में कुटज ने उनके संतप्त मन को सहारा दिया।
🌸 मुसीबत में काम आने के कारण कुटज को “गाढ़े का साथी” कहा गया।
❇️ प्रश्न 2
‘नाम’ क्यों बड़ा है? लेखक के विचार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
💠 नाम से ही किसी व्यक्ति, वस्तु या पदार्थ की पहचान होती है।
💠 नाम के बिना उसका निश्चित ज्ञान नहीं हो सकता।
💠 रूप व्यक्ति-सत्य है, पर नाम समाज-सत्य है।
💠 नाम वह पद है जिस पर समाज की मुहर लगी होती है।
💠 समाज हमें नाम से पहचानता है, इसलिए ‘नाम’ को बड़ा कहा गया है।
❇️ प्रश्न 3
‘कुट’, ‘कुटज’ और ‘कुटनी’ शब्दों का विश्लेषण कर उनमें आपसी संबंध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
🌿 ‘कुट’ के दो अर्थ – घर और घड़ा।
🌿 ‘कुटज’ – घड़े से उत्पन्न, अगस्त्य मुनि का नाम।
🌿 ‘कुटनी’ – गलत ढंग की दासी या कलह कराने वाली।
🌿 यदि ‘कुट’ का अर्थ घर है, तो घर में काम करने वाली बुरी दासी को ‘कुटनी’ कहते हैं।
🌿 ये तीनों शब्द एक ही मूल शब्द से उत्पन्न होकर परस्पर जुड़े हैं।
❇️ प्रश्न 4
कुटज किस प्रकार अपनी अपराजेय जीवनी-शक्ति की घोषणा करता है?
उत्तर:
🌸 कुटज ऐसे स्थल पर उगता है जहाँ दूब भी नहीं पनपती।
🌸 हिमालय की शिलाओं के बीच हरा-भरा खड़ा रहता है।
🌸 पाषाण को भेदकर गहराई से जल खींच लाता है।
🌸 धधकती लू में भी हरा और पुष्पित रहता है।
🌸 इस प्रकार वह अपनी अपराजेय जीवनी-शक्ति का परिचय देता है।
❇️ प्रश्न 5
‘कुटज’ हम सभी को क्या उपदेश देता है? टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
💮 जीवन एक कला है – कठिनाइयों में भी हार मत मानो।
💮 धैर्य और साहस से विकट परिस्थितियों का सामना करो।
💮 कठोर परिश्रम और संघर्ष से ही लक्ष्य प्राप्त होते हैं।
💮 किसी के आगे झुको मत, स्वाभिमान से जियो।
💮 जो मिले उसे हर्षपूर्वक स्वीकार करो।
💮 मनुष्य को मस्त, निडर और कर्मशील रहना चाहिए।
❇️ प्रश्न 6
कुटज के जीवन से हमें क्या सीख मिलती है?
उत्तर:
🌿 हिम्मत कभी नहीं हारनी चाहिए।
🌿 कठिन परिस्थितियों में भी डटे रहना चाहिए।
🌿 निरंतर प्रयास से लक्ष्य प्राप्त होता है।
🌿 आत्मनिर्भर बनना चाहिए।
🌿 स्वाभिमान के साथ सिर ऊँचा रखकर जीना चाहिए।
🌿 जो परिस्थिति मिले, उसे स्वीकार कर आगे बढ़ना चाहिए।
❇️ प्रश्न 7
कुटज क्या केवल जी रहा है – लेखक ने यह प्रश्न उठाकर किन मानवीय कमज़ोरियों पर टिप्पणी की है?
उत्तर:
💠 मनुष्य दूसरों पर निर्भर रहता है।
💠 भय के कारण साहस खो देता है।
💠 नीति और धर्म का उपदेश तो देता है, पर आचरण नहीं करता।
💠 उन्नति के लिए चापलूसी करता है।
💠 लाभ के लिए ग्रहों की खुशामद करता है।
💠 बुरी आदतों और अंधविश्वास में फँस जाता है।
💠 कुटज इन कमजोरियों से मुक्त है और स्वाभिमान से जीता है।
❇️ प्रश्न 8
लेखक क्यों मानता है कि स्वार्थ से भी बढ़कर जिजीविषा से भी प्रचंड कोई शक्ति अवश्य है?
उत्तर:
🌸 स्वार्थ मनुष्य को गलत मार्ग पर ले जाता है।
🌸 जिजीविषा जीवन जीने की प्रबल प्रेरणा देती है।
🌸 प्रेम, परार्थ, त्याग और परमार्थ का अभाव होते हुए भी मनुष्य के भीतर की नैतिक चेतना उसे सही कार्य करने की प्रेरणा देती है।
🌸 यही आंतरिक शक्ति स्वार्थ से बड़ी है, जो अच्छे कार्यों के लिए मन को प्रेरित करती है और बुरे कार्यों से रोकती है।
❇️ प्रश्न 9
‘कुटज’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि ‘दुख और सुख तो मन के विकल्प हैं।’
उत्तर:
💮 सुखी वही है जिसका मन उसके वश में है।
💮 दुखी वह है जो अपने मन पर नियंत्रण नहीं रखता।
💮 नियंत्रित मन वाला व्यक्ति परिस्थितियों को समान भाव से स्वीकार करता है।
💮 कुटज अपने मन पर शासन करता है, इसलिए सुख-दुख का प्रभाव उस पर नहीं पड़ता।
💮 इस प्रकार दुख और सुख मन की स्थिति पर निर्भर हैं।
❇️ प्रश्न 10
निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए –
(क) “कभी-कभी जो लोग ऊपर से बेहया दिखते हैं, उनकी जड़ें काफ़ी गहरी पैठी रहती हैं…”
उत्तर:
🌿 प्रसंग: ‘कुटज’ निबंध से उद्धृत पंक्तियाँ, जिसमें लेखक कुटज की विशेषता का वर्णन करते हुए मनुष्य के चरित्र पर टिप्पणी करता है।
🌿 व्याख्या: कुछ लोग बाहर से निर्लज्ज लगते हैं, पर उनकी आंतरिक शक्ति गहरी होती है। कुटज की तरह वे कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रहते हैं और अपना जीवन-साधन खोज लेते हैं।
(ख) “रूप व्यक्ति-सत्य है, नाम समाज-सत्य…”
उत्तर:
🌿 प्रसंग: ‘कुटज’ निबंध का अंश, जिसमें नाम और रूप के महत्व का विश्लेषण है।
🌿 व्याख्या: रूप व्यक्तिगत सत्य है, पर नाम सामाजिक स्वीकृति प्राप्त करता है। समाज जिस नाम को मान्यता देता है, वही स्थायी पहचान बन जाता है।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🟢 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ) – 5 प्रश्न
❇️ प्रश्न 1
कुटज निबंध में शिवालिक पर्वत श्रृंखला को किसका प्रतीक माना गया है?
🔹 (अ) शिव के डमरू का
🔹 (ब) शिव के जटाजूट का निचला हिस्सा ✅
🔹 (ग) शिव के त्रिशूल का
🔹 (घ) शिव के तांडव का
❇️ प्रश्न 2
कुटज निबंध में ‘रहीमदास’ का कौन सा दोहा उद्धृत किया गया है?
🔹 (अ) रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय
🔹 (ब) वे रहीम अब बिरछ कहँ, जिनकर छाँह गंभीर ✅
🔹 (ग) रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून
🔹 (घ) रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय
❇️ प्रश्न 3
द्विवेदी जी के अनुसार सुखी कौन है?
🔹 (अ) जिसके पास धन है
🔹 (ब) जिसका मन वश में है ✅
🔹 (ग) जो समाज में प्रतिष्ठित है
🔹 (घ) जो शिक्षित है
❇️ प्रश्न 4
कुटज निबंध की विधा क्या है?
🔹 (अ) व्यक्तिगत निबंध
🔹 (ब) समीक्षात्मक निबंध
🔹 (ग) ललित निबंध ✅
🔹 (घ) विचारात्मक निबंध
❇️ प्रश्न 5
कालिदास के ‘मेघदूत’ में यक्ष ने मेघ को क्या अर्पित किया था?
🔹 (अ) कमल के फूल
🔹 (ब) चंपा के फूल
🔹 (ग) कुटज के फूल ✅
🔹 (घ) गुलाब के फूल
🟢 लघु उत्तरीय प्रश्न – 5 प्रश्न
❇️ प्रश्न 1
कुटज के माध्यम से लेखक ने किस प्रकार के व्यक्तित्व का आदर्श प्रस्तुत किया है?
उत्तर:
🌸 स्वाभिमानी अवधूत का व्यक्तित्व – स्वावलंबी, निर्भीक, संघर्षशील, मानसिक दृढ़ता से परिपूर्ण।
🌸 विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग रहना और किसी के सामने न झुकना।
❇️ प्रश्न 2
द्विवेदी जी ने कुटज शब्द की व्युत्पत्ति के संबंध में क्या मत व्यक्त किया है?
उत्तर:
🌿 ‘कुट’ के दो अर्थ – घड़ा और घर।
🌿 ‘कुटज’ – घड़े से उत्पन्न (अगस्त्य मुनि के लिए प्रयुक्त)।
🌿 सम्भवतः यह आग्नेय भाषा परिवार का शब्द है।
❇️ प्रश्न 3
कुटज निबंध में प्रकृति चित्रण की क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर:
🌺 शिवालिक की नीरस, सूखी पहाड़ियों का मार्मिक वर्णन।
🌺 भीषण गर्मी और पाषाण के बीच कुटज का पुष्पित रहना।
🌺 यह चित्रण जीवन-संघर्ष का प्रतीक बनकर उभरा।
❇️ प्रश्न 4
‘नाम और रूप’ के द्वंद्व पर लेखक के विचार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
💠 रूप व्यक्ति-सत्य है, नाम समाज-सत्य।
💠 नाम पर समाज की स्वीकृति और मुहर होती है।
💠 व्यवहारिक जीवन में पहचान नाम से ही होती है।
❇️ प्रश्न 5
कुटज निबंध में निहित आशावाद का परिचय दीजिए।
उत्तर:
🌿 विकट परिस्थितियों में भी कुटज का पुष्पित रहना जीवन की अजेयता का प्रतीक।
🌿 संदेश – “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत”।
🟢 मध्यम उत्तरीय प्रश्न – 4 प्रश्न
❇️ प्रश्न 1
कुटज निबंध में व्यक्त मानवीय मूल्यों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
🌸 स्वावलंबन – पाषाण को भेदकर अपना भोजन प्राप्त करना।
🌸 धैर्य – विपरीत परिस्थितियों में भी संयमित रहना।
🌸 स्वाभिमान – चापलूसी या झुकाव से बचना।
🌸 सकारात्मक दृष्टिकोण – प्रतिकूलता में भी हरा-भरा रहना।
❇️ प्रश्न 2
कुटज निबंध की भाषा-शैली की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
🌿 संस्कृतनिष्ठ, तत्सम प्रधान भाषा।
🌿 उर्दू शब्दों का सहज प्रयोग।
🌿 लोकोक्तियों, मुहावरों और रूपकों का सुंदर समावेश।
🌿 ललित निबंध की आत्मीय और व्यक्तित्व-व्यंजक शैली।
❇️ प्रश्न 3
कुटज निबंध में निहित दर्शन और आधुनिक जीवन की समस्याओं का संबंध स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
🌸 मानसिक तनाव – मन को वश में रखना।
🌸 भौतिकवाद – सादगी और संतुष्टि का महत्व।
🌸 प्रतिस्पर्धा – स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता का आदर्श।
🌸 पर्यावरण चेतना – प्रकृति के साथ तालमेल।
❇️ प्रश्न 4
कुटज निबंध में प्रयुक्त प्रतीकों और बिंबों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
🌿 कुटज – स्वाभिमान, संघर्ष और जिजीविषा का प्रतीक।
🌿 पाषाण – बाधाओं का प्रतीक।
🌿 धधकती लू – विपरीत परिस्थितियों का बिंब।
🌿 अवधूत – आत्मनिर्भर व्यक्तित्व का रूपक।
🟢 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न – 1 प्रश्न
❇️ प्रश्न 1
“कुटज” निबंध के आधार पर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के जीवन-दर्शन का मूल्यांकन कीजिए। समसामयिक प्रासंगिकता पर भी प्रकाश डालिए।
उत्तर:
🌺 अदम्य जिजीविषा – संघर्ष में भी हरा-भरा रहना।
🌺 मानसिक स्वतंत्रता – मन पर नियंत्रण ही सुख का मूल।
🌺 स्वावलंबन – किसी पर निर्भर न रहकर परिश्रम से जीवन-यापन।
🌺 सहज स्वीकार – सुख-दुख दोनों को गरिमा से स्वीकार करना।
🌺 निर्लिप्त कर्म – स्वार्थ से मुक्त होकर शान से जीना।
समसामयिक प्रासंगिकता:
🌿 मानसिक तनाव के दौर में मनोबल और धैर्य का संदेश।
🌿 भौतिकता के बीच सादगी का महत्व।
🌿 कटु प्रतिस्पर्धा में नैतिक स्वाभिमान बनाए रखना।
🌿 पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा।
निष्कर्ष:
“हे मनुष्य! जो भी मिले, उसे शान से, अपराजित भाव से स्वीकार करो – यही जीवन की सच्ची विजय है।”
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अतिरिक्त ज्ञान
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दृश्य सामग्री
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