Class 12 : हिंदी साहित्य – अध्याय 16.ममता कालिया
संक्षिप्त लेखक परिचय
ममता कालिया – लेखक परिचय
जन्म एवं प्रारम्भिक जीवन
ममता कालिया का जन्म 2 नवम्बर 1940 को वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) में हुआ। उनका बचपन और शिक्षा-दीक्षा दिल्ली, पुणे और इंदौर में हुई। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय और सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में उच्च शिक्षा प्राप्त की।
साहित्यिक योगदान
ममता कालिया हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार और संस्मरण लेखिका हैं। उनकी रचनाओं में मध्यमवर्गीय जीवन, स्त्री अनुभव, पारिवारिक संबंध और सामाजिक विडम्बनाएँ सजीव रूप में आती हैं। उनकी भाषा सरल, संवादधर्मी, व्यंग्यपूर्ण और यथार्थवादी है।
उनकी प्रमुख रचनाएँ—
उपन्यास: बेघर, दौड़, सितम्बर का महीना, एक अदद औरत, नरक दर नरक
कहानी संग्रह: बलमा जी, छुटकारा, सफेद घोड़ा
नाटक: थोड़ा सा फासला
संस्मरण: कल परसों के लिए
सम्मान एवं उपलब्धियाँ
उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार (2017, ‘दौड़’ के लिए), यशपाल पुरस्कार, पद्मानंद साहित्य सम्मान सहित कई महत्वपूर्ण साहित्यिक पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
विशेषता
उनकी रचनाओं में सामाजिक यथार्थ और हास्य-व्यंग्य का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है, जो पाठक को मनोरंजन के साथ गहरी सोच की ओर प्रेरित करता है।
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन

🔸 ममता कालिया की “दूसरा देवदास” कहानी हरिद्वार की हर की पौड़ी के धार्मिक वातावरण में घटित होने वाली एक मनोहारी प्रेम कथा है।
🔸 यह कहानी युवा मन की संवेदनाओं, प्रथम प्रेम के अनुभव और कल्पनाशीलता का अत्यंत सुंदर चित्रण प्रस्तुत करती है।
🔸 लेखिका ने इसमें शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के प्रसिद्ध उपन्यास “देवदास” की छाया में एक नए युग के प्रेम की कहानी कही है।
📿 धार्मिक परिवेश का चित्रण
🟠 कहानी की शुरुआत हर की पौड़ी की संध्या आरती के मनोहारी दृश्य से होती है।
🟠 लेखिका ने अत्यंत कुशलता से गंगा के घाट पर होने वाली आरती का वर्णन किया है, जहाँ हजारों दीप एक साथ जल उठते हैं।
🟠 पंडित अपने हाथों में पंचमंजिली नीलांजलि थामकर आरती करते हैं।
🟠 फूलों के छोटे-छोटे दोने गंगा की लहरों पर इठलाते हुए आगे बढ़ते हैं और गंगापुत्र (गोताखोर) उनमें रखे सिक्के उठाकर अपनी आजीविका कमाते हैं।
💕 प्रथम मिलन और प्रेम का अंकुरण
🟢 कहानी का केंद्रीय विषय संभव और पारो के बीच अचानक हुई मुलाकात है।
🟢 संभव, जो अपनी नानी के घर हरिद्वार आया था, गंगा किनारे के मंदिर में दर्शन करने जाता है।
🟢 वहाँ कलावा बँधवाते समय उसकी मुलाकात एक गुलाबी कपड़ों में भीगी लड़की से होती है।
🟢 पुजारी भूलवश दोनों को पति-पत्नी समझकर आशीर्वाद देते हैं – “सुखी रहो, फलो-फूलो, जब भी आओ साथ ही आना”।
🎭 युवा मन की उथल-पुथल
🔵 प्रथम मिलन के बाद संभव के मन में तीव्र हलचल मच जाती है।
🔵 वह उस लड़की का पीछा करता है लेकिन वह अचानक गायब हो जाती है।
🔵 नानी के घर पहुँचकर भी उसके दिल की धड़कन बढ़ी हुई रहती है, भूख गायब हो जाती है।
🔵 रात भर वह उसी के ख्यालों में खोया रहता है।
🔵 लेखिका ने बड़ी सूक्ष्मता से युवा हृदय में पहली बार जन्मे प्रेम की अनुभूति को चित्रित किया है।
🏔️ मनसा देवी मंदिर का प्रसंग
🟡 संभव दोबारा उस लड़की से मिलने की लालसा में मनसा देवी मंदिर जाता है।
🟡 वहाँ केबल कार से चढ़ाई करते हुए वह एक नवविवाहित दंपत्ति को देखता है।
🟡 वह अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए मन्नत माँगता है।
🟡 मंदिर में चामुंडा रूप में स्थापित मनसा देवी के दर्शन करते हुए वह वहाँ व्याप्त व्यापारिक वृत्ति को भी देखता है।
🤝 पुनर्मिलन और प्रेम की पुष्टि
🟣 संभव की मनोकामना पूरी होती है जब एक बालक के माध्यम से उसकी मुलाकात फिर से पारो से होती है।
🟣 जब बालक पारो को “बुआ” कहकर पुकारता है, तो संभव को पता चलता है कि लड़की का नाम पारो है।
🟣 इस पर वह अपना परिचय “संभव देवदास” के रूप में देता है।
🟣 यही कहानी के शीर्षक “दूसरा देवदास” की सार्थकता को स्पष्ट करता है।
🎯 कहानी का मूल संदेश
🔴 लेखिका ने इस कहानी के माध्यम से यह संदेश दिया है कि प्रेम के लिए किसी निश्चित व्यक्ति, समय और स्थान की आवश्यकता नहीं होती।
🔴 यह स्वतः ही घटित हो जाता है।
🔴 कहानी 21वीं सदी की भोग-विलास की संस्कृति के विपरीत प्रेम के सच्चे और पवित्र स्वरूप को प्रस्तुत करती है।
🔗 शरतचंद्र के देवदास से तुलना
🟤 शीर्षक “दूसरा देवदास” की सार्थकता इसमें निहित है कि जैसे शरतचंद्र का देवदास पारो के लिए जीवनभर तड़पता रहा, वैसे ही यहाँ का संभव भी अपनी पारो के लिए बेचैन है।
🟤 दोनों ही निश्छल और पवित्र प्रेम के प्रतीक हैं।
🟤 किंतु यहाँ का देवदास आशावाद और मिलन की संभावना लेकर आता है।
💫 साहित्यिक विशेषताएँ
🟢 ममता कालिया की यह कहानी प्रथम दृष्टि के प्रेम, युवा मन की रूमानियत और धार्मिक स्थलों पर व्याप्त व्यापारिकता के बीच संतुलन बनाते हुए एक संवेदनशील प्रेम कथा प्रस्तुत करती है।
🟢 भाषा सरल, चित्रात्मक और भावपूर्ण है।
🟢 यह पाठक को कहानी के वातावरण में पूरी तरह डुबो देती है।
📖 सारांश (100 शब्द)
🟠 “दूसरा देवदास” ममता कालिया की मनोहारी कहानी है जो हरिद्वार की हर की पौड़ी में घटित होती है।
🟠 कहानी का नायक संभव अपनी नानी के घर आया है और गंगा आरती के दौरान पारो नामक लड़की से मिलता है।
🟠 प्रथम मिलन के बाद दोनों के मन में प्रेम का अंकुरण होता है।
🟠 मनसा देवी मंदिर में मन्नत माँगकर वे फिर मिलते हैं।
🟠 कहानी प्रेम की पवित्रता, युवा मन की संवेदनाओं और आस्था के केंद्र में प्रेम के सहज विकास को दर्शाती है।
🟠 यह आधुनिक युग में शाश्वत प्रेम की कहानी है।
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
❓ प्रश्न 1
पाठ के आधार पर हर की पौड़ी पर होने वाली गंगाजी की आरती का भावपूर्ण वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
🟣 उत्तर:
हर की पौड़ी पर गंगा जी के अनेक मन्दिर हैं, जिन पर लिखा है – गंगा जी का प्राचीन मन्दिर।
शाम के समय पंडित-पुजारी गंगा जी की आरती की तैयारी में व्यस्त रहते हैं।
पीतल की नीलांजलि (आरती) में हजारों बत्तियाँ घी में भिगोकर रखी जाती हैं।
गंगा सभा के स्वयंसेवक खाकी वरदी में मुस्तैदी से घूमते हैं और भक्तों को सीढ़ियों पर बैठने के लिए कहते हैं।
कुछ भक्त विशेष आरती करवाते हैं (₹101 या ₹151 वाली)।
अचानक हजारों दीप जल उठते हैं और पंडितगण पंचमंजिली नीलांजलि पकड़कर आरती शुरू करते हैं।
पुजारियों के स्वर में “जय गंगे माता…” गूंजता है और भक्तों के साथ मिलकर पूरा घाट माँ गंगा की आरती से गूंज उठता है।
❓ प्रश्न 2
‘गंगापुत्र के लिए गंगा मैया ही जीविका और जीवन है’ – इस कथन के आधार पर गंगापुत्रों के जीवन-परिवेश की चर्चा कीजिए।
🟢 उत्तर:
गंगापुत्र वे गोताखोर हैं जो गंगा से ही अपनी जीविका चलाते हैं।
मनौतियों करने वाले लोग दोने में फूल, दीपक, नैवेद्य और पैसे रखकर गंगा में बहाते हैं।
गंगापुत्र गंगा में खड़े होकर इन दानों में रखे सिक्के उठा लेते हैं।
गंगा मैया ही उनका जीवन और रोज़ी-रोटी का साधन है।
यह कार्य बहुत जोखिमभरा होता है क्योंकि तेज जल प्रवाह जानलेवा हो सकता है।
कमाई बहुत कम होने पर भी मजबूरी में उन्हें यही कार्य करना पड़ता है।
❓ प्रश्न 3
पुजारी ने लड़की के ‘हम’ को युगल अर्थ में लेकर क्या आशीर्वाद दिया और पुजारी द्वारा आशीर्वाद देने के बाद लड़के और लड़की के व्यवहार में अटपटापन क्यों आया?
🔵 उत्तर:
गंगा स्नान के बाद संभव चन्दन का टीका लगवा रहा था कि एक युवती गीले वस्त्र पहने पास आकर बोली – “हम कल आरती की बेला आएँगे”।
पुजारी ने “हम” शब्द को पति-पत्नी के अर्थ में लेकर कहा – “सुखी रहो, फलो-फूलो, जब भी आओ साथ ही आना”।
यह सुनकर दोनों सकपका गए; लड़की दूर हट गई और लड़का वहाँ से जल्दी चला गया।
अटपटापन इसलिए आया क्योंकि पुजारी ने भ्रम से उन्हें दंपत्ति समझ लिया था।
❓ प्रश्न 4
उस छोटी-सी मुलाकात ने संभव के मन में क्या हलचल उत्पन्न कर दी?
🟠 उत्तर:
उस मुलाकात का दृश्य उसके मन में बार-बार कौंधने लगा।
वह लड़की का नाम, पढ़ाई और निवासस्थान जानना चाहता था।
लड़की ने कहा था कि वह कल शाम को फिर आएगी, इसलिए वह मिलने की योजना बनाने लगा।
उसके मन में प्रेम की भावना जाग्रत हो गई थी और पारो उसकी चाहत बन चुकी थी।
❓ प्रश्न 5
मंसा देवी जाने के लिए केबिल कार में बैठे हुए संभव के मन में जो कल्पनाएँ उठ रही थीं, उनका वर्णन कीजिए।
🟤 उत्तर:
संभव गुलाबी रंग की केबिल कार में बैठा था, कल से गुलाबी रंग उसे खास लग रहा था।
उसे लगता था जैसे रंग-बिरंगी वादियों में कोई हिंडोला उड़ रहा हो।
अफसोस था कि चढ़ावे का सामान लाना भूल गया।
यात्रा में वह हरिद्वार के दृश्य, गंगा की धवल धार, सड़कों के घुमाव, मंदिरों के बुर्ज देख रहा था।
वह पूरे समय उस लड़की को पाने की बेचैनी में था।
❓ प्रश्न 6
“पारो बुआ… पारो बुआ”… इस कथन के आधार पर कहानी के संकेतपूर्ण आशय पर टिप्पणी लिखिए।
🟣 उत्तर:
एक बालक ने पारो को “बुआ” कहकर परिचय कराया।
संभव ने हँसते हुए कहा – “संभव देवदास”, जो शीर्षक की सार्थकता बताता है।
देवदास और पारो की तरह यहाँ भी पारो उसकी चाहत है।
उसने मंसा देवी में इसी पारो को पाने के लिए मन्नत बाँधी थी और वह पूरी हो गई।
❓ प्रश्न 7
‘मनोकामना की गाँठ भी अद्भुत अनूठी है…’ कथन के आधार पर पारो की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
🟢 उत्तर:
कल गंगा घाट पर पहली भेंट में ही दोनों के मन में प्रेम का अंकुरण हो गया था।
आज मंसा देवी में कलावे की गाँठ बाँधने के बाद फिर मुलाकात होना पारो को अद्भुत लगा।
वह सोचने लगी – “इधर बाँधो तो उधर लग जाती है”, यानी मनोकामना शीघ्र पूरी हो गई।
इससे स्पष्ट है कि वह भी संभव से मिलने के लिए उतनी ही उत्सुक थी।
❓ प्रश्न 8
निम्नलिखित वाक्यों का आशय स्पष्ट कीजिए –
🟠 (क) “तुझे तो तैरना भी न आवे…”
उत्तर:
नानी को संभव की सुरक्षा की चिंता थी।
वह डर रही थीं कि कहीं उसका पैर फिसलकर दुर्घटना न हो जाए।
यह वाक्य नानी के स्नेह को दर्शाता है।
🔵 (ख) “उसके चेहरे पर इतना विभोर विनीत भाव था…”
उत्तर:
गंगा में स्नान कर एक व्यक्ति पूरी तन्मयता से प्रार्थना कर रहा था।
उसके चेहरे पर आनंद और विनम्रता थी, मानो अहंकार समाप्त हो गया हो।
🟣 (ग) “एकदम अंदर के प्रकोष्ठ में… व्यापार यहाँ भी था।”
उत्तर:
मंसा देवी मंदिर में भी व्यापारिक प्रवृत्ति देखी गई।
धार्मिक स्थलों पर भी व्यापार हावी होने की विडंबना दर्शाई गई है।
❓ प्रश्न 9
‘दूसरा देवदास’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
🟤 उत्तर:
संभव ने पारो का नाम जानने पर खुद को “संभव देवदास” कहा।
देवदास–पारो की तरह यहाँ भी पवित्र प्रेम है।
शरतचंद्र के देवदास की तरह यह भी अपनी पारो के लिए बेचैन है।
इसलिए शीर्षक पूर्णतः उपयुक्त है।
❓ प्रश्न 10
‘हे ईश्वर! उसने कब सोचा था…’ – आशय स्पष्ट कीजिए।
🟢 उत्तर:
संभव ने मंसा देवी में पारो से मिलने की मनोकामना बाँधी थी।
लौटते समय उसकी यह मनोकामना शीघ्र पूरी हो गई।
वह आश्चर्यचकित था कि मौन प्रार्थना इतनी जल्दी फलित हो जाएगी।
✨ भाषा-शिल्प
❓ प्रश्न 1
इस पाठ का शिल्प आख्याता की ओर से लिखा गया है – उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।
🟠 उत्तर:
“गंगा सभा के स्वयंसेवक खाकी वरदी में मुस्तैदी से घूम रहे हैं।”
“यकायक सहस्र दीप जल उठते हैं…”
“संभव हँसा… उसके खूबसूरत दाँत…”
❓ प्रश्न 2
पाठ में आए पूजा-अर्चना के शब्दों को लिखिए।
🔵 उत्तर:
दीया-बाती
आरती
नीलांजलि
मूर्तियाँ (गंगा जी, चामुंडा, बालकृष्ण, राधाकृष्ण, हनुमान, सीताराम)
स्नान
चंदन और सिंदूर
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
📝 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ) – 5 प्रश्न
❓ प्रश्न 1
कहानी में संभव की नानी के घर जाने का मुख्य कारण क्या था?
🔹 (क) धार्मिक स्थलों की यात्रा करना
🔹 (ख) गंगा का आशीर्वाद लेना
🔹 (ग) अवकाश में समय बिताना
🔹 (घ) मनसा देवी के दर्शन करना
✅ उत्तर: (ख) गंगा का आशीर्वाद लेना
❓ प्रश्न 2
कहानी में गुलाबी रंग का विशेष महत्व किसलिए है?
🔹 (क) यह हर की पौड़ी का रंग है
🔹 (ख) पारो के वस्त्र का रंग था
🔹 (ग) मनसा देवी मंदिर का रंग है
🔹 (घ) गंगा आरती में प्रयुक्त रंग है
✅ उत्तर: (ख) पारो के वस्त्र का रंग था
❓ प्रश्न 3
“मनोकामना की गाँठ भी अद्भुत अनूठी है” – यह कथन किसके मन की स्थिति दर्शाता है?
🔹 (क) संभव की
🔹 (ख) पारो की
🔹 (ग) पुजारी की
🔹 (घ) नानी की
✅ उत्तर: (ख) पारो की
❓ प्रश्न 4
कहानी के अनुसार गंगा आरती के समय फूलों के दोने की कीमत क्या हो गई थी?
🔹 (क) 50 पैसे से 1 रुपया
🔹 (ख) 1 रुपया से 2 रुपया
🔹 (ग) 2 रुपया से 3 रुपया
🔹 (घ) 3 रुपया से 5 रुपया
✅ उत्तर: (ख) 1 रुपया से 2 रुपया
❓ प्रश्न 5
संभव ने अपना परिचय किस नाम से दिया?
🔹 (क) संभव कुमार
🔹 (ख) संभव गुप्ता
🔹 (ग) संभव देवदास
🔹 (घ) संभव शर्मा
✅ उत्तर: (ग) संभव देवदास
📋 लघु उत्तरीय प्रश्न – 5 प्रश्न
❓ प्रश्न 1
कहानी में ‘पंचमंजिली नीलांजलि’ का क्या अर्थ है?
🟣 उत्तर: पंचमंजिली नीलांजलि पाँच मंजिल/स्तर वाली पीतल की आरती थाली होती है जिसमें हजारों दीप घी में भिगोकर रखे जाते हैं। गंगा आरती में इसका प्रयोग होता है।
❓ प्रश्न 2
गंगापुत्रों का जीवन गंगा पर कैसे निर्भर है?
🟢 उत्तर: गंगापुत्र गंगा में गोता लगाकर भक्तों द्वारा बहाए गए पैसों को इकट्ठा करते हैं। यही उनकी आजीविका का मुख्य साधन है। गंगा ही उनका जीवन और जीविका है।
❓ प्रश्न 3
संभव के मन में पारो को देखने की इच्छा क्यों जाग्रत हुई?
🔵 उत्तर: पुजारी ने उन्हें पति-पत्नी समझकर आशीर्वाद दिया, जिससे संभव के मन में पारो के प्रति आकर्षण पैदा हुआ और वह पुनः मिलने को उत्सुक हो गया।
❓ प्रश्न 4
मनसा देवी मंदिर में भी व्यापार क्यों था?
🟠 उत्तर: मंदिर में बड़े चढ़ावे वालों को पहले दर्शन का लाभ दिया जाता था और सामान्य भक्तों को दूर से दर्शन मिलते थे। यह व्यापारीकरण का प्रतीक है।
❓ प्रश्न 5
कहानी में केबल कार का गुलाबी रंग क्यों महत्वपूर्ण है?
🟤 उत्तर: पारो के गुलाबी कपड़े देखने के बाद संभव को वही रंग प्रिय लगने लगा, इसलिए उसने गुलाबी केबल कार चुनी। यह उसके प्रेम का प्रतीक था।
📄 मध्यम उत्तरीय प्रश्न – 4 प्रश्न
❓ प्रश्न 1
हर की पौड़ी पर होने वाली गंगा आरती का वर्णन और सामाजिक-धार्मिक महत्व।
🟣 उत्तर:
शाम को सहस्र दीपों से गंगा आरती होती है, पुजारी “जय गंगे माता” का उद्घोष करते हैं।
यहाँ जाति-पाति का भेद नहीं, सभी भक्त एक साथ आराधना करते हैं।
यह पवित्रता, मोक्ष और मनोकामना पूर्ति का केंद्र है।
❓ प्रश्न 2
कहानी में प्रेम की अवधारणा आधुनिक युग से कैसे भिन्न है?
🟢 उत्तर:
यहाँ प्रेम पवित्र और निश्छल है, केवल मानसिक-आध्यात्मिक जुड़ाव है।
आधुनिक भोगवादी संस्कृति की तरह इसमें शारीरिक आकर्षण प्रधान नहीं।
मन्नत और आशीर्वाद से प्रेम को ईश्वरीय मान्यता देने का भाव है।
❓ प्रश्न 3
धार्मिक स्थलों के व्यापारीकरण पर लेखिका की चिंता।
🔵 उत्तर:
गंगा आरती में फूलों के दोने की कीमत बढ़ना।
स्पेशल आरती के लिए धन आधारित भेदभाव।
मनसा देवी मंदिर में भी व्यापारिक प्रवृत्ति।
❓ प्रश्न 4
“मनोकामना की गाँठ…” के माध्यम से पारो की मानसिक दशा।
🟠 उत्तर:
पहली मुलाकात में ही प्रेम अंकुरित हुआ।
मन्नत बाँधने के तुरंत बाद संभव से पुनः मिलना उसे अद्भुत लगा।
यह उसकी खुशी, आश्चर्य और प्रेम की पुष्टि है।
📖 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
❓ प्रश्न.1
कहानी में युवा प्रेम, धार्मिक परंपरा और सामाजिक मूल्यों का संतुलन व शीर्षक की सार्थकता।
🟤 उत्तर:
युवा प्रेम: संभव–पारो का प्रेम सहज, पवित्र और प्रथम दृष्टि में जन्मा।
धार्मिक परंपरा: गंगा आरती का भव्य चित्रण और श्रद्धा का भाव।
व्यापारीकरण की आलोचना: फूलों के दोने की कीमत और स्पेशल आरती जैसी प्रवृत्तियाँ।
सामाजिक मूल्य: नानी का स्नेह, सामूहिक आरती में एकता, गंगापुत्रों की मजबूरी।
शीर्षक की सार्थकता: “संभव देवदास” का परिचय, देवदास–पारो के पवित्र प्रेम से समानता, पर आशावादी अंत।
समसामयिक संदेश: प्रेम शाश्वत है, धर्म का व्यापारीकरण रोकना चाहिए, भावनाओं और सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण आवश्यक है।
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