Class 12 : हिंदी साहित्य – अध्याय 12.फणीश्वरनाथ रेणु
संक्षिप्त लेखक परिचय
✨ लेखक परिचय – फणीश्वरनाथ ‘रेणु’
🌿 जीवन परिचय
🔹 जन्म: 4 मार्च 1921, औराही हिंगना, अररिया, बिहार
🔹 शिक्षा: प्रारंभिक शिक्षा गाँव में, उच्च शिक्षा वाराणसी और पटना में
🔹 पेशा: कथाकार, उपन्यासकार, स्वतंत्रता सेनानी
🔹 विशेष योगदान: आंचलिक उपन्यास की परंपरा को हिंदी साहित्य में स्थापित करना
🔹 स्वतंत्रता संग्राम: 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में सक्रिय भागीदारी
🔹 निधन: 11 अप्रैल 1977, पटना, बिहार
📚 साहित्यिक योगदान
🌟 फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ हिंदी साहित्य में आंचलिकता के प्रणेता माने जाते हैं।
💠 उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास “मैला आँचल” भारतीय ग्रामीण जीवन का जीवंत दस्तावेज है, जिसमें मिथिला क्षेत्र की बोली, संस्कृति और समाज का सजीव चित्रण है।
💠 उनकी रचनाएँ आम जनजीवन की खुशबू, लोकगीतों की मिठास और ग्रामीण परिवेश की सादगी से भरी हुई हैं।
💠 “परती परिकथा”, “दीर्घतपा”, “जुलूस” जैसे उपन्यासों और “ठुमरी”, “पंचलाइट” जैसी कहानियों में समाज की विविध परतें और मानवीय संवेदनाएँ झलकती हैं।
💠 उन्होंने साहित्य में लोकभाषा और बोली को प्रमुख स्थान देकर इसे पाठकों के और करीब पहुँचाया।
💠 उनकी लेखनी में हास्य, व्यंग्य, करुणा और संवेदनशीलता का अनूठा मेल मिलता है।
💠 रेणु का साहित्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक यथार्थ का दस्तावेज है, जो ग्रामीण भारत की आत्मा को शब्दों में पिरोता है।
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन


🌾 संवदिया – व्याख्या और विवेचना
🎯 विषयवस्तु और संदर्भ
✨ फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी “संवदिया” हिंदी साहित्य की एक मार्मिक और संवेदनापूर्ण कृति है।
💠 यह कहानी संवाद या संदेश ले जाने वाले व्यक्ति (संवदिया) हरगोबिन के माध्यम से ग्रामीण समाज की विसंगतियों, नारी की पीड़ा और मानवीय संवेदनाओं का गहरा चित्रण करती है।
💠 केंद्रीय पात्र हरगोबिन बड़ी बहुरिया का दुखभरा संदेश उसके मायके तक पहुंचाने का दायित्व निभाता है।
👤 पात्र चित्रण और चरित्र विश्लेषण
🌟 हरगोबिन का चरित्र चित्रण
💠 संवेदनशील व्यक्तित्व: केवल संदेशवाहक नहीं, बल्कि गहरी मानवीय संवेदना रखने वाला।
💠 कर्तव्यनिष्ठा: संवदिया के धर्म को निभाने वाला, हर शब्द और लहजा सही रखने वाला।
💠 आंतरिक संघर्ष: बड़ी बहुरिया का दुखभरा संदेश सुनाने में गांव की इज्जत जाने का भय।
👩 बड़ी बहुरिया का चरित्र चित्रण
💠 पूर्व वैभव: कभी बड़ी हवेली की लक्ष्मी, जिसकी मेहंदी से नाइन का घर चलता था।
💠 वर्तमान दुर्दशा: पति की मृत्यु के बाद देवरों ने जेवर छीन लिए, बनारसी साड़ी के टुकड़े बांट दिए – “द्रौपदी चीरहरण लीला”।
💠 गरीबी: अब बथुआ साग खाकर जीवन, मोदिआइन का उधार चुकाने में असमर्थ।
🌾 सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ
📨 संवदिया की परंपरा
💠 डाकघर होने पर भी गुप्त और व्यक्तिगत संदेशों के लिए संवदिया की आवश्यकता।
💠 विशेषताएं:
शब्दों को याद रखना
उसी लहजे और स्वर में संदेश पहुंचाना
पूर्ण गोपनीयता – “चांद-सूरज को भी मालूम न हो”
💠 समाज की धारणा: संवदिया को निठल्ला, कामचोर, और औरतों की गुलामी करने वाला मानना।

🏚 पारिवारिक विघटन
💠 बड़े भाई की मृत्यु के बाद भाइयों में संपत्ति का झगड़ा।
💠 रैयतों ने जमीन पर कब्जा कर लिया, भाई शहर चले गए।
💠 विधवा बहुरिया अकेली रह गई।
🗣 आंचलिकता और भाषा शैली
🏡 आंचलिक भाषा का प्रयोग
💠 शब्द – बड़ी बहुरिया, मोदिआइन, अगहनी धान
💠 मुहावरे – “पांवलागी”, “काबुली कायदा”, “निमोंछिया”
💠 संवाद – ग्रामीण परिवेश के अनुकूल शैली।
💓 संवेदनशील भाषा
💠 गहरी मानवीय संवेदना, बड़ी बहुरिया की पीड़ा पाठक को द्रवित करती है।
🌸 कहानी की मूल संवेदना
👩 नारी की दुर्दशा
💠 बड़ी बहुरिया के माध्यम से विधवा नारी की असहाय स्थिति का चित्रण।
❤️ मानवीय करुणा
💠 हरगोबिन का दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा मानना।
🖼 प्रतीकात्मकता और बिंब योजना
🏠 बड़ी हवेली का प्रतीक
💠 सामंती व्यवस्था के पतन का संकेत।
🪢 द्रौपदी चीरहरण का संदर्भ
💠 शोषण को महाभारत कालीन घटना से जोड़कर मार्मिक प्रभाव।
📜 कहानी का शिल्प और संरचना
⏳ कथा संरचना
💠 फ्लैशबैक तकनीक, अतीत और वर्तमान का मिश्रण।
💬 संवाद तकनीक
💠 “बथुआ साग खाकर कब तक जीऊं?” – व्यथा का गहरा असर।
⏰ समसामयिक प्रासंगिकता
📲 आधुनिक संदर्भ
💠 डिजिटल युग में भी व्यक्तिगत संदेशों के लिए मानवीय संपर्क का महत्व।
👩🦳 नारी शोषण की समस्या
💠 संपत्ति के अधिकार और सामाजिक सुरक्षा का मुद्दा आज भी प्रासंगिक।
📚 साहित्यिक महत्व और योगदान
🌿 आंचलिक साहित्य में योगदान
💠 बिहार के ग्रामीण जीवन का प्रामाणिक चित्रण।
💖 मानवीय मूल्यों का चित्रण
💠 तकनीकी प्रगति के बावजूद मानवीय संवेदनाओं की अहमियत।
🏁 निष्कर्ष
💠 “संवदिया” मानवीय संवेदनाओं का महाकाव्य है।
💠 इसमें नारी पीड़ा, सामाजिक विघटन और करुणा का सशक्त चित्रण है।
💠 हरगोबिन का चरित्र रेणु जी की कलात्मकता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
📝 सारांश
💠 “संवदिया” फणीश्वरनाथ रेणु की मार्मिक कहानी है।
💠 नायक हरगोबिन – संदेशवाहक, बड़ी बहुरिया की गरीबी और असहायता का साक्षी।
💠 पति की मृत्यु के बाद बहुरिया का शोषण, जेवर छिनना, गरीबी में जीवन।
💠 हरगोबिन संदेश पहुंचाने में असमर्थ, नारी पीड़ा और संवेदनाओं का चित्रण।
💠 आंचलिक भाषा में ग्रामीण समाज की विसंगतियों का यथार्थ चित्रण।
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
❓ प्रश्न 1. संवदिया की क्या विशेषताएँ हैं और गाँव वालों के मन में संवदिया की क्या अवधारणा है?
उत्तर:
🔹 संवदिया की विशेषताएँ:
संवाद या संदेश ले जाने वाला; यह कार्य सभी नहीं कर सकते।
गुप्त समाचार ऐसे ले जाना कि पक्षी तक को पता न चले।
संवाद का प्रत्येक शब्द याद रखना।
संवाद को उसी लहजे और सुर में सुनाना जैसा सुना गया हो।
🔹 गाँव वालों की धारणा:
संवदिया कामचोर, निठल्ला और पेटू होता है।
औरतों की गुलामी करता है, मीठी बोली सुनकर नशे में आ जाता है।
बिना मजदूरी लिए काम करता है।
❓ प्रश्न 2. बड़ी हवेली से बुलावा आने पर हरगोबिन के मन में किस प्रकार की आशंका हुई?
उत्तर:
बड़ी हवेली से बुलावा आने पर हरगोबिन को अचरज हुआ।
सोचने लगा – अब तो गाँव-गाँव में डाकघर खुल गए हैं, डाक से संदेश भेजा जा सकता है।
आदमी घर बैठे लंका तक खबर भेज सकता है, फिर मुझे क्यों बुलाया गया?
तभी बुलावा आता है जब कोई अत्यंत गोपनीय समाचार देना हो – जो चाँद-सूरज और पंछियों तक को न पता चले।
वह बड़ी हवेली की दशा से भली-भाँति परिचित था।
❓ प्रश्न 3. बड़ी बहुरिया अपने मायके संदेश क्यों भेजना चाहती थी?
उत्तर:
बड़ी हवेली में एकाकी और घोर दरिद्रता का जीवन जी रही थी।
कभी राज करती थी, अब दाने-दाने को मोहताज है।
बथुआ-साग खाकर पेट भर रही थी, उधार न चुका पाने पर ताने सुनती थी।
देवर-देवरानी का कोई वास्ता नहीं था।
मायके का भरोसा था – वहाँ भाई-भाभियों की नौकरी करके भी इस यातना से बच सकती थी।
❓ प्रश्न 4. हरगोबिन बड़ी हवेली में पहुँचकर अतीत की किन स्मृतियों में खो जाता है?
उत्तर:
हवेली में कभी दिन-रात नौकर-नौकरानियों और मजदूरों की भीड़ रहती थी।
जहाँ अब बड़ी बहुरिया सूप में अनाज फटक रही है, वहीं कभी मेहंदी लगाए हाथों से ही नाइन का घर चलता था।
बड़े भैया के मरने के बाद सब बदल गया।
तीनों भाइयों ने बँटवारा कर लिया – बड़ी बहुरिया के जेवर और बनारसी साड़ी तक बाँट दी।
❓ प्रश्न 5. संवाद कहते वक्त बड़ी बहुरिया की आँखें क्यों छलछला आईं?
उत्तर:
वर्तमान दशा से अत्यंत व्याकुल थी, आत्महत्या तक का विचार था।
खाने-पीने का प्रबंध नहीं था, दुःख बाँटने वाला कोई नहीं था।
भाई-भाभियों की नौकरी तक करने को तैयार थी।
जीने की इच्छा मर रही थी, मन की व्यथा आँसुओं में बह रही थी।
उधार चुकाने की सामर्थ्य नहीं रही थी।
❓ प्रश्न 6. गाड़ी पर सवार होने के बाद संवदिया के मन में काँटे की चुभन का अनुभव क्यों हो रहा था? उससे छुटकारा पाने के लिए उसने क्या उपाय सोचा?
उत्तर:
बड़ी बहुरिया का संवाद मन में काँटे की तरह चुभ रहा था –
“किसके भरोसे रहूँगी? एक नौकर था, भाग गया। गाय भूखी-प्यासी है।”
मनःस्थिति से छुटकारा पाने के लिए पास बैठे यात्री से बातचीत करने की सोची।
यात्री चिड़चिड़ा स्वभाव का निकला।
❓ प्रश्न 7. बड़ी बहुरिया का संवाद हरगोबिन क्यों नहीं सुना सका?
उत्तर:
मायके में संवाद सुनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।
लगा – यह गाँव का अपमान होगा कि अपनी लक्ष्मी को सँभाल नहीं पाया।
गाँव की लक्ष्मी गाँव छोड़कर चली जाएगी।
बूढ़ी माता को और व्यथित नहीं करना चाहता था।
मायके में भी बहुरिया की दशा अच्छी नहीं होती – यह सोचकर नहीं सुनाया।
❓ प्रश्न 8. ‘संवदिया डटकर खाता है और अफर कर सोता है’ से क्या आशय है?
उत्तर:
संवदिया खाऊ-पेटू किस्म का होता है, चिंता-फिक्र नहीं करता।
जहाँ जाता है, उसकी खूब खातिरदारी होती है, बढ़िया पकवान मिलते हैं।
भूख से ज्यादा खाकर पेट अफरा जाता है, फिर तानकर सो जाता है।
हरगोबिन इसका अपवाद है – वह संवेदनशील प्राणी है।
❓ प्रश्न 9. जलालगढ़ पहुँचने के बाद बड़ी बहुरिया के सामने हरगोबिन ने क्या संकल्प लिया?
उत्तर:
20 कोस पैदल चलकर लौटा, बड़ी बहुरिया के हाथ का दूध पीकर चेतना लौटी।
संकल्प लिया – “मैं तुमको कोई कष्ट नहीं होने दूँगा, तुम मेरी माँ हो, सारे गाँव की माँ हो। मैं निठल्ला नहीं बैठूँगा, तुम्हारा सब काम करूँगा।”
प्रार्थना की कि वह गाँव छोड़कर न जाए।
🖋 भाषा-शिल्प
❓ प्रश्न 1. इन शब्दों का अर्थ समझिए
उत्तर:
काबुली-कायदा – मारपीट कर पैसा वसूल करना।
रोम-रोम कलपने लगा – पूरी तरह दुःखी हो गया।
अगहनी धान – अगहन मास में आने वाला चावल।
❓ प्रश्न 2. पाठ से प्रश्नवाचक वाक्यों को छाँटिए और संदर्भ सहित टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
(क) फिर उसकी बुलाहट क्यों हुई? – बुलावा मिलने पर हरगोबिन का आश्चर्य।
(ख) कहाँ गए वे दिन? – हवेली के पुराने दिनों की याद।
(ग) और कितना दिल कड़ा करूँ? – बहुरिया की व्यथा व्यक्त करने का वाक्य।
(घ) मैं किसके लिए दुःख झेलूँ? – बहुरिया का अकेलेपन और पीड़ा का भाव।
(ङ) दीदी कैसी है? – मायके पहुँचने पर बड़े भाई का प्रश्न।
❓ प्रश्न 3. इन पंक्तियों की व्याख्या कीजिए
(क) बड़ी हवेली अब नाममात्र को ही बड़ी हवेली है।
उत्तर: हवेली अब शान-शौकत वाली नहीं रही, केवल नाम मात्र रह गया।
(ख) हरगोबिन ने देखी अपनी आँखों से द्रौपदी की चीरहरण लीला।
उत्तर: बनारसी साड़ी का तीन भागों में बँटवारा – महाभारत की घटना जैसा शोषण।
(ग) बथुआ-साग खाकर कब तक जीऊँ?
उत्तर: खाने-पीने का अभाव, सामान्य सब्जी से जीवन-यापन की विवशता।
(घ) किस मुँह से वह ऐसा संवाद सुनाएगा।
उत्तर: हरगोबिन के लिए बहुरिया का दुखद संवाद सुनाना कठिन था, मुँह नहीं पड़ रहा था।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🎯 5 MCQ प्रश्न (बहुविकल्पीय प्रश्न)
❓ 1. हरगोबिन कितने कोस पैदल चलकर वापस आया था?
🔹 (a) 10 कोस
🔹 (b) 15 कोस
🔹 (c) 20 कोस ✅
🔹 (d) 25 कोस
❓ 2. बड़ी बहुरिया किस साग को खाकर जीवन यापन कर रही थी?
🔹 (a) पालक साग
🔹 (b) बथुआ साग ✅
🔹 (c) सरसों साग
🔹 (d) चना साग
❓ 3. संवदिया के काम की तुलना किस पक्षी से की गई है?
🔹 (a) कौआ
🔹 (b) तोता
🔹 (c) परेवा (कबूतर) ✅
🔹 (d) मैना
❓ 4. बड़े भैया की मृत्यु के बाद कितने भाइयों में बंटवारा हुआ?
🔹 (a) दो
🔹 (b) तीन ✅
🔹 (c) चार
🔹 (d) पांच
❓ 5. हरगोबिन ने बड़ी बहुरिया के साथ कौन सा रिश्ता स्थापित किया?
🔹 (a) भाई-बहन का
🔹 (b) मां-बेटे का ✅
🔹 (c) पिता-पुत्री का
🔹 (d) दोस्ती का
✏ 5 लघु उत्तरीय प्रश्न (15 शब्दों में)
❓ 1. हरगोबिन को आधुनिक युग में अपनी जरूरत पर क्यों आश्चर्य हुआ?
उत्तर: क्योंकि अब गांव-गांव में डाकघर खुल चुके थे और आधुनिक संचार माध्यम उपलब्ध थे।
❓ 2. बड़ी हवेली के पतन का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर: बड़े भैया की मृत्यु के बाद भाइयों के बीच संपत्ति का बंटवारा और झगड़े।
❓ 3. लेखक ने बड़ी बहुरिया की दशा की तुलना किससे की है?
उत्तर: द्रौपदी के चीरहरण से, जब उसकी साड़ी तक का बंटवारा कर दिया गया।
❓ 4. हरगोबिन के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता क्या थी?
उत्तर: वह अत्यधिक संवेदनशील था और दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझता था।
❓ 5. कहानी में ‘काबुली-कायदा’ का क्या अर्थ है?
उत्तर: मारपीट करके या जबरदस्ती से पैसा वसूल करने का तरीका या रूखा व्यवहार।
📜 4 मध्यम उत्तरीय प्रश्न (70 शब्दों में)
❓ 1. संवदिया की परंपरा और आधुनिकता के बीच क्या द्वंद्व दिखाया गया है?
उत्तर: कहानी में दिखाया गया है कि आधुनिक युग में डाकघर और तार की सुविधा होने पर भी गुप्त और व्यक्तिगत संदेशों के लिए संवदिया की आवश्यकता बनी रहती है। हरगोबिन स्वयं आश्चर्य करता है कि अब भी उसकी जरूरत क्यों पड़ी। यह द्वंद्व दिखाता है कि तकनीकी प्रगति के बावजूद मानवीय संवेदनाओं और व्यक्तिगत रिश्तों के लिए पारंपरिक माध्यमों का महत्व बना रहता है।
❓ 2. बड़ी बहुरिया के चरित्र में निहित त्रासदी का चित्रण कीजिए।
उत्तर: बड़ी बहुरिया एक त्रासद चरित्र है जो वैभव से दरिद्रता में गिर गई है। कभी वह बड़ी हवेली की लक्ष्मी थी, उसके हाथों में मेहंदी लगवाकर ही गांव की नाइन परिवार पालती थी। पति की मृत्यु के बाद देवरों ने उसके जेवर और साड़ी तक बांट दी। अब वह बथुआ साग खाकर जीवन बिताने को मजबूर है। एकाकीपन और अभावग्रस्तता ने उसे आत्महत्या तक के लिए प्रेरित कर दिया है।
❓ 3. हरगोबिन के आंतरिक संघर्ष का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर: हरगोबिन का मुख्य आंतरिक संघर्ष यह है कि वह बड़ी बहुरिया का दुखभरा संदेश उसके मायके वालों को कैसे सुनाए। एक ओर उसका कर्तव्य है कि वह संवाद को ज्यों का त्यों पहुंचाए, दूसरी ओर उसकी संवेदना उसे रोकती है। वह सोचता है कि इससे गांव की इज्जत चली जाएगी और बूढ़ी मां को दुख होगा। अंततः वह संदेश नहीं सुना पाता और अपराधबोध से ग्रसित होकर वापस आ जाता है।
❓ 4. कहानी में ग्रामीण समाज की किन समस्याओं को उजागर किया गया है?
उत्तर: कहानी में ग्रामीण समाज की अनेक समस्याएं उजागर हुई हैं। संयुक्त परिवार का विघटन, विधवा महिलाओं की दुर्दशा, संपत्ति के लिए भाइयों में झगड़े, महिलाओं के साथ भेदभाव, आर्थिक शोषण और सामाजिक उपेक्षा मुख्य समस्याएं हैं। बड़ी बहुरिया की दशा इस बात का प्रमाण है कि समाज में विधवा महिलाओं को किस तरह उपेक्षित जीवन जीने को मजबूर किया जाता है।
🖋 1 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
❓ ‘संवदिया’ कहानी के माध्यम से फणीश्वरनाथ रेणु ने किस प्रकार मानवीय संवेदना और सामाजिक यथार्थ का चित्रण किया है?
उत्तर: फणीश्वरनाथ रेणु की ‘संवदिया’ कहानी मानवीय संवेदना और सामाजिक यथार्थ का एक श्रेष्ठ चित्रण है।
💠 मानवीय संवेदना: हरगोबिन का चरित्र उल्लेखनीय है। वह केवल एक संदेशवाहक नहीं है बल्कि गहरी मानवीय करुणा से भरा व्यक्ति है। बड़ी बहुरिया की पीड़ा उसकी अपनी पीड़ा बन जाती है। वह उसका दुखभरा संदेश इसलिए नहीं सुना पाता कि इससे सबको दुख होगा।
💠 सामाजिक यथार्थ: लेखक ने संयुक्त परिवार के विघटन, विधवा महिलाओं की दुर्दशा, संपत्ति के लिए भाई-भाइयों के झगड़े और महिलाओं के शोषण को दिखाया है। बड़ी बहुरिया की दशा इस बात का प्रमाण है कि पितृसत्तात्मक समाज में महिला की क्या स्थिति होती है।
💠 आंचलिक भाषा का प्रयोग कर ग्रामीण जीवन की प्रामाणिकता को बनाए रखा गया है। यह कहानी दिखाती है कि तकनीकी प्रगति के बावजूद मानवीय संबंधों और संवेदनाओं का महत्व कम नहीं होता।
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अतिरिक्त ज्ञान
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दृश्य सामग्री
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