Class 12, HINDI COMPULSORY

Class 12 : हिंदी अनिवार्य – अध्याय 17. जूझ

संक्षिप्त लेखक परिचय

☀️✨ आनंद यादव : लेखक परिचय ✨☀️

🔹 पूरा नाम – डॉ. आनंद रतन यादव
🔹 जन्म – 30 नवंबर 1935, कागल गांव, कोल्हापुर, महाराष्ट्र
🔹 निधन – 27 नवंबर 2016, पुणे

🌱 परिवार व संघर्ष
✔️ शेतमजूर परिवार में जन्म, बचपन गरीबी में बीता।
✔️ पिता रत्नाप्पा शिक्षा के विरोधी थे, लेकिन मां ने पढ़ाई के लिए प्रेरित किया।

📘 शिक्षा व सेवा
✔️ कोल्हापुर और पुणे से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
✔️ पुणे विश्वविद्यालय में मराठी विभाग प्रमुख पद से सेवानिवृत्त हुए।

✍️ साहित्यिक योगदान
✔️ लगभग 40 पुस्तकों की रचना – कविता, कहानी, उपन्यास, ललितगद्य व समीक्षा।
✔️ आत्मकथात्मक उपन्यास ‘झोंबी’ सबसे प्रसिद्ध।
➡️ 1990 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।
➡️ हिंदी में ‘जूझ’ शीर्षक से अनूदित।

🎭 अन्य प्रसिद्ध कृतियाँ
✔️ ‘नटरंग’ – जिस पर आधारित फ़िल्म ने व्यापक लोकप्रियता प्राप्त की।
✔️ ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रण उनकी विशेषता।

🏆 सम्मान व पहचान
✔️ साहित्यिक सम्मेलनों की अध्यक्षता की।
✔️ ग्रामीण समाज की पीड़ा और संघर्ष को शब्दों में ढालकर उन्हें मराठी साहित्य का युगप्रवर्तक माना गया।

🌟 डॉ. आनंद यादव का साहित्य संघर्ष, श्रमशीलता और ग्रामीण यथार्थ की सजीव अभिव्यक्ति है। 🌟

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन

कहानी का प्रारंभ तब होता है जब आनंद पांचवीं कक्षा में पढ़ता था। उसके पिता रत्नाप्पा (जिन्हें वह दादा कहकर बुलाता था) ने उसकी पढ़ाई बंद करवा दी ताकि वह घर और खेत के काम में हाथ बंटा सके। पिता स्वयं तो घर का कोई काम नहीं करते थे बल्कि सारा दिन घूमने-फिरने और मौज-मस्ती में बिताते थे।

आनंद के मन में शिक्षा प्राप्त करने की तीव्र इच्छा थी। वह जानता था कि बिना पढ़ाई के वह भी अपने पिता की तरह गरीब ही रह जाएगा। एक दिन गोबर के कंडे थापते समय उसने अपनी मां से कहा कि अगर वह पढ़-लिख जाएगा तो शायद जीवन में कुछ कर पाएगा।

संघर्ष और समाधान

आनंद की मां चाहती थी कि बच्चा पढ़े-लिखे, लेकिन वह पति से डरती थी। तब आनंद ने अपनी मां को सुझाव दिया कि वे गांव के मुखिया दत्ताजी राव देसाई से मदद मांगें। दत्ताजी एक समझदार, मददगार और तर्कशील व्यक्ति थे। उन्होंने आनंद के पिता को समझाया और बच्चे की पढ़ाई का खर्च उठाने तक की पेशकश की।

अंततः आनंद के पिता को मजबूर होकर उसकी पढ़ाई की अनुमति देनी पड़ी, लेकिन कठोर शर्तों के साथ: 🔹 सुबह 11 बजे तक खेत में काम करना
🔸 पाठशाला जाते समय बस्ता साथ ले जाना
🟢 छुट्टी के बाद घर में बस्ता रखकर सीधे खेत जाना
🔵 एक घंटे ढोर चराना
🟡 अगर खेत में ज्यादा काम हो तो पाठशाला न जाना

विद्यालयी जीवन

जब आनंद पांचवीं कक्षा में वापस गया तो उसे देखा कि उसके पुराने साथी आगे की कक्षा में चले गए थे। नए साथियों के बीच वह अकेला पड़ गया था। पहले दिन चव्हाण नामक एक शरारती लड़के ने उसके साथ मजाक किया और उसका गमछा छीनकर मास्टर की नकल की।

आनंद के कपड़े भी ठीक नहीं थे – वह बालुगड़ी की लाल माटी के रंग में मटमैली धोती और गमछा पहने हुए था। इसके बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी।

शिक्षकों का प्रभाव

🎯 मंत्री मास्टर – ये गणित पढ़ाते थे और बहुत कड़क स्वभाव के थे। वे शरारती बच्चों को सख्त सजा देते थे लेकिन पढ़ने वाले बच्चों को शाबासी देते थे। उनके डर से सभी बच्चे घर से पढ़कर आने लगे।
🎼 न. वा. सौंदलगेकर – ये मराठी के शिक्षक थे और उनका सबसे गहरा प्रभाव आनंद पर पड़ा। वे कविता के अच्छे रसिक और मर्मज्ञ थे। वे सुरीले ढंग से कविताएं गाकर सुनाते थे और अभिनय के साथ भाव समझाते थे। उन्हें मराठी के अलावा अंग्रेजी, हिंदी और संस्कृत की कविताएं भी कंठस्थ थीं।

कविता से प्रेम

सौंदलगेकर मास्टर से प्रभावित होकर आनंद में कविता के प्रति रुचि जागी। वह तुकबंदी करने लगा और छोटी-छोटी कविताएं लिखने लगा। खेतों में पानी देते या ढोर चराते समय वह ऊंचे स्वर में कविताएं गाता और अभिनय भी करता था।

कविता से उसे दो बड़ी शक्तियां मिलीं – पहली, अकेलेपन से मुक्ति, और दूसरी, आत्मविश्वास। वह ‘केशव करणी जाति’ छंद की कविता को मास्टर से भी बेहतर अभिनय के साथ गा सकता था।

चरित्रगत विशेषताएं

✅ शिक्षा के प्रति ललक – वह जानता था कि शिक्षा ही उसका भविष्य संवार सकती है
💪 परिश्रमी स्वभाव – सुबह से शाम तक खेत और स्कूल दोनों में काम करता था
🧠 दृढ़ संकल्पशक्ति – विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी
✍️ रचनात्मकता – कविता लिखने में रुचि विकसित की
🌟 आत्मविश्वास – धीरे-धीरे कक्षा के होशियार बच्चों में गिना जाने लगा

ग्रामीण जीवन का चित्रण

इस पाठ में ग्रामीण जीवन का यथार्थपरक चित्रण है। गांव में दीवाली के बाद ईख पेरकर गुड़ बनाया जाता है, महिलाएं गोबर के कंडे थापती हैं, खेतों में पानी लगाया जाता है। स्कूल पेड़ों की छाया में लगते हैं और वेशभूषा का विशेष महत्व नहीं होता। गांव में जमींदारों का प्रभाव होता है और कृषक बच्चों की शिक्षा को कम महत्व देते हैं।

यह पाठ दिखाता है कि किस प्रकार वसंत पाटील जैसे होशियार छात्र आनंद के मित्र बने और उसका आत्मविश्वास बढ़ाया। वसंत दुबला-पतला लेकिन बहुत होशियार था और कक्षा का मॉनीटर था।

सारांश (100 शब्द)

‘जूझ’ आनंद यादव की आत्मकथात्मक कृति है जो एक ग्रामीण बालक के शिक्षा प्राप्ति के संघर्ष को दर्शाती है। आनंद के पिता ने उसकी पढ़ाई बंद करवा दी थी। मां और गांव के मुखिया दत्ताजी राव देसाई की मदद से वह कठोर शर्तों पर पुनः स्कूल जा सका। खेत के काम के साथ पढ़ाई करते हुए वह मंत्री मास्टर से गणित और सौंदलगेकर मास्टर से मराठी सीखा। कविता से प्रेम ने उसे अकेलेपन से मुक्ति दिलाई। यह कहानी शिक्षा, संघर्ष और आत्मनिर्भरता की प्रेरणादायक गाथा है।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न



🌟 प्रश्न 1:
“जूझ” शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथा-नायक की किसी केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है?
🟢 उत्तर:
🔸 “जूझ” शब्द का अर्थ है संघर्ष और हार न मानना।
🔹 कथा-नायक आनंद एक गरीब किसान परिवार से होते हुए भी शिक्षा के लिए अडिग है।
🔸 अभाव—टूटी वर्दी, पुस्तकों की कमी, खेतों में काम का दबाव—को उसने चुनौती के रूप में लिया।
🔹 उसकी जुझारू प्रवृत्ति हर असफलता के बाद उसे फिर खड़ा कर देती है।
🔸 माँ का स्नेह, दत्ता जी राव का सहारा और सौंदलगेकर शिक्षक की प्रेरणा उसकी इस विशेषता को और मज़बूत करते हैं।
🏆 इस प्रकार “जूझ” शीर्षक उसके संघर्षशील व्यक्तित्व का सटीक चित्रण है।

🌟 प्रश्न 2:
स्वयं कविता रच लेने का आत्म-विश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?
🟢 उत्तर:
🔸 लेखक के मराठी शिक्षक श्री सौंदलगेकर का प्रेरक पाठन इसकी शुरुआत था।
🔹 वे कविता को भाव-भंगिमा, लय और अभिनय के साथ जीवंत कर देते थे।
🔸 हिंदी और अंग्रेज़ी कविताओं की ऊर्जावान प्रस्तुति ने लेखक को नए दृष्टिकोण दिए।
🔹 खेत में अकेले काम करते हुए लेखक ने मिट्टी पर अपनी पहली कविता लिखी।
🔸 सौंदलगेकर के प्रोत्साहन और प्रशंसा ने उसके आत्मविश्वास को गहरा किया।

🌟 प्रश्न 3:
श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उनसे प्रेरणा पाने वाली विशेषताएँ रेखांकित करें।
🟢 उत्तर:
🟠 लयात्मक और मधुर पाठन – कविता की धुन और ताल से छात्रों को बांध लेना।
🟣 बहुभाषी प्रस्तुति – मराठी, हिंदी और अंग्रेज़ी कविताएँ समान भाव से सुनाना।
🔵 अभिनयात्मक शैली – हाव-भाव और स्वर से कविता को जीवंत करना।
🟢 रचनाओं की सराहना – प्रेरणादायक और उत्साहवर्धक टिप्पणियाँ देना।
🟡 उदार व्यवहार – परिस्थितियों को समझकर छात्रों के साथ अपनत्व बनाए रखना।

🌟 प्रश्न 4:
कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
🟢 उत्तर:
🔸 पहले – अकेलापन नीरस और थकाऊ लगता था।
🔹 खेतों में काम के समय ऊब और बेचैनी महसूस होती थी।
🔸 बाद में – कविता से जुड़ने पर अकेलापन रचनात्मक समय बन गया।
🔹 एकांत अब आत्मसंवाद और सृजन का अवसर बन गया।
🏆 कविता-लेखन के लिए यह शांत वातावरण विचारों को स्पष्ट और भावनाओं को शब्द देता है।

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

🔵 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
🟢 1. आनंद किस कक्षा में पढ़ता था जब पढ़ाई बंद हो गई थी?
🔸 (क) चौथी
🔸 (ख) पाँचवी ✅
🔸 (ग) छठी
🔸 (घ) सातवीं


🟢 2. दत्ता जी राव का क्या पद था?
🔸 (क) गणित-मास्टर ✅
🔸 (ख) अंग्रेज़ी-मास्टर
🔸 (ग) हिंदी-मास्टर
🔸 (घ) विज्ञान-मास्टर


🟢 3. आनंद की माँ ने पिता को मनाने के लिए किससे मदद ली?
🔸 (क) गाँव के प्रधान से
🔸 (ख) दत्ता जी राव से ✅
🔸 (ग) पड़ोसी से
🔸 (घ) स्कूल कलेक्टर से


🟢 4. कौन-सा शिक्षक कविताएँ पढ़ाता था और रचना आत्म-विश्वास जगाता था?
🔸 (क) दत्ता जी राव
🔸 (ख) मास्टर सौंदलगेकर ✅
🔸 (ग) लीला मैडम
🔸 (घ) गंगाधर सर


🟢 5. आनंद खेतों में नल की ट्यूब पर पानी डाला करता था क्योंकि वहाँ क्या मिलता था?
🔸 (क) पुरानी वर्दी
🔸 (ख) मिट्टी का मैदान
🔸 (ग) अकेलापन और शांति ✅
🔸 (घ) किताबों का थैला

🟡 लघु उत्तरीय प्रश्न
🟣 1. जूझने की कला ने आनंद को कैसे बदल दिया?
➡उत्तर. जूझने की कला ने आनंद को हार मानने वाला नहीं, बल्कि समस्याओं में समाधान खोजने वाला बना दिया।


🟣 2. माँ के सहयोग का आनंद के जीवन में क्या प्रभाव पड़ा?
➡उत्तर. माँ के सहयोग से आनंद को पढ़ाई का सहारा मिला और पिता का विरोध टूट गया।


🟣 3. दत्ता जी राव ने पिता को स्कूल भेजने के लिए क्या वादा कराया?
➡ उत्तर. खेतों में सात दिन पानी लगाने का वादा करवाया।


🟣 4. मास्टर सौंदलगेकर ने कविता सिखाने से पहले क्या भरोसा दिलाया?
➡उत्तर. उन्होंने कहा कि हर छात्र में कवि-भाव होता है, बस तलाशना पड़ता है।


🟣 5. आनंद ने कविता रचना कहाँ शुरू की?
➡ उत्तर. खेत की मिट्टी पर लकड़ी से लिखकर।

🟠 मध्यम उत्तरीय प्रश्न
🔹 1. ‘जूझ’ का चरित्र-चित्रण करें और अर्थ बताएं।
➡उत्तर. ‘जूझ’ का अर्थ है निरंतर संघर्ष। आनंद ने गरीबी, विरोध, अभाव और उपहास के बीच पढ़ाई जारी रखी। यह आत्म-विश्वास, प्रेरणा और सृजन की मिसाल है।


🔹 2. दत्ता जी राव और मास्टर सौंदलगेकर की भूमिका में अंतर।
➡उत्तर. दत्ता जी राव ने पढ़ाई का अधिकार दिलाया, जबकि सौंदलगेकर ने आत्म-विश्वास और भाषा-कौशल को निखारा।


🔹 3. खेत-काम में अकेलापन क्यों चुना?
➡ उत्तर. ट्यूब-पाइप की आवाज़ में शांति मिलती थी, जो रचना और चिंतन के लिए उपयुक्त थी।


🔹 4. परिवार और समाज के दबाव से मिली सीख।
➡उत्तर. दबाव पढ़ाई रोक सकते हैं, पर आत्म-विश्वास और सहयोग से उन्हें पार किया जा सकता है।

🔴 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
🌟 प्रश्न: “जूझ” कथा में शिक्षा के प्रति असाधारण लगाव और पारिवारिक संघर्ष का विश्लेषण कर बताएं कि यह आधुनिक छात्रों के लिए कैसे प्रेरणास्रोत है।
💠 उत्तर:
“जूझ” बताता है कि शिक्षा जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है। आनंद यादव ने गरीबी और विरोध के बावजूद पढ़ाई छोड़ी नहीं। पिता ने स्कूल रोक दिया, तो माँ ने समाज से टकराकर दत्ता जी राव की मदद ली।
दत्ता जी राव ने उसे पुनः स्कूल भेजा और मास्टर सौंदलगेकर ने कविताओं से आत्म-विश्वास जगाया। खेत में अकेले पानी डालते हुए उसने कविता लिखना शुरू किया।
आज के छात्र भी सामाजिक व आर्थिक कठिनाइयों से जूझते हैं। आनंद की तरह वे समस्याओं को अवसर में बदल सकते हैं—सहयोग, लगन और रचनात्मकता के साथ। यह कथा दृढ़ता, नवोन्मेष और शिक्षा-समर्पण की जीवंत प्रेरणा है।

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अतिरिक्त ज्ञान

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दृश्य सामग्री

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