Class 12, Poltical Science (Hindi)

Class 12 : Poltical Science (Hindi) – Lesson 15.भारतीय राजनीति: नए बदलाव

पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन


🔶 भूमिका
स्वतंत्रता के बाद भारतीय लोकतंत्र ने कई चरणों में विकास किया। इक्कीसवीं सदी के आरंभ में देश की राजनीति में अनेक नए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बदलाव देखे गए। ये बदलाव भारतीय राजनीति के चरित्र, दिशा और नीति निर्माण प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।

🔶 प्रमुख नए बदलाव
🔹 1. राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का विस्तार
🟢 अब राजनीतिक प्रतिस्पर्धा केवल राष्ट्रीय स्तर पर नहीं रही; राज्य स्तर पर भी अनेक क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ।
🟢 इससे बहुदलीय प्रणाली और गठबंधन युग की शुरुआत हुई।
🟢 केंद्र में गठबंधन सरकारों का चलन बढ़ा, जिससे निर्णय-प्रक्रिया में समावेशिता आई।


🔹 2. समाज के नए वर्गों का राजनीतिकरण
🟢 दलित, पिछड़े वर्ग, आदिवासी, महिलाएँ और अल्पसंख्यक समाज राजनीति में सक्रिय हुए।
🟢 आरक्षण नीति, सामाजिक न्याय और समान अवसर की माँगों ने राजनीति की दिशा बदली।
🟢 अब राजनीति केवल अभिजात वर्ग तक सीमित नहीं रही।


🔹 3. क्षेत्रीय दलों की भूमिका
🟢 क्षेत्रीय आकांक्षाएँ और अस्मिता की राजनीति ने क्षेत्रीय दलों को शक्ति दी।
🟢 ये दल राष्ट्रीय नीति पर भी प्रभाव डालने लगे।
🟢 उदाहरण: द्रमुक, शिवसेना, टीएमसी, बीजू जनता दल आदि।


🔹 4. गठबंधन राजनीति
🟢 1989 के बाद गठबंधन युग की शुरुआत हुई।
🟢 केंद्र में संयुक्त मोर्चा, एनडीए, यूपीए जैसी गठबंधन सरकारें बनीं।
🟢 नीतिगत निर्णयों में परामर्श, साझा कार्यक्रम और क्षेत्रीय संतुलन आवश्यक हुआ।


🔹 5. आर्थिक उदारीकरण का प्रभाव
🟢 1991 में नई आर्थिक नीति (उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण) लागू हुई।
🟢 राज्य की भूमिका कल्याणकारी से नियामक बनी।
🟢 राजनीति में विकास, निवेश, बाज़ार और रोजगार प्रमुख मुद्दे बने।


🔹 6. नागरिक समाज और जनांदोलन
🟢 अब नागरिक संगठन, एनजीओ, सामाजिक आंदोलन नीति पर प्रभाव डालते हैं।
🟢 जन लोकपाल, पर्यावरण, सूचना का अधिकार जैसे मुद्दों पर जनभागीदारी बढ़ी।
🟢 लोकतंत्र अधिक सहभागी और उत्तरदायी बना।


🔹 7. सूचना और मीडिया का प्रभाव
🟢 सूचना प्रौद्योगिकी, सोशल मीडिया और 24×7 मीडिया कवरेज से जनमत निर्माण में तेजी आई।
🟢 चुनाव अभियानों में डिजिटल माध्यमों का प्रयोग बढ़ा।
🟢 नागरिकों की राजनीतिक चेतना और पारदर्शिता की माँग बढ़ी।


🔹 8. न्यायपालिका और अधिकार चेतना
🟢 सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक ऐतिहासिक निर्णय देकर नागरिक अधिकारों को सशक्त किया।
🟢 जनहित याचिकाओं से न्यायिक हस्तक्षेप और उत्तरदायित्व बढ़ा।
🟢 विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन मजबूत हुआ।


🔹 9. संघीय ढाँचे में परिवर्तन
🟢 राज्यों को अधिक अधिकार, वित्तीय विकेन्द्रीकरण और नीति आयोग जैसे संस्थान आए।
🟢 क्षेत्रीय हितों को केंद्र की नीति में स्थान मिला।


🔹 10. पर्यावरण, विकास और समानता के नए मुद्दे
🟢 जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास राजनीति के मुख्य विषय बने।
🟢 नदियों के बाँटवारे, भूमि उपयोग और ऊर्जा नीतियों पर विवाद और सहमति दोनों दिखे।

🔶 समकालीन भारतीय राजनीति की प्रवृत्तियाँ
🟢 गठबंधन सरकारें सामान्य बनीं।
🟢 विकास और सुशासन राजनीति के केंद्र में आए।
🟢 जाति, वर्ग, क्षेत्र, धर्म के साथ-साथ आर्थिक मुद्दे भी निर्णायक बने।
🟢 राजनीतिक संवाद में सोशल मीडिया और मीडिया का बढ़ता प्रभाव।

🔶 लोकतंत्र पर प्रभाव
🔹 नीति-निर्माण अधिक बहुस्तरीय हुआ।
🔹 जनमत का महत्व बढ़ा।
🔹 दलों को सामाजिक विविधता को अपनाना पड़ा।
🔹 शासन अधिक उत्तरदायी और पारदर्शी हुआ।

🔶 निष्कर्ष
भारतीय राजनीति अब केवल सत्ता-प्राप्ति का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक विकास का उपकरण बन चुकी है।
इन नए बदलावों ने लोकतंत्र को गहन, व्यापक और सहभागितापूर्ण बनाया।

📝 त्वरित पुनरावलोकन (Quick Recap)
1️⃣ बहुदलीय गठबंधन राजनीति
2️⃣ क्षेत्रीय दलों की सशक्त भूमिका
3️⃣ सामाजिक न्याय व आरक्षण
4️⃣ आर्थिक उदारीकरण के राजनीतिक प्रभाव
5️⃣ नागरिक समाज व मीडिया का उदय
6️⃣ पर्यावरण व समानता के नए मुद्दे
7️⃣ न्यायिक सक्रियता
8️⃣ संघीय पुनर्संतुलन

————————————————————————————————————————————————————————————————————————————

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न


🔵 प्रश्न 1:
उन्नी–मुनि ने अख़बार की कुछ कतरनों को बिखेर दिया है। आप इन्हें कालक्रम के अनुसार व्यवस्थित करें।
(क) मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करना
(ख) जनता दल का गठन
(ग) राम जन्मभूमि पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय
(घ) इंदिरा गांधी की हत्या
(ङ) राजग सरकार का गठन
(च) संप्रग सरकार का गठन
🟢 उत्तर:
क्रम इस प्रकार है :
➊ इंदिरा गांधी की हत्या (1984)
➋ जनता दल का गठन (1988)
➌ मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करना (1990)
➍ राम जन्मभूमि पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय (1992)
➎ राजग सरकार का गठन (1998)
➏ संप्रग सरकार का गठन (2004)

🔵 प्रश्न 2:
निर्देशित का मेल करें —
अ ब
(क) सर्वधर्मसमभाव की राजनीति (i) शाहबानो मामला
(ख) जाति आधारित दल (ii) अन्य पिछड़ा वर्ग का उदय
(ग) पर्सनल लॉ और लैंगिक न्याय (iii) गठबंधन सरकार
(घ) क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकत (iv) आर्थिक नीतियों का सहमतिपथ
🟢 उत्तर:
(क) – (i) शाहबानो मामला
(ख) – (ii) अन्य पिछड़ा वर्ग का उदय
(ग) – (iv) आर्थिक नीतियों का सहमतिपथ
(घ) – (iii) गठबंधन सरकार

🔵 प्रश्न 3:
1989 के बाद के दशक में भारतीय राजनीति के मुख्य मुद्दे क्या रहे हैं? इन मुद्दों से राजनीतिक दलों की आपसी प्रतिस्पर्धा के क्या नए रूप सामने आए?
🟢 उत्तर:
➤ 1989 के बाद भारतीय राजनीति में गठबंधन सरकारों का दौर प्रारंभ हुआ।
➤ जातीय पहचान, क्षेत्रीय अस्मिता, सामाजिक न्याय, आर्थिक उदारीकरण, वैश्वीकरण, सुशासन, पारदर्शिता जैसे मुद्दे प्रमुख बने।
➤ दलों के बीच वैचारिक प्रतिस्पर्धा के स्थान पर गठबंधन और साझा कार्यक्रमों की राजनीति का दौर आया।
➤ चुनावों में व्यक्तित्व, जातीय समीकरण और स्थानीय मुद्दे निर्णायक बने।

🔵 प्रश्न 4:
‘गठबंधन की राजनीति’ के इस नए दौर में सामाजिक और वैचारिक आधार मामूली पड़ाव कैसे रहे?
🟢 उत्तर:
➤ गठबंधन राजनीति में वैचारिक समानता की बजाय सत्ता-साझेदारी प्रमुख रही।
➤ दलों ने सत्ता में भागीदारी हेतु वैचारिक मतभेदों को कम महत्व दिया।
➤ साझा न्यूनतम कार्यक्रमों द्वारा गठबंधन को स्थिर बनाए रखा गया।
➤ इससे नीतियों में निरंतरता बनी रही परंतु वैचारिक स्पष्टता घट गई।

🔵 प्रश्न 5:
उदारीकरण के बाद के दौर में बाजार शक्तियों की भूमिका बढ़ी है। इस परिवर्तन ने राज्य के स्वरूप को कैसे प्रभावित किया?
🟢 उत्तर:
➤ 1991 के बाद राज्य की भूमिका कल्याणकारी से नियामक बनी।
➤ निजी क्षेत्र और बाजार शक्तियों को बढ़ावा मिला।
➤ सरकार नीति निर्माण में मार्गदर्शक की भूमिका निभाने लगी।
➤ विकास, निवेश, रोजगार, विदेशी पूँजी जैसे विषय राजनीति में मुख्य बने।

🔵 प्रश्न 6:
कांग्रेस के प्रभुत्व का युग समाप्त हो गया है। इसके बावजूद कांग्रेस का राजनीति पर प्रभाव क्यों बना हुआ है?
🟢 उत्तर:
➤ कांग्रेस का ऐतिहासिक योगदान और संगठनात्मक संरचना मजबूत रही।
➤ कई राज्यों में आज भी कांग्रेस की जड़ें गहरी हैं।
➤ उसकी नीतियों जैसे धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय को अन्य दलों ने भी अपनाया।
➤ इसलिए प्रभाव राजनीतिक विमर्श में अब भी बना है।

🔵 प्रश्न 7:
लेखक के अनुसार एक सफल लोकतंत्र की विशिष्ट व्यवस्था होती है। पिछले तीन दशकों के भारतीय अनुभवों का उल्लेख करें।
🟢 उत्तर:
➤ भारतीय लोकतंत्र में सामाजिक विविधता के बावजूद स्थायित्व बना रहा।
➤ सत्ता परिवर्तन शांतिपूर्ण ढंग से हुआ।
➤ क्षेत्रीय दलों की भागीदारी बढ़ी और प्रतिनिधित्व विस्तृत हुआ।
➤ न्यायपालिका और मीडिया की सक्रियता से उत्तरदायित्व बढ़ा।
➤ परंतु भ्रष्टाचार, असमानता और अस्थिर गठबंधन जैसी चुनौतियाँ भी रहीं।

🔵 प्रश्न 8:
दिए गए अंश को पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें —
📜 “भारत की दलगत राजनीति ने कई चुनौतियों का सामना किया है…” — जयंत हसन
(क) इस अंश को पढ़ने के बाद क्या आप दलगत व्यवस्था की चुनौतियों की सूची बना सकते हैं?
🟢 उत्तर: दलों में वैचारिक अस्पष्टता, आपसी मतभेद, गठबंधन अस्थिरता, क्षेत्रीय अस्मिता, व्यक्तिपूजा, आर्थिक नीतियों पर मतभेद।
(ख) विभिन्न दलों का सहयोग और उनमें एकजुटता की आवश्यकता क्यों है?
🟢 उत्तर: विविधता भरे समाज में स्थिर शासन हेतु सहयोग आवश्यक है। साझा न्यूनतम कार्यक्रम नीति-निर्माण को संभव बनाते हैं।
(ग) लेखक के अनुसार, इन चुनौतियों के बावजूद राजनीतिक दल लोकतांत्रिक मूल्यों को कैसे निभा सकते हैं?
🟢 उत्तर: दलों को पारदर्शिता, उत्तरदायित्व, वैचारिक स्पष्टता और जनहितकारी नीतियों पर ध्यान देना चाहिए।

————————————————————————————————————————————————————————————————————————————

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न


🔶 Section A — वस्तुनिष्ठ प्रश्न (1 अंक प्रत्येक)
🔵 प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
🟢 (1) 1989 के बाद भारतीय राजनीति में गठबंधन युग आरम्भ हुआ।
🟡 (2) मंडल आयोग की रिपोर्ट 1985 में लागू की गई।
🔵 (3) 1991 में उदारीकरण नीति लागू हुई।
🔴 (4) 1984 के बाद कांग्रेस की सत्ता समाप्त हो गई।
✔️ उत्तर: (1)


🔵 प्रश्न 2. मंडल आयोग की सिफारिशें किससे संबंधित थीं?
🟢 (1) सामाजिक-आर्थिक न्याय
🟡 (2) पिछड़े वर्गों के आरक्षण से
🔵 (3) आर्थिक उदारीकरण से
🔴 (4) गठबंधन राजनीति से
✔️ उत्तर: (2)


🔵 प्रश्न 3. गठबंधन सरकारों का एक प्रमुख कारण था —
🟢 (1) एक-दलीय प्रभुत्व का बने रहना
🟡 (2) क्षेत्रीय दलों का बढ़ता प्रभाव
🔵 (3) सामाजिक न्याय की उपेक्षा
🔴 (4) पंचायती राज की स्थापना
✔️ उत्तर: (2)


🔵 प्रश्न 4. क्षेत्रीय दलों का उदय मुख्यतः किस कारण से हुआ?
🟢 (1) राष्ट्रीय दलों की असफलता
🟡 (2) स्थानीय समस्याओं के समाधान की आवश्यकता
🔵 (3) सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान
🔴 (4) उपर्युक्त सभी
✔️ उत्तर: (4)


🔵 प्रश्न 5. 1991 की नीतियों को क्या कहा गया?
🟢 (1) उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण
🟡 (2) हरित क्रांति
🔵 (3) पंचवर्षीय योजना
🔴 (4) भूमि सुधार
✔️ उत्तर: (1)


🔵 प्रश्न 6. आरक्षण नीति का उद्देश्य क्या था?
🟢 (1) समान अवसर प्रदान करना
🟡 (2) आर्थिक समृद्धि
🔵 (3) औद्योगिक विकास
🔴 (4) विदेशी निवेश
✔️ उत्तर: (1)

🔶 Section B — लघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक प्रत्येक)
🔵 प्रश्न 7. 1989 के बाद भारतीय राजनीति में कौन-से प्रमुख परिवर्तन हुए?
🟢 उत्तर:
1989 के बाद एक-दलीय प्रभुत्व का अंत हुआ।
गठबंधन सरकारों का दौर आरम्भ हुआ।
क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ा।
राष्ट्रीय राजनीति में सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व बढ़ा।

🔵 प्रश्न 8. ‘गठबंधन राजनीति’ से आप क्या समझते हैं?
🟢 उत्तर:
जब कोई दल अकेले बहुमत न प्राप्त कर सके और कई दल मिलकर सरकार बनाएं, उसे गठबंधन राजनीति कहते हैं।
यह भारतीय राजनीति में 1989 के बाद विशेष रूप से देखने को मिली।

🔵 प्रश्न 9. मंडल आयोग की सिफारिशें क्या थीं?
🟢 उत्तर:
सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण देने की अनुशंसा।
पिछड़े वर्गों की पहचान और उनके उत्थान के लिए ठोस उपाय सुझाना।

🔵 प्रश्न 10. 1991 के आर्थिक सुधारों के प्रमुख घटक बताइए।
🟢 उत्तर:
उदारीकरण (Liberalisation)
निजीकरण (Privatisation)
वैश्वीकरण (Globalisation)
➡️ इन नीतियों का उद्देश्य आर्थिक वृद्धि और विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना था।

🔵 प्रश्न 11. ‘सामाजिक न्याय’ की अवधारणा क्या है?
🟢 उत्तर:
समाज के सभी वर्गों को समान अवसर और अधिकार देना।
आर्थिक, शैक्षिक, और राजनीतिक समानता सुनिश्चित करना।
पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति/जनजाति को विशेष आरक्षण देना।

🔵 प्रश्न 12. भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका समझाइए।
🟢 उत्तर:
क्षेत्रीय मुद्दों को राष्ट्रीय मंच पर उठाना।
गठबंधन सरकारों में भागीदारी।
राज्यों की आकांक्षाओं को केन्द्र सरकार तक पहुँचाना।

🔶 Section C — लघु उत्तरात्मक प्रश्न-II (3 अंक प्रत्येक)
🔵 प्रश्न 13. 1989 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को किन कारणों से पराजय का सामना करना पड़ा?
🟢 उत्तर:
1️⃣ बोफोर्स घोटाले के आरोपों से सरकार की साख गिरी।
2️⃣ बढ़ती बेरोज़गारी और महँगाई से जनता असंतुष्ट थी।
3️⃣ विपक्षी दलों ने गठबंधन बनाकर एकजुट मोर्चा तैयार किया।
✔️ निष्कर्ष: जनता ने पारदर्शिता और जवाबदेही की माँग की, जिससे कांग्रेस को हार झेलनी पड़ी।

🔵 प्रश्न 14. 1990 के दशक में भारतीय राजनीति के स्वरूप में कौन-से परिवर्तन हुए?
🟢 उत्तर:
1️⃣ गठबंधन सरकारों का दौर आरंभ हुआ (जैसे राष्ट्रीय मोर्चा, संयुक्त मोर्चा)।
2️⃣ क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ा और केन्द्र की राजनीति में उनका योगदान बढ़ा।
3️⃣ सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधित्व पर ज़ोर दिया गया (मंडल आयोग लागू)।

🔵 प्रश्न 15. 1991 में अपनाई गई नई आर्थिक नीतियों के मुख्य उद्देश्य लिखिए।
🟢 उत्तर:
1️⃣ उदारीकरण — सरकारी नियंत्रणों में कमी।
2️⃣ निजीकरण — सार्वजनिक क्षेत्र के दायरे को घटाना।
3️⃣ वैश्वीकरण — विदेशी निवेश और व्यापार को प्रोत्साहन देना।
✔️ उद्देश्य: भारत को प्रतिस्पर्धी और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था बनाना।

🔵 प्रश्न 16. मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
🟢 उत्तर:
1️⃣ पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण मिला।
2️⃣ सामाजिक न्याय और समान अवसर की दिशा में बड़ा कदम।
3️⃣ आरक्षण विरोधी आंदोलनों और राजनीतिक बहसों की शुरुआत भी हुई।

🔵 प्रश्न 17. ‘गठबंधन युग’ की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
🟢 उत्तर:
1️⃣ किसी एक दल को पूर्ण बहुमत न मिलना।
2️⃣ कई दलों का साझा कार्यक्रम बनाकर सरकार चलाना।
3️⃣ क्षेत्रीय दलों की भागीदारी और साझा निर्णय की प्रक्रिया।

🔵 प्रश्न 18. 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस का भारतीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
🟢 उत्तर:
1️⃣ साम्प्रदायिक राजनीति का उभार हुआ।
2️⃣ धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर राजनीति ध्रुवीकृत हुई।
3️⃣ क्षेत्रीय और धार्मिक दलों की भूमिका बढ़ी।

🔵 प्रश्न 19. आरक्षण नीति के लागू होने से राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
🟢 उत्तर:
1️⃣ पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व बढ़ा।
2️⃣ सामाजिक न्याय और समानता के मुद्दे राजनीतिक केंद्र में आए।
3️⃣ दलों ने जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखकर रणनीतियाँ बनाईं।

🔵 प्रश्न 20. भारतीय लोकतंत्र में सामाजिक न्याय की आवश्यकता क्यों है?
🟢 उत्तर:
1️⃣ ऐतिहासिक असमानताओं को दूर करने के लिए।
2️⃣ समान अवसर और प्रतिनिधित्व देने हेतु।
3️⃣ राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए समाज के हर वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित करना।

🔵 प्रश्न 21. आर्थिक उदारीकरण के लाभ और हानियाँ लिखिए।
🟢 उत्तर:
लाभ:
1️⃣ विदेशी निवेश में वृद्धि
2️⃣ प्रतिस्पर्धा से उत्पादकता में सुधार
3️⃣ वैश्विक बाज़ार से जुड़ाव
हानियाँ:
1️⃣ असमानता बढ़ी
2️⃣ निजीकरण से सामाजिक कल्याण पर असर
3️⃣ ग्रामीण और गरीब वर्ग उपेक्षित रहे

🔵 प्रश्न 22. 1989 के बाद राजनीति में उभरे नए मुद्दे कौन-से थे?
🟢 उत्तर:
1️⃣ सामाजिक न्याय और आरक्षण का प्रश्न
2️⃣ गठबंधन सरकारों की स्थिरता
3️⃣ आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीतियाँ


🔶 प्रश्न 23 — भारतीय राजनीति में गठबंधन युग का उदय और प्रभाव
🟢 उत्तर:
1️⃣ पृष्ठभूमि:
स्वतंत्रता के बाद लम्बे समय तक कांग्रेस का प्रभुत्व रहा। परंतु 1989 के चुनावों में कोई दल स्पष्ट बहुमत नहीं ला सका, जिससे गठबंधन युग का उदय हुआ।
2️⃣ उदय के कारण:
सामाजिक विविधता और जातिगत-क्षेत्रीय अस्मिता।
मतदाता व्यवहार में परिवर्तन — एक-दलीय वर्चस्व को अस्वीकार।
राष्ट्रीय दलों के जनाधार में कमी और क्षेत्रीय दलों का उभार।
3️⃣ मुख्य प्रभाव:
साझा कार्यक्रमों की आवश्यकता — नीति निर्माण में परामर्श की परंपरा।
केन्द्र-राज्य संबंधों में संतुलन।
निर्णय-प्रक्रिया अधिक लोकतांत्रिक बनी, पर स्थिरता पर प्रश्नचिह्न।
4️⃣ उदाहरण:
राजग (1998), संप्रग (2004) जैसे गठबंधनों ने शासन चलाया।
✔️ निष्कर्ष: गठबंधन युग ने राजनीति को समावेशी बनाया, परंतु नीतिगत निरंतरता को चुनौती दी।

🔶 प्रश्न 24 — 1991 की नई आर्थिक नीति: उद्देश्य और प्रभाव
🟢 उत्तर:
1️⃣ पृष्ठभूमि:
1991 में भुगतान संकट के कारण सुधार आवश्यक हुए।
2️⃣ मुख्य उद्देश्य:
उदारीकरण: सरकारी नियंत्रण घटाना।
निजीकरण: निजी पूंजी को प्रोत्साहन।
वैश्वीकरण: विदेशी निवेश बढ़ाना।
3️⃣ मुख्य नीतियाँ:
लाइसेंस-राज का अंत।
विदेशी निवेश की अनुमति।
सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण।
4️⃣ प्रभाव:
अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में वृद्धि।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भागीदारी।
परंतु असमानता और ग्रामीण उपेक्षा भी बढ़ी।
✔️ निष्कर्ष: नीति ने विकास को गति दी, पर सामाजिक संतुलन चुनौती बना।

🔶 प्रश्न 25 — मंडल आयोग की सिफारिशों से राजनीति में परिवर्तन
🟢 उत्तर:
1️⃣ पिछड़े वर्गों को नौकरियों में 27% आरक्षण।
2️⃣ सामाजिक न्याय मुख्य राजनीतिक मुद्दा बना।
3️⃣ जाति आधारित दलों का उदय।
4️⃣ विरोध और समर्थन के आंदोलन — लोकतांत्रिक विमर्श का हिस्सा।
✔️ निष्कर्ष: मंडल आयोग ने राजनीति को सामाजिक न्याय के पथ पर अग्रसर किया।

🔶 प्रश्न 26 — क्षेत्रीय दलों की बढ़ती भूमिका: कारण और परिणाम
🟢 उत्तर:
1️⃣ कारण:
स्थानीय मुद्दों की उपेक्षा।
सांस्कृतिक पहचान की रक्षा।
राज्यों की आकांक्षाओं की पूर्ति।
2️⃣ परिणाम:
गठबंधन सरकारों का गठन।
केन्द्र-राज्य संबंधों में सुधार।
नीति निर्माण में विविधता।
✔️ निष्कर्ष: क्षेत्रीय दलों ने लोकतंत्र को विकेन्द्रीकृत और समावेशी बनाया।

🔶 प्रश्न 27 — भारतीय राजनीति में मीडिया और नागरिक समाज की भूमिका
🟢 उत्तर:
(क) मीडिया की भूमिका:
1️⃣ सूचना और जागरूकता: मीडिया शासन, नीतियों, योजनाओं और घोटालों की जानकारी आम जनता तक पहुँचाता है।
2️⃣ जनमत निर्माण: मीडिया के विमर्श, बहस और रिपोर्टिंग से मतदाता अधिक सजग और सूचित बनते हैं।
3️⃣ निगरानी और जवाबदेही: घोटालों और भ्रष्टाचार के खुलासों से सरकारें उत्तरदायी बनती हैं।
4️⃣ डिजिटल क्रांति: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने जनता को प्रत्यक्ष संवाद का अवसर दिया।
(ख) नागरिक समाज की भूमिका:
1️⃣ जनहित याचिकाएँ: सामाजिक न्याय और पर्यावरण सुरक्षा जैसे मुद्दों पर अदालत में आवाज उठाई गई।
2️⃣ जन आंदोलनों का प्रभाव: सूचना का अधिकार, जनलोकपाल आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन आदि ने नीति निर्माण को प्रभावित किया।
3️⃣ एनजीओ की सक्रियता: शिक्षा, स्वास्थ्य, लैंगिक समानता और पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका।
(ग) प्रभाव:
पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ी।
लोकतंत्र अधिक सहभागी बना।
सरकारें जनभावनाओं के प्रति संवेदनशील हुईं।
(घ) निष्कर्ष:
मीडिया और नागरिक समाज लोकतंत्र के प्रहरी हैं। उन्होंने शासन को उत्तरदायी, पारदर्शी और जनकेंद्रित बनाया।

🔶 प्रश्न 28 — 1989 के बाद धर्मनिरपेक्षता का स्वरूप
🟢 उत्तर:
1️⃣ परिवर्तन की पृष्ठभूमि:
1989 के बाद बाबरी मस्जिद विवाद, शाहबानो प्रकरण और साम्प्रदायिक राजनीति के कारण धर्मनिरपेक्षता राजनीति के केंद्र में आ गई।
2️⃣ राजनीतिक परिवर्तन:
धर्म आधारित दलों का उभार (जैसे भाजपा)।
धर्मनिरपेक्षता पर राजनीतिक विमर्श गहराया।
3️⃣ संवैधानिक परिप्रेक्ष्य:
सर्वोच्च न्यायालय ने धर्मनिरपेक्षता को संविधान की मूल संरचना बताया।
सभी धर्मों के समान सम्मान और समान दूरी का सिद्धान्त स्थापित हुआ।
4️⃣ चुनौतियाँ:
साम्प्रदायिक तनाव और ध्रुवीकरण बढ़ा।
मतों का ध्रुवीकरण — चुनावी राजनीति पर असर।
5️⃣ सकारात्मक पक्ष:
धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा हुई।
धर्मनिरपेक्षता की नयी व्याख्या — सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता।
निष्कर्ष:
धर्मनिरपेक्षता भारतीय राजनीति का मूल मूल्य बनी रही, यद्यपि इसकी व्याख्या और व्यवहार में विविधता दिखी।

🔶 प्रश्न 29 — 1990 के दशक में उभरे प्रमुख राजनीतिक मुद्दे
🟢 उत्तर:
1️⃣ मंडल आयोग का मुद्दा:
सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधित्व की मांग राजनीतिक विमर्श का मुख्य केंद्र बनी।
2️⃣ बाबरी मस्जिद विवाद:
धर्मनिरपेक्षता, अल्पसंख्यक अधिकारों और राष्ट्रीय एकता पर बहस गहराई।
3️⃣ आर्थिक उदारीकरण:
विकास, निवेश, रोजगार और निजीकरण के मुद्दे सामने आए।
4️⃣ गठबंधन सरकारों की स्थिरता:
नीतिगत निरंतरता और साझा निर्णय प्रक्रिया नई चुनौती बनी।
5️⃣ क्षेत्रीय अस्मिता और स्वायत्तता:
राज्यों की मांगें — अधिक अधिकार, संसाधनों पर नियंत्रण।
निष्कर्ष:
इन मुद्दों ने भारतीय राजनीति को सामाजिक, आर्थिक और वैचारिक रूप से पुनर्परिभाषित किया।

🔶 प्रश्न 30 — 1989 के बाद लोकतंत्र को सशक्त बनाने वाले प्रमुख तत्व
🟢 उत्तर:
1️⃣ गठबंधन राजनीति:
विविध विचारों की साझेदारी से नीति-निर्माण अधिक परामर्शात्मक बना।
2️⃣ क्षेत्रीय दलों की भूमिका:
राज्यों की आकांक्षाएँ राष्ट्रीय मंच पर आईं।
3️⃣ मीडिया और नागरिक समाज:
लोकतंत्र में पारदर्शिता और जनजवाबदेही बढ़ी।
4️⃣ न्यायपालिका की सक्रियता:
जनहित याचिकाएँ, मानवाधिकार संरक्षण, संविधान की व्याख्या।
5️⃣ सूचना क्रांति:
जनता और शासन के बीच संवाद का पुल बना।
निष्कर्ष:
1989 के बाद भारतीय लोकतंत्र अधिक सहभागी, उत्तरदायी और जनकेंद्रित हुआ। यह अब एक विविधतापूर्ण परामर्शात्मक शासन प्रणाली बन चुका है।

————————————————————————————————————————————————————————————————————————————

Leave a Reply