Class 12 : हिंदी साहित्य – अध्याय 10.रामचंद्र शुक्ल
संक्षिप्त लेखक परिचय
रामचंद्र शुक्ल का जीवन एवं लेखक परिचय
आचार्य रामचंद्र शुक्ल (1884-1941) हिंदी साहित्य के महानतम् आलोचक, निबंधकार और साहित्य इतिहासकार थे। उनका जन्म 4 अक्टूबर 1884 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अगोना नामक गांव में हुआ था। इनके पिता श्री चंद्रबली शुक्ल मिर्जापुर में सदर कानूनगो के पद पर कार्यरत थे।
शुक्ल जी की शिक्षा केवल इंटरमीडिएट तक ही हुई थी, परंतु स्वाध्याय से उन्होंने हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, बंगला, उर्दू और फारसी भाषाओं में प्रवीणता प्राप्त की। वे 1919 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक नियुक्त हुए और 1937 में हिंदी विभागाध्यक्ष बने। उनकी मुख्य कृतियों में ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’, ‘चिंतामणि’, ‘रस मीमांसा’ और ‘हिंदी शब्द सागर’ का संपादन शामिल है। 2 फरवरी 1941 को हृदयगति रुक जाने से उनका निधन हो गया।
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन

प्रेमघन की छाया-स्मृति: आचार्य रामचंद्र शुक्ल का संस्मरणात्मक निबंध
लेखक परिचय
आचार्य रामचंद्र शुक्ल (1884-1941) हिंदी साहित्य के महानतम आलोचक, निबंधकार और इतिहासकार थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अगोना ग्राम में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा उर्दू, अंग्रेजी और फारसी में हुई, किंतु बाद में स्वाध्याय से उन्होंने संस्कृत, हिंदी, बांग्ला आदि भाषाओं में प्रवीणता हासिल की। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे और ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ जैसी कालजयी रचनाएं दीं।
प्रेमघन का जीवन परिचय
बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ (1855-1923) भारतेंदु युग के प्रमुख कवि और साहित्यकार थे। इनका जन्म 1 सितंबर 1855 को उत्तर प्रदेश के दत्तापुर गांव में हुआ था। भारतेंदु हरिश्चंद्र के निकट मित्र और सहयोगी होने के कारण ये भारतेंदु मंडल के प्रमुख सदस्य माने जाते हैं। प्रेमघन ने ‘आनंदकादंबिनी’ मासिक पत्रिका और ‘नागरी नीरद’ साप्ताहिक पत्र का संपादन किया। इनकी प्रमुख काव्य रचनाएं ‘जीर्ण जनपद’, ‘भारत सौभाग्य’, ‘प्रयाग रामागमन’ आदि हैं।
पाठ का सारांश
यह संस्मरणात्मक निबंध आचार्य शुक्ल के बचपन की स्मृतियों पर आधारित है, जिसमें वे अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत और प्रेमघन जी से पहली मुलाकात का वर्णन करते हैं।
पारिवारिक पृष्ठभूमि: शुक्ल जी के पिता फारसी के अच्छे ज्ञाता और पुरानी हिंदी कविता के प्रेमी थे। वे फारसी और हिंदी कवियों की उक्तियों को मिलाकर प्रस्तुत करते थे तथा रामचरितमानस और रामचंद्रिका का सुंदर पाठ करते थे। भारतेंदु जी के नाटक उन्हें विशेष प्रिय थे।
भारतेंदु के प्रति मोह: बचपन में ही शुक्ल जी के मन में भारतेंदु हरिश्चंद्र के प्रति अपूर्व मधुर भावना जाग गई थी। वे ‘सत्यहरिश्चंद्र’ नाटक के नायक राजा हरिश्चंद्र और कवि हरिश्चंद्र में अंतर नहीं कर पाते थे। ‘हरिश्चंद्र’ शब्द से उनके मन में माधुर्य का संचार होता था।
प्रेमघन की पहली झलक: मिर्जापुर पहुंचने पर शुक्ल जी को पता चला कि भारतेंदु के मित्र बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ वहां रहते हैं। बालकों की मंडली के साथ वे प्रेमघन जी के घर गए। ऊपरी बरामदे में लताओं के बीच खड़े प्रेमघन की झलक पाई – दोनों कंधों पर बाल बिखरे हुए थे और एक हाथ खंभे पर टिका था। यह उनकी पहली झलक थी।
साहित्यिक विकास: उम्र बढ़ने के साथ शुक्ल जी का हिंदी साहित्य के प्रति झुकाव बढ़ता गया। हिंदी प्रेमियों की मंडली मिली जिसमें काशीप्रसाद जायसवाल, भगवानदास हालना, बदरीनाथ गौड़ आदि शामिल थे। वे ‘निस्संदेह’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते थे इसलिए उन्हें ‘निस्संदेह लोग’ कहा जाने लगा।
प्रेमघन का व्यक्तित्व: प्रेमघन एक खासे हिंदुस्तानी रईस थे। उनके यहां बसंत पंचमी, होली आदि अवसरों पर धूमधाम से उत्सव होते थे। उनकी बातचीत में विलक्षण वक्रता होती थी। वे लोगों को चकमा देने में माहिर थे और लोग भी उन्हें चकमा देने की फिक्र में रहते थे। उनकी भाषा में ‘क्यों साहब’ अक्सर लगता रहता था।
मुख्य संदेश
यह संस्मरण हिंदी साहित्य के भारतेंदु युग की झलक प्रस्तुत करता है तथा एक महान आलोचक के साहित्यिक संस्कारों के निर्माण की कहानी कहता है। यह दिखाता है कि कैसे बचपन की छोटी-सी मुलाकात भी व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। पाठ में भारतेंदु युग के साहित्यिक वातावरण, लेखकों के व्यक्तित्व और तत्कालीन समाज की संस्कृति का जीवंत चित्रण मिलता है।
इस प्रकार ‘प्रेमघन की छाया-स्मृति’ न केवल व्यक्तिगत संस्मरण है बल्कि भारतेंदु युग के साहित्यिक परिवेश का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज भी है जो हिंदी साहित्य के इतिहास को समझने में सहायक है।
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
🔷 प्रश्न 1:
लेखक ने अपने पिता जी की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
✅ उत्तर:
लेखक ने अपने पिता जी के विषय में विशेष रूप से उनकी सादगी, सेवा-भावना, साहित्य-प्रेम, विद्वत्ता, आत्म-संयम तथा मर्यादा का उल्लेख किया है। वे नितांत सरल स्वभाव के व्यक्ति थे और अपने व्यवहार में अत्यंत विनम्र एवं शालीन रहते थे। उनका जीवन सादगी और भारतीय संस्कृति की मर्यादाओं का प्रत्यक्ष उदाहरण था।
🔷 प्रश्न 2:
बचपन में लेखक के मन में भारतेन्दु जी के संबंध में कैसी भावना जगी रहती थी?
✅ उत्तर:
लेखक के मन में बचपन से ही भारतेन्दु जी के प्रति अत्यंत श्रद्धा, भक्ति और सम्मोहन की भावना थी। वे भारतेन्दु जी को हिन्दी साहित्य के महान पथ-प्रदर्शक और साहित्यिक चेतना के अग्रदूत के रूप में देखते थे। लेखक का ह्रदय भारतेन्दु जी की प्रतिभा और साहित्यिक योगदान के प्रति आदर से ओत-प्रोत रहता था।
🔷 प्रश्न 3:
उपाध्याय बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ की पहली झलक लेखक ने किस प्रकार देखी?
✅ उत्तर:
लेखक ने ‘प्रेमघन’ जी की पहली झलक एक साहित्यिक गोष्ठी में देखी थी। लेखक ने उन्हें बड़े आदर एवं सम्मान के साथ देखा। उनका व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक, विद्वतापूर्ण तथा साहित्यिक वातावरण से पूर्ण था। उनकी वाणी में माधुर्य और व्यवहार में आत्मीयता थी, जिससे लेखक अत्यधिक प्रभावित हुआ।
🔷 प्रश्न 4:
लेखक का हिन्दी साहित्य के प्रति झुकाव किस तरह बढ़ता गया?
✅ उत्तर:
लेखक का हिन्दी साहित्य के प्रति झुकाव उनके बाल्यकाल से ही प्रारंभ हो गया था। लेखकीय परिवेश, साहित्यिक व्यक्तित्वों का सत्संग, साहित्यिक गोष्ठियों में सहभागिता और पठन-पाठन की रुचि ने इसे दिन-प्रतिदिन गहरा किया। प्रेमघन जी जैसे विद्वानों का सान्निध्य भी लेखक के साहित्य प्रेम को पुष्ट करता गया।
🔷 प्रश्न 5:
‘निस्संदेह’ शब्द को लेकर लेखक ने किस प्रसंग का ज़िक्र किया है?
✅ उत्तर:
लेखक ने ‘निस्संदेह’ शब्द का उल्लेख करते हुए यह प्रसंग लिखा है कि एक गोष्ठी में ‘प्रेमघन’ जी ने यह शब्द अपने वक्तव्य में कई बार प्रयोग किया था। इस शब्द के बार-बार प्रयोग से लेखक को इसका अर्थ समझने में रुचि उत्पन्न हुई और शब्दों के प्रति उसकी संवेदनशीलता भी बढ़ी। इस प्रसंग से लेखक की शब्दों के प्रति सजग दृष्टि का पता चलता है।
🔷 प्रश्न 6:
पाठ में कुछ रोचक घटनाओं का उल्लेख है। ऐसी तीन घटनाएँ चुनकर उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
✅ उत्तर:
(1) लेखक का भारतेन्दु जी के मकान के नीचे जाकर उनके बारे में जानकारी प्राप्त करना।
(2) ‘प्रेमघन’ जी का लेखक के घर आना और उनकी वाणी की मधुरता से सबको प्रभावित करना।
(3) ‘निस्संदेह’ शब्द के प्रयोग का रोचक प्रसंग, जिससे लेखक को नई शब्दावली समझने की प्रेरणा मिली।
🔷 प्रश्न 7:
‘इस पुस्तक की दृष्टि में प्रेम और कौतूहल का अद्भुत मिश्रण रहता था।’ यह कथन किसके संदर्भ में कहा गया है और क्यों? स्पष्ट कीजिए।
✅ उत्तर:
यह कथन ‘प्रेमघन’ जी के संदर्भ में कहा गया है। उनके स्वभाव में प्रेम, कोमलता, मधुर व्यवहार और साथ ही साथ यथास्थान कटाक्ष एवं हास्य-विनोद का समावेश रहता था। वे सहज भाव से प्रेमपूर्ण व्यवहार करते थे, किंतु जब आवश्यक हो तो व्यंग्यात्मक टिप्पणी करने में भी पीछे नहीं रहते थे। इसीलिए लेखक ने यह कथन उनके लिए कहा है।
🔷 प्रश्न 8:
प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने चौधरी साहब के व्यक्तित्व के किन-किन पहलुओं को उजागर किया है?
✅ उत्तर:
लेखक ने चौधरी बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ के व्यक्तित्व के अनेक पहलुओं को उजागर किया है—
➤ उनकी विनम्रता
➤ मधुर और रोचक भाषाशैली
➤ गम्भीर साहित्यिक समझ
➤ हास्य-व्यंग्य की प्रवृत्ति
➤ बालकों के प्रति स्नेहशील स्वभाव
➤ हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति गहरी निष्ठा
🔷 प्रश्न 9:
सम्प्रदाय हिन्दी प्रेमियों की मण्डली में कौन-कौन से लेखक मुख्य थे?
✅ उत्तर:
इस मण्डली में मुख्य रूप से भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बालकृष्ण भट्ट, राधाचरण गोस्वामी, बाबू गंगाप्रसाद, ठाकुर लक्ष्मण सिंह तथा प्रेमघन जी जैसे साहित्यकार सम्मिलित थे। ये सभी हिन्दी के उत्कट साधक, रचनाकार और प्रबुद्ध विचारक थे।
🔷 प्रश्न 10:
‘भारतेन्दु जी के मकान के नीचे का यह हृदय-परिचय बहुत शीघ्र गहरी मित्रता में परिणत हो गया।’ कथन का आधार स्पष्ट कीजिए।
✅ उत्तर:
लेखक जब भारतेन्दु जी के मकान के नीचे आया और वहाँ के साहित्यिक वातावरण को देखा, तो उसका हृदय उनसे अपने आप जुड़ गया। यह आत्मीयता और स्नेह धीरे-धीरे गहरी मित्रता में बदल गई। उस साहित्यिक वातावरण, प्रेम और सहृदयता ने लेखक को आंतरिक रूप से बाँध लिया और उसी से इस कथन का आधार सिद्ध होता है।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🔷 प्रश्न 1: लेखक के पिता जी किस क्षेत्र में विशेष रूचि रखते थे?
(A) राजनीति
(B) संगीत
(C) साहित्य
(D) चित्रकला
✅ उत्तर: (C) साहित्य
🔷 प्रश्न 2: लेखक ने ‘प्रेमघन’ जी को पहली बार कहाँ देखा था?
(A) पुस्तक मेले में
(B) भारतेन्दु जी के मकान पर
(C) साहित्यिक गोष्ठी में
(D) विद्यालय में
✅ उत्तर: (C) साहित्यिक गोष्ठी में
🔷 प्रश्न 3: ‘प्रेमघन’ जी के स्वभाव में कौन-सा गुण नहीं था?
(A) कटाक्ष
(B) अहंकार
(C) प्रेमभावना
(D) हास्य-विनोद
✅ उत्तर: (B) अहंकार
🔷 प्रश्न 4: ‘निस्संदेह’ शब्द लेखक ने किसके प्रयोग से सीखा?
(A) पिता जी
(B) भारतेन्दु जी
(C) प्रेमघन जी
(D) स्वयं पुस्तक से
✅ उत्तर: (C) प्रेमघन जी
🔷 प्रश्न 5: लेखक के साहित्यिक झुकाव का मुख्य कारण क्या था?
(A) अंग्रेज़ी शिक्षा
(B) पारिवारिक पृष्ठभूमि
(C) भारतेन्दु युगीन प्रभाव
(D) विद्यालय के शिक्षक
✅ उत्तर: (C) भारतेन्दु युगीन प्रभाव
🔷 प्रश्न 6: लेखक के पिता जी किस प्रकार के स्वभाव के व्यक्ति थे?
✅ उत्तर:
लेखक के पिता जी सादा जीवन जीने वाले, सेवा-भावना से पूर्ण, विद्वान एवं साहित्यप्रेमी व्यक्ति थे।
🔷 प्रश्न 7: लेखक ने ‘प्रेमघन’ जी के किस व्यवहार से सबसे अधिक प्रभावित हुआ?
✅ उत्तर:
लेखक ‘प्रेमघन’ जी की मधुर वाणी, विनम्र व्यवहार और गम्भीर साहित्यिक दृष्टिकोण से अत्यधिक प्रभावित हुआ।
🔷 प्रश्न 8: लेखक को हिन्दी साहित्य के प्रति आकर्षण कब और कैसे हुआ?
✅ उत्तर:
बाल्यावस्था में ही लेखक को भारतेन्दु युगीन वातावरण एवं साहित्यिक गोष्ठियों के कारण हिन्दी साहित्य के प्रति गहरा आकर्षण हुआ।
🔷 प्रश्न 9: ‘प्रेमघन’ जी के हास्य का स्वरूप कैसा था?
✅ उत्तर:
उनका हास्य सरल, विनम्र और कहीं-कहीं व्यंग्यात्मक होता था, किन्तु कभी कटु नहीं होता था।
🔷 प्रश्न 10: लेखक के अनुसार ‘प्रेमघन’ जी का व्यक्तित्व किस प्रकार का था?
✅ उत्तर:
प्रेम, सरलता, आत्मीयता, साहित्यिक गम्भीरता और हास्य-विनोद से परिपूर्ण उनका व्यक्तित्व था।
🔷 प्रश्न 11: लेखक ने ‘प्रेमघन’ जी के साहित्य के प्रति दृष्टिकोण का वर्णन कैसे किया है?
✅ उत्तर:
लेखक के अनुसार ‘प्रेमघन’ जी साहित्य को समाज और संस्कृति का दर्पण मानते थे। वे भाषा और विचार की शुद्धता के पक्षधर थे तथा उन्होंने साहित्य को मानव-मूल्यों से जोड़कर देखा।
🔷 प्रश्न 12: लेखक के अनुसार भारतेन्दु जी के मकान का क्या महत्व था?
✅ उत्तर:
भारतेन्दु जी का मकान साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र था, जहाँ लेखकों, कवियों और विद्वानों का सतत आवागमन होता था। इसी ने लेखक के भीतर साहित्य के प्रति आदर और प्रेरणा उत्पन्न की।
🔷 प्रश्न 13: लेखक ने ‘प्रेमघन’ जी के हास्य और प्रेम के मिश्रण को क्यों विशेष बताया?
✅ उत्तर:
क्योंकि ‘प्रेमघन’ जी का स्वभाव अत्यन्त संतुलित था — वे जहाँ प्रेमभावना से सबका मन मोहते थे, वहीं आवश्यकता पड़ने पर उचित स्थान पर हास्य या व्यंग्य का भी प्रयोग करते थे।
🔷 प्रश्न 14: लेखक ने किस प्रकार ‘निस्संदेह’ शब्द के प्रति अपनी जागरूकता दिखाई?
✅ उत्तर:
‘प्रेमघन’ जी के बार-बार ‘निस्संदेह’ शब्द के प्रयोग से लेखक ने उस शब्द को समझने और सही संदर्भ में प्रयोग करने की सजगता विकसित की।
🔷 प्रश्न 15: इस संस्मरण से हमें हिन्दी साहित्य की कौन-सी शिक्षा मिलती है?
✅ उत्तर:
इस पाठ से यह शिक्षा मिलती है कि हिन्दी साहित्य केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि समाज, संस्कृति, प्रेम और मानवीय संवेदनाओं का माध्यम है। लेखक और साहित्यकारों का सत्संग व्यक्ति के भीतर साहित्यिक चेतना जाग्रत करता है।
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