Class 12, HINDI LITERATURE

Class 12 : हिंदी साहित्य – अध्याय 1.जयशंकर प्रसाद


संक्षिप्त लेखक परिचय



छायावाद के स्तम्भ जयशंकर प्रसाद के इन दो अमर गीतों में मानवीय संवेदनाओं की गहन अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। यह पाठ NCERT की कक्षा 12वीं की हिंदी पुस्तक “अंतरा भाग-2” से लिया गया है। पहला गीत ‘देवसेना का गीत’ प्रसाद के प्रसिद्ध नाटक ‘स्कंदगुप्त’ से लिया गया है, जबकि दूसरा गीत ‘कार्नेलिया का गीत’ ‘चंद्रगुप्त’ नाटक से संकलित है।

पहला गीत: देवसेना का गीत


कथानक पृष्ठभूमि
देवसेना मालवा के राजा बंधुवर्मा की बहन थी। हूणों के आक्रमण में उसका संपूर्ण परिवार वीरगति को प्राप्त हुआ। देवसेना स्कंदगुप्त से प्रेम करती थी, परंतु स्कंदगुप्त मालवा के धनकुबेर की कन्या विजया से प्रेम करता था। जीवन के अंतिम दिनों में जब स्कंदगुप्त देवसेना से विवाह का प्रस्ताव करता है, तो देवसेना इसे अस्वीकार करती है और अपनी पीड़ा इस गीत के रूप में व्यक्त करती है।

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन

पद्यांश व्याख्या
प्रथम छंद
आह! वेदना मिली विदाई!
मैंने भ्रम-वश जीवन संचित,
मधुकरियों की भीख लुटाई।
इस छंद में देवसेना अपने जीवन की दुखद परिस्थितियों का चित्रण करती है। “आह! वेदना मिली विदाई” में भावनाओं की तीव्रता दिखाई गई है। देवसेना कहती है कि भ्रम में रहकर उसने जो जीवन भर आशाएं और अभिलाषाएं संचित की थीं, उन्हें अब भिक्षा के रूप में लुटाना पड़ा है। “मधुकरियों की भीख” से तात्पर्य उसकी जीवन भर की चाहनाओं और आकांक्षाओं से है।

द्वितीय छंद
छलछल थे संध्या के श्रमकण,
आंसू-से गिरते थे प्रतिक्षण।
मेरी यात्रा पर लेती थी-
नीरवता अनंत अंगड़ाई।
यहां प्रकृति को मानवीकृत किया गया है। “छलछल” की पुनरुक्ति से आंसुओं की निरंतर धारा का चित्रण है। देवसेना के जीवन रूपी यात्रा में केवल निःशब्दता और एकाकीपन ही साथी रहे हैं। “अनंत अंगड़ाई” से जीवन की निरंतरता में व्याप्त निराशा का भाव स्पष्ट होता है।

तृतीय छंद
श्रमित स्वप्न की मधुमाया में,
गहन-विपिन की तरु-छाया में,
पथिक उनींदी श्रुति में किसने-
यह विहाग की तान उठाई।
इस छंद में “विहाग” राग का प्रयोग अर्धरात्रि में गाए जाने वाले गीत के लिए किया गया है। जब देवसेना थके हुए सपनों की मधुरता में डूबी थी, तब किसी ने (स्कंदगुप्त ने) प्रेम का गीत सुनाया। परंतु अब यह गीत उसे व्यर्थ लगता है क्योंकि समय निकल चुका है।

चतुर्थ छंद
लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी,
रही बचाए फिरती कबकी।
मेरी आशा आह! बावली,
तूने खो दी सकल कमाई।
देवसेना अपने सौंदर्य के कारण लोगों की लालसा भरी दृष्टि से बचती रही। वह अपनी आशा को “बावली” (पागल) कहती है क्योंकि इस आशा के कारण उसने अपने जीवन की सारी पूंजी खो दी। यहां आत्मालाप की भावना दिखाई गई है।

पंचम छंद
चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर,
प्रलय चल रहा अपने पथ पर।
मैंने निज दुर्बल पद-बल पर,
उससे हारी-होड़ लगाई।
जीवन में प्रलय की स्थिति का अत्यंत मार्मिक चित्रण है। देवसेना कहती है कि उसके जीवन-रथ पर विनाश सवार होकर चल रहा है। अपनी कमजोर शक्ति से उसने इस विनाश से मुकाबला किया परंतु हार गई।

षष्ठ छंद
लौटा लो यह अपनी थाती
मेरी करुणा हा-हा खाती
विश्व! न सँभलेगी यह मुझसे
इससे मन की लाज गँवाई।
अंतिम छंद में देवसेना संसार से अपनी करुणा वापस लेने की प्रार्थना करती है। वह कहती है कि यह करुणा अब उससे संभली नहीं जा रही और इससे उसके मन की लज्जा भी चली गई है।

दूसरा गीत: कार्नेलिया का गीत


कथानक पृष्ठभूमि
कार्नेलिया सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस की पुत्री है। सिंधु के किनारे ग्रीक शिविर के पास वृक्ष के नीचे बैठी हुई वह भारत की प्राकृतिक सुंदरता से प्रभावित होकर यह गीत गाती है।

पद्यांश व्याख्या
प्रथम छंद
अरुण यह मधुमय देश हमारा!
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
“अरुण” से प्रातःकालीन सूर्य की लालिमा का संकेत है। कार्नेलिया भारत को “मधुमय देश” कहती है क्योंकि यहां की संस्कृति में मिठास और प्रेम भरा है। “अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा” से भारत की शरणागत-वत्सलता का परिचय मिलता है। यहां आने वाले अजनबी व्यक्ति को भी आश्रय मिलता है।

द्वितीय छंद
सरस तामरस गर्भ विभा पर-नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर-मंगल कुंकुम सारा!
“सरस तामरस गर्भ विभा” से तालाबों में खिले कमल की सुंदरता का वर्णन है। सूर्य की किरणों से पेड़ों की चोटियां मनोहर लग रही हैं। “छिटका जीवन हरियाली पर” से प्रकृति में व्याप्त जीवंतता का चित्रण है। “मंगल कुंकुम” से शुभता और समृद्धि का भाव प्रकट होता है।

तृतीय छंद
लघु सुरधनु से पंख पसारे-शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए-समझ नीड़ निज प्यारा।
“लघु सुरधनु” इंद्रधनुष के समान रंग-बिरंगे पंखों वाले पक्षियों का चित्रण है। “मलय समीर” दक्षिणी हवा है जो सुगंध लेकर आती है। पक्षी अपने प्यारे घोंसले की दिशा में उड़ रहे हैं, जो स्वदेश प्रेम का प्रतीक है।

चतुर्थ छंद
बरसाती आँखों के बादल-बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकराती अनंत की-पाकर जहाँ किनारा।
“बरसाती आँखों के बादल” करुणा से भरे आंसुओं का काव्यात्मक चित्रण है। भारतीयों के हृदय में करुणा का भाव भरा है। “लहरें टकराती अनंत की” से समुद्र की लहरों का चित्रण है जो तट पर आकर शांत हो जाती हैं।

पंचम छंद
हेम कुंभ ले उषा सवेरे-भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मदिर उँघते रहते जब-जगकर रजनी भर तारा।
“हेम कुंभ” स्वर्ण कलश को दर्शाता है। प्रातःकाल उषा सुख रूपी अमृत से भरे कलश को ढुलकाती है। “मदिर उँघते रहते” से मादक नींद का वर्णन है। तारे रात भर जगकर फिर सुबह सो जाते हैं।

काव्य-सौंदर्य एवं भाषा-शैली
देवसेना का गीत में काव्य-सौंदर्य
छायावादी शैली का प्रयोग इस गीत की मुख्य विशेषता है। तत्सम प्रधान खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग किया गया है। अलंकारों की दृष्टि से “छलछल” में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार, “आंसू-से” में उपमा अलंकार, और “अनंत अंगड़ाई” में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।

वियोग शृंगार और करुण रस का प्रभावी चित्रण इस गीत में दिखाई देता है। स्मृति बिंब का प्रयोग भी उल्लेखनीय है। गीत छंद मुक्त और तुकांत है।

कार्नेलिया का गीत में काव्य-सौंदर्य
इस गीत में प्रकृति चित्रण की अद्भुत छटा दिखाई देती है। “हेम कुंभ ले उषा सवेरे-भरती ढुलकाती सुख मेरे” में मानवीकरण अलंकार का सुंदर प्रयोग है। तारों और उषा का मानवीकरण भी उल्लेखनीय है।

भारत की सांस्कृतिक महत्ता का चित्रण इस गीत की विशेषता है। यहां भारत को ज्ञान और आध्यात्म का केंद्र दिखाया गया है।

मुख्य विषय एवं संदेश
देवसेना का गीत का मुख्य संदेश
यह गीत जीवन में निराशा और भ्रम की स्थिति को दर्शाता है। व्यर्थ के प्रयासों और खोई हुई आशाओं का मार्मिक चित्रण किया गया है। देवसेना का चरित्र त्याग, समर्पण और आत्मसम्मान का प्रतीक है।

कार्नेलिया का गीत का मुख्य संदेश
इस गीत में भारत की शरणागत-वत्सलता और सांस्कृतिक समृद्धता का चित्रण है। प्रकृति के साथ मानव का सामंजस्य दिखाया गया है। भारत को “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना का प्रतीक बताया गया है।

साहित्यिक महत्व
ये दोनों गीत छायावादी काव्य के उत्कृष्ट नमूने हैं। जयशंकर प्रसाद ने इनमें मानवीय संवेदनाओं की गहरी अभिव्यक्ति की है। देवसेना का गीत व्यक्तिगत वेदना का प्रतीक है जबकि कार्नेलिया का गीत राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है।

प्रसाद जी की दार्शनिक चेतना इन गीतों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। भारतीय संस्कृति के प्रति गहरा अनुराग और नारी के आदर्श स्वरूप का चित्रण इन गीतों की विशेषता है।

इस प्रकार ये दोनों गीत हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने प्रसाद जी के समय में थे।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1: “मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई”‐ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति में देवसेना की वेदना का परिचय मिलता है। वह स्कंदगुप्त से प्रेम कर बैठती है परन्तु स्कंदगुप्त के हृदय में उसके लिए कोई स्थान नहीं है। जब देवसेना को इस सत्य का पता चलता है, तो उसे बहुत दुख होता है। वह स्कंदगुप्त को छोड़कर चली जाती है। उन्हीं बीते पलों को याद करते हुए वह कह उठती है कि मैंने प्रेम के भ्रम में अपनी जीवन भर की अभिलाषाओं रूपी भिक्षा को लुटा दिया है। अब मेरे पास अभिलाषाएँ बची ही नहीं है।

प्रश्न 2: कवि ने आशा को बावली क्यों कहा है?

उत्तर: ‘आशा’ बहुत बलवती होती है परन्तु इसके साथ ही वह बावली भी होती है। आशा यदि डूबे हुए को सहारा देती है, तो उसे बावला भी कर देती है। प्रेम में तो आशा बहुत अधिक बावली होती है। वह जिसे प्रेम करता है, उसके प्रति हज़ारों सपने बुनता है। फिर उसका प्रेमी उसे प्रेम करे या न करे। वह आशा के सहारे सपनों में तैरता रहता है। यही कारण है कि आशा बावली होती है।

प्रश्न 3: “मैंने निज दुर्बल….. होड़ लगाई” इन पंक्तियों में ‘दुर्बल पद बल’ और ‘हारी होड़’ में निहित व्यंजना स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: ‘दुर्बल पद बल’ देवसेना के बल की सीमा का ज्ञान कराता है। अर्थात देवसेना अपने बल की सीमा को बहुत भली प्रकार से जानती है। उसे पता है कि वह बहुत दुर्बल है। इसके बाद भी वह अपने भाग्य से लड़ रही है। ‘होड़ लगाई’ पंक्ति में निहित व्यंजना देवसेना की लगन को दर्शाता है। देवसेना भली प्रकार से जानती है कि प्रेम में उसे हार ही प्राप्त होगी परन्तु इसके बाद भी पूरी लगन के साथ प्रलय (हार) का सामना करती है।

प्रश्न 4: काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-

(क) श्रमित स्वप्न की मधुमाया ……… तान उठाई।

(ख) लौटा लो …………………….. लाज गँवाई।

उत्तर:

(क) इस काव्यांश की विशेषता है कि इसमें स्मृति बिंब बिखरा पड़ा है। देवसेना स्मृति में डूबी हुई है। उसे वे दिन स्मरण हो आते हैं, जब उसने प्रेम को पाने के लिए अथक प्रयास किए थे परन्तु वह असफल रही। अब उसे अचानक उसी प्रेम का स्वर सुनाई पड़ रहा है। विहाग राग का उल्लेख किया गया है जो आधी रात में गाया जाता है। इन पंक्तियों के मध्य देवसेना की असीम वेदना स्पष्ट रूप से दिखती है।

(ख) इस काव्यांश की विशेषता है कि इसमें देवसेना की निराशा से युक्त हतोत्साहित मनोस्थिति का पता चलता है। स्कंदगुप्त का प्रेम वेदना बनकर उसे प्रताड़ित कर रहा है। ‘हा-हा’ शब्द पुनरुक्ति प्रकाश अंलकार का उदाहरण है।

प्रश्न 5: देवसेना की हार या निराशा के क्या कारण हैं?

उत्तर: सम्राट स्कंदगुप्त से राजकुमारी देवसेना प्रेम करती थी। उसने अपने प्रेम को पाने के लिए बहुत प्रयास किए। परन्तु उसे पाने में उसके सारे प्रयास असफल सिद्ध हुए। यह उसके लिए घोर निराशा का कारण था। वह इस संसार में बंधु-बांधवों रहित हो गई थी। पिता पहले ही मृत्यु की गोद में समा चुके थे तथा भाई भी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ था। वह दर-दर भिक्षा माँगकर गुजरा कर रही थी। उसे प्रेम का ही सहारा था परन्तु उसने भी उसे स्वीकार नहीं किया था।

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न


प्रश्न 1: कार्नेलिया का गीत कविता में प्रसाद ने भारत की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया है?

उत्तर: प्रसाद जी ने भारत की इन विशेषताओं की ओर संकेत किया है:

भारत पर सूर्य की किरण सबसे पहले पहुँचती है

यहाँ पर किसी अपरिचित व्यक्ति को भी घर में प्रेमपूर्वक रखा जाता है

यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत और आकर्षक है

यहाँ के लोग दया, करुणा और सहानुभूति भावनाओं से भरे हुए हैं

भारत की संस्कृति महान है

प्रश्न 2: ‘उड़ते खग’ और ‘बरसाती आँखों के बादल’ में क्या विशेष अर्थ व्यंजित होता है?

उत्तर: ‘उड़ते खग’ में अप्रवासी लोगों का विशेष अर्थ व्यंजित होता है। कवि के अनुसार जिस देश में बाहर से पक्षी आकर आश्रय लेते हैं, वह हमारा देश भारत है। अर्थात भारत बाहर से आने वाले लोगों को आश्रय देता है। ‘बरसाती आँखों के बादल’ पंक्ति से विशेष अर्थ यह व्यंजित होता है कि भारतीय अनजान लोगों के दुख में भी दुखी हो जाते हैं। वह दुख आँखों में आँसू के रूप में निकल पड़ता है।

प्रश्न 3: काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
हेम कुंभ ले उषा सवेरे-भरती ढुलकाती सुख मेरे
मदिर ऊँघते रहते सब-जगकर रजनी भर तारा।

उत्तर: प्रस्तुत काव्यांश में उषा का मानवीकरण कर उसे पानी भरने वाली स्त्री के रूप में चित्रित किया गया है। कविता के अनुसार भोर रूपी स्त्री अपने सूर्य रूपी सुनहरे घड़े से आकाश रूपी कुएँ से मंगल पानी भरकर लोगों के जीवन में सुख के रूप में लुढ़का जाती है। तारें ऊँघने लगते हैं। उषा तथा तारे का मानवीकरण करने से मानवीकरण अलंकार है। ‘जब-जगकर’ में अनुप्रास अलंकार है। हेम कुंभ में रूपक अलंकार है।

प्रश्न 4: ‘जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा’- पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इसका तात्पर्य है कि भारत जैसे देश में अजनबी लोगों को भी आश्रय मिल जाता है, जिनका कोई आश्रय नहीं होता है। कवि ने भारत की विशालता का वर्णन किया है। उसके अनुसार भारत की संस्कृति और यहाँ के लोग बहुत विशाल हृदय के हैं। यहाँ पर पक्षियों को ही आश्रय नहीं दिया जाता बल्कि बाहर से आए अजनबी लोगों को भी सहारा दिया जाता है।

प्रश्न 5: कविता में व्यक्त प्रकृति-चित्रों को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर: प्रसाद जी के अनुसार भारत देश बहुत सुंदर और प्यारा है। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है। यहाँ सूर्योदय का दृश्य बड़ा मनोहारी होता है। सूर्य के प्रकाश में सरोवर में खिले कमल तथा वृक्षों का सौंदर्य मन को हर लेता है। ऐसा लगता है मानो यह प्रकाश कमल पत्तों पर तथा वृक्षों की चोटियों पर क्रीड़ा कर रहा हो। भोर के समय सूर्य के उदित होने के कारण चारों ओर फैली लालिमा बहुत मंगलकारी होती है। मलय पर्वत की शीतल वायु का सहारा पाकर अपने छोटे पंखों से उड़ने वाले पक्षी आकाश में सुंदर इंद्रधनुष का सा जादू उत्पन्न करते हैं।

योग्यता विस्तार प्रश्न
इस पाठ में कुछ अतिरिक्त प्रश्न भी हैं जो छात्रों की समझ को और गहरा बनाने के लिए दिए गए हैं। इनमें कविता में आए प्रकृति-चित्रों को छाँटना, भोर के दृश्य को काव्यात्मक शैली में लिखना, और जयशंकर प्रसाद की अन्य रचनाओं को पढ़ना शामिल है।

मुख्य बिंदु
ये दोनों कविताएँ छायावादी साहित्य की श्रेष्ठ कृतियाँ हैं जो मानवीय भावनाओं और भारतीय संस्कृति का सुंदर चित्रण करती हैं। देवसेना का गीत वियोग शृंगार और करुण रस से भरपूर है जबकि कार्नेलिया का गीत भारत की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विशेषताओं का गुणगान करता है।

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अतिरिक्त ज्ञान

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दृश्य सामग्री

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