Class 12 : हिंदी अनिवार्य – अध्याय 7. कवितावली, (उत्तर कांड से)
संक्षिप्त लेखक परिचय
🌟 गोस्वामी तुलसीदास – परिचय 🌟
💠 जीवन परिचय:-
🔹 गोस्वामी तुलसीदास का जन्म संवत 1554 (1532 ई.) में उत्तर प्रदेश के राजापुर (चित्रकूट) में हुआ माना जाता है।
🔹 बचपन में ही माता-पिता का साया छिन गया और इनका पालन-पोषण साधु नारहरिदास ने किया।
🔹 इन्होंने काशी में वेद, पुराण, व्याकरण और दर्शन का अध्ययन किया।
🔹 जीवन भर रामभक्ति के प्रचार में लगे रहे और हिंदी साहित्य में अमिट छाप छोड़ी।
💠 साहित्यिक योगदान:-
✨ तुलसीदास भक्तिकाल के महान कवि थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं में भक्ति, नीति और आदर्श जीवन के स्वरूप को प्रस्तुत किया।
🌿 इनकी सर्वश्रेष्ठ कृति रामचरितमानस है, जिसे हिंदी साहित्य का अमूल्य रत्न माना जाता है। इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र का अत्यंत भावपूर्ण वर्णन है।
📜 कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, कृष्ण गीतावली, बरवै रामायण जैसी कृतियों में इनकी भक्ति की गहराई झलकती है।
🌸 तुलसीदास ने सरल और मधुर भाषा में उच्च आदर्शों का चित्रण किया, जिससे उनका साहित्य लोकजीवन से गहराई से जुड़ा।
💎 इनके साहित्य में आध्यात्मिकता, नैतिकता और सामाजिक आदर्श का अद्भुत संगम है, जिसने हिंदी साहित्य को नई दिशा दी।
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन
💠 प्रथम पद
🔴 किसबी, किसान–कुल, बनिक, भिखारी, भाट,
🔴 चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।
🔴 पेटको पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त गिरि,
🔴 अटत गहन–गन अहन अखेटकी॥
🔴 ऊँचे–नीचे करम, धरम–अधरम करि,
🔴 पेट ही को पचत, बेचत बेटा–बेटकी।
🔴 ‘तुलसी’ बुझाइ एक राम घनस्याम ही तें,
🔴 आगि बड़वागितें बड़ी है आगि पेटकी॥
✨ व्याख्या
🌺 इस प्रारंभिक पद में तुलसीदास ने समाज के विभिन्न वर्गों का चित्रण किया है।
🌼 किसबी (किसान परिवार), व्यापारी (बनिक), भिखारी, भाट (चारण), नौकर (चाकर), चंचल नट (कलाकार), चोर, दूत (चार) और बाजीगर (चेटकी) – ये सभी अपनी-अपनी आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
🌸 कवि बताते हैं कि पेट भरने के लिए कोई पढ़ता है, कोई कलाएँ सीखता है (गुन गढ़त), कोई पर्वत पर चढ़ता है, और कोई घने जंगलों में शिकार की तलाश में भटकता है।
🌷 तुलसी कहते हैं कि पेट की आग बुझाने के लिए लोग ऊँचे-नीचे कार्य करते हैं, धर्म-अधर्म का विचार नहीं करते, यहाँ तक कि संतान भी बेच देते हैं।
💮 यह पेट की आग समुद्र की बड़वानल से भी प्रबल है, जिसे केवल राम रूपी घनश्याम (बादल) की कृपा-बारिश ही बुझा सकती है।
💠 द्वितीय पद
🔴 खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
🔴 बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।
🔴 जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
🔴 कहैं एक एकन सों ‘कहाँ जाई, का करी?’
🔴 बेदहूँ, पुरान कहि, लोकेहुँ, बिलोकिअत,
🔴 साँकरे सबैं पै, राम! रावरें कृपा करी।
🔴 दारिद–दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु!
🔴 दुरित–दहन देखि तुलसी हहा करी॥
✨ व्याख्या
🌺 इस पद में तुलसी ने अकाल और आर्थिक संकट की स्थिति का मार्मिक चित्रण किया है।
🌼 किसान को खेती नहीं, भिखारी को भीख नहीं, व्यापारी को व्यापार नहीं और नौकर को नौकरी नहीं मिलती।
🌸 लोग आजीविका विहीन होकर चिंता में डूब जाते हैं और एक-दूसरे से कहते हैं – कहाँ जाएँ, क्या करें?
🌷 तुलसी कहते हैं कि वेद-पुराण और लोक अनुभव दोनों ही बताते हैं कि राम की कृपा ही मुक्ति देती है।
💮 दरिद्रता रूपी रावण ने पूरे संसार को दबा लिया है, और हे दीनबंधु राम! आप ही इस पाप को नष्ट कर सकते हैं।
💠 तृतीय पद
🔴 धूत कहौं, अवधूत कहौं, रजपूत कहौं, जोलहा कहौं कोऊ।
🔴 काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगार न सोऊ॥
🔴 तुलसी सरनाम गुलामु है राम को, जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।
🔴 माँगि कै खैबो, मसीत को सोइबो, लैबो को एकु न दैब को दोऊ॥
✨ व्याख्या
🌺 इस अंतिम पद में तुलसी ने भक्त के आत्मविश्वास और सामाजिक रूढ़ियों के विरोध का स्वर व्यक्त किया है।
🌼 वे कहते हैं कि लोग चाहे उन्हें धूर्त, संन्यासी, राजपूत या जुलाहा कहें – उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।
🌸 वे न तो किसी की बेटी से अपने बेटे का विवाह करेंगे और न किसी की जाति बिगाड़ेंगे।
🌷 तुलसी कहते हैं – मैं राम का दास हूँ, माँगकर खाऊँगा, मस्जिद में सोऊँगा, लेकिन किसी से कुछ लूँगा या दूँगा नहीं।
💮 यह पद भक्ति में उपजे आत्मविश्वास और जात-पाँत के बंधनों से मुक्ति का प्रतीक है।
1.🔷 तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंत।
🟠 हनुमान प्रभु की महिमा हृदय में रखकर तुरंत जाने का संकल्प करते हैं।
2.🔷 अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत।।
🟠 आज्ञा पाकर चरण वंदना करके हनुमान प्रस्थान करते हैं।
3.🔷 भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपारा।
🟠 हनुमान भरत के बल, शील और प्रभु-भक्ति को स्मरण करते हैं।
4.🔷 मन महुँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमारा।।
🟠 पवनसुत मन ही मन बार-बार भरत के गुणों की प्रशंसा करते हुए जाते हैं।
5.🔷 उहाँ राम लछिमनहि निहारी बोले बचन मनुज अनुसारी।
🟠 उधर राम मूर्च्छित लक्ष्मण को देखकर मनुष्य की भाँति करुण शब्द कहते हैं।

6.🔷 अर्ध राति गइ कपि नहीं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायउ।।
🟠 आधी रात बीत गई, हनुमान नहीं लौटे; राम लक्ष्मण को उठाकर हृदय से लगाते हैं।
7.🔷 सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ। बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ।।
🟠 कोई मुझे दुखी देख प्रसन्न नहीं हो सकता; मेरा भाई सदा मेरे हित को ही चाहता है।
8.🔷 मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आपत बाता।।
🟠 मेरे हित के लिए उसने माता-पिता तक का त्याग किया और वन के कष्ट सह लिए।
9.🔷 सो अनुराग कहाँ अब भाई। उठहु न सुनि मम बच विकलाई।।
🟠 हे भाई, वह स्नेह कहाँ गया? मेरे करुण वचन सुनकर भी क्यों नहीं उठते?
10.🔷 जौं जनतेउ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउ नहिं ओहू।।
🟠 यदि पहले से भाई-वियोग का पता होता, तो पिता का वचन मानकर वन न आता।
11.🔷 सुत बित नारि भवन परिवारा। होहि जाहिं जग बारहि बारा।।
🟠 पुत्र-पत्नी-गृह-परिवार बनते-बिगड़ते रहते हैं; वे स्थायी नहीं।
12.🔷 अस विचारि जिय जागहु ताता। मिलई न जगत सहोदर भ्राता।।
🟠 यही सोचकर उठो; भाई जैसा स्नेही जग में फिर नहीं मिलता।
13.🔷 जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।।
🟠 जैसे पंख बिना पक्षी दीन तथा मणि बिना सर्प निष्प्रभ हो जाता है, वैसी ही दशा मेरी है।
14.🔷 अस मम जिवन वन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जीआवें मोही।।
🟠 तुम्हारे बिना मेरा जीवन निरर्थक है, चाहे यह देह चलती रहे।
15.🔷 जैहउ अवध कवन मुंहु लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई।।
🟠 एक स्त्री के कारण प्रिय भाई को खोकर अयोध्या किस मुंह से लौटूँ?
16.🔷 बरु अपजस सहतेउ जग माहीं। नारि हानि बिशेष छति नाहीं।।
🟠 अपयश सह लेना बेहतर था; पत्नी-वियोग इतनी बड़ी क्षति नहीं जितनी भाई-वियोग।
17.🔷 अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहिहि निठुर कठोर उर मोरा।।
🟠 अब तुम्हारी माता का शोक और सीता-वियोग का भार मुझे हृदय में सँभालना होगा।
18.🔷 निज जननी के एक कुमार। तात तासु तुम्ह प्रान अधार।।
🟠 तुम अपनी माता के एकमात्र पुत्र हो; वही तुम्हें प्राण-आधार मानती है।
19.🔷 सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी। सब बिधि सुखद परम हित जानी।।
🟠 माता ने तुम्हारा हाथ पकड़ाकर मुझे सौंपा था, मुझे तुम्हारा परम हितैषी समझकर।
20.🔷 उतरु काह देहउ तेहि जाई। उठि किन मोहि सिखावहु भाई।।
🟠 शीघ्र उत्तर दो, उठो और मुझे सही मार्ग बताओ, हे भाई!
21.🔷 बहु बिधि सोचत सोच बिमोचन। स्त्रवत सलिल राजीव दल लोचन।।
🟠 राम हर प्रकार से चिंतन कर रहे हैं, उनके कमल के समान नेत्रों से आंसू बह रहे हैं.
22.🔷 उमा एक अखंड रघुराई। नर गति भगत कृपाल देखाइ l
🟠 हे, उमा, श्री राम अखंड और अद्वितीय हैं (वियोग, शोक से मुक्त है), वे सिर्फ लीला की रहे हैं, मनुष्यों की पीड़ा दिखा रहे हैं.
23.🔷 प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
🟠 प्रभु का करुण विलाप सुनकर वानर-किन्नर सब व्याकुल हो उठते हैं।
24.🔷 आइ गयउ हनुमान जिमि करुना मँह बीर रस।।
🟠 उसी समय करुणा और वीरता से पूर्ण हनुमान आ पहुँचते हैं।
25.🔷 हरषि राम भेटेउ हनुमाना। अति कृतगय प्रभु परम सुजाना।।
🟠 हनुमान हर्ष से राम से मिलते हैं; प्रभु अति दयालु और सुजाने हैं।
26.🔷 तुरत बैद तब किन्हीं उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई।।
🟠 तत्काल उपाय किया गया; लक्ष्मण प्रसन्न होकर उठ बैठते हैं।
27.🔷 हृदयँ लाइ प्रभु भेटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता।।
🟠 राम लक्ष्मण को हृदय से लगाते हैं; भालू-वानर सब आनंदित होते हैं।
28.🔷 कपि पुनि बैद तहां पहुँचावा। जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा।।
🟠 हनुमान बताते हैं कि वैद्य को कैसे पहुँचा दिया और लक्ष्मण को किस रीति लाए।
29.🔷 यह बृतांत दसानन सुनेऊ। अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ।।
🟠 यह समाचार सुनकर रावण अत्यंत विषाद में सिर पीटता है।
30.🔷 व्याकुल कुंभकरन पहिं आवा। बिबिध जतन करि ताहि जगावा।।
🟠 वह व्याकुल होकर कुंभकर्ण के पास जाता है और अनेक उपायों से उसे जगाता है।
31.🔷 जागा निशिचर देखिअ कैसा। मानहुँ कालु देह धरि बैसा।।
🟠 जागे निशाचर को देखकर सबको लगता है मानो स्वयं काल ही देह धरकर बैठा हो।
32.🔷 कुंभकरन बूझा कहु भाई। कोह तव मुख रहे सुखाई।।
🟠 कुंभकर्ण पूछता है—भैया, तुम्हें किस बात का क्रोध है, मुख उदास क्यों है?
33.🔷 कथा कही सब तेहि अभिमानी। जेहि प्रकार सीता हरि आनी।।
🟠 रावण अहंकारपूर्वक सीता-हरण की पूरी कथा कह सुनाता है।
34.🔷 तात कपिन्ह सब निशिचर मारो। महा महा जोधा संघारे।।
🟠 वह बताता है कि वानरों ने अनेक राक्षसों और बड़े-बड़े योद्धाओं का संहार कर दिया।
35,🔷 दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी। भट अतिकाय अकम्पन भारी।।
🟠 अनेक दुश्मन, मनुष्यों-भक्षी और अति बलवान सेनानी भी मारे गए।
36.🔷 अपर महोदर आदिक बीरा। परे समर महि सब रनधीरा।।
🟠 महोदर आदि अन्य अनेक वीर रणभूमि में गिर पड़े; सब रणधीर नष्ट हुए।
37. सुनि दसकंधर बचन तब, कुंभकरण बिलखान l
जगदंबा हरि आनि अब , सठ चाहत कल्याण
: : रावण के वचन सुन के , कुंभकरण बिलखने लगा और बोला कि, रावण ,दुष्ट, तू जगत माता का अपहरण करके ले आया है और तू अपना कल्याण चाहता है ये असंभव है .
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
🔷 प्रश्न 1.कवितावली में उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है।
✅ उत्तर: तुलसी के समकालीन समाज में आर्थिक विषमता और गरीबी चरम पर थी। कवि ने ग़रीबी और आर्थिक विषमता को खुद भी बखूबी झेला था, जिस कारण उन्होंने इसके सजीव चित्र उकेरे हैं। किसानों के पास खेत नहीं थे, व्यापारी व्यापार नहीं कर पाते थे और भिखारी को भीख तक नहीं मिलती थी। यहाँ तक कि समाज में लोग अपने पेट की आग मिटाने के लिए अपने बेटे-बेटी को भी बेच देते थे। सभी ओर भूखमरी और विवशता थी। तुलसीदास ने अपने युग की आर्थिक समस्याओं का यथार्थपरक चित्रण प्रस्तुत किया है।
🔶 प्रश्न 2.पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है- तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
✅ उत्तर: मनुष्य का जन्म, कर्म, कर्म-फल सब ईश्वर के अधीन हैं। निष्ठा और पुरुषार्थ से ही मनुष्य के पेट की आग का शमन हो सकता है। पेट की आग बुझाने के लिए मेहनत के साथ-साथ ईश्वर कृपा का होना जरूरी है। फल प्राप्ति के लिए दोनों में संतुलन होना आवश्यक है। ईश्वर भक्ति रूपी मेघ मनुष्यों को बुरे काम करने से रोकता है और मोक्ष की ओर ले जाता है। आज भी यह सत्य है कि ईमानदार प्रयास और ईश्वर की कृपा दोनों मिलकर व्यक्ति की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।
🔷 प्रश्न 3 तुलसी ने यह कहने की ज़रूरत क्यों समझी? ‘धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ/काहू की बेटी सों बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगार न सोऊ।’ इस सवैया में ‘काहू के बेटा सों बेटी न ब्याहब’ कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आता?
✅ उत्तर: इन पंक्तियों में तुलसीदास ने भारतीय समाज के जाति नियमों को दिखाया है। भारतीय समाज एक पुरुष प्रधान समाज है। तुलसी कहते हैं कि यदि अपनी बेटी की शादी की बात करते तो सामाजिक संदर्भ में अंतर आ जाता, क्योंकि विवाह के बाद बेटी को अपनी जाति छोड़कर अपने पति की जाति अपनानी पड़ती है। यदि तुलसीदास किसी दूसरी जाति में अपनी बेटी का विवाह करवा देते तो तुलसी के परिवार की जाति खराब हो जाती। इससे सामाजिक संघर्ष बढ़ सकता था और जाति प्रथा पर कठोर आघात होता।
🔶 प्रश्न 4 ‘धूत कहौ’ वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं?
✅ उत्तर: तुलसीदास का सारा जीवन अभाव में बीता। जन्म देते ही माँ-बाप ने उनको त्याग दिया परन्तु उन्होंने अपने स्वाभिमान को बनाये रखा, जिसकी छवि हमें उनके काव्यों में देखने को मिलती है। उन्होंने इस छंद में भक्ति की गहनता और सघनता में उपजे भक्त हृदय के आत्मविश्वास का चित्रण किया है। इसमें उन्होंने समाज में प्रचलित जाति-पाति और धर्म का खुलकर विरोध किया है। उनकी स्वाभिमानी भक्ति में वह राम से प्रेम की अपेक्षा रखते हैं, कोई भिक्षा की नहीं।
🔷 प्रश्न 5.व्याख्या करें:
🟢 (क) मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।
जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू॥
✅ उत्तर: जब लक्ष्मण को बाण लगने पर वह मूर्छित हो जाते हैं तब श्रीराम विलाप करते हुए कहते हैं कि तुमने मेरे हित के लिए माता-पिता का त्याग कर दिया और वन में रहकर सर्दी, गर्मी, आँधी को सहा। यदि मुझे यह पता होता कि वन में रहकर इस प्रकार भाई का वियोग सहना करना पड़ेगा तो पिता द्वारा लक्ष्मण को वन में साथ ले जाने की बात कभी नहीं मानता। राम, लक्ष्मण की निःस्वार्थ सेवा को याद कर रहे हैं।
🟢 (ख) जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥
✅ उत्तर: राम लक्ष्मण को मूर्छित देख कहते हैं कि लक्ष्मण के बिना उनकी स्थिति उसी प्रकार है जैसे पंख के बिना पक्षी अत्यंत दीन हो जाते हैं, मणि के बिना साँप और सूंढ़ के बिना हाथी। वह स्वयं को बहुत दीन व दयनीय दशा में पाते हैं। अगर उनको अपने भाई लक्ष्मण के बिना जीना पड़ा तो उनका जीवन शक्तिहीन हो जाएगा।
🟢 (ग) माँग के खैबो, मसीत को सोइबो, लैबो को एकु न दैबो को दोऊ॥
✅ उत्तर: तुलसीदास पर समाज की बातों का कोई असर नहीं पड़ता और न ही वे इसकी परवाह करते हैं। वे केवल राम के सेवक हैं और किसी पर आश्रित नहीं हैं। जीवन-निर्वाह के लिए भिक्षावृत्ति करते हैं और मस्जिद में सोते हैं। उन्हें संसार के सुख, वैभव की कोई इच्छा नहीं है।
🟢 (घ) ऊँचे नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट को ही पचत, बेचत बेटा-बेटकी॥
✅ उत्तर: इस पंक्ति में तुलसीदास अपने समय की आर्थिक विषमता का वर्णन करते हुए कहा है कि पेट की भूख की ज्वाला को शांत करने के लिए लोग कोई भी अच्छा-बुरा, धर्म-अधर्म का कार्य करने से नहीं हिचकते। धर्म-अधर्म में कोई भेद नहीं करते। यहाँ तक कि विवश होकर अपनी संतान को बेचने पर भी मजबूर हो जाते हैं।
🔶 प्रश्न 6 .भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
✅ उत्तर: हाँ, भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। वे लक्ष्मण को मूर्छित पाकर अत्यंत व्याकुल हो जाते हैं। लक्ष्मण के बिना राम फूट-फूट कर रो रहे हैं। राम कहते हैं कि संसार में धन, संपत्ति, भवन, परिवार तो बार-बार मिल जाते हैं लेकिन लक्ष्मण जैसा भाई बार-बार नहीं मिल सकता। उन्होंने कहा कि सब यही कहेंगे कि राम ने अपनी पत्नी के लिए अपने भाई को न्योछावर कर दिया और उनको इस कलंक के साथ जीना पड़ेगा। यहाँ राम एक सामान्य मनुष्य की तरह भावुक हो उठे हैं।
🔷 प्रश्न 7 .शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?
✅ उत्तर: हनुमान लक्ष्मण के इलाज के लिए संजीवनी बूटी लाने हिमालय पर्वत गए थे। उन्हें आने में देर हो रही थी। लक्ष्मण-मूर्छा के बाद पूरा माहौल शोकग्रस्त हो गया था। समस्त भालू-वानर सेना राम को देख अत्यंत दुखी थे। जैसे ही हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर शोक-सभा में पहुँचे तो वे पूरा का पूरा पर्वत ही अपने हाथ पर उठा लाए थे। हनुमान को देख राम तथा समस्त जन थोड़े खुश हुए तथा शीघ्र ही वैद्य जी ने लक्ष्मण को संजीवनी बूटी पिलाई तो लक्ष्मण उठ खड़े हुए। राम सहित पूरी वानर-सेना खुश हो गई। इस प्रकार शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को वीर रस का आविर्भाव कहा गया है।
🔶 प्रश्न 8 .”जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गॅवाई॥ बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं॥” भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप-वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित है?
✅ उत्तर: भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप-वचन में स्त्री के प्रति उपेक्षित भाव प्रकट हुआ है। वे कह रहे थे कि नारी के लिए मैंने भाई खो दिया है यह सबसे बड़ा कलंक है। राम ने अपनी पत्नी के खो जाने से बढ़कर अपने भाई लक्ष्मण को महत्व दिया है जो दिखाता है कि तत्कालीन समाज में स्त्रियों को पुरुष के समान सम्मान नहीं दिया जाता था। समाज में पुरुष प्रधानता थी और स्त्री की स्थिति द्वितीयक थी। राम का यह कथन उस युग की सामाजिक मान्यता को दर्शाता है जहाँ भाई का रिश्ता पत्नी से अधिक महत्वपूर्ण माना जाता था।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🌸 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ) – 5 प्रश्न
🔹 प्रश्न 1: कवितावली की मूल भाषा कौन सी है?
(A) अवधी (B) ब्रजभाषा (C) खड़ी बोली (D) संस्कृत
⭐ उत्तर: (B) ब्रजभाषा
🔹 प्रश्न 2: लक्ष्मण मूर्च्छा प्रसंग रामचरितमानस के किस कांड से लिया गया है?
(A) सुंदरकांड (B) अरण्यकांड (C) लंकाकांड (D) उत्तरकांड
⭐ उत्तर: (C) लंकाकांड
🔹 प्रश्न 3: तुलसीदास ने “पेट की आग” का समाधान किसमें बताया है?
(A) धन संपत्ति में (B) राम रूपी मेघ में (C) मेहनत में (D) भिक्षावृत्ति में
⭐ उत्तर: (B) राम रूपी मेघ में
🔹 प्रश्न 4: कवितावली में मुख्यतः किस छंद का प्रयोग हुआ है?
(A) दोहा-चौपाई (B) कवित्त-सवैया (C) सोरठा (D) रोला
⭐ उत्तर: (B) कवित्त-सवैया
🔹 प्रश्न 5: लक्ष्मण के मूर्छित होने का कारण क्या था?
(A) रावण का शक्ति बाण (B) मेघनाद का शक्ति बाण (C) कुंभकर्ण का गदा प्रहार (D) इंद्रजीत का तीर
⭐ उत्तर: (B) मेघनाद का शक्ति बाण
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🌼 लघु उत्तरीय प्रश्न – 5 प्रश्न
🌟 प्रश्न 1: तुलसीदास ने कवितावली में तत्कालीन आर्थिक विषमता का कैसे चित्रण किया है?
➡️ उत्तर: किसानों, मजदूरों, व्यापारियों और भिखारियों की दयनीय स्थिति का चित्रण किया है। लोग पेट की आग बुझाने के लिए संघर्षरत थे और संतान तक को बेचने को विवश थे। कवि के अनुसार “पेट की आग” समुद्र की आग से भी भयंकर है।
🌟 प्रश्न 2: राम के विलाप में उनकी मानवीय भावनाओं का कैसे चित्रण हुआ है?
➡️ उत्तर: लक्ष्मण की मूर्छा देखकर राम का विलाप उनकी मानवीय संवेदनाओं को प्रकट करता है। वे सामान्य मनुष्य की भाँति भाई के वियोग में फूट-फूटकर रोते हैं और कहते हैं कि लक्ष्मण जैसा भाई पुनः नहीं मिल सकता।
🌟 प्रश्न 3: हनुमान के आगमन को वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?
➡️ उत्तर: संजीवनी पर्वत लेकर आने से शोकमय वातावरण वीरता व उत्साह में बदल जाता है। वानर सेना में नई उमंग जाग उठती है और लक्ष्मण के जीवित होने की आशा जगती है।
🌟 प्रश्न 4: तुलसीदास के सामाजिक दृष्टिकोण की विशेषताएं क्या हैं?
➡️ उत्तर: तुलसीदास जाति-पाति के बंधनों का विरोध करते हैं। वे रामभक्ति को ही अपनी पहचान मानते हैं। आर्थिक विषमता के विरुद्ध आवाज उठाकर सामाजिक न्याय का समर्थन करते हैं।
🌟 प्रश्न 5: कवितावली की काव्य-भाषा की मुख्य विशेषताएं बताइए।
➡️ उत्तर: भाषा मुख्यतः ब्रजभाषा है, अवधी के शब्द भी सम्मिलित हैं। भाषा प्रवाहमयी, संगीतात्मक और अनुप्रास अलंकार से युक्त है। छंद कवित्त-सवैया है।
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🌺 मध्यम उत्तरीय प्रश्न – 4 प्रश्न
🌟 प्रश्न 1: तुलसीदास की भक्ति-भावना का कवितावली में कैसा चित्रण हुआ है?
➡️ उत्तर: वे स्वयं को राम का दास मानते हैं। उनकी भक्ति व्यावहारिक है क्योंकि राम रूपी मेघ ही पेट की आग बुझा सकते हैं। वे दीनबंधु और कृपालु राम को समाज का रक्षक बताते हैं। जाति-पाति के विरोध में वे निर्भयतापूर्वक रामभक्ति को सर्वोच्च मानते हैं।
🌟 प्रश्न 2: राम के चरित्र में मानवीय गुणों का चित्रण कवितावली में कैसे हुआ है?
➡️ उत्तर: लक्ष्मण की मूर्छा पर राम का विलाप भ्रातृप्रेम को दर्शाता है। वे भाई के त्याग को याद कर भावुक हो उठते हैं। करुणा, कृतज्ञता और प्रेम उनकी मानवीय संवेदनाओं को स्पष्ट करते हैं।
🌟 प्रश्न 3: कवितावली में वर्णित सामाजिक समस्याओं का विश्लेषण कीजिए।
➡️ उत्तर:
🔸 आर्थिक विषमता – किसान, व्यापारी व मजदूर सब भूख से पीड़ित थे।
🔸 जातिवाद – कठोर जातिवाद का विरोध किया गया।
🔸 बेरोजगारी – लोगों को रोजगार न मिलने से अनैतिक कार्य बढ़े।
🔸 नैतिक पतन – धर्म-अधर्म का भेद मिट चुका था।
👉 समाधान तुलसी ने रामभक्ति और रामराज्य में बताया।
🌟 प्रश्न 4: कवितावली के काव्यशिल्प और छंद विधान की विशेषताओं का वर्णन करें।
➡️ उत्तर:
🔸 छंद – कवित्त और सवैया का प्रयोग।
🔸 भाषा – ब्रजभाषा प्रधान, अवधी व अन्य शब्दों का मिश्रण।
🔸 अलंकार – अनुप्रास, उपमा, रूपक आदि।
🔸 रस – करुण, वीर, श्रृंगार, शांत आदि।
🔸 शैली – संवाद शैली से नाटकीयता, वर्णनात्मक और भावात्मक मिश्रण।
🔸 संगीतात्मकता – सहज प्रवाह और माधुर्य।
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🌹 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न – 1 प्रश्न
🌟 प्रश्न:1 कवितावली में तुलसीदास की युगीन चेतना और सामाजिक दृष्टि का विवेचन करें। यह आज कैसे प्रासंगिक है?
➡️ उत्तर:
🔸 युगीन समस्याएँ – 16वीं शताब्दी में राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक विषमता और सामाजिक विघटन।
🔸 आर्थिक चेतना – भूख और “पेट की आग” को समाज की सबसे बड़ी समस्या बताया।
🔸 सामाजिक न्याय – जाति-पाति का विरोध, रामभक्ति को समाज सुधार का साधन माना।
🔸 धर्म और समाज का संतुलन – राम को गरीबों व असहायों का रक्षक बताया।
🔸 भक्ति आंदोलन – व्यक्तिगत साधना के साथ सामाजिक परिवर्तन को भी महत्व।
🌈 आज की प्रासंगिकता:
✔ आर्थिक विषमता – आज भी मौजूद।
✔ जातिवाद – आज भी समस्या।
✔ भ्रष्टाचार – गरीबी और स्वार्थ से प्रेरित।
✔ सामाजिक न्याय – रामराज्य का आदर्श आज भी स्वप्न।
✔ धर्मनिरपेक्षता – “माँग के खैबो, मसीत को सोइबो” जैसी उदारता आज भी प्रेरक।
✨ निष्कर्ष: तुलसीदास की कवितावली केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि सामाजिक न्याय, आर्थिक विषमता और मानवता का दर्पण है। उनकी चेतना आज भी जीवंत और प्रासंगिक है।
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