Class 12 : हिंदी साहित्य – अध्याय 4.केदारनाथ सिंह
संक्षिप्त लेखक परिचय
🔷 लेखक परिचय: केदारनाथ सिंह
केदारनाथ सिंह हिंदी के प्रमुख आधुनिक कवियों में से एक थे। उनका जन्म 7 जुलाई 1934 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गाँव में हुआ था। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी में उच्च शिक्षा प्राप्त की और कई वर्षों तक अध्यापन किया। केदारनाथ सिंह की कविता में ग्राम्य जीवन, प्रकृति, समय और संस्कृति की गहराई से झलक मिलती है। उनकी भाषा सरल, संवेदनशील और बिंबात्मक होती है। उनका प्रमुख काव्य संग्रह “अभी बिल्कुल अभी” है, जिसके लिए उन्हें 1989 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। उन्होंने आलोचना और निबंध लेखन में भी योगदान दिया। उनका निधन 19 मार्च 2018 को हुआ। वे समकालीन हिंदी कविता के सबसे सशक्त स्वर माने जाते हैं।
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन
🔴 🪔 प्रस्तावना:
केदारनाथ सिंह की कविता “बनारस” बनारस शहर की आत्मा को पकड़ने वाली रचना है। इसमें बनारस के जीवन, संस्कृति, आध्यात्मिकता और वहाँ की गति (लय) को बहुत ही गहराई से दर्शाया गया है। यह कविता बनारस के ठहरे हुए समय, धीमी गति, गहराई, और सौंदर्य का चित्र खींचती है।
🟠 🌿 1. धीरे-धीरे होना — बनारस की लय
➡️ कवि बताता है कि बनारस में सब कुछ धीरे-धीरे होता है —
🔸 धूल का उड़ना
🔸 लोगों का चलना
🔸 मंदिरों के घंटे बजना
🔸 शाम का उतरना
✔️ यह धीमी गति ही बनारस की पहचान है। शहर में जैसे एक विशेष लय है, जो सबको अपनी ओर खींचती है।
💡 भावार्थ: बनारस केवल एक स्थान नहीं, बल्कि एक जीवन पद्धति है, जहाँ समय की रफ्तार धीमी और अनुभूति गहरी होती है।
🟡 🌼 2. वसंत का आगमन — बदलाव की प्रतीक
🔹 वसंत का आगमन भी अचानक होता है —
🌬️ धूल उड़ती है,
🌪️ बवंडर उठते हैं,
🌈 और वातावरण में चमक आ जाती है।
✔️ यह संकेत करता है कि बनारस के जीवन में परिवर्तन भी अप्रत्याशित होते हैं, परंतु उनमें भी एक सुंदरता छुपी होती है।
🟢 🏞️ 3. गंगा, घाट और मंदिर — आध्यात्मिक धरोहर
✔️ गंगा नदी, घाट, मंदिर और श्मशान घाट — ये बनारस के अभिन्न अंग हैं।
✔️ कवि इन सभी का वर्णन करता है ताकि पाठक को शहर की धार्मिक और सांस्कृतिक गहराई का अनुभव हो सके।
✔️ यह स्थलों का सह-अस्तित्व बनारस को प्राचीनता और समकालीनता दोनों से जोड़ता है।
🔵 🥣 4. खाली कटोरों में वसंत — विरोधाभास का सौंदर्य
✍️ “खाली कटोरों में वसंत का उतरना”
➡️ यह पंक्ति शहर की गरीबी और सुंदरता के विरोधाभास को उजागर करती है।
✔️ कवि यह दिखाता है कि बनारस में विपरीत तत्व भी एक साथ मिलते हैं — रिक्तता और उल्लास।
🟣 🦵 5. एक टांग पर खड़ा शहर — स्थिरता और संतुलन
➡️ कवि बनारस को एक टांग पर खड़ा शहर कहता है —
🔹 एक टांग गंगा में है (धार्मिकता),
🔹 दूसरी टांग से वह लापरवाह है (मस्त मौला जीवन)।
✔️ यह शहर के आध्यात्मिक स्थायित्व और जीवन के बहाव का प्रतीक है।
🟤 📌 विशेषताएँ:
🟢 बिंब विधान: सुंदर बिंबों का प्रयोग, जैसे “खाली कटोरे”, “एक टांग पर शहर”, कविता को गहराई देता है।
🔵 भाषा: सरल, सहज लेकिन अर्थगंभीर।
🟣 शिल्प: विवरणात्मक, सूक्ष्म दृष्टिकोण से युक्त।
🟠 कबीर का संदर्भ: बनारस में कबीर की उपस्थिति कविता को सांस्कृतिक गरिमा देती है।
🔶 🎯 निष्कर्ष:
“बनारस” केवल कविता नहीं, बल्कि बनारस का जीवंत अनुभव है। केदारनाथ सिंह ने बनारस के सौंदर्य, विरासत, गहराई और विरोधाभासों को इतनी सहजता से रचा है कि पाठक स्वयं बनारस की गलियों में उतर जाता है। बनारस धीरे-धीरे चलता है, लेकिन गति और जीवन कभी थमता नहीं।
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1
बनारस में वसंत का आगमन कैसे होता है और उसका क्या प्रभाव इस शहर पर पड़ता है?
उत्तर: कवि के अनुसार अचानक बनारस में वसंत का आगमन होता है। मुहल्लों के हर स्थानों पर धूल का बवंडर बनने लगता है। इस कारण चारों ओर धूल छा जाती है और लोगों के मुँह में धूल के होने से किरकिराहट उत्पन्न होने लगती है। प्रायः वसंत में फूलों की बहार छा जाती है, सुगंध सारे वातावरण में व्याप्त हो जाती है। नए पत्ते तथा कोपलें निकलने लगती हैं। परंतु इस वसंत में ऐसा कुछ नहीं है। यहाँ तो बिल्कुल अलग तरह का वसंत आता है, जो धूल से भरा होता है। भिखारी के कटोरों के मध्य वसंत उतरता दिखाई देता है। गंगा के घाट लोगों से भर जाते हैं। यहाँ तक इस मौसम में बंदरों की आँखों में नमी दिखाई देती है।
प्रश्न 2
‘खाली कटोरों में वसंत का उतरना’ से क्या आशय है?
उत्तर: ‘खाली कटोरों में वसंत का उतरना’ का आशय है कि भिखारी को भीख मिलने लगी है। इससे पहले उन्हें भीख नसीब नहीं हो रही थी। गंगा के घाटों में भिखारी भिक्षा की उम्मीद पर आँखें बिछाए बैठे हुए थे लेकिन उनके भिक्षापात्र खाली ही थे। अचानक घाट पर भीड़ बढ़ने लगी है और लोग उन्हें भिक्षा दे रहे हैं। भिक्षा मिलने से उनके खाने-पीने संबंधी चिंताएँ कुछ समय के लिए समाप्त हो गई हैं और उनके मुख पर प्रसन्नता दिखाई देने लगी है। अतः कवि इस स्थिति को खाली कटोरों में वसंत का उतरना कहता है।
प्रश्न 3
बनारस की पूर्णता और रिक्तता को कवि ने किस प्रकार दिखाया है?
उत्तर: कवि बनारस की पूर्णता को उसके उल्लास भरे दिन से दर्शाता है। उसके अनुसार यह शहर हर स्थिति में प्रसन्न रहता है। यहाँ का हर दिन तकलीफों तथा कठिनाइयों के बाद भी उल्लास और आनंद से भरपूर होता है। बनारस की रिक्तता को वह मृत शरीरों के माध्यम से दर्शाता है। उसके अनुसार रोज़ ही यहाँ कितने शव दाह-संस्कार के लिए गंगा घाट की ओर जाते हैं। वे शव कंधों पर सवार होकर अपनी जीवन की अंतिम यात्रा पर निकल रहे होते हैं। यह रिक्तता बनारस का नित्य क्रम है, जो मृत्यु रूपी परम सत्य का अहसास दिलाती है।
प्रश्न 4
बनारस में धीरे-धीरे क्या होता है? ‘धीरे-धीरे’ से कवि इस शहर के बारे में क्या कहना चाहता है?
उत्तर: कवि के अनुसार बनारस शहर में धूल धीरे-धीरे उड़ती है, यहाँ लोग धीरे-धीरे चलते हैं, धीरे-धीरे ही यहाँ मंदिरों में घंटे बजते हैं तथा शाम भी यहाँ धीरे-धीरे होती है। कवि के अनुसार यहाँ सभी कार्य धीरे-धीरे होना इस शहर की विशेषता है। यह शहर को सामूहिक लय प्रदान करता है। धीरे-धीरे शब्दों द्वारा कवि बनारस में हो रहे बदलावों को दर्शाता है। उसके अनुसार सारी दुनिया में तेज़ी से बदलाव हो रहे हैं। इन बदलावों की रफ्तार इतनी तेज़ है कि पुराना सब खो गया है। लोग स्वयं को इन बदलावों में झोंक रहे हैं। इससे हमारी सभ्यता और संस्कृति को नुकसान पहुँचता है। परंतु बनारस इन बदलावों से अभी तक अछूता है। वहाँ बदलाव हो अवश्य रहे हैं परंतु उनकी रफ्तार बहुत कम है।
प्रश्न 5
धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय में क्या-क्या बँधा है?
उत्तर: धीरे-धीरे की इस सामूहिक लय में पूरा बनारस बंधा हुआ है। यह लय इस शहर को मजबूती प्रदान करती है। धीरे-धीरे की सामूहिक लय में यहाँ बदलाव नहीं हुए हैं और चीज़ें प्राचीनकाल से जहाँ विद्यमान थीं, वहीं पर स्थित हैं। गंगा के घाटों पर बंधी नाव आज भी वहीं बँधी रहती है, जहाँ सदियों से बँधी चली आ रही हैं। संत कवि तुलसीदास जी की खड़ाऊ भी सदियों से उसी स्थान पर सुसज्जित हैं। भाव यह है कि धीरे-धीरे की सामूहिक लय के कारण शहर बँधा ही नहीं है बल्कि वह इस कारण से मजबूत हो गया है।
प्रश्न 6
‘सई साँझ’ में घुसने पर बनारस की किन-किन विशेषताओं का पता चलता है?
उत्तर: कवि के अनुसार सई-साँझ के समय यदि कोई बनारस शहर में जाता है, तो उसे निम्नलिखित विशेषताओं का पता चलता है:
यहाँ मंदिरों में हो रही आरती के कारण सारा वातावरण आलोकित हो रहा होता है।
आरती के आलोक में बनारस शहर की सुंदरता अतुलनीय हो जाती है। यह कभी आधा जल में या आधा जल के ऊपर सा जान पड़ता है।
यहाँ प्राचीनता तथा आधुनिकता का सुंदर रूप दिखाई देता है।
गंगा के घाटों में कहीं पूजा का शोर है, तो कहीं शवों का दाह-संस्कार होता है।
प्रश्न 7
बनारस शहर के लिए जो मानवीय क्रियाएँ इस कविता में आई हैं, उनका व्यंजनार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: बनारस शहर के लिए दो जगह मानवीय क्रियाएँ अभिलक्षित हुई हैं:
“इस महान और पुराने शहर की जीभ किरकिराने लगती है” – इसमें व्यंजनार्थ है कि बनारस में धूल भरी आँधी चलने से इस शहर के गली मौहल्लों में धूल ही धूल नज़र आ रही है।
“अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर अपनी दूसरी टाँग से बिल्कुल बेखबर!” – इसमें व्यंजनार्थ है कि बनारस आध्यात्मिकता में इतना रत है कि उसे हो रहे बदलावों के विषयों में ज्ञान ही नहीं है।
प्रश्न 8
शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए:
(क) ‘यह धीरे-धीरे होना ………. समूचे शहर को’
उत्तर: ‘धीरे-धीरे’ होना में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। इसके माध्यम से कवि ने बनारस में हो रहे बदलावों की गति को व्यक्त किया है। धीरेपन को बनारस की विशेषता बताया गया है। लाक्षणिकता का भाव भाषा में समाहित है।
(ख) ‘अगर ध्यान से देखो ……….. और आधा नहीं है’
उत्तर: इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने बनारस की विचित्रता को दर्शाया है। उसे यहाँ जब कुछ पूर्ण नहीं दिखाई देता। वह आधा बोलकर इस अधूरेपन को व्यक्त करता है। प्रतीकात्मकता का भाव विद्यमान है तथा अनुप्रास अलंकार की छटा भी बिखरी हुई है।
(ग) ‘अपनी एक टाँग पर ……………. बेखबर’
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियों में कवि बनारस की आध्यात्मिकता का परिचय देता है। वह बस आध्यात्मिकता के रंग में रंगा हुआ है और दूसरे पक्ष से बिल्कुल अनजान है। अनुप्रास की छटा दिखाई देती है। एक टाँग पर खड़ा होना मुहावरा है। प्रतीकात्मकता तथा लाक्षणिकता का समावेश है।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1
बच्चे का उधर-उधर कहना क्या प्रकट करता है?
उत्तर: ‘बच्चे का उधर-उधर कहना’ प्रकट करता है कि उस दिशा में उसकी पतंग उड़ी जा रही है। जहाँ उसकी पतंग उड़ रही है, वह उसी दिशा को जानता है। हिमालय की दिशा का उसे ज्ञान नहीं है। वह तो उसी दिशा पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए है।
प्रश्न 2
‘मैं स्वीकार करूँ, मैंने पहली बार जाना हिमालय किधर है’- प्रस्तुत पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियों का भाव है कि मैं पहले समझता था कि मैं जानता हूँ हिमालय कहाँ है। अर्थात मुझे मालूम था कि हिमालय उत्तर दिशा में स्थित है। परंतु बच्चे से इसके बारे में विपरीत दिशा जानकर मालूम हुआ कि जो मुझे पता है, वह तो गलत है। हर मनुष्य का सोचने-समझने का नज़रिया तथा उसका यथार्थ अलग-अलग होता है। उसी के आधार पर वह तय करता है कि क्या सही है। बच्चे के लिए उसकी पतंग बहुत महत्वपूर्ण थी। हिमालय की दिशा से उसे कोई लेना-देना नहीं है। वह तो बस अपनी पतंग को पा लेना चाहता है। वह पतंग जिस दिशा में बढ़ती है, वही उसका सत्य है।
मुख्य संदेश
केदारनाथ सिंह की ये दोनों कविताएं आधुनिक भारत की सांस्कृतिक चेतना और बाल मनोविज्ञान की गहरी समझ को प्रस्तुत करती हैं। “बनारस” कविता में कवि ने प्राचीन भारतीय सभ्यता के केंद्र बनारस की विशेषताओं को उजागर किया है जो आज भी अपनी धीमी गति से संस्कृति को संजो कर रखे हुए है। “दिशा” कविता में बच्चे की निर्दोषता और उसकी सरल सोच को दर्शाया गया है जो हमें जीवन के गहरे सत्य की ओर इशारा करती है।
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अतिरिक्त ज्ञान
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दृश्य सामग्री
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