Class 12, HINDI LITERATURE

Class 12 : हिंदी साहित्य – अध्याय 19. बिस्कोहर की माटी

संक्षिप्त लेखक परिचय


विश्वनाथ त्रिपाठी (जन्म 16 फरवरी 1931) हिन्दी साहित्य के एक महत्वपूर्ण आलोचक, कवि और लेखक हैं। उनका जन्म बिस्कोहर गाँव, जिला बस्ती (सिद्धार्थनगर), उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने लगभग 20 पुस्तकों की रचना की है जिनमें साहित्यिक आलोचना, संस्मरण और कविता संग्रह शामिल हैं। उन्हें मूर्तिदेवी पुरस्कार (2014) और व्यास सम्मान (2013) जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।


“बिस्कोहर की माटी” प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी की आत्मकथा “नंगातलाई का गाँव” का एक मर्मस्पर्शी अंश है। यह पाठ कक्षा बारहवीं की एनसीईआरटी हिन्दी अंतराल पुस्तक का भाग है और आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया है। लेखक ने अपने बचपन के गाँव बिस्कोहर के प्राकृतिक सौंदर्य, ग्रामीण जीवनशैली, लोक परंपराओं और व्यक्तिगत अनुभवों को अत्यंत रोचक और पठनीय भाषा में प्रस्तुत किया है।

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन

मुख्य विषयवस्तु और थीम्स
प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण
पाठ की शुरुआत ही प्रकृति के मनोहारी चित्रण से होती है। लेखक बताता है कि पूरब टोले के तालाब में कमल फूलते थे, जिनके पत्ते पर हिंदुओं के भोज में भोजन परोसा जाता था। कमल के पत्ते को ‘पुरइन’ और नाल को ‘भसीण’ कहा जाता था। अकाल के समय लोग कमल-ककड़ी खोदकर भोजन के रूप में उपयोग करते थे।

कमल से भी अधिक सुंदर कोइयाँ (कुमुद) का वर्णन है, जो जलपुष्प है और शरद ऋतु में जहाँ भी गड्ढे में पानी होता है वहाँ फूल उठती है। रेलवे लाइन के दोनों ओर इसे देखा जा सकता है और यह उत्तर भारत में सर्वत्र पाई जाती है।

मातृत्व और स्नेह की अवधारणा
पाठ में मातृत्व का अत्यंत संवेदनशील चित्रण है। लेखक कहता है: “बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ़ दूध पीना नहीं, माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन-चरित होता है”। माँ आँचल में छिपाकर दूध पिलाती है, बच्चा सुबुकता है, रोता है, माँ को मारता है, माँ भी कभी-कभी मारती है, फिर भी बच्चा चिपटा रहता है।

लेखक ने बत्तख की माँ और उसके अंडों के बीच के संबंध की तुलना माँ और बच्चे के स्नेह से की है। बत्तख अपने अंडों को अत्यंत सावधानी से सेती है, पंखों से ढकती है और कौवे की निगाह से बचाती है। यह प्राकृतिक मातृत्व का प्रतीक है।

ग्रामीण जीवन की वास्तविकताएं
मौसमी चुनौतियां
गर्मी के मौसम में ‘लू’ लगने की समस्या का वर्णन है। माँ लू से बचने के लिए धोती या कमीज़ से गाँठ लगाकर प्याज़ बाँध देती थी। लू की दवा के रूप में कच्चे आम का पन्ना भूनकर गुड़ या चीनी में शरबत पीना और शरीर में लगाना बताया गया है।

बारिश का वर्णन अत्यंत जीवंत है। वर्षा एकदम नहीं आती थी, पहले बादल घिरते, गड़गड़ाहट होती। “चढ़ा असाढ़ गगन घन गाजा, घन घमंड गरजत घन घोरा और कंपित-जगम-नीड़ बिहंगम” जैसे काव्यात्मक चित्रण से वर्षा ऋतु की भव्यता दिखाई गई है।

वनस्पति और जीव-जंतु
पाठ में अनेक फूलों का वर्णन है – तोरी, लौकी, भिंडी, भटकटैया, इमली, अमरूद, कदंब, बैंगन, कोहड़ा, शरीफा, आम के बौर, कटहल, बेर आदि। हरसिंगार का विशेष उल्लेख है जो पितृ-पक्ष में मालिन दाई घर के दरवाज़े पर रख जाती थी।

साँपों का वर्णन भी विस्तार से है – डोड़हा, मझगिदवा, धामिन, गोंहुअन, घोर कड़ाइच आदि। इनमें से कुछ विषहीन थे और कुछ अत्यंत खतरनाक।

लोक चिकित्सा और परंपराएं
ग्रामीण जीवन में प्राकृतिक उपचार का महत्व दिखाया गया है। गुड़हल का फूल देवी का फूल माना जाता था, नीम के फूल और पत्ते चेचक में रोगी के पास रखे जाते थे। बेर के फूल की गंध से बरे-ततैया का मद झड़ जाता था।

सौंदर्य और प्रेम की अनुभूति
पाठ में एक महत्वपूर्ण प्रसंग है जब दस वर्षीय बिसनाथ को एक बड़ी स्त्री दिखाई देती है। लेखक लिखता है: “प्रकृति सजीव नारी बन गई थी और बिसनाथ उसमें आकाश, चाँदनी, सुगंधि सब देख रहे थे”। यह प्रकृति और मानवीय सौंदर्य के एकीकरण का अद्भुत चित्रण है।

भाषा-शैली की विशेषताएं
आत्मकथात्मक शैली
लेखक ने आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग करते हुए अपने व्यक्तिगत अनुभवों को सार्वभौमिक बनाया है। तीसरे व्यक्ति में ‘बिसनाथ’ के रूप में स्वयं का उल्लेख करना इस शैली की विशेषता है।

लोक भाषा का प्रयोग
पाठ में ग्रामीण भाषा के शब्दों का सुंदर प्रयोग है जैसे – पुरइन, भसीण, कुरई जात रहीं, आदि। यह ग्रामीण जीवन की प्रामाणिकता को बढ़ाता है।

काव्यात्मक गद्य
लेखक का गद्य काव्यात्मक गुणों से भरपूर है। प्रकृति के चित्रण में कवित्व का स्पर्श दिखाई देता है।

प्रतीकात्मकता और गहरे अर्थ
माटी का प्रतीक
‘बिस्कोहर की माटी’ केवल मिट्टी नहीं है बल्कि जड़ों, संस्कृति, परंपरा और अपनेपन का प्रतीक है। यह लेखक की पहचान का आधार है।

प्रकृति और मानव का तादात्म्य
पाठ में प्रकृति को केवल पृष्ठभूमि के रूप में नहीं बल्कि जीवंत चरित्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है। “सभी चीज़ें प्रत्येक चीज़ में थीं और प्रत्येक सबमें” – यह वाक्य प्रकृति और मानव के अटूट संबंध को दर्शाता है।

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
ग्रामीण संस्कृति का संरक्षण
यह पाठ ग्रामीण संस्कृति, लोक परंपराओं और प्राकृतिक जीवनशैली का दस्तावेज़ है। यह आधुनिकीकरण और शहरीकरण के दौर में ग्रामीण मूल्यों को संजोने का महत्वपूर्ण कार्य करता है।

पर्यावरण चेतना
पाठ में प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन का संदेश है। यह दिखाता है कि कैसे ग्रामीण समुदाय प्रकृति पर निर्भर रहकर भी उसका सम्मान करता है।

मानवीय मूल्य
माँ-बच्चे के रिश्ते, सामुदायिक भावना, प्रकृति प्रेम जैसे मानवीय मूल्यों को उजागर करता है।

निष्कर्ष
“बिस्कोहर की माटी” केवल एक आत्मकथात्मक वृत्तांत नहीं है बल्कि ग्रामीण भारत की आत्मा का दर्पण है। विश्वनाथ त्रिपाठी ने अपनी स्मृतियों के माध्यम से एक ऐसे संसार का चित्रण किया है जो प्रकृति के साथ तालमेल में जीता है। पाठ हमें सिखाता है कि सच्चा सौंदर्य प्रकृति के साथ सामंजस्य में निहित है और जड़ों से जुड़ाव ही व्यक्तित्व का वास्तविक आधार है।

यह रचना आधुनिक युग में प्राकृतिक जीवन के महत्व को रेखांकित करती है और दिखाती है कि कैसे सरल ग्रामीण जीवन में भी गहरे दर्शन और जीवन मूल्य छुपे होते हैं। लेखक की संवेदनशील भाषा और काव्यात्मक शैली पाठकों को अपने बचपन और प्राकृतिक परिवेश से जोड़ने का काम करती है, जो इस पाठ को कालजयी बनाता है।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1
कोईयाँ किसे कहते हैं? इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर: कोइयाँ पानी से भरे गड्डे में भी सरलता से पनप जाती थी। यह भारत के अधिकांश स्थानों पर पाई जाती थी। इसकी खुशबू मन को अत्यंत प्रिय लगने वाली होती थी।

प्रश्न 2
“बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं, माँ के सारे संबंधों का जीवन–चरित होता है।” टिप्पणी कीजिए।
उत्तर: माँ का दूध न सिर्फ पोषण का स्रोत है, बल्कि उसमें बच्चे एवं माँ के बीच भावनात्मक संबंधों की संपूर्णता निहित है। कोख से शुरू होकर बच्चे का पहला आश्रय माँ के आँचल में होता है, जहाँ दूध पिलाते समय माँ का स्नेह, सुरक्षा एवं सान्निध्य दोनों जुड़ते हैं। इस तरह वर्षो तक माँ–बच्चे का जीवन–चरित इसी दूध द्वारा विकसित होता है।

प्रश्न 3
बिस्नाथ पर क्या अत्याचार हो गया था?
उत्तर: बिस्नाथ अभी बहुत छोटा था और माँ के दूध पर ही निर्भर था कि अचानक उसके छोटे भाई का जन्म हो गया। चूँकि माँ का सारा दूध अब छोटे भाई को पिलाया जाने लगा, इसलिए बिस्नाथ को माँ का दूध मिलना बंद हो गया, जिसे वह स्वयं पर अत्याचार समझता था।

प्रश्न 4
गरमी और लू से बचने के उपायों का विवरण दीजिए। क्या आप भी उन उपायों से परिचित हैं?
उत्तर:
(1) धोती या कमीज़ में गाँठ लगाकर प्याज बाँध लेना।
(2) लू से बचने के लिए कच्चे आम का पन्ना पीना।
(3) कच्चे आम को भूनकर या उबालकर सिर धोना।
लेखक के अनुभव से ये उपाय प्रचलित थे; हमारे क्षेत्र में प्याज बाँधना और आम पन्ना पीना आज भी प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 5
लेखक बिसनाथ ने किन आधारों पर अपनी माँ की तुलना बतख के साथ की है?
उत्तर: बतख अंडे देने के बाद भी पानी में नहीं जाती, बल्कि अंडों को अपने पंखों के बीच सेती रहती है। इस प्रकार वह अपने अंडों व बच्चे की सुरक्षा एवं पोषण के लिए सतर्कता एवं कोमलता दोनों अपनाती है। इसी तरह लेखक की माँ ने बच्चे के प्रति माँ की ममता और सतर्कता दिखाई थी।

प्रश्न 6
बिस्कोहर में हुई बरसात का जो वर्णन बिसनाथ ने किया है, उसका विवरण अपने शब्दों में दीजिए।
उत्तर: बरसात से पहले आकाश में घने बादल छा जाते, बिजली कड़कने लगती और दिन में अँधेरा सा छा जाता। जब मूसलाधार वर्षा होती, तब उसका स्वरलय तबला-मृदंग और सितार जैसा प्रतीत होता। बादल गरजते हुए जैसे थिंक-थिंक घोड़े भागते हों, और हर जगह पानी की बूंदें माटी में समा जातीं।

प्रश्न 7
“फूल केवल गंध ही नहीं देते बल्कि दवा भी करते हैं” – कैसे?
उत्तर: गाँव में लोग मानते थे कि कुछ फूलों का रस या दूध औषधीय गुणों से परिपूर्ण होता है। उदाहरणत: भरभंडा नामक फूल का दूध आँखों में डालने पर उसे शीतलता और उपचार का अनुभव होता है।

प्रश्न 8
“प्रकृति सजीव नारी बन गई” – इस कथन के संदर्भ में प्रकृति, नारी, और सौंदर्य की मान्यताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: लेखक ने देखा कि एक जूही की लता पर खिले फूलों की सुगंध और चाँदनी रात का सौंदर्य मिलकर स्त्री सौरभ का अनुभव कराते हैं। यहाँ प्रकृति की कोमलता, नारी के सौंदर्य और चाँदनी की कोमल रौनक एक-दूसरे में गुंथी नजर आती है, जो मनुष्यता के सौंदर्यबोध को दर्शाती है।

प्रश्न 9
ऐसी कौन सी स्मृति है जो लेखक को मृत्यु का बोध अजीब तौर से जुड़ा मिलता है?
उत्तर: एक बार गाँव में लेखक ने ठुमरी सुनी, जिससे उसे उस स्त्री की याद आई जिसे पति की मृत्यु की पीड़ा थी। संगीत की उस थिरकन ने मृत्यु के प्रति उदासीनता के बीच भी जीवन-चक्र और नए जन्म का अहसास करा दिया।

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

🌷 Q 1. “बिस्कोहर की माटी” किस पुस्तक का अंश है?
(A) गोदान
(B) रंगभूमि
(C) नंगातलाई का गाँव
(D) माटी की मूरतें
✅ उत्तर: (C) नंगातलाई का गाँव

🌷 Q 2. लेखक के अनुसार तालाब में किस पुष्प के पत्तों पर भोजन परोसा जाता था?
(A) कदंब
(B) कमल
(C) गुलाब
(D) पलाश
✅ उत्तर: (B) कमल

🌷 Q 3. गरमी में लू से बचने के लिए ग्रामीण किस देसी उपाय का उल्लेख करते हैं?
(A) बादाम-दूध
(B) कच्चा प्याज
(C) गेहूँ का दलिया
(D) गुड़-चने
✅ उत्तर: (B) कच्चा प्याज

🌷 Q 4. “कोइयाँ” फूल को पाठ में किस अन्य नाम से पुकारा गया है?
(A) परिजात
(B) कुमुद
(C) पलाश
(D) बेला
✅ उत्तर: (B) कुमुद

🌷 Q 5. लेखक ने साँपों में सबसे अधिक ख़तरनाक किसे बताया है?
(A) धामिन
(B) मजनुवा
(C) डोड़हा
(D) गोहुअन
✅ उत्तर: (C) डोड़हा

🌸 Q 6. लेखक ने कमल-पत्ते के बहुउद्देशीय उपयोग का वर्णन कैसे किया है?
उत्तर: तालाब से तोड़े गए विशाल कमल-पत्ते प्लेट का काम करते; इन्हीं पर पर्व के दिन भोजन परोसा जाता तथा डंठल की सब्ज़ी बनती, जिससे प्रकृति और भोजन का अनोखा संगम झलकता है।

🌸 Q 7. दाई की भूमिका बच्चे के जन्म के समय क्यों महत्वपूर्ण थी?
उत्तर: आधुनिक चिकित्सालय न होने से दाई ही प्रसव–पूर्व देखभाल, औषधीय पत्तों से मालिश और माँ-शिशु को सुरक्षा देती; उसकी अनुभवी निगरानी ग्रामीण समुदाय का विश्वास बना रहती थी।

🌸 Q 8. बाढ़ आने पर बिस्कोहर के खेत-खलिहान का क्या हाल होता है?
उत्तर: धान के मैदान जल-भराव से समुद्र-से लगते; कच्चे घर गिरते, सर्प निकल पड़ते पर लोग नावों-खूँटियों से जुड़ बूढ़े पेड़ों पर राशन टांग कर जीवट से दिन काटते हैं।

🌸 Q 9. “माँ का दूध पीना सिर्फ़ भूख मिटाना नहीं” — लेखक इस वाक्य से क्या इंगित करता है?
उत्तर: शिशु जब आँचल की छाया में दूध पीता है, तब स्पर्श-गंध-स्नेह का संपूर्ण जीवनचरित गढ़ता है; यह जैविक नहीं, आत्मिक रिश्ता है जो उम्र-भर पोषण देता है।

🌸 Q 10. कोइयाँ और शरद-रात्री चाँदनी का सम्बन्ध पाठ में कैसे उभारा गया है?
उत्तर: लेखक बताता है कि चाँदनी की झिलमिल परत तालाब पर ऐसे बिछती मानो कोइयाँ की सफेद पत्तियाँ जल-आईने पर तैर रही हों, जिससे प्रकृति-कला का अलौकिक दृश्य बनता है।

🌼 Q 11. ग्रामीण जीवन में प्राकृतिक औषधियों की अनिवार्यता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: बिस्कोहर में डॉक्टर दुर्लभ थे, अतः प्याज-अमिया लू-प्रतिरोधी, तुलसी-हरसिंगार ज्वरनाशक, कमल-ककड़ी अकाल-भोजन, तोरी-लौकी शीतलाहार बने। इन देसी नुस्खों ने चिकित्सा-स्वावलम्बन को संभव किया, साथ-ही-साथ प्रकृति के ऋण को स्वीकारने का संस्कार भी रोपा।

🌼 Q 12. लेखक ने फूल-फल-साँप के वर्णन से कौन-सा प्रतीकात्मक संदेश दिया है?
उत्तर: इत्र-से गंधाते फूल आनंद का, काँटेदार सिघाड़ा संघर्ष का और विषधर डोड़हा भय का द्योतक हैं; तीनों संग मिलकर ग्राम्य जीवन की पूर्णता दर्शाते हैं—सौन्दर्य, चुनौतियाँ और जीजिविषा एक साथ चलती हैं।

🌼 Q 13. “बिस्कोहर की मिट्टी मानो चरित्र-निर्माण की कार्यशाला है”—समझाइए।
उत्तर: मिट्टी यहाँ खेती-कला सिखाती, धूल-धूप सहनशीलता, बाढ़-संकट सामुदायिक एकता, पुष्प-खुशबू सौंदर्यबोध और दाई-माँ वात्सल्य के संस्कार भरती है; इस बहुआयामी प्रशिक्षण ने लेखक की मानवीय दृष्टि गढ़ी।

🌼 Q 14. लेखक के बचपन में बड़ी उम्र की स्त्री के प्रति आकर्षण से क्या मनोवैज्ञानिक संकेत मिलते हैं?
उत्तर: दस वर्ष का फिसलता कौतूहल ‘लाज-ललक’ का पहला बोध था; ग्रामीण संस्कारों में दमित पर अंतःकरण में अंकित इस अनुभूति ने भविष्य के रचनाकार में संवेदनशीलता और स्त्री-सम्मान की नींव डाली।

🌟 Q 15. ऋतु-चर्या के माध्यम से लेखक ने ग्राम्य-संस्कृति का बहुरंगी कैनवास कैसे रचा है?
उत्तर: भीषण गरमी में प्याज-अमिया की गंध, सूखे तालाब-तल से कमल-ककड़ी खोदते हाथ और लू में चरमराते खेत मनुष्य-प्रकृति संघर्ष का स्वर रचते हैं। बरसात आते ही डोड़हा-मजनुवा साँपों का भय, पर कइयों-कमल-सिघाड़े के इत्र से भीगी हवा जीवन में रोमांच घोल देती है। शरद की चाँदनी रातें तालाब को दर्पण-सा चमका, कोइयाँ-हर्षिंगार के सफ़ेद-नारंगी फूलों की सेज बिछाती हैं, जहाँ किशोर बिसनाथ प्रथम सौंदर्य-बोध से आलोकित होता है। इन तीन ऋतुओं का नाट्य सिर्फ़ मौसम-परिवर्तन नहीं, बल्कि श्रम, भोग, उत्सव, डर, उपचार, प्रेम और स्मृति का चक्र है—जो मिट्टी-मनुष्य सहयोगी तंत्र की बयार बहाकर पाठक को सादगी, सहनशीलता और प्रकृतिप्रियता का शाश्वत पाठ पढ़ाता है।

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