Class 12 : हिंदी अनिवार्य – अध्याय 5. उषा
संक्षिप्त लेखक परिचय
🌟 शमशेर बहादुर सिंह – परिचय 🌟
🔹 जीवन परिचय
🗓️ जन्म: 13 जनवरी 1911, देहरादून (उत्तराखंड)
🏫 शिक्षा: इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक
💼 पेशा: पत्रकार, संपादक, कवि, अनुवादक
🎖️ सम्मान: साहित्य अकादमी पुरस्कार (1978)
🛑 निधन: 12 मई 1993, अहमदाबाद
🔹 साहित्यिक योगदान
✒️ शमशेर बहादुर सिंह हिंदी के प्रगतिवादी और प्रयोगशील कवि थे, जिन्हें “हिंदी का पाब्लो नेरूदा” भी कहा जाता है।
🌸 उनकी कविता में संवेदनशीलता, गहन मानवीय सरोकार और चित्रात्मकता का अद्वितीय संगम मिलता है।
📖 वे नई कविता आंदोलन के प्रमुख स्तंभों में से एक थे, जिनकी रचनाएँ कला और वैचारिकता का सुंदर मिश्रण प्रस्तुत करती हैं।
🌍 उन्होंने अंग्रेज़ी और उर्दू साहित्य का उत्कृष्ट अनुवाद किया, जिससे हिंदी साहित्य को अंतरराष्ट्रीय दृष्टि मिली।
🎨 उनकी कविताओं में रंग, रेखा और संगीत की गूंज स्पष्ट सुनाई देती है—मानो वे शब्दों से चित्र रचते हों।
📚 प्रमुख कृतियाँ: कुछ कविताएँ, उदिता, चुका भी हूँ नहीं मैं, काल तुझसे होड़ है मेरी।
💖 वे जीवन के सूक्ष्म भावों और मानवीय संवेदनाओं को बेहद सटीक और कलात्मक ढंग से व्यक्त करने में निपुण थे।
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन

🌸 कविता का प्रतिपाद्य विषय
‘उषा’ कविता में कवि ने भोर के समय आकाश और धरती पर फैले रंगों के अद्भुत मेल को शब्दों में कैद किया है।
यह सूर्योदय से पहले का वह क्षण है जब अंधकार और प्रकाश के बीच एक नाजुक संतुलन होता है।
कवि ने ग्रामीण जीवन से जुड़े सजीव उपमानों के माध्यम से इसे प्रस्तुत किया है, जिससे पाठक के सामने दृश्य वास्तविक रूप में उभर आता है।
📖 कविता की विस्तृत व्याख्या
1️⃣ प्रथम काव्यांश
“प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)”
भावार्थ: भोर का आकाश अत्यंत गहरे नीले रंग का है — जैसे नीला शंख, जो पवित्रता और शांति का प्रतीक है।
ग्रामीण उपमान: “राख से लीपा हुआ चौका” — भारतीय ग्रामीण घरों में चौका-चूल्हा लीपने की परंपरा पवित्रता का प्रतीक है। कवि ने गीले चौके का उल्लेख करके उस क्षण की ताजगी और शीतलता को उभारा है।
गहराई: नीले रंग का चयन शांति, स्थिरता और एक नए दिन की शुरुआत का संकेत देता है।
2️⃣ द्वितीय काव्यांश
“बहुत काली सिल जरा-से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने”
भावार्थ: जैसे-जैसे उषा बढ़ती है, आकाश में लालिमा फैलती है। यह दृश्य ऐसा है मानो काली पिसाई की सिल पर लाल केसर के छींटे पड़ गए हों।
अन्य उपमान: स्लेट पर लाल खड़िया चाक मलना — यह तुलना लालिमा की गाढ़ी और स्पष्ट रेखा का बोध कराती है।
गहराई: काली पृष्ठभूमि (रात्रि) और लाल आभा (उषा) का संयोजन आशा और ऊर्जा का प्रतीक है।
3️⃣ तृतीय काव्यांश
“नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।”
भावार्थ: आकाश में फैली लालिमा और नीला रंग मिलकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे नीले जल में किसी गोरी स्त्री का झिलमिलाता शरीर हिल रहा हो।
मानवीकरण: प्रकृति को मानवीय रूप देकर सौंदर्य और कोमलता का चित्रण किया गया है।
गहराई: यह उपमा केवल दृश्यात्मक ही नहीं, बल्कि संवेदनात्मक भी है, जो सौंदर्य की कोमलता और लहराती गति को व्यक्त करती है।
4️⃣ समापन
“और…
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।”
भावार्थ: जैसे ही सूर्य पूर्ण रूप से उदित होता है, उषा का यह मनोहारी, जादुई दृश्य समाप्त हो जाता है।
प्रतीक: यह समय की क्षणभंगुरता का संकेत है — सुंदरता और जीवन दोनों ही परिवर्तनशील हैं।
🪶 काव्यगत विशेषताएं
🗣️ भाषा-शैली
साहित्यिक खड़ी बोली में रचित
सरल, सहज, बोधगम्य अभिव्यक्ति
उर्दू शायरी जैसी लयात्मकता
🏠 जीवन से जुड़ाव: सामान्य घरेलू वस्तुओं से प्रकृति के अनुपम दृश्य की तुलना — कविता को जन-सुलभ बनाती है।
🆕 प्रयोगवादी विशेषता: नए बिंब, प्रतीक और उपमानों से युक्त आधुनिक शैली।
📚 साहित्यिक महत्व
यह कविता बिंबधर्मिता और प्रयोगधर्मिता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
प्रकृति के चित्रण में ग्रामीण जीवन और आधुनिक काव्य-शैली का अनूठा संगम।
हिंदी कविता में दृश्यात्मकता और संवेदनात्मकता को साथ लाने का अद्वितीय प्रयास।
📝 सारांश
‘उषा’ कविता सूर्योदय से पहले के प्रातःकालीन आकाश के पल-पल बदलते रंगों और रूपों का अद्भुत चित्रण है। कवि ने नीले आकाश की तुलना शंख और राख से लीपे चौके से, लालिमा की तुलना केसर लगी सिल और लाल खड़िया चाक से, तथा आभा की तुलना नीले जल में झिलमिलाती गोरी देह से की है। सूर्योदय होते ही यह जादुई सौंदर्य समाप्त हो जाता है। कविता प्राकृतिक सौंदर्य को आम जीवन की वस्तुओं और भावों से जोड़ती है और इसमें उपमा, मानवीकरण तथा उत्प्रेक्षा अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है।
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
✏️ कविता के साथ
❓ प्रश्न 1
कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है?
✅ उत्तर:
🌾 कवि शमशेर बहादुर सिंह ने अपनी कविता में ग्रामीण परिवेश के सहज उपमानों का प्रयोग किया है।
🔹 राख से लीपा हुआ चौका
🔹 बहुत काली सिल पर लाल केसर
🔹 स्लेट पर लाल खड़िया चाक
🔹 गौर झिलमिल देह
🌿 इन उपमानों से स्पष्ट होता है कि यह गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है।
🏡 ग्रामीण क्षेत्रों में गृहिणी चौका राख से लीपती है, सिल पर केसर पीसती है और बच्चे स्लेट पर चाक मलते हैं।
✨ ये सभी दैनिक क्रियाकलाप गाँव के जीवंत परिवेश को दर्शाते हैं।
❓ प्रश्न 2
“भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है)” – नयी कविता में कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।
✅ उत्तर:
🖋️ कवि ने कोष्ठक का प्रयोग कर अपने कथन को स्पष्टता प्रदान की है।
💧 “अभी गीला पड़ा है” से प्रातःकालीन ओस की नमी और ताजगी का बोध होता है।
🌫️ यह अतिरिक्त जानकारी देता है कि चौका पूरी तरह सूखा नहीं है, बल्कि नमी के कारण गीला है।
🌄 इससे भोर की वातावरणिक स्थिति का पता चलता है।
🎨 गीला चौका गहरे रंग का होता है, जो सूखने पर हल्का हो जाता है।
⏳ यह कोष्ठक उषाकाल की क्षणभंगुरता और परिवर्तनशीलता को दर्शाता है।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🎯 5 MCQ (बहुविकल्पीय प्रश्न)
1.’उषा’ कविता में नीले शंख की उपमा किसके लिए दी गई है?
(a) सूर्यास्त के आकाश के लिए
(b) भोर के समय के आकाश के लिए
(c) दोपहर के समय के आकाश के लिए
(d) वर्षा ऋतु के आकाश के लिए
✅ उत्तर: (b) भोर के समय के आकाश के लिए
2.कविता में ‘राख से लीपा हुआ चौका’ किस वातावरण का बिंब है?
(a) शहरी जीवन का
(b) पर्वतीय क्षेत्र का
(c) ग्रामीण जीवन का
(d) औद्योगिक क्षेत्र का
✅ उत्तर: (c) ग्रामीण जीवन का
3.”नील जल में गौर झिलमिल देह” किस अलंकार का उदाहरण है?
(a) उपमा
(b) उत्प्रेक्षा
(c) मानवीकरण
(d) रूपक
✅ उत्तर: (b) उत्प्रेक्षा
4.’काली सिल पर लाल केसर’ किस रंग-संयोग का प्रतीक है?
(a) नीला और सफेद
(b) लाल और पीला
(c) काला और लाल
(d) हरा और पीला
✅ उत्तर: (c) काला और लाल
5.कवि के अनुसार उषा का जादू कब समाप्त होता है?
(a) भोर के समय
(b) सूर्योदय के साथ
(c) दोपहर में
(d) सूर्यास्त के समय
✅ उत्तर: (b) सूर्योदय के साथ
✏️ 5 लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer)
1’उषा’ कविता में ग्रामीण जीवन के कौन से उपमान प्रयुक्त हुए हैं?
✅ उत्तर: राख से लीपा हुआ चौका, काली सिल पर लाल केसर, स्लेट पर लाल खड़िया चाक, गौर झिलमिल देह आदि।
2 कवि ने ‘गीला चौका’ कहकर किस भाव को उभारा है?
✅ उत्तर: भोर की नमी, ताजगी और वातावरण की शीतलता का भाव।
3 कविता में ‘स्लेट पर लाल खड़िया चाक’ उपमा किसके लिए दी गई है?
✅ उत्तर: सूर्योदय के समय आकाश में फैली लालिमा के लिए।
4 कवि ने उषा को मानवीय रूप क्यों दिया है?
✅ उत्तर: ताकि प्राकृतिक सौंदर्य में कोमलता और जीवन का स्पर्श प्रकट हो सके।
5 कविता का प्रमुख भाव क्या है?
✅ उत्तर: प्राकृतिक सौंदर्य की क्षणभंगुरता और भोर का अद्भुत रंग-परिवर्तन।
📖 4 मध्यम उत्तरीय प्रश्न (Mid-Length Answer)
1 ‘उषा’ कविता में रंग-बिंबों का प्रयोग स्पष्ट कीजिए।
✅ उत्तर: कविता में नीला शंख, राख से लीपा चौका, काली सिल पर लाल केसर, स्लेट पर लाल चाक और नीले जल में झिलमिलाती गौर देह जैसे रंग-बिंब प्रयुक्त हुए हैं। ये रंग-बिंब दृश्यात्मकता के साथ-साथ सौंदर्य और शांति का वातावरण रचते हैं।
2 कविता में ग्रामीण जीवन के प्रभाव को कैसे चित्रित किया गया है?
✅ उत्तर: कवि ने चौका लीपने, सिल पर केसर पीसने और स्लेट पर चाक मलने जैसे ग्रामीण जीवन के परिचित कार्यों के माध्यम से भोर के आकाश का वर्णन किया है, जिससे दृश्य पाठक के जीवन से जुड़ा हुआ लगता है।
3 ‘उषा का जादू’ शब्द से कवि का क्या तात्पर्य है?
✅ उत्तर: भोर के समय आकाश में रंगों का निरंतर परिवर्तन और उसमें छिपी ताजगी, शांति और सौंदर्य को कवि ने ‘उषा का जादू’ कहा है, जो सूर्योदय के साथ समाप्त हो जाता है।
4 ‘उषा’ कविता में प्रयुक्त अलंकारों की पहचान कीजिए।
✅ उत्तर: कविता में उपमा अलंकार (नीला शंख, राख से लीपा चौका), मानवीकरण (उषा को स्त्री रूप में चित्रित करना) और उत्प्रेक्षा (नील जल में गौर झिलमिल देह) का प्रयोग हुआ है।
📜 1 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (Detailed Answer)
प्रश्न:1. ‘उषा’ कविता में कवि ने प्राकृतिक सौंदर्य को किस प्रकार जीवन से जोड़कर प्रस्तुत किया है?
✅ उत्तर: ‘उषा’ कविता में शमशेर बहादुर सिंह ने सूर्योदय से पहले के प्रातःकालीन आकाश का अद्भुत चित्रण किया है। कवि ने ग्रामीण जीवन के सामान्य दृश्य—राख से लीपा चौका, काली सिल पर लाल केसर, स्लेट पर लाल चाक—के माध्यम से आकाश में फैलते रंगों को व्यक्त किया है। ये उपमान न केवल दृश्यात्मक सौंदर्य प्रदान करते हैं बल्कि पाठक के जीवन से जुड़ाव भी बनाते हैं। “नील जल में गौर झिलमिल देह” जैसी कल्पना से उषा को मानवीय रूप देकर उसकी कोमलता और आकर्षण को प्रकट किया गया है। सूर्योदय के साथ यह सुंदरता क्षण में समाप्त हो जाती है, जो जीवन की क्षणभंगुरता का संदेश देती है। इस प्रकार कवि ने प्रकृति और जीवन के बीच गहरे संबंध को सजीव और संवेदनशील रूप में प्रस्तुत किया है।
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