Class 11 : हिंदी साहित्य – Lesson 2. दोपहर का भोजन
संक्षिप्त लेखक परिचय
अमरकांत – लेखक परिचय
🔸 अमरकांत हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध यथार्थवादी कथाकार थे।
🔸 इनका जन्म 1 जुलाई 1925 को बलिया, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
🔸 उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की और कुछ समय तक पत्रकारिता से भी जुड़े रहे।
🔸 अमरकांत की कहानियों में आम आदमी की समस्याएँ, गरीबी, बेरोज़गारी, और सामाजिक विषमता का सजीव चित्रण मिलता है।
🔸 उनकी भाषा सहज, प्रवाहमयी और लोक जीवन से जुड़ी हुई होती है।
🔸 प्रमुख रचनाएँ: डिप्टी कलक्टर, हत्यारे, जिन्दगी और जोंक, सुबह का भूला, थोड़ा सा प्यार, आदि।
🔸 उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, द्विवेदी युग पुरस्कार, और ज्ञानरंजन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
🔸 अमरकांत का साहित्य आज भी आम जनमानस की आवाज़ बना हुआ है।
🔸 उनका निधन 17 फरवरी 2014 को हुआ।
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन
🔷 📖 कहानी का सारांश / प्रस्तावना
“दोपहर का भोजन” हिंदी साहित्य के यथार्थवादी लेखक अमरकांत द्वारा लिखी गई एक मार्मिक कथा है। यह कहानी एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार की आर्थिक तंगी, भावनात्मक संघर्ष और पारिवारिक बंधन का चित्रण करती है।
👨👩👦👦 बेरोजगारी, कुपोषण, पारिवारिक समरसता — ये सभी विषय कहानी के माध्यम से पाठक के हृदय को स्पर्श करते हैं।
🟣 👪 मुख्य पात्रों की पहचान
🔹 मुंशी चंद्रिका प्रसाद – 45 वर्षीय, छंटनी के बाद बेरोजगार, आत्म-सम्मानपूर्ण पिता
🔹 सिद्धेश्वरी – केंद्रीय पात्र, त्यागमयी पत्नी व माँ, जो पूरे परिवार को भावनात्मक रूप से बाँधे रखती है
🔹 रामचंद्र – बड़ा बेटा, प्रूफ रीडिंग सीख रहा है
🔹 मोहन – हाईस्कूल छात्र, व्यंग्यप्रिय
🔹 प्रमोद – सबसे छोटा बेटा, कुपोषण का शिकार
🟡 👩🦱 सिद्धेश्वरी – आदर्श नारी का रूप
💠 त्याग की प्रतीक
◾ सात रोटियों में से आधी जली रोटी खुद खाकर बाकी सबको खिलाती है
◾ खुद भूखी रह जाती है पर परिवार को तृप्त करती है
💠 परिवार को जोड़नेवाली कड़ी
◾ सभी के सामने झूठी प्रशंसा करके समरसता बनाए रखती है
◾ पति-पुत्रों के आत्मसम्मान को ठेस न पहुँचे, इसका ध्यान रखती है
💠 धैर्य व संयम का आदर्श
◾ अभाव और उपेक्षा के बावजूद क्रोध या निराशा नहीं दिखाती
◾ घर में शांति का वातावरण बनाए रखती है
🔴 🍞 गरीबी का करुण चित्रण
📍 घर में पर्याप्त अनाज नहीं है
📍 प्रमोद की हालत :
▪️ हड्डियाँ उभरी हुईं
▪️ सूखे हाथ-पैर
▪️ पेट फूला हुआ – कुपोषण की गहन झलक
📍 माँ केवल अपने हिस्से की आधी रोटी बचाती है
🔵 🤝 भावनात्मक पारिवारिक समरसता
👦 रामचंद्र — कहता है, “माँ, पेट भर गया है”
🧑 मोहन — रोटी जली है, ऐसा बहाना बनाता है
👴 मुंशीजी — गुड़ और ठंडा रस मांग लेते हैं
✨ सभी मिलकर सिद्धेश्वरी की ममता को बचाने का प्रयास करते हैं
🟢 🗣️ भाषा और शिल्प
✍️ अमरकांत की भाषा —
◾ अत्यंत सहज और घरेलू
◾ आंचलिक शब्दों व मुहावरों से भरी
◾ संवाद-प्रधान शैली
◾ भावनात्मक गहराई से परिपूर्ण
🟠 📚 यथार्थ और व्यंग्य
📌 “दोपहर का भोजन” एक व्यंग्यात्मक शीर्षक भी है –
जिस समय भोजन तृप्ति का प्रतीक होता है,
यहाँ वह संघर्ष, अभाव और विवशता का प्रतीक बन जाता है।
📌 लेखक ने दिखाया कि गरीबी केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक आघात भी है।
🟤 🌾 सामाजिक संदेश
📌 बेरोजगारी और कुपोषण समाज की वृहद समस्याएँ हैं
📌 परिवार का हर सदस्य इन परिस्थितियों में भी साथ देता है
📌 त्याग, प्रेम, सहानुभूति जैसे मूल्य संकट में सबसे अधिक उभरते हैं
🟣 🧠 यथार्थवाद की उत्कृष्ट मिसाल
✨ अमरकांत ने किसी भी भावुक अतिशयोक्ति के बिना —
◾ जीवन के नंगे सत्य को दिखाया है
◾ विशेष रूप से मध्यवर्गीय संघर्ष को गंभीरता से प्रस्तुत किया है
◾ पात्रों के माध्यम से समाज का दर्पण दिखाया गया है
🔶 📌 निष्कर्ष – प्रेरणादायक अंत
🔹 “दोपहर का भोजन” केवल एक परिवार की भूख की कहानी नहीं,
बल्कि त्याग और करुणा की पराकाष्ठा है।
🔹 सिद्धेश्वरी जैसे पात्रों के माध्यम से कहानी यह सिखाती है कि —
💠 परिस्थितियाँ कितनी भी विषम हों,
💠 अगर प्रेम और संयम हो,
💠 तो कोई भी परिवार बिखरता नहीं, बल्कि और सशक्त होता है।
🔹 यह कहानी आज के समाज में भी उतनी ही प्रासंगिक, प्रेरक और विचारोत्तेजक है।
🌟 “‘दोपहर का भोजन’ पाठ्य पुस्तकों में मात्र कहानी नहीं,
हर उस माँ की आत्मगाथा है,
जो भूख से लड़ते हुए अपने बच्चों को मुस्कराता देखना चाहती है।”
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
🔷 प्रश्न 1 – सिद्धेश्वरी ने अपने बड़े बेटे रामचंद्र से मँझले बेटे मोहन के बारे में झूठ क्यों बोला?
🔸 उत्तर: सिद्धेश्वरी जानती थी कि यदि उसने रामचंद्र को मोहन की सच्चाई बता दी, तो दोनों भाइयों में झगड़ा हो जाएगा। परिवार पहले ही आर्थिक संकट में था, और वह उसे टूटने नहीं देना चाहती थी। इसलिए उसने रामचंद्र से झूठ बोलकर मोहन की छवि को बचाया ताकि घर का माहौल शांत बना रहे।
🔷 प्रश्न 2 – कहानी के सबसे जीवंत पात्र के चरित्र की दृढ़ता का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
🔸 उत्तर: सबसे जीवंत पात्र सिद्धेश्वरी है। वह केवल 7 रोटियाँ बना पाई थी, जिनमें से 2-2 रोटियाँ उसने मुंशी जी, रामचंद्र और मोहन को दीं। अपने लिए बची जली-कटी रोटी का आधा हिस्सा भी उसने बेटे प्रमोद को दे दिया। स्वयं भूखी रहकर भी उसने किसी से शिकायत नहीं की। उसकी सहनशीलता और परिवार को जोड़कर रखने की इच्छा ही उसकी चरित्र दृढ़ता को दर्शाती है।
🔷 प्रश्न 3 – गरीबी की विवशता दर्शाते कुछ प्रमुख प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
🔸 रामचंद्र बार-बार पूछने पर भी रोटी नहीं लेता क्योंकि उसे घर की हालत पता है।
🔸 मोहन को भी माँ के झूठ का आभास है, इसलिए वह भी मना कर देता है।
🔸 बीमार बच्चा भूखा है, फिर भी माँ अपनी रोटी उसे दे देती है।
🔸 प्रमोद की हालत इतनी खराब है कि उसका कुपोषण साफ दिखता है – सूखे अंग और फूला पेट।
🔷 प्रश्न 4 – सिद्धेश्वरी का झूठ बोलना परिवार को जोड़ने का प्रयास कैसे था?
🔸 उत्तर: वह अपने परिवार को टूटने से बचाना चाहती थी। इसलिए एक भाई के सामने दूसरे की तारीफ करती है, ताकि आपसी प्यार बना रहे। उसका उद्देश्य था – प्रेम और शांति से परिवार को जोड़े रखना, भले ही उसके लिए उसे झूठ बोलना पड़े।
🔷 प्रश्न 5 – आम बोलचाल की भाषा कहानी की संवेदना कैसे उभारती है?
🔸 उत्तर: लेखक ने आम शब्दों और बोलचाल की शैली में संवाद लिखे हैं जैसे – “बड़का की कसम”, “छंटे उस्ताद”, “कनखी से देखना”। ये शब्द पात्रों के यथार्थ को दर्शाते हैं और कहानी को पाठक से जोड़ते हैं।
🔷 प्रश्न 6 – रामचंद्र, मोहन और मुंशी जी रोटी न लेने के बहाने क्यों बनाते हैं?
🔸 उत्तर: वे सब समझ चुके थे कि घर में भोजन सीमित है और सिद्धेश्वरी केवल मन रखने के लिए आग्रह कर रही है। इस स्थिति में सभी अपने हिस्से की रोटी दूसरों के लिए छोड़ देते हैं – यह उनकी विवशता और परिवार-प्रेम को दर्शाता है।
🔷 प्रश्न 7 – यदि आप सिद्धेश्वरी की जगह होते तो क्या करते?
🔸 उत्तर: मैं भी संयम और साहस के साथ परिस्थिति का सामना करता/करती। जरूरत पड़ने पर सहायता माँगता/माँगती, पर आत्मसम्मान बनाए रखता/रखती और अपने परिवार के लिए कोई समाधान खोजने की कोशिश करता/करती।
🔷 प्रश्न 8 – रसोई संभालना एक बड़ी जिम्मेदारी क्यों है?
🔸 उत्तर: सीमित संसाधनों में सभी को संतुलित भोजन देना एक कुशल गृहिणी की परीक्षा होती है। सिद्धेश्वरी ने यह सिद्ध किया कि थोड़े में भी पूरे परिवार का पेट भरना एक कला और जिम्मेदारी है – जिसमें प्रेम, त्याग और बुद्धिमत्ता छिपी होती है।
🔷 प्रश्न 9 – सिद्धेश्वरी के झूठ सौ सत्यों से भारी क्यों हैं?
🔸 उत्तर: उसके झूठों में स्वार्थ नहीं, बल्कि समर्पण था। वह घर को एक रखने के लिए झूठ बोलती है। उसके झूठों से किसी को हानि नहीं होती बल्कि एकता और प्रेम बढ़ता है – इसीलिए वे सौ सत्यों से अधिक मूल्यवान हैं।
🔷 प्रश्न 10 – आशय स्पष्ट कीजिए
🔸 (क) “वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा-भर पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई।”
👉 भूख और थकावट से बेसुध होकर वह अचानक प्यास के मारे पानी पीती है।
🔸 (ख) “यह कहकर उसने अपने मँझले लड़के की ओर इस तरह देखा, जैसे उसने कोई चोरी की हो।”
👉 वह जानती है कि उसने झूठ कहा है, इसलिए मोहन की ओर अपराधबोध से देखती है।
🔸 (ग) “मुंशी जी ने चने के दानों की ओर इस दिलचस्पी से दृष्टिपात किया, जैसे उनसे बातचीत करनेवाले हों।”
👉 वह भूख छिपाने के लिए पत्नी के सवालों की अनदेखी कर खाने में व्यस्त होने का अभिनय करते हैं।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🌟 प्रश्न 1
💬 सिद्धेश्वरी ने अपने बड़े बेटे रामचंद्र से मँझले बेटे मोहन के बारे में झूठ क्यों बोला?
🔸 उत्तर:
सिद्धेश्वरी जानती थी कि यदि रामचंद्र को मोहन की आदतों के बारे में पता चल जाएगा तो भाइयों के बीच झगड़ा हो सकता है। इसलिए वह झूठ बोलती है ताकि घर का वातावरण शांत बना रहे। परिवार की एकता बनाए रखने के लिए उसने अपने मँझले बेटे की वास्तविकता छुपाई।
🌟 प्रश्न 2
💬 कहानी के सबसे जीवंत पात्र के चरित्र की दृढ़ता का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
🔸 उत्तर:
कहानी में सिद्धेश्वरी सबसे जीवंत पात्र है। वह परिवार की भूख और गरीबी के बीच भी संतुलन बनाए रखती है। जब रोटियाँ कम थीं, तब उसने सबको खिला दिया और खुद जली हुई आधी रोटी खाई। वह परिवार को जोड़कर रखने का प्रयास करती है और अपने दुखों को छुपा लेती है।
🌟 प्रश्न 3
💬 कहानी के उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे गरीबी की विवशता झाँक रही हो।
🔸 उत्तर:
🔹 रामचंद्र बार-बार पूछने पर भी रोटी नहीं लेता क्योंकि उसे घर की हालत पता है।
🔹 मोहन भी माँ के झूठ को समझता है और रोटी लेने से मना कर देता है।
🔹 छोटा बच्चा प्रमोद भूखा है, फिर भी माँ उसे खाना देने की कोशिश करती है।
🔹 प्रमोद की हड्डियाँ और सूखा शरीर कुपोषण का संकेत देते हैं।
🌟 प्रश्न 4
💬 ‘सिद्धेश्वरी का एक दूसरे सदस्य के विषय में झूठ बोलना परिवार को जोड़ने का अनथक प्रयास था’ – इस संबंध में आप अपने विचार लिखिए।
🔸 उत्तर:
सिद्धेश्वरी अपने घर को एकजुट रखने के लिए प्रेम और झूठ का सहारा लेती है। वह हर सदस्य के सामने दूसरे की प्रशंसा करती है ताकि मनभेद न हों। उसका झूठ स्वार्थ नहीं, बल्कि एकता का माध्यम था।
🌟 प्रश्न 5
💬 ‘अमरकांत आम बोलचाल की ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं जिससे कहानी की संवेदना पूरी तरह उभरकर आ जाती है।’ — स्पष्ट कीजिए।
🔸 उत्तर:
अमरकांत ने ‘बड़का’, ‘कनखी’, ‘छंटे उस्ताद’ जैसे सामान्य शब्दों का प्रयोग किया है। इससे भाषा सहज बन गई है। पाठक पात्रों की स्थिति से सीधे जुड़ जाता है, और कहानी की संवेदना गहराई से महसूस होती है।
🌟 प्रश्न 6
💬 रामचंद्र, मोहन और मुंशी जी खाते समय रोटी न लेने के लिए बहाने करते हैं, उसमें कैसी विवशता है?
🔸 उत्तर:
वे जानते थे कि घर में भोजन सीमित है और माँ झूठ बोल रही है। सबने मिलकर त्याग किया ताकि परिवार के दूसरे सदस्य भूखे न रहें। यह उनकी विवशता और समझदारी को दर्शाता है।
🌟 प्रश्न 7
💬 सिद्धेश्वरी की जगह आप होते तो क्या करते?
🔸 उत्तर:
यदि मैं सिद्धेश्वरी की जगह होता/होती, तो अपने आत्मसम्मान के साथ समस्या का समाधान खोजता/खोजती। मैं सहायता मांगता/मांगती या आय का कोई साधन ढूँढता/ढूँढती, लेकिन परिवार को एकजुट रखने के लिए हर संभव प्रयास करता/करती।
🌟 प्रश्न 8
💬 रसोई संभालना बहुत जिम्मेदारी का काम है – सिद्ध कीजिए।
🔸 उत्तर:
गृहिणी को यह तय करना होता है कि सीमित भोजन से पूरे परिवार का पेट कैसे भरे। सिद्धेश्वरी की तरह वह सबसे पहले सबको खिला देती है और खुद अंत में खाती है। यह उसकी जिम्मेदारी, त्याग और धैर्य को दर्शाता है।
🌟 प्रश्न 9
💬 आपके अनुसार सिद्धेश्वरी के झूठ सौ सत्यों से भारी कैसे हैं?
🔸 उत्तर:
उसके झूठ ने परिवार को तोड़ा नहीं, जोड़ा। उन्होंने न किसी का नुकसान किया, न ही अपमान। उन झूठों का उद्देश्य केवल शांति बनाए रखना और एकता थी। इसलिए ये झूठ सौ सत्य से श्रेष्ठ हैं।
🌟 प्रश्न 10
💬 आशय स्पष्ट कीजिए —
🟢 (क) वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा-भर पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई।
🔸 उत्तर:
सिद्धेश्वरी भूखी थी, परंतु बच्चों के लिए खाना बनाकर इंतजार कर रही थी। प्यास से बेहाल होकर वह तेजी से उठती है और लोटा भरकर पानी पी लेती है। यह उसकी थकावट और लाचारी को दर्शाता है।
🟢 (ख) यह कहकर उसने अपने मँझले लड़के की ओर इस तरह देखा, जैसे उसने कोई चोरी की हो।
🔸 उत्तर:
माँ ने झूठा संवाद गढ़ा था कि बड़ा बेटा मँझले की तारीफ कर रहा था। झूठ बोलते हुए उसे अपराधबोध होता है और बेटे की ओर ऐसे देखती है जैसे वह कोई गलती कर बैठी हो।
🟢 (ग) मुंशी जी ने चने के दानों की ओर इस दिलचस्पी से दृष्टिपात किया, जैसे उनसे बातचीत करनेवाले हों।
🔸 उत्तर:
मुंशी जी पत्नी की बात को नजरअंदाज करके थाली के चनों में ध्यान लगाते हैं। यह भूख की गंभीरता और वातावरण की असहजता को दिखाता है।
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अतिरिक्त ज्ञान
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