Class 11, HINDI COMPULSORY

Class 11 : हिंदी अनिवार्य – Lesson 5 गलता लोहा

संक्षिप्त लेखक परिचय

📘 लेखक परिचय — शेखर जोशी


🔵 शेखर जोशी का जन्म 10 सितंबर 1932 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के ओलिया गाँव में एक किसान परिवार में हुआ था।
🟢 प्रारंभिक शिक्षा अजमेर एवं देहरादून में प्राप्त की।
🟡 इंटरमीडिएट के दौरान वे ई.एम.ई. अप्रेंटिसशिप के लिए चयनित हुए और 1955–1986 तक सैनिक औद्योगिक प्रतिष्ठान में कार्यरत रहे।
🔴 तत्पश्चात उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर स्वयं को पूर्णकालिक लेखन के लिए समर्पित कर दिया।
🟢 उन्होंने 1951 में लिखी पहली कहानी “राजे खत्म हो गए” से साहित्यिक यात्रा आरंभ की।

🟡 इसके बाद उन्होंने ‘दाज्यू’, ‘कोसी का घटवार’, ‘बदबू’, ‘साथ के लोग’, ‘नौरंगी बीमार है’ जैसी कहानियाँ लिखीं, जिनमें पहाड़ी जीवन, सामाजिक असमानता, और मानव संघर्ष के सूक्ष्म भाव चित्रित हैं।
🔵 उनकी कहानियाँ नई कहानी आंदोलन के अग्रदूत अमरकांत के साथ प्रचारित धड़े की प्रतिनिधि कहानियाँ मानी जाती हैं।
🔴 उनके लेखन में यथार्थवादी दृष्टिकोण, सहज भाषा, और मानवीय संवेदनशीलता का सुंदर समन्वय है।
🟢 उन्होंने लघुकथा, शब्दचित्र और कहानी–संग्रहों में पहाड़ की स्मृतियाँ एवं जन–संवेदना को अत्यंत कुशलता से प्रस्तुत किया।

💠 प्रमुख कृतियाँ:
कोसी का घटवार (1962), दाज्यू (1956), हलवाहा (1965), मेरा पहाड़ (1972), पेड़ की याद (1980)

💠 सम्मान:
महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार (1987), साहित्य भूषण (1995), पहल सम्मान (1997)

💠 विचारधारा:
यथार्थवादी, समाज–चेतन, क्षेत्रीय लोक–संस्कृति

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन

📘 कहानी का परिचय
“गलता लोहा” शेखर जोशी की एक प्रमुख कहानी है जो कक्षा 11 की एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-1’ में संकलित है��। यह कहानी भारतीय समाज में व्याप्त जातिगत विभाजन, सामाजिक असमानता और परंपरागत व्यवसाय प्रणाली पर एक मार्मिक टिप्पणी करती है।

🎯 मुख्य विषय और थीम
⚖️ कहानी जातीय अभिमान और मेहनत की गरिमा के बीच संघर्ष को दर्शाती है��। इसका केंद्रीय विषय यह है कि कैसे एक मेधावी ब्राह्मण युवक मोहन, जीवन की कठिन परिस्थितियों में अपने जातीय अभिमान को त्यागकर मेहनतकशों के साथ खड़ा होता है और लोहारगिरी जैसे शिल्पकारी के काम में दक्षता दिखाता है��।
🔥 कहानी का शीर्षक ‘गलता लोहा’ प्रतीकात्मक है – जिस प्रकार लोहा गलकर नया आकार लेता है, उसी प्रकार मोहन का व्यक्तित्व भी परिस्थितियों की आग में तपकर रूढ़िवादी सामाजिक मान्यताओं से मुक्त हो जाता है��।

👤 प्रमुख पात्र
👨‍🎓 मोहन: कहानी का मुख्य पात्र, एक प्रतिभाशाली ब्राह्मण युवक जो गरीबी के कारण अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाता और अंततः तकनीकी शिक्षा प्राप्त करता है��।
🛠️ धनराम लोहार: मोहन का बचपन का साथी और लोहार, जो शिल्पकारी में दक्ष है। वह जातिगत भेदभाव के बावजूद मोहन के प्रति स्नेह और आदर का भाव रखता है��।
🙏 वंशीधर तिवारी: मोहन के पिता, एक गरीब पुरोहित जो अपने बेटे को बड़ा अधिकारी बनाने का सपना देखते हैं��।
👨‍🏫 मास्टर त्रिलोक सिंह: मोहन और धनराम के स्कूल के अध्यापक, जो कठोर अनुशासन में विश्वास करते थे। उन्होंने मोहन के बारे में भविष्यवाणी की थी कि वह बड़ा आदमी बनेगा��।
💼 रमेश: बिरादरी का एक संपन्न युवक जो मोहन को लखनऊ ले जाता है लेकिन उसे घरेलू नौकर जैसा व्यवहार देता है�।

📖 कथा-सार
🧒 बचपन और शिक्षा
📚 कहानी की शुरुआत मोहन के बचपन से होती है जब वह और धनराम एक साथ स्कूल जाते थे। मोहन अपनी कक्षा का मॉनिटर और सबसे होशियार छात्र था, जबकि धनराम एक साधारण छात्र था जिसे पढ़ाई में कठिनाई होती थी��।
👨‍🏫 मास्टर त्रिलोक सिंह बहुत सख्त थे और अक्सर धनराम को दंड देने के लिए मोहन को ही जिम्मेदारी देते थे।
📌 एक प्रसिद्ध प्रसंग है जब धनराम तेरह का पहाड़ा नहीं सुना सका तो मास्टर जी ने कहा, “तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?”�� यह कथन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह धनराम के परंपरागत पेशे (लोहारगिरी) की ओर इशारा करता है।

🏙️ लखनऊ में संघर्ष
🎓 मोहन को छात्रवृत्ति मिलने के बाद उसके पिता ने उसे आगे पढ़ाने का निर्णय लिया��। लेकिन स्कूल दूर था और बरसात में नदी पार करना खतरनाक था। एक दिन नदी में बाढ़ आने से मोहन के प्राण संकट में पड़ गए।
🤝 इसी बीच रमेश नाम का एक धनी युवक मिला जो मोहन को लखनऊ ले गया�। लेकिन वहाँ मोहन का जीवन एक नौकर जैसा हो गया। वह दिन-भर घरेलू काम करता और रमेश उसे अधिक सम्मान नहीं देता था��।
🏫 रमेश के परिवार ने अंततः मोहन को एक तकनीकी स्कूल में भर्ती करा दिया, यह कहते हुए कि “हजारों-लाखों बी.ए., एम.ए. मारे-मारे बेकार फिर रहे हैं। ऐसी पढ़ाई से अच्छा तो आदमी कोई हाथ का काम सीख ले”�।

🏡 गाँव वापसी और रूपांतरण
🚶 जब मोहन गाँव लौटा, तो उसके पैर अनायास ही शिल्पकार टोले (धनराम के लोहार की दुकान) की ओर मुड़ गए��। वहाँ वह धनराम से मिला जो अब अपने पिता की विरासत संभाल रहा था।
🔪 मोहन अपना कुंद हो चुका हँसुआ (दरांती) धार लगवाने ले गया�। धनराम ने बड़े प्रेम से उसका काम किया। जब धनराम लोहे को गोलाई में मोड़ने में कठिनाई का सामना कर रहा था, तो मोहन ने संकोच त्यागकर उसकी मदद की��।

🌟 चरम बिंदु – जातीय बंधनों का टूटना
⚒️ कहानी का सबसे महत्वपूर्ण क्षण वह है जब मोहन धनराम के हाथ से हथौड़ा लेकर स्वयं लोहे को गोलाई में मोड़ने लगता है��। उसने धौंकनी फूंकी, लोहे को भट्टी में गर्म किया और फिर निहाई पर रखकर उसे सुघड़ गोले का रूप दे दिया।
😲 यह दृश्य धनराम के लिए आश्चर्यजनक था क्योंकि सामान्य रूप से ब्राह्मण टोले के लोगों का शिल्पकार टोले में उठना-बैठना नहीं होता था�। लेकिन मोहन ने इन सामाजिक बंधनों को तोड़ दिया।
✨ कहानी का अंतिम वाक्य बहुत सुंदर है: “उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी—जिसमें न स्पर्धा थी और न ही किसी प्रकार की हार-जीत का भाव”��। यह दर्शाता है कि मोहन ने काम की गरिमा को समझ लिया था।

📜 कहानी का संदेश
📌 शेखर जोशी ने इस कहानी के माध्यम से कई महत्वपूर्ण संदेश दिए हैं:
⚖️ जातिगत भेदभाव की निरर्थकता: कहानी यह दिखाती है कि जन्म के आधार पर किसी को श्रेष्ठ या हीन मानना गलत है��।
🛠️ श्रम की गरिमा: हर प्रकार का ईमानदार श्रम सम्मानजनक है, चाहे वह बौद्धिक हो या शारीरिक�।
🔥 परिस्थितियों द्वारा रूपांतरण: जीवन की विपरीत परिस्थितियाँ व्यक्ति को बदल देती हैं, जैसे गर्म भट्टी में लोहा गलकर नया रूप ले लेता है��।
🤝 मेहनतकशों का भाईचारा: मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधार पर निर्मित झूठे भाईचारे की जगह मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे की प्रस्तावना करता है�।

✍️ कहानी की भाषा और शिल्प
🪶 शेखर जोशी की भाषा सहज और सरल है। उन्होंने लोहारगिरी से संबंधित शब्दों का बहुत सुंदर उपयोग किया है जैसे – निहाई, धौंकनी, भट्टी, हथौड़ा, ऑफर आदि��।
🔄 कहानी में फ्लैशबैक तकनीक का प्रयोग है जहाँ मोहन और धनराम अपने बचपन की यादों में खो जाते हैं�।
🔱 प्रतीकात्मकता इस कहानी की विशेषता है – गलता हुआ लोहा मोहन के बदलते व्यक्तित्व का प्रतीक है��।

🏁 निष्कर्ष
📚 ‘गलता लोहा’ आधुनिक हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण कहानी है जो सामाजिक यथार्थ को बिना किसी उपदेशात्मकता के प्रस्तुत करती है��। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा भाईचारा जाति के आधार पर नहीं बल्कि मेहनत और कर्म के आधार पर बनता है।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

🟠 प्रश्न 1: कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें, जिसमें किताबों की विद्या और चूल्हा चलाने की विद्या का ज़िक्र आया है।
🔵 उत्तर: यह प्रसंग तब उभरता है जब मोहन को जीवन-यापन की कठोर सच्चाइयों से साक्षात्कार होता है और वह समझता है कि केवल किताबों की विद्या पर्याप्त नहीं है; घर का चूल्हा चलाने के लिए मेहनत, व्यवहारिक कौशल और संघर्ष का ज्ञान आवश्यक है। लेखक इसी विरोधात्मक संगति से संकेत करता है कि शिक्षा का मूल्य तभी है जब वह जीविका से जुड़कर जिम्मेदारियाँ निभाने की क्षमता दे।

🟠 प्रश्न 2: धर्मराम मोहन को अपना प्रतिद्वन्द्वी क्यों नहीं समझता था?
🔵 उत्तर: धर्मराम मोहन को प्रतिद्वन्द्वी इसलिए नहीं मानता था क्योंकि उसकी दृष्टि में मोहन पुस्तकीय ज्ञान वाला, अनुभवहीन और व्यवहारिक जमीन से दूर था; प्रतिद्वन्द्विता समान क्षमता और पक्के अनुभव पर टिकी होती है, जबकि मोहन उस स्तर तक नहीं पहुँचा था, इसलिए धर्मराम उसे चुनौती के रूप में नहीं देखता।

🟠 प्रश्न 3: धर्मराम को मोहन के किस व्यवहार पर आश्चर्य होता है और क्यों?
🔵 उत्तर: धर्मराम को तब आश्चर्य होता है जब मोहन कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारता, लगन से काम सीखता है और जिम्मेदारी उठाने की तत्परता दिखाता है; उसे उम्मीद थी कि मोहन केवल किताबों के सहारे पीछे हट जाएगा, पर मोहन की दृढ़ता और श्रमशीलता देखकर उसका अनुमान टूट जाता है।

🟠 प्रश्न 4: मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके “जीवन का एक नया अध्याय” क्यों कहा है?
🔵 उत्तर: लखनऊ आकर मोहन का सामना वास्तविक जीवन से होता है—काम, अनुशासन, आत्मनिर्भरता और संघर्ष की सीधी शिक्षा यहीं मिलती है; यही अवधि उसे व्यवहारिक दक्षता, आत्मविश्वास और परिपक्वता देती है, इसलिए लेखक इसे उसके जीवन का नया अध्याय कहता है।

🟠 प्रश्न 5: मास्टर त्रिलोक सिंह के किस कथन को लेखक ने “जुबान का चाबुक” कहा है और क्यों?
🔵 उत्तर: मास्टर त्रिलोक सिंह द्वारा मोहन को सुनाए गए वे कड़े, सटीक और सचेतक शब्द “जुबान का चाबुक” कहलाते हैं जिनसे मोहन का पुस्तकीय अभिमान टूटता है और उसे सच्चाई का सामना करना पड़ता है; उनके कठोर किन्तु हितकारी वचन मोहन को मेहनत, अनुशासन और व्यवहारिकता का पाठ पढ़ाते हैं, इसलिए लेखक ने उन्हें “जुबान का चाबुक” कहा।

🟠 प्रश्न 6(1): “विरासत का यही सहारा होता है।”
🔵 उत्तर: यह वाक्य कहानी में उस संदर्भ में आता है जब बड़े-बुज़ुर्ग परिश्रम, ईमानदारी और कर्मनिष्ठा को असली पूँजी बताते हैं; आशय यह है कि वंश-परम्परा का भरोसा संपत्ति नहीं, बल्कि संस्कार और श्रम-संस्कृति है जो कठिन समय में सहारा देती है, और कथा के प्रसंगों में यही भाव अंततः स्पष्ट भी हो जाता है।

🟠 प्रश्न 6(2): “उसकी आँखों में एक सजग की चमक थी”—किसके लिए, किस प्रसंग में, और यह पंक्ति किन चारित्रिक पहलुओं को उभारती है?
🔵 उत्तर: यह पंक्ति मोहन के लिए उस समय प्रयुक्त होती है जब वह व्यवहारिक जीवन का मर्म समझकर नए आत्मविश्वास और जिम्मेदारी-बोध के साथ कार्य में जुटता है; इसके माध्यम से उसकी जागरूकता, तत्परता, लगन, अनुशासन और आत्मनिर्भर बनने की प्रवृत्ति उजागर होती है, जो उसके व्यक्तित्व-परिवर्तन का संकेत है।

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

🔵 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ)
🟢 प्रश्न 1
मोहन किस जाति का था?
🔴 1️⃣ लोहार
🟡 2️⃣ ब्राह्मण
🟢 3️⃣ क्षत्रिय
🔵 4️⃣ वैश्य
✅ उत्तर: 2️⃣ ब्राह्मण

🟢 प्रश्न 2
धनराम की भट्ठी पर बैठकर मोहन ने क्या बनाया?
🔴 1️⃣ लोहे की कुल्हाड़ी
🟡 2️⃣ लोहे का छल्ला
🟢 3️⃣ लोहे की छड़
🔵 4️⃣ लोहे का हथौड़ा
✅ उत्तर: 2️⃣ लोहे का छल्ला

🟢 प्रश्न 3
मास्टर त्रिलोक सिंह किस छात्र को पसंद करते थे?
🔴 1️⃣ धनराम को
🟡 2️⃣ मोहन को
🟢 3️⃣ रमेश को
🔵 4️⃣ किसी को नहीं
✅ उत्तर: 2️⃣ मोहन को

🟢 प्रश्न 4
मोहन के पिता वंशीधर किस कार्य से जीविका चलाते थे?
🔴 1️⃣ लोहारगिरी
🟡 2️⃣ खेती
🟢 3️⃣ पुरोहिताई
🔵 4️⃣ दुकानदारी
✅ उत्तर: 3️⃣ पुरोहिताई

🟢 प्रश्न 5
कहानी का मुख्य उद्देश्य क्या है?
🔴 1️⃣ लोहारगिरी की महत्ता बताना
🟡 2️⃣ जातिगत भेदभाव और श्रम की गरिमा को दर्शाना
🟢 3️⃣ गरीबी का वर्णन करना
🔵 4️⃣ शिक्षा का महत्व बताना
✅ उत्तर: 2️⃣ जातिगत भेदभाव और श्रम की गरिमा को दर्शाना

🔵 लघु उत्तरीय प्रश्न
🟠 प्रश्न 6
धनराम को मास्टर त्रिलोक सिंह क्यों मारते थे?
💠 उत्तर: धनराम मंदबुद्धि था और पाठ याद नहीं कर पाता था। मास्टर त्रिलोक सिंह उसे लोहार जाति का मानकर व्यंग्य करते और पीटते थे।

🟠 प्रश्न 7
मोहन की शिक्षा अधूरी क्यों रह गई?
💠 उत्तर: मोहन को आगे पढ़ने के लिए शहर भेजा गया लेकिन वहाँ उसके साथ नौकरों जैसा व्यवहार हुआ और गरीबी के कारण उसकी शिक्षा बीच में ही छूट गई।

🟠 प्रश्न 8
आफर किसे कहते हैं?
💠 उत्तर: आफर वह स्थान होता है जहाँ लोहार आग की भट्ठी में लोहे को गलाकर उससे विभिन्न प्रकार के औजार और बर्तन बनाते हैं।

🟠 प्रश्न 9
मोहन ने धनराम की भट्ठी पर क्यों काम किया?
💠 उत्तर: मोहन में लोहे के काम की स्वाभाविक कुशलता थी और उसने जातिगत बंधनों से मुक्त होकर श्रम की गरिमा को स्वीकार किया, इसलिए उसने धनराम की भट्ठी पर काम किया।

🟠 प्रश्न 10
कहानी के शीर्षक ‘गलता लोहा’ की सार्थकता बताइए।
💠 उत्तर: गलता लोहा नया रूप धारण करता है। इसी प्रकार मोहन ने जातिगत रूढ़ियों को तोड़कर नया व्यक्तित्व अपनाया। शीर्षक प्रतीकात्मक और सार्थक है।

🔵 मध्यम उत्तरीय प्रश्न
🔴 प्रश्न 11
मोहन और धनराम की बचपन की मित्रता का वर्णन कीजिए।
🔷 उत्तर: मोहन और धनराम बचपन में एक साथ पढ़ते थे। मोहन मेधावी था और कक्षा का मॉनिटर था जबकि धनराम मंदबुद्धि था। मास्टर त्रिलोक सिंह जब धनराम को पाठ न याद करने पर पीटते तो मोहन उत्तर बताकर उसकी सहायता करता था। लेकिन फिर भी मास्टर मोहन से ही धनराम को दंड दिलवाते थे। धनराम ने कभी मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझा। जातिगत भेदभाव के बावजूद दोनों की मित्रता सच्ची थी। बड़े होने पर मोहन शहर चला गया और धनराम ने अपने पिता से लोहारगिरी सीखकर वही व्यवसाय अपना लिया। फिर भी उनकी मित्रता बनी रही।

🔴 प्रश्न 12
मोहन के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
🔷 उत्तर: मोहन एक मेधावी ब्राह्मण युवक था जो गरीबी और परिस्थितियों का शिकार हुआ। वह बचपन में होनहार छात्र था लेकिन शहर में शिक्षा अधूरी रह गई। वह परिश्रमी था और पिता का बोझ हलका करने के लिए खेती का काम संभालता था। मोहन में लोहे का काम करने की स्वाभाविक प्रतिभा थी। उसने जातिगत अभिमान को त्यागकर धनराम की भट्ठी पर काम किया और श्रम की गरिमा को स्वीकार किया। उसके व्यक्तित्व में एक सर्जक की चमक थी जिसमें न स्पर्धा थी न हार-जीत का भाव। वह रूढ़िवादी समाज में बदलाव का प्रतीक था।

🔴 प्रश्न 13
कहानी में जातिगत भेदभाव को किस प्रकार दर्शाया गया है?
🔷 उत्तर: कहानी में जातिगत भेदभाव को बहुत सूक्ष्मता से दर्शाया गया है। मास्टर त्रिलोक सिंह धनराम को लोहार जाति का मानकर व्यंग्य करते थे और कहते थे कि उसके दिमाग में लोहा भरा है, विद्या का ताप वहाँ नहीं पहुँचेगा। ब्राह्मण परिवार के लोग शिल्पकारों के साथ उठना-बैठना अपमानजनक मानते थे। जब मोहन धनराम की भट्ठी पर बैठा तो धनराम संकोच और धर्म-संकट में पड़ गया। समाज में श्रम के आधार पर जातियों को ऊँच-नीच में बाँटा गया था। लेकिन मोहन ने इन बंधनों को तोड़कर मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे की नींव रखी।

🔵 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
🟣 प्रश्न 14
‘गलता लोहा’ कहानी का केंद्रीय भाव और संदेश स्पष्ट कीजिए।
🔶 उत्तर: शेखर जोशी की कहानी ‘गलता लोहा’ जातिगत विभाजन और श्रम की गरिमा पर आधारित एक यथार्थवादी कहानी है। कहानी का केंद्रीय पात्र मोहन एक मेधावी लेकिन गरीब ब्राह्मण युवक है जो परिस्थितियों के कारण अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाता। उसका बचपन का मित्र धनराम लोहार है जो मंदबुद्धि होने के कारण स्कूल में मास्टर त्रिलोक सिंह के व्यंग्य और मार का शिकार होता था। कहानी में दिखाया गया है कि किस प्रकार समाज ने जातिगत आधार पर कार्यों को बाँट रखा था। ब्राह्मण को शिल्पकारों के साथ बैठना भी वर्जित था। लेकिन मोहन ने इन रूढ़ियों को तोड़ते हुए धनराम की भट्ठी पर बैठकर लोहे का छल्ला बनाया। उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी जिसमें कोई स्पर्धा या हार-जीत का भाव नहीं था। कहानी का शीर्षक ‘गलता लोहा’ प्रतीकात्मक है। जैसे लोहा गलकर नया आकार लेता है वैसे ही मोहन का व्यक्तित्व जातीय अभिमान से मुक्त होकर मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे का रूप ले रहा था। कहानी का संदेश है कि श्रम में गरिमा है और जातिगत भेदभाव समाज के विकास में बाधक है। सभी व्यवसायों को समान सम्मान मिलना चाहिए।

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अतिरिक्त ज्ञान

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दृश्य सामग्री

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