Class 11, Geography (Hindi)

Class 11 : Geography (In Hindi) – Lesson 6. भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन



🌍 प्रस्तावना
पृथ्वी की सतह विविध प्रकार की आकृतियों से बनी है — ऊँचे पर्वत, विस्तृत पठार, समतल मैदान, गहरी घाटियाँ, तटीय क्षेत्र, रेगिस्तान, हिमनदीय घाटियाँ, जलप्रपात और डेल्टा आदि। इन सभी आकृतियों को सामूहिक रूप से भू-आकृतियाँ (Landforms) कहा जाता है। भू-आकृतियाँ पृथ्वी की सतह पर घटित होने वाली प्राकृतिक शक्तियों और भू-आकृतिक प्रक्रियाओं (Geomorphic Processes) के परिणामस्वरूप बनती और विकसित होती हैं।
भू-आकृतियों का निर्माण और विकास एक सतत प्रक्रिया है। पृथ्वी की सतह निरंतर बदलती रहती है — कहीं स्थल ऊपर उठता है, कहीं कटकर नीचे चला जाता है, कहीं नदियाँ घाटियाँ काटती हैं तो कहीं पवन रेत के टीले बनाती है। इन सभी क्रियाओं के कारण समय के साथ भू-आकृतियाँ बनती, बदलती और समाप्त होती रहती हैं।

🌋 भू-आकृतियों की परिभाषा
📚 भू-आकृतियाँ वे प्राकृतिक रूप हैं जो पृथ्वी की सतह पर भूगर्भीय शक्तियों, भू-आकृतिक प्रक्रियाओं और समय के प्रभाव से निर्मित होते हैं।
👉 उदाहरण: पर्वत, पठार, मैदान, डेल्टा, बालू के टीले, गुफाएँ, जलप्रपात, घाटियाँ आदि।

🌎 भू-आकृतियों के निर्माण में प्रभावी शक्तियाँ
भू-आकृतियों के निर्माण और विकास में दो प्रकार की शक्तियाँ प्रमुख रूप से कार्य करती हैं:
🌋 अंतर्जात शक्तियाँ (Endogenic Forces) – पृथ्वी के भीतर से उत्पन्न।
🌊 बहिर्जात शक्तियाँ (Exogenic Forces) – पृथ्वी की सतह पर बाहर से कार्य करने वाली।
इन दोनों के परस्पर क्रियान्वयन से स्थलरूप बनते और परिवर्तित होते रहते हैं।

🌋 1. अंतर्जात शक्तियों द्वारा निर्मित भू-आकृतियाँ
📍 अंतर्जात शक्तियाँ पृथ्वी के भीतर से उत्पन्न होती हैं और भूपृष्ठ को ऊपर उठाकर, मोड़कर या फाड़कर नई आकृतियाँ उत्पन्न करती हैं। ये आकृतियाँ आमतौर पर बड़े आकार की होती हैं और भूपृष्ठ की रचना में मूलभूत भूमिका निभाती हैं।
📊 प्रमुख अंतर्जात स्थलरूप:
🏔️ (A) निर्माणात्मक स्थलरूप
🏔️ पर्वत (Mountains):
भूपटल के उत्थान और प्लेटों के टकराव से उत्पन्न।
उदाहरण: हिमालय, आल्प्स।
🌋 ज्वालामुखीय स्थलरूप:
ज्वालामुखीय विस्फोटों से लावा के जमाव द्वारा निर्मित।
उदाहरण: डेक्कन ट्रैप्स, माउंट फूजी।
🏞️ गुंबद और भ्रंश-पर्वत:
भूमिगत दबाव से ऊपर उठे स्थलरूप।
उदाहरण: ब्लॉक पर्वत, रिफ्ट घाटियाँ।

🌋 (B) विनाशात्मक स्थलरूप
🌍 भूपटल धँसाव (Subsidence):
पृथ्वी की सतह का नीचे धँसना।
उदाहरण: गर्त, अवसादी बेसिन।
🏔️ भ्रंश एवं मोड़:
भूपटल के संकुचन से बनने वाले स्थलरूप।
उदाहरण: रिफ्ट घाटी, सिंकलाइन, एंटी-क्लाइन।

🌊 2. बहिर्जात शक्तियों द्वारा निर्मित भू-आकृतियाँ
📍 बहिर्जात शक्तियाँ सूर्य की ऊर्जा, वायुमण्डलीय तत्वों और गुरुत्वाकर्षण से संचालित होती हैं। ये पहले से बने स्थलरूपों को घिसकर, काटकर और जमा करके नए रूप देती हैं।
📊 इन्हें कार्य-एजेंटों के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है:

🌊 (A) नदी द्वारा निर्मित भू-आकृतियाँ (Fluvial Landforms)
📍 नदियाँ अपरदन, परिवहन और निक्षेपण के माध्यम से स्थलरूप बनाती हैं।
🏞️ अपरदन स्थलरूप:
जलप्रपात, घाटियाँ, वी-आकार की घाटियाँ, गॉर्ज।
🪨 परिवहन स्थलरूप:
कटाव के दौरान निर्मित पंखाकार पंखा (Alluvial Fan)।
🌱 निक्षेपण स्थलरूप:
बाढ़मैदान, मियाँडर, डेल्टा।

🌬️ (B) पवन द्वारा निर्मित भू-आकृतियाँ (Aeolian Landforms)
📍 शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पवन मुख्य एजेंट होती है।
🌋 अपरदन स्थलरूप:
मशरूम चट्टान, वायु तराशित घाटियाँ।
🏜️ निक्षेपण स्थलरूप:
बालू के टीले (Barchans), लोएस मैदान।

❄️ (C) हिमनद द्वारा निर्मित भू-आकृतियाँ (Glacial Landforms)
📍 हिमनद ऊँचाई वाले और ध्रुवीय क्षेत्रों में भूमि को काटते और जमा करते हैं।
🏔️ अपरदन स्थलरूप:
यू-आकार की घाटी, सिरक।
🏞️ निक्षेपण स्थलरूप:
मोरेन, ड्रमलिन।

🌊 (D) समुद्री तरंगों द्वारा निर्मित भू-आकृतियाँ (Marine Landforms)
📍 तटीय क्षेत्रों में तरंगें और ज्वार प्रमुख एजेंट होती हैं।
🌋 अपरदन स्थलरूप:
तटीय गुफाएँ, समुद्री खड़ी चट्टानें।
🏖️ निक्षेपण स्थलरूप:
बालू तट, समुद्री मैदान, बार।

🪨 (E) गुरुत्वाकर्षण से निर्मित भू-आकृतियाँ (Mass Wasting Landforms)
📍 गुरुत्व बल ढलानों से पदार्थों को नीचे गिराता है।
भू-स्खलन, चट्टान गिरना, मलबा ढेर।

🪐 भू-आकृतियों का विकास
भू-आकृतियों का निर्माण एक बार में नहीं होता, बल्कि यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। समय, जलवायु, सामग्री, स्थलरचना और शक्तियों की तीव्रता भू-आकृतियों के विकास को प्रभावित करते हैं।
भू-आकृतियों के विकास की वैज्ञानिक व्याख्या के लिए विलियम मॉरिस डेविस ने 19वीं शताब्दी में स्थलरूप चक्र सिद्धांत (Geomorphic Cycle Theory) दिया।

📊 डेविस का स्थलरूप चक्र सिद्धांत
📍 डेविस ने कहा कि भू-आकृतियों का विकास तीन मुख्य अवस्थाओं में होता है:
🌱 यौवन अवस्था (Youth Stage):
स्थलरूप नवीन और तीव्र ढलान वाले होते हैं।
नदी अपरदन तीव्र होता है।
जलप्रपात, गॉर्ज जैसी आकृतियाँ बनती हैं।


🏞️ परिपक्व अवस्था (Mature Stage):
ढलान कम हो जाता है।
नदी मियाँडर और बाढ़मैदान बनाती है।
अपरदन और निक्षेपण संतुलित होते हैं।


🌊 वृद्धावस्था (Old Stage):
स्थलरूप अत्यधिक समतल।
नदी धीमी गति से बहती है और डेल्टा बनाती है।
पेनिप्लेन (लगभग समतल भूमि) का निर्माण होता है।
📍 बाद में वॉली डेविस, पेनक (Penck) और किंग (King) जैसे वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत में संशोधन और आलोचना प्रस्तुत की, परन्तु यह अभी भी भू-आकृति विकास के अध्ययन का मूल आधार है।

🌍 भू-आकृति विकास को प्रभावित करने वाले कारक
🪐 समय: जितना अधिक समय मिलेगा, स्थलरूप उतने विकसित होंगे।
🌦️ जलवायु: वर्षा, तापमान और हवाएँ अपरदन और निक्षेपण की दर को प्रभावित करती हैं।
🪨 चट्टानों का स्वभाव: कठोर चट्टानें धीमी गति से अपरदित होती हैं।
🌋 भूगर्भीय संरचना: भ्रंश, मोड़ और प्लेट गति स्थलरूपों को आकार देती है।
🌊 मानव क्रियाएँ: बाँध, खनन और निर्माण स्थलरूपों को परिवर्तित करते हैं।

🏔️ भू-आकृतियों का महत्त्व
🌍 भूगर्भीय इतिहास की जानकारी: स्थलरूपों से पृथ्वी के विकास क्रम का पता चलता है।
🪨 प्राकृतिक संसाधनों की पहचान: खनिज, मिट्टी और जल स्रोतों का वितरण स्थलरूपों से जुड़ा है।
🏞️ जलवायु और पारितंत्र: स्थलरूप जलवायु और जैव विविधता को प्रभावित करते हैं।
🏙️ मानव बसावट: स्थलरूप कृषि, उद्योग और नगरों के विकास को निर्धारित करते हैं।
🚜 भूमि उपयोग योजना: भू-आकृतियों के अध्ययन से भूमि का उपयोग योजनाबद्ध किया जा सकता है।

📚 2. सारांश (300 शब्द)
भू-आकृतियाँ पृथ्वी की सतह पर बनने वाले वे प्राकृतिक रूप हैं जो भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप निर्मित और विकसित होते हैं। इनका निर्माण मुख्यतः दो प्रकार की शक्तियों द्वारा होता है — अंतर्जात और बहिर्जात। अंतर्जात शक्तियाँ भूपटल को ऊपर उठाकर या फाड़कर पर्वत, पठार और भ्रंश घाटियाँ जैसी आकृतियाँ बनाती हैं। बहिर्जात शक्तियाँ जैसे नदी, पवन, हिमनद, समुद्री तरंगें और गुरुत्वाकर्षण, स्थलरूपों को घिसकर, काटकर और जमा कर नई आकृतियाँ उत्पन्न करती हैं।
भू-आकृतियों का विकास एक सतत प्रक्रिया है, जो समय, जलवायु, चट्टानों की प्रकृति, भूगर्भीय संरचना और मानव क्रियाओं से प्रभावित होती है। डेविस के स्थलरूप चक्र सिद्धांत के अनुसार स्थलरूपों का विकास यौवन, परिपक्वता और वृद्धावस्था में होता है। प्रत्येक अवस्था में विभिन्न आकृतियाँ निर्मित होती हैं। भू-आकृतियाँ पृथ्वी के विकास क्रम, प्राकृतिक संसाधनों, जलवायु, पारितंत्र और मानव जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

⚡ त्वरित पुनरावृत्ति (100 शब्द)
भू-आकृतियाँ वे प्राकृतिक स्थलरूप हैं जो अंतर्जात और बहिर्जात शक्तियों के प्रभाव से बनते और विकसित होते हैं। अंतर्जात शक्तियाँ पर्वत, पठार और भ्रंश घाटियाँ बनाती हैं, जबकि बहिर्जात शक्तियाँ नदियों, पवनों, हिमनदों और तरंगों द्वारा घाटियाँ, डेल्टा, टीले और तटीय आकृतियाँ उत्पन्न करती हैं। भू-आकृतियों का विकास समय, जलवायु, चट्टानों, भूगर्भीय संरचना और मानव क्रियाओं पर निर्भर करता है। डेविस के अनुसार स्थलरूप यौवन, परिपक्वता और वृद्धावस्था के चरणों से गुजरते हैं।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न


✨ 1. बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)

🔵 प्रश्न (i): भू-आकृति विज्ञान का प्रमुख अध्ययन विषय कौन है?
🟢 (क) वायुमण्डलीय परिवर्तन
🔵 (ख) स्थलरूपों का निर्माण और विकास
🟡 (ग) जीवों का वितरण
🟣 (घ) महासागरों की गहराई
✅ उत्तर: 🔵 (ख) स्थलरूपों का निर्माण और विकास

🟡 प्रश्न (ii): कौन सी प्रक्रिया अपरदन की अंतिम अवस्था मानी जाती है?
🟢 (क) स्थलरूपों का निर्माण
🔵 (ख) समतलीकरण
🟡 (ग) पटल उत्थान
🟣 (घ) अपक्षय
✅ उत्तर: 🔵 (ख) समतलीकरण

🟢 प्रश्न (iii): पेनिप्लेन (Peneplain) का निर्माण किस प्रक्रिया से होता है?
🟢 (क) ज्वालामुखीय क्रिया
🔵 (ख) अपरदन द्वारा दीर्घकालीन समतलीकरण
🟡 (ग) भूकंपीय गति
🟣 (घ) हिमनदी संचयन
✅ उत्तर: 🔵 (ख) अपरदन द्वारा दीर्घकालीन समतलीकरण

🟣 प्रश्न (iv): ‘युवा अवस्था’ (Youth Stage) में नदी की प्रमुख विशेषता क्या होती है?
🟢 (क) मृदा संचयन
🔵 (ख) तीव्र ऊर्ध्वाधर अपरदन
🟡 (ग) विस्तृत बाढ़ मैदान
🟣 (घ) डेल्टा निर्माण
✅ उत्तर: 🔵 (ख) तीव्र ऊर्ध्वाधर अपरदन

🌍 प्रश्न (v): भू-आकृति निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाने वाला ऊर्जा स्रोत कौन सा है?
🟢 (क) चंद्रमा
🔵 (ख) सूर्य
🟡 (ग) वायुदाब
🟣 (घ) भूमिगत जल
✅ उत्तर: 🔵 (ख) सूर्य

✏️ 2. लघु उत्तरीय प्रश्न (लगभग 30 शब्दों में)

🌍 प्रश्न (i): भू-आकृति विज्ञान क्या है?
🌱 उत्तर: भू-आकृति विज्ञान भौगोलिक विज्ञान की वह शाखा है जो स्थलरूपों के निर्माण, विकास, आकार, संरचना और उन्हें प्रभावित करने वाली प्रक्रियाओं का अध्ययन करती है।

🌋 प्रश्न (ii): अपरदन चक्र (Cycle of Erosion) से आप क्या समझते हैं?
🌱 उत्तर: अपरदन चक्र डेविस द्वारा दिया गया सिद्धांत है, जिसमें स्थलरूपों के निर्माण और विकास को युवा, प्रौढ़ और वृद्धावस्था की अवस्थाओं में विभाजित किया गया है।

🌏 प्रश्न (iii): पेनिप्लेन (Peneplain) क्या है?
🌱 उत्तर: पेनिप्लेन वह विस्तृत और लगभग समतल स्थलरूप है, जो दीर्घकालीन अपरदन और समतलीकरण की अंतिम अवस्था में निर्मित होता है।

🌱 प्रश्न (iv): वायुगत अपरदन स्थलरूपों के दो उदाहरण दीजिए।
🌱 उत्तर: वायुगत अपरदन स्थलरूपों के दो प्रमुख उदाहरण हैं — मशरूम शिला (Mushroom Rock) और यार्डांग (Yardang)।

🪐 3. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (लगभग 150 शब्दों में)

🌍 प्रश्न (i): डेविस के अपरदन चक्र सिद्धांत का वर्णन कीजिए।
🌱 उत्तर: डेविस ने स्थलरूपों के निर्माण और विकास को “अपरदन चक्र” सिद्धांत के माध्यम से समझाया। उनके अनुसार स्थलरूप तीन अवस्थाओं में विकसित होते हैं —
युवा अवस्था: स्थल ऊँचे और तीव्र ढाल वाले होते हैं। नदियाँ गहरी घाटियाँ काटती हैं और ऊर्ध्वाधर अपरदन प्रमुख होता है।
प्रौढ़ अवस्था: स्थलरूपों की ढाल कम हो जाती है, पार्श्व अपरदन बढ़ता है और घाटियाँ चौड़ी हो जाती हैं।
वृद्धावस्था: स्थलरूप लगभग समतल हो जाते हैं और अपरदन की तीव्रता घट जाती है। अंततः पेनिप्लेन का निर्माण होता है।
यह सिद्धांत स्थलरूपों के क्रमिक विकास और संरचनात्मक विशेषताओं को समझने में सहायक है, यद्यपि इसे सभी क्षेत्रों पर समान रूप से लागू नहीं किया जा सकता।

🌋 प्रश्न (ii): पेन्क और किंग द्वारा प्रस्तुत स्थलरूप विकास सिद्धांतों की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
🌱 उत्तर: पेन्क ने स्थलरूप विकास को ढाल के परिवर्तन और अपक्षय दर से जोड़ा। उनके अनुसार स्थलरूपों का विकास ढाल के अवरोहण से होता है। किंग ने वानप्लेन सिद्धांत दिया, जिसमें स्थलरूप नदी घाटियों के विस्तृत समतलीकरण के परिणामस्वरूप बनते हैं। दोनों ने समय के बजाय प्रक्रियाओं और ढाल परिवर्तन को अधिक महत्त्व दिया। उनके सिद्धांतों ने डेविस की अवधारणा का पूरक दृष्टिकोण प्रदान किया और स्थलरूप विकास को अधिक यथार्थवादी रूप से समझाया।

🌊 प्रश्न (iii): जल, वायु और हिमनद द्वारा निर्मित प्रमुख स्थलरूपों का उल्लेख कीजिए।
🌱 उत्तर:
जल द्वारा निर्मित स्थलरूप: V-आकार घाटियाँ, जलप्रपात, जलोढ़ पंखा, डेल्टा।
वायु द्वारा निर्मित स्थलरूप: यार्डांग, मशरूम शिला, बालू के टीले।
हिमनद द्वारा निर्मित स्थलरूप: सर्क, यू-आकार घाटियाँ, मोरेन।
ये सभी स्थलरूप विभिन्न अपरदन, परिवहन और निक्षेपण प्रक्रियाओं से बनते हैं और पृथ्वी की सतह को निरंतर परिवर्तित करते रहते हैं।

🌏 प्रश्न (iv): स्थलरूप विकास में जलवायु की भूमिका का वर्णन कीजिए।
🌱 उत्तर: जलवायु स्थलरूप निर्माण की प्रमुख नियंत्रक है। शुष्क जलवायु में वायुगत अपरदन, समशीतोष्ण जलवायु में जल अपरदन और हिमाच्छादित क्षेत्रों में हिमनद अपरदन प्रमुख होता है। वर्षा की मात्रा और तापमान अपक्षय की दर और प्रकार को प्रभावित करते हैं। जलवायु अपरदन चक्र की गति, ढाल परिवर्तन, वनस्पति आवरण और जलधारा की शक्ति को भी नियंत्रित करती है। इसलिए, जलवायु स्थलरूपों के निर्माण, विकास और संरचना में निर्णायक भूमिका निभाती है।

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न


🌏 खण्ड A — वस्तुनिष्ठ प्रश्न (प्रत्येक 1 अंक)

🔵 प्रश्न 1: भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology) किसका अध्ययन करता है?
🟢 1️⃣ स्थलरूपों और उनके विकास का
🔴 2️⃣ जलवायु परिवर्तन का
🟡 3️⃣ मृदा की संरचना का
🔴 4️⃣ महासागरों के तापमान का
✔️ उत्तर: स्थलरूपों और उनके विकास का

🟡 प्रश्न 2: स्थलरूपों के निर्माण और विकास में मुख्य भूमिका किसकी होती है?
🟢 1️⃣ आंतरिक और बाह्य शक्तियों की
🔴 2️⃣ केवल मानव गतिविधियों की
🟡 3️⃣ केवल सौर विकिरण की
🔴 4️⃣ केवल वायुमंडलीय दाब की
✔️ उत्तर: आंतरिक और बाह्य शक्तियों की

🔴 प्रश्न 3: स्थलरूपों के विकास का सिद्धांत किसने प्रस्तुत किया?
🟢 1️⃣ डेविस
🔴 2️⃣ वेगेनर
🟡 3️⃣ हटन
🔴 4️⃣ डार्विन
✔️ उत्तर: डेविस

🟢 प्रश्न 4: डेविस के भू-आकृतिक चक्र में कितनी अवस्थाएं होती हैं?
🟢 1️⃣ तीन
🔴 2️⃣ चार
🟡 3️⃣ दो
🔴 4️⃣ पाँच
✔️ उत्तर: तीन

🔵 प्रश्न 5: स्थलरूप विकास की प्रारंभिक अवस्था को क्या कहते हैं?
🟢 1️⃣ यौवनावस्था
🔴 2️⃣ परिपक्वावस्था
🟡 3️⃣ प्रौढ़ावस्था
🔴 4️⃣ अपक्षयावस्था
✔️ उत्तर: यौवनावस्था

🟡 प्रश्न 6: परिपक्वावस्था की एक प्रमुख विशेषता क्या है?
🟢 1️⃣ स्थलरूप संतुलित और स्थिर हो जाते हैं
🔴 2️⃣ स्थलरूप बहुत तीव्र और ऊँचे होते हैं
🟡 3️⃣ स्थलरूप समाप्त हो जाते हैं
🔴 4️⃣ केवल अपरदन होता है
✔️ उत्तर: स्थलरूप संतुलित और स्थिर हो जाते हैं

🔴 प्रश्न 7: ‘पेडीप्लेन’ शब्द का उपयोग किसने किया था?
🟢 1️⃣ किंग
🔴 2️⃣ डेविस
🟡 3️⃣ हटन
🔴 4️⃣ वेगेनर
✔️ उत्तर: किंग

🟢 प्रश्न 8: स्थलरूपों को सबसे अधिक आकार देने वाली बाह्य प्रक्रिया कौन सी है?
🟢 1️⃣ अपरदन
🔴 2️⃣ भूकंप
🟡 3️⃣ प्लेट विवर्तनिकी
🔴 4️⃣ आंतरिक ऊष्मा
✔️ उत्तर: अपरदन

🔵 प्रश्न 9: नदियों द्वारा बनाए गए समतल मैदान किस प्रक्रिया से बनते हैं?
🟢 1️⃣ निक्षेपण
🔴 2️⃣ भूकंपीय हलचल
🟡 3️⃣ ज्वालामुखीय क्रिया
🔴 4️⃣ मोड़न
✔️ उत्तर: निक्षेपण

🟡 प्रश्न 10: ‘यौवनावस्था’ में स्थलरूपों की क्या विशेषता होती है?
🟢 1️⃣ तीव्र अपरदन और गहरी घाटियाँ
🔴 2️⃣ समतल मैदान
🟡 3️⃣ स्थिर स्थलरूप
🔴 4️⃣ पेडीप्लेन का निर्माण
✔️ उत्तर: तीव्र अपरदन और गहरी घाटियाँ

🔴 प्रश्न 11: भू-आकृति निर्माण की प्रक्रिया में अंतिम अवस्था कौन सी है?
🟢 1️⃣ प्रौढ़ावस्था
🔴 2️⃣ यौवनावस्था
🟡 3️⃣ परिपक्वावस्था
🔴 4️⃣ अपक्षयावस्था
✔️ उत्तर: प्रौढ़ावस्था

🟢 प्रश्न 12: पवन द्वारा निर्मित स्थलरूपों को क्या कहते हैं?
🟢 1️⃣ एओलियन स्थलरूप
🔴 2️⃣ हिमानी स्थलरूप
🟡 3️⃣ जलोढ़ स्थलरूप
🔴 4️⃣ तटीय स्थलरूप
✔️ उत्तर: एओलियन स्थलरूप


🧭 खण्ड B — लघु उत्तरीय प्रश्न (प्रत्येक 2 अंक)

🔵 प्रश्न 13: भू-आकृति विज्ञान को परिभाषित कीजिए।
🟢 उत्तर: भू-आकृति विज्ञान वह शाखा है जो पृथ्वी की स्थलाकृतियों, उनके निर्माण, विकास और परिवर्तन का वैज्ञानिक अध्ययन करती है।

🟡 प्रश्न 14: स्थलरूप विकास में आंतरिक शक्तियों की भूमिका लिखिए।
🟢 उत्तर: आंतरिक शक्तियां भूकंप, ज्वालामुखीय विस्फोट और प्लेट गति द्वारा पर्वत, भ्रंश घाटी और गर्तों का निर्माण करती हैं।

🔴 प्रश्न 15: स्थलरूप विकास में बाह्य शक्तियों की भूमिका लिखिए।
🟢 उत्तर: बाह्य शक्तियां जैसे जल, पवन और हिमनद अपरदन और निक्षेपण द्वारा स्थलरूपों को आकार देती हैं।

🟢 प्रश्न 16: डेविस के भू-आकृतिक चक्र की अवस्थाओं के नाम लिखिए।
🟢 उत्तर: डेविस के अनुसार स्थलरूप विकास की तीन अवस्थाएं हैं — (1) यौवनावस्था (2) परिपक्वावस्था (3) प्रौढ़ावस्था।

🔵 प्रश्न 17: पेडीप्लेन से आप क्या समझते हैं?
🟢 उत्तर: पेडीप्लेन वह विस्तृत समतल स्थलरूप है जो लम्बे समय तक अपरदन के पश्चात् पर्वतीय क्षेत्रों के समतलीकरण से बनता है।

🟡 प्रश्न 18: अपरदन के दो मुख्य कार्य लिखिए।
🟢 उत्तर: (1) पुरानी चट्टानों और स्थलरूपों का क्षरण करना। (2) नई भू-आकृतियों जैसे घाटियाँ, गर्त और जलप्रपात बनाना।

🔴 प्रश्न 19: स्थलरूप विकास में समय का क्या महत्व है?
🟢 उत्तर: समय अपरदन और निक्षेपण की गति को प्रभावित करता है तथा स्थलरूपों के क्रमिक विकास की दिशा निर्धारित करता है।

🟢 प्रश्न 20: निक्षेपण स्थलरूपों के दो उदाहरण लिखिए।
🟢 उत्तर: (1) नदी द्वारा निर्मित डेल्टा (2) पवन द्वारा निर्मित बालू के टीले।


🌍 खण्ड C — मध्यम उत्तरीय प्रश्न (प्रत्येक 4 अंक)

🔵 प्रश्न 21: भू-आकृतियों के विकास में आंतरिक और बाह्य शक्तियों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
🟢 उत्तर: स्थलरूपों का निर्माण और विकास आंतरिक एवं बाह्य दोनों शक्तियों के संयुक्त प्रभाव से होता है।
आंतरिक शक्तियां: भूकंप, ज्वालामुखीय क्रियाएं और प्लेट विवर्तनिकी नई स्थलरूप संरचनाएं जैसे पर्वत, गर्त और भ्रंश घाटियाँ बनाती हैं।
बाह्य शक्तियां: जल, पवन, हिमनद और समुद्री तरंगें अपरदन, परिवहन और निक्षेपण द्वारा पुरानी आकृतियों को क्षीण कर नई आकृतियां बनाती हैं।
दोनों प्रकार की शक्तियां मिलकर पृथ्वी की सतह को निरंतर परिवर्तित करती रहती हैं।

🟡 प्रश्न 22: डेविस के भू-आकृतिक चक्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
🟢 उत्तर: डेविस ने स्थलरूप विकास को एक चक्र के रूप में प्रस्तुत किया जिसमें तीन अवस्थाएं होती हैं:
यौवनावस्था: तीव्र अपरदन, गहरी घाटियों और जलप्रपातों का निर्माण।
परिपक्वावस्था: अपरदन संतुलित, घाटियाँ चौड़ी, स्थलरूप स्थिर।
प्रौढ़ावस्था: स्थलरूप अत्यधिक समतल, पेडीप्लेन बनता है।
यह चक्र पर्वत श्रृंखलाओं के निर्माण के बाद आरंभ होता है और दीर्घकाल में स्थलरूपों के समतलीकरण पर समाप्त होता है।

🔴 प्रश्न 23: किंग के पेडीप्लेन सिद्धांत की विशेषताएं लिखिए।
🟢 उत्तर: किंग ने भू-आकृतिक विकास के लिए पेडीप्लेन सिद्धांत प्रस्तुत किया।
यह अपरदन की धीमी प्रक्रिया पर आधारित है।
पर्वतीय क्षेत्रों में पेडिमेंट्स (ढालदार समतल स्थलरूप) बनते हैं जो मिलकर पेडीप्लेन बनाते हैं।
यह विकास निरंतर होता है, कोई निश्चित अवस्था नहीं होती।
पेडीप्लेन स्थलरूप विकास की अंतिम अवस्था है।
यह सिद्धांत डेविस के चक्र सिद्धांत से भिन्न है और अधिक यथार्थवादी माना जाता है।

🟢 प्रश्न 24: स्थलरूप विकास में जल की भूमिका समझाइए।
🟢 उत्तर: जल बाह्य भू-आकृतिक प्रक्रियाओं में प्रमुख भूमिका निभाता है।
अपरदन: नदियाँ घाटियाँ, गर्त और जलप्रपात बनाती हैं।
परिवहन: अपरदित पदार्थों को दूर ले जाती हैं।
निक्षेपण: मैदान, डेल्टा और बाढ़ मैदान बनाती हैं।
अपक्षय: चट्टानों को घुलाकर उनके रासायनिक संघटन में परिवर्तन करती हैं।
जल स्थलरूपों को निरंतर रूप से आकार देता है और उन्हें परिवर्तनशील बनाता है।

🔵 प्रश्न 25: स्थलरूप विकास में पवन की भूमिका लिखिए।
🟢 उत्तर: पवन विशेषकर शुष्क और मरुस्थलीय क्षेत्रों में स्थलरूपों को प्रभावित करती है।
अपरदन: मशरूम चट्टानें और घाटियाँ बनाती है।
परिवहन: बालू और धूल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाती है।
निक्षेपण: बालू के टीले और लोएस पठार बनाती है।
पवन स्थलरूपों को निरंतर बदलती रहती है और मरुस्थलीय क्षेत्रों की आकृतियों को परिभाषित करती है।

🟡 प्रश्न 26: हिमनदों द्वारा निर्मित स्थलरूपों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
🟢 उत्तर: ठंडे क्षेत्रों में हिमनद स्थलरूप निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अपरदन स्थलरूप: यू-आकार की घाटियाँ, सर्क, आरेट और रोश मूटोनी।
परिवहन: चट्टानों को लंबी दूरी तक ले जाते हैं।
निक्षेपण स्थलरूप: मोरेन, ड्रमलिन और एस्कर।
हिमनदों द्वारा निर्मित स्थलरूप पृथ्वी के उच्च अक्षांश और पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं और भू-आकृतिक विविधता को बढ़ाते हैं।


🏞️ खण्ड D — विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (प्रत्येक 4.5 अंक)

🔴 प्रश्न 27: डेविस और किंग के स्थलरूप विकास सिद्धांतों की तुलना कीजिए।
🟢 उत्तर:
डेविस का सिद्धांत:
चक्रीय मॉडल पर आधारित।
स्थलरूप तीन अवस्थाओं से गुजरते हैं — यौवन, परिपक्वता, प्रौढ़ता।
समय, जलवायु और संरचना प्रमुख कारक।
समतल पेडीप्लेन अंतिम अवस्था।
किंग का सिद्धांत:
निरंतर अपरदन प्रक्रिया पर आधारित।
निश्चित अवस्थाएं नहीं, क्रमिक विकास।
पेडिमेंट्स के मिलन से पेडीप्लेन बनता है।
स्थलरूप विकास अधिक यथार्थवादी।
निष्कर्ष: डेविस ने समय-आधारित विकास समझाया जबकि किंग ने अपरदन के निरंतर प्रभाव को दर्शाया।

🟢 प्रश्न 28: स्थलरूप विकास में अपक्षय और अपरदन की संयुक्त भूमिका पर चर्चा कीजिए।
🟢 उत्तर: अपक्षय और अपरदन स्थलरूप निर्माण की दो महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं हैं।
अपक्षय: चट्टानों को विघटित कर अपरदन के लिए तैयार करती है।
अपरदन: विघटित पदार्थ को हटाकर घाटियाँ, गर्त और मैदान जैसी आकृतियाँ बनाती है।
दोनों मिलकर स्थलरूपों को आकार देते हैं। उदाहरण के लिए, नदी घाटियाँ अपक्षय से कमजोर चट्टानों के हटने और अपरदन से गहराई में कटाव के कारण बनती हैं। इनके बिना स्थलरूपों का विकास संभव नहीं है।

🔵 प्रश्न 29: स्थलरूप विकास में समय और जलवायु की भूमिका समझाइए।
🟢 उत्तर:
समय: स्थलरूप विकास धीमी प्रक्रिया है और लाखों वर्षों में परिवर्तन होता है। समय अपरदन और निक्षेपण की गति और दिशा तय करता है।
जलवायु: वर्षा, तापमान और पवन की तीव्रता स्थलरूप विकास को प्रभावित करती हैं। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रासायनिक अपक्षय तीव्र होता है, जबकि शुष्क क्षेत्रों में पवन अपरदन प्रमुख होती है।
दोनों कारक स्थलरूप विकास की गति, स्वरूप और प्रकृति निर्धारित करते हैं।

🟡 प्रश्न 30: स्थलरूप विकास का मानव जीवन पर प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
🟢 उत्तर: स्थलरूप विकास मानव जीवन को कई तरीकों से प्रभावित करता है —
आर्थिक गतिविधियां: समतल मैदान कृषि के लिए उपयुक्त होते हैं, जबकि पर्वतीय क्षेत्र पर्यटन और जलविद्युत उत्पादन के लिए।
जल संसाधन: घाटियाँ और जलप्रपात जल संसाधनों के विकास में सहायक हैं।
आवास और परिवहन: समतल क्षेत्र बस्तियों और मार्गों के निर्माण के लिए अनुकूल हैं।
प्राकृतिक आपदाएं: भूस्खलन, भूकंप और बाढ़ मानव जीवन को प्रभावित करते हैं।
इस प्रकार, स्थलरूप विकास मानव सभ्यता के विकास और गतिविधियों का आधार प्रदान करता है।

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मस्तिष्क मानचित्र

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दृश्य सामग्री

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