Class 11, HINDI LITERATURE

Class 11 : हिंदी साहित्य – Lesson 8. भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?

संक्षिप्त लेखक परिचय

📘 लेखक परिचय — भारतेंदु हरिश्चंद्र

🟢 भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर 1850 को वाराणसी (काशी) में हुआ था।

🟡 इन्हें “आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक” और “हिंदी भाषा का निर्माता” कहा जाता है।

🔵 इनके पिता गोपालचंद्र, जो ‘गिरधरदास’ उपनाम से कविताएँ लिखते थे, स्वयं एक प्रतिभाशाली कवि थे।

🔴 बाल्यावस्था में ही माता-पिता का साया उठ जाने के कारण भारतेंदु ने स्वाध्याय के माध्यम से संस्कृत, उर्दू, मराठी, बंगला, गुजराती, पंजाबी और अंग्रेज़ी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया।

🟢 मात्र 18 वर्ष की आयु (1868) में उन्होंने ‘कविवचनसुधा’ नामक पत्रिका की स्थापना की। इसके बाद क्रमशः
‘हरिश्चंद्र मैगज़ीन’ (1873) और स्त्री-शिक्षा के लिए ‘बाला-बोधिनी’ (1874) नामक पत्रिकाएँ आरंभ कर वे आधुनिक हिंदी पत्रकारिता के अग्रदूत बने।

🟡 भारतेंदु का साहित्यिक योगदान बहुआयामी था — उन्होंने कविता, नाटक, निबंध, अनुवाद, आलोचना और पत्रकारिता सभी विधाओं में उत्कृष्ट रचनाएँ कीं।

🔵 उनके प्रसिद्ध नाटकों में ‘अंधेर नगरी’ और ‘भारत दुर्दशा’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, जिनमें अंग्रेज़ी शासन की नीतियों, सामाजिक अन्याय और कुरीतियों पर तीखा व्यंग्य किया गया है।

🔴 उन्होंने खड़ी बोली हिंदी को साहित्यिक प्रतिष्ठा दिलाई और इसे राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने में मील का पत्थर सिद्ध हुए।

🟢 भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भारतीय समाज में नवजागरण, सामाजिक सुधार, राष्ट्रीय चेतना और भाषा-एकता की भावना जगाई।

🟡 उनका निधन 6 जनवरी 1885 को मात्र 35 वर्ष की आयु में हुआ, पर वे हिंदी साहित्य में एक युग-प्रवर्तक व्यक्तित्व के रूप में अमर हैं।


📖 ‘भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती’ — विचार-सार

यह निबंध भारतेंदु हरिश्चंद्र की राष्ट्रवादी और प्रगतिशील सोच का दर्पण है, जिसमें उन्होंने भारत की उन्नति के लिए आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक सुधारों की रूपरेखा प्रस्तुत की है।

✨ मुख्य विचार:

🔹 1. स्वदेशी उद्योगों का उत्थान —
स्थानीय कारीगरों और कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन देकर विदेशी वस्तुओं पर निर्भरता कम करने की आवश्यकता बताई।

🔹 2. सार्वजनिक शिक्षा का प्रसार —
प्रत्येक नागरिक के लिए अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा को आवश्यक माना, जिससे अज्ञानता दूर हो और राष्ट्रीय चेतना जागृत हो।

🔹 3. स्त्री-शिक्षा एवं सामाजिक सुधार —
**बाल विवाह, नारी-व

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन


🌟 मुख्य निष्कर्ष

भारतेंदु हरिश्चंद्र की रचना “भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?” में प्रस्तुत महान उद्देश्य यह स्पष्ट करता है कि राष्ट्रीय उत्कर्ष केवल बाह्य संसाधनों या सत्ता-प्राप्ति से नहीं, बल्कि व्यक्ति-व्यक्ति में जागरूकता, नैतिकता, शिक्षा एवं सामाजिक सेवा के सहारे ही संभव है। रचना में भारतीय समाज के नैतिक पतन, सामाजिक अव्यवस्था और अज्ञानता के खिलाफ परिवर्तन का मार्गदर्शन मिलता है।


💡 विषयवस्तु

इस निबंध के माध्यम से भारतेंदु ने भारतवर्ष में व्याप्त विविध समस्याओं का विश्लेषण करते हुए उन्नति के साधनों का गहन चित्रण किया है। आरंभ में वे देश की विगत महानता का स्मरण कराते हैं और वर्तमान स्थिति में फैली कुव्यवस्था, आचरण में अनैतिकता तथा जनमानस में उदासीनता का वर्णन करते हैं। तत्पश्चात् वे उन्नति के लिए आवश्यक आधार — शिक्षा, स्वावलंबन, सामाजिक सद्भाव, नैतिकता, सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं कुटीर उद्योग — पर विस्तार से प्रकाश डालते हैं।


🌍 प्रसंग

उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में राजनीतिक उपनिवेशवाद के प्रभाव से भारतीय समाज में आत्म-अवलोकन और आत्मसम्मान की कमी थी। देश-विदेश में सांस्कृतिक वैभव के बावजूद आन्तरिक क्षेत्रीय असहिष्णुता, जातिगत विभेद और आर्थिक अशांति व्याप्त थी।

इसी समय भारतेंदु ने राष्ट्रीय चेतना जागृत करने के उद्देश्य से यह रचना की, ताकि समाज के विविध वर्ग आपस में समभाव विकसित कर देश की प्रगति में योगदान दे सकें।


🌿 भावार्थ

– “प्रतिभा के बिना संसाधन व्यर्थ हैं।”
– “शिक्षा का उद्देश्य केवल विद्या-ार्जन नहीं, बल्कि चरित्र-निर्माण भी होना चाहिए।”
– “स्वावलंबन राष्ट्रीय गर्व का आधार है; पर यह केवल आर्थिक नहीं, आत्मिक स्वावलंबन भी है।”
– “सामाजिक सेवा में तन-मन की दानशीलता होनी चाहिए, पारस्परिक सहयोग से ही वास्तविक उन्नति संभव है।”


🔦 प्रतीक

– दीप का प्रकाश: अज्ञानता का निवारण, शिक्षा एवं नैतिकता का उजाला।
– खेत एवं बगिया: कृषि और लघु उद्योगों का आधार, सामाजिक-आर्थिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक।
– संगीत व कला: राष्ट्रीय जीवन का सौंदर्य एवं मानव मन का संवर्धन, जो उन्नति को आध्यात्मिक आयाम प्रदान करते हैं।
– लाखों झुंड: समाज के विभिन्न वर्गों का संयुक्त प्रयास, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका अनिवार्य है।


🪶 शैली

रचना की भाषा प्रवाहपूर्ण, प्रेरक और मार्मिक है। व्याकरणिक शुद्धता के साथ-साथ अलंकारात्मक छटा भी विद्यमान है — जैसे अनुप्रास, उपमा और रूपक। अनेक स्थानों पर प्रश्नोत्तरी शैली का प्रयोग पाठकों को आत्मावलोकन के लिए प्रेरित करता है।

उपसंहार में आह्वानात्मक वाक्यों की श्रृंखला भावनात्मक उत्कंठा को चरम पर पहुँचा देती है।


🧭 विचार

– आत्मचिंतन एवं आत्मशुद्धि: राष्ट्र का कल्याण तभी संभव है, जब प्रत्येक नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहेगा।
– नैतिकता एवं चरित्र: शिक्षा केवल ज्ञानार्जन का माध्यम नहीं, बल्कि चरित्र-निर्माण की दिशा भी होनी चाहिए।
– आर्थिक एवं सामाजिक स्वावलंबन: विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और देशी उद्योगों के उत्थान से आर्थिक स्वतन्त्रता सुनिश्चित होती है।
– सामाजिक समरसता: जाति, संप्रदाय, वर्ग के बंधनों से ऊपर उठकर मानवता की सेवा ही राष्ट्र-उन्नति का मूल आधार है।
– शारीरिक एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य: स्वच्छता, व्यायाम और स्वास्थ्य शिक्षा से राष्ट्रीय सामर्थ्य में वृद्धि होती है।


🗣️ भाषा

शुद्ध हिंदी में रचित इस निबंध में तत्सम और तद्भव शब्दों का संतुलित प्रयोग दिखाई देता है — “उदात्त लक्ष्य”, “नैतिक आधार”, “समरसता”। कहीं-कहीं समाज की दुर्बलता को प्रकट करने हेतु कठिन शब्दावली का प्रयोग भी किया गया है, जो रचना की गंभीरता को और गहरा बनाता है।


🏙️ सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ

ब्रिटिश शासन के प्रभाव से भारतीय समाज का पारम्परिक ढाँचा क्षतिग्रस्त हो चुका था। शोषण-प्रथाएँ, शिक्षा-केंद्रों की कमी और सामाजिक असमानता ने देश को आन्तरिक रूप से कमजोर कर दिया था।

भारतेंदु ने रचना में उस समय के सामाजिक विभाजन — ग्राम्य-नगरीय, उच्च जाति–निम्न जाति, आर्थिक धनी–दीनहारी — पर प्रहार करते हुए सुझाव दिया कि शिक्षित और शुद्ध मनोबल के सहारे ही इन विभेदों को समाप्त किया जा सकता है।


🔎 गहन विश्लेषण

– शिक्षा एवं चरित्र का संबंध: रचना में बताया गया है कि ज्ञान के संग्रह के बजाय गुण-निक्षेप को प्राथमिकता देनी चाहिए; तभी बुद्धि और विवेक का समुचित विकास होगा।
– स्वावलंबन की स्वरूपता: केवल देशी उद्योगों का उत्थान नहीं, बल्कि आत्मसंतुष्टि और आत्मविश्वास से युक्त व्यक्तित्व निर्माण भी स्वावलंबन का अंग है।
– सामूहिक चेतना का महत्त्व: रचना में उठाया गया सर्वत्र सहयोग का तर्क सामूहिक आन्दोलन का आधार बताता है — प्रत्येक व्यक्ति की सक्रिय भागीदारी से ही राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया पूर्ण होती है।
– नैतिक पुनरुत्थान: अधिकारी वर्ग की भ्रष्टता और आमजन की लापरवाही को रचना ने आलोचनात्मक दृष्टि से देखा है; सुधार हेतु व्यक्तिगत उत्तरदायित्व और निष्ठा को अनिवार्य बताया गया है।
– अन्तर्विरोधयुक्त प्रश्नोक्ति: “क्या हमारा मनुष्य मात्र भौतिक सुख खोने से तिलमिला जाएगा या आत्मिक गरिमा खोने से?” जैसे प्रश्न पाठक को आत्मावलोकन हेतु प्रेरित करते हैं।


📖 उपसंहार

“भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?” रचना राष्ट्रीय पुनरुत्थान का मार्गदर्शक ग्रन्थ है, जिसमें भारतेंदु हरिश्चंद्र ने शिक्षा, आत्मशुद्धि, सामाजिक सेवा और स्वावलंबन का समन्वित मॉडल प्रस्तुत किया है।

यह रचना आज भी उतनी ही सार्थक है, क्योंकि मानवीय मूल्यों के अभाव में युग-परिवर्तन असंभव है। निरन्तर जागरूकता, नैतिक चरित्र-निर्माण और सर्वजनीन सहयोग से ही भारतवर्ष की दीर्घकालीन उन्नति सुनिश्चित होगी।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

🟠 प्रश्न 1: पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि ‘इस अभागे आलसी देश में जो कुछ हो जाए वही बहुत कुछ है’ क्यों कहा गया है?
🔵 उत्तर: यह कथन भारतवर्ष की उस स्थिति को दर्शाता है जहाँ लोग परिश्रम और आत्मप्रयास के बजाय भाग्य और परिस्थितियों पर निर्भर रहते हैं। आलस्य, अकर्मण्यता और असंगठित समाज के कारण देश में प्रगति की गति बहुत धीमी रही। लेखक का अभिप्राय यह है कि ऐसी परिस्थितियों में यदि थोड़ी-सी भी प्रगति हो जाती है तो उसे बहुत बड़ी उपलब्धि माना जाता है।

🟠 प्रश्न 2: ‘जहाँ रॉबर्ट साहब बहादुर जैसे कलेक्टर हों, वहाँ क्यों न ऐसा समाज हो’ वाक्य में लेखक ने किस प्रकार के समाज की कल्पना की है?
🔵 उत्तर: लेखक ने ऐसे समाज की कल्पना की है जो अनुशासित, संगठित और परिश्रमी हो। उनका मत है कि जब योग्य और न्यायप्रिय अधिकारी शासन में हों तो समाज में भी व्यवस्था, अनुशासन और प्रगति स्वाभाविक रूप से आती है। ऐसे समाज में नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहते हैं और राष्ट्र उन्नति की दिशा में अग्रसर होता है।

🟠 प्रश्न 3: जिस प्रकार ट्रेन बिना इंजन के नहीं चल सकती ठीक उसी प्रकार ‘हिंदुस्तानी लोगों को कोई चलानेवाला हो’ से लेखक ने अपने देश की खराबियों के मूल कारण खोजने के लिए क्यों कहा है?
🔵 उत्तर: लेखक ने यह कथन इस बात पर बल देने के लिए कहा है कि भारतवासी स्वयं से पहल नहीं करते और उन्हें किसी नेतृत्व की आवश्यकता होती है। जैसे इंजन के बिना रेलगाड़ी नहीं चलती, वैसे ही सही मार्गदर्शन और प्रेरणा के बिना समाज प्रगति नहीं कर सकता। यह देश में नेतृत्व की कमी और नागरिकों की निष्क्रिय मानसिकता की ओर संकेत करता है।

🟠 प्रश्न 4: देश को सब प्रकार से उन्नति हो, इसके लिए लेखक ने जो उपाय बताए उनमें से किन्हीं चार का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
🔵 उत्तर: लेखक ने देश की उन्नति के लिए निम्नलिखित उपाय सुझाए हैं –

  1. शिक्षा का प्रसार कर लोगों को जागरूक और आत्मनिर्भर बनाना।
  2. विदेशी वस्तुओं और संस्कृति के अंधानुकरण से बचकर स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करना।
  3. आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए उद्योग और व्यापार को बढ़ावा देना।
  4. भाषा और साहित्य के विकास से राष्ट्रीय एकता और विचारों में मजबूती लाना।

🟠 प्रश्न 5: लेखक जनता को मन–मतांत छोड़कर आपसी प्रेम बढ़ाने का आग्रह क्यों करता है?
🔵 उत्तर: लेखक का मानना है कि समाज में फूट और आपसी कलह ही पिछड़ेपन का प्रमुख कारण है। यदि जनता आपसी मतभेद भूलकर एकता और प्रेम से रहेगी, तो देश में स्थिरता, सहयोग और प्रगति का वातावरण बनेगा। राष्ट्र की उन्नति के लिए सामूहिक शक्ति और मिलजुलकर कार्य करना आवश्यक है।

🟠 प्रश्न 6: आज देश की आर्थिक स्थिति के संदर्भ में नीचे दिए गए वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए – ‘जैसे बंकर धारा जाकर गंगा सागर में मिलती है, वैसे ही तुम्हारी संपत्ति हजार तरह से इंग्लैंड, फ्रांसिस, जर्मनी, अमेरिका को जाती है।’
🔵 उत्तर: इस कथन का आशय है कि भारत की संपत्ति और धन विदेशी देशों में चला जाता है और देश आर्थिक रूप से निर्बल हो जाता है। भारतवासी अपनी पूँजी और संसाधन विदेशी वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करते हैं, जिससे देश की अर्थव्यवस्था कमजोर होती है और विदेशी राष्ट्र समृद्ध होते हैं।

🟠 प्रश्न 7: आपके विचार से देश की उन्नति किस प्रकार संभव है? चार उदाहरण तर्क सहित दीजिए।
🔵 उत्तर: देश की उन्नति निम्नलिखित उपायों से संभव है –

  1. सभी वर्गों को समान शिक्षा के अवसर प्रदान किए जाएँ।
  2. स्वदेशी उद्योगों और व्यापार को बढ़ावा दिया जाए।
  3. समाज में एकता, प्रेम और सहयोग की भावना को मजबूत किया जाए।
  4. भ्रष्टाचार और सामाजिक बुराइयों को समाप्त करके एक पारदर्शी शासन प्रणाली स्थापित की जाए।

🟠 प्रश्न 8: भाषण को किन्हीं चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए तथा उनके उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए कि पाठ ‘भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?’ एक भाषण है।
🔵 उत्तर: इस पाठ में भाषण की चार प्रमुख विशेषताएँ हैं –

  1. संबोधनात्मक शैली – लेखक सीधे जनता से संवाद करता है।
  2. तर्कपूर्ण प्रस्तुति – हर विचार को उदाहरण और कारणों के साथ प्रस्तुत किया गया है।
  3. प्रेरणादायक भाषा – पाठक को कर्म, एकता और सुधार के लिए प्रेरित किया गया है।
  4. समाधान-प्रधान दृष्टिकोण – केवल समस्याएँ नहीं बताई गईं बल्कि उनके समाधान भी सुझाए गए हैं।

🟠 प्रश्न 9: ‘अपने देश में अपनी भाषा में उन्नति करो’ से लेखक का क्या आशय है? वर्तमान संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
🔵 उत्तर: लेखक का आशय है कि अपनी भाषा में शिक्षा, साहित्य और विज्ञान का विकास करना चाहिए, क्योंकि भाषा ही संस्कृति और विचारों की वाहक होती है। आज भी यह विचार उतना ही प्रासंगिक है क्योंकि मातृभाषा में शिक्षा और प्रशासन से जनसाधारण तक विचार आसानी से पहुँचते हैं और राष्ट्रीय एकता मजबूत होती है।

🟠 प्रश्न 10: निम्नलिखित गद्यांशों का व्याख्या कीजिए –
(क) सास के अनुसार …………………… परन्तु चल जाएगा।
🔵 उत्तर: इसका आशय यह है कि यदि देश के लोग कठिन परिश्रम करें और मिलकर कार्य करें, तो देश प्रगति कर सकता है।
(ख) दरिद्र हिंदुस्तानी इस तरह ……………. वही सच्चा हिंदुस्तानी है।
🔵 उत्तर: इसका आशय है कि सच्चा देशभक्त वही है जो अपनी मातृभूमि की सेवा और उन्नति के लिए त्याग और समर्पण की भावना रखता है।
(ग) भारतवर्ष का कौन ……………. आगे बढ़ सकता है।
🔵 उत्तर: इस कथन से तात्पर्य है कि यदि देश के लोग एकजुट होकर कार्य करें और विदेशी प्रभाव से मुक्त हों, तो भारतवर्ष निश्चित रूप से प्रगति की दिशा में आगे बढ़ेगा।

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न


🌟 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)


🟢 प्रश्न 1:
भारतेन्दु के अनुसार भारतवासी आलसी क्यों हैं?
🔵 1️⃣ उचित नेतृत्व की कमी के कारण
🟣 2️⃣ शिक्षा की कमी के कारण
🟢 3️⃣ विदेशी शासन की वजह से
🟡 4️⃣ संसाधनों की कमी के कारण

✅ उत्तर: 1️⃣ उचित नेतृत्व की कमी के कारण


🟢 प्रश्न 2:
रेलगाड़ी रूपक से भारतेन्दु क्या दर्शाते हैं?
🔵 1️⃣ आर्थिक दृष्टि से धनात्मक
🟣 2️⃣ शक्ति में सबल पर इंजन विदेशी शासन के पास होने से गतिशीलता में अक्षम
🟢 3️⃣ शैक्षणिक प्रगति
🟡 4️⃣ सांस्कृतिक पतन

✅ उत्तर: 2️⃣ शक्ति में सबल पर इंजन विदेशी शासन के पास होने से गतिशीलता में अक्षम


🟢 प्रश्न 3:
भारतवर्ष की उन्नति के लिए बेरोजगारी नियंत्रित करना क्यों आवश्यक है?
🔵 1️⃣ आय बढ़ाने के लिए
🟣 2️⃣ जनसंख्या-नियंत्रण के कारण
🟢 3️⃣ शोषण कम करने के लिए
🟡 4️⃣ आर्थिक स्वावलंबन के लिए

✅ उत्तर: 4️⃣ आर्थिक स्वावलंबन के लिए


🟢 प्रश्न 4:
भारतेन्दु ने भारतवासियों को क्या त्याग करने की सलाह दी है?
🔵 1️⃣ विदेशी वस्तुओं का मोह
🟣 2️⃣ सामाजिक सेवा का
🟢 3️⃣ पारिवारिक रिश्तों का
🟡 4️⃣ साहित्यिक रूचि का

✅ उत्तर: 1️⃣ विदेशी वस्तुओं का मोह


🟢 प्रश्न 5:
‘भारतवर्ष की उन्नति’ के लिए भारतेन्दु कौन-सी भावना महत्वपूर्ण मानते हैं?
🔵 1️⃣ द्वेष
🟣 2️⃣ त्याग-भावना
🟢 3️⃣ आलस्य
🟡 4️⃣ अहंकार

✅ उत्तर: 2️⃣ त्याग-भावना


✏️ लघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)


🟠 प्रश्न 6:
रेलगाड़ी के इंजन विदेशी शासन के पास होने की तुलना का क्या संदेश है?
🔵 उत्तर: यह संदेश है कि बिना स्वराज्य के, चाहे संसाधन और तकनीकी शक्ति हो, राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता। अपनी स्वायत्तता और नेतृत्व आवश्यक है।


🟠 प्रश्न 7:
भारतेन्दु ने जनसंख्या वृद्धि पर क्या प्रतिबंध सुझाया?
🔵 उत्तर: उन्होंने जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे संसाधनों का सही उपयोग हो और रोजगार के अवसर बढ़ें।


🟠 प्रश्न 8:
भारतेन्दु ने किस प्रकार की शिक्षा पर जोर दिया?
🔵 उत्तर: उन्होंने व्यावहारिक शिक्षा, व्यापार, उद्योग और व्यवसाय से जुड़ी शिक्षा पर जोर दिया जो आत्मनिर्भरता और विकास में सहायक हो।


🟠 प्रश्न 9:
तीन प्रमुख वजहें बताइए जिनसे भारतेन्दु भारत की उन्नति के मार्ग में बाधक मानते हैं।
🔵 उत्तर: आलस्य, विदेशी वस्तुओं का आकर्षण और जाति-पंथ आधारित विभाजन।


🟠 प्रश्न 10:
भारतेन्दु ने ‘भारत माता’ की उपमा क्यों दी?
🔵 उत्तर: उन्होंने एकता और राष्ट्रीय भावना जगाने के लिए ‘भारत माता’ की उपमा दी, जिससे लोग देशहित के लिए एकजुट हों।


📜 मध्यम उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)


🔴 प्रश्न 11:
‘भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?’ में एकता-भाव का महत्व स्पष्ट कीजिए।
🔵 उत्तर: भारतेन्दु कहते हैं कि जाति, धर्म और भाषा के भेद मिटाकर एकता बनाना आवश्यक है। जैसे गंगा विभिन्न नदियों का जल समेटकर समुद्र तक पहुँचती है, वैसे ही भारतवासियों को भी एकजुट होकर देश की उन्नति में योगदान देना चाहिए। एकता से सामूहिक शक्ति का निर्माण होता है, जो देश को आत्मनिर्भर और प्रगतिशील बनाती है।


🔴 प्रश्न 12:
त्याग-भावना और आत्मबल का संयोजन भारतेंदु के विचार में कैसे मददगार है?
🔵 उत्तर: त्याग-भावना से व्यक्ति व्यक्तिगत स्वार्थों को त्यागकर राष्ट्रहित में कार्य करता है। आत्मबल उसे कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति देता है। जब दोनों मिलते हैं तो व्यक्ति संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग कर अपनी क्षमताओं को पहचानता है और देश की उन्नति के लिए प्रयासरत रहता है।


🔴 प्रश्न 13:
भारतेन्दु की भाषा-शैली की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
🔵 उत्तर: उनकी भाषा सरल, सहज और प्रभावशाली है। उन्होंने रोचक रूपकों (जैसे रेलगाड़ी, दर्पण, जाम्बवान-हनुमान कथा) का प्रयोग किया है। भाषा में व्यंग्य और प्रेरणा का समावेश है। उपमा और रूपक जैसे अलंकारों से उनकी शैली सशक्त और प्रभावपूर्ण बनती है।


🪶 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (4.5 अंक)


🟣 प्रश्न 14:
‘भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?’ का केंद्रीय भाव और प्रेरक संदेश 110 शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

🔶 उत्तर:
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र इस निबंध में भारतवासियों को अपनी कमजोरियों को पहचानने और उन्हें दूर करने की प्रेरणा देते हैं। वे आलस्य, विदेशी वस्त्रों के मोह, जातीय भेदभाव और जनसंख्या वृद्धि जैसी बाधाओं को उन्नति के मार्ग में रुकावट मानते हैं। रेलगाड़ी रूपक से वे बताते हैं कि बिना स्वराज्य और स्वशक्ति के प्रगति असंभव है। त्याग-भावना, आत्मबल, व्यावहारिक शिक्षा और स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग से आत्मनिर्भरता प्राप्त की जा सकती है। एकता और देशभक्ति की भावना से ही राष्ट्र सशक्त होगा। प्रत्येक नागरिक का राष्ट्रहित में योगदान ही भारतवर्ष की उन्नति की कुंजी है।


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अतिरिक्त ज्ञान

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दृश्य सामग्री

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