Class 11 : हिंदी अनिवार्य – Lesson 18. राजस्थान की रजत बूंदे
संक्षिप्त लेखक परिचय
📘 लेखक परिचय — अनुपम मिश्र
🔵 अनुपम मिश्र का जन्म 5 जून 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा में हुआ था।
🟢 उनके पिता प्रसिद्ध कवि भवानी प्रसाद मिश्र और माता सरला मिश्र थीं।
🟡 प्रारंभिक शिक्षा वर्धा में हुई तथा उच्च शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से संस्कृत में स्नातकोत्तर (1968) उपाधि प्राप्त की।
🔴 इसके बाद उन्होंने गांधी शांति प्रतिष्ठान, दिल्ली में पर्यावरण कक्ष की स्थापना की।
🟢 वे गांधीवादी पर्यावरणविद्, लेखक, संपादक एवं छायाकार थे।
🟡 ‘गांधी मार्ग’ पत्रिका के संस्थापक–संपादक रहे।
🔵 देश और दुनिया में तालाब पुनरुद्धार व जल संरक्षण के क्षेत्र में उनकी पहल से अलवर, लापोड़िया आदि क्षेत्रों में सूख चुकी नदियों और पारंपरिक जल स्रोतों का पुनर्जीवन संभव हुआ।
🔴 उनकी प्रमुख कृति ‘आज भी खरे हैं तालाब’ (2011) के लिए उन्हें जमनालाल बजाज पुरस्कार (2011) तथा पूर्व में इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार (1996) से सम्मानित किया गया।
🟢 इसके अतिरिक्त उन्हें मध्य प्रदेश सरकार द्वारा चंद्रशेखर आज़ाद राष्ट्रीय पुरस्कार (2007–08) एवं कृष्ण बलदेव वैद पुरस्कार भी प्राप्त हुए।
💠 प्रमुख कृतियाँ:
आज भी खरे हैं तालाब (2011), राजस्थान की रजत बूँदें
💠 सम्मान:
इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार (1996), जमनालाल बजाज पुरस्कार (2011)
💠 विचारधारा:
गांधीवादी, पारंपरिक जल-प्रबंधन, सामुदायिक विमर्श
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन
📚 पाठ परिचय
यह पाठ वितान भाग 1 का दूसरा अध्याय है जो राजस्थान की मरुभूमि में जल संचय की पारंपरिक विधि कुंई और उसके निर्माणकर्ता चेलवांजी के बारे में बताता है। यह पाठ जल संरक्षण, पारंपरिक ज्ञान और समाज की सामूहिक जिम्मेदारी का अद्भुत दस्तावेज है।
🏜️ कुंई क्या है?
🟣 परिभाषा
🕳️ छोटा कुआं: कुंई कुएं का स्त्रीलिंग रूप है — यह एक छोटा कुआं है।
📏 व्यास और गहराई: सामान्य कुएं का व्यास 15–20 हाथ होता है जबकि कुंई का व्यास केवल 4–5 हाथ होता है। लेकिन गहराई दोनों की लगभग समान होती है — 30 से 60 हाथ तक।
💧 उद्देश्य: कुआं भूजल (खारा पानी) के लिए बनता है जबकि कुंई वर्षा जल (मीठा पानी) को संचित करने के लिए बनाई जाती है।
🟠 कुंई का महत्व
🌧️ वर्षा जल संचय: राजस्थान में जब वर्षा होती है तो पानी तुरंत रेत में समा जाता है। यह पानी रेत की सतह और नीचे की खड़िया पट्टी के बीच नमी के रूप में फैल जाता है।
🍯 मीठा पानी: खारे पानी के सागर में कुंई अमृत जैसा मीठा पानी देती है।
🏡 हर परिवार की कुंई: राजस्थान के कई गांवों में हर परिवार की अपनी कुंई होती है।
👷 चेलवांजी (कुंई निर्माणकर्ता)
🟡 कार्य विधि
⛏️ खुदाई: चेलवांजी या चेजारो कुंई की खुदाई और चिनाई करने वाले दक्ष शिल्पकार होते हैं। उनका काम चेजा कहलाता है।
🔨 औजार: कुंई का घेरा बहुत संकरा होने के कारण कुल्हाड़ी या फावड़े का उपयोग नहीं हो सकता — इसलिए बसौली नामक विशेष औजार का प्रयोग होता है।
🪣 मलबा निकालना: खुदाई से निकला मलबा बाल्टी में भरकर रस्सी से ऊपर भेजा जाता है।
🟢 कठिन परिस्थितियां
🔥 अत्यधिक गर्मी: 30–35 हाथ गहराई पर तापमान बहुत बढ़ जाता है और सांस लेना मुश्किल हो जाता है।
🌬️ हवा का प्रबंध: गर्मी कम करने के लिए ऊपर खड़े लोग मुट्ठी भर रेत नीचे फेंकते हैं — इससे ताज़ी हवा नीचे जाती है और गर्म हवा ऊपर आती है।
🪖 सुरक्षा: रेत के कणों से बचने के लिए चेलवांजी अपने सिर पर कांसे, पीतल या अन्य धातु का टोप पहनते हैं।
🌊 पानी के तीन रूप
राजस्थान की मरुभूमि में समाज ने पानी को तीन रूपों में बांटा है —
🔵 1. पालरपानी
🌧️ सीधे बरसात से मिलने वाला पानी जो धरातल पर बहता है।
🏞️ इसे नदी, तालाब आदि में रोका जाता है।
🟤 2. पातालपानी
🕳️ भूजल जो कुओं में से निकाला जाता है।
🧂 राजस्थान में यह प्रायः खारा होता है इसलिए पीने योग्य नहीं होता।
🟣 3. रेजाणीपानी
💎 पालरपानी और पातालपानी के बीच का पानी।
🪨 यह धरातल से नीचे उतर गया लेकिन पाताल में नहीं मिल पाया पानी है जो खड़िया पट्टी के कारण अलग बना रहता है।
💧 यही पानी नमी के रूप में कुंई में रिस-रिसकर मीठे पानी के रूप में एकत्र होता है।
🪨 खड़िया पट्टी का महत्व
🟠 खड़िया पट्टी क्या है?
🗿 रेत की सतह से 50–60 हाथ नीचे खड़िया पत्थर की पट्टी चलती है।
🛡️ यह पट्टी वर्षा जल को गहरे खारे भूजल में मिलने से रोकती है।
💧 इसी के कारण वर्षा का पानी रेत और पत्थर के बीच नमी के रूप में सुरक्षित रहता है।
🟡 विभिन्न नाम
खड़िया पट्टी को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है:
चारोली
धाधड़ो या धड़धड़ो
बिट्टू रो बल्लियोंखड़ी
🏘️ कुंई और समाज
🔴 निजी और सार्वजनिक का संगम
🏠 निजी स्वामित्व: हर परिवार की अपनी कुंई होती है और पानी लेने का उनका निजी हक होता है।
🌍 सार्वजनिक भूमि: लेकिन कुंई का निर्माण गांव-समाज की सार्वजनिक जमीन पर किया जाता है।
⚖️ सामाजिक नियंत्रण: इसलिए निजी होते हुए भी कुंइयों पर ग्राम समाज का अंकुश रहता है। नई कुंई बनाने की स्वीकृति विशेष जरूरत पड़ने पर ही दी जाती है क्योंकि हर नई कुंई का अर्थ है नमी का बंटवारा।
🟢 दैनिक जीवन में कुंई
🌅 गोधूलि बेला: शाम को पूरा गांव कुंइयों पर आता है और पानी भरा जाता है — मेले जैसा वातावरण होता है।
🔒 ढक्कन बंद: पानी भरने के बाद कुंइयों के ढक्कन बंद कर दिए जाते हैं।
😴 कुंई का आराम: कुंइयां दिन भर और रात भर आराम करती हैं ताकि फिर से पानी रिस-रिसकर भर सके।
🗺️ कुंइयों का वितरण
🟣 कहां मिलती हैं कुंइयां?
📍 राजस्थान में सभी जगह कुंई नहीं मिलती क्योंकि हर जगह खड़िया पट्टी नहीं है।
🏜️ मुख्य क्षेत्र: चुरू, बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर के कई क्षेत्रों में खड़िया पट्टी चलती है और यहां गांव-गांव में कुंइयां हैं।
💯 रिकॉर्ड: जैसलमेर जिले के एक गांव खड़ेरों की ढाणी में 120 कुंइयां थीं — इसे छह-बीसी (6×20) के नाम से जाना जाता था।
🟠 पार नाम
🏘️ कुंई को कई जगह पार के नाम से भी जाना जाता है।
🗺️ जैसलमेर और बाड़मेर के कई गांव पार के कारण ही आबाद हैं और उनके नाम भी पार पर हैं — जैसे जानरे आलो पार और सिरगु आलो पार।
🤝 चेजारो के साथ समाज का संबंध
🟡 पहले का सम्मान
🍽️ विशेष भोज: काम पूरा होने पर विशेष भोज का आयोजन किया जाता था।
🎁 भेंट और नेग: विदाई के समय तरह-तरह की भेंट दी जाती थी और तीज-त्योहारों, विवाह आदि पर नेग-भेंट दी जाती थी।
🌾 अनाज का हिस्सा: फसल आने पर खलिहान में उनके नाम से अनाज का एक अलग ढेर लगाया जाता था।
🔗 वर्षभर का संबंध: चेजारो के साथ गांव का संबंध वर्ष भर जुड़ा रहता था।
🔴 आज का बदलाव
💰 केवल मजदूरी: वर्तमान में उन्हें सिर्फ मजदूरी देकर काम करवाने का रिवाज आ गया है।
❌ संबंध समाप्ति: काम पूरा होने के बाद उनके साथ कोई संबंध नहीं रखा जाता।
💎 पाठ का संदेश
🟢 पारंपरिक ज्ञान का महत्व
🧠 राजस्थान के लोगों ने मरुभूमि में जीवन जीने के लिए एक पूरा जल विज्ञान विकसित किया है।
🏗️ कुंई निर्माण एक कठिन और विशिष्ट कला है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित हुई है।
🟠 जल संरक्षण की आवश्यकता
💧 आज जब पूरे देश में पानी की समस्या बढ़ रही है तब राजस्थान की यह पारंपरिक विधि अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा बन सकती है।
🏠 छत और आंगन में वर्षा जल संचय, तालाब निर्माण आदि विधियां अपनाई जा सकती हैं।
🟡 सामुदायिक जिम्मेदारी
🤝 कुंई का उदाहरण बताता है कि प्राकृतिक संसाधनों पर निजी और सामुदायिक दोनों स्तरों पर जिम्मेदारी होनी चाहिए।
⚖️ व्यक्तिगत हित के साथ सामूहिक हित का संतुलन जरूरी है।
🔵 शिल्पकारों का सम्मान
👏 समाज को चेजारो जैसे पारंपरिक शिल्पकारों का सम्मान और संरक्षण करना चाहिए।
💔 आधुनिकता के दौर में ऐसे शिल्पकारों के साथ संबंध कमजोर हो रहे हैं जो चिंताजनक है।
🏁 निष्कर्ष
‘राजस्थान की रजत बूंदें’ पाठ हमें सिखाता है कि प्रकृति की चुनौतियों का सामना करने के लिए पारंपरिक ज्ञान और सामुदायिक सहयोग कितना महत्वपूर्ण है। कुंई केवल जल का स्रोत नहीं बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर और वैज्ञानिक सोच का प्रतीक है। आज जब जल संकट विकराल रूप ले रहा है तब इस पारंपरिक ज्ञान को पुनर्जीवित करना और आधुनिक तकनीक के साथ जोड़ना समय की मांग है।
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
🟠 प्रश्न 1: राजस्थान में कुँड किसे कहते हैं? इसकी गहराई और व्यास तथा सामान्य कुओं की गहराई और व्यास में क्या अंतर होता है?
🔵 उत्तर: राजस्थान में कुँड वर्षा के जल को संचित करने के लिए बनाए गए विशेष ढाँचे को कहते हैं। ये सामान्यतः बेलनाकार होते हैं और ऊपर से चौड़े तथा नीचे से संकरे बनाए जाते हैं। कुँड की गहराई सामान्य कुओं की अपेक्षा कम होती है, परंतु उनका व्यास अधिक होता है ताकि अधिक मात्रा में वर्षा जल संग्रहित किया जा सके। सामान्य कुएँ भूजल तक पहुँचने के लिए अधिक गहरे होते हैं, जबकि कुँड सतही वर्षा जल को एकत्र करने के उद्देश्य से बनाए जाते हैं।
🟠 प्रश्न 2: दिनोदिन बढ़ती पानी की समस्या से निपटने में यह पाठ आपकी कैसे मदद कर सकता है तथा देश के अन्य राज्यों में इसके लिए क्या उपाय हो रहे हैं? जानें और लिखें।
🔵 उत्तर: यह पाठ हमें वर्षा जल संचयन की महत्ता समझाता है। बढ़ती जनसंख्या और जल संकट की समस्या से निपटने में कुँड जैसे पारंपरिक जल-संग्रहण के उपाय अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। इससे भूजल स्तर सुधरता है और जल की उपलब्धता बनी रहती है। देश के अन्य राज्यों में भी वर्षा जल संचयन के लिए तालाबों, टैंकों, चेकडैम और छतों से जल एकत्र करने जैसी तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीक का संयोजन जल संकट को दूर करने में मददगार है।
🟠 प्रश्न 3: चीज़ों के साथ गाँव समाज के व्यवहार में पहले की तुलना में आज क्या फ़र्क़ आया है पाठ के आधार पर बताएँ?
🔵 उत्तर: पहले गाँव समाज में जल, ज़मीन और अन्य संसाधनों को साझा संपत्ति माना जाता था और उनका उपयोग सामूहिक रूप से किया जाता था। लोग मिलजुलकर कुँडों का निर्माण और रखरखाव करते थे। आज के समय में निजी स्वामित्व और व्यक्तिगत हित प्रमुख हो गए हैं। संसाधनों के प्रति सामूहिक जिम्मेदारी कम हो गई है और जल संचयन जैसे पारंपरिक उपायों की उपेक्षा की जाने लगी है। यह बदलाव समाज के मूल्यों और जीवनशैली में आए परिवर्तन को दर्शाता है।
🟠 प्रश्न 4: निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में कुँडों पर ग्राम समाज का अंकुश लगा रहता है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा?
🔵 उत्तर: लेखक का आशय है कि भले ही कुँड किसी व्यक्ति या परिवार की भूमि पर बने हों, फिर भी उनका उपयोग और रखरखाव पूरे गाँव समाज की भागीदारी से होता है। ग्राम समाज जल की महत्ता को समझता है और उसके संरक्षण के लिए सामूहिक जिम्मेदारी निभाता है। इस कारण कुँड निजी संपत्ति होते हुए भी सार्वजनिक संसाधन के रूप में काम करते हैं और उन पर ग्राम समाज का नियंत्रण बना रहता है।
🟠 प्रश्न 5: कुँड निर्माण से संबंधित निम्न शब्दों के बारे में जानकारी प्राप्त करें – पालर पानी, पातालपानी, रेजाणी पानी।
🔵 उत्तर:
पालर पानी: वर्षा के जल को संग्रहित करके सतही उपयोग में लाने को पालर पानी कहते हैं। इसका उपयोग घरेलू कार्यों और पशुओं की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है।
पातालपानी: वह जल जो धरती की गहराई में जाकर भूजल स्तर को पुनः भरता है, पातालपानी कहलाता है।
रेज़ाणी पानी: वर्षा की पहली फुहार से प्राप्त जल रेज़ाणी पानी कहलाता है। इसे सबसे शुद्ध माना जाता है और पीने के लिए भी उपयोग किया जाता है।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🔵 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ)
🟢 प्रश्न 1
‘राजस्थान की रजत बूँदें’ किस विषय पर आधारित है?
🟣 1. राजस्थान के त्योहारों पर
🔵 2. मरुभूमि में जल संरक्षण की परंपरा पर
🟢 3. रेगिस्तानी लोकगीतों पर
🟡 4. राजस्थान की कला पर
✅ उत्तर: 2. मरुभूमि में जल संरक्षण की परंपरा पर
🟢 प्रश्न 2
राजस्थान में ‘कुंई’ किस उद्देश्य से बनाई जाती है?
🟣 1. खेती के लिए
🔵 2. वर्षा का मीठा पानी एकत्र करने के लिए
🟢 3. सजावट के लिए
🟡 4. पशु चराने के लिए
✅ उत्तर: 2. वर्षा का मीठा पानी एकत्र करने के लिए
🟢 प्रश्न 3
‘कुंई’ निर्माण करने वाले लोगों को क्या कहा जाता था?
🟣 1. चेलवांजी या चेजारो
🔵 2. राजमिस्त्री
🟢 3. कुम्हार
🟡 4. बढ़ई
✅ उत्तर: 1. चेलवांजी या चेजारो
🟢 प्रश्न 4
कुंई की विशेषता क्या है?
🟣 1. कम गहराई और छोटा व्यास
🔵 2. बड़ी झील के समान
🟢 3. ऊपर से चौड़ी और नीचे से संकरी
🟡 4. पथरीली बनावट
✅ उत्तर: 1. कम गहराई और छोटा व्यास
🟢 प्रश्न 5
‘रजत बूँदें’ शब्द किसका प्रतीक है?
🟣 1. चाँदी के सिक्कों का
🔵 2. बारिश की मूल्यवान बूंदों का
🟢 3. झील के पानी का
🟡 4. रेगिस्तान की चमक का
✅ उत्तर: 2. बारिश की मूल्यवान बूंदों का
🔵 लघु उत्तरीय प्रश्न
🟠 प्रश्न 6
‘कुंई’ और सामान्य कुएँ में क्या अंतर है?
💠 उत्तर: कुंई की गहराई सामान्य कुएँ जैसी होती है, पर उसका व्यास केवल पाँच-छह हाथ का होता है, जबकि सामान्य कुएँ का व्यास लगभग पंद्रह-बीस हाथ होता है।
🟠 प्रश्न 7
राजस्थान की भूमि में मीठा पानी कैसे सुरक्षित रहता है?
💠 उत्तर: रेतीली भूमि में वर्षा का पानी नीचे समाकर खड़िया पट्टी पर ठहर जाता है, जहाँ यह नमी के रूप में सुरक्षित रहता है।
🟠 प्रश्न 8
राजस्थान के किन जिलों में कुंइयाँ अधिक पाई जाती हैं?
💠 उत्तर: चुरू, बाड़मेर, जैसलमेर और बीकानेर जिलों में कुंइयाँ अधिक पाई जाती हैं, जहाँ पानी की कमी अधिक रहती है।
🟠 प्रश्न 9
कुंई का जल किन कार्यों में प्रयोग होता है?
💠 उत्तर: कुंई का जल पीने योग्य होता है और इसका उपयोग घरेलू कार्यों तथा पशु-पक्षियों की आवश्यकताओं के लिए किया जाता है।
🟠 प्रश्न 10
‘पालर पानी’ और ‘पाताल पानी’ में क्या अंतर है?
💠 उत्तर: ‘पालर पानी’ सतही वर्षा का जल होता है, जबकि ‘पाताल पानी’ धरती के भीतर गहराई में स्थित भूजल होता है।
🔵 मध्यम उत्तरीय प्रश्न
🔴 प्रश्न 11
‘राजस्थान की रजत बूँदें’ शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
🔷 उत्तर: इस शीर्षक में ‘रजत बूँदें’ का अर्थ है चाँदी जैसी मूल्यवान वर्षा की बूंदें। राजस्थान जैसे मरुस्थलीय प्रदेश में पानी का हर कतरा जीवन के लिए अनमोल होता है। लेखक अनुपम मिश्र ने वर्षा को जीवनदायिनी बताया है और उसे ‘रजत बूँदें’ कहकर उसकी महत्ता को प्रतीकात्मक रूप से व्यक्त किया है। यह शीर्षक जल के महत्व और उसके संरक्षण की आवश्यकता को सशक्त रूप में प्रस्तुत करता है।
🔴 प्रश्न 12
राजस्थान के लोगों की जल संरक्षण की परंपरा को समझाइए।
🔷 उत्तर: राजस्थान के लोगों ने वर्षा जल को संरक्षित रखने की परंपरा को पीढ़ी-दर-पीढ़ी निभाया है। उन्होंने सूखे प्रदेश में पानी को सहेजने के लिए कुंइयाँ, तालाब, टांके और बावड़ियों जैसी संरचनाएँ बनाई। इनका निर्माण सामुदायिक सहयोग से होता था और उनका उपयोग भी सामूहिक रूप से किया जाता था। प्रत्येक ग्राम समाज जल को अमूल्य मानता था और उसका उपयोग अनुशासित ढंग से करता था। यह परंपरा जल के प्रति उनकी वैज्ञानिक दृष्टि और सामाजिक जिम्मेदारी को दर्शाती है।
🔴 प्रश्न 13
समाज में निजी कुंइयों पर सामूहिक नियंत्रण क्यों था?
🔷 उत्तर: राजस्थान में निजी कुंइयाँ होते हुए भी उनके जल पर सामूहिक नियंत्रण था क्योंकि जल को निजी संपत्ति नहीं माना जाता था। समाज इसे सबकी साझा संपत्ति समझता था। इसका कारण यह था कि मरुस्थल में जल जीवन का आधार था और उसका समान वितरण समाज के अस्तित्व के लिए आवश्यक था। यह सामूहिक सोच समाज में सहयोग, जिम्मेदारी और अनुशासन की भावना को प्रकट करती है।
🔵 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
🟣 प्रश्न 14
‘राजस्थान की रजत बूँदें’ पाठ का केंद्रीय भाव और पर्यावरणीय संदेश 110 शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
🔶 उत्तर: अनुपम मिश्र का लेख ‘राजस्थान की रजत बूँदें’ मरुस्थल जैसे शुष्क प्रदेश में पानी के महत्व और जल संरक्षण की परंपरा पर केंद्रित है। लेखक बताते हैं कि राजस्थान में जल की एक-एक बूंद चाँदी से भी अधिक मूल्यवान है। यहाँ के लोग वर्षा के जल को सहेजने के लिए कुंइयाँ बनाते हैं, जो वर्षा जल को नीचे रोककर मीठा पानी प्रदान करती हैं। कुंई निर्माण करने वाले ‘चेलवांजी’ लोक-तकनीक के विशेषज्ञ होते हैं। समाज ने जल को सामूहिक संपत्ति माना और उसे सहेजने की जिम्मेदारी साझा की। यह पाठ जल संरक्षण, पर्यावरणीय संतुलन, लोक-ज्ञान और आत्मनिर्भरता का सशक्त संदेश देता है।
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अतिरिक्त ज्ञान
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दृश्य सामग्री
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