Class 11 : हिंदी अनिवार्य – Lesson 14 ए भूख अक्ल महादेवी
संक्षिप्त लेखक परिचय
📘 लेखक परिचय — अक्का महादेवी
🔵 अक्का महादेवी का जन्म 12वीं शताब्दी (लगभग 1130–1160) में दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य के उदुतदी गाँव में हुआ था।
🟢 उनके पिता का नाम निर्मल शेट्टी और माता का नाम सुमति था, जो दोनों शिवभक्त थे।
🟡 दस वर्ष की आयु में महादेवी ने शिवमंत्र की दीक्षा ली और भगवान चेन्नमल्लिकार्जुन (शिव) को ही अपना पति मान लिया।
🔴 युवावस्था में जैन राजा कौशिक ने उनसे विवाह किया, परन्तु उनका हृदय केवल शिव–भक्ति में रमा रहा।
🟢 उन्होंने गृहस्थ जीवन त्याग दिया, यहाँ तक कि वस्त्र भी छोड़ दिए और साधना–मार्ग पर चल पड़ीं।
🟡 उनकी निर्भीकता, तपस्या और शिव–निष्ठा ने समकालीन संतों को गहराई से प्रभावित किया।
🔵 वीरशैव संतों में उन्हें विशेष स्थान प्राप्त है।
🟢 अक्का महादेवी ने लगभग 430 ‘वचन’ (कन्नड़ भक्ति-साहित्य की विशेष विधा) की रचना की।
🟡 इन वचनों में शिव के प्रति माधुर्य भाव, ईश्वर–निष्ठा, प्रेम, और सामाजिक बंधनों से मुक्ति का संदेश मिलता है।
🔴 उनकी निर्गुण भक्ति, कट्टर साधना और अस्तित्व–बोध ने उन्हें दक्षिण भारतीय संत–कवयित्रियों में स्थायी स्थान दिलाया।
💠 प्रमुख कृतियाँ:
वचन (कन्नड़ भक्ति कविता), शिवमल्लिकार्जुन पर रचनाएँ
💠 सम्मान:
वीरशैव संतों में आदरणीय स्थान
💠 विचारधारा:
निर्गुण भक्ति, आत्म–निष्ठा, सामाजिक बंधनों से मुक्ति
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन
📿 परिचय
🌺 अक्क महादेवी 12वीं सदी की कर्नाटक की महान कवयित्री और शैव आंदोलन से जुड़ी क्रांतिकारी संत थीं। उन्हें “कन्नड़ की मीरा” भी कहा जाता है। उनके आराध्य चन्नमल्लिकार्जुन (भगवान शिव) थे। प्रस्तुत दो वचन अंग्रेज़ी से हिंदी में केदारनाथ सिंह द्वारा अनूदित हैं।
🕉️ वचन 1: “हे भूख! मत मचल”
✨ मूल पाठ
हे भूख! मत मचल
प्यास, तड़प मत
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
हे मद! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर! मत चूक अवसर
आई हूं संदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का
📘 शब्दार्थ:
मचल: पाने की जिद
पाश: बंधन
मद: अहंकार
चराचर: जड़ और चेतन जगत
🔎 व्याख्या
🟣 भूख और प्यास पर नियंत्रण
🍽️ कवयित्री भूख से कहती हैं कि वह मचलकर भक्ति में बाधा न बने।
💧 सांसारिक तृष्णा (और अधिक पाने की इच्छा) से भी वे कहती हैं कि मनुष्य को व्याकुल न करे।
🟠 नींद, क्रोध और मोह
😴 आलस्य (नींद) मनुष्य को भक्ति से दूर करता है।
😡 क्रोध विवेक को नष्ट कर देता है।
💔 मोह के बंधन आत्मा और परमात्मा के मिलन में अवरोध हैं।
🟡 लोभ, अहंकार और ईर्ष्या
💰 लोभ मनुष्य को दूसरों का अहित करने पर मजबूर करता है।
👑 अहंकार और मद व्यक्ति को पागल बना देते हैं।
🔥 ईर्ष्या की आग व्यक्ति को जलाती रहती है।
🔴 चराचर को संदेश
🌍 कवयित्री जड़-चेतन सबको कहती हैं – शिव भक्ति का अवसर न गंवाएं।
📣 वे भगवान चन्नमल्लिकार्जुन का संदेश लाकर सभी को संयम का उपदेश देती हैं।
🌸 वचन 2: “हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर”
✨ मूल पाठ
हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊं अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊं और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि मैं झुकूं उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे
📘 शब्दार्थ:
जूही: सुगंधित सफेद फूल
झपटकर: छीनकर
🔎 व्याख्या
🟣 जूही के फूल जैसे ईश्वर
🌺 कवयित्री ईश्वर को जूही के फूल की तरह कोमल, श्वेत, निर्मल और परोपकारी बताती हैं।
🟠 भीख मांगने की कामना
🙏 वे चाहती हैं कि उन्हें भौतिक सुखों से मुक्त कर दिया जाए और संसारिक घर-गृहस्थी भूल जाएं।
🟡 अहंकार का विनाश
🤲 वे प्रार्थना करती हैं कि भीख मांगने पर भी कुछ न मिले।
🤚 यदि कोई कुछ देने आए तो वह गिर जाए और यदि वे झुकें तो कुत्ता उसे छीन ले।
💔 इससे उनका अहंकार पूर्णतः समाप्त हो जाए।
🔴 पूर्ण समर्पण का भाव
💖 कवयित्री चाहती हैं कि उनकी झोली भौतिक वस्तुओं से खाली हो जाए और वे संपूर्ण रूप से शिव के चरणों में समर्पित हो सकें।
🎯 वचनों का संदेश
🟢 इंद्रियों पर नियंत्रण: भूख, प्यास, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार और ईर्ष्या – सभी भक्ति में बाधक हैं।
🟠 अहंकार का त्याग: भौतिक सुख और अहंकार त्यागे बिना ईश्वर-प्राप्ति संभव नहीं।
🟡 पूर्ण समर्पण: कवयित्री सब कुछ त्यागकर ईश्वर को समर्पित होना चाहती हैं।
🔴 सांसारिकता का त्याग: घर-गृहस्थी और मोह-माया से मुक्त होकर ही परमात्मा की प्राप्ति होती है।
🎨 काव्य सौंदर्य
📜 भाषा शैली: सहज, प्रवाहमयी और संवादात्मक।
💫 अलंकार:
अनुप्रास: “मचा मत”, “मद मत मदहोश”
उपमा: जूही के फूल जैसी ईश्वर की उपमा
प्रतीक: जूही (शुद्धता), भीख (निर्धनता), कुत्ता (अपमान)
📚 शैली की विशेषताएँ:
वचन शैली: संक्षिप्त, गहन अर्थपूर्ण।
सीधा संवाद: ईश्वर और इंद्रियों से प्रत्यक्ष बातचीत।
🏁 निष्कर्ष
🌼 अक्क महादेवी के वचन भक्ति, त्याग और आत्म-नियंत्रण के अद्वितीय उदाहरण हैं। उन्होंने इंद्रियों पर नियंत्रण और अहंकार के विनाश को ईश्वर-प्राप्ति का मार्ग बताया। उनकी भक्ति में विद्रोह, साहस और पूर्ण समर्पण का संगम है। मीरा की तरह ही उन्होंने समाज की मर्यादाओं को तोड़कर अपने आराध्य के प्रति अनन्य प्रेम व्यक्त किया।
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
🟠 प्रश्न 1: लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक होती हैं – इसके संदर्भ में अपने तर्क दीजिए।
🔵 उत्तर: लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियाँ इसलिए बाधक होती हैं क्योंकि वे मनुष्य को भौतिक सुखों, इंद्रिय-आनंद और अस्थायी इच्छाओं में उलझा देती हैं। जब व्यक्ति इंद्रियों के वश में हो जाता है, तो उसका मन स्थिर नहीं रह पाता और वह अपने आध्यात्मिक या उच्चतर लक्ष्यों से भटक जाता है। इंद्रियों का नियंत्रण ही साधक को एकाग्रता, संयम और दृढ़ता प्रदान करता है। अक्क महादेवी के अनुसार ईश्वर प्राप्ति जैसी सर्वोच्च साधना तभी संभव है जब मनुष्य अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखे और उन्हें लक्ष्य की दिशा में केंद्रित करे।
🟠 प्रश्न 2: ओ चराचर! मत चूक अवसर – इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
🔵 उत्तर: इस पंक्ति में कवयित्री समस्त चराचर जगत — यानी जीव-जगत और प्रकृति — को संबोधित कर कहती हैं कि जीवन में प्राप्त अवसर को व्यर्थ न जाने दें। अवसर का अर्थ यहाँ आध्यात्मिक साधना और ईश्वर से मिलन का समय है। मनुष्य को चाहिए कि वह इस दुर्लभ अवसर को पहचानकर भक्ति, आत्मज्ञान और सत्य की ओर अग्रसर हो। यह पंक्ति समय के मूल्य और जीवन में सजग रहने की प्रेरणा देती है।
🟠 प्रश्न 3: ईश्वर के लिए किस दृष्टांत का प्रयोग किया गया है। ईश्वर और उसके साम्य का आधार बताइए।
🔵 उत्तर: कवयित्री ने ईश्वर के लिए “जूही” के पुष्प का दृष्टांत दिया है। जूही के फूल की तरह ईश्वर भी कोमल, सुगंधित, सुंदर और आकर्षक है। जैसे जूही अपनी मधुर सुगंध से वातावरण को भर देती है, वैसे ही ईश्वर भी सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त है और उसे अपनी उपस्थिति से आलोकित करता है। यह दृष्टांत ईश्वर की सर्वव्यापकता, सौंदर्य और पवित्रता को प्रकट करता है। कवयित्री के अनुसार, ईश्वर सबमें समान रूप से उपस्थित है और हर जीव में उसकी झलक पाई जा सकती है।
🟠 प्रश्न 4: अपना घर से क्या तात्पर्य है? इसे भूलने की बात क्यों कही गई है?
🔵 उत्तर: “अपना घर” से तात्पर्य सांसारिक बंधनों, मोह-माया और पारिवारिक दायित्वों से है। कवयित्री कहती हैं कि इन सांसारिक संबंधों को भूलना इसलिए आवश्यक है क्योंकि ये मनुष्य को आत्मज्ञान और ईश्वर प्राप्ति से दूर ले जाते हैं। जब तक मनुष्य घर-परिवार, धन और रिश्तों की सीमाओं में बंधा रहेगा, तब तक वह परम सत्य की ओर नहीं बढ़ सकेगा। इन बंधनों से मुक्त होकर ही वह ईश्वर में पूर्ण रूप से लीन हो सकता है।
🟠 प्रश्न 5: दूसरे वचन में ईश्वर से क्या कामना की गई है और क्यों?
🔵 उत्तर: दूसरे वचन में कवयित्री ने ईश्वर से यही कामना की है कि उन्हें सांसारिक मोह, इच्छाओं और इंद्रिय बंधनों से मुक्ति मिले ताकि वे पूरी तरह ईश्वर के प्रति समर्पित हो सकें। वे ईश्वर से ऐसी शक्ति चाहती हैं जो उन्हें भौतिक आकर्षणों से ऊपर उठाकर आध्यात्मिक मार्ग पर स्थिर रखे। इस कामना का उद्देश्य परमात्मा से मिलन, आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उत्कर्ष प्राप्त करना है।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🔵 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ)
🟢 प्रश्न 1
अक्क महादेवी किसकी अनन्य भक्त थीं?
🟣 1. भगवान विष्णु
🔵 2. चन्नमल्लिकार्जुन (शिव)
🟢 3. देवी दुर्गा
🟡 4. भगवान कृष्ण
✅ उत्तर: 2. चन्नमल्लिकार्जुन (शिव)
🟢 प्रश्न 2
प्रथम वचन में कवयित्री किस पर नियंत्रण का संदेश देती हैं?
🟣 1. धन पर
🔵 2. इंद्रियों पर
🟢 3. मन पर
🟡 4. समाज पर
✅ उत्तर: 2. इंद्रियों पर
🟢 प्रश्न 3
कवयित्री ने ईश्वर की तुलना किससे की है?
🟣 1. कमल के फूल से
🔵 2. गुलाब के फूल से
🟢 3. जूही के फूल से
🟡 4. चमेली के फूल से
✅ उत्तर: 3. जूही के फूल से
🟢 प्रश्न 4
दूसरे वचन में कवयित्री क्या नष्ट करना चाहती हैं?
🟣 1. शत्रुओं को
🔵 2. अहंकार को
🟢 3. गरीबी को
🟡 4. अज्ञान को
✅ उत्तर: 2. अहंकार को
🟢 प्रश्न 5
कवयित्री भीख माँगने पर भी क्या चाहती हैं?
🟣 1. भरपूर दान मिले
🔵 2. कुछ न मिले
🟢 3. सोना मिले
🟡 4. भोजन मिले
✅ उत्तर: 2. कुछ न मिले
🔵 लघु उत्तरीय प्रश्न
🟠 प्रश्न 6
कवयित्री ने भूख, प्यास और नींद से क्या आग्रह किया है?
💠 उत्तर: वे विनय करती हैं—भूख मत मचल, प्यास मत तड़पा, नींद मत सता—क्योंकि ये वृत्तियाँ शिव-भक्ति में बाधा डालती हैं।
🟠 प्रश्न 7
“मोह के पाश ढीला करने” से क्या आशय है?
💠 उत्तर: सांसारिक आसक्ति/मोह-माया के बंधन ढीले हों ताकि मन एकाग्र होकर ईश्वर-भक्ति में लगा रहे।
🟠 प्रश्न 8
कवयित्री ने चराचर से क्या कहा है?
💠 उत्तर: जड़-चेतन सबको पुकारकर कहती हैं—चन्नमल्लिकार्जुन की भक्ति अवसर खोओ मत; यही कल्याण का पथ है।
🟠 प्रश्न 9
कवयित्री ईश्वर से “घर भूलने” की प्रार्थना क्यों करती हैं?
💠 उत्तर: ‘घर’ सबसे बड़ा मोह है; उसे विस्मृत करने पर एकमात्र लक्ष्य ईश्वर-सायुज्य रह जाता है, भक्ति निष्कंटक होती है।
🟠 प्रश्न 10
कवयित्री कुत्ते द्वारा भीख छिन जाने की कामना क्यों करती हैं?
💠 उत्तर: चरम निर्मोह और अहं-विनाश के लिए—मान-अपमान, लाभ-हानि सब से परे होकर वे पूर्ण समर्पण चाहती हैं।
🔵 मध्यम उत्तरीय प्रश्न
🔴 प्रश्न 11
प्रथम वचन में किन-किन इंद्रियों/विकारों पर संयम का संदेश है?
🔷 उत्तर: शारीरिक वृत्तियाँ—भूख, प्यास, नींद; मानसिक विकार—क्रोध, लोभ, मोह, मद (अहं), ईर्ष्या। कवयित्री प्रेमिल विनय से कहती हैं—उथल-पुथल न करो, ललचाओ मत, पाश ढीला करो, मद न भरो, जलाओ मत—इन्हीं के संयम से साधना सिद्ध होती है।
🔴 प्रश्न 12
ईश्वर को “जूही के फूल” समान बताने का तात्पर्य क्या है?
🔷 उत्तर: जूही की श्वेत, कोमल, सात्त्विक, मृदु-सुगंधित प्रकृति ईश्वर की पवित्रता, करुणा और अनुग्रह का प्रतीक है—वह निस्वार्थ सबको आनंद देता है; ऐसा ही ईश्वर-स्वभाव भक्त का कल्याण करता है।
🔴 प्रश्न 13
दूसरे वचन में त्याग और समर्पण का स्वर कैसे प्रकट होता है?
🔷 उत्तर: वे मांगती हैं—भीख मिले ही न; मिले तो गिर पड़े; उठाने जाऊँ तो कुत्ता छीन ले—अर्थात् द्रव्य से विरक्ति, अहंकार का क्षय, और ईश्वर-इच्छा में पूर्ण आत्मनिवेदन—यह है उनका तपस्विनी आदर्श।
🔵 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
🟣 प्रश्न 14
अक्क महादेवी के वचनों का केंद्रीय भाव और भक्ति-विशेषताएँ (लगभग 110 शब्द)।
🔶 उत्तर: अक्क महादेवी के वचन इंद्रिय-निग्रह, अहं-क्षय और शिव में पूर्ण समर्पण के घोष हैं। प्रथम वचन में वे भूख-प्यास-नींद तथा क्रोध, लोभ, मोह, मद, ईर्ष्या जैसे विकारों से निवेदन करती हैं—मार्ग छोड़ो, ताकि साधना निष्कलुष रहे। दूसरे वचन में वे चरम वैराग्य साधना रखती हैं—भिक्षा भी न ठहरे, गृह-मोह विस्मृत हो; अपमान-सहन से अहं का लेश न रहे। ईश्वर की उपमा जूही के श्वेत, सुकुमार, सुगंध स्रोत से देकर वे दयामय, शीतल, सात्त्विक ईश्वर-स्वभाव का बोध कराती हैं। उनके वचन शैव-भक्ति की निर्भीक स्त्री-स्वर वाली परंपरा हैं—जहाँ मोक्ष हेतु निर्मोह और समर्पण सर्वोच्च साधन है।
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अतिरिक्त ज्ञान
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दृश्य सामग्री
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