Class 11, HINDI COMPULSORY

Class 11 : हिंदी अनिवार्य – Lesson 10 मेरो तो गिरधर गोपाल,मीरा

संक्षिप्त लेखक परिचय

मीराबाई – जीवन एवं लेखक परिचय

मीराबाई भक्तिकाल की प्रमुख और अत्यंत प्रसिद्ध कृष्णभक्त संत कवयित्री थीं। इनका जन्म राजस्थान के मेड़ता नगर (जिला नागौर) में लगभग 1498 ई. में राठौड़ राजघराने में हुआ था। उनके पिता रतनसिंह राठौड़ एक प्रतिष्ठित राजपूत सरदार थे। बचपन से ही मीरा श्रीकृष्ण की भक्ति में रमी रहती थीं और उन्होंने बाल्यकाल में ही श्रीकृष्ण को अपना पति मान लिया था। उनका विवाह मेवाड़ के महाराणा भोजराज से हुआ था, परंतु सांसारिक जीवन उन्हें रास न आया और वे वैराग्य की ओर मुड़ गईं। पति की मृत्यु के बाद वे पूरी तरह कृष्ण-भक्ति में लीन हो गईं और घर-परिवार त्यागकर संतों के संग रहने लगीं।

मीराबाई ने अपने भजनों में भक्ति, विरह, आत्मसमर्पण, प्रेम और ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा को व्यक्त किया है। उनकी भाषा सरल, मार्मिक और भावपूर्ण है। उनका काव्य ‘भावुकता की ऊँचाई’ पर पहुँचता है। वे आज भी भक्ति साहित्य की अमर विभूति मानी जाती हैं।

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन



🌺 पाठ परिचय
‘मीरा के पद’ कक्षा 11 की पुस्तक ‘आरोह भाग-1’ में संकलित हैं। इसमें दो प्रसिद्ध पद शामिल हैं:
🟣 “मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई” – कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और समर्पण
🔵 “पग घुंघरू बांध मीरा नाची” – लोक-लाज त्यागकर भक्ति में लीनता
मीराबाई भक्तिकाल की सगुण-कृष्ण भक्ति शाखा की महान कवयित्री हैं। उनका जन्म राजस्थान के चोकड़ी (कुड़की) गांव में 1503 में हुआ था। उनका विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज से हुआ, परंतु उन्होंने श्रीकृष्ण को ही अपना पति माना।

🕉️ पद 1: “मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई”
🔹 मूल पाठ
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई।
जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई॥
छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई?
संतन द्विग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी॥
असुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बेलि बोयी।
अब त बेलि फॅलि गायी, आणंद-फल होयी॥
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलायी।
दधि मथि घृत काढ़ि लियों, डारि दयी छोयी॥
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी।
दासि मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥

🔸 सरल व्याख्या
🟣 गिरधर गोपाल ही सब कुछ
💙 “मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई” – मीरा कहती हैं कि मेरे तो केवल गोवर्धन पर्वत धारण करने वाले श्रीकृष्ण ही सब कुछ हैं, दूसरा कोई नहीं।
👑 “जा के सिर मोर-मुकुट मेरो पति सोई” – जिनके सिर पर मोर का मुकुट है, वही मेरे पति हैं।

🟡 कुल की मर्यादा का त्याग
🚫 “छाँड़ि दयी कुल की कानि” – मैंने परिवार की मर्यादा और कुल की परवाह छोड़ दी है।
🤷 “कहा करिहैं कोई?” – अब कोई मेरा क्या बिगाड़ सकता है? मुझे किसी की परवाह नहीं है।
🙏 “संतन द्विग बैठि-बैठि लोक-लाज खोयी” – मैं संतों के पास बैठ-बैठकर ज्ञान प्राप्त करती हूं और इस प्रकार लोक-लाज भी खो दी है।

🟢 प्रेम की बेल
😭 “असुवन जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोयी” – मैंने आंसुओं के जल से सींच-सींचकर प्रेम की बेल बोई है।
🌺 “अब त बेलि फॅलि गायी आणंद-फल होयी” – अब यह बेल फैल गई है और इस पर आनंद रूपी फल लगने लगे हैं।

🔴 दूध-दही का प्रतीक
🥛 “दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलायी” – मैंने कृष्ण के प्रेम रूपी दूध को भक्ति रूपी मथानी से बड़े प्रेम से बिलोया है।
🧈 “दधि मथि घृत काढ़ि लियों डारि दयी छोयी” – दही से सार तत्व अर्थात् घी (भक्ति का सार) निकाल लिया और छाछ (व्यर्थ की सांसारिक चीजें) को छोड़ दिया।

🟠 भक्त और संसार
😊 “भगत देखि राजी हुयी” – मैं भगवान के भक्तों को देखकर बहुत प्रसन्न होती हूं।
😢 “जगत देखि रोयी” – लेकिन संसार के लोगों को मोह-माया में लिप्त देखकर रोती हूं।
🙇 “दासि मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही” – मैं गिरधर लाल की दासी हूं, हे प्रभु अब मेरा उद्धार करो।

💃 पद 2: “पग घुंघरू बांध मीरा नाची”
🔹 मूल पाठ
पग घुँघरू बांधि मीरा नाची,
मैं तो मेरे नारायण सूं, आपहि हो गई साची॥
लोग कहै, मीरा भइ बावरी; न्यात कहै कुल-नासी।
विस का प्याला राणा भेज्या, पीवत मीरा हाँसी॥
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिले अविनाशी॥

🔸 सरल व्याख्या
🟣 घुंघरू बांधकर नृत्य
🔔 “पग घुंघरू बांधि मीरा नाची” – मीरा अपने पैरों में घुंघरू बांधकर नाची।
💕 “मैं तो मेरे नारायण सूं आपहि हो गई साची” – मैं तो अपने नारायण (श्रीकृष्ण) के समक्ष अपने प्रेम और भक्ति का प्रदर्शन करके स्वयं ही सच्ची हो गई हूं।

🟡 लोक निंदा
🤪 “लोग कहै मीरा भइ बावरी” – लोग कहते हैं कि मीरा पागल हो गई है।
😡 “न्यात कहै कुल-नासी” – उसके संबंधियों (परिवार वालों) ने उसे कुल का नाश करने वाली कहा। उनके अनुसार मीरा के इस आचरण से कुल की मर्यादाएं नष्ट हुई हैं।

🔴 विष का प्याला
☠️ “विस का प्याला राणा भेज्या” – राणा (मेवाड़ के राजा) ने मीरा को विष का प्याला भेजा ताकि वह मर जाए।
😄 “पीवत मीरा हाँसी” – मीरा ने उसे हंसते हुए पी लिया। उसे कोई नुकसान नहीं हुआ क्योंकि उसकी भक्ति सच्ची थी और श्रीकृष्ण ने उसकी रक्षा की।

🟢 सहज प्राप्ति
🌟 “मीरा के प्रभु गिरधर नागर” – मीरा के प्रभु तो गिरधर नागर (श्रीकृष्ण) हैं।
🕉️ “सहज मिले अविनासी” – वे अनश्वर हैं और सहज रूप से अपने भक्तों को मिल जाते हैं। जो भी सच्चे मन से ईश्वर को प्रेम करता है, वे उसे बड़ी आसानी से मिल जाते हैं।

🎯 पदों का संदेश
🟢 अनन्य भक्ति
💙 मीरा ने श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व माना और एकमात्र पति स्वीकार किया।
🙏 उनकी भक्ति में पूर्ण समर्पण और अनन्यता थी।

🟠 लोक-लाज का त्याग
🚫 मीरा ने कुल की मर्यादा, परिवार की परवाह, लोक-लाज सब कुछ छोड़ दिया।
💃 वे मंदिरों में नाचती-गाती थीं और संतों के साथ बैठती थीं।

🟡 विरह और आनंद
😭 मीरा के पदों में विरह की वेदना है – आंसुओं से सींची गई प्रेम की बेल।
😊 लेकिन अंत में मिलन का आनंद भी है – आनंद रूपी फल लगना।

🔴 निडरता और साहस
☠️ विष का प्याला पीने में भी कोई डर नहीं, क्योंकि प्रभु की कृपा सर्वोपरि है।
💪 सच्ची भक्ति हर परीक्षा में खरी उतरती है।

🔵 सार और असार का विवेक
🧈 घी निकालकर छाछ फेंक देना – भक्ति को अपनाकर सांसारिक मोह-माया को त्याग देना।
🌍 भक्त देखकर खुश होना और संसार देखकर रोना – आध्यात्मिक विवेक का प्रतीक।

🎨 काव्य सौंदर्य
🔹 भाषा शैली
राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का सुंदर रूप।
सरल, भावपूर्ण और गेय पद।

🔹 अलंकार
अनुप्रास अलंकार: बैठि-बैठि, सींचि-सींचि में।
रूपक अलंकार: मोर-मुकुट, प्रेम-बेलि, आणंद-फल में।
पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार: बैठि-बैठि, सींचि-सींचि में।

🔹 छंद और गुण
माधुर्य गुण की प्रधानता।
गेयता और संगीतात्मकता।

🔹 प्रतीकात्मकता
प्रेम-बेल: कृष्ण-प्रेम का प्रतीक।
आंसुओं का जल: विरह की वेदना।
दूध-दही-घी: भक्ति का सार और संसार का असार।
विष का प्याला: परीक्षा और चुनौतियां।

🏁 निष्कर्ष
मीरा के पद भक्ति, प्रेम, समर्पण और साहस के अद्वितीय उदाहरण हैं। उन्होंने लोक-लाज, कुल-मर्यादा, राजसी वैभव सब कुछ त्यागकर श्रीकृष्ण की भक्ति को चुना। उनके पदों में स्त्री-स्वातंत्र्य, आध्यात्मिक साहस और भक्ति की गहराई दिखती है। मीरा का संदेश है कि सच्ची भक्ति में पूर्ण समर्पण, निडरता और लोक-भय से मुक्ति आवश्यक है।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न


🔷 🪔 प्रश्न 1: मीरा कृष्ण की उपासना किस रूप में करती हैं? वह रूप कैसा है?
🔹 उत्तर:
🔸 मीरा कृष्ण की उपासना पति के रूप में करती हैं।
🔸 वह उन्हें पर्वत धारण करने वाला, सिर पर मोर मुकुट धारण करने वाला मानती हैं।
🔸 कृष्ण का रूप मनोहर और आकर्षक है।
🔸 मीरा स्वयं को उनकी दासी मानती हैं और उन्हें अपना सर्वस्व समझती हैं।

🔷 🌱 प्रश्न 2: भाव व शिल्प सौंदर्य
🟢 (क) अंसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बेलि बोयी। अब त बेलि फैलि गई, आणंद-फल होयी॥
🔸 भाव सौंदर्य:
🌼 प्रेम प्राप्ति हेतु मीरा ने आँसुओं से प्रेमबेल सींची।
🌼 अब वह प्रेमबेल फलदायक हुई और मीरा को आनंद की प्राप्ति हुई।
🌼 यह भक्ति के पथ पर कष्ट सहकर मिले सुख को दर्शाता है।
🔸 शिल्प सौंदर्य:
✔️ सांगरूपक अलंकार – प्रेमबेल, आनंद फल
✔️ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार – ‘सींचि-सींचि’
✔️ अनुप्रास अलंकार – ‘बेलि बोयी’
✔️ भाषा – ब्रज और राजस्थानी मिश्रित, सरल, गीतात्मक

🟢 (ख) दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी। दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी॥
🔸 भाव सौंदर्य:
🌼 जैसे दही से मथकर घी प्राप्त होता है, वैसे ही मीरा ने जीवन को मथा और उसमें से कृष्ण प्रेम रूपी सार निकाला।
🌼 संसार उन्हें छाछ जैसा असार प्रतीत होता है।
🔸 शिल्प सौंदर्य:
✔️ अन्योक्ति अलंकार – दही = जीवन, घृत = भक्ति
✔️ प्रतीकात्मक भाषा – घृत (सार), छोयी (असार संसार)
✔️ गंभीर प्रतीकात्मकता व गीतात्मकता

🔷 😔 प्रश्न 3: लोग मीरा को बावरी क्यों कहते हैं?
🔹 उत्तर:
🔸 मीरा कृष्ण भक्ति में पूर्ण रूप से मग्न थीं।
🔸 उन्होंने राजमहल, परिवार, लोकलाज सभी त्याग दिए।
🔸 वे गली-गली भजन गातीं, नृत्य करतीं, समाज की मर्यादाओं की परवाह नहीं करतीं।
🔸 इसलिए लोग उन्हें “बावरी” कहते थे।

🔷 ☠️ प्रश्न 4: “विस का प्याला राणा भेज्या, पीवत मीरां हाँसी” – इसमें क्या व्यंग्य छिपा है?
🔹 उत्तर:
🔸 राणा ने मीरा को मारने के लिए जहर का प्याला भेजा।
🔸 मीरा ने उसे हँसते हुए पी लिया।
🔸 यह दर्शाता है कि प्रेम की शक्ति विष को भी अमृत बना देती है।
🔸 व्यंग्य इस बात पर है कि जिसे मारने भेजा गया, वह हँस रही है और निर्भीक है।

🔷 😭 प्रश्न 5: मीरा जगत को देखकर रोती क्यों हैं?
🔹 उत्तर:
🔸 संसार मोह-माया में डूबा है।
🔸 लोग सांसारिक सुख-दुख को ही सबकुछ मानते हैं।
🔸 मीरा जानती हैं कि यह सब नश्वर है।
🔸 इसलिए उन्हें संसार की माया में उलझी आत्माएँ देखकर दुःख होता है।

🌟 📍 पद के आसपास 🌟
🔷 🌀 प्रश्न 1: प्रेम प्राप्ति के लिए मीरा को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा?
🔸 परिवार का विरोध 🏰
🔸 लोकनिंदा और व्यंग्य 👥
🔸 राजसी सुख त्यागने की पीड़ा 💎
🔸 मंदिरों में रहन-सहन 🛕
🔸 भूख-प्यास और कष्ट 🍂
🔸 मृत्यु के प्रयास सहना ⚔️

🔷 👒 प्रश्न 2: लोक-लाज खोने का अभिप्राय क्या है?
🔹 उत्तर:
🔸 मीरा ने पर्दा प्रथा और कुल मर्यादा को तोड़ा।
🔸 वे समाज की परंपराओं से ऊपर उठकर खुले में कृष्ण भजन करती थीं।
🔸 इसे ही “लोकलाज खोना” कहा गया।

🔷 🕊️ प्रश्न 3: मीरा ने ‘सहज मिले अविनासी’ क्यों कहा है?
🔹 उत्तर:
🔸 मीरा मानती हैं कि प्रभु अविनाशी हैं।
🔸 वे सहज भक्ति और पवित्र मन से प्राप्त हो सकते हैं।
🔸 किसी आडंबर या कर्मकांड की आवश्यकता नहीं।

🔷 🧭 प्रश्न 4: “लोग कहै, मीरा भई बावरी, न्यात कहै कुल-नासी” — क्यों?
🔹 उत्तर:
🔸 समाज ने मीरा को पागल समझा क्योंकि वे सांसारिक सुख छोड़कर गली-गली भटकती थीं।
🔸 कुटुंब (न्यात) ने उन्हें वंश नाशिनी कहा क्योंकि उन्होंने सदियों पुरानी परंपराओं और कुल मर्यादा को नहीं निभाया।

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न


🔵 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ)
🟢 प्रश्न 1
मीरा ने किसे अपना पति माना है?
🟣 1. राणा को
🔵 2. गिरधर गोपाल (श्री कृष्ण) को
🟢 3. किसी साधु को
🟡 4. किसी को नहीं
✅ उत्तर: 2. गिरधर गोपाल (श्री कृष्ण) को

🟢 प्रश्न 2
मीरा ने प्रेम की बेल किससे सींची?
🟣 1. गंगा जल से
🔵 2. आँसुओं के जल से
🟢 3. वर्षा के जल से
🟡 4. कुएं के जल से
✅ उत्तर: 2. आँसुओं के जल से

🟢 प्रश्न 3
राणा ने मीरा को क्या भेजा था?
🟣 1. फूलों की माला
🔵 2. विष का प्याला
🟢 3. आभूषण
🟡 4. भोजन
✅ उत्तर: 2. विष का प्याला

🟢 प्रश्न 4
लोग मीरा को क्या कहते थे?
🟣 1. बुद्धिमान
🔵 2. बावरी (पागल)
🟢 3. सुशील
🟡 4. साधु
✅ उत्तर: 2. बावरी (पागल)

🟢 प्रश्न 5
मीरा ने दूध की मथनी से क्या निकाला?
🟣 1. केवल छाछ
🔵 2. घृत (घी) और सार तत्व
🟢 3. केवल दही
🟡 4. मक्खन
✅ उत्तर: 2. घृत (घी) और सार तत्व

🔵 लघु उत्तरीय प्रश्न
🟠 प्रश्न 6
मीरा ने कुल की मर्यादा क्यों छोड़ दी?
💠 उत्तर: मीरा ने श्री कृष्ण के प्रेम और भक्ति में पूर्ण समर्पण के लिए कुल की मर्यादा त्याग दी। उनके लिए कृष्ण ही सर्वस्व थे।

🟠 प्रश्न 7
मीरा संतों की संगति में क्यों बैठती थीं?
💠 उत्तर: मीरा संतों की संगति में बैठकर कृष्ण भक्ति का ज्ञान प्राप्त करती थीं और आध्यात्मिक आनंद का अनुभव करती थीं। इससे उनकी भक्ति गहरी होती थी।

🟠 प्रश्न 8
मीरा के पैरों में घुंघरू बांधकर नाचने का क्या अर्थ है?
💠 उत्तर: घुंघरू बांधकर नाचना मीरा की कृष्ण के प्रति निर्मल भक्ति और आत्मसमर्पण का प्रतीक है। वे लोक-लाज छोड़कर खुलकर भक्ति प्रदर्शित करती थीं।

🟠 प्रश्न 9
प्रेम की बेल में आनंद का फल कब लगा?
💠 उत्तर: जब मीरा ने आँसुओं से सींचकर कृष्ण प्रेम रूपी बेल को पूर्ण समर्पण से विकसित किया तब उसमें आनंद का फल लगा अर्थात भक्ति में परमानंद मिला।

🟠 प्रश्न 10
मीरा जगत को देखकर क्यों रोती हैं?
💠 उत्तर: मीरा जगत के लोगों को माया-मोह में फंसा देखकर रोती हैं क्योंकि वे ईश्वर भक्ति से दूर हैं और व्यर्थ के कार्यों में लगे हैं।

🔵 मध्यम उत्तरीय प्रश्न
🔴 प्रश्न 11
मीरा के पदों में कृष्ण के प्रति किस प्रकार की भक्ति भावना व्यक्त हुई है?
🔷 उत्तर: मीरा के पदों में कृष्ण के प्रति माधुर्य भाव की भक्ति व्यक्त हुई है। मीरा कृष्ण को अपना पति मानती हैं और उनके प्रति पूर्ण समर्पण भाव रखती हैं। वे कृष्ण को अपना सर्वस्व मानती हैं और स्वयं को उनकी दासी बताती हैं। मीरा ने आँसुओं से कृष्ण प्रेम की बेल सींची है और अब उसमें आनंद के फल लग गए हैं। उन्होंने संतों की संगति को महत्व दिया और लोक-लाज को त्याग दिया। मीरा भक्त को देखकर प्रसन्न होती हैं और संसार के मोह में फंसे लोगों को देखकर दुखी होती हैं।

🔴 प्रश्न 12
दूध की मथनी के प्रतीक से मीरा क्या समझाना चाहती हैं?
🔷 उत्तर: दूध की मथनी के प्रतीक से मीरा यह समझाना चाहती हैं कि जिस प्रकार दही को मथकर घी निकाल लिया जाता है और छाछ को अलग कर दिया जाता है, उसी प्रकार मीरा ने जीवन का मंथन करके सारतत्व अर्थात कृष्ण भक्ति को अपना लिया है और सारहीन अंश यानी सांसारिक मोह-माया को त्याग दिया है। मीरा ने कृष्ण के प्रेम रूपी दूध को भक्ति की मथनी से बिलोया और उसमें से शुद्ध प्रेम को प्राप्त किया। यह प्रतीक आध्यात्मिक साधना का संकेत देता है।

🔴 प्रश्न 13
मीरा को समाज ने किन कष्टों का सामना करना पड़ा?
🔷 उत्तर: मीरा को समाज में अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। लोग उन्हें बावरी और पागल कहते थे। उनके कुल के लोग उन्हें कुलनाशिनी बताते थे और कहते थे कि मीरा ने कुल की मर्यादा नष्ट कर दी है। राणा ने उन्हें मारने के लिए विष का प्याला तक भेज दिया था। समाज ने मीरा की कृष्ण भक्ति को स्वीकार नहीं किया और उन्हें घुंघरू बांधकर नाचने के लिए अपमानित किया। लेकिन मीरा ने इन सब कष्टों को सहन किया और अपनी भक्ति में दृढ़ रहीं।

🔵 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
🟣 प्रश्न 14
मीरा के पदों का केंद्रीय भाव और उनकी समाज के प्रति विद्रोही चेतना को स्पष्ट कीजिए।
🔶 उत्तर: मीराबाई भक्तिकाल की सगुण कृष्णभक्ति शाखा की प्रमुख कवयित्री हैं। उनके पदों का केंद्रीय भाव कृष्ण के प्रति माधुर्य भाव की भक्ति और पूर्ण आत्मसमर्पण है। पहले पद में मीरा कहती हैं कि गिरधर गोपाल अर्थात श्री कृष्ण ही उनके सब कुछ हैं। जिनके सिर पर मोर मुकुट है वही उनके पति हैं। उन्होंने कुल की मर्यादा छोड़ दी है और अब किसी की परवाह नहीं करतीं। मीरा संतों के पास बैठकर ज्ञान प्राप्त करती हैं और लोक-लाज खो दी है। उन्होंने आँसुओं के जल से प्रेम की बेल बोई है जो अब फैलकर आनंद के फल देने लगी है। मीरा ने दूध की मथनी से घी निकालने का प्रतीक देकर यह बताया कि उन्होंने कृष्ण भक्ति रूपी सार को अपनाया और सांसारिक मोह को त्याग दिया। वे भक्तों को देखकर प्रसन्न होती हैं और माया में फंसे संसार को देखकर रोती हैं। दूसरे पद में मीरा पैरों में घुंघरू बांधकर कृष्ण के समक्ष नाचती हैं। लोग उन्हें बावरी कहते हैं और कुल के लोग उन्हें कुलनाशिनी बताते हैं। राणा ने विष का प्याला भेजा जिसे मीरा हंसते हुए पी गईं। उनके प्रभु गिरधर नागर अविनाशी हैं और भक्तों को सहज रूप से मिल जाते हैं। मीरा की समाज के प्रति विद्रोही चेतना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उस युग में स्त्रियों पर कठोर सामाजिक बंधन थे। राजघराने की विवाहिता स्त्री का सार्वजनिक रूप से घुंघरू बांधकर नाचना और संतों के साथ बैठना अकल्पनीय था। लेकिन मीरा ने इन सभी रूढ़ियों को तोड़ा। उन्होंने पर्दा प्रथा का पालन नहीं किया और अपनी भक्ति को सार्वजनिक किया। मीरा स्त्री मुक्ति की प्रतीक हैं। उन्होंने यह सिद्ध किया कि भक्ति में जाति, कुल और लोक-लाज की कोई बाधा नहीं होती। मीरा के पद आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि वे स्त्री स्वतंत्रता, आत्मसम्मान और आध्यात्मिक मुक्ति का संदेश देते हैं।

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अतिरिक्त ज्ञान

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दृश्य सामग्री

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