Class 11 : हिंदी साहित्य – Lesson 4. गूँगे
संक्षिप्त लेखक परिचय
📘 लेखक परिचय — रांगेय राघव
🟢 रांगेय राघव का जन्म 17 जनवरी 1923 को आगरा (उत्तर प्रदेश) में हुआ था।
🟡 उनका मूल नाम तिरूमल्लै नंबकम् वीरराघव आचार्य था।
🔵 मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म लेकर उन्होंने सेंट जॉन्स कॉलेज, आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर तथा 1949 में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की।
🔴 प्रारम्भ में उन्हें चित्रकला में गहरी रुचि थी, परंतु 1938 में उन्होंने कविता लेखन प्रारम्भ किया।
🟢 सन 1946 में प्रकाशित उपन्यास ‘घरौंदा’ ने उन्हें प्रगतिशील कथाकार के रूप में स्थापित किया।
🟡 उनकी साहित्यिक यात्रा में उपन्यास, कहानी, नाटक, कविता, आलोचना एवं रिपोर्ताज—कुल मिलाकर लगभग 150 से अधिक कृतियाँ शामिल हैं।
🔵 प्रमुख कृतियों में ‘घरौंदा’ (1946), ‘विषादमठ’, ‘सीधा-सादा रास्ता’, ‘कब तक पुकारूँ’, ‘भारती का सपूत’ एवं ‘धूनी का धुआँ’ प्रमुख हैं।
🔴 इन कृतियों में ऐतिहासिक और सामाजिक यथार्थ का गहन चित्रण मिलता है।
🟢 उनकी शैली में मानवीय संवेदनशीलता, युक्तिसंगत प्रगतिवाद और मुक्त विवेचनात्मक दृष्टिकोण झलकता है।
🟡 उन्हें हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार (1947), डालमिया पुरस्कार (1954), उत्तर प्रदेश शासन पुरस्कार (1957, 1959) और राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार (1961) से सम्मानित किया गया।
🔵 रांगेय राघव का निधन 12 सितंबर 1962 को मुंबई में हुआ, पर उनकी रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्य में प्रेरणा का स्रोत हैं।
✨ मुख्य बिंदु संक्षेप में:
🔹 प्रमुख कृतियाँ: घरौंदा (1946), विषादमठ (1950), सीधा-सादा रास्ता, कब तक पुकारूँ, भारती का सपूत
🔹 सम्मान: हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार (1947), डालमिया पुरस्कार (1954), राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार (1961)
🔹 विचारधारा: प्रगतिशील मानवतावाद एवं संशोधित मार्क्सवाद
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन
🌟 मुख्य निष्कर्ष
“गूँगे” कहानी में मानव संवेदना की असमर्थता और सामाजिक मूकता का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत है। रांगेय राघव ने एक गूँगे-बहरे किशोर के माध्यम से यह दिखाया है कि जिस समाज में अत्याचार को देखनेवाले भी मूक रह जाएँ, वहाँ वास्तविक परिवर्तन असंभव है।
💡 विषयवस्तु
कहानी का प्रमुख पात्र एक गूँगा-बहरा बालक है जो इशारों के माध्यम से अपनी व्यथा प्रकट करता है। बचपन में पिता के मरने पर माँ ने उसे छोड़ दिया और जिसने भी उसे पाला, वे मार-पीट कर उसकी रक्षा के बदले शोषण करते थे। वह परिवार-परिहार खोकर मोहल्ले की महिलाएँ — विशेषकर चमेली — के संरक्षण में आता है। चौबीसों घंटे रात के अँधेरे के बीच टहलते हुए वह इशारों से बताता है कि वह भीख नहीं माँगता, मेहनत से जीवन व्यतीत करना चाहता है। अंततः चमेली उसे चार रुपए वेतन और दो समय का भोजन देकर घर पर नौकर रख लेती है, पर वहाँ भी वह अपमान और मार-पीट से नहीं बच पाता।
🌙 प्रसंग
कहानी की आरंभिक पंक्तियाँ एक सुनसान गली की हैं जहाँ अँधेरे में इशारों का खेल चलता है। चमेली अपनी बेटी के साथ खाना बना रही होती है कि गूँगा किशोर दस्तक देकर सहायता माँगता है। उसके इशारों की भाषा बोलचाल से भिन्न, पीड़ा से ओतप्रोत है। इसी प्रकार दिन भर वह आता-जाता, मेहनत करता और घर लौटता है; किन्तु परिवार-परिवार छुटकारा न मिल सका। वसंता के प्रहार पर उसकी चुप्पी टूटती है, आँसुओं में परिवर्तित हो जाती है। चमेली समझ जाती है कि उसे न केवल अपार साहस चाहिए, बल्कि सच्ची मानवीय संवेदना भी।
🌿 भावार्थ
– गूँगा-बहरा बालक शब्दों में निष्क्रिय, पर भावों में तीव्र स्वरूप रखता है।
– इशारों की भाषा वह अभिव्यक्ति बनी जहाँ शब्द असमर्थ थे।
– उसका “हाथ फैलाकर नहीं माँगा” कहना आत्मसम्मान की अनूठी पुकार बन जाता है।
– “पेट की आग” और “चूल्हे की आग” का लक्षणात्मक चित्रण भूख और उपेक्षा के बीच संघर्ष बताता है।
🔦 प्रतीक
– गूँगे का मुख बंद रहना समाज की मूकता की प्रतिमूर्ति है।
– इशारों का उपयोग उस शक्ति का संकेत है जो मौन से भी अधिक प्रभावशाली होती है।
– अँधेरा और लाठी दोनों ही बलप्रदर्शन और असहायता का प्रतीक हैं।
– चार रुपए वेतन मानव-मूल्य का प्रतीकात्मक रूप — स्वयं की मेहनत का छोटा सा रक़मिक न्याय है।
🪶 शैली
लघुकथा की संक्षिप्तता में गभीर व्यंग्य निहित है। संवादविहीन कथा में केवल वर्णन और संकेतों का प्रयोग ध्यानाकर्षित करता है। प्रवाहपूर्ण सरल भाषा के बीच अप्रत्यक्ष व्यंग्य सामाजिक विडम्बना को तीव्रता से उद्घाटित करता है। लेखक ने छोटे-छोटे अनुच्छेदों में घटनाक्रम को क्रमवार रचा है, जिससे पाठक स्वयं गली की धूल और अँधेरे का अनुभव कर लेता है।
🧭 विचार
– सामाजिक मूकता का प्रत्यास्थापन: समाज हैरान होते हुए भी कार्यवाही नहीं करता, जैसे “ये गुंंगे अनेक-अनेक हो संसार में”।
– आत्मसम्मान विरुद्ध सहनशीलता: बालक आत्मनिर्भर बनकर जीने के अपने संकल्प को इशारों में व्यक्त करता है, पर अधिकार का बल उसे खींच कर नीचे खींचता है।
– संवेदना और शोषण का द्वन्द्व: चमेली की दया शोषण के प्रति समाज की जुड़वां प्रवृत्ति को दर्शाती है — जब कोई आक्रोशित होता है, तो दया भी जाग उठती है।
🗣️ भाषा
शुद्ध हिन्दी में रची गई भाषा बोलचाल की प्रतीत होती है, किन्तु भावों की गहराई अलंकार और मुहावरों से सम्पन्न होती है। जैसे — “कर्कश काँय-काँय” से बच्चा की कराह उजागर होती है, “पेट की आग” से भूख की तीव्रता। तद्भव, तत्सम और क्षेत्रीय शब्दों का मिश्रण भाषा में सांस्कृतिक आयाम जोड़ता है।
🏙️ सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ
कहानी उस ग्रामीण-नगरीय सीमा पर घटित होती है जहाँ अँधेरे की अव्यवस्था और गरीबी स्पष्ट दिखती है। बिछड़े परिवार, अनाथों के प्रति संवेदनहीनता, आर्थिक विषमता और बाल श्रम समाज की वे कमी हैं जिन्हें राघव ने उजागर किया है। “जिसने उसे पाला, वे मारते बहुत थे” — इस पंक्ति से पारिवारिक संरचना का टूटना और सामाजिक संरचना की विकृतियाँ प्रकट होती हैं।
🔎 गहन विश्लेषण
– मूल्यनिर्धारण की राजनीतिकता: चार रुपए वेतन मात्र आर्थिक मूल्य नहीं, बल्कि बालक के आत्मसम्मान का प्रतीक बन जाते हैं।
– मौन का संवाद: किसी शब्द की आवश्यकता नहीं, जब भावों के इशारे अधिक मुखर हों। बालक का इशारा — “हाथ फैलाकर नहीं माँगा” — स्वावलंबी संघर्ष का उद्घोष बना रहता है।
– चरित्र विकास: गूँगे का चरित्र द्वैतपूर्ण है — एक ओर मौन, दूसरी ओर कराह; एक ओर सहनशील, दूसरी ओर विद्रोही। यह द्वंद्व कथा को गहनता प्रदान करता है।
– पाठक-प्रतिभूति: पाठक स्वयं अँधेरे में इमरती हुई उन इशारों का अर्थ समझता चला जाता है, जहाँ शब्द असहाय होते हैं।
📖 उपसंहार
“गूँगे” में रांगेय राघव ने उन अनकहे शब्दों को जीवन्त कर दिया जो समाज की नीरवता से गूँजते हैं। गूँगा-बहरा किशोर जीवन के अँधेरे को प्रकाश के प्रति अपनी विरल पुकार बनाकर रखता है। यह कथा हमें यह सिखाती है कि मौन से भी अधिक शक्तिशाली आवाज़ वही है जो इशारों में उभर आए जब शब्द अक्षम हों। सामाजिक सशक्तिकरण तभी संभव है जब मूकता टूटे और संवेदना बोल उठे।
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
🟠 प्रश्न 1: गूंगे ने अपने स्वाभिमानी होने का परिचय किस प्रकार दिया?
🔵 उत्तर: गूंगे ने अपने स्वाभिमान का परिचय किसी भी प्रकार की भीख या दया स्वीकार न करके दिया। उसने अपने जीवन में परिस्थितियों के बावजूद अपने आत्मसम्मान और अधिकारों को सर्वोपरि रखा और किसी के सामने झुकने से इनकार कर दिया। यह उसके दृढ़ चरित्र और आत्मसम्मान की भावना को स्पष्ट करता है।
🟠 प्रश्न 2: ‘मानव की करुणा की भावना उसके भीतर गूंगे की प्रतिच्छाया है।’ कहानी के इस कथन को वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
🔵 उत्तर: यह कथन दर्शाता है कि करुणा मानव का मूल गुण है, और गूंगे की स्थिति समाज के संवेदनहीन रवैये का प्रतिबिंब है। वर्तमान समाज में भी कमजोरों और वंचितों के प्रति संवेदना की कमी देखी जाती है। यह कथन हमें याद दिलाता है कि हर व्यक्ति में करुणा और सहानुभूति होनी चाहिए ताकि समाज अधिक मानवीय बन सके।
🟠 प्रश्न 3: ‘नाली का कीड़ा! एक ठोंक उठाकर सिर पर रख दी। फिर भी मन नहीं भरा।’ – चमेली का यह कथन किस सन्दर्भ में कहा गया है और इसके माध्यम से उसके किन मनोभावों का पता चलता है?
🔵 उत्तर: यह कथन चमेली ने गूंगे के प्रति अपनी घृणा और तिरस्कार की भावना व्यक्त करते हुए कहा। वह गूंगे के प्रति अपने पूर्वाग्रह और समाज द्वारा बनाए गए उच्च-नीच के भेद को दर्शाती है। इसके माध्यम से उसके मन में व्याप्त घृणा, अहंकार और संवेदनहीनता के भाव स्पष्ट होते हैं।
🟠 प्रश्न 4: यदि बसंता गूंगा होता तो आपकी दृष्टि में चमेली का व्यवहार उसके प्रति कैसा होता?
🔵 उत्तर: यदि बसंता गूंगा होता तो संभवतः चमेली का व्यवहार उसके प्रति इतना कठोर और तिरस्कारपूर्ण नहीं होता। सामाजिक स्थिति और व्यक्तिगत संबंधों के कारण वह उसके प्रति सहानुभूति और अपनापन दिखाती। यह सामाजिक भेदभाव और पक्षपात को उजागर करता है।
🟠 प्रश्न 5: ‘उसकी आँखों में पानी भरा था। जैसे उनमें एक शिकायत थी, पक्षपात के प्रति तिरस्कार था।’ क्यों?
🔵 उत्तर: गूंगे की आँखों में शिकायत समाज की अन्यायपूर्ण व्यवस्था के प्रति थी। उसने अपने जीवन में जो भेदभाव, तिरस्कार और असमानता झेली थी, उसी के कारण उसकी आँखों में शिकायत और तिरस्कार के भाव उत्पन्न हुए।
🟠 प्रश्न 6: ‘गूंगा दया या सहानुभूति नहीं, अधिकार चाहता था।’ – सिद्ध कीजिए।
🔵 उत्तर: गूंगा केवल सहानुभूति का पात्र नहीं बनना चाहता था। वह समाज से अपना उचित अधिकार चाहता था, जिससे उसे सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर मिले। वह चाहता था कि उसे समानता, न्याय और आत्मसम्मान का अधिकार दिया जाए।
🟠 प्रश्न 7: ‘गूंगा’ कहानी पढ़कर आपके मन में कौन से भाव उत्पन्न होते हैं और क्यों?
🔵 उत्तर: इस कहानी को पढ़कर मन में संवेदना, करुणा और समाज की असमानताओं के प्रति गुस्से के भाव उत्पन्न होते हैं। यह कहानी समाज में व्याप्त वर्गभेद और उपेक्षा को उजागर करती है और हमें संवेदनशील तथा न्यायप्रिय बनने की प्रेरणा देती है।
🟠 प्रश्न 8: कहानी का शीर्षक ‘गूंगा’ है, जबकि कहानी में एक ही गूंगा पात्र है। इसके माध्यम से लेखक ने समाज की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है?
🔵 उत्तर: शीर्षक प्रतीकात्मक है। यह केवल गूंगे व्यक्ति के मौन को नहीं दर्शाता, बल्कि उस समाज को भी इंगित करता है जो अन्याय और शोषण के विरुद्ध मौन है। लेखक ने समाज की संवेदनहीनता और मौन स्वीकृति को उजागर किया है।
🟠 प्रश्न 9: यदि ‘रियल इंडिया’ जैसा कोई कार्यक्रम होता तो क्या गूंगे को दया या सहानुभूति का पात्र बनना पड़ता?
🔵 उत्तर: यदि ‘रियल इंडिया’ जैसा कोई कार्यक्रम होता, तो संभवतः गूंगे को सहानुभूति के पात्र के रूप में प्रस्तुत किया जाता। समाज अक्सर ऐसे लोगों को दया के योग्य मानता है, जबकि उन्हें समानता और अधिकार की आवश्यकता होती है।
🟠 प्रश्न 10: निम्नलिखित गद्यांशों को संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए –
(क) करुणा ने सबको ………. जी जान से लड़ रहा हो।
🔵 उत्तर: यह अंश समाज में व्याप्त करुणा की भावना को दर्शाता है। गूंगा अपने अस्तित्व और अधिकारों के लिए पूरी शक्ति से संघर्ष कर रहा है।
(ख) वह लौटकर झूलों पर ………. आदमी गुलाम हो जाता है।
🔵 उत्तर: यह पंक्ति दर्शाती है कि परिस्थितियाँ कैसे व्यक्ति को गुलामी के बंधनों में बाँध देती हैं।
(ग) और फिर कौन ………. ज़िंदगी बिताए।
🔵 उत्तर: यह अंश व्यक्ति के जीवन के संघर्ष और उसकी विवशता को प्रकट करता है।
(घ) और ये गूंगे ………. परिस्थितियाँ हैं?
🔵 उत्तर: यह पंक्ति समाज में असमानता और अन्याय के कारण उत्पन्न परिस्थितियों को उजागर करती है।
🟠 प्रश्न 11: निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) कैसी मान्यता है कि वह अपने हृदय को अलग देना चाहता है, किंतु जल नहीं पाता।
🔵 उत्तर: यह पंक्ति दर्शाती है कि समाज में मान्यता और सहानुभूति तो दी जाती है, पर वास्तविक सहायता नहीं दी जाती।
(ख) जैसे मंदिर की मूर्ति कोई उस पर नहीं देती, वैसे ही उसने भी कुछ नहीं कहा।
🔵 उत्तर: यह पंक्ति गूंगे के मौन और उसकी विवशता का प्रतीक है। उसने समाज से कुछ नहीं माँगा क्योंकि उसे पता था कि उसे कुछ नहीं मिलेगा।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🌟 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
🟢 प्रश्न 1:
गूँगा किस कारण से बोल नहीं सकता था?
🔵 1️⃣ जन्म से वज्र-बहरा होने के कारण
🟣 2️⃣ गले की बीमारी के कारण
🟢 3️⃣ मानसिक रोग के कारण
🟡 4️⃣ दुर्घटना के कारण
✅ उत्तर: 1️⃣ जन्म से वज्र-बहरा होने के कारण
🟢 प्रश्न 2:
गूँगे की काकल (जीभ) किसने काटी थी?
🔵 1️⃣ डॉक्टर ने
🟣 2️⃣ किसी ने गला साफ करने की कोशिश में
🟢 3️⃣ दुश्मन ने
🟡 4️⃣ दुर्घटना में
✅ उत्तर: 2️⃣ किसी ने गला साफ करने की कोशिश में
🟢 प्रश्न 3:
चमेली ने गूँगे को कितने रुपए वेतन पर नौकर रखा?
🔵 1️⃣ तीन रुपए
🟣 2️⃣ चार रुपए
🟢 3️⃣ पाँच रुपए
🟡 4️⃣ छह रुपए
✅ उत्तर: 2️⃣ चार रुपए
🟢 प्रश्न 4:
बसंता कौन था?
🔵 1️⃣ गूँगे का मित्र
🟣 2️⃣ चमेली का पुत्र
🟢 3️⃣ पड़ोसी का लड़का
🟡 4️⃣ चमेली का पति
✅ उत्तर: 2️⃣ चमेली का पुत्र
🟢 प्रश्न 5:
गूँगे ने अपनी स्वाभिमानी प्रवृत्ति कैसे दिखाई?
🔵 1️⃣ बोलकर
🟣 2️⃣ लिखकर
🟢 3️⃣ इशारों से
🟡 4️⃣ रोकर
✅ उत्तर: 3️⃣ इशारों से
✏️ लघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)
🟠 प्रश्न 6:
गूँगे के माता-पिता का क्या हुआ था?
🔵 उत्तर: गूँगे का पिता मर गया था और माँ (जो घूँघट काढ़ती थी) उसे छोड़कर चली गई थी।
🟠 प्रश्न 7:
गूँगे की आवाज कैसी थी?
🔵 उत्तर: उसकी आवाज कर्कश काँय-काँय की तरह थी, जैसे घायल पशु कराह रहा हो या कुत्ता चिल्ला रहा हो।
🟠 प्रश्न 8:
चमेली ने गूँगे को क्यों रख लिया था?
🔵 उत्तर: चमेली के हृदय में अनाथ बच्चों के प्रति दया थी और उसने गूँगे की स्थिति देखकर उसे चार रुपए वेतन पर नौकर रख लिया।
🟠 प्रश्न 9:
गूँगे के बुआ-फूफा उसके साथ कैसा व्यवहार करते थे?
🔵 उत्तर: वे उसे बहुत मारते थे और चाहते थे कि वह रूखा-सूखा खाकर बाजार में पल्लेदारी करके पैसा कमाए और उन्हें दे।
🟠 प्रश्न 10:
बसंता ने गूँगे को क्यों मारा?
🔵 उत्तर: बसंता ने मज़ाक में या बच्चों की शरारत के कारण गूँगे को चपत मारी थी।
📜 मध्यम उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)
🔴 प्रश्न 11:
गूँगे ने अपनी स्वाभिमानी प्रवृत्ति कैसे दिखाई?
🔵 उत्तर: गूँगे ने इशारों के द्वारा बताया कि वह मेहनत करके खाता है। उसने अपनी मजबूत बाजुओं को दिखाकर संकेत किया कि उसने हलवाई के यहाँ लड्डू बनाए, कड़ाही माँजी, कपड़े धोए और नौकरी की है। उसने अपने सीने पर हाथ रखकर बताया कि उसने कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया। पेट पर हाथ रखकर यह संकेत दिया कि यह सब उसने अपनी भूख मिटाने के लिए किया है, न कि भीख माँगने के लिए।
🔴 प्रश्न 12:
‘मनुष्य की करुणा की भावना उसके भीतर गूँगेपन की प्रतिच्छाया है’ – इस कथन को स्पष्ट करें।
🔵 उत्तर: यह कथन समाज की संवेदनहीनता पर करारा व्यंग्य है। लेखक का कहना है कि लोग दुःखी व्यक्ति को देखकर मन में करुणा अनुभव करते हैं लेकिन उसकी मदद करने के लिए आगे नहीं आते। वे मूकदर्शक बनकर रह जाते हैं। जैसे गूँगा बोल नहीं सकता, वैसे ही ये लोग भी अन्याय के विरुद्ध आवाज नहीं उठाते। इस प्रकार समाज के संवेदनशील लोग भी व्यवहार में गूंगे हो जाते हैं।
🔴 प्रश्न 13:
चमेली के व्यवहार में द्वंद्व कहाँ दिखाई देता है?
🔵 उत्तर: चमेली के व्यवहार में स्पष्ट द्वंद्व दिखाई देता है। एक ओर वह गूँगे पर दया दिखाकर उसे नौकरी देती है और दूसरी ओर अपने बेटे बसंता का पक्ष लेकर गूँगे को डाँटती है। जब गूँगा उसकी बांह पकड़ता है तो वह सोचती है कि यदि उसका अपना बेटा गूँगा होता तो उसकी भी यही दशा होती। यह दर्शाता है कि मानवीय संवेदना और व्यावहारिक जीवन के बीच अंतर होता है।
🪶 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (4.5 अंक)
🟣 प्रश्न 14:
‘गूँगे’ कहानी का केंद्रीय भाव और समाज के प्रति लेखक का संदेश 110 शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
🔶 उत्तर:
रांगेय राघव की ‘गूँगे’ कहानी विकलांगों के प्रति समाज की संवेदनहीनता और उपेक्षा का मार्मिक चित्रण है। गूँगा व्यक्ति जन्म से वज्र-बहरा है, फिर भी स्वाभिमानी है और मेहनत करके जीवन यापन करता है। चमेली उसे नौकरी देती है लेकिन अपने पुत्र का पक्ष लेकर गूँगे के साथ पक्षपात करती है। कहानी का शीर्षक ‘गूँगे’ (बहुवचन) समाज के उन लोगों की ओर संकेत करता है जो अन्याय देखकर भी चुप रह जाते हैं। लेखक ने दिखाया है कि शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति भी सम्मान और अधिकार चाहता है, दया नहीं। यह कहानी समाज को झकझोरती है और मानवीय संवेदना जगाने का संदेश देती है।
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अतिरिक्त ज्ञान
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दृश्य सामग्री
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