Class 11, HINDI LITERATURE

Class 11 : हिंदी साहित्य – Lesson 10. खेलन में को काको गुसैयाँ, मुरली तऊ गुपालहिं भावति

संक्षिप्त लेखक परिचय



🔶 सूरदास: जीवन एवं काव्य पहचान 🔶
(भक्तिकाल के अनुपम कवि – श्रीकृष्ण के माधुर्य के गायक)
🔹 जन्म: लगभग 1478 ई. – स्थान: रुनकता (आगरा-मथुरा मार्ग, उत्तर प्रदेश)
🔹 मूल पहचान: जन्मांध – किंतु दिव्य दृष्टि संपन्न भावकवि
🔹 गुरु: वल्लभाचार्य (पुष्टिमार्ग संप्रदाय से संबंध)
🔹 मुख्य ग्रंथ:
  ✔️ सूरसागर – श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं का रसात्मक वर्णन
  ✔️ सूरसारावली – भक्ति की व्यापकता
  ✔️ साहित्य लहरी – काव्य-रस की व्याख्या


🟢 विशेषताएँ:
⭐ ब्रजभाषा की माधुर्यता एवं भावप्रवण शैली
⭐ बाल-कृष्ण की लीलाओं का सहज-सरल चित्रण
⭐ गोपियों का कृष्ण के प्रति आत्मिक प्रेम और विरह-वेदना
🔸 दर्शन: निर्गुण से सगुण की ओर झुकाव – हृदय से उठी आत्मा की पुकार
🔸 उपाधि: “आषाढ़ की पूर्णिमा का चाँद” – समस्त भक्त कवियों में अद्वितीय
📌 निष्कर्ष: सूरदास का काव्य प्रेम, भक्ति और करुणा का सम्मिश्रण है – जो आज भी रसिक हृदयों को भावविभोर करता है।

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन



🔷 पद 1: “खेलन में को काको गुसैयाँ” – बालकृष्ण की खेल-लीला में सहज रूठना और मनाना 🔷
🪁 पद:
“खेलन में को काको गुसैयाँ।
हरि हारे जीते श्री दामा, बरबस हीं कत करत रिसैयाँ।
जाति-पाँति हमतैं बड़ नाहीं, नाहीं बसत तुम्हारी छैयाँ।
अति अधिकार जनावत यातै, जातैं अधिक तुम्हारै गैयाँ।
रूठहि करै तासौं को खेलै, रहे बैठि जहँ-तहँ सब ग्वैयां।
सूरदास प्रभु खेल्यौइ चाहत, दाऊँ दियौ करि नंद-दुहैयाँ।”
💠 भावार्थ / व्याख्या:
🔹 खेल में कोई किसी पर हक नहीं जताता – वहाँ सब बराबर होते हैं।
🔹 श्रीकृष्ण खेल हार जाते हैं, सखा श्रीदामा जीतते हैं, पर कृष्ण हठ करते हैं।
🔹 गोपसखा उन्हें स्मरण कराते हैं कि जाति, धन, या गोधन से कोई श्रेष्ठ नहीं होता।
🔹 यदि कोई रूठकर बैठ जाए तो बाकी साथी खेलना छोड़ देते हैं।
🔹 सूरदास कहते हैं, श्रीकृष्ण को खेलना ही था – उन्होंने दाऊ की कसम देकर फिर खेल आरंभ किया।
🎯 विशेष बिंदु:
बाल-मन की हठ, रूठने की स्वाभाविकता
सखा-संबंध में समानता और बाल न्याय
खेल में ऊँच-नीच नहीं, केवल अपनत्व

🔷 पद 2: “मुरली तऊ गुपालहि भावति” – बाँसुरी से बँधे कृष्ण और गोपियों का हास्य-विरोध 🔷
🪈 पद:
“मुरली तऊ गुपालहि भावति, सुनि री सखी जदपि नंदलालहि।
नाना भाँति नचावति, राखति एक पाइ ठाढ़ौ करि।
अति अधिकार जनावत, काटि टेढ़ौ ह्वै आवति।
सुन्दर तन आज्ञा करवावति, कटि टेढ़ौ ह्वै आवति।
भृकुटी कुटिल, नैन नासा-पुट, हम पर कोप करावति।
सूर प्रसन्न जानि एकौ छिन, धर तैं सीस डुलावति।।”
💠 भावार्थ / व्याख्या:
🔸 गोपियाँ बाँसुरी पर व्यंग्य करती हैं – वह गोपाल की प्रिय है, वे उससे बँध चुके हैं।
🔸 बाँसुरी के स्वर पर श्रीकृष्ण त्रिभंग मुद्रा में झूमते हैं, एक टांग पर खड़े होकर नाचते हैं।
🔸 बाँसुरी आज्ञा देती है और वह उनका शरीर झुका देती है।
🔸 कृष्ण की भौंहें टेढ़ी होती हैं, नयन और नथुने क्रोधित दिखते हैं, फिर भी प्रसन्न मुद्रा अपनाते हैं।
🔸 सूरदास कहते हैं – कृष्ण क्षणमात्र प्रसन्न होकर भी बाँसुरी की ओर सिर हिला देते हैं।
🎯 विशेष बिंदु:
माधुर्य रस की अनोखी झलक
बाँसुरी को सौत के रूप में देखती गोपियाँ
कृष्ण की संगीत पर आत्मविस्मृति और लय

🔶 निष्कर्ष: 🔶
🌼 सूरदास के ये दोनों पद श्रीकृष्ण के दो रूपों को सामने रखते हैं –
1️⃣ एक ओर बालस्वरूप में खेल-कूद में रूठने, मानने की सहजता और
2️⃣ दूसरी ओर युवावस्था में बाँसुरी की अधीनता में रसमग्न त्रिभंग कृष्ण।
📿 ये पद हमें बताते हैं कि ईश्वर न केवल महान स्रष्टा हैं, बल्कि जीवन की छोटी-छोटी लीलाओं में भी उपस्थित हैं – कभी बालक की हठ में, कभी प्रेमी की तल्लीनता में।
🌟 सूरदास का काव्य न केवल भक्तिरस का प्रसार करता है, बल्कि मनोविज्ञान, सौंदर्य और लोक-संवाद की पराकाष्ठा भी है।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न



🔹 पद: “खेलन में को काको गुसैयाँ”
🔸 प्रश्न 1:
प्रश्न: श्रीकृष्ण और सुदामा के बीच किस बात पर तकरार हुई?
उत्तर: खेल में हार-जीत को लेकर तकरार हुई। सुदामा ने श्रीकृष्ण को हरा दिया, पर श्रीकृष्ण हार मानने को तैयार नहीं थे, जिससे तकरार हो गई।


🔸 प्रश्न 2:
प्रश्न: खेल में रूठने वाले साथी के साथ सब क्यों नहीं खेलना चाहते?
उत्तर: खेल-मैदान में सब समान होते हैं। जो साथी हारकर दाँव न दे, उससे खेल की भावना नष्ट होती है, इसलिए सब उससे किनारा कर लेते हैं।


🔸 प्रश्न 3:
प्रश्न: श्रीकृष्ण के रूठने पर उनके साथियों ने उन्हें डाँटते हुए कौन-कौन से तर्क दिए?
उत्तर:
🔹 हार-जीत खेल का हिस्सा है, क्रोध अनुचित है।
🔹 जाति-पाँति की कोई विशेषता नहीं, सभी बराबर हैं।
🔹 गाय अधिक होना खेल में अधिकार नहीं देता।
🔹 यदि दाँव नहीं दोगे तो कोई नहीं खेलेगा।


🔸 प्रश्न 4:
प्रश्न: श्रीकृष्ण ने नंद बाबा की दुहाई देकर दाँव क्यों दिया?
उत्तर: क्योंकि नंद बाबा का नाम लेकर उन्होंने सच्चाई का संकेत दिया और खेल दोबारा शुरू हो सके, इसलिए उन्होंने दाँव स्वीकार कर लिया।


🔸 प्रश्न 5:
प्रश्न: इस पद में बाल-मनोविज्ञान का कौन-सा चित्रण है?
उत्तर: इसमें बच्चों की भावुकता, हार से रूठने की प्रवृत्ति, और निष्पक्ष खेल भावना का सुंदर चित्रण है।

🔹 पद: “मुरली तऊ गुपालहि भावति”
🔸 प्रश्न 6:
प्रश्न: एक सखी दूसरी सखी से क्या कहती है?
उत्तर: वह कहती है कि श्रीकृष्ण मुरली के अधीन हैं—मुरली उन्हें एक पैर पर नचाती है और उनकी देह को आज्ञाकारी बना देती है।


🔸 प्रश्न 7:
प्रश्न: इस पद में गोपियों के मन में मुरली के प्रति कौन-सा भाव दिखता है?
उत्तर: गोपियों के मन में ईर्ष्या और कोप का भाव है; वे मुरली को अपनी प्रतिद्वंद्वी मानती हैं।


🔸 प्रश्न 8:
प्रश्न: “अति अधिकार जनावत, काटि टेढ़ौ ह्वै आवति” पंक्ति का क्या आशय है?
उत्तर: इसका अर्थ है कि श्रीकृष्ण मुरली के प्रति इतने समर्पित हैं कि उसकी धुन पर त्रिभंग मुद्रा में झुकते हैं।


🔸 प्रश्न 9:
प्रश्न: इस पद की भाषा-शैली की विशेषता बताइए।
उत्तर: इस पद की भाषा अपभ्रंश-प्रभावित ब्रज है, जिसमें लोक शैली, दृश्यात्मक अलंकार और माधुर्य रस का सुंदर समन्वय है।

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न


🔶🧠 भाग 1: बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ)
❓ प्रश्न 1:
“खेलन में को काको गुसैयाँ” में बाल-कृष्ण ने हार मानने के लिए किसका नाम लेकर विश्वास दिलाया?
🔸 (A) गोपियाँ
🔸 (B) सुदामा
🔸 (C) नंदबाबा की दुहाई
🔸 (D) यमुना नदी
✅ उत्तर: (C) नंदबाबा की दुहाई


❓ प्रश्न 2:
“मुरली तऊ गुपालहि भावति” में गोपियाँ किस वस्तु से ईर्ष्या करती हैं?
🔸 (A) चक्र
🔸 (B) फूल
🔸 (C) मुरली (बाँसुरी)
🔸 (D) मोरपंख
✅ उत्तर: (C) मुरली (बाँसुरी)


❓ प्रश्न 3:
कृष्ण के साथ खेल छोड़ने का कारण क्या था?
🔸 (A) उनके पास खेल का सामान नहीं था
🔸 (B) उन्होंने दाँव नहीं रखा
🔸 (C) नियम तोड़े
🔸 (D) वे रूठकर भाग गए
✅ उत्तर: (B) उन्होंने दाँव नहीं रखा


❓ प्रश्न 4:
गोपियाँ बाँसुरी के प्रति कौन से भाव प्रदर्शित करती हैं?
🔸 (A) प्रेम और ईर्ष्या
🔸 (B) श्रद्धा और भय
🔸 (C) घृणा और उपेक्षा
🔸 (D) भक्ति और प्रसन्नता
✅ उत्तर: (A) प्रेम और ईर्ष्या


❓ प्रश्न 5:
“खेलन में को काको गुसैयाँ” का मूल संदेश क्या है?
🔸 (A) मित्रता सर्वोपरि
🔸 (B) जात-पात का विरोध
🔸 (C) खेल में समानता
🔸 (D) भक्ति का उद्गार
✅ उत्तर: (C) खेल में समानता

🟡🖋️ भाग 2: लघु उत्तरीय प्रश्न
❓ प्रश्न 1:
“हरि हारे जीते श्री दामा” का भाव स्पष्ट कीजिए।
✔️ उत्तर: यह पंक्ति दर्शाती है कि श्रीकृष्ण हार गए और सुदामा जीत गए, जो बालकों के बीच खेल की सहज स्थिति है।


❓ प्रश्न 2:
गोप-सखाओं ने रूठे कृष्ण को क्या तर्क देकर मनाने का प्रयास किया?
✔️ उत्तर: उन्होंने कहा कि खेल में सभी समान हैं; कोई जात-पात या पद नहीं चलता। यदि दाँव नहीं रखोगे, तो कोई नहीं खेलेगा।


❓ प्रश्न 3:
“भृकुटी कुटिल, नैन नासा-पुट” से क्या तात्पर्य है?
✔️ उत्तर: यह पंक्ति गोपियों के बाँसुरी से उत्पन्न ईर्ष्या और चंचल भावनाओं को दर्शाती है। उनका मन कृष्ण की मुरली से मोहक रूप से बाँध गया है।
❓ प्रश्न 4:
नंदबाबा की दुहाई का क्या महत्व है?
✔️ उत्तर: नंदबाबा के नाम का विश्वास दिलाकर कृष्ण ने दाँव दिया, जिससे खेल में निष्पक्षता लौट आई।


❓ प्रश्न 5:
गोपियाँ कृष्ण को बाँसुरी से कैसे बाँधकर रखती हैं?
✔️ उत्तर: बाँसुरी के स्वरों से कृष्ण इतने प्रभावित होते हैं कि त्रिभंग मुद्रा में झुककर नृत्य करने लगते हैं, मानो मुरली ही उनका स्वामी हो।

🟢🧩 भाग 3: मध्यम उत्तरीय प्रश्न
❓ प्रश्न 1:
बाल-लीला से दो बाल-विशेषताओं का उल्लेख करें।
✔️ उत्तर:
🔹 संघर्षशीलता – कृष्ण हार नहीं मानते, बालकों जैसी जिद करते हैं।
🔹 मेल-जोल की भावना – अंत में सभी मिलकर साथ खेलते हैं। यह सामाजिक समरसता दर्शाता है।


❓ प्रश्न 2:
गोपियों और मुरली के बीच के संबंध को समझाइए।
✔️ उत्तर: गोपियाँ मुरली से ईर्ष्या करती हैं क्योंकि वह कृष्ण को अपने वश में रखती है, फिर भी वे उसके माधुर्य रस में लीन हो जाती हैं।


❓ प्रश्न 3:
“अति अधिकार जनावत” पंक्ति दोनों पदों में कैसे लागू होती है?
✔️ उत्तर:
🔹 खेल में – कृष्ण दाँव पर अधिकार जताते हैं।
🔹 मुरली में – मुरली कृष्ण पर अधिकार जताती है।
🔸 दोनों में अधिकार और समर्पण का द्वंद्व निहित है।


❓ प्रश्न 4:
दोनों पदों में प्रयुक्त प्रमुख अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
✔️ उत्तर:
🔸 करणी अलंकार – “हार-जीत” की क्रिया
🔸 प्रतीक अलंकार – “नंदबाबा की दुहाई”
🔸 दृष्टांत अलंकार – “त्रिभंग मुद्रा”
🔸 अनुप्रास अलंकार – “भृकुटी कुटिल, नैन नासा-पुट”

🔴📜 भाग 4: दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
❓ प्रश्न:
बाल-कृष्ण की लीलाओं का मनोवैज्ञानिक और सौंदर्यात्मक विश्लेषण करें।
✔️ उत्तर:
“खेलन में को काको गुसैयाँ” में कृष्ण के बाल-मन की झलक मिलती है—वह जीत की ज़िद करते हैं, लेकिन जब साथियों से दूरी बढ़ती है, तो वे समझदारी दिखाते हैं। यह सामाजिक समझ की ओर इशारा करता है।
दूसरी ओर, “मुरली तऊ गुपालहि भावति” में कृष्ण एक सौंदर्य-केन्द्र बनते हैं—मुरली के माधुर्य से गोपियाँ सम्मोहित होती हैं। त्रिभंग मुद्रा, सौम्य कोप, और लयबद्ध प्रस्तुति माधुर्य रस की पूर्णता दर्शाती है।
👉 इन दोनों में एक ओर शिष्ट-लीला (सामाजिक भाव), दूसरी ओर माधुर्य-लीला (सौंदर्य भाव) का समन्वय है।
💫 सूरदास ने इन पदों से कृष्ण को बाल और माधुर्य दोनों भावों में प्रस्तुत कर भक्ति को मानवीय अनुभूति के निकट लाकर खड़ा किया।

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अतिरिक्त ज्ञान

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दृश्य सामग्री

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