Class 11, HINDI COMPULSORY

Class 11 : हिंदी अनिवार्य – Lesson 4 विदाई संभाषण

संक्षिप्त लेखक परिचय

📘 लेखक परिचय — बालमुकुंद गुप्त


🔵 बालमुकुंद गुप्त का जन्म 14 नवम्बर 1865 को हरियाणा के रोहतक जिले के गाँव गुड़ियानी में हुआ।
🟢 पिता का नाम लाला पूरणमल था और परिवार बख्शी राम वंश से सम्बन्ध रखता था।
🟡 प्रारंभिक शिक्षा उर्दू एवं फ़ारसी में हुई, तत्पश्चात 1886 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय की मिडिल परीक्षा प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में उत्तीर्ण की।
🔴 पत्रकारिता में रुचि के कारण उन्होंने ‘अखबार-ए-चुनार’ तथा उर्दू पत्र ‘कोहेनूर’ का संपादन किया।
🟢 बाद में उन्होंने ‘हिंदोस्तान’, ‘हिंदी बंगवासी’ और ‘भारत मित्र’ जैसी प्रमुख पत्रिकाओं में संपादन कार्य किया।

🟡 इन पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने सामाजिक और राजनैतिक विषयों पर व्यंग्यात्मक निबंधों के द्वारा जनचेतना जगाई।
🔴 उनके लेखन में सरल और सजीव भाषा, तीखा व्यंग्य तथा हल्का हास्य प्रमुख था, जिसने भारतेन्दु युग और द्विवेदी युग के बीच सेतु का कार्य किया।
🟢 उन्होंने मात्र 42 वर्ष की आयु में 18 सितम्बर 1907 को विहाराघाट में अंतिम सांस ली, परन्तु हिंदी पत्रकारिता और गद्य–साहित्य में उनका प्रभाव आज भी अमिट है।

💠 प्रमुख कृतियाँ:
शिवशंभु के चिट्ठे (1887), हरिदास (1890), खेल तमाशा (1892), स्फुट कविताएँ (1895)

💠 सम्मान:
कोई सरकारी सम्मान नहीं प्राप्त

💠 विचारधारा:
यथार्थवादी, व्यंग्यात्मक, समाज–सुधारक दिशा

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन


📘 पाठ परिचय: विदाई संभाषण
“विदाई संभाषण” बालमुकुंद गुप्त द्वारा रचित एक व्यंग्यात्मक निबंध है जो उनकी प्रसिद्ध कृति “शिवशंभु के चिट्ठे” का अंश है। यह पाठ वायसराय लॉर्ड कर्ज़न (1899-1904 एवं 1904-1905) के शासन में भारतीयों की दयनीय स्थिति, अत्याचार और उनके शासन के अंत पर कटाक्ष करता है|

🎯 पाठ का मूल भाव
✏️ लेखक ने लॉर्ड कर्ज़न को “माई लॉर्ड” संबोधित करते हुए व्यंग्यपूर्ण शैली में उनकी विदाई पर दुख प्रकट किया है। वास्तव में यह दुख नहीं, बल्कि कर्ज़न के अत्याचारों, अहंकार और भारतीयों के प्रति क्रूर नीतियों पर तीखा प्रहार है���।

🏛️ शासन का अंत और तीसरी शक्ति
🌍 लेखक कहते हैं कि संसार में हर चीज का अंत होता है, इसलिए कर्ज़न के शासनकाल का भी अंत हो गया। हालांकि कर्ज़न चाहते थे कि वे यहाँ के स्थाई वायसराय बन जाएँ, किंतु यह संभव नहीं हो सका। लेखक व्यंग्य करते हैं कि कर्ज़न और भारतवासियों के बीच एक “तीसरी शक्ति” है (ब्रिटिश संसद और महारानी), जिस पर न भारतवासियों का वश है, न कर्ज़न का।

💔 विदाई का समय और करुणा
💭 बिछड़ने का समय करुणा उत्पन्न करने वाला होता है। लेखक कहते हैं कि कर्ज़न जब दूसरी बार भारत आए तो भारतवासी बिल्कुल प्रसन्न नहीं थे। वे दिन-रात यही मनाते थे कि कर्ज़न जल्दी यहाँ से चले जाएँ। लेकिन आज उनके जाने पर हर्ष की जगह विषाद (दुख) हो रहा है, क्योंकि विदाई के समय वैर-भाव छूटकर शांत रस का आविर्भाव होता है।

🐄 शिवशंभु की दो गायों का प्रतीक
🐮 लेखक ने प्रतीकात्मक उदाहरण दिया है कि शिवशंभु की दो गायें थीं—एक बलवान और दूसरी कमजोर। बलवान गाय अक्सर कमजोर गाय को सींग मारकर गिरा देती थी। जब बलवान गाय को पुरोहित को दान में दे दिया गया, तो कमजोर गाय उदास हो गई, उसने चारा तक नहीं छुआ। इसका अर्थ है कि भारत जैसे देश में पशु-पक्षी भी विदाई की पीड़ा महसूस करते हैं, तो मनुष्यों की स्थिति का अनुमान लगाना कठिन नहीं है।
❤️ यह प्रतीक यह दर्शाता है कि कर्ज़न के अत्याचारों के बावजूद भारतीय उनकी विदाई पर संवेदनशील हैं।

🎭 नाटक का घोर दुखांत
🎬 लेखक कहते हैं कि कर्ज़न का शासनकाल एक नाटक था, जिसका अंत घोर दुखांत रहा। सूत्रधार (कर्ज़न) ने इस खेल को सुखांत समझकर शुरू किया था, लेकिन यह दुखांत में बदल गया। घमंडी खिलाड़ी समझता है कि वह दूसरों को अपनी लीला दिखा रहा है, किंतु परदे के पीछे एक और लीलामय की लीला हो रही है, यह उसे खबर नहीं।

🔥 कर्ज़न के इरादे और असफलता
⚡ जब कर्ज़न दूसरी बार बंबई में उतरे, तो उन्होंने कहा था कि वे भारत को ऐसी स्थिति में छोड़ेंगे कि उनके बाद आने वाले वायसराय को वर्षों तक कुछ करना न पड़ेगा। लेकिन उल्टा हुआ—कर्ज़न को स्वयं बेचैनी उठानी पड़ी और उन्होंने इस देश में ऐसी अशांति फैला दी कि उनके बाद आने वालों को न जाने कब तक नींद और भूख हराम करनी पड़ेगी।
🔥 लेखक व्यंग्य करते हैं कि कर्ज़न ने अपना बिस्तर गरम राख पर रखा और भारतवासियों को गरम तवे पर पानी की बूँदों की तरह नचाया।

👑 कर्ज़न की शान और पतन
🏰 दिल्ली दरबार में कर्ज़न की शान अलिफ लैला के अलहदीन और बगदाद के खलीफा से भी बढ़कर थी। उनकी और उनकी लेडी की कुर्सी सोने की थी, जबकि महाराज के छोटे भाई की चाँदी की। जुलूस में उनका हाथी सबसे आगे और सबसे ऊँचा था।
🤴 ईश्वर और महाराज एडवर्ड के बाद इस देश में कर्ज़न का ही दर्जा था। लेकिन जंगी लाट (सेना प्रमुख) के मुकाबले में उन्होंने पटखनी खाई और सिर के बल नीचे आ गए। उनके स्वदेश (इंग्लैंड) में सेना प्रमुख को ही ऊँचा माना गया और कर्ज़न को नीचा देखना पड़ा।

⚖️ कर्ज़न की जिद और निरंकुशता
🚫 लेखक ने कर्ज़न की जिद और निरंकुशता की तुलना कैसर और जार जैसे तानाशाहों से की है। कर्ज़न ने कभी प्रजा की बात नहीं सुनी और जिद्द से सारे काम किए।
📢 जब 8 करोड़ प्रजा ने गिड़गिड़ाकर बंगाल विभाजन न करने की प्रार्थना की, तो उन्होंने जरा भी ध्यान नहीं दिया। यहाँ तक कि नादिरशाह ने भी आसिफजाह की प्रार्थना पर कत्लेआम रोक दिया था, लेकिन कर्ज़न की जिद नादिर से भी बढ़कर थी।
📚 कर्ज़न ने भारत की शिक्षा को पायमाल (नष्ट) कर दिया, प्रेस की स्वतंत्रता छीन ली और बंगाल विभाजन का दंश दिया।

🙏 नर सुलतान का उदाहरण
🤲 लेखक ने नर सुलतान नामक राजकुमार का उदाहरण दिया, जिन्होंने विपत्ति के समय नरवरगढ़ में चौकीदारी से लेकर ऊँचे पद तक काम किया। जाते समय उन्होंने आँखों में आँसू भरकर नरवरगढ़ को प्रणाम किया और कहा…
💭 लेखक व्यंग्यपूर्वक पूछते हैं कि क्या कर्ज़न भी ऐसा विदाई संभाषण दे सकते हैं? क्या वे कह सकते हैं… लेकिन लेखक कहते हैं कि इतनी उदारता कर्ज़न में कहाँ?

🎨 व्यंग्य और भाषा शैली
🖋️ बालमुकुंद गुप्त ने इस पाठ में व्यंग्य, विनोद और कटाक्ष का अद्भुत प्रयोग किया है। उन्होंने प्रेस पर प्रतिबंध के दौर में भी निर्भीकता से अपनी बात कही।
📜 भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण और भारतेंदु युगीन हिंदी की विशेषता लिए हुए है। उर्दू-फारसी शब्दों का सहज प्रयोग, मुहावरों का प्रयोग और रवानगी इस पाठ की विशेषता है।

📌 विश्लेषण: पाठ का महत्व
🔍 “विदाई संभाषण” केवल लॉर्ड कर्ज़न की विदाई पर लिखा सामयिक लेख नहीं है, बल्कि यह उपनिवेशी शासन की विडंबनाओं, सत्ता के स्वभाव और मानवीय भावनाओं पर गहरी टिप्पणी है।
📉 कर्ज़न की जिद, अहंकार और निरंकुशता ने उन्हें स्वयं दुख दिया और भारतवासियों को भी पीड़ित किया। भारतीय प्रजा धैर्यवान, कृतज्ञ और परिणाम को ध्यान में रखने वाली है—वह जानती है कि दुख का समय भी निकल जाएगा।

🌟 मुख्य संदेश
🌪️ अहंकार और जिद का परिणाम: कर्ज़न का अहंकार और जिद उनके पतन का कारण बना।
🪶 व्यंग्य की शक्ति: लेखक ने व्यंग्य के माध्यम से औपनिवेशिक शासन की क्रूरता को उजागर किया।
🧘‍♂️ भारतीय प्रजा की सहनशीलता: भारतीय जनता परिणाम को ध्यान में रखते हुए सब कुछ सहन करती है।
🛡️ नैतिक शासन का आदर्श: नर सुलतान का उदाहरण आदर्श शासन और कृतज्ञता का प्रतीक है।
🇮🇳 राष्ट्रीय चेतना: यह पाठ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की चेतना और पत्रकारिता की निर्भीकता का प्रतीक है।

🏁 निष्कर्ष
📚 “विदाई संभाषण” हिंदी साहित्य में व्यंग्य विधा की श्रेष्ठ रचना है। बालमुकुंद गुप्त ने लॉर्ड कर्ज़न के शासनकाल, उनके अत्याचारों, अहंकार और पतन को व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत कर भारतीयों की पीड़ा और राष्ट्रीय चेतना को जगाया। यह पाठ आज भी प्रासंगिक है और सत्ता, शासन और नैतिकता पर गहन विचार करने की प्रेरणा देता है।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

🟠 प्रश्न 1: शिवशंभु की दो गायों की कहानी के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
🔵 उत्तर: लेखक इस कथा से भारत की संवेदनशीलता और बिछुड़न के क्षण की करुणा का संकेत देता है—यहाँ तक कि पशु भी विदाई की घड़ी में वैर-भाव भूलकर करुणा से भर उठते हैं; इसी प्रतीक के सहारे पाठ में भारतीय समाज की मानवीयता और सहिष्णुता का व्यंग्यात्मक किंतु मार्मिक चित्र खिंचता है।

🟠 प्रश्न 2: आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर आपने ज़रा भी ध्यान क्यों नहीं दिया—यहाँ किस ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया गया है?
🔵 उत्तर: यहाँ संकेत बंगाल-विभाजन की ओर है; जब भारतवासियों ने विभाजन न करने की विनती की, तब भी अंग्रेज़ी शासन ने जिद पर अडिग रहकर देश की एकता को तोड़ा—इसी अनसुनी प्रार्थना की ओर लेखक ने तंज किया है।

🟠 प्रश्न 3: कर्ज़न को इस्तीफ़ा क्यों देना पड़ गया?
🔵 उत्तर: कर्ज़न ने अपनी इच्छा के अनुरूप एक सैनिक अधिकारी की नियुक्ति पर ज़ोर दिया, पर इंग्लैंड की सरकार ने इसे अस्वीकार कर दिया; अपमानित होकर उसने इस्तीफ़ा भेजा और वह स्वीकार भी कर लिया गया—यहीं से उसकी शान का अंत दिखाया गया है।

🟠 प्रश्न 4: “विचारिए तो, क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गई! कितने ऊँचे होकर अब कितने नीचे गिरे!”—आशय स्पष्ट कीजिए।
🔵 उत्तर: यह कथन कर्ज़न के अहंकार और वैभव से पतन तक की यात्रा का व्यंग्यात्मक निष्कर्ष है—भारत में विलास और प्रभुत्व के चरम पर रहने वाला शासक अपनी हठधर्मिता और जन-विरोधी नीतियों के कारण नम्र पराजय और विदाई के लिए विवश हो गया; अतः उसकी पूर्व शान की तुलना में उसका पतन अत्यंत नीचा प्रतीत होता है।

🟠 प्रश्न 5: “आपके और यहाँ के निवासियों के बीच में कोई तीसरी शक्ति और भी है”—यहाँ “तीसरी शक्ति” किसे कहा गया है?
🔵 उत्तर: यहाँ “तीसरी शक्ति” से आशय इंग्लैंड की सर्वोच्च सत्ता—महारानी/ब्रिटिश शासन–व्यवस्था—से है, जिसके निर्णयों के आगे भारत की जनता भी विवश थी और कर्ज़न जैसा प्रतिनिधि भी; अंतिम निर्णय उसी शक्ति का चलता था।

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न


🔵 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ)
🟢 प्रश्न 1
लेखक ने लॉर्ड कर्जन को ‘माई लॉर्ड’ कहकर संबोधित करने का मुख्य उद्देश्य क्या था?
🔴 1️⃣ व्यंग्यात्मक शैली में शासन की आलोचना करना
🟡 2️⃣ वायसराय के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना
🟢 3️⃣ ब्रिटिश शासन की प्रशंसा करना
🔵 4️⃣ औपचारिकता निभाना
✅ उत्तर: 1️⃣ व्यंग्यात्मक शैली में शासन की आलोचना करना

🟢 प्रश्न 2
शिवशंभु की दो गायों की कहानी के माध्यम से लेखक ने किस भाव को उजागर किया है?
🔴 1️⃣ प्रतिशोध की भावना
🟡 2️⃣ बिछड़ने के समय करुणा और शांत रस का उदय
🟢 3️⃣ स्वार्थपूर्ण व्यवहार
🔵 4️⃣ पशुओं में क्रूरता
✅ उत्तर: 2️⃣ बिछड़ने के समय करुणा और शांत रस का उदय

🟢 प्रश्न 3
लॉर्ड कर्जन के शासनकाल में कौन-सा विवादास्पद निर्णय लिया गया था?
🔴 1️⃣ दिल्ली दरबार का आयोजन
🟡 2️⃣ बंगाल का विभाजन
🟢 3️⃣ रेलवे का विस्तार
🔵 4️⃣ शिक्षा सुधार
✅ उत्तर: 2️⃣ बंगाल का विभाजन

🟢 प्रश्न 4
‘विदाई संभाषण’ किस रचना का अंश है?
🔴 1️⃣ भारत माता
🟡 2️⃣ शिवशंभु के चिट्ठे
🟢 3️⃣ गबन
🔵 4️⃣ कफन
✅ उत्तर: 2️⃣ शिवशंभु के चिट्ठे

🟢 प्रश्न 5
नरवरगढ़ के सुल्तान ने विदाई के समय किस प्रकार का संभाषण दिया था?
🔴 1️⃣ गर्व और अभिमान से भरा
🟡 2️⃣ कृतज्ञता और विनम्रता से युक्त
🟢 3️⃣ क्रोध और घृणा से पूर्ण
🔵 4️⃣ उदासीनता भरा
✅ उत्तर: 2️⃣ कृतज्ञता और विनम्रता से युक्त

🔵 लघु उत्तरीय प्रश्न
🟠 प्रश्न 6
लेखक ने कर्जन के शासनकाल को किस रूप में प्रस्तुत किया है?
💠 उत्तर: लेखक ने कर्जन के शासनकाल को भारतीयों के लिए दुखदायी और अत्याचारपूर्ण बताया है जिसमें केवल अंग्रेज़ों का वर्चस्व स्थापित करना उद्देश्य था।

🟠 प्रश्न 7
बिछड़न-समय को करुणोत्पादक क्यों कहा गया है?
💠 उत्तर: बिछड़न-समय में वैर-भाव समाप्त हो जाता है और शांत रस का उदय होता है। इस समय हृदय में कोमल भावनाएँ जागृत होती हैं, अतः इसे करुणोत्पादक कहा गया है।

🟠 प्रश्न 8
दिल्ली दरबार में कर्जन की क्या स्थिति थी?
💠 उत्तर: दिल्ली दरबार में कर्जन ईश्वर और सम्राट एडवर्ड के बाद सर्वोच्च स्थान पर थे। उनकी कुर्सी सोने की थी और सभी रईस उन्हें पहले सलाम करते थे।

🟠 प्रश्न 9
लेखक ने व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग क्यों किया?
💠 उत्तर: लेखक ने व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग अंग्रेज़ी शासन की निरंकुशता, अत्याचार और दमनकारी नीतियों पर प्रहार करने तथा जनता में राष्ट्रीय चेतना जागृत करने के लिए किया।

🟠 प्रश्न 10
कर्जन के इस्तीफे का क्या कारण था?
💠 उत्तर: कौंसिल में अपने मनपसंद अंग्रेज़ सदस्य को नियुक्त करवाने के मुद्दे पर कर्जन को नीचा देखना पड़ा, जिससे क्रोधित होकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

🔵 मध्यम उत्तरीय प्रश्न
🔴 प्रश्न 11
पाठ में भारतीय जनता की किन विशेषताओं का उल्लेख किया गया है?
🔷 उत्तर: पाठ में भारतीय जनता की विशेषताओं का मार्मिक उल्लेख है। भारतीय प्रजा धैर्यवान, सहनशील और कृतज्ञ है। वह अपने दुख और कष्टों की अपेक्षा परिणाम का अधिक ध्यान रखती है। वह जानती है कि संसार में सब चीज़ों का अंत है और दुख का समय भी एक दिन निकल जाएगा। इसी कारण वह सभी दुखों को झेलकर और पराधीनता सहकर भी जीवित रहती है। भारत की यह भूमि कृतज्ञता की भूमि है जहाँ पशु-पक्षी भी विदाई की पीड़ा अनुभव करते हैं।

🔴 प्रश्न 12
नरवरगढ़ के सुल्तान और लॉर्ड कर्जन की विदाई में क्या अंतर था?
🔷 उत्तर: नरवरगढ़ के सुल्तान ने विदाई के समय अत्यंत विनम्रता और कृतज्ञता के साथ संभाषण दिया। उसने नगर को अपना अन्नदाता माना, आँखों में आँसू भरकर प्रणाम किया और प्रजा की भलाई में किसी कमी की क्षमा माँगी। वहीं लॉर्ड कर्जन में ऐसी उदारता नहीं थी। उन्होंने भारत को केवल लूटा, यहाँ की प्रजा को पीड़ित किया और अपनी जिद के कारण स्वयं भी पद से हटना पड़ा। उनकी विदाई में कोई कृतज्ञता या विनम्रता नहीं थी।

🔴 प्रश्न 13
पाठ का मुख्य उद्देश्य क्या है?
🔷 उत्तर: पाठ का मुख्य उद्देश्य व्यंग्य के माध्यम से ब्रिटिश शासन की शोषणकारी नीतियों, लॉर्ड कर्जन की निरंकुशता और भारत-विरोधी कार्यों को उजागर करना है। लेखक ने यह दिखाया है कि कर्जन ने भारत में केवल अंग्रेज़ों का वर्चस्व स्थापित किया, प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाया और बंगाल का विभाजन जैसे विवादास्पद निर्णय लिए। पाठ भारतीय जनता में राष्ट्रीय चेतना जागृत करने और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति सचेत करने का प्रयास है।

🔵 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
🟣 प्रश्न 14
‘विदाई संभाषण’ पाठ की प्रासंगिकता और इसके व्यंग्यात्मक स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
🔶 उत्तर: बालमुकुंद गुप्त का ‘विदाई संभाषण’ हिंदी साहित्य में व्यंग्य की एक उत्कृष्ट कृति है। यह पाठ लॉर्ड कर्जन की विदाई पर लिखा गया था जो 1899 से 1905 तक भारत के वायसराय रहे। लेखक ने इस पाठ में तीखे व्यंग्य के माध्यम से ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों पर प्रहार किया है। पाठ में कर्जन को ‘माई लॉर्ड’ कहकर संबोधित किया गया है जो स्वयं में एक व्यंग्य है। लेखक ने शिवशंभु की गायों, नरवरगढ़ के सुल्तान जैसे प्रतीकों के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि सच्चा शासक वह होता है जो जनता का हितचिंतक हो, न कि शोषक। कर्जन ने बंगाल विभाजन, प्रेस पर प्रतिबंध और अंग्रेज़ी वर्चस्व स्थापित करने जैसे कार्य किए। लेखक ने व्यंग्यात्मक शैली में कर्जन की जिद, अहंकार और भारत-विरोधी नीतियों को उजागर किया है। यह पाठ आज भी प्रासंगिक है क्योंकि यह सत्ता की अस्थिरता, अहंकार के परिणाम और जनता की शक्ति को दर्शाता है। व्यंग्य के माध्यम से लेखक ने न केवल शासन की आलोचना की बल्कि भारतीय जनता में आत्म-सम्मान और राष्ट्रीय चेतना जागृत करने का सफल प्रयास किया है।

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अतिरिक्त ज्ञान

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दृश्य सामग्री

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