Class 10 : Hindi – Lesson 9. लखनवी अंदाज: यशपाल
संक्षिप्त लेखक परिचय
🔶 लेखक परिचय: यशपाल
🟢 ✦ जीवन परिचय:
🔸 यशपाल का जन्म फ़िरोज़पुर छावनी (पंजाब) में हुआ था।
🔸 वे स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े एक क्रांतिकारी रहे, जो भगत सिंह से भी जुड़े रहे थे।
🔸 उन्होंने “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” के माध्यम से क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया।
🔸 जेल जीवन के बाद वे लेखन और पत्रकारिता से जुड़े।
🔸 उनका निधन 1976 में हुआ।
🟡 ✦ साहित्यिक योगदान:
🖋️ यशपाल हिंदी साहित्य के प्रगतिशील और यथार्थवादी लेखक माने जाते हैं।
🖋️ उनका लेखन समाज की सच्चाइयों, स्त्री-सशक्तिकरण और सामाजिक अन्याय पर तीखा प्रहार करता है।
🖋️ उन्होंने उपन्यास, कहानियाँ, निबंध और आत्मकथाएँ लिखीं।
🖋️ उनके प्रमुख उपन्यासों में “दिव्या”, “देशद्रोही”, “झूठा सच”, “मेरो जन्म”, आदि शामिल हैं।
🖋️ “झूठा सच” भारतीय विभाजन पर आधारित एक कालजयी रचना है।
🖋️ उनकी भाषा सहज, धारदार और विचारोत्तेजक होती थी।
🖋️ यशपाल को साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
🖋️ उन्होंने साहित्य को सामाजिक बदलाव का सशक्त माध्यम बनाया।
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन

🟢 पाठ की पृष्ठभूमि व संदर्भ
🔹 यशपाल द्वारा रचित यह व्यंग्यात्मक कृति दो उद्देश्यों को लेकर लिखी गई है –
यह सिद्ध करना कि बिना कथ्य के भी कहानी लिखी जा सकती है।
पतनशील सामंती वर्ग की नकली रईसी और दिखावे पर तीखा व्यंग्य करना।
🔹 यह यशपाल के यथार्थवादी दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो सामाजिक विषमता और पाखंड पर चोट करता है।
🟡 कहानी का घटनाक्रम
🔸 प्रारंभिक परिस्थिति:
लेखक ट्रेन यात्रा में सेकंड क्लास का टिकट लेकर शांतिपूर्वक यात्रा करना चाहते हैं ताकि प्रकृति का आनंद लेकर कहानी सोच सकें।
🔸 नवाब साहब से भेंट:
डिब्बे में पहले से एक नवाबी अंदाज़ के सज्जन बैठे हैं। उनके सामने खीरे रखे हैं। लेखक के आने से वे असंतुष्ट नज़र आते हैं।
🔸 खीरे की घटना:
नवाब साहब खीरे को बड़ी नजाकत से सजाते हैं, मसाला लगाते हैं, फिर एक-एक फाँक को सूंघकर खिड़की से फेंक देते हैं।
🔸 लेखक की प्रतिक्रिया:
लेखक समझते हैं कि नवाब साहब दिखावे की दुनिया में जीते हैं और असलियत को छुपाने के प्रयास में व्यर्थता का अभिनय कर रहे हैं।
🔵 मुख्य पात्रों का चित्रण
🔹 नवाब साहब:
सामंती वर्ग के प्रतीक, जो दिखावे और बनावट से अपनी गरीबी छुपाते हैं। उनका व्यवहार परजीवी संस्कृति को दर्शाता है।
🔹 लेखक (यशपाल):
संवेदनशील और कल्पनाशील लेखक, जो मानवीय व्यवहार का सूक्ष्म अवलोकन करते हैं।
🟣 मुख्य विषय व संदेश
🔸 दिखावे पर व्यंग्य:
लोग समाज में अपनी वास्तविक स्थिति छुपाकर नकली श्रेष्ठता दिखाना चाहते हैं।
🔸 सामंती मानसिकता की आलोचना:
नवाब साहब का आचरण उस वर्ग का प्रतीक है जो वास्तविकता से भागता है।
🔸 कहानी कला पर टिप्पणी:
संदेश है कि बिना ठोस कथ्य के कहानी लेखन व्यर्थ है – जैसे बिना खाए खीरे की गंध से पेट नहीं भर सकता।
🟠 भाषा और शैली
🔹 व्यंग्यात्मक शैली:
प्रत्यक्ष नहीं, बल्कि सूक्ष्म और विनम्र व्यंग्य से बात कही गई है।
🔹 मिश्रित भाषा:
हिंदी के साथ उर्दू–फारसी शब्दों का सुंदर प्रयोग — “आदाब”, “तस्लीम”, “नफासत”, “नजाकत” इत्यादि।
🔹 वर्णनात्मकता:
खीरे काटने से लेकर फेंकने तक की प्रक्रिया को चित्रात्मक ढंग से दर्शाया गया है।
🟤 कलात्मक तत्व
🔸 सूक्ष्म व्यंग्य:
नवाब साहब पर व्यंग्य आक्रामक नहीं, बल्कि शालीन है।
🔸 मनोवैज्ञानिक यथार्थ:
पात्रों के मनोभावों का गहरा चित्रण है — हीनभावना और कल्पनाशीलता दोनों की अभिव्यक्ति।
🔸 प्रतीकात्मकता:
खीरा दिखावे का प्रतीक है — उसकी सुगंध से जैसे भूख नहीं मिटती, वैसे ही दिखावे से आत्मसंतोष नहीं मिलता।
🔵 समसामयिक प्रासंगिकता
🔹 दिखावे की संस्कृति:
आज के सोशल मीडिया युग में यह प्रवृत्ति और बढ़ गई है।
🔹 मध्यवर्गीय मानसिकता:
आज भी समाज में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने की जद्दोजहद जारी है।
🟢 शिक्षा और संदेश
🔸 व्यावहारिक जीवन दृष्टिकोण:
वास्तविकता को स्वीकारना ही बुद्धिमानी है।
🔸 कला में प्रामाणिकता:
सच्चे कथ्य के बिना रचना खोखली होती है।
🟡 सारांश
‘लखनवी अंदाज’ यशपाल की व्यंग्यप्रधान कहानी है जो पतनशील सामंती वर्ग के दिखावे पर करारा प्रहार करती है। ट्रेन में खीरे को सजा–सँवारकर सिर्फ सूंघकर फेंक देने की घटना लेखक को उस वर्ग की नकली शान का प्रतीक प्रतीत होती है। कहानी हमें सिखाती है कि केवल दिखावे से संतुष्टि नहीं मिलती; वास्तविकता को स्वीकारना ही श्रेष्ठ है।
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
🔸 प्रश्न 1:
लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
उत्तर:
लेखक के अचानक डिब्बे में कूद पड़ने से नवाब साहब की आंखों में एकांत चिंतन में खलल पड़ जाने का असंतोष दिखाई दिया। ट्रेन में लेखक के साथ बातचीत करने के लिए नवाब साहब ने कोई उत्साह नहीं प्रकट किया। उन्होंने लेखक से कोई बातचीत भी नहीं की और न ही उनकी तरफ देखा। इससे लेखक को स्वयं के प्रति नवाब साहब की उदासीनता का आभास हुआ। नवाब साहब के चेहरे पर व्यवधान के भाव उभर आए और उनकी आंखों में असंतोष का भाव दिखाई दिया। उन्होंने लेखक से बातचीत करने की पहल नहीं की और लेखक की ओर देखने के बजाए वे खिड़की से बाहर देखते रहे।
🔸 प्रश्न 2:
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर:
नवाब साहब का यह बर्ताव स्वयं को खास दिखाने और लेखक पर अपनी अमीरी का रौब झाड़ने के लिए था। नवाब साहब द्वारा दिए गए खीरा खाने के प्रस्ताव को लेखक ने अस्वीकृत कर दिया था। खीरे को खाने की इच्छा तथा सामने वाले यात्री के सामने अपनी झूठी साख बनाए रखने के उलझन में नवाब साहब ने यह नाटक किया। उनका ऐसा करना दंभ, मिथ्या-आडंबर, प्रदर्शन-प्रियता एवं उनके व्यवहारिक खोखलेपन की ओर संकेत करता है।
🔸 प्रश्न 3:
बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है? यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:
किसी भी कहानी की रचना उसके आवश्यक तत्वों – कथावस्तु, घटना, पात्र आदि के बिना संभव नहीं होती। घटना तथा कथावस्तु कहानी को आगे बढ़ाते हैं, पात्रों द्वारा संवाद कहे जाते हैं। बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी नहीं लिखी जा सकती। जैसे नवाब साहब का केवल खीरे सूंघकर पेट भरने का दिखावा व्यर्थ है, वैसे ही बिना सारभूत तत्वों के कहानी लेखन भी निरर्थक है।
🔸 प्रश्न 4:
आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?
उत्तर:
इस कहानी का नाम ‘झूठी शान’ भी रखा जा सकता है क्योंकि नवाब ने अपनी झूठी शान-शौकत को बरकरार रखने के उद्देश्य से अपनी इच्छा को नष्ट कर दिया। इसके अलावा ‘नवाबी तनक’, ‘नवाबी प्रदर्शन’, या ‘रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई’ जैसे शीर्षक भी दिए जा सकते हैं।
🟡 रचना और अभिव्यक्ति
🔸 प्रश्न 5:
नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
सेकंड क्लास के डिब्बे में नवाब साहब खीरा खाने की इच्छा से दो ताजे खीरे एक तौलिए पर रखे थे। उन्होंने खीरे को खिड़की से बाहर निकालकर लोटे के पानी से धोया, तौलिए से सुखाया, जेब से चाकू निकाला, सलीके से छिला, पतली फाँकें बनाई और करीने से सजाया। फिर जीरा मिला नमक और मिर्च छिड़का। अंत में एक-एक फाँक को सूँघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया।
🔸 प्रश्न 6:
किन-किन चीज़ों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं?
उत्तर:
फल खाने के लिए उन्हें धोना, काटना व मसाला लगाना होता है। सब्जी के लिए साफ करना, पकाना, रोटी के लिए आटा गूँधना, बेलना, सेंकना पड़ता है। चाय बनाने के लिए पानी उबालना, चायपत्ती, चीनी, दूध डालना होता है। मिठाई के लिए विशेष विधि व सामग्री चाहिए होती है।
🔸 प्रश्न 7:
खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए।
उत्तर:
लखनऊ के नवाब शतरंज खेलने में इतने मग्न रहते थे कि अंग्रेजों के हमले की सूचना मिलने पर भी वे जूते पहनाने के लिए अर्दली को बुलाते रहे। अर्दली न मिलने पर वे खुद जूते नहीं पहन सके और अंग्रेजों द्वारा बंदी बना लिए गए। यह उनकी सनक का एक उदाहरण है।
🔸 प्रश्न 8:
क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हाँ, सकारात्मक सनक रचनात्मक कार्यों में लगन को जन्म देती है। जैसे ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की मिसाइलों की सनक, मदर टेरेसा की गरीबों की सेवा की सनक, महात्मा बुद्ध की सत्य की खोज की सनक। ताजमहल, इमामबाड़ा जैसे स्मारक भी शाही सनकों के परिणाम हैं। ऐसी सनक सफलता का कारण बनती है।
🔵 भाषा अध्ययन
🔸 प्रश्न 9:
निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए:
🔹 (क) एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
उत्तर: बैठे थे – अकर्मक क्रिया
🔹 (ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
उत्तर: दिखाया – सकर्मक क्रिया
🔹 (ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
उत्तर: है – सकर्मक क्रिया
🔹 (घ) अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
उत्तर: खरीदे होंगे – सकर्मक क्रिया
🔹 (ङ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
उत्तर: निकाला – सकर्मक क्रिया
🔹 (च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से खीरे की फाँकों की ओर देखा।
उत्तर: देखा – सकर्मक क्रिया
🔹 (छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
उत्तर: लेट गए – अकर्मक क्रिया
🔹 (ज) जेब से चाकू निकाला।
उत्तर: निकाला – सकर्मक क्रिया
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🔸 प्रश्न 1:
यशपाल का जन्म कब हुआ था?
(क) 1903 में
(ख) 1905 में
(ग) 1909 में
(घ) 1911 में
उत्तर: (क) 1903 में
🔸 प्रश्न 2:
लखनवी अंदाज़ कहानी का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(क) लखनऊ की संस्कृति का चित्रण करना
(ख) पतनशील सामंती वर्ग पर व्यंग्य करना
(ग) नवाबी परंपराओं का महिमामंडन करना
(घ) खीरे की महत्ता दिखाना
उत्तर: (ख) पतनशील सामंती वर्ग पर व्यंग्य करना
🔸 प्रश्न 3:
लेखक ने सेकंड क्लास का टिकट क्यों खरीदा?
(क) पैसे की बचत करने के लिए
(ख) भीड़ से बचकर नई कहानी के बारे में सोचने के लिए
(ग) नवाब साहब से मिलने के लिए
(घ) प्रथम श्रेणी उपलब्ध नहीं थी
उत्तर: (ख) भीड़ से बचकर नई कहानी के बारे में सोचने के लिए
🔸 प्रश्न 4:
नवाब साहब ने खीरे की फाँकों का क्या किया?
(क) उन्हें खाया
(ख) लेखक को दिया
(ग) सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया
(घ) यात्रा के लिए रख लिया
उत्तर: (ग) सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया
🔸 प्रश्न 5:
यशपाल की मृत्यु कब हुई?
(क) 1975 में
(ख) 1976 में
(ग) 1977 में
(घ) 1980 में
उत्तर: (ख) 1976 में
🟡 5 लघु उत्तरीय प्रश्न
🔸 प्रश्न 1:
यशपाल के व्यक्तित्व की मुख्य विशेषताएं क्या थीं?
उत्तर:
यशपाल एक प्रगतिशील विचारक और क्रांतिकारी थे। वे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे और समाजवादी विचारधारा के समर्थक थे। उनके साहित्य में यथार्थवाद, व्यंग्य, सामाजिक न्याय की भावना प्रमुख है। वे कुशल लेखक और साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता थे।
🔸 प्रश्न 2:
नवाब साहब ने लेखक के सामने खीरे खाने का नाटक क्यों किया?
उत्तर:
नवाब साहब अपनी झूठी नवाबी शान बनाए रखना चाहते थे। वे खीरा खाना चाहते थे लेकिन लेखक के सामने खीरे जैसी साधारण वस्तु खाना उनकी प्रतिष्ठा के विरुद्ध लगता। इसलिए उन्होंने केवल सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया।
🔸 प्रश्न 3:
‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक की सार्थकता बताइए।
उत्तर:
शीर्षक सार्थक है क्योंकि इसमें लखनऊ की तहजीब और नवाबी संस्कृति पर व्यंग्य किया गया है। नवाब साहब का दिखावटी व्यवहार लखनवी अंदाज़ की विकृति को दर्शाता है, न कि उसकी गरिमा को।
🔸 प्रश्न 4:
लेखक को नवाब साहब के व्यवहार से क्या संदेश मिला?
उत्तर:
लेखक को समझ आया कि जैसे खीरे की गंध से पेट नहीं भरता, वैसे ही बिना कथानक, पात्र और घटना के कहानी भी नहीं लिखी जा सकती। यह बिना सार वाली लेखनी पर व्यंग्य है।
🔸 प्रश्न 5:
यशपाल की भाषा शैली की क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर:
यशपाल की भाषा सरल, व्यावहारिक और व्यंग्यात्मक है। उन्होंने हिंदी के साथ उर्दू-फारसी के शब्दों का प्रयोग किया है। उनकी शैली में संवेदना, चित्रात्मकता और समाजपरक दृष्टिकोण प्रमुख हैं।
🔵 4 मध्यम उत्तरीय प्रश्न
🔸 प्रश्न 1:
नवाब साहब के चरित्र का विश्लेषण करते हुए बताइए कि वे किस सामाजिक वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
उत्तर:
नवाब साहब पतनशील सामंती वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे खोई हुई रुतबे की स्मृति में जीते हैं और दिखावे में विश्वास रखते हैं। उनकी मानसिकता में हीनता, बनावट और सामाजिक भय छिपा है। खीरे को न खाना और केवल सूंघकर फेंकना उनकी नकली गरिमा और आत्मप्रवंचना को दर्शाता है।
🔸 प्रश्न 2:
‘लखनवी अंदाज़’ कहानी के माध्यम से यशपाल ने किन सामाजिक समस्याओं पर प्रकाश डाला है?
उत्तर:
लेखक ने दिखावेपन, वर्गीय भेदभाव, पतनशील सामंतवाद और मानसिक दासता जैसी समस्याओं को उजागर किया है। उन्होंने यह बताया कि लोग अपनी वास्तविक स्थिति से भागते हैं और दिखावे के लिए अस्वाभाविक व्यवहार करते हैं।
🔸 प्रश्न 3:
कहानी में प्रयुक्त व्यंग्य की तकनीक और उसकी प्रभावशीलता पर चर्चा करें।
उत्तर:
यशपाल ने परिस्थितिजन्य, चरित्रगत, भाषिक और सांकेतिक व्यंग्य का उपयोग किया है। नवाब साहब का खीरे को सजाकर फेंकना हास्य उत्पन्न करता है लेकिन साथ ही उनकी मानसिकता की गहराई को उजागर करता है। लेखक की व्यंग्यात्मकता कटु नहीं बल्कि करुणामय है।
🔸 प्रश्न 4:
कहानी की कलात्मक विशेषताओं का मूल्यांकन करते हुए इसकी समसामयिक प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कहानी में संरचनात्मक सौंदर्य, सजीव पात्र चित्रण, प्रतीकात्मकता और भाषा की कलात्मकता है। यह आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक है क्योंकि सोशल मीडिया के युग में दिखावा और स्टेटस सिंबल की होड़ बहुत बढ़ चुकी है।
🟣 1 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
🔸 प्रश्न:
‘लखनवी अंदाज़’ कहानी के शीर्षक से लेकर उसकी समाप्ति तक यशपाल ने किस प्रकार व्यंग्य के माध्यम से सामाजिक सत्य को उजागर किया है? कहानी की संपूर्ण विवेचना करते हुए इसकी कलात्मक उपलब्धियों और सामाजिक संदेश का विस्तृत मूल्यांकन करें।
उत्तर:
‘लखनवी अंदाज़’ एक गहन व्यंग्यात्मक रचना है जो दिखावे और आडंबर की संस्कृति पर करारा प्रहार करती है। यशपाल ने शीर्षक में ही लखनऊ की तहजीब पर तंज कसते हुए कहानी को बनावटी व्यवहार के माध्यम से व्यंग्यात्मक दिशा दी है।
नवाब साहब का चरित्र अतीत में जीते सामंती वर्ग का प्रतिनिधि है जो अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए नकली व्यवहार करता है। खीरे की सुगंध लेकर उन्हें फेंक देना, उनकी सनक और हीनता का प्रतीक है।
लेखक ने वर्णनात्मक शैली, प्रतीकात्मकता, और सूक्ष्म व्यंग्य का प्रयोग करके यह दिखाया है कि आज भी समाज दिखावे और बनावटी प्रतिष्ठा में फँसा हुआ है।
कहानी की समसामयिकता सोशल मीडिया युग में और भी बढ़ जाती है। यह कहानी हमें आत्मविश्लेषण करने के लिए प्रेरित करती है और यह संदेश देती है कि हमें दिखावे से बचकर, यथार्थ को स्वीकार करना चाहिए।
यह एक कालजयी रचना है जो अपने कलात्मक, सामाजिक और व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण के लिए सदैव स्मरणीय रहेगी।
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“पाठ में से गद्यांश एवं प्रश्नोत्तर”
“नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। हमें तस्लीम में सिर खम कर लेना पड़ा—यह है खानदानी तहज़ीब, नफ़ासत और नज़ाकत! हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, नफ़ीस या एक्सट्रेक्ट तरीका ज़रूर कहा जा सकता है परंतु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है? नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊँचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, ‘खीरा लज़ीज़ होता है लेकिन—सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।’ ज्ञान-चक्षु खुल गए! पहचान—ये हैं नयी कहानी के लेखक! खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से पेट भर जाने का डकार आ सकता है तो बिना विचार, घटना और पात्रों के, लेखक की इच्छा मात्र से ‘नयी कहानी’ क्यों नहीं बन सकती?”
प्रश्न (5×1 = 5)
1.ऊपर के अंश में “खीरा” का प्रसंग किस वैचारिक संकेत का रूपक बनता है?
(A) लखनवी खानपान की श्रेष्ठता का महिमामंडन
(B) नयी कहानी में केवल रस–सुगंध–कल्पना से तृप्ति मान लेने पर आलोचनात्मक प्रश्न
(C) नवाबी जीवन पद्धति का इतिहास-लेखन
(D) रसोइयों की असक्षमता का उपहास
उत्तर: (B)
2.“तस्लीम में सिर खम कर लेना पड़ा” और “ज्ञान-चक्षु खुल गए”—इन दोनों अभिव्यक्तियों का संयुक्त प्रभाव क्या दिखाता है?
(A) विनम्र स्वीकृति से वैचारिक प्रतिवाद तक की यात्रा
(B) बिना किसी मत-परिवर्तन के तटस्थता
(C) आत्मप्रशंसा की प्रवृत्ति
(D) केवल हास्य-उत्पादन
उत्तर: (A)
3.“भरे पेट के ऊँचे डकार” का कथानक-कार्य क्या है?
(A) शिष्टाचार का उल्लंघन दिखाकर हास-परिहास कराना
(B) “नफ़ासत” बनाम “उदर-तृप्ति” के द्वंद्व को मूर्त करना
(C) मेहमाननवाज़ी की प्रशंसा करना
(D) दैनंदिन जीवन का तटस्थ विवरण देना
उत्तर: (B)
4.सत्य संयोजन चुनिए—
(i) सुगंध–स्वाद–कल्पना को “सार-सत्त्व” जैसा तरीका कहना व्यंजना-प्रधान आलोचना है।
(ii) लेखक मानता है कि मात्र इच्छा से भी कहानी बन जानी चाहिए।
(iii) “सकील” कहना जठर-भार और रसास्वाद के टकराव को ध्वनित करता है।
(iv) अंश में नफ़ासत के साथ उदर-तृप्ति का प्रश्न रखकर द्विस्तरीय व्यंग्य रचा गया है।
विकल्प:
(A) (i), (iii) और (iv) केवल
(B) (ii) और (iv) केवल
(C) (i) और (ii) केवल
(D) (iii) केवल
उत्तर: (A)
5.कथन–कारण
कथन: लेखक “नयी कहानी” की रचना-दृष्टि पर प्रश्नचिह्न उठाता है।
कारण: उसके अनुसार विचार, घटना और पात्रों के बिना केवल संवेदन-कल्पना पर आधारित रचना पर्याप्त नहीं।
(A) कथन और कारण दोनों गलत हैं।
(B) कथन सही है, कारण गलत है।
(C) कथन तथा कारण दोनों सही हैं तथा कारण उसकी सही व्याख्या करता है।
(D) कथन सही है, किंतु कारण उसकी सही व्याख्या नहीं करता।
उत्तर: (C)
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