Class 10, Hindi

Class 10 : Hindi – Lesson 8 बालगोबिन :भगत रामवृक्ष बेनीपुरी

संक्षिप्त लेखक परिचय .

🌟 रामवृक्ष बेनीपुरी 🌟

📜 जन्म एवं जीवन परिचय
🔵 रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 23 दिसंबर 1899 ई. में मुजफ्फरपुर (बिहार) के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था।
🟢 वे बाल्यकाल से ही राष्ट्रप्रेम और समाजसेवा की भावना से ओतप्रोत थे।
💠 वे महात्मा गांधी के विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुए और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया, जिसके कारण उन्हें अनेक बार जेल भी जाना पड़ा।
🌿 बेनीपुरी जी का जीवन लेखनी और कर्म दोनों से राष्ट्र के प्रति समर्पण का प्रतीक रहा।
🕊️ उन्होंने शिक्षा, राजनीति, पत्रकारिता और साहित्य सभी क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया।

📚 साहित्यिक योगदान एवं कृतियाँ
✨ रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी साहित्य के प्रखर लेखक, निबंधकार और पत्रकार थे।
💫 उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं — ‘पतितों का देश’, ‘अमर देश’, ‘नेपाली चित्र’, ‘ज़ंजीरें और दीवारें’, ‘माटी की मूरतें’, तथा आत्मकथात्मक रचना ‘अंजलि और अर्चना’।
🌸 उनके निबंधों में ग्रामीण जीवन, समाज सुधार, स्त्री-शक्ति, राष्ट्रीय चेतना और लोकसंस्कृति की सजीव झलक मिलती है।
🟡 वे प्रगतिशील साहित्य आंदोलन के प्रमुख समर्थक रहे जिन्होंने साहित्य को सामाजिक यथार्थ से जोड़ा।
💎 बेनीपुरी को “जनसाधारण का साहित्यकार” कहा जाता है जिन्होंने हिंदी गद्य को जन-चेतना की भाषा में रूपांतरित कर दिया।

————————————————————————————————————————————————————————————————————————————

पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन


पाठ का विषय और मुख्य संदेश
बालगोबिन भगत रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण रेखाचित्र है जो एक साधारण गृहस्थ के असाधारण चरित्र की कहानी कहता है। यह पाठ दिखाता है कि साधुत्व का आधार बाहरी वेशभूषा नहीं बल्कि आंतरिक गुण और सिद्धांत होते हैं। लेखक के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि मानवीय मूल्यों और आदर्शों का पालन करते हुए व्यक्ति गृहस्थ जीवन में भी संन्यासी के समान जीवन जी सकता है।

बालगोबिन भगत का व्यक्तित्व और वेशभूषा
बालगोबिन भगत मंझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे जिनकी उम्र साठ वर्ष से अधिक थी। उनके बाल पक गए थे और वे लंबी दाढ़ी नहीं रखते थे। उनकी वेशभूषा अत्यंत सादी थी – कमर में लंगोटी और सिर पर कबीरपंथियों की कनफटी टोपी। सर्दियों में वे काली कमली ओढ़ लेते थे। माथे पर रामानंदी चंदन का टीका और गले में तुलसी की जड़ों की बेडौल माला उनकी पहचान थी।

जीवन के सिद्धांत और चारित्रिक विशेषताएं
बालगोबिन भगत कबीर को अपना साहब मानते थे और उनके आदर्शों का पूर्ण पालन करते थे। उनके चरित्र की प्रमुख विशेषताएं थीं:

कभी झूठ नहीं बोलते थे और खरा व्यवहार रखते थे

किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते थे

बिना अनुमति के किसी की चीज़ नहीं छूते थे

अपनी संपूर्ण फसल को कबीरपंथी मठ में अर्पित करते थे और प्रसाद स्वरूप जो मिलता उसी से गुजारा करते थे

उनमें लालच बिल्कुल नहीं था

संगीत साधना और गायन कला
बालगोबिन भगत की संगीत साधना उनकी आत्मा का हिस्सा थी। आषाढ़ के दिनों में जब समूचा गांव खेतों में काम कर रहा होता, तब वे कीचड़ में लथपथ होकर धान की रोपनी करते हुए कबीर के पद गाते थे। उनका मधुर गायन पूरे माहौल को मोहित कर देता था। भादो की अंधियारी में उनकी खंजरी बजती थी और कार्तिक मास में उनकी प्रभातियां शुरू हो जातीं।

सामाजिक रूढ़ियों का विरोध
बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं के विरुद्ध खड़े होने का साहस रखते थे। जब उनका इकलौता बेटा मरा, तो उन्होंने परंपराओं को तोड़ते हुए:

मृत्यु पर शोक मनाने के बजाय उत्सव मनाने को कहा

अपनी पुत्रवधू से ही अपने बेटे की चिता को आग दिलवाई

श्राद्ध की अवधि पूरी होते ही पुत्रवधू के दूसरे विवाह की व्यवस्था की

यह सब उस समय के हिसाब से अत्यंत क्रांतिकारी कदम थे जब विधवा विवाह का प्रचलन नहीं था।

दिनचर्या और आत्मिक अनुशासन
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के आश्चर्य का कारण थी। वे वृद्धावस्था में भी सर्दी की सुबह अंधेरे में उठकर गांव से दो मील दूर गंगा स्नान करने जाते थे। हर वर्ष तीस कोस दूर गंगा स्नान को पैदल जाते थे, पूरे दिन उपवास रखते थे। उनका नियम-व्रत का पालन अटूट था।

अंतिम यात्रा और मृत्यु
बालगोबिन भगत की मृत्यु भी उनके चरित्र के अनुरूप ही हुई। बुढ़ापे में शरीर कमजोर हो जाने पर भी उन्होंने अपनी दिनचर्या नहीं छोड़ी। एक दिन संध्या में गाना गाया लेकिन भोर में उनका गीत नहीं सुना गया – जाकर देखा तो पता चला कि बालगोबिन भगत इस संसार को छोड़कर चले गए थे।

पाठ का संदेश
यह पाठ मानवीय मूल्यों की सर्वोपरिता को दर्शाता है। बालगोबिन भगत का जीवन सिखाता है कि सच्चा साधुत्व बाहरी आडंबर में नहीं बल्कि आंतरिक पवित्रता और सिद्धांतों के पालन में होता है। उनका चरित्र ग्रामीण जीवन की सच्चाई और लोक संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है।


————————————————————————————————————————————————————————————————————————————

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न


प्रश्न 1: खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे?
उत्तर: बालगोबिन भगत एक गृहस्थ थे परन्तु उनमें साधु कहलाने वाले गुण भी थे:

>कबीर के आदर्शों पर चलते थे और उन्हीं के गीत गाते थे

>कभी झूठ नहीं बोलते थे, खरा व्यवहार रखते थे

>किसी से भी सीधी बात करने में संकोच नहीं करते थे, न किसी से झगड़ा करते थे

>किसी की चीज़ नहीं छूते थे न ही बिना पूछे व्यवहार में लाते थे

>अपनी फसल को ईश्वर की संपत्ति मानते थे और कबीरमठ में अर्पित कर देते थे

>उनमें लालच बिल्कुल भी नहीं था

प्रश्न 2: भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उत्तर: भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहती थी क्योंकि भगत के बुढ़ापे का वह एकमात्र सहारा थी। पुत्रवधू को इस बात की चिंता थी कि यदि वह भी चली गई, तो भगत के लिए भोजन कौन बनाएगा। यदि भगत बीमार हो गए, तो उनकी सेवा-शुश्रूषा कौन करेगा। उसके चले जाने के बाद भगत की देखभाल करने वाला और कोई नहीं था।

प्रश्न 3: भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं?
उत्तर: बेटे की मृत्यु पर भगत ने पुत्र के शरीर को एक चटाई पर लिटा दिया, उसे सफेद चादर से ढक दिया तथा वे कबीर के भक्ति गीत गाकर अपनी भावनाएँ व्यक्त करने लगे। भगत ने अपनी पुत्रवधू से कहा कि यह रोने का नहीं बल्कि उत्सव मनाने का समय है। उनके अनुसार आत्मा परमात्मा के पास चली गई है, विरहिणी आत्मा अपने प्रियतम से जा मिली है। उन दोनों के मिलन से बड़ा आनंद और कुछ नहीं हो सकता।

प्रश्न 4: भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:

व्यक्तित्व: भगतजी गृहस्थ होते हुए भी वास्तव में सन्यासी थे। उनका आचार-व्यवहार इतना पवित्र और आदर्शपूर्ण था कि वे परिवार के होते हुए भी वास्तव में संन्यासी थे। वे अपने किसी काम के लिए दूसरों को कष्ट नहीं देना चाहते थे। बिना अनुमति के किसी की वस्तु को हाथ नहीं लगाते थे।

वेशभूषा: बालगोबिन भगत मझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे। साठ से ऊपर की उम्र थी और बाल पक गए थे। कपड़े बिल्कुल कम पहनते थे। कमर में लंगोटी पहनते और सिर पर कबीरपंथियों की सी कनफटी टोपी। सर्दियों में ऊपर से कम्बल ओढ़ लेते। माथे पर रामानंदी चंदन का टीका और गले में तुलसी की जड़ों की बेडौल माला पहने रहते।

प्रश्न 5: बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
उत्तर: बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण इसलिए बन गई थी क्योंकि वे जीवन के सिद्धांतों और आदर्शों का अत्यंत गहराई से पालन करते हुए उन्हें अपने आचरण में उतारते थे। वृद्धावस्था होने के बावजूद भी उनमें स्फूर्ति की कमी नहीं थी। सर्दी के मौसम में भी, भरे बादलों वाले भादों की आधी रात में भी वे भोर में सबसे पहले उठकर गाँव से दो मील दूर स्थित गंगा स्नान करने जाते थे।

प्रश्न 6: पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर: बालगोबिन भगत के गीतों में एक विशेष प्रकार का आकर्षण था। कबीर के पद उनके कंठ से निकलकर संजीव हो उठते थे। उनके कंठ की मधुरता इतनी मनमोहक थी कि लोग के गीत सुनकर उसे गुनगुनाने लगते थे। उनके गीत का मनमोहक प्रभाव सारे वातावरण में छा जाता था। खेतों में काम करने वाले लोगों के पैर तल से उठने लगते थे और उनकी अंगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती थीं।

प्रश्न 7: कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: कुछ प्रसंग ऐसे थे जो यह बताते थे कि भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे:

पुत्र की मृत्यु पर: भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर शोक नहीं मनाया बल्कि उत्सव मनाने को कहा

अंतिम संस्कार: उन्होंने अपने पुत्र की चिता को अपनी बहू से ही आग दिलवाई, जबकि समाज में ऐसी परंपरा नहीं थी

विधवा विवाह: श्राद्ध की अवधि पूरी होते ही उन्होंने अपनी पुत्रवधू के भाई को बुलाकर उसके दूसरे विवाह का आदेश दिया, जो उस समय समाज में स्वीकार्य नहीं था

प्रश्न 8: धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर: आषाढ़ की रिमझिम में जब समूचा गाँव खेतों में उतर पड़ा होता था, धान के पानी-भरे खेतों में बच्चे उछल रहे होते थे, औरतें कलेवा लेकर मेड़ पर बैठी होती थीं। ऐसे समय में बालगोबिन भगत का संगीत एक स्वर-तरंग की तरह झंकार कर उठता था। वे अपने खेत में रोपनी करते हुए कबीर के पदों को इतने मधुर स्वर में गाते कि बच्चे खेलते हुए झूम उठते, मेड़ पर खड़ी औरतों के होंठ काँप उठते और वे गुनगुनाने लगतीं। हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते और रोपनी करने वालों की अंगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती थीं।

रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 9: पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?
उत्तर: भगत की कबीर पर श्रद्धा निम्नलिखित रूपों में प्रकट हुई है:

भगत अपनी फसल को ईश्वर की संपत्ति मानते थे, वे फसलों को कबीरमठ में अर्पित कर देते थे तथा वहाँ से जो प्रसाद के रूप में मिलती थी केवल उनका ही उपयोग करते थे

वे कबीर की भाँति ही हर गाँव और गली घूमकर भक्ति गीत गाया करते थे

उनकी वेशभूषा भी कबीर जैसी ही थी

वह कबीर की भाँति ही गृहस्थ होकर भी साधु समान जीवन व्यतीत करते थे

कबीर के समान ही भगत भी मृत्यु को शोक का नहीं बल्कि उत्सव का अवसर मानते थे

प्रश्न 10: आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?
उत्तर: भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के निम्नलिखित कारण रहे होंगे:

कबीर के सरल और सहज उपदेश भगत के मन को भाते थे

कबीर का निर्गुण भक्ति का मार्ग भगत को आकर्षित करता था

कबीर की सामाजिक कुरीतियों के विरोध की भावना भगत में भी थी

कबीर का गृहस्थ होकर भी साधु जैसा जीवन जीना भगत के लिए आदर्श था

प्रश्न 11: गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर: गाँव का परिवेश उल्लास से इसलिए भर जाता था क्योंकि आषाढ़ चढ़ते ही रिमझिम बारिश होती थी जिसमें भगत अपने सुरीले कंठ से मधुर गीत गाते थे। इसके प्रभाव से सब झूमने लगते थे और स्त्रियाँ गीत गुनगुनाने लगती थीं। खेती-बारी का काम शुरू हो जाता था जो किसानों के लिए खुशी का विषय था।

प्रश्न 12: “ऊपर की तस्वीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।” क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है?
उत्तर: साधु की पहचान उनके पहनावे के आधार पर नहीं की जानी चाहिए। उनकी पहचान उनके आदर्शों, सिद्धांतों, व्यवहार तथा जीवन प्रणाली के आधार पर की जानी चाहिए। यदि किसी व्यक्ति का आचरण सत्य, अहिंसा, ईश्वर प्रेम, लोक कल्याण, त्याग तथा जीवन सात्विक है तब यह सुनिश्चित हो जाता है कि वह व्यक्ति साधु है।

प्रश्न 13: मोह और प्रेम में अन्तर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे?
उत्तर: मोह और प्रेम में अन्तर होता है, भगत को अपने पुत्र और पुत्रवधू से बहुत प्रेम था। अपने पुत्र की मृत्यु के पश्चात वह चाहते तो मोहवश अपनी पुत्रवधू को अपने पास रोक सकते थे परन्तु उन्होंने अपनी पुत्रवधू की भलाई तथा उसकी खुशी की चिंता करते हुए उसे ज़बरदस्ती अपने भाई के साथ भेज दिया और उसके दूसरे विवाह का निर्णय लिया।

भाषा-अध्ययन
प्रश्न 14: इस पाठ में आए कोई दस क्रिया विशेषण छाँटकर लिखिए और उसके भेद भी बताइए।
उत्तर: इस पाठ में आए क्रिया विशेषण:

धीरे-धीरे – रीतिवाचक क्रियाविशेषण

जब-जब – कालवाचक क्रियाविशेषण

थोड़ा – परिमाणवाचक क्रियाविशेषण

उस दिन भी संध्या – कालवाचक क्रियाविशेषण

बिल्कुल कम – परिमाणवाचक क्रियाविशेषण

सवेरे ही – कालवाचक क्रियाविशेषण

हर वर्ष – कालवाचक क्रियाविशेषण

दिन-दिन – कालवाचक क्रियाविशेषण

हँसकर – रीतिवाचक क्रियाविशेषण

जमीन पर – स्थानवाचक क्रियाविशेषण

————————————————————————————————————————————————————————————————————————————

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1 (60 शब्द):
बालगोबिन भगत के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता क्या थी?
उत्तर:
बालगोबिन भगत की सबसे बड़ी विशेषता थी उनकी निर्लिप्तता और त्याग भावना। उन्होंने भक्ति को जीवन का केंद्र बनाया और कभी भी सांसारिक सुखों की परवाह नहीं की। पत्नी और बेटे की मृत्यु के बाद भी वे अपने भजन में लीन रहे और भगवान को अपना सर्वस्व मानते रहे।

प्रश्न 2 (60 शब्द):
बालगोबिन भगत खेत में किस भावना से काम करते थे?
उत्तर:
बालगोबिन भगत खेत में काम को ईश्वर की सेवा मानकर करते थे। वे हल जोतते समय भी भजन गाते थे और खेती से प्राप्त अनाज को स्वयं न रखकर जरूरतमंदों में बाँट देते थे। उनकी खेती केवल जीविका नहीं, भक्ति और परोपकार का माध्यम थी।

प्रश्न 3 (60 शब्द):
भगत जी की भक्ति में कौन-सी विशेषता थी?
उत्तर:
भगत जी की भक्ति स्वार्थहीन, एकनिष्ठ और निष्काम थी। वे केवल भगवान की भक्ति में ही सुख पाते थे। वे संकीर्तन करते, प्रभात फेरियाँ निकालते और भजन में इतना लीन रहते कि उन्हें समय और संसार की सुध नहीं रहती थी। उनके लिए भक्ति ही जीवन था।

प्रश्न 4 (120 शब्द):
बालगोबिन भगत के व्यवहार से समाज को क्या सीख मिलती है?
उत्तर:
बालगोबिन भगत का जीवन समाज को त्याग, निष्काम सेवा, भक्ति और परोपकार की शिक्षा देता है। उन्होंने दिखाया कि सच्ची भक्ति केवल मंदिरों में पूजा करने से नहीं, बल्कि निष्कलंक जीवन जीने से होती है। वे बिना किसी दिखावे के समाज की सेवा करते थे और कभी किसी से सहायता की अपेक्षा नहीं रखते थे। उनके जीवन में सादगी और सच्चाई स्पष्ट झलकती थी। वे दूसरों के दुःख में सहभागी होते, लेकिन अपने दुःख को ईश्वर की इच्छा मानकर सहन करते। उनका जीवन आज के समाज के लिए एक आदर्श है कि कैसे सीमित संसाधनों में भी दूसरों की भलाई की जा सकती है। भगत जी का व्यवहार समाज को आत्मिक शुद्धता और समर्पण की प्रेरणा देता है।

प्रश्न 5 (120 शब्द):
बालगोबिन भगत की भक्ति रामभक्ति के किस स्वरूप को दर्शाती है?
उत्तर:
बालगोबिन भगत की भक्ति रामभक्ति के निष्काम, भक्तिमार्गीय और समर्पणपूर्ण स्वरूप को दर्शाती है। वे किसी चमत्कार या वरदान की चाह नहीं रखते थे, बल्कि उनका जीवन ही एक अविरत रामस्मरण था। वे प्रभात फेरियों में, खेत जोतते समय, यहां तक कि अपने पुत्र की मृत्यु पर भी रामनाम में लीन रहे। उनकी भक्ति गूढ़, आत्मिक और पूर्ण समर्पण से युक्त थी। वे भगवान को मित्र, स्वामी और परमात्मा तीनों रूपों में मानते थे। उन्होंने कभी भगवान से कुछ माँगा नहीं, बल्कि अपना सब कुछ भगवान को अर्पित कर दिया। उनकी भक्ति से यह स्पष्ट होता है कि सच्चा भक्त वही होता है जो अपने दुःख-सुख में भी भगवान के नाम का सुमिरन करता है, बिना किसी अपेक्षा के।

————————————————————————————————————————————————————————————————————————————


“किंतु, खेतीबारी करते, परिवार रखते भी, बालगोबिन भगत साधु थे—साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले। कबीर को ‘साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा। मोल लेते। किसी की चीज़ नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते। इस नियम को कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतूहल होता!—कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते! वह गृहस्थ थे; लेकिन उनकी सब चीज ‘साहब’ की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते—जो उनके घर से चार कोस दूर पर था—एक कबीरपंथी मठ से मतलब! वह दरबार में ‘भेंट’ रूप रख लिया जाता ‘प्रसाद’ रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुजर चलाते!”


प्रश्न (5×1 = 5)


1.“वह गृहस्थ थे; लेकिन उनकी सब चीज ‘साहब’ की थी”—यहाँ बालगोबिन के आचरण का मूल नैतिक कौन-सा उभरता है?
(A) सत्य, अपरिग्रह और आज्ञापालन का संयुक्त अनुशासन
(B) उदारता के साथ भोगलालसा
(C) प्रदर्शनप्रियता और लोक-प्रशंसा-लाभ
(D) कर्म-त्याग और वैराग्य से पलायन
उत्तर: (A)


2.पूरे अनुच्छेद के लहजे का सर्वोत्तम निर्धारण कौन-सा है?
(A) कटु-व्यंग्य और निन्दा-प्रधान लेखन
(B) सूखा प्रशासनिक विवरण
(C) रोमांच-प्रधान नाट्य-वर्णन
(D) प्रशंसात्मक कथा-वर्णन जिसमें हल्का विनोद और आदर्श-स्थापन साथ चलता है
उत्तर: (D)


3.लेखक के अनुसार बालगोबिन “दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते”—इस व्यवहार का सर्वाधिक युक्तिसंगत कारण क्या है?
(A) केवल स्वच्छता-आंदोलन का प्रभाव
(B) अनधिकार-चेष्टा का निषेध और पर-सम्पत्ति के प्रति मर्यादा
(C) राजकीय दण्ड का भय
(D) छुआछूत की धारणा
उत्तर: (B)


4.निम्न कथनों में से सत्य संयोजन चुनिए—
(i) खेत की उपज पहले ‘साहब’ के दरबार में ले जाई जाती थी।
(ii) दरबार में उसे ‘भेंट’ रखा जाता और ‘प्रसाद’ जो मिलता, उसी से घर चलता।
(iii) बालगोबिन उसी कबीरपंथी मठ में स्थायी रूप से निवास करते थे।
(iv) परिवार और खेतीबारी रखते हुए भी वे “साधु की सब परिभाषाओं” में खरे उतरते थे।
विकल्प:
(A) केवल (i), (ii) और (iv)
(B) केवल (ii) और (iii)
(C) केवल (i) और (iii)
(D) केवल (iii) और (iv)
उत्तर: (A)


5.कथन–कारण: उपयुक्त विकल्प चुनिए।
कथन: बालगोबिन अपनी निजी सम्पत्ति को ‘साहब’ की मानते थे।
कारण: इसलिए जो कुछ खेत में पैदा होता, उसे पहले दरबार में ‘भेंट’ रूप रखते और ‘प्रसाद’ लेकर लौटते।
(A) कथन और कारण दोनों गलत हैं।
(B) कथन सही है, कारण गलत है।
(C) कथन तथा कारण दोनों सही हैं तथा कारण उसकी सही व्याख्या करता है।
(D) कथन सही है, किंतु कारण उसकी सही व्याख्या नहीं करता।
उत्तर: (C)

————————————————————————————————————————————————————————————————————————————

Leave a Reply