Class 10, Hindi

Class 10 : Hindi – Lesson 2. तुलसीदास “राम–लक्ष्मण–परशुराम संवाद”


संक्षिप्त लेखक परिचय .

🌟 तुलसीदास 🌟

📜 जन्म एवं जीवन परिचय
🔵 तुलसीदास का जन्म लगभग 1532 ई. में राजापुर (जिला चित्रकूट, उत्तर प्रदेश) में हुआ था।
🟢 उनका बचपन अत्यंत कठिन परिस्थितियों में बीता, किंतु बाल्यावस्था से ही उनमें अद्भुत आध्यात्मिक झुकाव था।
💠 वे महान भक्त कवि रामभक्ति संप्रदाय के प्रमुख प्रतिनिधि थे और भगवान श्रीराम के चरित्र को लोकभाषा में जन-जन तक पहुँचाया।
🌿 कहा जाता है कि उन्होंने काशी में रहकर अपना अधिकांश जीवन साहित्य रचना और भक्ति प्रचार में व्यतीत किया।
🕊️ तुलसीदास का जीवन त्याग, श्रद्धा, भक्ति और समाजसेवा का अद्भुत उदाहरण है।

📚 साहित्यिक योगदान एवं कृतियाँ
✨ तुलसीदास हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं जिन्होंने ‘रामचरितमानस’ जैसी कालजयी कृति की रचना की।
💫 उनकी अन्य प्रसिद्ध कृतियाँ हैं — ‘विनय पत्रिका’, ‘कवितावली’, ‘गीतावली’, ‘हनुमान चालीसा’, तथा ‘दोहे’।
🌸 उन्होंने अवधी और ब्रजभाषा को भक्ति-रस से सराबोर किया और लोकभाषा को साहित्य की गरिमा प्रदान की।
💎 तुलसीदास को “अखिल हिंदी साहित्य के सूर्य” कहा जाता है जिन्होंने भक्ति, नीति और मानवता के आदर्शों को अमर बना दिया।

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन

राम लक्ष्मण परशुराम संवाद – भावार्थ और व्याख्या
प्रस्तावना

मूल पाठ और भावार्थ


#चौपाई 1
“नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥”

भावार्थ: परशुराम के क्रोध को देखकर श्रीराम विनम्रता से कहते हैं कि हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका दास ही होगा. राम का यह कथन उनकी मर्यादित वाणी और नम्र स्वभाव को दर्शाता है, जहाँ वे परशुराम के क्रोध को शांत करने का प्रयास कर रहे हैं.|

#चौपाई 2
“आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥”

भावार्थ: राम कहते हैं कि क्या आज्ञा है, मुझसे क्यों नहीं कहते? इस पर परशुराम क्रोधित होकर बोलते हैं. यहाँ राम की सेवाभावना और परशुराम के तीव्र स्वभाव का अंतर स्पष्ट होता है.

#चौपाई 3
“सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई॥”

भावार्थ: परशुराम कहते हैं कि सेवक वह होता है जो सेवा करे, शत्रु का काम करके तो लड़ाई ही करनी चाहिए. परशुराम यहाँ धनुष तोड़ने को शत्रुता का कार्य मानते हैं और इसे सेवा के विपरीत बताते हैं.

#चौपाई 4
“सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥”

भावार्थ: परशुराम राम से कहते हैं कि हे राम! जिसने शिवजी के धनुष को तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान मेरा शत्रु है. यहाँ परशुराम अपने पुराने शत्रु सहस्रबाहु का उदाहरण देकर अपनी शत्रुता की गहराई प्रकट करते हैं.

#चौपाई 5
“सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा॥”

भावार्थ: परशुराम कहते हैं कि वह इस समाज से अलग हो जाए, नहीं तो सभी राजा मारे जाएंगे. यह परशुराम की चुनौती है जो उनके क्रोध और शक्ति का प्रदर्शन करती है.

#चौपाई 6
“सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने॥”

भावार्थ: मुनि के वचन सुनकर लक्ष्मण मुस्कुराए और परशुराम का अपमान करते हुए बोले. यहाँ लक्ष्मण के वीर रस से भरे स्वभाव और निर्भयता का परिचय मिलता है.

#चौपाई 7
“बहु धनुहीं तोरीं लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं॥”

भावार्थ: लक्ष्मण व्यंग्य से कहते हैं कि हे गोसाईं! लड़कपन में हमने बहुत सी धनुहियाँ तोड़ डालीं, किंतु आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया. यह लक्ष्मण की चतुराई और व्यंग्यप्रियता को दर्शाता है.

#चौपाई 8
“एहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू॥”

भावार्थ: लक्ष्मण पूछते हैं कि इस धनुष पर इतनी ममता किस कारण से है? यह सुनकर भृगुवंश के ध्वज परशुराम और भी क्रोधित हो जाते हैं. लक्ष्मण का यह प्रश्न परशुराम के अहंकार पर प्रहार करता है.

दोहा
“रे नृप बालक काल बस बोलत तोहि न सँभार। धनुही सम तिपुरारि धनु बिदित सकल संसार॥”

भावार्थ: परशुराम क्रोध में कहते हैं कि अरे राजपुत्र! काल के वश में होकर तुझे बोलने में कुछ भी होश नहीं है. सारे संसार में विख्यात शिवजी का यह धनुष क्या साधारण धनुष के समान है? यहाँ परशुराम शिव धनुष की महत्ता और अपने क्रोध को प्रकट करते हैं.

“लखन कहा हंसी हमरे जाना” से “परशु मोर अति घोर” तक के 8 चौपाई और 1 दोहे का विस्तृत भावार्थ निम्नलिखित है:

चौपाई 1
लखन कहा हँसि हमरें जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥

भावार्थ: लक्ष्मण जी ने हँसते हुए कहा – हे देव! सुनिए, हमारे जानने में तो सभी धनुष एक समान ही होते हैं। यहाँ लक्ष्मण जी परशुराम के क्रोध का उत्तर व्यंग्य के साथ दे रहे हैं और कह रहे हैं कि उनकी समझ में सभी धनुष एक जैसे होते हैं।

चौपाई 2
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें॥

भावार्थ: इस पुराने धनुष के टूटने में क्या हानि और क्या लाभ है? श्री रामचंद्र जी ने तो इसे नया समझकर भोलेपन से देखा था। लक्ष्मण जी यहाँ कह रहे हैं कि राम जी ने धनुष को एक सामान्य नया धनुष समझकर देखा था, उन्हें पता नहीं था कि यह इतना महत्वपूर्ण है।

चौपाई 3
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥

भावार्थ: यह धनुष तो छूते ही टूट गया, इसमें रघुनाथ जी का कोई दोष नहीं है। हे मुनि! आप बिना कारण के ही क्यों क्रोध कर रहे हैं? लक्ष्मण जी यहाँ स्पष्ट कर रहे हैं कि राम जी का कोई दोष नहीं है क्योंकि धनुष अपने आप ही टूट गया था।

चौपाई 4
बोले चितइ परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥

भावार्थ: परशुराम जी अपने फरसे की ओर देखकर बोले – अरे दुष्ट! तूने मेरा स्वभाव नहीं सुना है? यहाँ परशुराम जी लक्ष्मण के व्यंग्य से क्रोधित होकर अपने फरसे को दिखाते हुए धमकी दे रहे हैं।

चौपाई 5
बालकु बोलि बधउँ नहिं तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोह॥

भावार्थ: मैं तुझे बालक समझकर नहीं मार रहा हूँ। अरे मूर्ख! क्या तू मुझे केवल एक साधारण मुनि समझता है? परशुराम जी यहाँ अपने धैर्य और लक्ष्मण की नासमझी दोनों का उल्लेख कर रहे हैं।

चौपाई 6
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्व बिदित छत्रियकुल द्रोही॥

भावार्थ: मैं बाल ब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी हूँ। क्षत्रिय कुल का शत्रु होना तो संसार भर में प्रसिद्ध है। परशुराम जी यहाँ अपने स्वभाव और अपनी प्रसिद्धि के बारे में बता रहे हैं।

चौपाई 7
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥

भावार्थ: अपनी भुजाओं के बल से मैंने पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया है और अनेक बार उसे ब्राह्मणों को दान में दे दिया है। यहाँ परशुराम जी अपने पराक्रम और अपने द्वारा किए गए कार्यों का वर्णन कर रहे हैं।

चौपाई 8
सहसबाहु भुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥

भावार्थ: हे राजकुमार! सहस्रबाहु की भुजाओं को काटने वाले मेरे इस फरसे को देख। परशुराम जी यहाँ अपने फरसे की शक्ति का उदाहरण देते हुए सहस्रबाहु को मारने की घटना का स्मरण करा रहे हैं।

दोहा
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥

भावार्थ: हे राजकुमार! तू अपने माता-पिता को चिंता के वश में मत कर। मेरा फरसा बहुत भयानक है, यह गर्भ के बच्चों का भी नाश करने वाला है। परशुराम जी यहाँ अपने फरसे की भयानकता और शक्ति का वर्णन करते हुए लक्ष्मण को चेतावनी दे रहे हैं।

राम लक्ष्मण परशुराम संवाद – प्रत्येक पंक्ति का अलग भावार्थ
“बिहसी लखन बोले मृदु बानी” से “बोले गिरा गंभीर” तक

चौपाई 1
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी।
भावार्थ: लक्ष्मण जी हँसते हुए मधुर वाणी से बोले ।

अहो मुनीसु महाभट मानी॥
भावार्थ: अरे मुनिवर! आप अपने को बहुत बड़ा योद्धा मानते हैं ।

चौपाई 2
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु।
भावार्थ: आप बार-बार मुझे अपना कुल्हाड़ा दिखा रहे हैं ।

चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥
भावार्थ: जैसे आप फूंक मारकर पहाड़ को उड़ा देना चाहते हैं ।

चौपाई 3
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं।
भावार्थ: यहाँ कोई कुम्हड़े की छोटी कच्ची फली नहीं है ।

जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥
भावार्थ: जो तर्जनी अंगुली देखते ही मर जाती हों ।

चौपाई 4
देखि कुठारु सरासन बाना।
भावार्थ: आपका कुल्हाड़ा, धनुष और बाण देखकर ।

मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
भावार्थ: मैंने कुछ अभिमान के साथ कहा था ।

चौपाई 5
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी।
भावार्थ: आपको भृगु ऋषि का पुत्र समझकर और जनेऊ देखकर ।

जो कछु कहहु सहउँ रिस रोकी॥
भावार्थ: जो कुछ आप कहते हैं, उसे मैं क्रोध को रोककर सह लेता हूँ ।

चौपाई 6
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई।
भावार्थ: देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गाय पर ।

हमरे कुल इन्ह पर न सुराई॥
भावार्थ: हमारे कुल में इन पर वीरता नहीं दिखाई जाती ।

चौपाई 7
बधें पापु अपकीरति हारें।
भावार्थ: क्योंकि इन्हें मारने से पाप लगता है और हार जाने पर अपकीर्ति होती है ।

मारतहू पा परिअ तुम्हारें॥
भावार्थ: इसलिए आप मारें तो भी आपके पैर ही पड़ना चाहिए ।

चौपाई 8
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
भावार्थ: आपका एक-एक वचन करोड़ों वज्रों के समान कठोर है ।

ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा॥
भावार्थ: इसलिए आप धनुष-बाण और कुल्हाड़ा व्यर्थ ही धारण करते हैं ।

दोहा
जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर।
भावार्थ: इन्हें (हथियारों को) देखकर मैंने कुछ अनुचित कहा हो तो हे धैर्यवान महामुनि! क्षमा कीजिए ।

सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर॥
भावार्थ: यह सुनकर भृगुवंशमणि परशुराम जी क्रोध के साथ गंभीर वाणी से बोले ।

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद पाठ सार :


पाठ का परिचय
यह पाठ महाकवि तुलसीदास द्वारा रचित “रामचरितमानस” के बालकांड से लिया गया है। इसमें सीता स्वयंवर के बाद लौटते समय राम-लक्ष्मण और परशुराम के बीच हुए संवाद का वर्णन है। यह संवाद भारतीय संस्कृति में आदर्श चरित्र और गुरु-शिष्य परंपरा का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है।

घटना का प्रसंग
सीता स्वयंवर में राम द्वारा शिव धनुष तोड़ने के बाद जब वे सीता के साथ अयोध्या लौट रहे थे, तो रास्ते में परशुराम जी मिले। उन्होंने शिव धनुष टूटने की आवाज सुनी थी और क्रोधित होकर आए थे। वे जानना चाहते थे कि किसने यह दुस्साहस किया है।

परशुराम का क्रोध और चुनौती
परशुराम जी ने अपने गुरु शिव के धनुष को तोड़ने वाले को दंड देने की ठानी थी। उन्होंने अपना विष्णु धनुष निकालकर चुनौती दी कि जो इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा सके, वही वीर है। परशुराम का क्रोध इतना तीव्र था कि सभी डर गए थे।

लक्ष्मण की वीरता और निडरता
लक्ष्मण ने परशुराम के क्रोध को देखकर भी धैर्य नहीं खोया। उन्होंने साहस के साथ उत्तर दिया कि धनुष तोड़ना कोई बड़ी बात नहीं है। बचपन में वे ऐसे कई धनुष खेल-खेल में तोड़ चुके हैं। लक्ष्मण की इस निडरता और वीरता से परशुराम का क्रोध और भी बढ़ गया।

राम का शांत व्यवहार
जब स्थिति तनावपूर्ण हो गई, तो राम ने बड़े भाई की तरह हस्तक्षेप किया। उन्होंने अत्यंत विनम्रता से परशुराम जी को प्रणाम किया और लक्ष्मण की बात का बुरा न मानने की प्रार्थना की। राम ने कहा कि लक्ष्मण अभी बालक है और उसे क्षमा करना चाहिए।

परशुराम की परीक्षा
परशुराम जी ने राम की विनम्रता देखकर अपना विष्णु धनुष उन्हें दिया और कहा कि यदि वे इस पर प्रत्यंचा चढ़ा सकें तो वे उन्हें योद्धा मानेंगे। राम ने सहज भाव से धनुष उठाया और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाकर तैयार किया।

परशुराम की पहचान
जैसे ही राम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई, परशुराम जी को अपनी शक्ति का ह्रास महसूस हुआ। उन्होंने तुरंत पहचान लिया कि राम कोई साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं। उन्होंने राम से कहा कि वे उनकी परीक्षा ले रहे थे।

संदेश और शिक्षा
यह पाठ हमें सिखाता है कि सच्ची वीरता विनम्रता के साथ आती है। राम का शांत स्वभाव और लक्ष्मण का साहस दोनों ही आदर्श हैं। गुरु-शिष्य परंपरा में सम्मान का महत्व और सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता इस पाठ के मुख्य संदेश हैं।

साथ ही लक्ष्मण के असंयत व्यवहार, लक्ष्मण के चुटिले व्यंग्य, परशुराम के अतिशय क्रोध एवं मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के धीरगम्भीर स्वभाव का भी पता इस पाठ इस प्रसंग से लगता है.

इस संवाद से हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि क्रोध पर नियंत्रण रखना और परिस्थिति को समझकर उचित व्यवहार करना जीवन में अत्यंत आवश्यक है।


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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न


प्रश्न 1. परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने क्या तर्क दिए?
उत्तर. परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष टूटने के तर्क बताए:

बचपन में भी अनेक धनुष टूटे पर कभी क्रोध नहीं हुआ.

यह धनुष साधारण प्रतीत होता था.

टूटने पर कोई विशेष लाभ-हानि नहीं दिखता था.

प्रश्न 2. परशुराम के क्रोध पर राम और लक्ष्मण की प्रतिक्रियाएं कैसी थीं?
उत्तर. परशुराम के क्रोध पर राम और लक्ष्मण की प्रतिक्रियाएँ एवं स्वभाव:

राम: शांत, धैर्यवान, विनम्र; मधुर वाणी से परशुराम के क्रोध को शांत करने का प्रयास करते हैं.

लक्ष्मण: उग्र, व्यंग्यपूर्ण; परशुराम के अतिशयोक्ति पर तीखे व्यंग्य द्वारा विरोध व्यक्त करते हैं.

प्रश्न 3. पाठ का चुना हुआ अंश बताओ आपकी पसंद से.
उत्तर. संवाद का चुना हुआ अंश:

परशुराम: “शिवजी का धनुष तोड़ने का दुस्साहस किसने किया है?”
राम: “हे नाथ! इस शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला अवश्य ही आपका दास ही होगा।”

प्रश्न 4. इस पद्यांश के आधार पर परशुराम की क्या क्या विशेषता बताई गई है?
उत्तर.नीचे दिए पद्यांश के आधार पर परशुराम ने सभा में कहा कि वे बाल ब्रह्मचारी हैं एवं अतिक्रोधी प्रवृत्ति के हैं। उन्होंने अपनी भुजबल से अनेक क्षत्रिय राजाओं का दमन किया तथा ब्राह्मणों को भूमि दान में दी। उनका फरसा सहस्त्रबाहु की भुजा छेदन कर सकता है , गर्भस्थ शिशुओं को भी नष्ट कर सकता हैlपर लक्ष्मण उनकी हंसी उड़ा देते हैं

प्रश्न 5. लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या क्या विशेषताए बताई है ?
उत्तर.लक्ष्मण ने वीर योद्धा की विशेषताएँ बताईं:

युद्धभूमि में साहसपूर्वक लड़ना.

शांत, विनम्र, क्षमाशील, धैर्यवान एवं बुद्धिमान होना.

अहंकार त्यागकर दूसरों को आदर देना.

प्रश्न 6. “साहस शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर”,इस कथन पर आपके विचार .
उत्तर. “साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है” पर विचार:
साहस व शक्ति से कार्य पूर्ण होते हैं; विनम्रता संयम व आत्मिक सुख लाती है; विरोधी भी आदर करते हैं; इस संयोजन से व्यक्तित्व और कृत्य की पूर्णता प्राप्त होती है.

प्रश्न 7.”पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू” इन पक्तियों में लक्ष्मण क्या कह रहे है?
उत्तर. पंक्ति “पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू” का भाव:
यहां लक्ष्मण व्यंग्य में कहता है कि परशुराम बार-बार फरसा दिखाकर डराने की कोशिश कर रहे हैं, जैसे फूंक से पहाड़ उड़ाना चाह रहे हों.

प्रश्न 8. तुलसीदास के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियां लिखो.
उत्तर. तुलसीदास की भाषा-सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ:

अवधी भाषा मे रचित, तत्सम शब्दों का भरपूर प्रयोग.

दोहा, चौपाई एवं छंद का सुंदर संयोजन.

लयबद्धता व रसात्मकता विद्यमान.

अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा अलंकारों का सुयोग.

व्यंग्य-भंगिमा अनूठी.

वीर व रौद्र रस के साथ शांत रस का मिश्रण.

लोक-उपमाओं ने काव्य को सजीव किया.

प्रसंगानुकूल शब्द-चयन.

सहजता व गंभीरता का सामंजस्य.

भाव-पुष्ट उपमाएं व अलंकार कथा को मनोहर बनाते हैं.

प्रश्न 9. पूरे प्रसंग में व्यंग्य की अदभुत छटा है, सिद्ध कीजिए
उत्तर. पूरे प्रसंग में व्यंग्य का सौंदर्य उदाहरण:

“बहु धनुही तोरी लरिकाईं, कबहुँ न असि रिसकीन्हि गोसाईं” – बचपन में कई धनुष्य टूटे, उपहास से व्यंग्य

“मातु पितहि जनि सोचबस करसि… गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर” – गर्भवती माताओं के गर्भस्थ शिशुओं को नष्ट करने वाला फरसा; अतिशयोक्ति से व्यंग्य.

प्रश्न 10. अलंकार बताए
उत्तर. निम्न पंक्तियों में अलंकार पहचानें:

पंक्ति अलंकार प्रकार
(क) बालकु बोलि बधौं निहि तोही , अनुप्रास ‘ब’ वर्ण पुनरावृत्ति
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा, अनुप्रास & उपमा ‘क’ वर्ण अनुप्रास; वचन की तुलना वज्र से

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न


Q1 : बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
Q1. राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद किस ग्रंथ से लिया गया है?
A. रामचरितमानस
B. विनय पत्रिका
C. कवितावली
D. रामायण
उत्तर: A. रामचरितमानस


Q2. परशुराम का क्रोध किस कारण उत्पन्न होता है?
A. राम द्वारा रावण वध करने पर
B. शिव धनुष टूटने पर
C. लक्ष्मण के अपमान पर
D. सीता हरण पर
उत्तर: B. शिव धनुष टूटने पर


Q3. परशुराम किस अवतार के रूप में माने जाते हैं?
A. कृष्ण
B. वामन
C. नृसिंह
D. विष्णु के क्रोधित अवतार
उत्तर: D. विष्णु के क्रोधित अवतार


Q4. लक्ष्मण की वाणी की विशेषता क्या है?
A. गंभीरता और मौन
B. व्यंग्य और विनोद
C. डर और संकोच
D. अहंकार और क्रोध
उत्तर: B. व्यंग्य और विनोद


Q5. इस संवाद में तुलसीदास ने किस रस का प्रयोग अधिक किया है?
A. वीर रस
B. करुण रस
C. हास्य और वीर रस
D. श्रृंगार रस
उत्तर: C. हास्य और वीर रस

Q6 to Q10: एक पंक्ति या एक शब्द के उत्तर
Q6. राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद किस कांड में आता है?
उत्तर: बालकांड


Q7. परशुराम को क्रोध क्यों आया?
उत्तर: शिव धनुष टूटने के कारण


Q8. संवाद में मुख्य रूप से किस प्रकार की भाषा है?
उत्तर: व्यंग्यात्मक और शिष्ट


Q9. लक्ष्मण किस भाव से परशुराम से बात करते हैं?
उत्तर: विनोदपूर्ण व्यंग्य से


Q10. परशुराम किस वंश से हैं?
उत्तर: भृगु वंश

Q11 to Q14: लगभग 60 शब्दों में उत्तर
Q11. राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर: इस संवाद का उद्देश्य है शिव धनुष टूटने पर परशुराम के क्रोध को दिखाना और लक्ष्मण द्वारा व्यंग्यपूर्वक उन्हें शांत करने का प्रयास। संवाद में वीरता, विनोद, और भक्ति के भाव साथ-साथ चलते हैं। यह तुलसीदास की काव्यकला और पात्रों की मनोस्थिति का सुंदर चित्रण है।


Q12. परशुराम का स्वभाव संवाद में कैसा प्रतीत होता है?
उत्तर: परशुराम का स्वभाव अत्यंत उग्र और तेजस्वी दिखाया गया है। वे शिव धनुष टूटने की बात सुनते ही क्रोधित हो उठते हैं और इसे अपने ईश्वर का अपमान मानते हैं। उनकी भाषा में चुनौती और क्रोध दोनों स्पष्ट झलकते हैं, जो उनके तपस्वी और योद्धा रूप को दर्शाता है।


Q13. लक्ष्मण के संवादों में हास्य और व्यंग्य कैसे प्रकट होता है?
उत्तर: लक्ष्मण अपने वचनों में परशुराम की उग्रता पर चुटकी लेते हैं। वे उनके वंश, अस्त्र और स्वभाव पर हास्यात्मक शैली में व्यंग्य करते हैं, परंतु मर्यादा का उल्लंघन नहीं करते। उनकी बातें तेज भी हैं और विनोदी भी, जिससे पाठ में हल्का-फुल्का हास्य उत्पन्न होता है।


Q14. तुलसीदास की भाषा की विशेषता क्या है?
उत्तर: तुलसीदास की भाषा अवधी है, जिसमें सहजता, माधुर्य और लोकप्रियता है। उन्होंने शुद्ध, भावपूर्ण और अलंकारयुक्त शैली में संवादों की रचना की है। उनकी भाषा में धार्मिकता, वीरता, भक्ति और काव्य सौंदर्य का समन्वय मिलता है।

Q15 & Q16: लगभग 150 शब्दों में उत्तर
Q15. राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद में तुलसीदास ने किस प्रकार वीरता और हास्य का समन्वय किया है?
उत्तर: इस संवाद में तुलसीदास ने एक ओर परशुराम की वीरता और गर्व को दर्शाया है, तो दूसरी ओर लक्ष्मण के व्यंग्यात्मक उत्तरों के माध्यम से हास्य का पुट जोड़ा है। परशुराम जैसे योद्धा का उग्र रूप और क्रोध उनके संवादों से झलकता है, वहीं लक्ष्मण अपनी बातों में व्यंग्य और शिष्ट हास्य से माहौल को हल्का करते हैं। राम की गंभीर और शांत वाणी दोनों के मध्य संतुलन स्थापित करती है। संवाद में वीर रस की प्रधानता है परन्तु तुलसीदास ने उसे गंभीरता से बोझिल न बनाकर हास्य और विनोद से रोचक बना दिया है। यह दृश्य पाठकों को रोमांचित भी करता है और आनंदित भी। तुलसीदास की संवाद रचना शैली, पात्रों के स्वभाव अनुरूप भाषा चयन और रसों का संतुलन इस संवाद को उत्कृष्ट बनाता है।


Q16. तुलसीदास के व्यक्तित्व और काव्यशैली की विशेषताएँ इस संवाद के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद तुलसीदास के व्यक्तित्व और काव्यशैली की उत्कृष्ट पहचान कराता है। वे गहरे धार्मिक विचारों वाले, भावनाशील और सामाजिक चेतना से युक्त कवि थे। इस संवाद में उनकी सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक दृष्टि, भाषा पर पकड़, और रसों के संतुलन की अद्वितीय क्षमता स्पष्ट होती है। उन्होंने परशुराम के क्रोध, लक्ष्मण की चतुरता और राम की गंभीरता को संतुलित रूप में प्रस्तुत किया। उनकी अवधी भाषा में लोकोक्तियाँ, अलंकार, तथा व्यंजना शक्ति है, जो पात्रों के स्वभाव के अनुरूप है। उन्होंने संवाद को केवल वीर रस तक सीमित न रखकर हास्य, विनोद और भक्ति भाव से भी ओतप्रोत किया है। तुलसीदास की यह रचना केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि साहित्यिक दृष्टि से भी अत्यंत समृद्ध है, जो उन्हें कालजयी कवि सिद्ध करती है।

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तुलसीदास : राम–लक्ष्मण–परशुराम संवाद
“बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाठ मानी।।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चाहत उड़ावन फूँकि पहारू।।
इहाँ कुहड़बत्तिया कोउ नाहीं। जे तर्जनी देखि मरिहि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
भगुसुत समुझि जनेउ बिलोकि। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
सर महिसर हरिजन अरु गाई। हमरे कल इह पर न सुराई।।”


प्रश्न.1
“मृदु बानी” के साथ “महाठ मानी” और “फूँकि पहारू” जैसे पदों का संयोग लक्ष्मण के किस भाव-संतुलन को दिखाता है?
(A) केवल विनय
(B) तीखा क्रोध
(C) शिष्ट-व्यंग्य के साथ आत्मविश्वासपूर्ण वीरता
(D) भक्तिपरक नम्रता
उत्तर: (C)


2.“इहाँ कुहड़बत्तिया कोउ नाहीं… जे तर्जनी देखि मरिहि जाहीं”—इन पंक्तियों में परशुराम के भय-प्रदर्शन का प्रत्याख्यान लक्ष्मण किस युक्ति से करते हैं?
(A) वंश-गौरव का बखान करके
(B) प्रतीकों को उलट अर्थ देकर डर को हास्य में बदलकर
(C) मौन रहकर
(D) शस्त्र-पूजा कराकर
उत्तर: (B)


3.सही संयोजन चुनिए—
(i) “मैं कछु कहा सहित अभिमाना” से विनय के आवरण में दृढ़ आत्मविश्वास झलकता है।
(ii) “जनेउ बिलोकि” लक्ष्मण के संयम का हेतु बनता है।
(iii) “कुहड़बत्तिया” भयभीत जन का रूपक है, मात्र अंगुली-दर्शन से मर जाने वाला।
(iv) “सुराई” का संदर्भ उच्छृंखलता के निषेध की ध्वनि देता है।
विकल्प:
(A) (i), (ii), (iii) केवल
(B) (i), (iii), (iv) केवल
(C) (ii), (iv) केवल
(D) (i), (ii), (iii), (iv)
उत्तर: (D)


4.इस अंश में रस-विन्यास का सबसे उपयुक्त निर्धारण क्या है?
(A) शान्त–करुण
(B) रौद्र–वीर के साथ व्यंग्यजनित हास्यांश
(C) शृंगार–अद्भुत
(D) भयानक–वीभत्स
उत्तर: (B)


5.कथन–कारण—उचित विकल्प चुनिए।
कथन: लक्ष्मण परशुराम को “मुनीसु” कहकर आदर देते हुए भी उनके दर्प पर कटाक्ष करते हैं।
कारण: वे ब्राह्मणत्व का मान रखते हुए अन्यायपूर्ण अभिमान का प्रतिवाद विनय के आवरण में करते हैं।
(A) कथन और कारण दोनों गलत हैं।
(B) कारण गलत है, किंतु कथन सही है।
(C) कथन तथा कारण दोनों सही हैं तथा कारण उसकी सही व्याख्या करता है।
(D) कथन सही है, किंतु कारण उसकी सही व्याख्या नहीं करता।
उत्तर: (C)

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