Class 10, Hindi

Class 10 : Hindi – Lesson 15. मैं क्यों लिखता हूँ?

संक्षिप्त लेखक परिचय .

अज्ञेय – लेखक परिचय
अज्ञेय का मूल नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन था। इनका जन्म 7 मार्च 1911 को कसया (उत्तर प्रदेश) में हुआ। वे हिन्दी साहित्य के प्रखर प्रयोगवादी, नई कविता और नये कहानी आंदोलन के प्रमुख स्तंभ थे। अज्ञेय की रचनाओं में गहन बौद्धिकता, आत्मचिंतन और आधुनिक चेतना का भाव परिलक्षित होता है। उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, यात्रा-वृत्तांत और पत्रकारिता में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। ‘शेखर: एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’, ‘आँगन के पार द्वार’ उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। उनका निधन 4 अप्रैल 1987 को हुआ।

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन


‘मैं क्यों लिखता हूँ’ सुप्रसिद्ध लेखक अज्ञेय द्वारा रचित एक आत्ममंथनात्मक निबंध है, जिसमें वे अपने लेखन के मूल कारणों, प्रेरणाओं और लेखक के भीतर उठने वाली व्याकुलता का गहन विश्लेषण करते हैं। यह पाठ न केवल एक लेखक की अंतरात्मा की यात्रा है, बल्कि रचनात्मकता के वास्तविक स्रोतों की भी पड़ताल करता है।

लेखन की आंतरिक विवशता और प्रेरणा
लेखक के अनुसार, यह प्रश्न कि “मैं क्यों लिखता हूँ”, जितना सरल दिखता है, उतना है नहीं। वे स्वीकार करते हैं कि वे स्वयं भी इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए ही लिखते हैं। लिखना उनके लिए एक आत्म-अन्वेषण की प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से वे अपनी भीतरी उलझनों, बेचैनी और विचारों की छटपटाहट से मुक्ति पाते हैं। अज्ञेय मानते हैं कि हर सच्चा रचनाकार पहले अपनी आत्मानुभूति से ही प्रेरित होता है—यह आंतरिक विवशता उसे लिखने के लिए बाध्य करती है।

बाहरी दबाव और लेखन
हालाँकि लेखक स्वीकार करते हैं कि कभी-कभी बाहरी दबाव—जैसे संपादकों का आग्रह, प्रकाशकों की माँग, या आर्थिक आवश्यकताएँ—भी किसी रचनाकार को लिखने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, परंतु उनके लिए ये कारण गौण हैं। उनके लेखन का मूल स्रोत उनकी भीतरी विवशता और संवेदना है, न कि बाहरी दबाव। वे स्पष्ट करते हैं कि बाहरी कारणों से लिखना उनके लिए केवल एक माध्यम है, जबकि असली प्रेरणा भीतर से आती है।

अनुभव और अनुभूति का महत्व
अज्ञेय अनुभव और अनुभूति में अंतर स्पष्ट करते हैं। उनके अनुसार, अनुभव किसी प्रत्यक्ष घटना को देखकर होता है, जबकि अनुभूति संवेदना और कल्पना के सहारे उस सत्य को भी आत्मसात कर लेती है, जो प्रत्यक्ष रूप से घटित नहीं हुआ हो। यही अनुभूति लेखक के भीतर गहराई से उतरती है और उसे लिखने के लिए प्रेरित करती है। वे कहते हैं कि प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति कहीं अधिक सशक्त और गहन होती है।

हिरोशिमा का उदाहरण
लेखक अपने प्रसिद्ध कविता ‘हिरोशिमा’ का उदाहरण देते हैं। जापान यात्रा के दौरान उन्होंने हिरोशिमा में एक झुलसे हुए पत्थर पर किसी व्यक्ति की छाया देखी। विज्ञान के विद्यार्थी होने के कारण वे समझ गए कि परमाणु बम के विस्फोट से व्यक्ति भाप बनकर उड़ गया, पर उसकी छाया पत्थर पर रह गई। इस दृश्य ने लेखक को भीतर तक झकझोर दिया। उन्हें लगा जैसे वे स्वयं उस त्रासदी के साक्षी रहे हों। उस पीड़ा और व्याकुलता की चरम अवस्था में उनके भीतर कविता फूट पड़ी। वे स्पष्ट करते हैं कि यह कविता उनकी गहन अनुभूति का परिणाम थी, न कि केवल देखे गए दृश्य का वर्णन।

लेखन: आत्मसाक्षात्कार और सामाजिक दायित्व
अज्ञेय के अनुसार, लेखन उनके लिए आत्मसाक्षात्कार का साधन है। वे लिखते हैं ताकि अपने मन को समझ सकें, उसकी बेचैनी से मुक्त हो सकें और तटस्थ दृष्टि से अपनी भावनाओं को देख सकें। वे यह भी मानते हैं कि कभी-कभी लेखक समाज के प्रति अपने दायित्व के तहत भी लिखता है, परंतु उनके लिए आत्मसंतुष्टि और आत्मज्ञान ही सर्वोपरि हैं।

निष्कर्ष
‘मैं क्यों लिखता हूँ’ पाठ यह सिखाता है कि सच्चा लेखन बाहरी कारणों से नहीं, बल्कि भीतरी विवशता, संवेदना और अनुभूति से जन्म लेता है। लेखक के लिए लेखन एक साधना है, जो उसे स्वयं को जानने, समझने और अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का अवसर देती है। यह पाठ विद्यार्थियों को यह भी सिखाता है कि रचनात्मकता का मूल स्रोत आत्मानुभूति और संवेदनशीलता है, न कि केवल प्रसिद्धि, धन या बाहरी दबाव।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न


प्रश्न 1: लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है, क्यों?
उत्तर: लेखक की मान्यता है कि सच्चा लेखन भीतरी विवशता से पैदा होता है। यह विवशता मन के अंदर से उपजी अनुभूति से जागती है, बाहर की घटनाओं को देखकर नहीं जागती। लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव वह होता है जिसे हम घटित होते हुए देखते हैं, परन्तु अनुभूति संवेदना और कल्पना के सहारे उस सत्य को आत्मसात कर लेती है जो वास्तव में कृतिकार के साथ घटित नहीं हुआ है। जो आँखों के सामने नहीं आया, वही आत्मा के सामने ज्वलंत प्रकाश में आ जाता है, तब वह अनुभूति प्रत्यक्ष हो जाती है। जब तक कवि का हृदय किसी अनुभव के कारण पूरी तरह संवेदित नहीं होता और उसमें अभिव्यक्त होने की पीड़ा नहीं अकुलाती, तब तक वह कुछ लिख नहीं पाता। इस प्रकार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है।

प्रश्न 2: लेखक ने अपने आपको हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया?
उत्तर: लेखक हिरोशिमा के बम विस्फोट के परिणामों को अखबारों में पढ़ चुका था। जापान जाकर उसने हिरोशिमा के अस्पतालों में आहत लोगों को भी देखा था। अपनी जापान यात्रा के दौरान लेखक ने एक पत्थर में मानव की उजली छाया देखी। वे विज्ञान के विद्यार्थी थे, इस कारण समझ गए कि विस्फोट के समय पत्थर के पास कोई व्यक्ति खड़ा होगा। विस्फोट से विसर्जित रेडियोधर्मी पदार्थ ने उस व्यक्ति को भाप बना दिया और पत्थर को झुलसा दिया। इस प्रत्यक्ष अनुभूति ने लेखक के हृदय को झकझोर दिया। इस प्रकार लेखक हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता बन गया।

प्रश्न 3: मैं क्यों लिखता हूँ? के आधार पर बताइए कि-
(क) लेखक को कौन-सी बातें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं?
उत्तर: लेखक को यह जानने की प्रेरणा लिखने के लिए प्रेरित करती है कि वह आखिर लिखता क्यों है। यह उसकी पहली प्रेरणा है। स्पष्ट रूप से समझना हो तो लेखक दो कारणों से लिखता है – पहला, भीतरी विवशता से। कभी-कभी कवि के मन में ऐसी अनुभूति जाग उठती है कि वह उसे अभिव्यक्त करने के लिए व्याकुल हो उठता है। दूसरा, कभी-कभी वह संपादकों के आग्रह से, प्रकाशक के तकाजों से तथा आर्थिक लाभ के लिए भी लिखता है। परंतु दूसरा कारण उसके लिए जरूरी नहीं है। पहला कारण अर्थात् मन की व्याकुलता ही उसके लेखन का मूल कारण बनती है।

(ख) किसी रचनाकार के प्रेरणा स्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए किस तरह उत्साहित कर सकते हैं?
उत्तर: किसी रचनाकार के प्रेरणा स्रोत दूसरे को कुछ भी रचने के लिए विभिन्न तरीकों से उत्साहित करते हैं। जैसे वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण से प्रेरणा लेकर अन्य लेखकों ने इसके बारे में लिखा। अन्य लेखकों ने अपनी सामाजिक स्थिति और सुलभता से पात्रों को नए रूप में ढाला। महाभारत भी इसका एक प्रमुख उदाहरण है। इस प्रकार एक रचनाकार की कृति दूसरे रचनाकार को प्रेरित करती है और वह उससे प्रेरणा लेकर अपनी रचना का सृजन करता है।

प्रश्न 4: कुछ रचनाकारों के लिए आत्मानुभूति/स्वयं के अनुभव के साथ-साथ बाह्य दबाव भी महत्त्वपूर्ण होता है। ये बाह्य दबाव कौन-कौन से हो सकते हैं?
उत्तर: कुछ रचनाकारों की रचनाओं में स्वयं की अनुभूति से उत्पन्न विचार होते हैं और कुछ अनुभवों से प्राप्त विचारों को लिखा जाता है। इसके साथ ऐसे कारण (बाह्य दबाव) भी उपस्थित हो जाते हैं जिससे लेखक लिखने के लिए प्रेरित हो उठता है। ये बाह्य-दबाव हैं – सामाजिक परिस्थितियाँ, आर्थिक लाभ की आकांक्षा, प्रकाशकों और संपादकों का पुनः-पुनः का आग्रह, और विशिष्ट के पक्ष में विचारों को प्रस्तुत करने का दबाव। कुछ प्रसिद्ध लेखक सम्पादकों के आग्रह और प्रकाशक की जरूरत के अनुसार लिखते हैं। कुछ अपनी आर्थिक आवश्यकताओं के कारण भी लेखन कार्य करते हैं।

प्रश्न 5: क्या बाह्य दबाव केवल लेखन से जुड़े रचनाकारों को ही प्रभावित करते हैं या अन्य क्षेत्रों से जुड़े कलाकारों को भी प्रभावित करते हैं, कैसे?
उत्तर: बाहरी दबाव सभी प्रकार के कलाकारों को प्रेरित करते हैं। बाह्य दबाव लेखन से जुड़े रचनाकारों के अलावा अन्य क्षेत्रों से जुड़े कलाकारों को भी प्रभावित करते हैं। जैसे – अभिनेता, अभिनेत्री पर निर्देशक का दबाव रहता है ताकि वह अच्छे फिल्म का निर्माण कर सकें। गायक-गायिकाएँ और नर्तक पर आयोजकों के साथ-साथ श्रोताओं का दबाव रहता है। चित्रकार पर उनके ग्राहकों का दवाब रहता है कि वह अच्छी चित्र बनाएँ। खिलाड़ियों पर उनके प्रबंधकों और दर्शकों का दबाव होता है। उदाहरणतया अधिकतर अभिनेता, गायक, नर्तक, कलाकार अपने दर्शकों, आयोजकों, श्रोताओं की माँग पर कला-प्रदर्शन करते हैं।

प्रश्न 6: हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंतः व बाह्य दोनों दबाव का परिणाम है, यह आप कैसे कह सकते हैं?
उत्तर: हिरोशिमा पर लिखी कविता हृदय की अनुभूति प्रस्फुटित होती हुई भावों और शब्दों में जीवंत हो उठी है। लेखक को जब जापान जाने का अवसर मिला तब वे हिरोशिमा भी गए। उन्होंने वहाँ वह अस्पताल भी देखा जहाँ रेडियम-पदार्थ से आहत लोग वर्षों से कष्ट पा रहे थे। उन्हें देखकर लेखक को सहानुभूति हुई परन्तु इसने लिखने के लिए लेखक को प्रेरित नहीं किया। जब उन्होंने जले पत्थर पर किसी व्यक्ति की उजली छाया को देखा तो उन्हें उनके दर्द की अनुभूति हुई जिसने लेखक को लिखने के लिए प्रेरित किया। यह लेखक का आंतरिक दबाव था। चूँकि लेखक विज्ञान के छात्र थे तो वह हिरोशिमा की त्रासदी अच्छे ढंग से बता सकते थे। इसलिए कुछ अलग लिखने की चाह लेखक का बाह्य दबाव हो सकता है।

प्रश्न 7: हिरोशिमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दुरुपयोग है। आपकी दृष्टि में विज्ञान का दुरुपयोग कहाँ-कहाँ और किस तरह से हो रहा है।
उत्तर: आजकल विज्ञान का दुरुपयोग अनेक जानलेवा कामों के लिए किया जा रहा है। हमारी दृष्टि में विज्ञान का दुरुपयोग अनेक क्षेत्रों में निम्नलिखित रूप में हो रहा है – असंख्य मात्रा में चल रहे वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। विज्ञान के विकसित होने की वजह से आतंकवादी भी आजकल गोली-बम का निर्माण कर सकने में सक्षम हैं और वे दुनिया में बम-विस्फोट कर तबाही मचा रहे हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में अल्ट्रासाउंड का दुरूपयोग किया जा रहा है। गर्भ में पल रहे भ्रूण का लिंग परीक्षण कर कन्याभ्रूण की आधुनिक तकनीक से गर्भ में हत्या कर दी जा रही है। किसान जहरीले रसायनों का इस्तेमाल कर पैदावार बढ़ा रहे हैं परन्तु इसमें लोगों के स्वास्थ्य पर नकरात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

प्रश्न 8: एक संवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से विज्ञान का दुरुपयोग रोकने में आपकी क्या भूमिका है?
उत्तर: एक संवेदनशील युवा नागरिक होने के कारण विज्ञान का दुरुपयोग रोकने के लिए हमारी भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए निम्नलिखित कार्य करते हुए मैं अपनी सक्रिय भूमिका निभा सकता हूँ – प्रदूषण फैलाने तथा बढ़ाने वाले उत्तरदायी कारकों प्लास्टिक, कूड़ा-कचरा आदि के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के साथ-साथ लोगों से अनुरोध करूंगा कि पर्यावरण के लिए हानिकारक वस्तुओं का उपयोग न करें। विज्ञान के बनाए हथियारों का प्रयोग यथासंभव मानवता की भलाई के लिए ही करें, मनुष्यों के विनाश के लिए नहीं। विज्ञान की चिकित्सीय खोज का दुरुपयोग कर लोग प्रसवपूर्ण संतान के लिंग की जानकारी कर लेते हैं और कन्या शिशु की भ्रूण-हत्या कर देते हैं जिससे सामाजिक विषमता तथा लिंगानुपात में असमानता आती है। इस बारे में आम जनता का जागरूक करने का प्रयास करूंगा। टी.वी. पर प्रसारित अश्लील कार्यक्रमों का खुलकर विरोध करूँगा और समाजोपयोगी कार्यक्रमों के प्रसारण का अनुरोध करूँगा।

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1: अज्ञेय के अनुसार एक सच्चे कृतिकार की पहचान क्या है? वे बाहरी दबाव और आंतरिक प्रेरणा के बीच कैसे संतुलन बनाते हैं?
उत्तर: अज्ञेय के अनुसार सच्चे कृतिकार की पहचान यह है कि वे हमेशा अपने सामने ईमानदारी से यह भेद बनाए रखते हैं कि कौन सी कृति भीतरी प्रेरणा का फल है और कौन सा लेखन बाहरी दबाव का। कृतिकार की विशेषताएं: सच्चे कृतिकार के पास अपना स्वयं का आत्मानुशासन होता है और वे अपने काम के प्रति जिम्मेदार होते हैं। बाहरी दबाव का सदुपयोग: अज्ञेय बताते हैं कि बाहरी दबाव (संपादकों का आग्रह, प्रकाशकों का तकाज़ा, आर्थिक आवश्यकता) वास्तव में कृतिकार के लिए दबाव नहीं रहता, बल्कि वह भीतरी उन्मेष का निमित्त बन जाता है। सहायक यंत्र के रूप में: कुछ कृतिकार आलसी स्वभाव के होते हैं और बाहरी दबाव के बिना लिख नहीं पाते – ऐसे में यह दबाव उनके लिए सहायक यंत्र का काम करता है, जैसे सुबह उठने के लिए अलार्म की आवश्यकता होती है। इस प्रकार सच्चा कृतिकार बाहरी दबाव के प्रति समर्पित नहीं होता, बल्कि उसे भौतिक यथार्थ के साथ संबंध बनाए रखने के लिए एक उपकरण के रूप में प्रयोग करता है।

प्रश्न 2: अज्ञेय के अनुसार ‘अनुभव’ और ‘अनुभूति’ में क्या अंतर है? हिरोशिमा कविता के संदर्भ में इस सिद्धांत को स्पष्ट करें।
उत्तर: अज्ञेय के अनुसार अनुभव और अनुभूति में गहरा अंतर है। अनुभव की परिभाषा: अनुभव वह होता है जो रचनाकार के सामने घटित होता है – यह प्रत्यक्ष देखी गई घटनाओं का परिणाम है। अनुभूति की गहराई: अनुभूति अनुभव से कहीं अधिक गहरी चीज़ है। यह संवेदना और कल्पना के द्वारा उस सत्य को भी ग्रहण कर लेती है जो रचनाकार के सामने घटित नहीं हुआ है। हिरोशिमा कविता का उदाहरण: अज्ञेय ने अपनी प्रसिद्ध कविता ‘हिरोशिमा’ का उदाहरण देकर इस सिद्धांत को स्पष्ट किया है। जब वे जापान गए तो हिरोशिमा में उन्होंने एक झुलसा हुआ पत्थर देखा जिस पर एक व्यक्ति की लंबी उजली छाया थी। वैज्ञानिक समझ से अनुभूति: विज्ञान के विद्यार्थी होने के कारण उन्हें रेडियोधर्मी प्रभावों की जानकारी थी। उन्होंने अनुमान लगाया कि परमाणु बम के प्रभाव से वह व्यक्ति भाप बनकर उड़ गया, पर उसकी छाया पत्थर पर रह गई। अनुभूति की शक्ति: उस पत्थर को देखकर उन्हें ऐसा लगा मानो वे उस दुखद घटना के समय वहाँ मौजूद रहे हों। यह अनुभूति इतनी प्रबल थी कि इसी से उनकी हिरोशिमा पर लिखी कविता का जन्म हुआ। यह उदाहरण दिखाता है कि कैसे अनुभूति केवल प्रत्यक्ष अनुभव से कहीं अधिक गहरी और शक्तिशाली होती है।

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