Class 10 : Hindi – Lesson 13. माता का आँचल
संक्षिप्त लेखक परिचय .
🌟 शिवपूजन सहाय 🌟
📜 जन्म एवं जीवन परिचय
🔵 शिवपूजन सहाय का जन्म 9 अगस्त 1893 ई. को बिहार के भोजपुर जिले के उनवाँस गाँव में हुआ था।
🟢 उनके जन्मजात नाम “भोलानाथ” था और प्रारंभ में उन्होंने पठन-पाठन तथा अध्यापक-नक़लनवीस के रूप में कार्य किया।
💠 उन्होंने हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता को गहरी निष्ठा से अपनाया और अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।
🌿 उनकी साहित्यिक तथा संपादकीय यात्रा ने उन्हें हिंदी साहित्य के स्पर्शक और संवेदक स्वरूप में प्रतिष्ठित किया।
🕊️ 21 जनवरी 1963 ई. को पटना में उनका निधन हुआ।
📚 साहित्यिक योगदान एवं कृतियाँ
✨ शिवपूजन सहाय आधुनिक हिंदी गद्य के प्रबल स्तंभ थे।
💫 उनकी प्रमुख रचनाओं में देहाती दुनिया (1926), विभूति (1935) तथा माता का आँचल शामिल हैं।
🌸 उन्होंने ‘मातृ-भूमि’, ‘ग्राम सुधार’, ‘वे दिन वे लोग’ आदि गद्य रचनाओं द्वारा ग्रामीण जीवन तथा समाज-यथार्थ को हिंदी में व्यक्त किया।
🟡 इसके अतिरिक्त वे मतवाला, माधुरी, जागरण, हिमालय आदि पत्रिकाओं के संपादक भी रहे जिनके माध्यम से हिंदी पत्रकारिता को नया आयाम मिला।
💎 उन्हें 1960 ई. में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
✔️ शिवपूजन सहाय ने भाषा-सुधार, सामाजिक चेतना और साहित्य-उत्तेजना के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान दिया। उनका लेखन और संपादन-कार्य आज भी हिंदी साहित्य में प्रेरणा स्रोत हैं।
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन

“माता का आँचल” पाठ में लेखक शिवपूजन सहाय ने बचपन की मासूमियत, पारिवारिक स्नेह और विशेष रूप से माँ के आँचल की ममता का अत्यंत संवेदनशील चित्रण किया है। यह रचना लेखक के अपने बचपन की स्मृतियों पर आधारित है, जिसमें उन्होंने अपने माता-पिता के प्रेम, देखभाल और ग्रामीण जीवन के सहज वातावरण को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।
कहानी का मुख्य पात्र तारकेश्वरनाथ है, जिसे उसके माता-पिता प्यार से भोलानाथ कहते हैं। उसके पिता अत्यंत धार्मिक और अनुशासनप्रिय हैं। वे सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करते, पूजा करते और रामनाम लिखते हैं। भोलानाथ अपने पिता के साथ बैठकर पूजा देखता, भभूत का तिलक लगवाता और रामनाम लिखने की प्रक्रिया में भाग लेता है। पूजा के बाद वे आटे की गोलियाँ बनाकर गंगा जी में मछलियों को खिलाने जाते हैं। इस दौरान भोलानाथ अपने पिता के कंधे पर बैठकर आसपास के दृश्य देखता, झूला झूलता और रास्ते में मिलने वाले लोगों से मिलकर प्रसन्न होता है।
माता का स्नेह पाठ में सबसे अधिक मार्मिक रूप में उभरकर आता है। जब भी भोलानाथ को चोट लगती, डर लगता या वह किसी परेशानी में पड़ता, तो वह सबसे पहले अपनी माँ के आँचल में जाकर छिप जाता। माँ उसे गोद में उठाकर दुलारती, उसके घावों पर मरहम लगाती और सिर पर तेल लगाकर मालिश करती। माँ का आँचल उसके लिए सुरक्षा, स्नेह और आश्वासन का प्रतीक बन जाता है। यहाँ माँ की ममता और वात्सल्य का वह रूप देखने को मिलता है, जिसमें बच्चे की हर पीड़ा, डर और चिंता माँ के प्रेम में घुलकर समाप्त हो जाती है।
पिता का प्रेम भी कम नहीं है, लेकिन वह अनुशासन और परंपरा से बंधा हुआ है। पिता अपने बेटे को जीवन के सही मार्ग पर चलने की शिक्षा देते हैं, उसे पूजा-पाठ, अनुशासन और संस्कार सिखाते हैं। लेकिन जब कभी भोलानाथ को सच्चे सहारे की आवश्यकता होती है, तो वह माँ के पास ही जाता है। यही माँ का आँचल है, जिसमें बच्चा सबसे अधिक सुरक्षित और निश्चिंत महसूस करता है।
पाठ में ग्रामीण जीवन के दृश्य, पूजा-पाठ की प्रक्रिया, गंगा तट का वातावरण, खेल-कूद, प्रसाद वितरण और परिवार के सदस्यों के बीच के रिश्तों का बहुत सुंदर चित्रण है। लेखक ने बाल मनोविज्ञान की गहराई को भी बखूबी उकेरा है। बचपन की मासूमियत, डर, जिज्ञासा और स्नेह की अनुभूतियाँ पाठक के मन को छू जाती हैं।
“माता का आँचल” पाठ यह संदेश देता है कि माँ का स्नेह और उसका आँचल बच्चे के लिए सबसे बड़ा आश्रय है। परिवार, विशेषकर माता-पिता का प्रेम और सुरक्षा, जीवन के शुरुआती वर्षों में बच्चे के मन को स्थिरता और आत्मविश्वास देते हैं। माँ का आँचल न केवल वस्त्र है, बल्कि वह ममता, सुरक्षा और प्रेम का प्रतीक है, जो जीवन भर बच्चे को संबल देता है।
यह रचना पाठकों को अपने बचपन की यादों में ले जाती है और माँ के प्रेम की महत्ता को हृदय में गहराई से स्थापित करती है।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1
प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?
उत्तर: बच्चे को विपदा में सबसे अधिक ममता की आवश्यकता होती है। पिता भले ही स्नेहपूर्ण हों, पर माँ का आँचल सुरक्षा और प्रेम का साक्षात अनुभव कराता है। इसलिए विपरीत स्थिति में बच्चा स्वाभाविक रूप से माँ के पास जाता है।
प्रश्न 2
आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?
उत्तर: बच्चों का स्वभाव क्षणभंगुर होता है; थोड़ी ही देर में वे खेल-कूद में लिप्त होकर अपने दुःख या पीड़ा को भूल जाते हैं। मित्रों के साथ खेलने-खेलने में उनका मन रम जाता है, इसलिए सिसकना भूल जाता है।
प्रश्न 3
आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। यदि आपके खेलों आदि से जुड़ी कोई तुकबंदी याद हो, तो लिखिए।
उत्तर: उदाहरणतः बचपन में गेंद उछालते समय “उभर-उभर गोला दौड़ा, फँस गए चार-छह मोड़ा” जैसी तुकबंदियाँ बनाना, या पत्थर से गुलेल चलाकर “तीन, पाँच, सात, चालाकी की बात” कहना।
प्रश्न 4
भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर: वे मिट्टी-के बर्तन, गीली मिट्टी, टाँके के झूले आदि सरल वस्तुओं से खेल बनाते थे, जबकि आज के बच्चे बाजार से खरीदे जाने वाले खिलौने, वीडियो गेम या स्पोर्ट्स उपकरणों से खेल-कूद करते हैं।
प्रश्न 5
पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों।
उत्तर: जब भोलानाथ चोट लगने पर रोता है और भागकर माँ के आँचल में छिप जाता है, माँ का कोमल स्पर्श, आँचल से उसे पोछना तथा हल्दी लेप—यह दृश्य अत्यंत मार्मिक लगता है।
प्रश्न 6
इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं?
उत्तर: तब मिट्टी के खिलौनों पर खेल होता था, आज गाँवों में भी प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों का प्रचलन बढ़ गया है। सामूहिक खेलों की जगह व्यक्तिगत उपकरणों व मोबाइल गेम ने ले ली है।
प्रश्न 7
पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर: मेरी माँ कभी दवा को चूरन में मिलाकर खिलाती, पिता सुबह उत्साहपूर्वक पूजा कराते और मुझे बुलाकर सहभाग कराते थे। बचपन में उनका स्नेह आज भी हृदय को आँचल सी सुरक्षित अनुभूति देता है।
प्रश्न 8
यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: माता-पिता ने भोलानाथ के हर आवश्यक कार्य में संलग्न रहकर उसकी रक्षा, पोषण और आनन्द का ध्यान रखा। पिता ने पूजा-पाठ में साथ लिया, माँ ने चोट पर दवा, सांत्वना दी—इस प्रकार पूर्ण वात्सल्य का वातावरण बना।
प्रश्न 9
“माता का अँचल” शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।
उत्तर: पाठ में मातृस्नेह और संरक्षण का मुख्य रूप दर्शाया गया है, अतः “ममतामयी शरण” या “माँ का सान्निध्य” शीर्षक उपयुक्त हो सकता है।
प्रश्न 10
बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?
उत्तर: बच्चे हँसी-खुशी से खेल में माता-पिता को आमंत्रित कर देते हैं, चोट पर आँचल में छिपकर दुःख बताते हैं, और प्यार में गले मिलकर अपना स्नेह प्रकट करते हैं।
प्रश्न 11
इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है, वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?
उत्तर: उस समय सामूहिक खेल गली-मोहल्ले में होता था, जहाँ मिट्टी, पत्थर, झूले साधन थे। आज की दुनिया तकनीकी एवं व्यक्तिगत खिलौनों से परिपूर्ण है, और खेलों में साधन व सामग्री, तकनीक अधिक होती है।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🔵 प्रश्न 1: भोलानाथ का वास्तविक नाम क्या था?
🟢 (क) तारकेश्वर नाथ
🟡 (ख) शिवनाथ
🔴 (ग) भोलेश्वर नाथ
🟣 (घ) रामनाथ
✔️ उत्तर: (क) तारकेश्वर नाथ
🔵 प्रश्न 2: भोलानाथ की माता उसे खाना खिलाने के लिए किसका स्वांग करती थीं?
🟢 (क) जानवरों का
🟡 (ख) पक्षियों का (तोता, मैना आदि)
🔴 (ग) फूलों का
🟣 (घ) फलों का
✔️ उत्तर: (ख) पक्षियों का (तोता, मैना आदि)
🔵 प्रश्न 3: भोलानाथ के पिताजी प्रतिदिन कितनी बार राम-नाम लिखते थे?
🟢 (क) एक हजार बार
🟡 (ख) दो हजार बार
🔴 (ग) पंद्रह सौ बार
🟣 (घ) सौ बार
✔️ उत्तर: (ग) पंद्रह सौ बार
🔵 प्रश्न 4: जब भोलानाथ साँप से डरकर घर आया तो वह सीधे कहाँ गया?
🟢 (क) पिता की गोद में
🟡 (ख) माता के आँचल में
🔴 (ग) अपने कमरे में
🟣 (घ) बाहर बैठक में
✔️ उत्तर: (ख) माता के आँचल में
🔵 प्रश्न 5: माता भोलानाथ को किस रूप में सजाकर ‘कन्हैया’ बना देती थीं?
🟢 (क) सिर पर तेल लगाकर, काजल की बिंदी लगाकर, चोटी में फूलदार लट्टू बाँधकर
🟡 (ख) केवल नए कपड़े पहनाकर
🔴 (ग) गहने पहनाकर
🟣 (घ) मुकुट पहनाकर
✔️ उत्तर: (क) सिर पर तेल लगाकर, काजल की बिंदी लगाकर, चोटी में फूलदार लट्टू बाँधकर
🔵 प्रश्न 6: भोलानाथ को ‘भोलानाथ’ नाम क्यों दिया गया?
🟢 उत्तर: पिताजी उसके माथे पर भभूत और चंदन लगाते थे, जिससे लंबी जटाओं के साथ वह शिव जैसा ‘भोला’ लगता था।
🔵 प्रश्न 7: भोलानाथ के पिता राम-नाम लिखकर क्या करते थे?
🟢 उत्तर: वे राम-नाम लिखे कागज को आटे की गोली में लपेटकर गंगा में मछलियों को खिलाते थे।
🔵 प्रश्न 8: भोलानाथ का माता से कितना नाता था?
🟢 उत्तर: भोलानाथ का माता से केवल दूध पीने तक का नाता था, बाकी समय वह पिता के साथ रहता था।
🔵 प्रश्न 9: माता भोलानाथ के घावों पर क्या लगाती थीं?
🟢 उत्तर: माता ने भोलानाथ के घावों पर हल्दी पीसकर लगाई थी।
🔵 प्रश्न 10: ‘माता का आँचल’ किसका प्रतीक है?
🟢 उत्तर: माता का आँचल सुरक्षा, प्रेम, ममता और शांति का प्रतीक है।
🔵 प्रश्न 11: भोलानाथ का अपने पिता के साथ कैसा संबंध था? पिता उसके साथ कैसा व्यवहार करते थे?
🟢 उत्तर: भोलानाथ का अपने पिता के साथ अत्यंत घनिष्ठ संबंध था। वह बचपन से ही पिता के अंग लग गया था और पिता के साथ ही बाहर की बैठक में सोता था। पिता तड़के उठकर उसे भी साथ उठाते, नहलाते-धुलाते और पूजा में बिठाते थे। वे उसके माथे पर भभूत और चंदन का तिलक लगाते थे। गंगा में मछलियों को खिलाने ले जाते समय भोलानाथ को अपने कंधे पर बिठाते थे। पिता उसके साथ कुश्ती खेलते, झूला झुलाते और खट्टे-मीठे चुम्मे लेते थे।
🔵 प्रश्न 12: भोलानाथ की माता उसे खाना कैसे खिलाती थीं? इससे माता के स्वभाव की क्या विशेषता प्रकट होती है?
🟢 उत्तर: भोलानाथ की माता उसे खाना खिलाने के लिए रोचक तरीके अपनाती थीं। वे दही-भात के कौर बनाकर विभिन्न पक्षियों (तोता, मैना, कबूतर आदि) के नाम से पुकारतीं और कहतीं कि “जल्दी खा लो, नहीं तो चिड़िया उड़ जाएगी।” यह सुनकर भोलानाथ तुरंत उन कौरों को खा जाता था। इस व्यवहार से माता की सृजनशीलता, धैर्य, ममता और बच्चे को खुश रखने की कला प्रकट होती है। वे अपने बच्चे का भोजन सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करती थीं।
🔵 प्रश्न 13: साँप से डरकर जब भोलानाथ घर आया तो उसकी क्या दशा थी और माता ने क्या किया?
🟢 उत्तर: साँप के भय से भागते-भागते भोलानाथ लहूलुहान हो गया था। उसका पूरा शरीर काँप रहा था, आँखें बंद थीं और वह सिसकियाँ ले रहा था। वह सीधे माता की गोद में जाकर उनके आँचल में छिप गया। माता ने तुरंत हल्दी पीसकर उसके घावों पर लगाई, उसे आँचल से पोंछा, चूमा और लाड़-प्यार से उसे चुप कराने का प्रयास किया। माता स्वयं भी रोने लगीं और अपने बच्चे की पीड़ा को देखकर व्याकुल हो गईं। माता का यह व्यवहार उनकी असीम ममता को दर्शाता है।
🔵 प्रश्न 14: ‘माता का आँचल’ शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
🟢 उत्तर: ‘माता का आँचल’ शीर्षक अत्यंत सार्थक और उपयुक्त है। पूरे पाठ में भोलानाथ का अधिकांश समय पिता के साथ बीतता है, लेकिन विपदा के समय वह माता के आँचल में ही शरण लेता है। माता का आँचल सुरक्षा, ममता, शांति और प्रेम का प्रतीक है। जब भोलानाथ साँप से डरकर लहूलुहान घर आता है, तो वह पिता की गोद में नहीं बल्कि माता के आँचल में छिपकर ही सुकून पाता है। यह शीर्षक मातृत्व की महानता और बच्चे के जीवन में माँ के अद्वितीय स्थान को दर्शाता है।
🔵 प्रश्न 15: ‘माता का आँचल’ पाठ के आधार पर माता-पिता के वात्सल्य का वर्णन करते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि विपदा के समय बच्चा पिता के पास न जाकर माता की शरण क्यों लेता है?
🟢 उत्तर: ‘माता का आँचल’ पाठ में शिवपूजन सहाय ने माता-पिता के वात्सल्य का अत्यंत मनोहारी और सरस वर्णन किया है। भोलानाथ का अपने पिता से गहरा लगाव था। पिता उसे सुबह उठाते, नहलाते-धुलाते, पूजा में बिठाते और अपने कंधे पर बिठाकर गंगा घुमाने ले जाते थे। वे उसके साथ कुश्ती खेलते, झूला झुलाते और प्यार से खट्टे-मीठे चुम्मे लेते थे। पिता का स्नेह खुला, स्वतंत्र और आनंदमय था।
दूसरी ओर, भोलानाथ का माता से केवल दूध पीने तक का नाता था, फिर भी माता की ममता असीम थी। माता उसे विभिन्न पक्षियों के नाम से कौर बनाकर खिलाती थीं, उसे कन्हैया बनाती थीं और उसकी हर छोटी-बड़ी जरूरत का ध्यान रखती थीं।
जब साँप के भय से भोलानाथ लहूलुहान और भयभीत होकर घर लौटा, तो वह सीधे माता के आँचल में जाकर छिप गया। इसका कारण यह है कि माता का प्रेम ममता, सुरक्षा और करुणा पर आधारित होता है। विपदा के समय बच्चे को जिस कोमलता, शांति और आश्वासन की आवश्यकता होती है, वह केवल माता के आँचल में ही मिलती है। माता ने तुरंत उसके घावों पर हल्दी लगाई, उसे पोंछा और लाड़ से चुप कराया। माता का हृदय इतना विशाल है कि वह बच्चे की पीड़ा को स्वयं महसूस करती है और उसे संपूर्ण सुरक्षा प्रदान करती है। यही कारण है कि विपदा के समय बच्चा माता की शरण में जाता है।
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