Class 10, Hindi

Class 10 : Hindi – Lesson 1. सूरदास

संक्षिप्त लेखक परिचय

सूरदास का संक्षिप्त परिचय
जन्म: संवत् 1535 विक्रमी (सम्भवतः 1478 ई.) सीही/रुनकटा (आगरा) में

मृत्यु: संवत् 1642 विक्रमी (सम्भवतः 1585 ई.) पारसौली (ब्रज) में

प्रमुख रचनाएँ: सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी,

भक्तिकालीन ब्रजभाषा के अन्ध कवि, भगवान कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति–भावनाओं वाले गीतों के लिए विख्यात

वात्सल्य रस के सम्राट, बालकृष्ण की लीलाओं का मर्मस्पर्शी तथा मार्मिक चित्रण

समूचे उत्तर भारत की भजन-परंपरा में आज भी उनके पद गाये जाते हैं
————————————————————————————————————————————————————————————————————————————

सूरदास के पद – चारों पदों का भावार्थ


पद 1
मूल पद:
ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।।

भावार्थ:
इस पद में गोपियाँ उद्धव से व्यंग्यपूर्ण स्वर में कहती हैं कि हे उद्धव! तुम वास्तव में अत्यंत भाग्यशाली हो क्योंकि श्रीकृष्ण के इतने निकट रहकर भी तुम उनके प्रेम-बंधन में नहीं बंधे हो। तुम्हारा हृदय प्रेम की भावना से सर्वथा अछूता है। गोपियाँ तीन सुंदर उदाहरण देती हैं – पहला, तुम कमल के पत्ते के समान हो जो जल में रहकर भी जल से अछूता रहता है। दूसरा, तुम उस तेल के घड़े के समान हो जिसे जल में डुबोने पर भी उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती। तीसरा, तुमने कभी प्रेम-नदी में अपने पैर नहीं डुबोए और न ही तुम्हारी दृष्टि कभी सुंदरता से मुग्ध हुई है।

अंत में गोपियाँ अपनी स्थिति का चित्रण करते हुए कहती हैं कि हम तो भोली-भाली स्त्रियाँ हैं, इसलिए हम श्रीकृष्ण के प्रेम में उसी प्रकार चिपक गई हैं जैसे चीटियाँ गुड़ से चिपक जाती हैं। यहाँ गोपियों का व्यंग्य यह है कि उद्धव का ज्ञान और निर्लिप्तता उन्हें श्रीकृष्ण के सच्चे प्रेम से वंचित रखे हुए है।

पद 2
मूल पद:
मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
‘सूरदास’अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।।

भावार्थ:
इस पद में गोपियाँ अपनी मानसिक व्यथा की गहराई को व्यक्त करती हैं। वे कहती हैं कि हमारे मन की सारी बातें मन में ही रह गई हैं। हे उद्धव! हम इन्हें किससे कहें? ये बातें कहने योग्य ही नहीं हैं क्योंकि ये केवल श्रीकृष्ण के लिए हैं।

गोपियाँ बताती हैं कि वे श्रीकृष्ण के वापस आने की आशा को ही अपना आधार बनाकर शारीरिक और मानसिक व्यथा सहती रही हैं। परंतु अब उद्धव के योग-संदेश सुन-सुनकर विरहिणी गोपियों का विरह और भी तीव्र हो गया है। जिस स्थान से वे श्रीकृष्ण से रक्षा की गुहार लगाना चाहती थीं, उसी स्थान से अब निर्गुण योग की धारा बह रही है।

अंत में गोपियाँ कहती हैं कि अब वे धैर्य कैसे रखें? उनकी सारी मर्यादा ही नष्ट हो गई है। यह पद गोपियों की विरह-वेदना की चरम अवस्था को दर्शाता है जहाँ वे अपनी सामाजिक मर्यादाओं को भी तोड़ने के लिए तैयार हैं।

पद 3
मूल पद:
हमारैं हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ ‘सूर’ तिन्हीं लै सौंपौ, जिनकैं मन चकरी।।

भावार्थ:
इस पद में गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति और एकनिष्ठ प्रेम को व्यक्त करती हैं। वे कहती हैं कि हमारे हरि हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं। जिस प्रकार हारिल पक्षी अपनी लकड़ी को कभी नहीं छोड़ता, उसी प्रकार हमने भी नंद-नंदन को अपने मन, वचन और कर्म से दृढ़तापूर्वक पकड़ रखा है।

गोपियाँ बताती हैं कि वे जागते, सोते, स्वप्न में, दिन-रात केवल कान्ह-कान्ह का ही जाप करती रहती हैं। उनके लिए योग की बात सुनना उतना ही कष्टकारी है जितना कि करेले का कड़वा स्वाद होता है।

वे उद्धव से कहती हैं कि तुम तो एक नई बीमारी लेकर आए हो जिसे हमने पहले कभी न देखा है और न सुना है। अंत में गोपियाँ व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि यह योग का उपदेश उन लोगों को दो जिनका मन चंचल है, हमारा मन तो श्रीकृष्ण में स्थिर हो चुका है।

पद 4
मूल पद:
हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-संदेस पठाए।
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
तैं क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।।

भावार्थ:
इस अंतिम पद में गोपियाँ श्रीकृष्ण पर व्यंग्य करते हुए राजनीति और राजधर्म की चर्चा करती हैं। वे कहती हैं कि श्रीकृष्ण ने राजनीति पढ़ ली है और उद्धव रूपी भँवरे के माध्यम से जो संदेश भेजा है, उससे सब समाचार मिल गए हैं।

गोपियाँ व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि श्रीकृष्ण पहले से ही बहुत चतुर थे, अब उन्होंने गुरु से शास्त्र भी पढ़ लिए हैं। उनकी बुद्धि और भी बढ़ गई है, तभी तो योग का संदेश भेजा है। वे कहती हैं कि पुराने समय के भले लोग दूसरों की भलाई के लिए घूमा करते थे।

गोपियाँ आरोप लगाती हैं कि अब श्रीकृष्ण अपने मन को बदल गए हैं जबकि पहले वे हमारे हृदय चुरा चुके हैं। वे प्रश्न करती हैं कि जो दूसरों को अन्याय से रोकते हैं, वे स्वयं अन्याय क्यों करें? अंत में सूरदास कहते हैं कि राजधर्म यही है कि प्रजा को कष्ट न दिया जाए।

यह पद गोपियों के तर्कसंगत प्रेम को दर्शाता है जहाँ वे न्याय और अन्याय के सिद्धांतों को भी अपने प्रेम के समर्थन में प्रस्तुत करती हैं।

————————————————————————————————————————————————————————————————————————————

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न


प्रश्न 1. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
उत्तर: गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में गहरा व्यंग्य छिपा हुआ है। वे व्यंग्यपूर्वक कहती हैं कि उद्धव वास्तव में अत्यंत भाग्यशाली हैं क्योंकि श्रीकृष्ण के इतने निकट रहकर भी वे उनके प्रेम-रस से अछूते रह गए हैं। जो व्यक्ति कृष्ण जैसे प्रेम के सागर के साथ रहकर भी उनके प्रेम की मधुरता का अनुभव नहीं कर सका, वह वास्तव में भाग्यहीन है। गोपियों का व्यंग्य यह है कि उद्धव प्रेम की सबसे सुंदर अनुभूति से वंचित रह गए हैं, जबकि यही तो जीवन का सबसे बड़ा सुख है।

प्रश्न 2. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर: गोपियों ने उद्धव के निर्लिप्त व्यवहार की तुलना दो मुख्य उदाहरणों से की है। पहली तुलना कमल के पत्ते से की गई है जो जल में रहकर भी जल से अछूता रहता है और उस पर जल की बूंदें भी नहीं ठहरतीं। दूसरी तुलना तेल से भरे घड़े से की गई है जिसे जल में डुबोने पर भी उस पर पानी की एक बूंद भी नहीं चिपकती। इन दोनों उदाहरणों के माध्यम से गोपियां यह बताना चाहती हैं कि उद्धव श्रीकृष्ण के सानिध्य में रहकर भी उनके प्रेम से पूर्णतः अप्रभावित रहे हैं।

प्रश्न 3. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर: गोपियों ने उद्धव को कई प्रभावशाली उदाहरणों के माध्यम से उलाहने दिए हैं। उन्होंने कमल के पत्ते का उदाहरण देकर कहा कि वे जल में रहकर भी गीले नहीं होते। प्रेम की नदी का उदाहरण देकर कहा कि उद्धव ने कभी इसमें अपने पैर नहीं डुबोए। तेल की गागरी का उदाहरण देकर बताया कि जैसे उस पर पानी नहीं ठहरता, वैसे ही उद्धव पर कृष्ण प्रेम का प्रभाव नहीं पड़ा। इन सभी उदाहरणों के माध्यम से गोपियां यह व्यक्त करती हैं कि उद्धव कितने अभागे हैं जो कृष्ण के प्रेम रूपी अमृत से वंचित रह गए।

प्रश्न 4. उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उत्तर: गोपियां पहले से ही श्रीकृष्ण के वियोग में जल रही थीं और उनके वापस आने की प्रतीक्षा कर रही थीं। वे अपने मन की प्रीति श्रीकृष्ण से कहना चाहती थीं। किंतु जब उद्धव योग साधना का संदेश लेकर आए और कहा कि कृष्ण को भूल जाओ, तो यह गोपियों के लिए और भी कष्टकारी हो गया। जैसे जलती हुई आग में घी डालने से आग और तेज हो जाती है, वैसे ही योग का संदेश सुनकर गोपियों की विरह व्यथा और भी बढ़ गई। यह संदेश उनके प्रेम की अवहेलना लगा और उनकी पीड़ा को दोगुना कर दिया।

प्रश्न 5. ‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर: यहां प्रेम की मर्यादा न रहने की बात कही जा रही है। गोपियों के अनुसार प्रेम की यही मर्यादा होती है कि प्रेमी और प्रेमिका दोनों एक-दूसरे के प्रति निष्ठावान रहें और अपने प्रेम को निभाएं। श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ प्रेम का रिश्ता बनाया था, लेकिन अब योग संदेश भेजकर उन्होंने प्रेम की इस मर्यादा का उल्लंघन किया है। गोपियां यह कहना चाहती हैं कि कृष्ण ने उनके सच्चे प्रेम के साथ छल किया है और प्रेम धर्म का पालन नहीं किया है।

प्रश्न 6. कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
उत्तर: गोपियों ने अपने अनन्य प्रेम को अत्यंत मार्मिक रूप में व्यक्त किया है। उन्होंने अपनी स्थिति की तुलना गुड़ से चिपकी चीटियों से की है जो किसी भी हालत में गुड़ को नहीं छोड़तीं। उन्होंने कृष्ण को हारिल पक्षी की लकड़ी के समान बताया है जिसे हारिल कभी नहीं छोड़ता। वे मन, वचन और कर्म से कृष्ण के प्रति समर्पित हैं। वे दिन-रात, जागते-सोते केवल कान्ह-कान्ह का जाप करती रहती हैं। योग संदेश उन्हें कड़वी ककड़ी के समान लगता है क्योंकि उनका तो पूरा अस्तित्व ही कृष्ण प्रेम में समाया हुआ है।

प्रश्न 7. गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर: गोपियों ने बड़े व्यंग्यपूर्ण अंदाज में उद्धव से कहा है कि वे योग की शिक्षा उन लोगों को दें जिनका मन चंचल है और जो अभी तक किसी के प्रेम में नहीं पड़े हैं। जिन लोगों ने प्रेम की मधुरता का अनुभव नहीं किया है, वे ही योग साधना कर सकते हैं। गोपियां यह कहना चाहती हैं कि जिनका मन पहले से ही कृष्ण प्रेम में स्थिर हो चुका है, उन्हें योग की आवश्यकता नहीं है। उनके लिए तो कृष्ण प्रेम ही सबसे बड़ा योग है। यह एक प्रकार से योग की निरर्थकता को दर्शाने वाला कटाक्ष है।

प्रश्न 8. प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर: गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण पूर्णतः नकारात्मक है। उनके अनुसार योग एक नई बीमारी के समान है जिसे उन्होंने पहले कभी न देखा है और न सुना है। योग का संदेश उन्हें कड़वी ककड़ी की तरह अरुचिकर लगता है। वे मानती हैं कि जिनका मन पहले से ही कृष्ण प्रेम में स्थिर है, उन्हें योग की आवश्यकता नहीं। उनके लिए प्रेम ही सबसे बड़ा योग है। वे योग को निर्गुण उपासना मानती हैं जो उनके सगुण प्रेम के विपरीत है। उनका स्पष्ट मत है कि प्रेम योग से कहीं श्रेष्ठ और सरल मार्ग है।

प्रश्न 9. गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर: गोपियों के अनुसार राजा का सबसे बड़ा धर्म यह है कि वह अपनी प्रजा को कष्ट न पहुंचाए और उन्हें सुखी रखे। राजा को अन्याय से प्रजा की रक्षा करनी चाहिए, न कि स्वयं अन्याय करना चाहिए। गोपियां कृष्ण पर आरोप लगाती हैं कि वे राजधर्म भूल गए हैं और अपनी प्रजा को सताने का काम कर रहे हैं। एक आदर्श राजा वही होता है जो प्रजा के कल्याण को सर्वोपरि रखता है और उनकी भलाई के लिए काम करता है। यह गोपियों का कृष्ण के प्रति एक तर्कसंगत आरोप है जो राजनीतिक और नैतिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 10. गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?
उत्तर: गोपियों को कृष्ण में कई नकारात्मक परिवर्तन दिखाई दिए हैं। पहले वे सरल और प्रेमी थे, अब वे राजनीति पढ़कर चतुर और कूटनीतिज्ञ बन गए हैं। उन्होंने प्रेम की मर्यादा का त्याग कर दिया है और अब वे राजधर्म भी भूलते जा रहे हैं। पहले वे दूसरों को अत्याचार से बचाते थे, अब स्वयं अन्याय कर रहे हैं। उन्होंने गोपियों के हृदय चुराकर अब अपना मन बदल लिया है। योग संदेश भेजकर उन्होंने गोपियों के प्रेम का अपमान किया है। इन सभी परिवर्तनों को देखकर गोपियां निराश हो गई हैं और अपना मन वापस पाना चाहती हैं।

प्रश्न 11. गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए?
उत्तर: गोपियों के वाक्चातुर्य की अनेक विशेषताएं हैं। उनकी भाषा में गहरा व्यंग्य और कटाक्ष है जो उद्धव को निरुत्तर कर देता है। वे उपमाओं और उदाहरणों का बहुत प्रभावी प्रयोग करती हैं। उनके तर्क अत्यंत तर्कसंगत और मार्मिक हैं। वे भावुकता और बुद्धि का संतुलित प्रयोग करती हैं। उनकी बातों में सच्चे प्रेम की शक्ति है जो किसी भी ज्ञान को मात दे देती है। वे अपनी सरलता के माध्यम से जटिल दार्शनिक प्रश्नों का उत्तर देती हैं। उनका वाक्चातुर्य प्रेम की श्रेष्ठता को सिद्ध करता है और दिखाता है कि सच्चा प्रेम ज्ञान से भी बड़ा होता है।

प्रश्न 12. संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए?
उत्तर: सूरदास के भ्रमरगीत की अनेक महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं। इसमें सगुण भक्ति की श्रेष्ठता का प्रतिपादन है और निर्गुण योग का खंडन किया गया है। गोपियों के माध्यम से प्रेम की निर्गुण ज्ञान पर विजय दिखाई गई है। इसमें विरह वेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति है। वाक्चातुर्य, व्यंग्य और उपालंभ का सुंदर प्रयोग है। भाषा में संगीतात्मकता और गेयता का गुण विद्यमान है। गोपियों के चरित्र चित्रण में मनोवैज्ञानिक गहराई है। प्रेम की एकनिष्ठता और अनन्यता का चित्रण है। तत्कालीन सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों पर व्यंग्य है। कुल मिलाकर यह भक्ति काव्य की उत्कृष्ट कृति है जो प्रेम की महानता को प्रतिष्ठित करती है।

————————————————————————————————————————————————————————————————————————————

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न


Q1 to Q5: बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
Q1. सूरदास किस भक्तिसंप्रदाय से संबंधित हैं?
A. रामानंदी संप्रदाय
B. वल्लभ संप्रदाय
C. नाथ संप्रदाय
D. कबीरपंथ
उत्तर: B. वल्लभ संप्रदाय


Q2. सूरदास के इन पदों में किसका वात्सल्य रूप दर्शाया गया है?
A. राम और भरत का
B. यशोदा और कृष्ण का
C. कृष्ण और रुक्मिणी का
D. अर्जुन और श्रीकृष्ण का
उत्तर: B. यशोदा और कृष्ण का


Q3. सूरदास की भाषा शैली कौन सी है?
A. खड़ी बोली
B. संस्कृत
C. ब्रजभाषा
D. अवधी
उत्तर: C. ब्रजभाषा


Q4. ‘मैया मैं नहिं माखन खायो’ पद में कृष्ण क्या कर रहे हैं?
A. चोरी मान रहे हैं
B. रोटी मांग रहे हैं
C. माखन चोरी से इनकार कर रहे हैं
D. गाय चरा रहे हैं
उत्तर: C. माखन चोरी से इनकार कर रहे हैं


Q5. सूरदास के काव्य में कौन-सा रस प्रमुख है?
A. वीर रस
B. श्रृंगार रस
C. हास्य रस
D. वात्सल्य रस
उत्तर: D. वात्सल्य रस

Q6 to Q10: एक पंक्ति या एक शब्द के उत्तर
Q6. सूरदास ने किस बालरूप का चित्रण किया है?
उत्तर: बालकृष्ण का


Q7. ‘मैया मैं नहिं माखन खायो’ पंक्ति किसकी है?
उत्तर: श्रीकृष्ण की


Q8. सूरदास की रचनाओं का प्रमुख संग्रह क्या है?
उत्तर: सूरसागर


Q9. कृष्ण पर चोरी का झूठा आरोप कौन लगाता है?
उत्तर: गोपियाँ


Q10. सूरदास ने किस भाषा में पद रचे हैं?
उत्तर: ब्रजभाषा

Q11 to Q14: लगभग 60 शब्दों में उत्तर
Q11. सूरदास के पदों में बालकृष्ण की छवि कैसी उभरती है?
उत्तर: सूरदास के पदों में बालकृष्ण की छवि अत्यंत मोहक, चपल और चतुर बालक के रूप में उभरती है। वे बालसुलभ शरारतें करते हैं, जैसे माखन चोरी और झूठ बोलना, लेकिन उनका निष्कलंक भाव और भोला व्यवहार दर्शकों को आकर्षित करता है। वात्सल्य रस इन रचनाओं में प्रमुख रूप से व्याप्त है।


Q12. ‘मैया मैं नहिं माखन खायो’ पद में कृष्ण की चतुराई कैसे झलकती है?
उत्तर: इस पद में कृष्ण अपनी मासूमियत और चतुराई से स्वयं को निर्दोष साबित करने का प्रयास करते हैं। वे कहानियाँ गढ़ते हैं कि मुँह लाल तो किसी और के थप्पड़ से हुआ है, और माखन के स्थान पर कुछ और खाया। उनकी बातों में हास्य और चपलता स्पष्ट झलकती है।


Q13. सूरदास की भाषा की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर: सूरदास की भाषा ब्रजभाषा है, जिसमें माधुर्य, सरलता और भावनात्मकता है। उनके पदों में अनुप्रास, रूपक और मानवीकरण अलंकारों का सुंदर प्रयोग है। उन्होंने अपनी भाषा को भावों के अनुरूप ढालकर उसे अत्यंत प्रभावशाली बना दिया है।


Q14. सूरदास की काव्यशैली में भक्ति रस कैसे व्यक्त होता है?
उत्तर: सूरदास की काव्यशैली में भक्ति रस वात्सल्य रूप में प्रकट होता है। वे श्रीकृष्ण के बालरूप को केंद्र में रखकर मातृस्नेह, गोपियों का प्रेम और कृष्ण की लीलाओं को जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं। उनके पदों में गहराई और भावप्रवणता होती है।

Q15 & Q16: लगभग 150 शब्दों में उत्तर
Q15. सूरदास के ‘मैया मैं नहिं माखन खायो’ पद का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: सूरदास का यह पद बालकृष्ण की मासूमियत और चंचलता को दर्शाता है। जब गोपियाँ कृष्ण पर माखन चोरी का आरोप लगाती हैं, तब वह अपनी माँ यशोदा से भोलेपन से कहते हैं कि उन्होंने माखन नहीं खाया। वे अपने बचाव में तरह-तरह के तर्क देते हैं — जैसे मुँह लाल किसी के थप्पड़ से हुआ, या कि माखन खाया नहीं, सिर्फ देखा। कृष्ण की यह बालसुलभ बातों से भरी चतुराई पाठकों को भावविभोर कर देती है। सूरदास ने वात्सल्य रस से भरपूर भाषा का प्रयोग किया है। बालकृष्ण के प्रति स्नेह, हँसी और प्रेम से ओतप्रोत यह पद न केवल मनोरंजन करता है, बल्कि मातृ–संतान संबंधों की गहराई भी प्रकट करता है।


Q16. सूरदास की भक्ति भावना और काव्यशैली पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: सूरदास हिंदी भक्ति काव्य परंपरा के एक प्रमुख कवि हैं। वे वल्लभ संप्रदाय से जुड़े और श्रीकृष्ण की लीलाओं को अत्यंत भावुक और सरस भाषा में चित्रित किया। उनके काव्य की विशेषता है—भक्ति रस की गहनता, विशेषतः वात्सल्य और श्रृंगार रस का संतुलन। उनकी भाषा ब्रजभाषा है, जो सरल, मीठी और भावनात्मक है। काव्यशैली में अनुप्रास, उपमा, रूपक आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है। उन्होंने कृष्ण को केवल ईश्वर नहीं, बल्कि बालक, मित्र और सखा के रूप में प्रस्तुत किया। उनके काव्य में कृष्ण की बाल–लीलाओं का जीवंत और चित्रात्मक वर्णन मिलता है। यही कारण है कि सूरदास का साहित्य आज भी हृदयों को छूता है और भक्ति भावना को जाग्रत करता है।

————————————————————————————————————————————————————————————————————————————

🔵 Q1. सूरदास किस भक्ति शाखा के कवि माने जाते हैं?
(A) निर्गुण भक्ति
(B) सगुण भक्ति
(C) ज्ञानमार्गी
(D) सूफी
उत्तर – (B) सगुण भक्ति
(Frequently asked in UPPSC / SSC / UP SI)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q2. सूरदास किस देवता के परम भक्त माने जाते हैं?
(A) राम
(B) विष्णु
(C) शिव
(D) कृष्ण
उत्तर – (D) कृष्ण
(Frequently asked in UPPSC / SSC)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q3. सूरदास किस भाषा में रचना करते थे?
(A) अवधी
(B) ब्रज भाषा
(C) खड़ी बोली
(D) संस्कृत
उत्तर – (B) ब्रज भाषा
(Frequently asked in SSC / UPPSC / BPSC)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q4. सूरदास का संबंध किस क्षेत्र से था?
(A) अयोध्या
(B) मथुरा-वृंदावन
(C) काशी
(D) प्रयाग
उत्तर – (B) मथुरा-वृंदावन
(Frequently asked in SSC / UPPSC)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q5. सूरदास की प्रसिद्ध रचना कौन-सी है?
(A) सूरसागर
(B) विनयपत्रिका
(C) कवितावली
(D) रामचरितमानस
उत्तर – (A) सूरसागर
(Frequently asked in UPPSC / SSC)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q6. सूरदास के काव्य में कौन-सा भाव प्रधान है?
(A) करुण भाव
(B) भक्ति भाव
(C) श्रृंगार भाव
(D) वात्सल्य भाव
उत्तर – (D) वात्सल्य भाव
(Frequently asked in SSC / UPPSC)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q7. सूरदास किस काल के कवि माने जाते हैं?
(A) आदिकाल
(B) भक्तिकाल
(C) रीतिकाल
(D) आधुनिक काल
उत्तर – (B) भक्तिकाल
(Frequently asked in SSC / UPPSC / UP SI)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q8. सूरदास की कविताओं में किसका वर्णन प्रमुख है?
(A) राधा-कृष्ण का प्रेम
(B) कृष्ण की बाल लीलाएं
(C) यशोदा का वात्सल्य
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D) उपर्युक्त सभी
(Frequently asked in UPPSC / SSC)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q9. सूरदास के सूरसागर में किस रस की प्रधानता है?
(A) भक्ति रस
(B) वात्सल्य रस
(C) करुण रस
(D) श्रृंगार रस
उत्तर – (B) वात्सल्य रस
(Frequently asked in UPPSC / BPSC / SSC)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q10. सूरदास किस परंपरा के कवि माने जाते हैं?
(A) रामभक्ति परंपरा
(B) कृष्णभक्ति परंपरा
(C) सूफी परंपरा
(D) निर्गुण परंपरा
उत्तर – (B) कृष्णभक्ति परंपरा
(Frequently asked in UPPSC / SSC)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q11. सूरदास के समकालीन कौन थे?
(A) तुलसीदास
(B) कबीर
(C) मीराबाई
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D) उपर्युक्त सभी
(Frequently asked in SSC / UPPSC)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q12. सूरदास की भाषा शैली कैसी है?
(A) ब्रज मिश्रित खड़ी बोली
(B) संस्कृतनिष्ठ हिंदी
(C) ब्रज की सहज, मधुर भाषा
(D) फारसी मिश्रित उर्दू
उत्तर – (C) ब्रज की सहज, मधुर भाषा
(Frequently asked in SSC / UPPSC / RRB)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q13. सूरदास के काव्य में किस पात्र का वात्सल्य भाव वर्णित है?
(A) राधा
(B) यशोदा
(C) कुंती
(D) द्रौपदी
उत्तर – (B) यशोदा
(Frequently asked in SSC / UPPSC)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q14. सूरदास के पदों में किस रस की प्रधानता नहीं है?
(A) भक्ति
(B) वात्सल्य
(C) वीर
(D) करुण
उत्तर – (C) वीर
(Frequently asked in SSC / UPPSC)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q15. सूरदास के किस पद में कृष्ण की चोरी लीला वर्णित है?
(A) मैया मैं नहीं माखन खायो
(B) कौन ठगौ बलि
(C) यमुना तट खेलत
(D) छाप तिलक
उत्तर – (A) मैया मैं नहीं माखन खायो
(Frequently asked in UP SI / SSC)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q16. सूरदास के पद किस परंपरा में आते हैं?
(A) नीति काव्य
(B) भक्ति काव्य
(C) रीति काव्य
(D) वीर काव्य
उत्तर – (B) भक्ति काव्य
(Frequently asked in SSC / UPPSC)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q17. सूरदास की कविता का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
(A) भक्तिरस प्रसार
(B) नीति शिक्षा
(C) वीर रस की प्रशंसा
(D) समाज सुधार
उत्तर – (A) भक्तिरस प्रसार
(Frequently asked in SSC / UPPSC)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q18. सूरदास के सूरसागर में कौन-सा संबंध विशेष चित्रित है?
(A) गुरु-शिष्य
(B) माता-पुत्र (यशोदा-कृष्ण)
(C) प्रेमी-प्रेमिका
(D) राजा-प्रजा
उत्तर – (B) माता-पुत्र (यशोदा-कृष्ण)
(Frequently asked in SSC / UPPSC)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q19. सूरदास की रचनाओं में कौन-सा तत्व नहीं है?
(A) भक्ति
(B) श्रृंगार
(C) नीति
(D) वीरता
उत्तर – (D) वीरता
(Frequently asked in SSC / UPPSC)

━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━

🔵 Q20. सूरदास की काव्य शैली में किसका विशेष प्रयोग है?
(A) पदावली शैली
(B) दोहा शैली
(C) चौपाई शैली
(D) सवैया शैली
उत्तर – (A) पदावली शैली
(Frequently asked in SSC / UPPSC)

————————————————————————————————————————————————————————————————————————————

अतिरिक्त ज्ञान :

Q भ्रमरगीत को भ्रमरगीत क्यों कहते हैं और सूरदास के भ्रमरगीत को सबसे श्रेष्ठ क्यों माना जाता हैं?

भ्रमरगीत नामकरण का कारण :


भ्रमरगीत को इस नाम से इसलिए पुकारा जाता है क्योंकि जब उद्धव ब्रज में गोपियों के पास कृष्ण का संदेश लेकर गए, तो उनके साथ वार्तालाप के दौरान एक भ्रमर (भौंरा) वहां आकर उड़ने लगा। गोपियों ने उस भ्रमर को प्रतीक बनाकर अन्योक्ति (परोक्ष कथन) के माध्यम से उद्धव और कृष्ण पर व्यंग्य किए तथा उपालंभ दिए। भारतीय साहित्य में भ्रमर रसलोलुप और व्यभिचारी नायक का प्रतीक माना जाता है, जो एक फूल पर स्थिर न रहकर विविध पुष्पों का रसास्वादन करता है।

# भ्रमरगीत के रचयिता
हिंदी साहित्य में भ्रमरगीत परंपरा के प्रमुख कवि हैं:

*सूरदास (सबसे प्रसिद्ध)

*नंददास

*परमानंददास

*मैथिलीशरण गुप्त (द्वापर काव्य में)

*जगन्नाथदास रत्नाकर (उद्धव प्रसंग)

विद्वान मानते हैं कि विद्यापति के पदों से इस परंपरा का प्रारंभ हुआ, किंतु विधिवत भ्रमरगीत परंपरा सूरदास से ही शुरू हुई।

सूरदास के भ्रमरगीत की श्रेष्ठता


सूरदास का भ्रमरगीत अन्य सभी भ्रमरगीतों से श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि:

आचार्य रामचंद्र शुक्ल (हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ आलोचक) के अनुसार, “सूरसागर(सूरदास की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक)का सबसे मर्मस्पर्शी और वाग्वैदग्ध्यपूर्ण अंश भ्रमरगीत है”। उन्होंने लगभग 400 पदों का भ्रमरगीत सार के रूप में संग्रह किया था।

सूरदास के भ्रमरगीत की विशिष्ट विशेषताएं:

*वाग्विदग्धता और वक्रता का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण

*गोपियों की तर्कपूर्ण वाक्पटुता और प्रेम की गहराई

*सगुण भक्ति का मंडन और निर्गुण भक्ति का खंडन

*संगीतात्मकता और गेयता का अद्भुत संयोजन

*मनोवैज्ञानिक गहराई और भावप्रधानता

यह विशेषताएं सूरदास के भ्रमरगीत को हिंदी साहित्य में अप्रतिम और अद्वितीय बनाती हैं।

————————————————————————————————————————————————————————————————————————————

सूरदास : पद
“ऊधौ, तुम हो अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहीं मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यों जल माहैं तेल की गागरि, बूँद न ताको लागी।
प्रीति-नदी में पाउँ न बोर्यो, दृष्टि न रूप पचागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुरु चाँटी ज्यौं पागी॥”


प्रश्न (5×1 = 5)


1.“ऊधौ, तुम हो अति बड़भागी”—इस उद्बोधन का आशय कौन-सा है?
(A) कृष्ण-सान्निध्य के सौभाग्य का सहज अभिनंदन
(B) वैराग्य-उपदेश पर करुण-व्यंग्य कि निकट होकर भी अनुराग से रिक्त हो
(C) गोपियों की विनम्र क्षमा-याचना
(D) युद्ध-विजय का अभिनंदन
उत्तर: (B)


2.“पुरइनि पात” और “तेल की गागरि” की छवियाँ किस तात्पर्य का संकेत देती हैं?
(A) प्रकृति-चित्रण की रुचि
(B) स्नेह-संसर्ग से अछूते, निष्प्रभावित मन का रूपक
(C) विलास-प्रेम का महिमामंडन
(D) लोक-रीति का वर्णन
उत्तर: (B)


3.कथन-संयोजन—सत्य विकल्प चुनिए:
(i) “प्रीति-नदी” में “पाऊँ न बोर्यो” से उपदेशात्मक वैराग्य की निष्क्रियता पर आपत्ति व्यक्त है।
(ii) “दृष्टि न रूप पचागी” से संकेत है कि सौंदर्य-वस्तु भी अनुराग-विहीन मन को स्पर्श नहीं करती।
(iii) कवि ज्ञान-योग की श्रेष्ठता स्वीकारते हुए भक्ति को गौण ठहराते हैं।
(iv) “गुरु चाँटी ज्यौं पागी” में दृढ़ आसक्ति का बिंब आता है।
विकल्प:
(A) (i), (ii) और (iv) केवल
(B) (ii) और (iii) केवल
(C) (i) और (iii) केवल
(D) (i) और (iv) केवल
उत्तर: (A)


4.इस पद में कथ्य-परिस्थिति का संकेत किसमें निहित है?
(A) नंद–यशोदा संवाद
(B) राधा–कृष्ण अंतरंग वार्ता
(C) उद्धव–गोपियों की तर्क–संधि
(D) गोपालों का सामूहिक गीत
उत्तर: (C)


5.कथन–कारण—सही विकल्प चुनिए:
कथन: कवि के यहाँ “अनुराग-विमुख” मन “अपरस” माना गया है।
कारण: ऐसा मन “जल भीतर पुरइनि पात” की भाँति स्पर्शित होकर भी भीगता नहीं—अर्थात प्रेम का प्रभाव नहीं लेता।
(A) कथन और कारण दोनों गलत हैं।
(B) कारण गलत है, किंतु कथन सही है।
(C) कथन तथा कारण दोनों सही हैं तथा कारण उसकी सही व्याख्या करता है।
(D) कथन सही है, किंतु कारण उसकी सही व्याख्या नहीं करता।
उत्तर: (C)

————————————————————————————————————————————————————————————————————————————

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *