Class 9, Hindi

Class : 9 – Hindi : Lesson 8. वाख

संक्षिप्त लेखक परिचय . (2 अंक)

ललदद कश्मीर की एक महान सन्त कवयित्री थीं, जिन्हें ‘लल्लेश्वरी’ या ‘लल्ला अरिफा’ के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म 14वीं शताब्दी में कश्मीर के पांड्रेथन गाँव (अब श्रीनगर के पास) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। ललदद ने सांसारिक जीवन त्याग कर आध्यात्मिक मार्ग अपनाया और ध्यान, साधना तथा आत्मचिंतन में जीवन बिताया।

उन्होंने कश्मीरी भाषा में ‘वाक्ष’ नामक मुक्त छंद में रचनाएँ कीं। इन वाक्षों में जीवन, भक्ति, आत्मज्ञान और सामाजिक चेतना की गहराई दिखाई देती है। वे शैव दर्शन से प्रभावित थीं, लेकिन उनका दृष्टिकोण समन्वयात्मक था – जिसमें सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता दिखाई देती है।

ललदद की वाणी आज भी कश्मीरी लोकजीवन और साहित्य में प्रेरणा का स्रोत है। उनकी कविता साधारण भाषा में गहरी आध्यात्मिक अनुभूति व्यक्त करती है। वे भारतीय भक्ति आंदोलन की अद्वितीय महिला स्वर थीं।

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन

कवयित्री परिचय
कश्मीरी भाषा की लोकप्रिय संत कवयित्री ललद्यद का जन्म कश्मीर स्थित पाम्पोर के सिमपुरा गाँव में हुआ था। इन्हें लल्लेश्वरी, लला, ललयोगेश्वरी, ललारिफा, ललदेवी आदि नामों से भी जाना जाता है। उनका देहांत भी इसी क्षेत्र में माना जाता है। ललद्यद को कश्मीरी साहित्य में वही स्थान प्राप्त है जो हिंदी साहित्य में कबीर को प्राप्त है।

वैवाहिक जीवन और आध्यात्मिक यात्रा
तत्कालीन प्रथानुसार ललद्यद का विवाह बाल्यावस्था में ही पांपोर गाँव के एक प्रसिद्ध ब्राह्मण घराने में हुआ था। उनके पति का नाम सोनपंडित बताया जाता है। वैवाहिक जीवन सुखमय न होने की वजह से ललद्यद ने घर त्याग दिया था और अपने गुरु सिद्ध श्रीकंठ से दीक्षा ली। बाल्यकाल से ही इस आदि कवयित्री का मन सांसारिक बंधनों के प्रति विद्रोह करता रहा।

काव्य शैली – वाख
ललद्यद की काव्य-शैली को ‘वाख’ कहा जाता है। जिस तरह हिंदी में कबीर के दोहे, मीरा के पद, तुलसी की चौपाई और रसखान के सवैये प्रसिद्ध हैं, उसी तरह ललद्यद के वाख प्रसिद्ध हैं। वाख चार पंक्तियों में बद्ध कश्मीरी शैली की गेय रचना है। कबीर की तरह ललद्यद ने भी ‘मसि-कागद’ का प्रयोग नहीं किया। ये वाख प्रारंभ में मौखिक परंपरा में ही प्रचलित रहे और बाद में इन्हें लिपिबद्ध किया गया।

दार्शनिक चिंतन और आध्यात्मिक संदेश
ललद्यद का काव्य भक्तिपूर्ण काव्य है। उन्होंने जाति और धर्म की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर भक्ति के ऐसे रास्ते पर चलने पर जोर दिया जिसका जुड़ाव जीवन से हो। उन्होंने धार्मिक आडंबरों का विरोध किया और प्रेम को सबसे बड़ा मूल्य बताया। ललद्यद विश्वचेतना को आत्मचेतना में तिरोहित मानती हैं। उनके अनुसार सूक्ष्म अंतर्दृष्टि द्वारा उस परम चेतना का आभास होना संभव है।

1.वाख का सार
जीवन की नश्वरता
इस वाख में कवयित्री ने अपने जीवन को कच्चे धागे की रस्सी से उपमा देकर इसकी नश्वरता को दर्शाया है। वे कहती हैं कि जिस प्रकार कच्चे सकोरे से पानी टपकता रहता है, उसी प्रकार उनका जीवन भी निरंतर क्षीण होता जा रहा है। उनके मन में बार-बार प्रभु के घर जाने की तड़प उठती है।

2.मध्यम मार्ग का संदेश
इस वाख में कवयित्री ने संतुलन पर जोर देते हुए कहा है कि न तो अधिक भोग करना चाहिए और न ही पूर्ण त्याग। अधिक भोग से कुछ प्राप्त नहीं होता और न खाने से अहंकार उत्पन्न होता है। समभाव से ही बंद द्वार की साँकल खुलती है।

3.आत्मनिरीक्षण
इस वाख में कवयित्री के आत्मालोचन की अभिव्यक्ति है। वे कहती हैं कि वे सीधी राह से आईं लेकिन सीधी राह से नहीं गईं। सुषुम्ना सेतु पर खड़ी रहकर जीवन बिता दिया। जब जेब टटोली तो कौड़ी न पाई।

4.सर्वव्यापकता का संदेश
इस वाख में भेदभाव का विरोध और ईश्वर की सर्वव्यापकता का बोध है। कवयित्री कहती हैं कि थल-थल में शिव ही बसता है, इसलिए हिंदू-मुसलमान में भेद नहीं करना चाहिए। ज्ञानी वही है जो स्वयं को जान ले, वही साहिब से पहचान रखता है।

साहित्यिक योगदान
लोक-जीवन के तत्वों से प्रेरित ललद्यद की रचनाओं में तत्कालीन पंडिताऊ भाषा संस्कृत और दरबार के बोझ से दबी फारसी के स्थान पर जनता की सरल भाषा का प्रयोग हुआ है। यही कारण है कि ललद्यद की रचनाएँ सैकड़ों सालों से कश्मीरी जनता की स्मृति और वाणी में आज भी जीवित हैं। वे आधुनिक कश्मीरी भाषा का प्रमुख स्तंभ मानी जाती हैं। योगिनी ललद्यद संसार की महानतम आध्यात्मिक विभूतियों में से एक हैं, जिन्होंने अपने जीवनकाल में ही परमविभु का मार्ग खोज लिया था।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न


कक्षा 9, हिंदी खितिज, अध्याय 10 – वाख (ललद्यद)
प्रश्न 1. ‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?

उत्तर: यहाँ ‘रस्सी’ शब्द मनुष्य की साँसों की डोरी के लिए प्रयुक्त हुआ है, जिसके सहारे वह शरीर रूपी नाव खींच रही है। यह रस्सी कच्चे धागे से बनी होने के कारण अत्यंत कमजोर और नश्वर है। कवयित्री ने जीवन जीने के साधनों को रस्सी के रूप में दर्शाया है जो स्वभाव में कच्ची अर्थात् क्षणभंगुर है।

प्रश्न 2. कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?

उत्तर: कवयित्री के मुक्ति के प्रयास निम्नलिखित कारणों से व्यर्थ हो रहे हैं:

वह संसारिकता तथा मोह के बंधनों से मुक्त नहीं हो पा रही है

उसकी प्रभु भक्ति सच्चे मन से नहीं हो पा रही है

उसका शरीर एक टपकते घड़े के समान है जिससे जीवन रूपी जल लगातार टपकता जा रहा है

कमजोर साँसों रूपी डोरी से जीवन रूपी नौका को भवसागर से पार ले जाना कठिन है

प्रश्न 3. कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है?

उत्तर: कवयित्री के ‘घर जाने की चाह’ का तात्पर्य परमात्मा से मिलना है। सभी संतों के समान कवयित्री भी मानती है कि उसका असली घर वहाँ है जहाँ परमात्मा का निवास है। इसलिए वह ईश्वर की कृपा प्राप्त करने और उसी में लीन हो जाना चाहती है।

प्रश्न 4. भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई।
(ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी।

उत्तर:
(क) “जेब टटोली कौड़ी न पाई” का भाव यह है कि कवयित्री ने सहज भाव से प्रभु भक्ति न करके हठयोग का सहारा लिया। उसने योग का सहारा लिया और ब्रह्मरंध्र करते हुए पूरा जीवन बिता दिया परंतु सब व्यर्थ चला गया। जब स्वयं को टटोलकर देखा तो कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ था – जेब खाली रह गई।

(ख) इस पंक्ति का भाव यह है कि मनुष्य को संयम बरतते हुए सदैव मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए। अधिकाधिक भोग-विलास में डूबे रहने से मनुष्य को कुछ नहीं मिलता है और भोग से पूरी तरह दूरी बना लेने पर उसके मन में अहंकार जाग उठता है।

प्रश्न 5. बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है?

उत्तर: ललद्यद ने बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए निम्नलिखित उपाय सुझाए हैं:

भोग और त्याग के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए

न तो भोगों में लिप्त रहना चाहिए, न ही शरीर को सुखाना चाहिए

मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए

ईश्वर को अपने अंतःकरण में खोजना चाहिए

आत्मा में व्याप्त अज्ञानरूपी अहंकार, जातिवाद, छुआछूत आदि सामाजिक बुराइयों का त्याग करना चाहिए

समान भाव से सबको देखना चाहिए

प्रश्न 6. ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?

उत्तर: उपर्युक्त भाव निम्नलिखित पंक्तियों में व्यक्त हुआ है:

“आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माँझी को क्या दूँ, क्या उतराई?”

ये पंक्तियाँ दर्शाती हैं कि हठयोग, आडंबर और भक्ति के दिखावे से प्रभु प्राप्ति नहीं होती।

प्रश्न 7. ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?

उत्तर: ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का अभिप्राय है वह व्यक्ति जिसने आत्मा और परमात्मा के संबंध को जान लिया हो। कवयित्री के अनुसार:

ज्ञानी वह है जो अपने अंदर झाँकर देखे और अपने आप को पहचाने

जो अपने मन को पवित्र व निर्मल करे

जो अपने अंतःकरण में ईश्वर को पा लेता है

जो प्रत्येक व्यक्ति में अपने आप का दर्शन करे

जो स्वयं को जानकर ही परमात्मा को पहचान सकता है

प्रश्न 8. हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है –
(क) आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है?
(ख) आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अपने सुझाव दीजिए।

उत्तर:
(क) समाज में भेदभाव से होने वाली हानियाँ:

हिंदू-मुस्लिम का झगड़ा इसी भेदभाव की उपज है जिसके परिणाम स्वरूप भारत-पाकिस्तान दो देश बने

भेदभाव के कारण उच्च और निम्न वर्ग में सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाता

त्योहारों के समय अनायास झगड़े की स्थिति उत्पन्न हो जाती है

आपसी भेदभाव के कारण एक वर्ग दूसरे वर्ग को संदेह और अविश्वास की दृष्टि से देखता है

भेदभाव की उपज से अलगाववाद, उग्रवाद जैसी सामाजिक समस्याएँ पैदा होती हैं

समाज में सौहार्द और भाई-चारा खो जाता है

कानून व्यवस्था की समस्या उठ खड़ी होती है

(ख) आपसी भेदभाव मिटाने के सुझाव:

आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए सबसे पहले उन बातों की चर्चा ही न करें जिससे यह भेदभाव उपजता हो

सरकार अपनी नीतियों के द्वारा आपसी जाति भेदभाव को बढ़ावा न दे

राजनैतिक दल अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए लोगों की धार्मिक भावनाओं का सहारा न लें

नौकरियों, शिक्षा तथा अन्य सरकारी योजनाओं में योग्यता को आधार बनाना चाहिए

स्कूली पाठ्यक्रम भी एकता और समता पर आधारित हों

लोगों को सहनशील बनना होगा

सर्वधर्म समभाव की भावना लानी होगी

कट्टरता त्याग कर धार्मिक सौहार्द का वातावरण बनाना होगा

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न


1–7: बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ) – उत्तर सहित
‘वाख’ किस भाषा में रचित काव्य है?
A. ब्रज
B. संस्कृत
C. कश्मीरी
D. हिंदी
उत्तर: C. कश्मीरी


‘वाख’ किस छंद में रचित होते हैं?
A. गीत
B. मुक्तक
C. दोहा
D. चौपाई
उत्तर: B. मुक्तक


ललदद किस भक्ति परंपरा से जुड़ी थीं?
A. सगुण भक्ति
B. निर्गुण भक्ति
C. वैष्णव भक्ति
D. शृंगार भक्ति
उत्तर: B. निर्गुण भक्ति


ललदद किस धर्म या दर्शन से विशेष रूप से प्रभावित थीं?
A. बौद्ध
B. इस्लाम
C. शैव
D. जैन
उत्तर: C. शैव


ललदद ने अपने वाखों में किस बात पर बल दिया है?
A. सांसारिक सुख
B. धार्मिक आडंबर
C. आत्मज्ञान और साधना
D. सामाजिक रीतियाँ
उत्तर: C. आत्मज्ञान और साधना


ललदद का वास्तविक नाम क्या था?
A. ललिता देवी
B. लल्लेश्वरी
C. ललारानी
D. ललितांबिका
उत्तर: B. लल्लेश्वरी


ललदद की रचनाओं में किस प्रकार की भाषा प्रयोग होती है?
A. क्लिष्ट संस्कृत
B. लोकबोली
C. अरबी-फारसी
D. खड़ी बोली
उत्तर: B. लोकबोली

8–14: अति लघु उत्तरीय प्रश्न (एक पंक्ति/शब्द में उत्तर दें)
ललदद किस शताब्दी की कवयित्री थीं?
उत्तर: 14वीं शताब्दी


ललदद के वाख किस भावना से ओतप्रोत होते हैं?
उत्तर: आत्मानुभूति और भक्ति


वाखों में ललदद किसके अनुभव साझा करती हैं?
उत्तर: साधना और आत्मज्ञान के


ललदद किस स्थान से संबंधित थीं?
उत्तर: कश्मीर


ललदद ने सांसारिक जीवन क्यों त्यागा?
उत्तर: आत्मिक ज्ञान और साधना के लिए


ललदद के काव्य में किस तत्व की प्रधानता है?
उत्तर: आत्मबोध और ईश्वर अनुभव


वाख का अर्थ क्या है?
उत्तर: वचन या सूक्तियाँ

15–18: लघु उत्तरीय प्रश्न (50–60 शब्दों में उत्तर दीजिए)
ललदद की कविता की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर: ललदद की कविता में आत्मानुभूति, सरलता, भावात्मकता और गहराई है। उन्होंने वाखों में जीवन, भक्ति और साधना के अनुभव को सहज और मार्मिक ढंग से व्यक्त किया है। उनके वाख मानवता, सत्य और आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करते हैं।


ललदद ने भक्ति मार्ग को कैसे प्रस्तुत किया है?
उत्तर: ललदद ने भक्ति मार्ग को आत्मा और परमात्मा के मिलन का साधन बताया। उन्होंने मूर्ति पूजा, कर्मकांड और धार्मिक भेदभाव का विरोध करते हुए साधना, ध्यान और अंतर्ज्ञान पर ज़ोर दिया। उनके लिए भक्ति का अर्थ था — भीतर की यात्रा।


ललदद के वाख आज के समय में कैसे प्रासंगिक हैं?
उत्तर: आज के समय में जब मनुष्य बाहरी भौतिकता में उलझा हुआ है, ललदद के वाख आत्मचिंतन, सरलता और आंतरिक शांति की राह दिखाते हैं। वे धार्मिक सहिष्णुता, आत्मिक विकास और सच्चे मानव मूल्य अपनाने की प्रेरणा देते हैं।


ललदद ने ‘शिव’ को किस रूप में अनुभव किया है?
उत्तर: ललदद ने शिव को किसी मूर्ति या रूप में नहीं, बल्कि चेतना, आत्मा और अनुभव के रूप में जाना है। उनके अनुसार शिव हृदय में स्थित हैं और उन्हें बाहर नहीं, भीतर खोजने की आवश्यकता है।

19–20: दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (120–150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
ललदद के जीवन और साहित्य में आध्यात्मिक साधना की क्या भूमिका थी?
उत्तर: ललदद का संपूर्ण जीवन ही साधना और आत्मिक खोज में समर्पित था। उन्होंने पारिवारिक जीवन त्याग कर आत्मज्ञान के लिए कठिन तप किया। उनके वाख उनके गहरे ध्यान और अनुभूति के फल हैं। वे ईश्वर को किसी मंदिर या ग्रंथों में नहीं, बल्कि आत्मा में अनुभव करती थीं। उन्होंने बाहरी आडंबर और धार्मिक कट्टरता को निरर्थक बताया। ललदद ने जो भक्ति मार्ग अपनाया, वह निर्गुण और निराकार शिव की उपासना पर आधारित था। उनकी रचनाएँ आज भी आध्यात्मिक चेतना और साधना के मार्गदर्शन का अमूल्य स्रोत हैं।


ललदद की रचनाओं में सामाजिक चेतना और धार्मिक सहिष्णुता कैसे प्रकट होती है?
उत्तर: ललदद की रचनाओं में धार्मिक सहिष्णुता और मानवता का भाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। वे हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों में समान रूप से पूज्य थीं। उन्होंने धर्म के नाम पर होने वाले भेदभाव और पाखंड का विरोध किया। उनके वाखों में यह स्पष्ट संदेश है कि सच्चा धर्म आत्मा की शुद्धता, प्रेम और करुणा में है, न कि कर्मकांड में। उन्होंने मानव जीवन को ईश्वर की प्राप्ति का साधन माना और सभी को आत्मचिंतन और साधना की राह पर चलने की प्रेरणा दी। उनके विचार आज के सामाजिक और सांप्रदायिक तनावों के बीच शांति और समरसता का मार्ग दिखाते हैं।

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