Class 12 : Poltical Science (Hindi) – Lesson 14.क्षेत्रीय आकांक्षाएँ
पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन
🌏 व्याख्या
🔵 भूमिका:
भारत विविधता में एकता का अद्वितीय उदाहरण है, जहाँ विभिन्न भाषाएँ, धर्म, संस्कृतियाँ और भौगोलिक परिस्थितियाँ हैं। यह विविधता ही देश की शक्ति भी है, परंतु कभी-कभी यही विविधता राजनीतिक तनाव और क्षेत्रीय असंतोष का कारण भी बन जाती है। स्वतंत्रता के बाद भारत को अनेक क्षेत्रीय आकांक्षाओं का सामना करना पड़ा, जिनका समाधान संवैधानिक, लोकतांत्रिक और संघीय ढांचे के भीतर किया गया।
🟢 क्षेत्रीय आकांक्षा का अर्थ:
क्षेत्रीय आकांक्षा से तात्पर्य किसी क्षेत्र या राज्य की विशेष सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक या राजनीतिक माँगों से है, जिन्हें लोग अपनी पहचान और विकास के संदर्भ में व्यक्त करते हैं।
➡️ उदाहरण: नई राज्य की माँग, स्वायत्तता, भाषा की मान्यता, आर्थिक असमानता का समाधान इत्यादि।
🟡 स्वतंत्रता के बाद की चुनौतियाँ:
1️⃣ देश की भाषाई विविधता के कारण राज्यों के पुनर्गठन की माँगें उठीं।
2️⃣ कुछ क्षेत्रों में स्वायत्तता और अलग राज्य की माँगें हुईं।
3️⃣ उत्तर-पूर्वी राज्यों, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में क्षेत्रीय आकांक्षाएँ अधिक तीव्र थीं।
🔴 भाषाई पुनर्गठन की नीति:
संविधान में राज्यों को भाषा आधारित पुनर्गठन का अधिकार दिया गया।
📅 1953 में आंध्र प्रदेश का गठन हुआ (तेलुगु भाषी राज्य)।
📅 1956 में राज्यों के पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर भाषाई राज्यों का गठन किया गया।
➡️ इससे जनता की भावनाओं को सम्मान मिला और राष्ट्रीय एकता मजबूत हुई।
🟣 पंजाब में आकांक्षाएँ:
1️⃣ पंजाबी भाषा आधारित राज्य की माँग — 1966 में पंजाबी उपत्यका राज्य का गठन।
2️⃣ 1980 के दशक में खालिस्तान आंदोलन — धार्मिक और राजनीतिक असंतोष का परिणाम।
3️⃣ केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच समन्वय से धीरे-धीरे स्थिति नियंत्रण में आई।
🟤 जम्मू-कश्मीर में आकांक्षाएँ:
1️⃣ संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा।
2️⃣ कुछ समूहों की अलगाववादी माँगें।
3️⃣ बहुसांस्कृतिक समाज में सुरक्षा और एकता की चुनौती।
➡️ सरकार ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया और संवाद के माध्यम से समाधान के प्रयास किए।
⚪ पूर्वोत्तर राज्यों की आकांक्षाएँ:
1️⃣ नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, असम में अलग-अलग जनजातीय समूहों की अपनी पहचान की भावना।
2️⃣ आर्थिक पिछड़ेपन, सीमावर्ती असुरक्षा, प्रवासियों की उपस्थिति से असंतोष।
3️⃣ सरकार ने स्वायत्तता, पंचायती व्यवस्था और विशेष परिषदों का गठन कर समाधान की कोशिश की।
🟢 असम आंदोलन (1979–1985):
1️⃣ विदेशियों के प्रवेश का विरोध।
2️⃣ असम गण परिषद का गठन।
3️⃣ असम समझौता (1985) — मतदाता सूची सुधार और विदेशी नागरिकों की पहचान का निर्णय।
🟡 मिज़ोरम आंदोलन:
1️⃣ मिज़ो नेशनल फ्रंट की अलगाववादी माँग।
2️⃣ 1986 में मिज़ोरम समझौता हुआ, जिससे राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला।
3️⃣ लोकतांत्रिक प्रक्रिया से शांति स्थापित हुई।
🔵 त्रिपुरा और नागालैंड:
1️⃣ प्रवासियों के आगमन से जनसंख्या संतुलन बिगड़ा।
2️⃣ स्वायत्त परिषदें और विशेष सुरक्षा प्रावधान लागू किए गए।
🟠 संघवाद और लोकतंत्र की भूमिका:
भारत का संघीय ढाँचा क्षेत्रीय विविधता को स्वीकार करता है।
1️⃣ संविधान में राज्यों के अधिकारों को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया।
2️⃣ पंचायती राज संस्थाओं से स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने की शक्ति मिली।
3️⃣ लोकतांत्रिक चुनावों के माध्यम से जनता अपनी आकांक्षाएँ व्यक्त कर सकती है।
🟣 क्षेत्रीय दलों का उदय:
1️⃣ 1967 के बाद क्षेत्रीय दलों की भूमिका बढ़ी।
2️⃣ केंद्र और राज्यों के गठबंधन से बहुदलीय व्यवस्था सशक्त हुई।
3️⃣ उदाहरण: डीएमके, अकाली दल, शिवसेना, एनसीपी, टीएमसी, बीजेडी।
🔵 क्षेत्रीय आकांक्षाओं का सकारात्मक पक्ष:
1️⃣ स्थानीय मुद्दों पर ध्यान।
2️⃣ विकास योजनाओं में क्षेत्रीय संतुलन।
3️⃣ संघीय ढाँचे की लचीलापन।
🔴 नकारात्मक पक्ष:
1️⃣ अलगाववाद और हिंसात्मक आंदोलन।
2️⃣ राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती।
3️⃣ राजनीति में जातीय और सांप्रदायिक विभाजन का खतरा।
🟢 समाधान के उपाय:
1️⃣ संवाद और लोकतंत्र: सभी पक्षों को बातचीत के माध्यम से शामिल करना।
2️⃣ संवैधानिक ढाँचा: विशेष प्रावधानों और स्वायत्त परिषदों की स्थापना।
3️⃣ आर्थिक विकास: क्षेत्रीय असमानताओं को घटाना।
4️⃣ राजनीतिक प्रतिनिधित्व: स्थानीय दलों को सत्ता साझेदारी में शामिल करना।
🟡 राष्ट्रीय एकता और अखंडता का संरक्षण:
क्षेत्रीय विविधता को पहचान देना भारतीय लोकतंत्र की शक्ति है।
लोकतंत्र ने इन आकांक्षाओं को हिंसात्मक रूप लेने से रोका।
संविधान ने समानता, स्वायत्तता और अधिकारों का संतुलन स्थापित किया।
🟣 वर्तमान परिदृश्य:
आज भी कुछ क्षेत्रों में स्वायत्तता की माँगें हैं, परंतु लोकतांत्रिक संवाद, आर्थिक विकास और प्रशासनिक सुधारों से समाधान संभव है।
भारत का संघीय लोकतंत्र क्षेत्रीय विविधता को स्वीकार कर राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करता है।
✳️ निष्कर्ष:
क्षेत्रीय आकांक्षाएँ भारतीय लोकतंत्र का स्वाभाविक हिस्सा हैं।
जब इन्हें संवैधानिक सीमाओं में, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से संबोधित किया जाता है, तो ये राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाती हैं।
भारत ने विविध आकांक्षाओं को समायोजित कर यह सिद्ध किया कि लोकतंत्र ही एकमात्र स्थायी समाधान है।
📘 सारांश (लगभग 200 शब्द)
भारत में क्षेत्रीय आकांक्षाएँ सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विविधता का परिणाम हैं। स्वतंत्रता के बाद भाषा, स्वायत्तता और विकास की माँगें उठीं।
1956 में भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया, जिससे जनता की भावनाओं को सम्मान मिला।
पंजाब, असम, नागालैंड, मिज़ोरम और जम्मू-कश्मीर में विभिन्न आंदोलन हुए।
सरकार ने संवाद, समझौता और विशेष प्रावधानों से समाधान निकाले।
संघीय ढाँचे और लोकतांत्रिक संस्थाओं ने क्षेत्रीय असंतोष को हिंसात्मक रूप से बचाया।
लोकतंत्र ने विविधता को स्वीकारते हुए राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया।
क्षेत्रीय आकांक्षाएँ, यदि लोकतांत्रिक ढंग से व्यक्त हों, तो विकास और स्थिरता का मार्ग बनती हैं।
📝 त्वरित पुनरावलोकन (लगभग 100 शब्द)
🔹 क्षेत्रीय आकांक्षा = क्षेत्र की विशिष्ट माँगें।
🔹 उदाहरण: भाषा, स्वायत्तता, राज्य का गठन।
🔹 प्रमुख क्षेत्र: पंजाब, जम्मू-कश्मीर, असम, मिज़ोरम।
🔹 समाधान: संवाद, संवैधानिक प्रावधान, विकास।
🔹 1956 – भाषाई पुनर्गठन।
🔹 1985 – असम समझौता।
🔹 1986 – मिज़ोरम समझौता।
🔹 44वां संशोधन – अधिकार सुरक्षा।
➡️ निष्कर्ष: लोकतंत्र + संघवाद = क्षेत्रीय विविधता का संतुलित समाधान।
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
🔵 प्रश्न 1: निम्नलिखित में मेल करें –
अ ब
(क) सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान के आधार पर राज्य का निर्माण (i) नागालैंड/मिज़ोरम
(ख) भाषाई पहचान और क्षेत्र के साथ लगाव (iii) पंजाब
(ग) क्षेत्रीय असंतुलन के फलस्वरूप राज्य का निर्माण (ii) झारखंड/छत्तीसगढ़
(घ) आदिवासी पहचान के आधार पर आत्मनिर्भरता माँग (iv) त्रिपुरा
✔️ उत्तर:
(क)–(i), (ख)–(iii), (ग)–(ii), (घ)–(iv)
🟢 प्रश्न 2: पूर्वोत्तर के लोगों की क्षेत्रीय आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति किन रूपों में होती है?
➡️ इन आकांक्षाओं में शामिल हैं –
1️⃣ सांस्कृतिक पहचान की रक्षा की माँग
2️⃣ राजनीतिक स्वायत्तता या अलग राज्य की माँग
3️⃣ आर्थिक विकास में समान भागीदारी की माँग
4️⃣ प्रवासियों के विरुद्ध आंदोलन
5️⃣ असंतुलित विकास के कारण उत्पन्न असंतोष
💡 इन क्षेत्रों की आकांक्षाएँ भौगोलिक कठिनाइयों, जनजातीय विविधता, सीमावर्ती असुरक्षा और आर्थिक पिछड़ेपन से जुड़ी हैं। भारत सरकार ने पंचायती स्वायत्त परिषदों, विशेष योजनाओं और संवाद से इन समस्याओं के समाधान के प्रयास किए।
🟡 प्रश्न 3: पंजाब समस्या के मुख्य कारण क्या थे?
1️⃣ पंजाबी भाषा और संस्कृति की पहचान की माँग
2️⃣ धर्म आधारित राजनीति और अकाली दल की माँगें
3️⃣ धार्मिक और आर्थिक असंतुलन
4️⃣ केंद्र और राज्य के संबंधों को लेकर असहमति
💡 इन कारणों से 1980 के दशक में खालिस्तान आंदोलन जैसे अलगाववादी रुझान उभरे, जिनका समाधान लोकतांत्रिक उपायों, चुनावों और समझौतों द्वारा किया गया।
🔴 प्रश्न 4: असम समझौते पर विवादास्पद होने के क्या कारण हैं?
➡️ असम समझौते (1985) का उद्देश्य विदेशी नागरिकों की पहचान और निष्कासन था।
परंतु नागरिकता निर्धारण में कठिनाइयाँ, विस्थापन और जातीय तनाव से विवाद उत्पन्न हुआ।
✔️ समझौते ने हिंसक आंदोलनों को शांति में बदलने में सहायता की।
🟣 प्रश्न 5: जम्मू-कश्मीर की अंतर्विरोधी स्थितियों का आधार क्या है?
1️⃣ विशेष दर्जा (अनुच्छेद 370)
2️⃣ भारत के साथ विलय पर असहमति
3️⃣ बाहरी दखल और आतंकवाद
4️⃣ राज्य की विविध धार्मिक संरचना
➡️ केंद्र-राज्य संबंध, राजनीतिक नेतृत्व की भिन्नता और बाहरी हस्तक्षेप इन अंतर्विरोधों के प्रमुख कारण रहे।
⚪ प्रश्न 6: कश्मीर की स्वायत्तता के मसले पर विभिन्न पक्षों के विचार –
✔️ एक पक्ष का मत: विशेष दर्जा बना रहना चाहिए ताकि स्थानीय पहचान और स्वशासन सुरक्षित रहे।
✔️ दूसरा पक्ष: समान संविधान और नीतियाँ पूरे देश में लागू हों ताकि राष्ट्रीय एकता सुदृढ़ हो।
💬 लोकतंत्र में संवाद और जनता की इच्छा के अनुरूप समाधान आवश्यक है।
🟢 प्रश्न 7: असम आंदोलन सामाजिक अभिमान और आर्थिक पिछड़ेपन से कैसे जुड़ा था?
➡️ असम के युवाओं ने महसूस किया कि बाहर से आए प्रवासी उनकी भूमि और संसाधनों पर अधिकार जमा रहे हैं।
➡️ बेरोजगारी, आर्थिक असमानता और सांस्कृतिक पहचान के संकट ने आंदोलन को जन्म दिया।
✔️ परिणाम: असम गण परिषद का गठन और 1985 का असम समझौता।
🟡 प्रश्न 8: क्या हर क्षेत्रीय आंदोलन अलगाववादी होता है?
❌ नहीं, प्रत्येक आंदोलन अलगाववादी नहीं होता।
✅ अधिकांश आंदोलन पहचान, विकास और स्वायत्तता की माँगों से जुड़े होते हैं।
➡️ उदाहरण: तेलुगु भाषी राज्य आंध्र प्रदेश का गठन — राष्ट्रीय एकता में बाधा नहीं बनी, बल्कि सुदृढ़ता आई।
🔵 प्रश्न 9: क्या भारत के विभिन्न भागों की क्षेत्रीय माँगें “विविधता में एकता” की भावना को पुष्ट करती हैं?
✔️ हाँ, क्योंकि
1️⃣ ये भारत की सांस्कृतिक बहुलता को दर्शाती हैं।
2️⃣ लोकतांत्रिक व्यवस्था जनता की आकांक्षाओं को समायोजित करती है।
3️⃣ संविधान क्षेत्रीय पहचान को सम्मान देता है।
➡️ विविध आकांक्षाएँ राष्ट्रीय अखंडता को चुनौती नहीं, बल्कि समृद्धि का प्रतीक हैं।
🔴 प्रश्न 10: नीचे दिए गए अवतरण के आधार पर प्रश्नों के उत्तर –
📜 “हज़ारों का एक गीत… एकता की विषय वस्तु…” – सजीव बक्शा
(क) लेखक किस एकता की बात कर रहे हैं?
➡️ सांस्कृतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय एकता जो विविधता को जोड़ती है।
(ख) पुराने राज्य असम से अलग नए राज्य क्यों बनाए गए?
➡️ जनजातीय पहचान, प्रशासनिक सुविधा, संतुलित विकास और स्थानीय आकांक्षाओं के सम्मान हेतु।
(ग) क्या यह विचार भारत के सभी क्षेत्रों पर लागू हो सकता है? क्यों?
✔️ हाँ, क्योंकि भारतीय लोकतंत्र विविधता को स्वीकार कर संवाद और संघवाद से एकता सुनिश्चित करता है।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🔶 खंड – A (बहुविकल्पीय प्रश्न / वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
(प्रत्येक प्रश्न 1 अंक का है)
🔵 प्रश्न 1: क्षेत्रीय आकांक्षाएँ किससे संबंधित होती हैं?
1️⃣ क्षेत्रीय असंतुलन से
2️⃣ आर्थिक पिछड़ेपन से
3️⃣ सांस्कृतिक पहचान से
4️⃣ उपरोक्त सभी से
🟢 उत्तर: 4️⃣ उपरोक्त सभी से
🔵 प्रश्न 2: नागालैंड का गठन किस वर्ष हुआ था?
1️⃣ 1956
2️⃣ 1963
3️⃣ 1972
4️⃣ 1987
🟢 उत्तर: 2️⃣ 1963
🔵 प्रश्न 3: पंजाब में अकाली दल की मुख्य माँग क्या थी?
1️⃣ खालिस्तान
2️⃣ पंजाबी भाषी राज्य
3️⃣ धर्म आधारित राष्ट्र
4️⃣ पृथक राष्ट्र
🟢 उत्तर: 2️⃣ पंजाबी भाषी राज्य
🔵 प्रश्न 4: असम आंदोलन का मुख्य कारण क्या था?
1️⃣ विदेशी नागरिकों की समस्या
2️⃣ बेरोजगारी
3️⃣ औद्योगिक पिछड़ापन
4️⃣ सांस्कृतिक संकट
🟢 उत्तर: 1️⃣ विदेशी नागरिकों की समस्या
🔵 प्रश्न 5: असम समझौता किस वर्ष हुआ था?
1️⃣ 1983
2️⃣ 1985
3️⃣ 1987
4️⃣ 1991
🟢 उत्तर: 2️⃣ 1985
🔵 प्रश्न 6: मिज़ोरम में शांति समझौता कब हुआ था?
1️⃣ 1984
2️⃣ 1986
3️⃣ 1988
4️⃣ 1990
🟢 उत्तर: 2️⃣ 1986
🔶 खंड – B (संक्षिप्त उत्तर प्रकार प्रश्न)
(प्रत्येक प्रश्न 2 अंक का है)
🟣 प्रश्न 7: क्षेत्रीय आकांक्षा से आप क्या समझते हैं?
🟢 उत्तर:
➡️ क्षेत्रीय आकांक्षा से आशय किसी विशेष क्षेत्र की जनता की उन माँगों और अपेक्षाओं से है जो भाषा, संस्कृति, आर्थिक विकास, राजनीतिक स्वायत्तता या पहचान से जुड़ी हों।
➡️ ये आकांक्षाएँ लोकतांत्रिक व्यवस्था में समान अवसर और सम्मान की माँग करती हैं।
🟣 प्रश्न 8: जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति क्यों थी?
🟢 उत्तर:
➡️ अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष स्वायत्तता दी गई थी।
➡️ इसका अलग संविधान, झंडा और प्रशासनिक अधिकार थे, जिससे इसकी राजनीतिक स्थिति अन्य राज्यों से भिन्न रही।
🟣 प्रश्न 9: असम आंदोलन के प्रमुख उद्देश्य क्या थे?
🟢 उत्तर:
1️⃣ असम में अवैध प्रवासियों की पहचान और निष्कासन
2️⃣ सांस्कृतिक पहचान की रक्षा
3️⃣ आर्थिक एवं राजनीतिक स्वायत्तता
4️⃣ स्थानीय लोगों के अधिकारों की सुरक्षा
🟣 प्रश्न 10: क्षेत्रीय आंदोलनों के सकारात्मक परिणाम बताइए।
🟢 उत्तर:
➡️ लोकतांत्रिक संवाद की परंपरा मजबूत हुई।
➡️ नए राज्यों का गठन हुआ।
➡️ क्षेत्रीय विकास को बल मिला।
➡️ राष्ट्रीय एकता को मजबूती मिली।
🟣 प्रश्न 11: क्या क्षेत्रीय आंदोलन राष्ट्र की एकता के लिए ख़तरा हैं?
🟢 उत्तर:
❌ नहीं, क्योंकि
➡️ अधिकांश आंदोलन अलगाववादी नहीं बल्कि पहचान और विकास की माँग करते हैं।
➡️ ये भारत की संघीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को सशक्त बनाते हैं।
🟣 प्रश्न 12: भारत सरकार ने पूर्वोत्तर के आंदोलनों को शांत करने के लिए क्या उपाय किए?
🟢 उत्तर:
➡️ स्वायत्त परिषदों का गठन
➡️ विशेष आर्थिक योजनाएँ
➡️ संवाद और समझौते (जैसे मिज़ोरम शांति समझौता)
➡️ स्थानीय नेतृत्व को राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल करना
🔶 खंड–C (लघु उत्तरीय, 3 अंक प्रत्येक)
🟠 प्रश्न 13 — पंजाब समझौते के मुख्य प्रावधान क्या थे?
🟢 उत्तर — 1985 के समझौते में चंडीगढ़ का प्रश्न, सीमावर्ती क्षेत्रों का समायोजन, नहर–जल विवादों का निपटारा, आतंक व हिंसा की समाप्ति तथा सामान्य राजकीय कामकाज बहाल करने पर सहमति बनी। उद्देश्य राज्य में शांति व सहभागिता बढ़ाना था।
🟠 प्रश्न 14 — आनंदपुर साहिब प्रस्ताव विवादास्पद क्यों हुआ?
🟢 उत्तर — प्रस्ताव ने राज्य को अधिक स्वायत्त अधिकार, केंद्र के विषयों को सीमित रखने, क्षेत्रीय भाषा–संस्कृति की रक्षा तथा राजस्व पर राज्याधिकार की वकालत की। केंद्र को यह संघीय संतुलन पर प्रभावी प्रतीत हुआ, इसलिए विवाद बढ़ा।
🟠 प्रश्न 15 — जम्मू–कश्मीर की अंतर्विरोधी रेखाएँ बताइए।
🟢 उत्तर — धार्मिक भिन्नता (कश्मीर–मुस्लिम, जम्मू–हिन्दू, लद्दाख–बौद्ध), क्षेत्र–वार विकास असंतुलन, स्वायत्तता बनाम एकीकरण की राजनीतिक धाराएँ तथा बाहरी हस्तक्षेप से सुरक्षा–संबंधी तनाव—ये प्रमुख रेखाएँ रहीं।
🟠 प्रश्न 16 — स्वायत्तता पर विभिन्न पक्षों के मत क्या हैं?
🟢 उत्तर — एक मत अधिक स्वशासन की मांग करता है; दूसरा अखण्ड एकीकरण पर बल देता है; तीसरा चरणबद्ध अधिकार–विस्तार और संवाद से बीच का रास्ता सुझाता है।
🟠 प्रश्न 17 — असम आंदोलन के कारण व परिणाम।
🟢 उत्तर — कारण: बाह्य प्रवासन, रोज़गार–प्रतिस्पर्धा, सांस्कृतिक आशंका। परिणाम: 1985 का असम समझौता, नागरिकता–पंजीकरण प्रक्रिया, राजनीतिक स्थिरता के प्रयास और क्षेत्रीय स्वाभिमान की संस्थागत मान्यता।
🟠 प्रश्न 18 — क्या सभी क्षेत्रीय आंदोलन अलगाववादी होते हैं?
🟢 उत्तर — नहीं। अधिकतर आंदोलनों का केंद्र पहचान, भागीदारी और विकास है; संघीय ढाँचे में इन्हें समायोजित कर राष्ट्रीय एकता सुदृढ़ हुई—जैसे मिज़ोरम में शांति–समझौता, तेलुगु भाषी राज्य–गठन।
🟠 प्रश्न 19 — लोकतंत्र के लिए क्षेत्रीय आंदोलनों का महत्व।
🟢 उत्तर — वे शासन को उत्तरदायी बनाते, नीतियों में क्षेत्रीय आवश्यकताएँ जोड़ते, संसाधन–वितरण पर संतुलन लाते और संविधान के सहकारी संघवाद को क्रियाशील करते हैं।
🟠 प्रश्न 20 — पूर्वोत्तर के आंदोलनों के कारण।
🟢 उत्तर — ऐतिहासिक उपेक्षा, दुर्गम भौगोलिक स्थितियाँ, सांस्कृतिक–जनजातीय अस्मिता, सीमापार प्रवासन, सीमाक्षेत्रीय असुरक्षा और विकास–घाटा।
🟠 प्रश्न 21 — संघीय व्यवस्था पर प्रभाव।
🟢 उत्तर — पंचायती–स्वायत्त परिषदें, विशेष सहायता–योजनाएँ, राज्यों की बढ़ी भूमिका, अंतर–राज्यीय परिषदों व वार्ताओं की परंपरा—इनसे संघवाद जीवंत हुआ।
🟠 प्रश्न 22 — ‘विविधता में एकता’ का प्रतिबिम्ब।
🟢 उत्तर — भाषा, वेश, रीति–नीति की भिन्नता के बीच संवैधानिक ढाँचा सभी को स्थान देता है; क्षेत्रीय आकांक्षाएँ संवाद के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को पुष्ट करती हैं।
🔶 खंड–D (दीर्घ उत्तरीय, 4 अंक प्रत्येक)
🟣 प्रश्न 23 — पंजाब समस्या का समाधान कैसे साधा गया?
🟢 उत्तर — वार्ता–प्रक्रिया, आतंक–निरोध, 1985 का समझौता, प्रशासनिक पुनर्स्थापन तथा चुनावी–वैधता से सामान्य स्थिति लौटी। नागरिक सुरक्षा, कृषि–व्यापार और न्यायिक–प्रक्रियाएँ पटरी पर आईं।
🟣 प्रश्न 24 — असम आंदोलन: ऐतिहासिक व आर्थिक पक्ष।
🟢 उत्तर — औपनिवेशिक काल से प्रवासन–धारा, जनसांख्यिकीय बदलाव और संसाधन–दबाव से असुरक्षा बढ़ी। स्थानीयों को रोज़गार व भूमि–अधिकार चाहिए थे; समझौते ने पहचान, नागरिकता और विकास–पथ तय किया।
🟣 प्रश्न 25 — जम्मू–कश्मीर की विशेष स्थिति के आधार।
🟢 उत्तर — विलय की शर्तें, अनुच्छेद 370 के अंतर्गत विधायी–कार्यपालिका–न्यायिक अधिकारों का विशेष निर्धारण, अलग संविधान व ध्वज—इन्हीं कारणों से स्थिति विशिष्ट रही।
🟣 प्रश्न 26 — पूर्वोत्तर राज्यों का गठन क्यों आवश्यक हुआ?
🟢 उत्तर — प्रशासनिक सुगमता, सीमाक्षेत्रीय सुरक्षा, जनजातीय–भाषाई अस्मिता, समतामूलक विकास और लोकतांत्रिक भागीदारी बढ़ाने हेतु राज्य–पुनर्गठन किया गया।
🔶 खंड–E (दीर्घ विश्लेषणात्मक, 6 अंक प्रत्येक)
🟥 प्रश्न 27 — क्या क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए लाभकारी हैं? समालोचनात्मक विवेचन।
🟢 उत्तर —
क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोकतंत्र की स्वाभाविक अभिव्यक्ति हैं क्योंकि शासन–व्यवस्था का मूलाधार जन–सहमति व सहभागिता है। जब किसी क्षेत्र में भाषा, संस्कृति, संसाधन–वितरण, रोजगार, आधारभूत सुविधाएँ अथवा प्रतिनिधित्व से संबंधित असमानताएँ अनुभव होती हैं, तब वहीं से मांगें उठती हैं। इन मांगों के लोकतांत्रिक शमन से शांति, वैधता और नीतिगत प्रासंगिकता बढ़ती है।
पहला, समतामूलक विकास—आंदोलन नीति–निर्माताओं को क्षेत्र–विशिष्ट आवश्यकताओं की ओर उन्मुख करते हैं, जिससे वित्त–वितरण, अवसंरचना, शिक्षा–स्वास्थ्य में सुधार होता है।
दूसरा, संवैधानिक संघवाद का सुदृढ़ीकरण—स्वायत्त परिषदें, विशेष पैकेज, अंतर–सरकारी संस्थान सक्रिय होते हैं; निर्णय–प्रक्रिया विकेन्द्रीकृत बनती है।
तीसरा, पहचान–सम्मान—भाषाई–सांस्कृतिक संरक्षण से अलगाव का भाव घटता है और राष्ट्रीय एकता को टिकाऊ आधार मिलता है।
चौथा, संघर्ष–निराकरण—संवाद, चुनाव, समझौते तथा न्यायिक–निराकरण से हिंसा की प्रवृत्ति कम होती है।
हाँ, यदि नेतृत्व संकीर्ण व बहिष्कारी हो, बाहरी हस्तक्षेप हो या हिंसा अपनाई जाए तो जोखिम बढ़ता है; परन्तु संवैधानिक उपाय, पारदर्शिता और सतत संवाद इन जोखिमों को नियंत्रित कर लाभ को स्थायी बना देते हैं। इसलिए संतुलित निष्कर्ष यह है कि क्षेत्रीय आकांक्षाएँ लोकतंत्र के लाभकारी प्रेरक तत्व हैं, बशर्ते उनका समाधान अहिंसक, संवैधानिक और सहभागितापूर्ण हो।
🟥 प्रश्न 28 — भारत की राष्ट्रीय एकता में क्षेत्रीय आंदोलनों की भूमिका पर विस्तृत टिप्पणी।
🟢 उत्तर —
भारत की एकता बहुलतावादी सहमति पर आधारित है, एकरूपता पर नहीं। क्षेत्रीय आंदोलनों ने इसी सहमति को ठोस रूप दिया।
समावेशन—अस्मिता–निष्ठ मांगें संविधान के भीतर स्थान पाती हैं; इससे ‘हम बनाम वे’ का द्वंद्व घटता है।
नीतिगत उत्तरदायित्व—केंद्र–राज्य दोनों को विकास–घाटे, रोज़गार, भूमि–अधिकार, विस्थापन, पर्यावरण जैसे मुद्दों पर ठोस कार्यक्रम बनाने पड़ते हैं।
राजनीतिक एकीकरण—हिंसा–प्रवण क्षेत्रों में भी चुनावी भागीदारी बढ़ती है; दल व नेतृत्व स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय मंच पर रखते हैं।
सीमाक्षेत्रीय सुदृढ़ता—पूर्वोत्तर, सीमावर्ती पट्टी और पहाड़ी क्षेत्रों में अस्मिता–सम्मान से जन–सहयोग मिलता है, जिससे सुरक्षा–विकास दोनों सुदृढ़ होते हैं।
अतः क्षेत्रीय आंदोलनों ने भारत की एकता को चुनौती देने के बजाय एकता को बहुपदीय आधार दिया है—जहाँ विभिन्नताएँ पहचान खोए बिना राष्ट्रीय धारा में समाहित होती हैं।
🟥 प्रश्न 29 — असम समझौता: प्रमुख धाराएँ, निष्पादन–चुनौतियाँ और प्रभाव का सम्यक् विश्लेषण।
🟢 उत्तर —
धाराएँ:
पूर्व निर्धारित तिथियों के अनुसार अवैध प्रवासियों की पहचान, पंजीकरण व निष्कासन की रूपरेखा।
मतदाता–सूचियों का परिष्कार, नागरिकता–सत्यापन व दस्तावेज़ीकरण।
स्थानीय भाषा–संस्कृति व भूमि–अधिकार की सुरक्षा; शिक्षा–रोज़गार में स्थानीयों को प्राथमिकता।
विकास–पैकेज, औद्योगिक–आधार, परिवहन–संचार तथा प्रशासनिक पुनर्संगठन।
निष्पादन–चुनौतियाँ: दस्तावेज़ी प्रमाण की कमी, मानवीय दृष्टि से कठिन निर्णय, लंबी न्यायिक–प्रक्रिया, सीमापार गतिशीलता और राजनीतिक मतभेद।
प्रभाव: हिंसा में कमी, लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पुनः भरोसा, क्षेत्रीय दलों का संस्थानीकरण, पहचान–सम्मान की वैधता तथा चरणबद्ध प्रशासनिक सुधार। फिर भी नागरिकता–सत्यापन जैसे प्रश्न समय–समय पर तनाव उत्पन्न करते हैं, जिनका समाधान पारदर्शी प्रक्रिया, मानवीय दृष्टिकोण और अंतर–सरकारी समन्वय से सम्भव है। समग्रतः समझौते ने असम को संवैधानिक रास्ते पर लौटाया और दीर्घकालीन समाधान की नींव रखी।
🟥 प्रश्न 30 — ‘विविधता में एकता’ का भारतीय अनुभव: सिद्धान्त, संस्थाएँ और व्यावहारिक परिणाम।
🟢 उत्तर —
भारतीय एकता का मूल सिद्धान्त है—बहुलता का सम्मान। संविधान ने भाषाई–सांस्कृतिक अधिकार, अनुसूचित जनजाति–क्षेत्रों की विशिष्ट व्यवस्थाएँ, सहकारी संघवाद, स्वतंत्र न्यायपालिका और स्वतंत्र चुनाव–प्रणाली दी।
संस्थागत आधार:
राज्यों का पुनर्गठन—भाषा व अस्मिता के अनुरूप सीमाएँ।
पंचायती–स्वायत्त परिषदें व स्वायत्त क्षेत्रीय परिषदें—स्थानीय स्वशासन।
वित्तीय आयोग, अंतर–राज्यीय परिषद—वितरण व समन्वय।
व्यावहारिक परिणाम:
अलग–अलग क्षेत्रों की भाषा–संस्कृति संरक्षित रहते हुए राष्ट्र–निष्ठा सुदृढ़ हुई।
आंदोलन–जनित असंतोष संवाद, समझौते और चुनाव से शांत हुआ।
सीमाक्षेत्रों में जन–भागीदारी व विकास–सहयोग बढ़ा।
इस प्रकार भारत में ‘विविधता में एकता’ कोई नारा नहीं, बल्कि जीवित लोकतांत्रिक प्रक्रिया है जो क्षेत्रीय आकांक्षाओं को स्थान देकर अखण्डता को टिकाऊ बनाती है।
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प्रतियोगी परीक्षा के प्रश्न
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एक पृष्ठ में पुनरावृत्ति
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मस्तिष्क मानचित्र
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दृश्य सामग्री
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