Class 11 : हिंदी साहित्य – Lesson 16. हस्तक्षेप
संक्षिप्त लेखक परिचय
📘 लेखक परिचय — श्रीकांत वर्मा
🟢 श्रीकांत वर्मा का जन्म 18 सितंबर 1931 को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर में हुआ था।
🟡 उनके पिता राजकिशोर वर्मा पेशे से वकील थे। प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर और रायपुर में हुई तथा उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से 1956 में हिंदी साहित्य में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की।
🔵 तत्पश्चात वे दिल्ली चले गए और लगभग एक दशक तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में पत्रकार के रूप में कार्य किया।
1966 से 1977 तक वे ‘दिनमान’ पत्रिका में विशेष संवाददाता रहे।
🔴 उन्हें राजनीति में भी गहरी रुचि थी। 1976 में वे कांग्रेस पार्टी के टिकट पर राज्यसभा सदस्य बने तथा 1980 में इंदिरा गांधी के राष्ट्रीय चुनाव अभियान के प्रमुख प्रबंधक रहे।
बाद में राजीव गांधी के परामर्शदाता और राजनीतिक विश्लेषक के रूप में भी कार्य किया।
🟢 प्रसिद्ध नारा “गरीबी हटाओ” देने का श्रेय भी श्रीकांत वर्मा को ही जाता है।
🟡 उनका निधन 25 मई 1986 को न्यूयॉर्क में कैंसर के कारण हुआ।
🔵 उनकी प्रमुख रचनाओं में —
काव्य-संग्रह: ‘भटका मेघ’ (1957), ‘मायादर्पण’ (1967), ‘दिनारंभ’ (1967), ‘जलसाघर’ (1973), ‘मगध’ (1984)
कहानी-संग्रह: ‘झाड़ी’, ‘संवाद’
यात्रा-वृत्तांत: ‘अपोलो का रथ’ शामिल हैं।
🔴 उन्हें ‘मगध’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार (1987, मरणोपरांत), मध्यप्रदेश सरकार का तुलसी पुरस्कार (1973), आचार्य नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार (1983), शिखर सम्मान (1980) तथा केरल सरकार का कुमार आशान पुरस्कार (1984) से सम्मानित किया गया।
📖 हस्तक्षेप — कविता परिचय
यह कविता श्रीकांत वर्मा के प्रसिद्ध काव्य-संग्रह ‘मगध’ से ली गई है और एनसीईआरटी (कक्षा 11, अंतरा भाग-1) में संकलित है।
इसमें कवि ने ‘मगध’ को प्रतीक के रूप में लेकर निरंकुश शासन, सत्ता की क्रूरता, जनतंत्र की विफलता और नागरिकों के मौन भय पर तीखा व्यंग्य किया है।
🌫️ कविता का सारांश:
🔹 पहला खंड — शांति का भय
“कोई छींकता तक नहीं इस डर से कि मगध की शांति भंग न हो जाए।”
👉 जनता इतनी भयभीत है कि सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया भी नहीं दिखाती।
यहाँ ‘छींक’ विरोध का प्रतीक है, और सत्ता ने यह भ्रम फैला दिया है कि शांति ही मगध की स्थिरता का आधार है।
🔹 दूसरा खंड — व्यवस्था में दखल का भय
“कोई चीखता तक नहीं इस डर से कि मगध की व्यवस्था में दखल न पड़ जाए।”
👉 लोग अत्याचार सहकर भी चुप हैं। कवि कहता है — मगध अब नाम का राज्य है, रहने योग्य नहीं।
यह जनतंत्र की मृतप्राय स्थिति पर कटाक्ष है।
🔹 तीसरा खंड — टोकने का भय
“कोई टोकता तक नहीं इस डर से कि मगध में टोकने का रिवाज न बन जाए।”
👉 जनता गलत नीतियों पर प्रश्न भी नहीं उठाती क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं विरोध की परंपरा शुरू न हो जाए।
🔹 चौथा खंड — अनिवार्य हस्तक्षेप
“जब कोई नहीं करता तब नगर के बीच से गुजरता हुआ मुर्दा यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है— मनुष्य क्यों मरता है?”
👉 कवि कहता है कि चाहे समाज कितना भी मौन क्यों न रहे, मृत्यु स्वयं हस्तक्षेप बन जाती है।
यह पंक्ति इस बात की प्रतीक है कि अन्याय के विरुद्ध मौन रहना भी मृत्यु के समान है।
✨ कविता का केंद्रीय संदेश:
👉 जनतंत्र में मौन या निष्क्रियता अन्याय की सहमति है।
👉 किसी भी व्यवस्था को निरंकुश होने से रोकने के लिए हस्तक्षेप और प्रतिरोध आवश्यक है।
👉 **सत्ता की आलो
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन
🌟 मुख्य निष्कर्ष
श्रीकांत वर्मा की कविता “हस्तक्षेप” सत्ता की निरंकुशता, समाज की मौन स्वीकृति और अंततः आवश्यक जन-विद्रोह के विचार को प्रखरता से व्यक्त करती है। “मगध” रूपक के माध्यम से कवि यह दिखाते हैं कि जब तक जनता स्वयं हस्तक्षेप नहीं करेगी, तब तक व्यवस्था यथास्थिति में बनी रहेगी और मानवता का धर्म सत्ता के तले दम तोड़ता रहेगा।
🏙️ विषयवस्तु
कविता दो स्पष्ट खण्डों में विभाजित है:
पहला खण्ड जनता की भयभीत मौनता को दर्शाता है। लोग कुछ भी नहीं कहते — यहाँ तक कि “कोई छींकता तक नहीं” — ताकि व्यवस्था द्वारा परिभाषित तथाकथित “शांति” भंग न हो।
दूसरा खण्ड इस मौनता के विरुद्ध हस्तक्षेप की अनिवार्यता को रेखांकित करता है। कवि कहते हैं — यदि एक बार किसी ने “दख़ल” देना शुरू कर दिया, तो यह प्रक्रिया रुक नहीं सकती।
कविता के अंतिम हिस्से में “मुर्दा” (मृत देह) स्वयं प्रश्न करता है — “मनुष्य क्यों मरता है?” — यह प्रश्न मौन से भी अधिक तीव्र और क्रांतिकारी स्वर बनकर सत्ता की जड़ता को चुनौती देता है।
🪶 प्रसंग
यह कविता ‘अंतरा’ भाग-I में संकलित है। यहाँ “मगध” मात्र ऐतिहासिक महाजनपद नहीं, बल्कि आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था का रूपक है, जहाँ विरोध को “अशांति” घोषित कर दिया जाता है और मौन को ही व्यवस्था का आधार बना दिया जाता है। कवि समाज की इसी स्थिति पर तीखा व्यंग्य करते हैं और हस्तक्षेप के माध्यम से परिवर्तन की पुकार करते हैं।
💫 भावार्थ
प्रथम खण्ड: जनता की चुप्पी ही सत्ता के अस्तित्व को बनाए रखती है। डर और निष्क्रियता अन्याय को स्थायित्व प्रदान करते हैं।
द्वितीय खण्ड: हस्तक्षेप के बिना परिवर्तन असंभव है। प्रश्न उठाना और विरोध करना एक सामाजिक “रिवाज” बनना चाहिए।
अंतिम प्रश्न: “मनुष्य क्यों मरता है?” — यह प्रश्न मानवीय संवेदना की मृत्यु का प्रतीक है और सत्ता को उसके पापों के लिए कटघरे में खड़ा करता है।
🔦 प्रतीक
🏰 मगध: लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था का प्रतीक, जहाँ शांति का अर्थ है — दबाई गई आवाज़ों का मौन।
🤐 छींक / चीख: मानवीय स्वतंत्रता की आवाज़ें, जो भय से दबा दी गई हैं।
🔄 रिवाज: सामाजिक चेतना का प्रतीक, जो एक बार शुरू हो जाए तो सत्ता को चुनौती देता है।
⚰️ मुर्दा: मृत संवेदना और दमित न्याय का प्रतीक, जो अंततः सत्ता से सबसे सशक्त प्रश्न करता है।
🪶 शैली
कविता मुक्तछंद में रची गई है, जिसमें तीखे व्यंग्य, गहन प्रश्नोक्ति और सशक्त रूपक प्रयोग से प्रभावशाली वातावरण बनता है।
भाषा सरल, बोलचाल की और जन-संवेदना के निकट है।
अंतिम पंक्ति की प्रश्नोक्ति कविता को भावनात्मक चरम पर पहुँचा देती है।
🧭 विचार
सत्ता द्वारा “शांति” के नाम पर लोक-स्वर को दबाना एक सामाजिक अपराध है।
जनता की मौन स्वीकृति किसी भी तानाशाही को सशक्त बनाती है।
हस्तक्षेप केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि नैतिक दायित्व है।
प्रश्न उठाना ही सत्ता की अजेय दीवार को तोड़ने का पहला कदम है।
🗣️ भाषा
भाषा पूर्णतः शुद्ध हिन्दी में है।
तद्भव शब्दों जैसे “टोकता”, “कतराओ”, “हस्तक्षेप” का प्रयोग कविता को व्यंग्यात्मक धार देता है।
कोई अंग्रेज़ी शब्द नहीं, केवल अंतरराष्ट्रीय अंक प्रयुक्त हैं।
🏛️ सामाजिक–सांस्कृतिक संदर्भ
“मगध” का प्रतीक भारतीय समाज और राजनीति के ऐतिहासिक विकास से जुड़ा है। सत्ता द्वारा भय और दमन के माध्यम से जनता की आवाज़ दबाने की प्रवृत्ति प्राचीन काल से आधुनिक लोकतंत्र तक जारी रही है। यह कविता इसी प्रवृत्ति पर प्रहार करती है और नागरिक समाज को सक्रिय हस्तक्षेप के लिए प्रेरित करती है।
🔍 गहन विश्लेषण
मौन बनाम दमन: सत्ता शांति के नाम पर जनता को निष्क्रिय बनाती है, जबकि यही मौन अन्याय की जड़ है।
हस्तक्षेप की आवश्यकता: सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन केवल तभी संभव है जब नागरिक हस्तक्षेप करें।
मुर्दे का प्रश्न: यह प्रश्न सत्ता के लिए सबसे भयावह चुनौती है — जब मृत संवेदना भी बोल उठे, तब परिवर्तन अटल हो जाता है।
व्यंग्य की शक्ति: छींक, चीख और हस्तक्षेप जैसे सामान्य शब्द सत्ता के ढोंग को उघाड़ने का सशक्त माध्यम बनते हैं।
📖 उपसंहार
“हस्तक्षेप” केवल एक कविता नहीं, बल्कि एक चेतावनी है —
👉 जब तक जनता प्रश्न नहीं करेगी, सत्ता मौन को शांति मानती रहेगी।
👉 जब तक हस्तक्षेप नहीं होगा, व्यवस्था की दीवारें जस की तस रहेंगी।
👉 और जब मुर्दा भी प्रश्न पूछेगा, तब परिवर्तन की नींव हिलने लगेगी।
श्रीकांत वर्मा की यह कविता हमें सिखाती है कि विरोध करना ही सच्चा मानव-धर्म है और मौन रहना अन्याय को आमंत्रित करना है।
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
🟠प्रश्न 1. मगध के माध्यम से ‘हस्तक्षेप’ कविता किस व्यवस्था की ओर इशारा कर रही है?
🔵उत्तर: यह कविता ऐसे दमनात्मक, भयभीत और निरंकुश सत्ता-तंत्र की ओर संकेत करती है जहाँ “शांति” के नाम पर नागरिकों की आवाज़ दबा दी जाती है, प्रश्न उठाना अपराध माना जाता है और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए संवेदना के स्थान पर क्रूरता और चुप्पी की संस्कृति थोप दी जाती है।
🟠प्रश्न 2. व्यवस्था को ‘निर्मम’ प्रवृत्ति से बचाए रखने के लिए उसमें ‘हस्तक्षेप’ ज़रूरी है – कविता की दृष्टि में रखते हुए अपना मत दीजिए।
🔵उत्तर: कविता के अनुसार सत्ता बिना जन-हस्तक्षेप के निर्मम हो जाती है। जनता का सजग प्रश्न, आपत्ति, असहमति और नैतिक प्रतिरोध ही व्यवस्था को मानवीय बनाए रखते हैं। इसलिए हिंसा नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण, नागरिक-कर्तव्यबद्ध हस्तक्षेप आवश्यक है ताकि निर्णयों पर जवाबदेही बने और अन्याय की रोकथाम हो।
🟠प्रश्न 3. मगध निवासी किसी भी प्रकार से शासन व्यवस्था में हस्तक्षेप करने से क्यों कतराते हैं?
🔵 उत्तर:लंबे दमन का भय, “शांति” के भ्रम को जीवन-मूल्य मान लेना, सुख-सुविधा और आत्मरक्षा की प्रवृत्ति, तथा प्रतिरोध के दंड का अनुभव—ये कारण मगधवासियों को हस्तक्षेप से रोकते हैं। धीरे-धीरे यह चुप्पी आदत बन गई है, इसलिए वे अन्याय देखकर भी न टोकते हैं, न चौंकते हैं।
🟠प्रश्न 4. ‘मगध अब कहने को मगध है, रहने को नहीं’ – के आधार पर मगध की स्थिति का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
🔵उत्तर: नाम भर “मगध” शेष है; वास्तविक मगध रहने योग्य नहीं रहा। सार्वजनिक जीवन में डर और संदेह है, समानता-न्याय अनुपस्थित हैं, संवाद खत्म है और नागरिक अपने ही नगर में परदेसी-से हैं। यानी इतिहास का वैभव बचा है, पर वर्तमान में मानवीय गरिमा और स्वतंत्र श्वास नहीं।
🟠प्रश्न 5. मुरदे का हस्तक्षेप क्या प्रश्न खड़ा करता है? प्रश्न की सार्थकता को कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
🔵 उत्तर:“मुरदे का हस्तक्षेप” प्रतीकात्मक है—यदि मृत भी हस्तक्षेप कर रहे हैं तो जीवितों की चुप्पी का अर्थ क्या है? कविता पूछती है: क्या हम इतने निष्प्राण हो गए कि अन्याय पर बोलने का साहस भी मर गया? यह प्रश्न जीवित मनुष्य की नैतिक जिम्मेदारी को केंद्र में लाकर चुप्पी के अपराध को उजागर करता है।
🟠प्रश्न 6. ‘मगध को बनाए रखना है, तो, मगध में शांति रहनी ही चाहिए’ – भाव स्पष्ट कीजिए।
🔵उत्तर: यह पंक्ति सत्ता की तर्कहीन जिद और व्यंग्य का संकेत है। यहाँ “शांति” का अर्थ न्यायपूर्ण शांति नहीं, बल्कि विरोध-विराम और मौन है। कवि बताता है कि इसी जुमले से सत्ता असहमति दबाती है; वास्तविक संरक्षण के लिए सच बोलना और अन्याय पर हस्तक्षेप करना ज़्यादा आवश्यक है।
🟠 प्रश्न 7.‘हस्तक्षेप’ कविता को क्रूरता और उसके कारण पैदा होनेवाले प्रतिरोध की कविता है – स्पष्ट कीजिए।
🔵उत्तर: कविता में क्रूर, असंवेदनशील शासन का चित्र है—जहाँ कोई छींकता, चौंकता, टोकता तक नहीं। पर साथ-ही “हस्तक्षेप” का आह्वान है—नैतिक प्रतिरोध का। कवि दिखाता है कि क्रूरता जितनी घनी होगी, उतना ही ज़रूरी और अपरिहार्य नागरिक-हस्तक्षेप होगा; यही कविता का संदेश और प्रतिश्रुति है।
🟠प्रश्न 8. निम्नलिखित लाक्षणिक प्रयोगों को स्पष्ट कीजिए –
(क) कोई छींकता तक नहीं
🔵उत्तर: भय और दमन ऐसा है कि स्वाभाविक प्रतिक्रिया भी दब जाती है; वातावरण तनावरहित नहीं, आतंकग्रस्त है।
(ख) कोई चौंकता तक नहीं
🔵 उत्तर:अन्याय-दृश्य सामान्य लगने लगा है; संवेदनाएँ सुन्न हो गई हैं और असामान्य भी सामान्य प्रतीत होता है।
(ग) कोई टोकता तक नहीं
🔵उत्तर: गलत पर आपत्ति उठाने का साहस खत्म; नागरिक-कर्तव्य (टोकना/टालना) का लोप—यही चुप्पी व्यवस्था को क्रूर बनाती है।
🟠प्रश्न 9. निम्नलिखित पंक्तियों को संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए –
(क) मगध को बनाए रखना है, तो, …………… ‘मगध’ है, तो शांति है।
🔵 संदर्भ: कविता सत्ता-समर्थित “शांति” के नारे पर प्रश्न उठाती है। व्याख्या: सत्ता कहती है—मगध तभी टिका रहेगा जब शांति (अर्थात् मौन) रहे; कवि विडंबना उजागर करता है कि यह शांति न्यायविहीन है, इसलिए यह संरक्षण नहीं, दमन का औचित्य है।
(ख) मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए ……………क्या कहेंगे लोग ?
🔵 संदर्भ: “व्यवस्था” शब्द का सत्ता-पक्षीय अर्थ कविता में आलोचित है। व्याख्या: व्यवस्था के नाम पर कठोर नियंत्रण थोप दिया गया है; परिणाम यह कि मगध “अब” केवल नाम भर रह गया—जीवन, स्वातंत्र्य और आत्मसम्मान चुक गए।
(ग) जब कोई नहीं…. मनुष्य क्यों मरता हैं ?
🔵 संदर्भ: कवि जीवितों की निष्क्रियता पर तीखा प्रश्न करता है। व्याख्या: क्या हम इतने निर्जीव हो चुके कि यात्रा (जीवन-यात्रा/कर्म) भी नहीं कराते? अंत में सवाल—क्या हमारी अपनी मृत्यु भी निरर्थक हो गई? यह पंक्ति आत्मावलोकन और जागरण का तीव्र आह्वान है।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🔵 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ)
🟢 प्रश्न 1
“कोई छींकता तक नहीं” पंक्ति में ‘छींकना’ का क्या प्रतीकात्मक अर्थ है?
🔴 1️⃣ भय का प्रतिबिंब
🟡 2️⃣ स्वतंत्रता का उत्सव
🟢 3️⃣ मानवता का उत्साह
🔵 4️⃣ सत्ता का उल्लंघन
✅ उत्तर: 1️⃣ भय का प्रतिबिंब
🟢 प्रश्न 2
“मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए” का तात्पर्य क्या है?
🔴 1️⃣ अराजकता से भय
🟡 2️⃣ लोकतंत्र की मजबूती
🟢 3️⃣ न्याय की स्थापना
🔵 4️⃣ निरंकुशता का अनिवार्य होना
✅ उत्तर: 4️⃣ निरंकुशता का अनिवार्य होना
🟢 प्रश्न 3
“एक बार शुरू होने पर कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप” में ‘हस्तक्षेप’ क्या दर्शाता है?
🔴 1️⃣ सामाजिक सुधार
🟡 2️⃣ विद्रोह की प्रक्रिया
🟢 3️⃣ व्यक्तिगत प्रयास
🔵 4️⃣ प्राकृतिक घटना
✅ उत्तर: 2️⃣ विद्रोह की प्रक्रिया
🟢 प्रश्न 4
“मुर्दा…यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है” में मुर्दे का हस्तक्षेप किस प्रकार का अलंकार है?
🔴 1️⃣ उत्प्रेक्षा
🟡 2️⃣ रूपक
🟢 3️⃣ उपमा
🔵 4️⃣ मानवीकरण
✅ उत्तर: 4️⃣ मानवीकरण
🟢 प्रश्न 5
“मनुष्य क्यों मरता है?” प्रश्न के माध्यम से कवि ने क्या इंगित किया है?
🔴 1️⃣ जीवन का मूल्य
🟡 2️⃣ प्रतिरोध का प्रारंभ
🟢 3️⃣ प्राकृतिक सत्य
🔵 4️⃣ दिव्यता की अनुभूति
✅ उत्तर: 2️⃣ प्रतिरोध का प्रारंभ
✏️ लघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)
🟠 प्रश्न 6
“मगध है, तो शांति है” पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट करें।
🔵 उत्तर: कवि का आशय है कि जनतांत्रिक व्यवस्था (मगध) को बनाए रखने के लिए शांति जरूरी मानी जाती है, भले ही वह शांति निरंकुश सत्ता के कारण ही क्यों न हो।
🟠 प्रश्न 7
“टोकता तक नहीं…टोकने का रिवाज न बन जाए” का क्या अर्थ है?
🔵 उत्तर: यह पंक्ति बताती है कि लोग सत्ता से भयभीत होकर विरोध या सवाल करने की आदत नहीं डालना चाहते, ताकि शोषणकारी व्यवस्था बिना बाधा चलती रहे।
🟠 प्रश्न 8
“जब कोई नहीं करता तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ मुर्दा” का उद्देश्य क्या है?
🔵 उत्तर: जब समाज चुप रहता है, तब मृत व्यक्ति भी प्रश्न उठाकर उस चुप्पी को तोड़ता है और विद्रोह की शुरुआत करता है।
🟠 प्रश्न 9
“मगध अब कहने को मगध है, रहने को नहीं” से कवि क्या कहना चाहता है?
🔵 उत्तर: कवि बताना चाहता है कि लोकतंत्र केवल नाम मात्र का रह गया है, वास्तव में उसका अस्तित्व खत्म हो चुका है।
🟠 प्रश्न 10
कविता में व्यंग्य की प्रधानता किस पंक्ति में दिखती है?
🔵 उत्तर: “कोई छींकता तक नहीं…कि मगध की शांति भंग न हो जाए” – यह पंक्ति व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य करती है।
📜 मध्यम उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)
🔴 प्रश्न 11
“हस्तक्षेप” कविता में कवि ने सत्ता और जनता के बीच रिश्ते कैसे चित्रित किए हैं?
🔵 उत्तर:
कवि श्रीकान्त वर्मा सत्ता और जनता के बीच असमान शक्ति-संतुलन को उजागर करते हैं। सत्ता इतनी निरंकुश है कि लोग छींकने तक से डरते हैं। जनता की यह चुप्पी शोषणकारी व्यवस्था को और मजबूत करती है। फिर भी, एक “मुर्दे” द्वारा उठाया गया प्रश्न उस व्यवस्था को चुनौती देता है और जनता को प्रतिरोध के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार कवि दिखाते हैं कि सत्ता का आतंक जनता में असहायता तो लाता है, लेकिन एक सवाल ही परिवर्तन का आरंभ बनता है।
🔴 प्रश्न 12
कविता में प्रयुक्त प्रमुख अलंकार उदाहरण सहित लिखिए।
🔵 उत्तर:
मानवीकरण: “मुर्दा…हस्तक्षेप करता है”
व्यंग्य: “कोई छींकता तक नहीं…मगध की शांति भंग न हो जाए”
रूपक: “मगध है, तो शांति है”
🔴 प्रश्न 13
“हस्तक्षेप” का केंद्रीय संदेश संक्षेप में प्रस्तुत करें।
🔵 उत्तर:
कविता का केंद्रीय संदेश यह है कि लोकतंत्र में असहमति और सवाल उठाना अत्यंत आवश्यक है। जब तक जनता प्रश्न नहीं करती, सत्ता निरंकुश और अत्याचारी बनी रहती है। प्रश्न उठाना ही प्रतिरोध और सुधार का पहला कदम है।
🪶 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (4.5 अंक)
🟣 प्रश्न 14
“हस्तक्षेप” कविता में भय, विद्रोह और आशा का द्वंद्व 110 शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
🔶 उत्तर:
कवि श्रीकान्त वर्मा “हस्तक्षेप” कविता में भय, विद्रोह और आशा के त्रिकोणीय संघर्ष को उजागर करते हैं। समाज में भय इतना गहरा है कि “कोई छींकता तक नहीं” और सत्ता का आतंक जनता को असहाय बना देता है। “मगध है, तो शांति है” निरंकुश शासन का व्यंग्यात्मक चित्रण है। किंतु जब एक “मुर्दा” यह प्रश्न करता है – “मनुष्य क्यों मरता है?” – तब प्रतिरोध की पहली चिंगारी जलती है। यह प्रश्न जनता में जागरूकता और साहस का बीज बोता है। भय और मौन के बीच आशा का उदय होता है, जो परिवर्तन और क्रांति का मार्ग प्रशस्त करता है।
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अतिरिक्त ज्ञान
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दृश्य सामग्री
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