Class 11, HINDI LITERATURE

Class 11 : हिंदी साहित्य – Lesson 12. हँसी की चोट, सपना, दरबार

संक्षिप्त लेखक परिचय

📘 लेखक परिचय — देव (देवदत्त द्विवेदी)

🟢 देव का पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। उनका जन्म सन 1673 में इटावा (उत्तर प्रदेश) में हुआ और निधन सन 1767 में हुआ।

🟡 वे रीतिकाल के प्रमुख शृंगारिक कवि एवं आचार्य माने जाते हैं।

🔵 उन्होंने अपने जीवनकाल में अनेक आश्रयदाताओं की सेवा की, जिनमें औरंगजेब के पुत्र आलमशाह भी सम्मिलित थे।

🔴 देव की कुल रचनाओं की संख्या 52 से 72 तक मानी जाती है, जिनमें रसविलास, भावविलास, भवानीविलास, कुशलविलास, अष्टयाम, सुजानविनोद, काव्यरसायन एवं प्रेमदीपिका प्रमुख हैं।

🟢 एनसीईआरटी (कक्षा 11, अंतरा भाग-1) में देव की तीन प्रसिद्ध कविताएँ संकलित हैं — ‘हँसी की चोट’, ‘सपना’ और ‘दरबार’। ये तीनों कवित्त शृंगार रस, विप्रलंभ शृंगार एवं सामाजिक यथार्थ का सुंदर चित्रण प्रस्तुत करते हैं।


🌸 हँसी की चोट
🔹 यह कवित्त विप्रलंभ (वियोग) शृंगार का उत्कृष्ट उदाहरण है।
🔹 इसमें श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने के पश्चात गोपियों की विरह-वेदना का मार्मिक चित्रण किया गया है।
🔹 गोपी कहती है कि जब से कृष्ण ने हँसते हुए मुख फेर लिया, तब से उसके शरीर के पंचतत्व (वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी, आकाश) समाप्त होते जा रहे हैं।
🔹 अब केवल आकाश तत्व, अर्थात् कृष्ण से मिलने की आशा, ही शेष है।

🕊️ “साँसनि ही सौं समीर गयो अरु, आँसुन ही सब नीर गयो ढरि।
तेज गयो गुन लै अपनो, अरु भूमि गई तन की तनुता करि॥”


🌧️ सपना
🔹 इस कवित्त में संयोग-वियोग का अत्यंत भावनात्मक चित्रण है।
🔹 गोपी स्वप्न में श्रीकृष्ण को झूला झुलाने के लिए आते हुए देखती है।
🔹 नींद खुलने पर न कृष्ण हैं, न बादल — केवल आँसू हैं जो अब वर्षा की बूँदों के समान गिर रहे हैं।

🕊️ “आँख खोलि देखौं तौ न घन हैं, न घनश्याम,
वेई छाई बूँदैं मेरे आँसु ह्वै दृगन में॥”


🏛️ दरबार
🔹 यह कवित्त सामाजिक व्यंग्य की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
🔹 इसमें देव ने रीतिकालीन पतनशील सामंती व्यवस्था पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
🔹 वे कहते हैं कि राजा अंधे हैं, दरबारी गूंगे हैं, सभा बहरी है, और सब रंग-रूप में मोहित हैं।
🔹 ऐसे दरबार में सच्चा कलाकार रात भर नाचता है, पर किसी को उसकी कला का मूल्य नहीं।

🕊️ “साहिब अंध, मुसाहिब मूक, सभा बहिरी, रंग रीझ को माच्यो।
‘देव’ तहाँ निबरे नट की बिगरी मति को सगरी निसि नाच्यो॥”


✨ मुख्य बिंदु संक्षेप में:
🔹 प्रमुख रचनाएँ: रसविलास, भावविलास, भवानीविलास, कुशलविलास, अष्टयाम, सुजानविनोद, प्रेमदीपिका
🔹 काव्य-विशेषता: विप्रलंभ शृंगार, अलंकार-प्रियता, ब्रजभाषा का माधुर्य, सामाजिक व्यंग्य
🔹 विचारधारा: रीतिकालीन शृंगारिकता एवं आचार्य परंपरा

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन


🌟 मुख्य निष्कर्ष

“हँसी की चोट”, “सपना” तथा “दरबार” — तीनों काव्य रचनाएँ भिन्न-भिन्न परिवेशों में जीवन के गहन अनुभवों को उजागर करती हैं।

“हँसी की चोट” में व्यंग्यबोध और मानवीय दुर्बलता का चुभता रूप सामने आता है।

“सपना” में आत्मा की आशा और निराशा के द्वन्द्व का दार्शनिक विश्लेषण होता है।

“दरबार” सत्ता-प्रणाली, आडम्बर और अन्याय की तीव्र आलोचना करती है।


✨ रचना-कुल परिचय

तीनों काव्यांश काव्य-संग्रह ‘देव’ में समाहित हैं। विषयगत रूप से इनमें हास्य और व्यंग्य, स्वप्न और यथार्थ, तथा सत्ता और सामाजिक न्याय के संघर्ष को प्रस्तुत किया गया है। भाषा की सादगी और सहज अभिव्यक्ति पाठकों को गहन भावानुभूति कराती है।


🌿 “हँसी की चोट” — व्याख्या एवं विश्लेषण

💡 विषयवस्तु

“हँसी की चोट” में सामान्य-सी प्रतीत होने वाली हँसी को आघात-मूलक रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह कविता मानवीय स्वाभिमान, सामाजिक तिरस्कार और लालच की परतों को उजागर करती है।

🌙 भावार्थ

– हँसी निर्दोष दिखती है, परंतु उसकी तीक्ष्णता आत्मसम्मान को घायल कर देती है।
– व्यंग्यपूर्ण दृष्टि में अन्याय और असहिष्णुता की झलक है, जो यह प्रश्न उठाती है — “कितने चुभते हो हम!”

📜 प्रसंग

कविता की पृष्ठभूमि सामाजिक सभा या मित्रमंडली है, जहाँ साधारण हँसी सुनाई देती है। कवि उस व्यक्ति का चित्रण करता है जो इस हँसी के तिरस्कार से भीतर तक आहत होता है।

🔦 प्रतीक

– हँसी: आनंद के साथ-साथ तिरस्कार की नुकीली तलवार।
– चोट: शब्दों की मौन लेकिन प्रभावशाली मार।

🪶 शैली

लघु श्लोकों में अनुप्रास और वक्रोक्ति का प्रयोग किया गया है। कोमल भाषा में छिपा तीव्र व्यंग्य कविता को गहराई प्रदान करता है।

🧭 विचार

– क्षणिक हँसी भी गहरे मानसिक आघात का कारण बन सकती है।
– शब्दों की चोट मौन व्यथा तक पहुँच सकती है।

🏙️ सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ

समूह द्वारा किया गया तिरस्कार समाज में आम है। यह व्यंग्य मानवीय संवेदनाओं पर गहरा प्रहार करता है।

🔎 गहन विश्लेषण

– व्यंग्य की सीमा कहाँ समाप्त होती है और तिरस्कार कहाँ शुरू होता है?
– आत्मसम्मान की रक्षा के लिए शब्दों की शक्ति की पहचान आवश्यक है।


🌠 “सपना” — व्याख्या एवं विश्लेषण

💡 विषयवस्तु

“सपना” कविता में स्वप्न और यथार्थ के द्वन्द्व को प्रस्तुत किया गया है। स्वप्न व्यक्ति को उड़ान देते हैं, जबकि वास्तविकता संघर्ष और कठिनाइयों की भूमि पर खड़ा करती है।

🌙 भावार्थ

– स्वप्न ऊँचाइयों का प्रतीक हैं, परन्तु वास्तविकता में वे क्षीण हो जाते हैं।
– स्वप्न और यथार्थ का मिश्रण ही जीवन यात्रा को सार्थक बनाता है।

📜 प्रसंग

रचना की पृष्ठभूमि अनिश्चितता और शून्यता है, जहाँ मन स्वप्नों के उन्मेष में खो जाता है और फिर जागरण की कठोरता से टकराता है।

🔦 प्रतीक

– पंख: स्वप्न की उड़ान और आशा।
– जंजीर: यथार्थ की बाधाएँ।
– अम्बर: असीम संभावनाओं का विस्तार।

🪶 शैली

मुक्तछंद में लिखी गई कविता में कल्पनाशील रूपकों और प्रतीकों का प्रयोग हुआ है। शब्दों का प्रवाह स्वप्नों की अनवरतता को दर्शाता है।

🧭 विचार

– जीवन में सपने आवश्यक हैं, पर उन्हें वास्तविकता में उतारना चुनौतीपूर्ण है।
– स्वप्न और यथार्थ के बीच संतुलन ही जीवन का मूल है।

🏙️ सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ

युवा वर्ग सामाजिक विषमता और संघर्ष के कारण अपने स्वप्नों से दूर होता जाता है।

🔎 गहन विश्लेषण

– कौन से स्वप्न यथार्थ में बदले जा सकते हैं?
– जागृति और निद्रा, विकास और ठहराव के बीच मानव चेतना का विभाजन।


👑 “दरबार” — व्याख्या एवं विश्लेषण

💡 विषयवस्तु

“दरबार” सत्ता, दिखावे और न्यायिक तंत्र की असमानता पर व्यंग्य करती है। यहाँ न्याय से अधिक रस्में और पद की अहंकारिता महत्वपूर्ण हो जाती है।

🌙 भावार्थ

– दरबार में अधिकारी न्याय के बजाय अपने गौरव में डूबे रहते हैं।
– पीड़ित की आवाज़ दरबार की दीवारों से टकराकर लौट आती है।

📜 प्रसंग

दरबार का मंच, सजावट, अधिकारी वर्ग की उपस्थिति — सब कुछ न्याय के नाम पर मात्र एक औपचारिकता बन जाता है।

🔦 प्रतीक

– मंच: शक्ति का प्रदर्शन स्थल।
– लाल-नीले वस्त्र: आडम्बर और दिखावे का प्रतीक।
– शाही सिंहासन: निरंकुश सत्ता का प्रतीक।

🪶 शैली

व्यंग्यात्मक शैली में उपमाओं और विशेषणों का प्रयोग हुआ है। भाषा सरल किंतु तीव्र है, जो कटाक्ष की धार को और पैना बनाती है।

🧭 विचार

– पदाधिकारी न्याय से अधिक पद के गर्व में डूबे रहते हैं।
– दिखावे के आगे सच्चाई और न्याय की आवाज़ दब जाती है।

🏙️ सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ

पुराने राजतंत्र की रस्मी न्याय-प्रणाली आज भी प्रशासन में विद्यमान है, जहाँ औपचारिकताएँ न्याय से अधिक प्रमुख हैं।

🔎 गहन विश्लेषण

– रस्में न्याय के स्थान पर क्यों हावी हो जाती हैं?
– पदाधिकारी का स्वार्थ और सच्चाई के बीच संघर्ष।


📖 उपसंहार

तीनों रचनाएँ — “हँसी की चोट”, “सपना” और “दरबार” — मानवीय अनुभवों के तीन गहन पक्षों को प्रकट करती हैं:

समाज में व्यंग्य और तिरस्कार की पीड़ा,

स्वप्नों और यथार्थ के संघर्ष की यात्रा,

तथा सत्ता और न्याय के बीच गहराती खाई।

भाषा की सादगी, प्रतीकों की गहराई और विचारों की गहनता इन काव्यांशों को विशिष्ट बनाती है। ये रचनाएँ न केवल आत्मावलोकन के लिए प्रेरित करती हैं, बल्कि सामाजिक संरचनाओं के पुनर्विचार का भी आह्वान करती हैं।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

🟠 प्रश्न 1: ‘हँसी की चोट’ सवैये में कवि ने किन पंच तत्वों का वर्णन किया है तथा वियोग में वे किस प्रकार बिखर होते हैं?
🔵 उत्तर: ‘हँसी की चोट’ सवैये में कवि ने पंच तत्वों — पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश — का विस्तार से वर्णन किया है। कवि बताता है कि प्रेम-वियोग में यह पंचतत्व अपने स्वाभाविक रूप से बिखर जाते हैं। पृथ्वी अस्थिर हो जाती है, जल अश्रुओं के रूप में बहता है, अग्नि मन में जलती है, वायु बेचैनी बनकर मन को व्याकुल करती है और आकाश शून्यता से भर जाता है। यह सब मिलकर वियोग की पीड़ा को और गहरा कर देते हैं।

🟠 प्रश्न 2: नायिका सपने में क्यों प्रसन्न थी और वह सपना कैसे टूट गया?
🔵 उत्तर: नायिका सपने में इसलिए प्रसन्न थी क्योंकि उसने अपने प्रियतम से मिलन का दृश्य देखा था और उस मिलन ने उसके मन को आनंद से भर दिया था। लेकिन यह सुखद स्वप्न अचानक टूट गया और वास्तविकता में लौटते ही वह फिर से विरह की पीड़ा में डूब गई, जिससे उसका मन दुख और निराशा से भर गया।

🟠 प्रश्न 3: ‘सपना’ कविता का भाव-सौंदर्य लिखिए।
🔵 उत्तर: ‘सपना’ कविता का भाव-सौंदर्य विरह और मिलन की भावनाओं के माध्यम से व्यक्त हुआ है। कविता में मिलन का स्वप्न क्षणिक आनंद देता है, परंतु उसके टूटते ही वास्तविकता का दुख और गहरा हो जाता है। कवि ने इस प्रकार प्रेम की तीव्रता, आशा और निराशा के भावों को अत्यंत कोमल और संवेदनशील ढंग से प्रस्तुत किया है।

🟠 प्रश्न 4: ‘दरबार’ सवैये में किस प्रकार के वातावरण का वर्णन किया गया है?
🔵 उत्तर: ‘दरबार’ सवैये में कवि ने भव्यता, आडंबर और दिखावे से भरे वातावरण का चित्रण किया है। दरबार में वैभव और ऐश्वर्य का प्रदर्शन होता है, परंतु उसके भीतर सच्चाई और मानवीय संवेदना का अभाव दिखाई देता है। कवि ने ऐसे दरबार को समाज की खोखली व्यवस्था का प्रतीक बताया है।

🟠 प्रश्न 5: दरबार में गुणग्राहकता और कला के पक्ष को किस प्रकार अनदेखा किया जाता है?
🔵 उत्तर: दरबार में गुणग्राहकता और कला की सच्ची सराहना नहीं होती, बल्कि बाहरी दिखावे और पद-प्रतिष्ठा को महत्व दिया जाता है। सच्चे कलाकारों की उपेक्षा की जाती है और चापलूसों को सम्मान मिलता है। इससे कला का वास्तविक उद्देश्य खो जाता है और समाज में असमानता पनपती है।

🟠 प्रश्न 6: भाव स्पष्ट कीजिए —
(क) ‘हेरि हियो जु लियो हरि जु हरि।’
🔵 उत्तर: इस पंक्ति में नायिका की गहन भावनाएँ व्यक्त हुई हैं। वह अपने प्रिय को देखकर अपने हृदय को पूरी तरह उसके प्रति समर्पित कर देती है। यह पंक्ति प्रेम की गहराई और समर्पण की भावना को प्रकट करती है।

(ख) ‘सोए गए भाग मेरे जानि वा जगन में।’
🔵 उत्तर: यहाँ नायिका अपने भाग्य को दोष देती है कि संसार में उसका भाग्य सो गया है, इसलिए उसे मिलन का सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा।

(ग) ‘वई छाई बूंद मेरे आँसू है …
🔵 उत्तर: इस पंक्ति में नायिका की पीड़ा का चित्रण है। वह कहती है कि उसके आँसू बूंदों की तरह बरस रहे हैं, जो उसके भीतर के दुख को दर्शाते हैं।

(घ) ‘साहिब अंध, मुसाहिब मूक, सभा बहीरी।’
🔵 उत्तर: इस पंक्ति में समाज की स्थिति की आलोचना की गई है। राजा अंधा है, मंत्री मौन हैं और सभा बहरी है — यानी सच्चाई सुनने और देखने वाला कोई नहीं है।

🟠 प्रश्न 7: देव ने दरबारी चाटुकारिता और दंभीपूर्ण वातावरण पर किस प्रकार व्यंग्य किया है?
🔵 उत्तर: देव ने दरबार में फैली चाटुकारिता और दिखावे पर तीखा व्यंग्य किया है। उन्होंने दिखाया कि सच्चे गुणों और योग्य व्यक्तियों की अनदेखी कर केवल चापलूसों को महत्व दिया जाता है। इस तरह का वातावरण समाज की सच्चाई और न्याय को खत्म कर देता है।

🟠 प्रश्न 8: निम्नलिखित पद्यांशो की सप्रसंग व्याख्या कीजिए —
(क) ‘साँसिन हीं…… करि।’
🔵 उत्तर: इस पद में सांसारिक मोह-माया की व्यर्थता को दर्शाया गया है। कवि बताता है कि सांसारिक वस्तुएँ क्षणभंगुर हैं और उनसे आसक्ति अंततः दुख ही देती है।

(ख) ‘झहरि……गगन में।’
🔵 उत्तर: यहाँ कवि ने शून्यता और निराशा की स्थिति को प्रकट किया है। जीवन में जब कुछ नहीं बचता तो व्यक्ति के भीतर एक खालीपन और उदासी भर जाती है।

(ग) ‘साहिब अंध……बाच्यो।’
🔵 उत्तर: इस पंक्ति में समाज की विडंबना दिखाई गई है जहाँ राजा अंधा है, मंत्री गूंगे हैं और कोई भी सच्चाई बोलने वाला नहीं है। यह व्यवस्था के पतन और न्याय के अभाव को उजागर करता है।

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

🌟 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)


🟢 प्रश्न 1:
“हँसी की चोट” में गोपी के शरीर से कौन-सा तत्व सबसे पहले चला गया?
🔵 1️⃣ वायु तत्व
🟣 2️⃣ जल तत्व
🟢 3️⃣ अग्नि तत्व
🟡 4️⃣ भूमि तत्व

✅ उत्तर: 1️⃣ वायु तत्व


🟢 प्रश्न 2:
“सपना” कवित्त में कौन-सा छंद प्रयुक्त हुआ है?
🔵 1️⃣ सवैया छंद
🟣 2️⃣ कवित्त छंद
🟢 3️⃣ चौपाई छंद
🟡 4️⃣ दोहा छंद

✅ उत्तर: 2️⃣ कवित्त छंद


🟢 प्रश्न 3:
“दरबार” कविता में राजा को क्या कहा गया है?
🔵 1️⃣ मूर्ख
🟣 2️⃣ अंधा
🟢 3️⃣ बहरा
🟡 4️⃣ गूंगा

✅ उत्तर: 2️⃣ अंधा


🟢 प्रश्न 4:
“हरि जू हरि” में यमक अलंकार क्यों है?
🔵 1️⃣ दोनों हरि का अर्थ कृष्ण है
🟣 2️⃣ एक हरि कृष्ण, दूसरा हरण करना
🟢 3️⃣ दोनों हरि का अर्थ हरण करना है
🟡 4️⃣ हरि का अर्थ हरा रंग है

✅ उत्तर: 2️⃣ एक हरि कृष्ण, दूसरा हरण करना


🟢 प्रश्न 5:
“सपना” कविता में गोपी की नींद क्यों टूट गई?
🔵 1️⃣ श्याम चले गए
🟣 2️⃣ बारिश रुक गई
🟢 3️⃣ वह उठने की कोशिश कर रही थी
🟡 4️⃣ किसी ने जगाया

✅ उत्तर: 3️⃣ वह उठने की कोशिश कर रही थी


✏️ लघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)


🟠 प्रश्न 6:
“हँसी की चोट” में पंच तत्व कैसे विदा होते हैं?
🔵 उत्तर: साँसों से वायु तत्व, आँसुओं से जल तत्व, कमजोरी से अग्नि तत्व और दुर्बलता से भूमि तत्व चले जाते हैं। अंत में केवल आकाश तत्व शेष रहता है।


🟠 प्रश्न 7:
“निगोड़ी नींद” का क्या अर्थ है?
🔵 उत्तर: निर्दयी या कठोर नींद, जो गोपी को कृष्ण के साथ झूले का आनंद लेने से पहले ही जगा देती है।


🟠 प्रश्न 8:
“साहिब अंध, मुसाहिब मूक” से क्या तात्पर्य है?
🔵 उत्तर: इसका अर्थ है कि राजा विवेकहीन है, दरबारी सत्य नहीं बोलते और सभा न्याय की बात सुनने में असमर्थ है।


🟠 प्रश्न 9:
“वेई छाई बूँदैं मेरे आँसु ह्वै दृगन में” का भाव स्पष्ट कीजिए।
🔵 उत्तर: सपने में जो वर्षा की बूँदें थीं, वे वास्तविकता में गोपी की आँखों के आँसू बन गईं, जिससे उसका वियोग प्रकट होता है।


🟠 प्रश्न 10:
“झहरि-झहरि झीनी बूँद” में कौन-सा अलंकार है?
🔵 उत्तर: इसमें अनुप्रास अलंकार और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार दोनों का प्रयोग हुआ है।


📜 मध्यम उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)


🔴 प्रश्न 11:
“सपना” कविता का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
🔵 उत्तर:
“सपना” कविता में गोपी के स्वप्नलोक का कोमल और भावनात्मक चित्रण मिलता है। वह सपने में कृष्ण के साथ झूला झूलने की कल्पना करती है, जिससे उसका मन उल्लास से भर जाता है। लेकिन नींद टूटते ही वह वियोग की पीड़ा से भर उठती है। इस कविता में संयोग-वियोग की द्वंद्वात्मक स्थिति और मानवीय मन की गहरी आकांक्षाओं का सजीव और संवेदनशील चित्रण मिलता है।


🔴 प्रश्न 12:
“दरबार” में व्यंग्य की प्रकृति समझाइए।
🔵 उत्तर:
“दरबार” कविता में देव ने तत्कालीन समाज की सामंती व्यवस्था और चाटुकारिता पर तीखा व्यंग्य किया है। राजा को अंधा, दरबारियों को गूंगा और सभा को बहरा कहकर कवि ने दिखाया है कि शासक वर्ग विवेकहीन है, दरबारी सच्चाई नहीं बोलते और न्याय की आवाज़ को अनसुना किया जाता है। यहाँ तक कि कलाकार भी अपनी प्रतिभा भूलकर मात्र मनोरंजन का साधन बन जाते हैं।


🔴 प्रश्न 13:
देव की भाषा-शैली की विशेषताएं लिखिए।
🔵 उत्तर:
देव की भाषा ब्रजभाषा मिश्रित और अत्यंत काव्यात्मक है। उन्होंने अनुप्रास, यमक और पुनरुक्ति प्रकाश जैसे अलंकारों का सहज और प्रभावशाली प्रयोग किया है। “हरि जू हरि”, “झहरि-झहरि” जैसे शब्द काव्य में संगीतात्मकता लाते हैं। भाषा चित्रात्मक, भावनात्मक और संगीतात्मक है जिससे कविता का रस और गहराई और भी अधिक बढ़ जाती है।


🪶 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (4.5 अंक)


🟣 प्रश्न 14:
इन तीन कविताओं का केंद्रीय भाव और सामाजिक संदेश 110 शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

🔶 उत्तर:
देव की “हँसी की चोट”, “सपना” और “दरबार” तीनों कविताएँ मानवीय अनुभवों के विभिन्न पक्षों को उजागर करती हैं। “हँसी की चोट” में वियोग की पीड़ा और प्रेम की गहराई को पंच तत्वों के माध्यम से व्यक्त किया गया है। “सपना” कविता में संयोग और वियोग की स्थिति मानवीय आकांक्षाओं और उनके टूटने का प्रतीक है। “दरबार” में सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था पर व्यंग्य किया गया है, जहाँ सत्ता विवेकहीन, दरबारी चाटुकार और न्याय व्यवस्था मौन है। इन तीनों में प्रेम की गहराई, स्वप्न और यथार्थ का द्वंद्व तथा समाज की विकृतियों का सशक्त चित्रण प्रस्तुत होता है।


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अतिरिक्त ज्ञान

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दृश्य सामग्री

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