Class 11 : हिंदी साहित्य – Lesson 3. टार्च बेचने वाले
संक्षिप्त लेखक परिचय
✍️ हरिशंकर परसाई – लेखक परिचय (120 शब्दों में)
🔹 हरिशंकर परसाई हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार थे।
🔹 इनका जन्म 22 अगस्त 1924 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमनीर नामक गाँव में हुआ था।
🔹 प्रारंभिक शिक्षा गाँव में और उच्च शिक्षा नागपुर विश्वविद्यालय से हुई।
🔹 उन्होंने हिंदी व्यंग्य को नई दिशा और ऊँचाई प्रदान की।
🔹 उनके लेखन में सामाजिक विडंबनाओं, राजनीति की विसंगतियों और मानवीय दुर्बलताओं का गहरा विश्लेषण मिलता है।
🔹 भाषा शैली सहज, संवादात्मक और व्यंग्यपूर्ण होती थी।
🔹 प्रमुख रचनाएँ – ठिठुरता हुआ गणतंत्र, सदाचार का तावीज़, वैष्णव की फिसलन, तट पर मैं रोता हूँ आदि।
🔹 वे अपने समय के अन्याय और पाखंड पर निर्भीक कलम चलाते थे।
🔹 उनका निधन 10 अगस्त 1995 को हुआ।
🔹 हरिशंकर परसाई आज भी अपने प्रखर व्यंग्य लेखन के लिए याद किए जाते हैं।
————————————————————————————————————————————————————————————————————————————
पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन
🔻 कथानक का सार
हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचना ‘टॉर्च बेचने वाले’ धार्मिक पाखंड, अंधविश्वास और बाज़ारवाद की चतुर मिलीभगत को उजागर करती है। दो मित्र—एक भौतिक टॉर्च बेचता है, दूसरा ‘आध्यात्मिक टॉर्च’—दोनों डर का व्यापार करते हैं। यह रचना दर्शाती है कि कैसे भय दिखाकर लाभ कमाया जाता है।
🔻 मुख्य पात्र एवं प्रतीक
🔹 पहला मित्र – आधुनिक वेशभूषा में ‘सूरज छाप’ टॉर्च बेचता है, रात के अंधेरे का डर दिखाता है।
🔹 दूसरा मित्र – बाबा का वेश लेकर ‘आत्मा का अंधकार’ दिखाकर प्रवचन बेचता है।
🔹 टॉर्च – बाहरी या भीतरी अंधकार का प्रतीक, असल में बाज़ारी वस्तु बन चुकी है।
🔻 मुख्य विषय-वस्तु
✨ 1. अंधविश्वास का बाज़ारीकरण
धार्मिक वेश में या आधुनिक भाषा में, दोनों पात्र अंधकार का भय दिखाकर लाभ कमाते हैं।
✨ 2. सामाजिक पाखंड पर प्रहार
परसाई ने दिखाया कि धर्मगुरु और व्यापारी अलग नहीं, दोनों ही भय से ‘प्रकाश’ बेचते हैं।
✨ 3. प्रतीकात्मक टॉर्च
टॉर्च सिर्फ रौशनी का साधन नहीं, वह चेतना, जागरूकता और विवेक का प्रतीक बन जाती है।
🔻 शैली और भाषा
🖋️ परसाई की भाषा सहज, व्यंग्यात्मक और धारदार है।
🗣️ संवादात्मक शैली पाठक को घटनाओं में शामिल कर देती है।
🔍 बिंब और प्रतीक पाठ को गहराई और व्यंग्य की शक्ति प्रदान करते हैं।
🔻 संरचना की विशेषता
📌 एकांकी शैली, सीमित पात्र और सीमित समय, लेकिन तीव्र व्यंग्य।
📌 लेखक स्वयं संवादकर्ता है – पाठक से सीधा जुड़ाव।
🔻 प्रमुख संवाद – व्यंग्य का तीखा असर
🗨️ “अब मेरी आत्मा में टॉर्च जल गया है…” – यह संवाद धार्मिक नकाब की असलियत खोल देता है।
🗨️ “प्रकाश बाहर नहीं है, अंतर में खोजो” – पाठ का बौद्धिक और दार्शनिक निष्कर्ष।
🔻 आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता
🌐 आज भी यह पाठ उतना ही सटीक है – जब सोशल मीडिया पर ‘डर का व्यापार’ नई शैली में फल-फूल रहा है।
👁️🗨️ ‘ज्यादा क्लिक = ज्यादा डर = ज्यादा बिक्री’ – यही है आज का डिजिटल टॉर्च।
🔻 निष्कर्ष
✅ ‘टॉर्च बेचने वाले’ हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम प्रकाश खरीद रहे हैं या भय की गिरवी में जी रहे हैं?
✅ परसाई यह स्पष्ट करते हैं कि असली प्रकाश बाहर नहीं, भीतर है – उसे स्वयं प्रज्वलित करना होगा।
✅ यह रचना सामाजिक चेतना, विवेक और आत्मावलोकन का आह्वान करती है।
🪔 संदेश
“जो प्रकाश तुम बाहर ढूंढते हो, वह भीतर की टॉर्च से ही जलता है।”
पाखंड से सावधान रहो, विवेक से उजाला लाओ। 🌟
————————————————————————————————————————————————————————————————————————————
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
🔷 प्रश्न 1
लेख ने टॉर्च बेचने वाली कंपनी का नाम ‘सूरज छाप’ ही क्यों रखा?
🔸 सूरज प्रकाश का प्रतीक है, जो अंधकार को समाप्त करता है।
🔸 ‘सूरज छाप’ टॉर्च का नाम इसलिए रखा गया क्योंकि यह टॉर्च अंधेरे में सूरज जैसा काम करती है।
🔸 यह नाम लोगों में भरोसा जगाता है कि यह टॉर्च अंधकार से रक्षा करेगी।
🔷 प्रश्न 2
पाँच साल बाद दोनों दोस्तों की मुलाक़ात किन परिस्थितियों में और कहाँ होती है?
🔸 पहले दोनों मित्र बेरोजगार थे और साथ टॉर्च बेचते थे।
🔸 पाँच वर्ष बाद एक प्रवचनस्थल पर उनकी भेंट होती है।
🔸 एक मित्र अब मंच पर संत बन गया है और प्रवचन देता है, वहीं दूसरा भीड़ में श्रोता बनकर खड़ा है।
🔸 यह स्थान वही है जहाँ पहले वे ‘सूरज छाप’ टॉर्च बेचा करते थे।
🔷 प्रश्न 3
पहला दोस्त मंच पर किस रूप में था और वह किस अँधेरे को दूर करने के लिए टॉर्च बेच रहा था?
🔸 पहला मित्र अब साधु का वेश धारण कर चुका है—लंबी दाढ़ी, रेशमी वस्त्र और गूढ़ भाषा।
🔸 वह अब “आत्मा के अंधकार” की बात करता है।
🔸 उसका दावा है कि वह अपने प्रवचनों (ज्ञानरूपी टॉर्च) से आंतरिक अंधकार मिटा सकता है।
🔷 प्रश्न 4
भव्य पुरुष ने कहा– ‘जहाँ अंधकार है वहीं प्रकाश है।’ इसका क्या तात्पर्य है?
🔸 अंधकार और प्रकाश साथ-साथ मौजूद रहते हैं।
🔸 जिस स्थान पर अज्ञान (अंधकार) है, वहाँ ज्ञान (प्रकाश) भी उत्पन्न हो सकता है।
🔸 यह कथन दर्शाता है कि व्यक्ति को निराश नहीं होना चाहिए—प्रकाश की संभावना हर जगह होती है।
🔸 आंतरिक चेतना को जगाकर हम किसी भी अंधकार को मिटा सकते हैं।
🔷 प्रश्न 5
भीतर के अँधेरे की टॉर्च बेचने और ‘सूरज छाप’ टॉर्च बेचने के धंधे में क्या अंतर है?
🔶 ‘सूरज छाप’ टॉर्च बेचने वाला –
🔸 बाहरी अंधकार (रात का अंधेरा) का डर दिखाकर टॉर्च बेचता है।
🔸 वह टॉर्च एक भौतिक वस्तु है।
🔶 भीतर के अँधेरे की टॉर्च बेचने वाला –
🔸 आत्मा के अज्ञान और डर का भय दिखाकर प्रवचन (ज्ञान की टॉर्च) बेचता है।
🔸 यह व्यापार आंतरिक चेतना और मनोवैज्ञानिक अंधकार से जुड़ा है।
✅ अंत में: दोनों का लक्ष्य डर के माध्यम से लाभ कमाना है—एक भौतिक वस्तु बेचकर, दूसरा आध्यात्मिक सेवा बेचकर।
————————————————————————————————————————————————————————————————————————————
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🔴 1. बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
प्रत्येक प्रश्न के चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए।
🔹 प्रश्न 1
“टॉर्च बेचने वाले” कहानी में लेखक अपने मित्रों को किस धंधे में संलग्न दिखाता है?
🔘 (क) मिट्टी के बर्तन बनाना
🔘 (ख) बाहर और भीतर के अंधकार का प्रकाश बेचना
🔘 (ग) स्टेशनरी की दुकान चलाना
🔘 (घ) समाचार पत्रों का प्रकाशन
✅ उत्तर: (ख)
🔹 प्रश्न 2
पहला मित्र “सूरज छाप” टॉर्च बेचते समय किस भावना का भय दिखाकर बिक्री बढ़ाता है?
🔘 (क) आर्थिक तंगी का भय
🔘 (ख) सामाजिक बदनामी का भय
🔘 (ग) रात के अंधकार में दुर्घटनाएँ होने का भय
🔘 (घ) बीमारी फैलने का भय
✅ उत्तर: (ग)
🔹 प्रश्न 3
दूसरे मित्र ने आत्मा के अंधकार को दूर करने के लिए क्या पहनावा अपनाया?
🔘 (क) कारोबारी वेशभूषा
🔘 (ख) साधु-संत की वेशभूषा
🔘 (ग) पुलिस का वेशभूषा
🔘 (घ) शिक्षक का वेशभूषा
✅ उत्तर: (ख)
🔹 प्रश्न 4
“जहाँ अंधकार है वहीं प्रकाश है” उक्त वाक्य का मुख्य तात्पर्य है—
🔘 (क) एक ही स्थान पर ज्ञान और अज्ञान का द्वन्द्व होता है
🔘 (ख) अंधकार में प्रकाश प्राप्त नहीं होता
🔘 (ग) प्रकाश अज्ञान को बढ़ावा देता है
🔘 (घ) अंधकार से भय ही प्रकाश का कारण है
✅ उत्तर: (क)
🔹 प्रश्न 5
परसाई ने कहानी का व्यंग्यात्मक उद्देश्य क्या दर्शाया है?
🔘 (क) विज्ञान-विरोधी भावना
🔘 (ख) धार्मिक आडंबर और बाज़ारीकरण
🔘 (ग) प्राकृतिक आपदाएँ
🔘 (घ) पारिवारिक संबंधों की कमजोरी
✅ उत्तर: (ख)
🟠 2. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer)
प्रत्येक उत्तर लगभग 2–3 पंक्तियों में दीजिए।
🔹 प्रश्न 1
पहला मित्र क्यों छोड़ देता है “सूरज छाप” टॉर्च बेचने का धंधा?
✅ उत्तर: उसकी आत्मा में भीतर का प्रकाश प्रकट हो चुका था। अब वह बाहरी टॉर्च को व्यर्थ मानता है।
🔹 प्रश्न 2
दूसरा मित्र अज्ञानरूपी अंधकार का भय दिखाकर किस प्रकार लाभ कमाता है?
✅ उत्तर: वह आत्मा के अंधकार का भय दिखाकर प्रवचन रूपी “ज्ञान की टॉर्च” बेचकर लाभ कमाता है।
🔹 प्रश्न 3
कहानी में “टॉर्च” प्रतीकात्मक रूप से किसका संकेत है?
✅ उत्तर: बाहरी टॉर्च प्रतीक है भौतिक प्रकाश का और भीतर की टॉर्च प्रतीक है आत्मिक जागरूकता का।
🔹 प्रश्न 4
परसाई ने मित्रों के व्यवसाय का एक ही मूल उद्देश्य बताया है—वह क्या?
✅ उत्तर: दोनों मित्र भय दिखाकर प्रकाश बेचते हैं – लक्ष्य केवल आर्थिक लाभ है।
🔹 प्रश्न 5
कहानी में व्यंग्य का मुख्य स्रोत कौन-सी साम्यबोध है?
✅ उत्तर: दोनों मित्रों के धंधों की समानता – रूप अलग, उद्देश्य एक: डर बेचकर मुनाफा।
🟡 3. मध्यम उत्तरीय प्रश्न (Medium Answer)
उत्तर लगभग 8–10 पंक्तियों में लिखिए।
🔹 प्रश्न 1
“सूरज छाप” टॉर्च बेचने वाले प्रथम मित्र की रणनीति और तकनीक का विश्लेषण कीजिए।
✅ उत्तर: वह मंच पर अंधकार का भय दिखाता है। उसकी आवाज़, विज्ञापन शैली और वेशभूषा मिलकर दर्शकों में भय उत्पन्न करते हैं। वह कहता है, “रात में निकलना आत्महत्या है।” फिर वह “सूरज छाप” को एकमात्र समाधान बताकर बिक्री करता है। यह विशुद्ध बाज़ारवाद की तकनीक है।
🔹 प्रश्न 2
दूसरे मित्र के साधु-संत बने रूप में “आत्मिक टॉर्च” बेचने के तरीके पर विचार लिखिए।
✅ उत्तर: वह धार्मिक वेश में मंच पर आता है, भावुक वाक्यों से आत्मिक भय फैलाता है। “तुम्हारी आत्मा अंधेरे में है” कहकर वह बेचैनी बढ़ाता है और फिर अपने प्रवचनों को प्रकाश बताकर बेच देता है। यह धार्मिक व्यापार की चालाकी है।
🔹 प्रश्न 3
“जहाँ अंधकार वहाँ प्रकाश” के व्यंजनात्मक अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
✅ उत्तर: जहाँ अज्ञान है, वहाँ ज्ञान की संभावना भी है। परसाई इसे इस रूप में दिखाते हैं कि यह कथन उपदेशक भय बेचने का साधन बना लेते हैं।
🔹 प्रश्न 4
इस व्यंग्य कथा में बाज़ारवाद और धर्म के टकराव का भाव कैसे व्यक्त हुआ है?
✅ उत्तर: दोनों मित्र धार्मिक और व्यावसायिक रूप से प्रकाश बेचते हैं। एक बाहरी, दूसरा आत्मिक। परसाई दिखाते हैं कि धर्म भी अब व्यापार का माध्यम बन गया है – रूप बदल गया, उद्देश्य वही रहा।
🔵 4. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer)
उत्तर 15–20 पंक्तियों में दीजिए।
🔹 प्रश्न
“टॉर्च बेचने वाले” कहानी में परसाई ने भय और आश्वासन के मिश्रित व्यावसायिक रूपों का चित्रण करके किस सामाजिक सत्य की ओर इंगित किया है?
✅ उत्तर: परसाई इस कहानी में यह दिखाते हैं कि कैसे समाज में भय और आश्वासन दोनों को व्यापार का माध्यम बना दिया गया है। पहला मित्र बाहरी अंधकार से डराता है: “शेर और चीते घूम रहे हैं”, और टॉर्च बेच देता है। दूसरा मित्र आत्मा के अंधकार का भय पैदा करता है: “तुम्हारी आत्मा अंधेरे में है”, और प्रवचन बेचता है। दोनों ही ‘टॉर्च’ बेच रहे हैं – एक भौतिक, एक आध्यात्मिक। परसाई इस व्यंग्य से उजागर करते हैं कि उपभोक्तावाद ने अब हमारे विश्वास, डर और आस्था को भी बाज़ार का हिस्सा बना लिया है। असली ज्ञान या वास्तविक प्रकाश की जगह अब नकली डर और झूठे समाधान बिक रहे हैं। कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम भी ऐसे ही बाजार का हिस्सा हैं जो स्वयं को डराकर समाधान ख़रीदते हैं?
————————————————————————————————————————————————————————————————————————————
अतिरिक्त ज्ञान
————————————————————————————————————————————————————————————————————————————
दृश्य सामग्री
————————————————————————————————————————————————————————————————————————————