Class 11 : हिंदी अनिवार्य – Lesson 12 चंपा काले काले त्रिलोचन
संक्षिप्त लेखक परिचय
📘 लेखक परिचय — त्रिलोचन शास्त्री
🔵 त्रिलोचन शास्त्री का जन्म 20 अगस्त 1917 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के कटघरा चिरानी पट्टी में वासुदेव सिंह के रूप में हुआ था।
🟢 प्रारंभिक शिक्षा गाँव के विद्यालयों में प्राप्त कर उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम.ए. एवं लाहौर विश्वविद्यालय से संस्कृत में ‘शास्त्री’ की उपाधि ग्रहण की।
🟡 प्रगतिशील काव्यधारा से प्रभावित होकर उन्होंने 1945 में पहला कविता–संग्रह ‘धरती’ प्रकाशित किया।
🔴 इसके बाद उन्होंने ‘दिगंत’ (1957), ‘ताप के ताए हुए दिन’ (1980), ‘गुलाब और बुलबुल’ (1985) जैसे संग्रह प्रस्तुत किए।
🟢 उन्होंने पत्रकारिता में ‘प्रभाकर’, ‘वानर’, ‘हंस’, ‘समाज’ जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया और नई प्रतिभाओं को मंच प्रदान किया।
🟡 उनकी रचनाएँ सामाजिक यथार्थ, जनसंघर्ष और मेहनतकश जीवनचित्रण के साथ भाषाई प्रयोगशीलता व छंदबद्धता का उत्कृष्ट समन्वय प्रस्तुत करती हैं।
🔵 उन्होंने हिंदी में सॉनेट को भारतीय परिवेश में नए रूप में स्थापित किया तथा मुक्त छंद, ग़ज़ल और कुंडलियाँ भी लिखीं।
💠 प्रमुख कृतियाँ:
धरती (1945), दिगंत (1957), ताप के ताए हुए दिन (1980), गुलाब और बुलबुल (1985)
💠 सम्मान:
साहित्य अकादमी पुरस्कार (1982), शलाका सम्मान (1989–90), पद्मश्री (अनुदित)
💠 विचारधारा:
यथार्थवादी, समाज–चेतन, प्रयोगधर्मी
🟢 त्रिलोचन शास्त्री का निधन 9 दिसम्बर 2007 को गाजियाबाद में हुआ, पर उनकी कविताएँ आज भी हिंदी साहित्य में जन–भावना की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति बनकर जीवित हैं।
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन
📖 कविता का परिचय
🌾 ‘चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती’ प्रगतिशील कवि त्रिलोचन द्वारा रचित एक संवेदनशील कविता है, जो उनके संग्रह ‘धरती’ में संकलित है। यह कविता निरक्षरता, पलायन और आर्थिक विषमता के लोक अनुभवों को अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती है। इसमें चंपा नामक एक अनपढ़ ग्रामीण बालिका के माध्यम से ग्रामीण समाज में शिक्षा के प्रति उदासीनता और शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्विरोधों को उजागर किया गया है।
👧 चंपा का चरित्र-चित्रण
📖 निरक्षर बालिका
✏️ “चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती” – चंपा अनपढ़ है और उसे अक्षरों की पहचान नहीं है।
📚 “मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है” – जब कवि पढ़ता है, वह उत्सुकता से वहाँ चली आती है।
🤔 “खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है” – वह शांत खड़ी होकर सुनती और सोचती है।
😲 “उसे बड़ा अचरज होता है: इन काले चीन्हों से कैसे ये सब स्वर निकला करते हैं” – उसे आश्चर्य होता है कि अक्षरों से आवाज़ें कैसे निकलती हैं।
🐄 पारिवारिक पृष्ठभूमि
👨🌾 “चंपा सुंदर की लड़की है, सुंदर ग्वाला है: गायें-भैंसें रखता है” – चंपा के पिता सुंदर एक ग्वाले हैं।
🌿 “चंपा चौपायों को लेकर चरवाही करने जाती है” – वह पशुओं को चराने का कार्य करती है।
😊 स्वभाव
🌸 “चंपा अच्छी है, चंचल है, नटखट भी है” – वह प्रसन्नचित्त और शरारती है।
🎭 “कभी-कभी ऊधम करती है” – कभी-कभी शरारत करती है।
✒️ “कभी-कभी वह कलम चुरा देती है” – वह कवि की कलम चुरा लेती है।
📄 “जैसे-तैसे उसे ढूंढ़ कर जब लाता हूँ, पाता हूँ-अब कागज़ गायब” – जब कवि कलम लाता है, तो कागज़ गायब मिलते हैं।
😤 “परेशान फिर हो जाता हूँ” – इससे कवि परेशान हो जाता है।
💬 चंपा और कवि का संवाद
📜 लेखन पर प्रश्न
🙄 “वह कहती है कि दिन भर कागज़ लिखते रहते हो, यह काम अच्छा है?” – चंपा कवि से सवाल करती है।
😄 “मैं हँस देता हूँ” – कवि मुस्कुरा देता है।
📚 गांधी बाबा का नाम
📖 “एक दिन मैंने उससे कहा-तुम पढ़ना क्यों नहीं सीखतीं? मैंने बताया कि यह गांधी बाबा की इच्छा है” – कवि उसे पढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
🙅 “चंपा ने कहा-मुझे नहीं पढ़ना है” – वह साफ़ इनकार कर देती है।
😠 “मैंने कहा-क्यों? उसने कहा-मैं नहीं पढ़ूंगी” – वह दृढ़ रहती है।
🤔 गांधी बाबा पर अविश्वास
❓ “फिर उसने पूछा-गांधी बाबा क्या करते हैं?” – वह गांधी जी के बारे में जानना चाहती है।
🧵 “मैंने कहा-वे रोज़ खादी कातते हैं, सूत कातते हैं” – कवि उत्तर देता है।
👵 “चंपा ने कहा-यह तो मेरी दादी भी करती है” – चंपा कहती है कि यह तो उसकी दादी भी करती हैं।
😒 “मुझे विश्वास नहीं होता कि गांधी बाबा वे काम करते हैं जिनसे घर टूट जाते हैं” – उसे विश्वास नहीं होता कि गांधी ऐसा कोई कार्य करते होंगे।
💔 पलायन की पीड़ा
✉️ कलकत्ता का प्रश्न
📬 “मैंने उससे पूछा-जब तुम्हारा पति कलकत्ता में होगा और तुम उसे चिट्ठी भेजना चाहोगी, तो क्या करोगी?” – कवि पत्र-व्यवहार का उदाहरण देता है।
⚡ “चंपा ने कहा-कलकत्ते पर बजर गिरे! वहाँ कोई रहेगा नहीं, मेरा पति वहाँ जाएगा कैसे?” – चंपा गुस्से में कहती है कि कलकत्ता ही नष्ट हो जाए।
🪨 संदेश का गहरा अर्थ
🏙️ कलकत्ता का प्रतीक: यह उस समय रोजगार का प्रमुख केंद्र था।
💔 पलायन की पीड़ा: परिवार बिखर जाते थे, स्त्रियाँ विधवा-सा जीवन जीती थीं, बच्चे पिता के स्नेह से वंचित रहते थे।
👩👩👧 चंपा की इच्छा: वह नहीं चाहती कि कोई परिवार इस पीड़ा से गुज़रे।
🎯 कविता का संदेश
📚 निरक्षरता और शिक्षा-व्यवस्था: ग्रामीण समाज में शिक्षा के प्रति उदासीनता व्याप्त है।
🏫 शिक्षा का अंतर्विरोध: पढ़-लिखकर लोग गाँव छोड़ शहर चले जाते हैं।
🤷 चंपा की दृष्टि: उसे लगता है शिक्षा परिवार को तोड़ती है, जोड़ती नहीं।
🚂 पलायन की समस्या: आर्थिक कारणों से गाँव से शहरों में पलायन होता है।
💔 परिवार का बिखराव: इससे परिवार टूट जाते हैं और समाज कमजोर होता है।
👩 स्त्री का दृष्टिकोण: चंपा परिवार की एकता को सबसे ऊपर मानती है।
💪 विरोध की भावना: वह उस व्यवस्था के विरोध में खड़ी होती है जो परिवारों को तोड़ती है।
🌾 लोक-संस्कृति और मूल्य: कविता ग्रामीण जीवन की सादगी और मानवीय मूल्यों को उजागर करती है।
🎨 काव्य सौंदर्य
🪶 भाषा शैली: सरल, सहज और बोलचाल की खड़ी बोली।
📜 देशज शब्द: अच्छर, चीन्हती, बजर, चौपाए जैसे शब्दों का प्रयोग।
💬 संवादात्मक शैली: कविता कवि और चंपा के संवाद के रूप में रची गई है।
🌟 विशेषताएँ:
कहानी-कविता शैली
जीवंत चरित्र-चित्रण
सॉनेट शैली में लेखन
🔎 प्रतीक और बिंब:
🖋️ काले अक्षर: शिक्षा और ज्ञान का प्रतीक।
🏙️ कलकत्ता: पलायन और आर्थिक विषमता का प्रतीक।
🪡 गांधी बाबा: आदर्श और परिवर्तन का प्रतीक।
🏁 निष्कर्ष
‘चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती’ एक गहराई से संवेदनशील कविता है जो निरक्षरता, पलायन और शिक्षा-व्यवस्था के विरोधाभासों को सजीव बनाती है। त्रिलोचन ने चंपा जैसी साधारण ग्रामीण बालिका के माध्यम से यह दिखाया है कि कैसे सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियाँ ग्रामीण जीवन को प्रभावित करती हैं। चंपा की “कलकत्ते पर बजर गिरे” जैसी तीव्र प्रतिक्रिया उस व्यवस्था के प्रति विरोध है जो परिवारों को तोड़ती है। यह कविता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है क्योंकि शिक्षा, पलायन और आर्थिक असमानता की समस्याएँ आज भी हमारे समाज में मौजूद हैं।
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
🟠 प्रश्न 1: चंपा ने ऐसा क्यों कहा कि कलकत्ता पर बजर गिरे?
🔵 उत्तर: चंपा ने “कलकत्ता पर बजर गिरे” इसलिए कहा क्योंकि उसके मन में बड़े शहरों और वहाँ के लोगों के प्रति गहरी नाराज़गी और असंतोष था। कलकत्ता उसके लिए उस व्यवस्था का प्रतीक था जिसने ग्रामीण समाज और निर्धनों को हमेशा उपेक्षित किया। वहाँ की दुनिया उसे शोषण, अन्याय और अमीरी-गरीबी के गहरे अंतर की प्रतीक लगती थी। इसलिए अपनी पीड़ा और असंतोष को व्यक्त करने के लिए उसने इस प्रकार का कठोर और भावनात्मक कथन किया।
🟠 प्रश्न 2: चंपा को इसपर क्यों विश्वास नहीं होता कि गांधी बाबा ने पढ़ने-लिखने की बात कही होगी?
🔵 उत्तर: चंपा को इस बात पर विश्वास नहीं होता क्योंकि उसका जीवन कठिनाई और अभाव से भरा था। उसने हमेशा अशिक्षा, गरीबी और सामाजिक असमानता को देखा था। ऐसे में उसे लगता था कि समाज के बड़े लोग केवल बातें करते हैं, पर वास्तव में गरीबों और मजदूरों की स्थिति सुधारने के लिए कुछ नहीं करते। उसे यह भी लगता था कि अगर गांधी बाबा ने वास्तव में पढ़ने-लिखने की बात कही होती तो उसके जैसे गरीबों तक शिक्षा पहुँच चुकी होती।
🟠 प्रश्न 3: कवि ने चंपा की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
🔵 उत्तर: कवि ने चंपा को एक संवेदनशील, मेहनती और संघर्षशील स्त्री के रूप में प्रस्तुत किया है। वह जीवन की कठोर परिस्थितियों में भी दृढ़ता से जीती है और अपने स्वाभिमान को बनाए रखती है। चंपा के भीतर समाज के प्रति आक्रोश और असमानता के प्रति विरोध है। वह सीधी-सादी होने के बावजूद अपने विचारों को निडरता से व्यक्त करती है, जो उसके सशक्त व्यक्तित्व की पहचान है।
🟠 प्रश्न 4: आपके विचार में चंपा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मैं तो नहीं पढ़ूँगी?
🔵 उत्तर: चंपा ने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि उसके मन में पढ़ाई को लेकर निराशा और अविश्वास की भावना थी। उसे लगता था कि शिक्षा केवल अमीरों और उच्च वर्ग के लिए है, गरीबों के लिए नहीं। समाज की उपेक्षा और असमानता ने उसके मन में यह धारणा बना दी थी कि शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी उसकी स्थिति नहीं बदलेगी। इसलिए वह पढ़ाई को व्यर्थ समझती है और कहती है कि “मैं तो नहीं पढ़ूँगी।”
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🔵 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ)
🟢 प्रश्न 1
चंपा किसकी बेटी है?
🟣 1. एक किसान की
🔵 2. सुंदर नामक ग्वाले की
🟢 3. एक दुकानदार की
🟡 4. एक मास्टर की
✅ उत्तर: 2. सुंदर नामक ग्वाले की
🟢 प्रश्न 2
चंपा कवि की कौन-सी चीजें चुरा लेती थी?
🟣 1. केवल कलम
🔵 2. केवल कागज
🟢 3. कलम और कागज दोनों
🟡 4. किताबें
✅ उत्तर: 3. कलम और कागज दोनों
🟢 प्रश्न 3
चंपा काले अक्षरों को देखकर क्या सोचती थी?
🟣 1. ये बहुत सुंदर हैं
🔵 2. इनसे स्वर कैसे निकलते हैं
🟢 3. ये बेकार हैं
🟡 4. ये डरावने हैं
✅ उत्तर: 2. इनसे स्वर कैसे निकलते हैं
🟢 प्रश्न 4
कवि ने चंपा को पढ़ने के लिए किसका नाम लिया?
🟣 1. नेहरू जी का
🔵 2. गांधी बाबा का
🟢 3. सुभाष चंद्र बोस का
🟡 4. विवेकानंद का
✅ उत्तर: 2. गांधी बाबा का
🟢 प्रश्न 5
चंपा ने कलकत्ता के लिए क्या कहा?
🟣 1. कलकत्ता बहुत अच्छा है
🔵 2. कलकत्ता पर बजर गिरे
🟢 3. कलकत्ता जाना चाहती हूँ
🟡 4. कलकत्ता से प्यार करती हूँ
✅ उत्तर: 2. कलकत्ता पर बजर गिरे
🔵 लघु उत्तरीय प्रश्न
🟠 प्रश्न 6
चंपा अक्षरों को देखकर आश्चर्यचकित क्यों होती है?
💠 उत्तर: क्योंकि वह अनपढ़ है और समझ नहीं पाती कि काले अक्षरों से इतनी सारी ध्वनियाँ कैसे निकलती हैं।
🟠 प्रश्न 7
चंपा का स्वभाव कैसा था?
💠 उत्तर: चंचल, नटखट और सीधी-सादी; अक्सर शरारत में कवि की कलम-कागज छिपा देती थी।
🟠 प्रश्न 8
चंपा दिनभर कागज लिखते रहने को क्या कहती थी?
💠 उत्तर: वह इसे “कागज में गोदते रहना” कहकर व्यर्थ का काम मानती थी।
🟠 प्रश्न 9
चंपा को गांधी बाबा पर विश्वास क्यों नहीं हुआ?
💠 उत्तर: उसे लगता था पढ़-लिखकर लोग गाँव-घर छोड़कर शहर भाग जाते हैं, इसलिए अच्छा आदमी पढ़ने की सलाह कैसे देगा।
🟠 प्रश्न 10
चंपा अपने पति को कलकत्ता क्यों नहीं जाने देना चाहती?
💠 उत्तर: परिवार टूटने के डर से; वह चाहती है पति उसके साथ गाँव में ही रहे।
🔵 मध्यम उत्तरीय प्रश्न
🔴 प्रश्न 11
कविता में निरक्षरता की समस्या को किस प्रकार चित्रित किया गया है?
🔷 उत्तर: चंपा के चरित्र से—जो अक्षरों को “काले-काले” कहकर नहीं पहचानती, पढ़ाई को बेकार समझती और पुस्तक-लेखन की उपयोगिता नहीं समझ पाती—ग्रामीण निरक्षरता की जड़ें, उसके कारण और उसके परिणाम प्रभावी ढंग से सामने आते हैं।
🔴 प्रश्न 12
चंपा के “कलकत्ता पर वज्र गिरे” कहने का निहितार्थ क्या है?
🔷 उत्तर: शहरों की ओर रोज़गार-जनित पलायन से टूटते परिवारों, असुरक्षा और शोषण के डर का प्रतिरोध। वह शहर को अपने वैवाहिक/पारिवारिक जीवन के लिए खतरा मानती है।
🔴 प्रश्न 13
चंपा के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
🔷 उत्तर: अनपढ़ पर जिज्ञासु, चंचल पर संवेदनशील, घरेलू पर आत्मसम्मानी, व्यावहारिक पर विद्रोही—वह अपने छोटे-से संसार और रिश्तों की रक्षा हेतु निर्भीक होकर मत प्रकट करती है।
🔵 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
🟣 प्रश्न 14
‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ का केंद्रीय भाव और सामाजिक प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
🔶 उत्तर: कविता का केंद्र ग्रामीण निरक्षरता और पलायन की पीड़ा है। चंपा अक्षरों की दुनिया से बाहर है, इसलिए शिक्षा की उपयोगिता नहीं देख पाती—उसे पढ़ाई परिवार-विच्छेद का कारण लगती है। “काले-काले” अक्षर रूपक बनकर उस शिक्षा-व्यवस्था की आलोचना भी करते हैं जो गाँवों से जन-शक्ति को शहरों में धकेलती है। चंपा का शहर-विरोध दरअसल अपने संबंधों, घर और लोकजीवन की रक्षा का स्वर है। सरल, बोलचाल-प्रधान भाषा और कथोपकथन शैली कविता को सहज, मार्मिक और आज भी प्रासंगिक बनाती है।
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अतिरिक्त ज्ञान
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दृश्य सामग्री
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