Class 11, HINDI COMPULSORY

Class 11 : हिंदी अनिवार्य – Lesson 10 मेरो तो गिरधर गोपाल,मीरा

संक्षिप्त लेखक परिचय

मीराबाई – जीवन एवं लेखक परिचय (150 शब्दों में)

मीराबाई भक्तिकाल की प्रमुख और अत्यंत प्रसिद्ध कृष्णभक्त संत कवयित्री थीं। इनका जन्म राजस्थान के मेड़ता नगर (जिला नागौर) में लगभग 1498 ई. में राठौड़ राजघराने में हुआ था। उनके पिता रतनसिंह राठौड़ एक प्रतिष्ठित राजपूत सरदार थे। बचपन से ही मीरा श्रीकृष्ण की भक्ति में रमी रहती थीं और उन्होंने बाल्यकाल में ही श्रीकृष्ण को अपना पति मान लिया था। उनका विवाह मेवाड़ के महाराणा भोजराज से हुआ था, परंतु सांसारिक जीवन उन्हें रास न आया और वे वैराग्य की ओर मुड़ गईं। पति की मृत्यु के बाद वे पूरी तरह कृष्ण-भक्ति में लीन हो गईं और घर-परिवार त्यागकर संतों के संग रहने लगीं।

मीराबाई ने अपने भजनों में भक्ति, विरह, आत्मसमर्पण, प्रेम और ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा को व्यक्त किया है। उनकी भाषा सरल, मार्मिक और भावपूर्ण है। उनका काव्य ‘भावुकता की ऊँचाई’ पर पहुँचता है। वे आज भी भक्ति साहित्य की अमर विभूति मानी जाती हैं।

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन



🔶 प्रथम पद – “मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई”
📜 मूल पाठ
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।
जा के सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई॥
छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई।
संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी॥
अंसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बेलि बोयी।
अब त बेलि फैलि गई, आणंद-फल होयी॥
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी।
दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी॥
भगत देखि राजी हुई, जगत देखि रोयी।
दासि मीरा लाल गिरधर! तारो अब मोही॥


🌸 भावार्थ व व्याख्या
🔹 मीराबाई कहती हैं कि उनके लिए केवल गिरधर गोपाल (कृष्ण) ही जीवन के केंद्र हैं।
🔹 मोर मुकुटधारी श्रीकृष्ण को उन्होंने पति रूप में स्वीकार किया है।
🔹 उन्होंने कुल की मर्यादा और समाज की लाज-शर्म छोड़ दी है।
🔹 संतों की संगति में वे लोकाचार से ऊपर उठ गई हैं।
🔹 आँसुओं से प्रेम की बेल सींची है जो अब आनंद फल देने लगी है।
🔹 प्रेम रूपी दूध को भक्ति की मथनी से मथा है, जिससे सार (घृत) मिला और निरर्थक (छाछ) छोड़ दी।
🔹 वे भक्तों को देखकर हर्षित होती हैं और संसार की माया को देखकर दुखी।
🔹 अंत में वे खुद को गिरधर की दासी मानती हैं और उद्धार की विनती करती हैं।

🔷 द्वितीय पद – “पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे”
📜 मूल पाठ
पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे।
मैं तो मेरे नारायण सूं, आपहि हो गई साची॥
लोग कहैं मीरा भई बावरी, न्यात कहै कुल-नासी।
विष का प्याला राणा भेज्या, पीवत मीरा हाँसी॥
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिले अविनासी॥


🌸 भावार्थ व व्याख्या
🔹 मीराबाई कहती हैं कि उन्होंने पैरों में घुंघरू बाँध लिए हैं और वे श्रीकृष्ण के प्रेम में नाच रही हैं।
🔹 वे कहती हैं कि वे अपने नारायण की होकर सच्ची भक्त बन गई हैं।
🔹 लोग उन्हें पागल और कुल की नाशिनी कहते हैं।
🔹 राणा ने उन्हें विष का प्याला भेजा जिसे उन्होंने हँसते हुए पी लिया।
🔹 वे कहती हैं कि गिरधर नागर (कृष्ण) सहजता से मिलने वाले अविनाशी भगवान हैं।

🎯 मुख्य विषय व संदेश
💗 अनन्य भक्ति – मीराबाई की रचनाएँ कृष्ण के प्रति निष्कलंक प्रेम और समर्पण की मिसाल हैं।
🔓 सामाजिक बंधनों से मुक्ति – उन्होंने कुल-लाज, मर्यादा, और सामाजिक परंपराओं का त्याग किया।
🎼 माधुर्य भक्ति – वे कृष्ण को पति रूप में प्रेम करती थीं, यह भक्ति कांता भाव वाली है।
💧 विरह की वेदना – कृष्ण के विरह में आँसुओं से भक्ति रूपी बेल सींचना उनके पदों में दिखता है।

🖋️ भाषा और शैली
✦ भाषा: ब्रजभाषा में राजस्थानी, गुजराती और पंजाबी शब्दों का मिश्रण।
✦ शैली: गीतिकाव्य की, जिसमें भावनाओं की प्रधानता है।
✦ रस: श्रृंगार रस (संयोग-वियोग), शांत रस।
✦ अलंकार: अनुप्रास, रूपक, उपमा आदि का स्वाभाविक प्रयोग।
✦ छंद: मुक्तक शैली में रचना।

📚 काव्यगत विशेषताएँ
🎨 भाव पक्ष:
🔹 कृष्ण के प्रति आत्मसमर्पण और निष्ठा।
🔹 समाज से विद्रोह का भाव।
🔹 विरह और प्रेम की तीव्रता।
🎨 कलापक्ष:
🔹 भावनात्मकता से ओतप्रोत भाषा।
🔹 संगीतमयता और नाद सौंदर्य।
🔹 बिंबात्मक एवं प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति।

🌟 साहित्य में स्थान
मीराबाई भक्तिकालीन कृष्ण भक्ति शाखा की सबसे प्रमुख कवयित्री हैं। उनका काव्य संप्रदाय-रहित भक्ति का प्रतीक है। उनके पद आज भी भजन, भक्ति संगीत और सांस्कृतिक परंपराओं में जीवित हैं। वे नारी स्वतंत्रता, प्रेम, भक्ति और आध्यात्मिकता की प्रेरणा हैं।

✅ निष्कर्ष
मीराबाई ने अपने पदों के माध्यम से यह सिखाया कि सच्चा प्रेम, भक्ति और समर्पण किसी भी सांसारिक बंधन से ऊपर होता है। उनके पद न केवल भक्ति की चरम स्थिति को दर्शाते हैं, बल्कि आत्मिक मुक्ति और स्त्री-सशक्तिकरण का अद्भुत उदाहरण भी हैं। उनका जीवन और काव्य भाव-प्रधान, संगीतमय और आत्मिक चेतना से भरपूर है, जो आज भी जनमानस को छूता है।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न


🔷 🪔 प्रश्न 1: मीरा कृष्ण की उपासना किस रूप में करती हैं? वह रूप कैसा है?
🔹 उत्तर:
🔸 मीरा कृष्ण की उपासना पति के रूप में करती हैं।
🔸 वह उन्हें पर्वत धारण करने वाला, सिर पर मोर मुकुट धारण करने वाला मानती हैं।
🔸 कृष्ण का रूप मनोहर और आकर्षक है।
🔸 मीरा स्वयं को उनकी दासी मानती हैं और उन्हें अपना सर्वस्व समझती हैं।

🔷 🌱 प्रश्न 2: भाव व शिल्प सौंदर्य
🟢 (क) अंसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बेलि बोयी। अब त बेलि फैलि गई, आणंद-फल होयी॥
🔸 भाव सौंदर्य:
🌼 प्रेम प्राप्ति हेतु मीरा ने आँसुओं से प्रेमबेल सींची।
🌼 अब वह प्रेमबेल फलदायक हुई और मीरा को आनंद की प्राप्ति हुई।
🌼 यह भक्ति के पथ पर कष्ट सहकर मिले सुख को दर्शाता है।
🔸 शिल्प सौंदर्य:
✔️ सांगरूपक अलंकार – प्रेमबेल, आनंद फल
✔️ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार – ‘सींचि-सींचि’
✔️ अनुप्रास अलंकार – ‘बेलि बोयी’
✔️ भाषा – ब्रज और राजस्थानी मिश्रित, सरल, गीतात्मक

🟢 (ख) दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी। दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी॥
🔸 भाव सौंदर्य:
🌼 जैसे दही से मथकर घी प्राप्त होता है, वैसे ही मीरा ने जीवन को मथा और उसमें से कृष्ण प्रेम रूपी सार निकाला।
🌼 संसार उन्हें छाछ जैसा असार प्रतीत होता है।
🔸 शिल्प सौंदर्य:
✔️ अन्योक्ति अलंकार – दही = जीवन, घृत = भक्ति
✔️ प्रतीकात्मक भाषा – घृत (सार), छोयी (असार संसार)
✔️ गंभीर प्रतीकात्मकता व गीतात्मकता

🔷 😔 प्रश्न 3: लोग मीरा को बावरी क्यों कहते हैं?
🔹 उत्तर:
🔸 मीरा कृष्ण भक्ति में पूर्ण रूप से मग्न थीं।
🔸 उन्होंने राजमहल, परिवार, लोकलाज सभी त्याग दिए।
🔸 वे गली-गली भजन गातीं, नृत्य करतीं, समाज की मर्यादाओं की परवाह नहीं करतीं।
🔸 इसलिए लोग उन्हें “बावरी” कहते थे।

🔷 ☠️ प्रश्न 4: “विस का प्याला राणा भेज्या, पीवत मीरां हाँसी” – इसमें क्या व्यंग्य छिपा है?
🔹 उत्तर:
🔸 राणा ने मीरा को मारने के लिए जहर का प्याला भेजा।
🔸 मीरा ने उसे हँसते हुए पी लिया।
🔸 यह दर्शाता है कि प्रेम की शक्ति विष को भी अमृत बना देती है।
🔸 व्यंग्य इस बात पर है कि जिसे मारने भेजा गया, वह हँस रही है और निर्भीक है।

🔷 😭 प्रश्न 5: मीरा जगत को देखकर रोती क्यों हैं?
🔹 उत्तर:
🔸 संसार मोह-माया में डूबा है।
🔸 लोग सांसारिक सुख-दुख को ही सबकुछ मानते हैं।
🔸 मीरा जानती हैं कि यह सब नश्वर है।
🔸 इसलिए उन्हें संसार की माया में उलझी आत्माएँ देखकर दुःख होता है।

🌟 📍 पद के आसपास 🌟
🔷 🌀 प्रश्न 1: प्रेम प्राप्ति के लिए मीरा को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा?
🔸 परिवार का विरोध 🏰
🔸 लोकनिंदा और व्यंग्य 👥
🔸 राजसी सुख त्यागने की पीड़ा 💎
🔸 मंदिरों में रहन-सहन 🛕
🔸 भूख-प्यास और कष्ट 🍂
🔸 मृत्यु के प्रयास सहना ⚔️

🔷 👒 प्रश्न 2: लोक-लाज खोने का अभिप्राय क्या है?
🔹 उत्तर:
🔸 मीरा ने पर्दा प्रथा और कुल मर्यादा को तोड़ा।
🔸 वे समाज की परंपराओं से ऊपर उठकर खुले में कृष्ण भजन करती थीं।
🔸 इसे ही “लोकलाज खोना” कहा गया।

🔷 🕊️ प्रश्न 3: मीरा ने ‘सहज मिले अविनासी’ क्यों कहा है?
🔹 उत्तर:
🔸 मीरा मानती हैं कि प्रभु अविनाशी हैं।
🔸 वे सहज भक्ति और पवित्र मन से प्राप्त हो सकते हैं।
🔸 किसी आडंबर या कर्मकांड की आवश्यकता नहीं।

🔷 🧭 प्रश्न 4: “लोग कहै, मीरा भई बावरी, न्यात कहै कुल-नासी” — क्यों?
🔹 उत्तर:
🔸 समाज ने मीरा को पागल समझा क्योंकि वे सांसारिक सुख छोड़कर गली-गली भटकती थीं।
🔸 कुटुंब (न्यात) ने उन्हें वंश नाशिनी कहा क्योंकि उन्होंने सदियों पुरानी परंपराओं और कुल मर्यादा को नहीं निभाया।

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न



🟨 I. बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ) – (प्रश्न 1 से 5)
🔸 प्रश्न 1: मीराबाई का जन्म कहाँ हुआ था?
(A) जोधपुर
(B) कुड़की गांव (मेड़ता)
(C) चित्तौड़
(D) द्वारका
उत्तर: (B) कुड़की गांव (मेड़ता)


🔸 प्रश्न 2: मीराबाई के पति का नाम क्या था?
(A) महाराणा सांगा
(B) राव दूदा
(C) भोजराज
(D) रत्नसिंह
उत्तर: (C) भोजराज


🔸 प्रश्न 3: ‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ में ‘गिरधर’ का अर्थ क्या है?
(A) पर्वत धारण करने वाला
(B) गायों का रक्षक
(C) वंशी बजाने वाला
(D) राधा का प्रेमी
उत्तर: (A) पर्वत धारण करने वाला


🔸 प्रश्न 4: मीराबाई की भक्ति किस प्रकार की थी?
(A) दास्य भाव
(B) सख्य भाव
(C) कांता भाव (माधुर्य)
(D) वात्सल्य भाव
उत्तर: (C) कांता भाव (माधुर्य)


🔸 प्रश्न 5: मीराबाई की मृत्यु कहाँ हुई थी?
(A) वृंदावन
(B) द्वारका
(C) पुष्कर
(D) अजमेर
उत्तर: (B) द्वारका

🟦 II. लघु उत्तर प्रश्न (2–3 वाक्य) – (प्रश्न 6 से 10)
🔸 प्रश्न 6: मीराबाई ने ‘प्रेम-बेलि’ को आँसुओं से क्यों सींचा?
उत्तर: मीराबाई ने कृष्ण भक्ति के लिए समाज और परिवार से अपमान व विरोध सहा। उन्होंने भक्ति की बेलि को आँसुओं से सींचा क्योंकि प्रेम में उन्हें अत्यधिक पीड़ा मिली थी।


🔸 प्रश्न 7: मीराबाई अपने आप को ‘दासी’ क्यों कहती हैं?
उत्तर: मीराबाई कृष्ण को पति मानती थीं और स्वयं को उनकी सेविका समझती थीं। वे विनम्रता से अपने आत्मसमर्पण को प्रकट करती हैं।


🔸 प्रश्न 8: ‘आणंद-फल होई’ का क्या अर्थ है?
उत्तर: इसका अर्थ है कि कृष्ण भक्ति की पूर्णता से आत्मा को परमानंद की प्राप्ति होती है। यह भक्ति का फल है।


🔸 प्रश्न 9: मीराबाई ने ‘घृत’ और ‘छोयी’ का प्रतीक क्यों दिया?
उत्तर: ‘घृत’ कृष्ण प्रेम का सार तत्व है और ‘छोयी’ संसार की असारता का प्रतीक। उन्होंने बतलाया कि प्रेम ही मूल्यवान है।


🔸 प्रश्न 10: मीराबाई की भाषा की मुख्य विशेषता क्या है?
उत्तर: मीराबाई की भाषा राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है जिसमें संगीतात्मकता, प्रतीकात्मकता और सरलता है।

🟩 III. मध्यम दीर्घ उत्तर प्रश्न (1 अनुच्छेद) – (प्रश्न 11 से 14)
🔸 प्रश्न 11: मीराबाई के पदों में निहित सामाजिक चुनौतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: मीराबाई को भक्ति के मार्ग में पारिवारिक, सामाजिक विरोधों का सामना करना पड़ा। राजपरिवार उनकी कृष्ण भक्ति को कुल मर्यादा के विरुद्ध मानता था। उन्हें बावरी कहा गया, विष का प्याला भेजा गया। फिर भी वे अपनी भक्ति में अडिग रहीं।


🔸 प्रश्न 12: मीराबाई के काव्य में प्रतीकात्मकता का प्रयोग स्पष्ट करें।
उत्तर: मीराबाई के पदों में ‘प्रेम-बेलि’, ‘अंसुवन जल’, ‘घृत’, ‘छोयी’, ‘आणंद-फल’ जैसे सुंदर प्रतीकों द्वारा कृष्ण प्रेम की गहराई को प्रकट किया गया है।


🔸 प्रश्न 13: मीराबाई की भक्ति में वैराग्य भाव का परिचय दीजिए।
उत्तर: मीराबाई ने राजसी जीवन, भोग-विलास और लोक-लाज सब छोड़ दिया। वे संतों के साथ रहीं, संसार से विरक्त होकर केवल कृष्ण की भक्ति में लीन रहीं।


🔸 प्रश्न 14: मीराबाई के पदों में स्त्री स्वतंत्रता का स्वर कैसे है?
उत्तर: मीराबाई ने पर्दा-प्रथा, कुल मर्यादा और पारिवारिक बंधनों का विरोध किया। वे मंदिरों में जाकर नृत्य-गान करती थीं और अपने आध्यात्मिक निर्णय स्वतंत्र रूप से लेती थीं।

🟥 IV. विशद उत्तर प्रश्न – (प्रश्न 15)
🔸 प्रश्न 15: मीराबाई के दोनों पदों के आधार पर उनके कृष्ण प्रेम की विशेषताओं, भक्ति पद्धति और काव्यगत सौंदर्य का विस्तृत विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
कृष्ण प्रेम: मीराबाई का प्रेम कांता भाव पर आधारित है। वे कृष्ण को पति मानती हैं और पूर्ण समर्पण करती हैं – ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई’।
भक्ति पद्धति: वे बाह्य बंधनों से परे होकर मंदिरों में नाचती, गाती हैं – ‘पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे’।
काव्य सौंदर्य: प्रतीकात्मकता, संगीतात्मकता, भाव-प्रधानता, भाषा में ब्रज-राजस्थानी मिश्रण है। अनुप्रास, रूपक अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है। मीराबाई का काव्य भक्तिपूर्ण प्रेम, स्त्री चेतना और आत्मसमर्पण का अनुपम उदाहरण है।

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अतिरिक्त ज्ञान

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दृश्य सामग्री

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