Class 11, HINDI COMPULSORY

Class 11 : हिंदी अनिवार्य – Lesson 9 हम तो एक एक कर जाना, कबीर

संक्षिप्त लेखक परिचय

कबीर – जीवन एवं लेखक परिचय

कबीरदास भक्तिकाल की निर्गुण भक्ति धारा के महान संत, कवि और समाज-सुधारक थे। उनका जन्म 15वीं शताब्दी में काशी (वाराणसी) में हुआ माना जाता है। वे एक जुलाहा परिवार में पले-बढ़े और प्रारंभ से ही आध्यात्मिक ज्ञान की ओर आकर्षित थे। कबीर के गुरु रामानंद माने जाते हैं, जिनसे उन्होंने भक्ति का मार्ग अपनाया।

कबीर ने हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्मों के आडंबरों, जातिवाद, मूर्ति पूजा, तीर्थयात्रा, और बाह्य कर्मकांडों की तीव्र आलोचना की। उन्होंने ‘राम’ को निर्गुण ब्रह्म का प्रतीक माना और सत्य, प्रेम, सहजता व आत्मज्ञान को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया।

उनकी भाषा सधुक्कड़ी थी जिसमें ब्रज, अवधी, खड़ी बोली, फारसी आदि का मेल है। उनकी रचनाएँ ‘बीजक’, ‘साखी’, ‘सबद’ और ‘रमैनी’ के रूप में संग्रहीत हैं। कबीर का दर्शन मानवीय एकता, सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक स्वाधीनता का संदेश देता है।

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन


📿 पाठ परिचय
‘कबीर के पद’ कक्षा 11 की पुस्तक ‘आरोह भाग-1’ में संकलित हैं। इसमें दो प्रसिद्ध पद शामिल हैं:
🟢 “हम तौ एक एक करि जांनां” – ईश्वर की एकता का वर्णन
🟠 “संतो देखत जग बौराना” – बाहय आडंबरों पर व्यंग्य
कबीरदास भक्तिकाल की निर्गुण-ज्ञानमार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। उनके पद सरल, सीधी और ठेठ भाषा में रचे गए हैं जो आम जनता तक पहुंच सकें।

🕉️ पद 1: “हम तौ एक एक करि जांनां”

🔹 मूल पाठ
हम तौ एक एक करि जांनां।
दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।।
एकै पवन एक ही पानीं एकै जोति समांनां।
एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै कोहरा सांनां।।
जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटै कोई।
सब घटि अंतरि तूंही व्यापक धरै सरूपै सोई।।
माया देखि के जगत लुभांनां काहे रे नर गरबांनां।
निरभै भया कछू नहिं ब्यापै कहै कबीर दिवांनां।।

🔸 सरल व्याख्या

🟣 ईश्वर की एकता
🌟 “हम तौ एक एक करि जांनां” – कबीर कहते हैं कि हम तो केवल एक ही ईश्वर को जानते और मानते हैं।
⚠️ “दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग” – जो लोग ईश्वर को दो या अनेक मानते हैं, उन्हें नरक की प्राप्ति होगी क्योंकि उन्होंने उस परम सत्य को नहीं पहचाना।

🟡 प्रकृति के तत्व एक समान
💨 “एकै पवन एक ही पानीं” – सभी के लिए हवा एक है, पानी एक है।
💡 “एकै जोति समांनां” – सभी प्राणियों में एक ही ज्योति (आत्मा/ईश्वर) समाई हुई है।
🏺 “एकै खाक गढ़े सब भांडै” – जिस प्रकार एक ही मिट्टी से विभिन्न प्रकार के बर्तन बनते हैं, उसी प्रकार एक ही ईश्वर ने सभी प्राणियों की रचना की है।
👨‍🎨 “एकै कोहरा सांनां” – एक ही कुम्हार (ईश्वर) ने मिट्टी (पंच तत्व) को सानकर सृष्टि बनाई है।

🔴 अग्नि का उदाहरण
🪓 “जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटै कोई” – जिस प्रकार बढ़ई लकड़ी को काट सकता है परंतु उसमें छिपी अग्नि को नहीं काट सकता।
🔥 “सब घटि अंतरि तूंही व्यापक” – उसी प्रकार सभी शरीरों में परमात्मा विद्यमान है। शरीर नष्ट हो सकता है परंतु आत्मा (ईश्वर) अमर है।

🟢 माया-मोह की व्यर्थता
💰 “माया देखि के जगत लुभांनां” – माया (भ्रम, धन-संपत्ति) देखकर संसार लुभा हुआ है।
🙅 “काहे रे नर गरबांनां” – हे मनुष्य! इस पर घमंड क्यों करते हो? यह सब नश्वर है।
🕊️ “निरभै भया कछू नहिं ब्यापै” – कबीर कहते हैं कि मैं निर्भय हो गया हूं, अब कोई भय या माया मुझे प्रभावित नहीं करती।
😇 “कहै कबीर दिवांनां” – कबीर स्वयं को दीवाना (ईश्वर का मतवाला) कहते हैं क्योंकि वे माया-मोह छोड़कर ईश्वर की भक्ति में लीन हैं।

🌀 पद 2: “संतो देखत जग बौराना”

🔹 मूल पाठ
संतो देखत जग बौराना।
साँच कहों तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना।।
नेमी देखा धरमी देखा, प्रात करै असनाना।
आतम मारि पखानहि पूजै, उनमें कछु नहिं ज्ञाना।।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़ै कितेब कुराना।
कै मुरीद तदबीर बतावैं, उनमें उहै जो ज्ञाना।।
आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।।

🔸 सरल व्याख्या

🔴 संसार का पागलपन
🤯 “संतो देखत जग बौराना” – हे संतो! देखो यह संसार कितना पागल (भ्रमित) हो गया है।
🗣️ “साँच कहों तो मारन धावै” – जब कोई सच बोलता है तो लोग उसे मारने दौड़ते हैं।
🤥 “झूठे जग पतियाना” – लेकिन झूठ पर सारा संसार विश्वास कर लेता है।

🟡 बाहय आडंबर पर प्रहार
🕉️ “नेमी देखा धरमी देखा” – मैंने नियमों का पालन करने वाले और धार्मिक अनुष्ठान करने वाले देखे।
🛁 “प्रात करै असनाना” – जो सुबह-सुबह स्नान करते हैं।
🗿 “आतम मारि पखानहि पूजै” – लेकिन वे आत्मा को मारकर पत्थर की पूजा करते हैं।
🚫 “उनमें कछु नहिं ज्ञाना” – उनमें सच्चा ज्ञान नहीं है।

🟢 मुस्लिम आडंबर
📿 “बहुतक देखा पीर औलिया” – मैंने बहुत से पीर-फकीर और औलिया भी देखे।
📖 “पढ़ै कितेब कुराना” – जो कुरान की किताबें पढ़ते हैं।
👥 “कै मुरीद तदबीर बतावैं” – और अपने शिष्यों को उपाय बताते हैं।
❌ “उनमें उहै जो ज्ञाना” – परंतु उनमें भी वही खोखला ज्ञान है।

🔵 योगियों और तीर्थ यात्रियों पर व्यंग्य
🧘 “आसन मारि डिंभ धरि बैठे” – योगी लोग आसन लगाकर घमंड से बैठते हैं।
🧠 “मन में बहुत गुमाना” – उनके मन में बहुत अहंकार है।
🌳 “पीपर पाथर पूजन लागे” – पीपल के पेड़ और पत्थरों की पूजा करने लगते हैं।
🏔️ “तीरथ गर्व भुलाना” – तीर्थों पर जाकर घमंड में भूल जाते हैं।

🟣 हिंदू-मुस्लिम विवाद
🕉️ “हिन्दू कहै मोहि राम पियारा” – हिंदू कहता है मुझे राम प्यारे हैं।
☪️ “तुर्क कहै रहिमाना” – मुसलमान कहता है मुझे रहमान (अल्लाह) प्यारे हैं।
⚔️ “आपस में दोउ लरि लरि मूए” – दोनों आपस में लड़-लड़कर मर जाते हैं।
🤷 “मर्म न काहू जाना” – लेकिन किसी ने भी ईश्वर के रहस्य को नहीं जाना।

🎯 पदों का संदेश

🟢 अद्वैतवाद (ईश्वर की एकता)
🌍 कबीर ने आत्मा और परमात्मा को एक माना है।
🌟 सारी सृष्टि में एक ही ईश्वर व्याप्त है।

🟠 माया-मोह की व्यर्थता
💸 धन-संपत्ति और भौतिक सुख नश्वर हैं।
🙏 इन पर घमंड करना व्यर्थ है।

🟡 बाहय आडंबरों का विरोध
🚫 नियम, धर्म, माला, तिलक, टोपी आदि बाहरी चीजें हैं।
💖 सच्ची भक्ति हृदय से होती है, बाहरी दिखावे से नहीं।

🔴 सांप्रदायिकता का विरोध
🤝 हिंदू-मुसलमान दोनों एक ही ईश्वर की संतान हैं।
⚖️ धर्म के नाम पर लड़ाई व्यर्थ है।

🔵 सच्चे ज्ञान की खोज
📚 किताबी ज्ञान और बाहरी अनुष्ठान पर्याप्त नहीं।
🧘 आत्मज्ञान और आंतरिक अनुभव ही सच्चा ज्ञान है।

🎨 काव्य सौंदर्य
🔹 भाषा शैली:
सधुक्कड़ी भाषा (हिंदी, अवधी, पंजाबी, राजस्थानी का मिश्रण)।
सरल, सीधी और प्रभावशाली भाषा।
🔹 अलंकार:
यमक अलंकार: “एक एक” में पहले एक का अर्थ परमात्मा, दूसरे का अर्थ संख्या एक।
उदाहरण अलंकार: बढ़ई-लकड़ी-अग्नि का उदाहरण।
रूपक अलंकार: कोहरा = ईश्वर, खाक = पंच तत्व।
🔹 शब्द चयन:
दोजग, पखान, औलिया, असनाना, कितेब जैसे देशज और उर्दू शब्द।

🏁 निष्कर्ष
कबीर के ये पद निर्गुण भक्ति, समाज सुधार और आध्यात्मिक ज्ञान के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। उन्होंने बाहरी आडंबरों, जातिगत भेदभाव, सांप्रदायिकता और पाखंड पर करारा प्रहार किया। उनका संदेश सार्वभौमिक है – ईश्वर एक है, सच्ची भक्ति आंतरिक है और मानवता सर्वोपरि है।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न


🔹 प्रश्न 1
कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए हैं?
उत्तर:
कबीर के अनुसार परमात्मा एक है और उन्होंने इसके समर्थन में निम्न तर्क दिए:
🔸 संसार में एक ही पवन और एक ही जल है।
🔸 सभी प्राणियों में एक ही ज्योति व्याप्त है।
🔸 सभी बर्तन एक ही मिट्टी से बने हैं।
🔸 जैसे कुम्हार एक मिट्टी से अलग-अलग घड़े बनाता है, वैसे ही ईश्वर ने सबकी रचना की।
🔸 परमात्मा सभी के भीतर व्यापक है।
🔸 प्रत्येक कण में ईश्वर समाया हुआ है।

🔹 प्रश्न 2
मानव शरीर का निर्माण किन पंच तत्वों से हुआ है?
उत्तर:
मानव शरीर का निर्माण इन पाँच तत्वों से हुआ है:
➀ पृथ्वी (मिट्टी)
➁ जल (पानी)
➂ वायु (हवा)
➃ अग्नि (आग)
➄ आकाश

🔹 प्रश्न 3
“जैसे बाढ़ी काष्ट…” पंक्तियों के आधार पर कबीर की दृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है?
उत्तर:
🔸 ईश्वर सर्वव्यापी और अविनाशी है।
🔸 शरीर नश्वर है पर आत्मा अमर है।
🔸 जैसे लकड़ी में अग्नि समाई होती है, वैसे ही प्राणी में परमात्मा समाया है।
🔸 मनुष्य के हृदय में ही ईश्वर का वास है।
🔸 ईश्वर अनेक स्वरूपों में विद्यमान है।

🔹 प्रश्न 4
कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है?
उत्तर:
🔸 वे मोह-माया से मुक्त हो चुके हैं।
🔸 निर्भय होकर भक्ति करते हैं।
🔸 ईश्वर की अनुभूति ने उन्हें दीवाना बना दिया है।
🔸 वे हानि-लाभ से ऊपर उठ चुके हैं।
🔸 उन्हें किसी का डर नहीं रहता।
🔸 उनकी भक्ति सामान्य विचारों से हटकर है।

🔹 प्रश्न 5
कबीर ने ऐसा क्यों कहा है कि संसार बौरा गया है?
उत्तर:
🔸 लोग सत्य बोलने पर क्रोधित होते हैं।
🔸 झूठ पर विश्वास करते हैं।
🔸 धार्मिक आडंबरों में उलझे हैं।
🔸 आत्मज्ञान से दूर हैं।
🔸 बाहरी दिखावे में फँसे हैं।
🔸 सत्य की पहचान नहीं कर पाते।

🔹 प्रश्न 6
कबीर ने नियम और धर्म का पालन करने वालों की किन कमियों की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
🌼 हिंदू अनुयायियों की कमियाँ:
▪︎ केवल स्नान का दिखावा करते हैं।
▪︎ मूर्तियों और वृक्षों की पूजा करते हैं।
▪︎ आत्मज्ञान से वंचित हैं।
🌼 मुस्लिम अनुयायियों की कमियाँ:
▪︎ पीर-औलिया का अंधानुकरण करते हैं।
▪︎ कुरान को रटकर समझते हैं।
▪︎ केवल कर्मकांड में विश्वास करते हैं।
🌼 सामान्य कमियाँ:
▪︎ तिलक, टोपी, माला पहनने का ढोंग।
▪︎ बाहरी पाखंड और दिखावा।
▪︎ सच्चे धर्म से विमुख।

🔹 प्रश्न 7
अज्ञानी गुरुओं की शरण में जाने पर शिष्यों की क्या गति होती है?
उत्तर:
🔸 शिष्य भी मूर्ख और अज्ञानी बन जाते हैं।
🔸 मोह-माया में फँस जाते हैं।
🔸 अधूरा और भ्रमित ज्ञान प्राप्त होता है।
🔸 वे भी पाखंड में डूब जाते हैं।
🔸 गुरु की झूठी महिमा में फँसे रहते हैं।
🔸 अंत में दोनों को पछताना पड़ता है।
🔸 मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो पाती।

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न


🔵 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ)
🟢 प्रश्न 1
कबीर के अनुसार ईश्वर कैसा है?
🟣 1. अनेक रूपों वाला
🔵 2. एक और सर्वव्यापक
🟢 3. केवल मंदिर में रहने वाला
🟡 4. केवल मस्जिद में रहने वाला
✅ उत्तर: 2. एक और सर्वव्यापक

🟢 प्रश्न 2
कबीर ने किसे दोजग (नरक) का हकदार बताया है?
🟣 1. जो ईश्वर को एक मानते हैं
🔵 2. जो ईश्वर को दो मानते हैं और उसे नहीं पहचानते
🟢 3. जो पूजा करते हैं
🟡 4. जो भक्ति करते हैं
✅ उत्तर: 2. जो ईश्वर को दो मानते हैं और उसे नहीं पहचानते

🟢 प्रश्न 3
बढ़ई और अग्नि के उदाहरण से कबीर क्या बताना चाहते हैं?
🟣 1. लकड़ी कठोर होती है
🔵 2. शरीर नश्वर है पर आत्मा अमर है
🟢 3. अग्नि शक्तिशाली है
🟡 4. बढ़ई कुशल होता है
✅ उत्तर: 2. शरीर नश्वर है पर आत्मा अमर है

🟢 प्रश्न 4
कबीर के अनुसार संसार किस कारण भटका हुआ है?
🟣 1. गरीबी के कारण
🔵 2. बाह्य आडंबरों और अज्ञानता के कारण
🟢 3. शिक्षा की कमी के कारण
🟡 4. धन की कमी के कारण
✅ उत्तर: 2. बाह्य आडंबरों और अज्ञानता के कारण

🟢 प्रश्न 5
कबीर ने स्वयं को दीवाना क्यों कहा है?
🟣 1. वे पागल थे
🔵 2. वे ईश्वर भक्ति में लीन थे
🟢 3. वे संसार से डरते थे
🟡 4. वे अज्ञानी थे
✅ उत्तर: 2. वे ईश्वर भक्ति में लीन थे

🔵 लघु उत्तरीय प्रश्न
🟠 प्रश्न 6
कबीर ने ईश्वर की एकता के लिए कौन-से तर्क दिए हैं?
💠 उत्तर: कबीर ने कहा कि सभी जगह एक ही पवन, एक ही जल और एक ही ज्योति है। एक ही मिट्टी से सभी बर्तन बने हैं और सब में एक ही ईश्वर व्याप्त है।

🟠 प्रश्न 7
माया के कारण मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
💠 उत्तर: माया के कारण मनुष्य भ्रमित हो जाता है और संसार के झूठे आकर्षण में फंसकर अहंकार में डूब जाता है। वह ईश्वर की एकता को भूल जाता है।

🟠 प्रश्न 8
संसार में सच बोलने वालों के साथ क्या व्यवहार होता है?
💠 उत्तर: संसार में सच बोलने वाले को लोग मारने के लिए दौड़ते हैं जबकि झूठ पर विश्वास कर लेते हैं। अज्ञानी लोग सत्य को सहन नहीं कर पाते।

🟠 प्रश्न 9
हिंदू और मुसलमान किस बात पर लड़ते हैं?
💠 उत्तर: हिंदू राम को अपना बताते हैं और मुसलमान रहीम को। दोनों राम और रहीम के नाम पर लड़ते हैं लेकिन दोनों ही ईश्वर का मर्म नहीं जानते।

🟠 प्रश्न 10
कबीर ने किन बाह्य आडंबरों की निंदा की है?
💠 उत्तर: कबीर ने टोपी, माला, तिलक, पत्थर की पूजा, तीर्थ का घमंड, आसन मारकर बैठना और धार्मिक अनुष्ठानों जैसे बाह्य आडंबरों की निंदा की है।

🔵 मध्यम उत्तरीय प्रश्न
🔴 प्रश्न 11
कबीर के अनुसार ईश्वर का स्वरूप क्या है?
🔷 उत्तर: कबीर के अनुसार ईश्वर एक है और सर्वव्यापक है। वह सभी प्राणियों के हृदय में आत्मा के रूप में विद्यमान है। जिस प्रकार बढ़ई लकड़ी को काट सकता है लेकिन उसमें छिपी अग्नि को नहीं काट सकता, उसी प्रकार शरीर नश्वर है लेकिन आत्मा अमर है। ईश्वर सभी में एक समान व्याप्त है चाहे रूप कोई भी हो। वह निराकार, निर्गुण और अजर-अमर है। माया के कारण लोग उसे अलग-अलग समझते हैं।

🔴 प्रश्न 12
कबीर ने धार्मिक आडंबरों पर क्या टिप्पणी की है?
🔷 उत्तर: कबीर ने धार्मिक आडंबरों पर करारा प्रहार किया है। उन्होंने कहा कि लोग नियम और धर्म का पालन करते हैं, प्रातः स्नान करते हैं लेकिन आत्मा को मारकर पत्थर की पूजा करते हैं। उनमें सच्चा ज्ञान नहीं है। पीर और औलिया कुरान पढ़ते हैं और लोगों को मुरीद बनाते हैं लेकिन उनमें भी वही ज्ञान है जो वे स्वयं जानते हैं। लोग टोपी, माला, तिलक लगाते हैं और तीर्थ पर घमंड करते हैं लेकिन आत्मा की खबर नहीं जानते। इस प्रकार कबीर ने बाहरी दिखावे को खोखला बताया है।

🔴 प्रश्न 13
कबीर की भाषा की विशेषताएं बताइए।
🔷 उत्तर: कबीर की भाषा सधुक्कड़ी या पंचमेल खिचड़ी भाषा है। उनकी भाषा में ब्रज, अवधी, राजस्थानी, पंजाबी, फारसी, अरबी और संस्कृत के शब्द मिलते हैं। वे घुमक्कड़ संत थे इसलिए विभिन्न क्षेत्रों की बोलियों का प्रभाव उनकी भाषा पर पड़ा। उनकी भाषा सरल, सहज और प्रभावशाली है। वे अपनी बात दो टूक शब्दों में कहने में विश्वास रखते थे। उनकी भाषा में लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग मिलता है जो उनकी कविता को जीवंत बनाता है।

🔵 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
🟣 प्रश्न 14
कबीर के पदों का केंद्रीय भाव और उनकी प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
🔶 उत्तर: कबीर भक्तिकाल की निर्गुण ज्ञानमार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। उनके पदों का केंद्रीय भाव ईश्वर की एकता, आत्मा और परमात्मा की अद्वैत सत्ता तथा बाह्य आडंबरों का खंडन है। पहले पद में कबीर ने ईश्वर को एक बताया है और कहा है कि जो ईश्वर को दो मानते हैं वे नरक के भागी हैं। उन्होंने प्रकृति के तत्वों के उदाहरण देकर समझाया कि सभी जगह एक ही पवन, एक ही जल और एक ही ज्योति है। कुम्हार की तरह ईश्वर ने भी एक ही मिट्टी से सब की रचना की है। बढ़ई लकड़ी को काट सकता है लेकिन उसमें छिपी अग्नि को नहीं काट सकता, यह बताता है कि शरीर नश्वर है पर आत्मा अमर है। ईश्वर सभी के हृदय में समाया हुआ है। माया के कारण मनुष्य भ्रमित होकर अहंकार में फंस जाता है। दूसरे पद में कबीर ने संसार को बौराना यानी पागल बताया है। यहां सच बोलने वाले को मारा जाता है और झूठ पर विश्वास किया जाता है। हिंदू और मुसलमान राम और रहीम के नाम पर लड़ते हैं लेकिन दोनों ही ईश्वर के मर्म को नहीं जानते। लोग धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, टोपी, माला, तिलक लगाते हैं, पत्थर और पीपल की पूजा करते हैं लेकिन आत्मा की खबर नहीं रखते। गुरु भी अज्ञानी हैं और शिष्यों को भी वही ज्ञान देते हैं जो स्वयं जानते हैं। अंत में दोनों डूब जाते हैं। कबीर कहते हैं कि ईश्वर को जानना सहज है क्योंकि आत्मा ही परमात्मा है। कबीर के ये पद आज भी अत्यंत प्रासंगिक हैं। आज भी समाज धार्मिक कट्टरता, बाह्य आडंबरों और अंधविश्वासों में फंसा हुआ है। जाति, धर्म और संप्रदाय के नाम पर हिंसा और विभाजन होता है। कबीर का संदेश है कि ईश्वर एक है और सभी में समान रूप से विद्यमान है। बाहरी दिखावे से नहीं बल्कि आत्म-ज्ञान से ही मोक्ष संभव है।

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अतिरिक्त ज्ञान

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दृश्य सामग्री

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