Class 11 : हिंदी अनिवार्य – Lesson 9 हम तो एक एक कर जाना, कबीर
संक्षिप्त लेखक परिचय
कबीर – जीवन एवं लेखक परिचय (150 शब्दों में)
कबीरदास भक्तिकाल की निर्गुण भक्ति धारा के महान संत, कवि और समाज-सुधारक थे। उनका जन्म 15वीं शताब्दी में काशी (वाराणसी) में हुआ माना जाता है। वे एक जुलाहा परिवार में पले-बढ़े और प्रारंभ से ही आध्यात्मिक ज्ञान की ओर आकर्षित थे। कबीर के गुरु रामानंद माने जाते हैं, जिनसे उन्होंने भक्ति का मार्ग अपनाया।
कबीर ने हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्मों के आडंबरों, जातिवाद, मूर्ति पूजा, तीर्थयात्रा, और बाह्य कर्मकांडों की तीव्र आलोचना की। उन्होंने ‘राम’ को निर्गुण ब्रह्म का प्रतीक माना और सत्य, प्रेम, सहजता व आत्मज्ञान को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया।
उनकी भाषा सधुक्कड़ी थी जिसमें ब्रज, अवधी, खड़ी बोली, फारसी आदि का मेल है। उनकी रचनाएँ ‘बीजक’, ‘साखी’, ‘सबद’ और ‘रमैनी’ के रूप में संग्रहीत हैं। कबीर का दर्शन मानवीय एकता, सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक स्वाधीनता का संदेश देता है।
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पाठ का विश्लेषण एवं विवेचन
🧑🎓 कवि परिचय – कबीरदास (15वीं सदी)
🔸 निर्गुण भक्ति परंपरा के प्रमुख कवि
🔸 वाराणसी में जन्म
🔸 गुरु रामानंद से दीक्षा प्राप्त
🔸 जाति-पाति, मूर्ति पूजा व आडंबरों के विरोधी
🔸 भाषा: सधुक्कड़ी (ब्रज, अवधी, फारसी आदि का मिश्रण)
🔸 रचनाएँ: बीजक, साखी, सबद, रमैनी
🕉️ पद 1: हम तौ एक एक करि जांनां
🪔 मुख्य भाव
ईश्वर की एकता और आत्मा की अमरता
🔹 दोहा 1 – कबीर कहते हैं कि वे केवल एक ही ईश्वर को पहचानते हैं। जो दो मानते हैं, वे भ्रम में हैं।
🔹 दोहा 2 – सबमें एक ही वायु, जल और प्रकाश है। जैसे एक मिट्टी से कई बर्तन बनते हैं, वैसे ही सभी में एक ही आत्मा है।
🔹 दोहा 3 – लकड़ी को बढ़ई काट सकता है लेकिन उसमें छुपी अग्नि को नहीं। शरीर नश्वर है, आत्मा नहीं।
🔹 दोहा 4 – माया देखकर संसार मोहित है, पर जो निर्भय हो जाता है, उस पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ता। कबीर स्वयं को दीवाना भक्त मानते हैं।
🧠 पद 2: संतो देखत जग बौराना
🪔 मुख्य भाव
धार्मिक आडंबर और सामाजिक पाखंड पर तीखा व्यंग्य
🔹 दोहा 1 – सच्चाई कहने पर लोग मारने दौड़ते हैं और झूठ पर विश्वास करते हैं।
🔹 दोहा 2 – नियमों का पालन करने वाले लोग आत्मा को मारकर पत्थर पूजते हैं, उनमें सच्चा ज्ञान नहीं।
🔹 दोहा 3 – कई मुस्लिम संत कुरान पढ़ते हैं, शिष्यों को उपदेश देते हैं, पर उनमें भी सही आत्मज्ञान नहीं है।
📌 मुख्य विषय और संदेश
🔹 🕊️ ईश्वर की एकता:
सभी प्राणियों में एक ही परमात्मा का वास है।
🔹 🚫 धार्मिक पाखंड का विरोध:
कबीर ने हिन्दू और मुस्लिम दोनों समाजों के कर्मकांडों को व्यर्थ बताया।
🔹 🙌 सामाजिक समरसता:
कबीर ने जातिवाद, भेदभाव और धर्म के नाम पर होने वाले भेद को मिटाने का संदेश दिया।
🔹 🗣️ भाषा की सरलता:
सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग कर उन्होंने अपने विचार जनमानस तक पहुँचाए।
📚 भक्ति आंदोलन में योगदान
कबीर ने धर्म और भक्ति को व्यक्ति के अंतर्मन से जोड़ने पर बल दिया। उनके पद समाज में जागरूकता और आत्मचिंतन के साधन बने।
🔚 निष्कर्ष
कबीर के पद आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने भक्ति काल में थे। वे केवल धार्मिक कविता नहीं, बल्कि समाज और आत्मा की गहराइयों में उतरने का आमंत्रण हैं।
🙏 “सांच कहों तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना” – कबीर
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
🔹 प्रश्न 1
कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए हैं?
उत्तर:
कबीर के अनुसार परमात्मा एक है और उन्होंने इसके समर्थन में निम्न तर्क दिए:
🔸 संसार में एक ही पवन और एक ही जल है।
🔸 सभी प्राणियों में एक ही ज्योति व्याप्त है।
🔸 सभी बर्तन एक ही मिट्टी से बने हैं।
🔸 जैसे कुम्हार एक मिट्टी से अलग-अलग घड़े बनाता है, वैसे ही ईश्वर ने सबकी रचना की।
🔸 परमात्मा सभी के भीतर व्यापक है।
🔸 प्रत्येक कण में ईश्वर समाया हुआ है।
🔹 प्रश्न 2
मानव शरीर का निर्माण किन पंच तत्वों से हुआ है?
उत्तर:
मानव शरीर का निर्माण इन पाँच तत्वों से हुआ है:
➀ पृथ्वी (मिट्टी)
➁ जल (पानी)
➂ वायु (हवा)
➃ अग्नि (आग)
➄ आकाश
🔹 प्रश्न 3
“जैसे बाढ़ी काष्ट…” पंक्तियों के आधार पर कबीर की दृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है?
उत्तर:
🔸 ईश्वर सर्वव्यापी और अविनाशी है।
🔸 शरीर नश्वर है पर आत्मा अमर है।
🔸 जैसे लकड़ी में अग्नि समाई होती है, वैसे ही प्राणी में परमात्मा समाया है।
🔸 मनुष्य के हृदय में ही ईश्वर का वास है।
🔸 ईश्वर अनेक स्वरूपों में विद्यमान है।
🔹 प्रश्न 4
कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है?
उत्तर:
🔸 वे मोह-माया से मुक्त हो चुके हैं।
🔸 निर्भय होकर भक्ति करते हैं।
🔸 ईश्वर की अनुभूति ने उन्हें दीवाना बना दिया है।
🔸 वे हानि-लाभ से ऊपर उठ चुके हैं।
🔸 उन्हें किसी का डर नहीं रहता।
🔸 उनकी भक्ति सामान्य विचारों से हटकर है।
🔹 प्रश्न 5
कबीर ने ऐसा क्यों कहा है कि संसार बौरा गया है?
उत्तर:
🔸 लोग सत्य बोलने पर क्रोधित होते हैं।
🔸 झूठ पर विश्वास करते हैं।
🔸 धार्मिक आडंबरों में उलझे हैं।
🔸 आत्मज्ञान से दूर हैं।
🔸 बाहरी दिखावे में फँसे हैं।
🔸 सत्य की पहचान नहीं कर पाते।
🔹 प्रश्न 6
कबीर ने नियम और धर्म का पालन करने वालों की किन कमियों की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
🌼 हिंदू अनुयायियों की कमियाँ:
▪︎ केवल स्नान का दिखावा करते हैं।
▪︎ मूर्तियों और वृक्षों की पूजा करते हैं।
▪︎ आत्मज्ञान से वंचित हैं।
🌼 मुस्लिम अनुयायियों की कमियाँ:
▪︎ पीर-औलिया का अंधानुकरण करते हैं।
▪︎ कुरान को रटकर समझते हैं।
▪︎ केवल कर्मकांड में विश्वास करते हैं।
🌼 सामान्य कमियाँ:
▪︎ तिलक, टोपी, माला पहनने का ढोंग।
▪︎ बाहरी पाखंड और दिखावा।
▪︎ सच्चे धर्म से विमुख।
🔹 प्रश्न 7
अज्ञानी गुरुओं की शरण में जाने पर शिष्यों की क्या गति होती है?
उत्तर:
🔸 शिष्य भी मूर्ख और अज्ञानी बन जाते हैं।
🔸 मोह-माया में फँस जाते हैं।
🔸 अधूरा और भ्रमित ज्ञान प्राप्त होता है।
🔸 वे भी पाखंड में डूब जाते हैं।
🔸 गुरु की झूठी महिमा में फँसे रहते हैं।
🔸 अंत में दोनों को पछताना पड़ता है।
🔸 मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो पाती।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
🟠 I. बहुविकल्पी प्रश्न (MCQ)
🔹 Q1. पहले पद में कबीर एकत्व के लिए जिन तत्वों का उल्लेख करते हैं, उनमें से कौन-सा एक प्रत्यक्ष रूप से नहीं आता?
🔸 A. वायु B. जल C. पृथ्वी D. स्वर्ण
✅ उत्तर: D
🔹 Q2. “संतो देखत जग बौराना” में कबीर ने मुस्लिम परम्परा के किन लोगों को ऊपरी ज्ञान तक सीमित बताया है?
🔸 A. क़ाज़ी B. पीर-औलिया C. हाजी D. मुफ़्ती
✅ उत्तर: B
🔹 Q3. इन पदों की प्रमुख काव्य-भाषा क्या कहलाती है?
🔸 A. सधुक्कड़ी B. खड़ी बोली C. मैथिली D. राजस्थानी
✅ उत्तर: A
🔹 Q4. “हम तौ एक एक करि जांनां” में ईश्वर की सर्वव्यापकता समझाने के लिए कबीर किस कारीगर का रूपक लेते हैं?
🔸 A. सुनार B. बढ़ई C. कुम्हार D. लोहार
✅ उत्तर: C
🔹 Q5. दोनों पदों में लगातार प्रतिपादित दार्शनिक सूत्र कौन-सा है?
🔸 A. माया-मोह B. कर्म-सिद्धांत C. एकेश्वरवाद D. पुनर्जन्म
✅ उत्तर: C
🟢 II. लघु उत्तर (2–3 वाक्य)
🔹 Q6. कबीर ‘झूठे जग पतियाना’ कह कर किन प्रवृत्तियों की ओर संकेत करते हैं?
✅ उत्तर: समाज का बड़ा वर्ग तर्कहीन आडंबरों व मिथ्या वचनों पर भरोसा करता है। सत्य बोलने वाले को असहज अथवा अस्वीकार्य मानता है।
🔹 Q7. ‘एकै पवन एक ही पानी’ पंक्ति से कबीर क्या निष्कर्ष निकालते हैं?
✅ उत्तर: सभी जीवों का आधार समान है। जब हवा-पानी एक है तो ईश्वर भी एक ही है, भेद मानना भ्रम है।
🔹 Q8. कबीर बढ़ई और लकड़ी का उदाहरण क्यों देते हैं?
✅ उत्तर: बढ़ई लकड़ी को काट सकता है, पर भीतर निहित अग्नि को नहीं। इसी तरह शरीर नाशवान है, पर आत्मा-ईश्वर अविनाशी है।
🔹 Q9. ‘माया देखि के जगत लुभाना’ में ‘माया’ का आशय क्या है?
✅ उत्तर: सांसारिक संपत्ति, पद-प्रतिष्ठा और इंद्रिय सुख, जो आत्मज्ञान से भटका कर अहंकार में डालते हैं।
🔹 Q10. कबीर के अनुसार निर्भय होने का वास्तविक उपाय क्या है?
✅ उत्तर: परमात्मा की सर्वव्यापकता को भीतर अनुभूत कर लेना। तत्पश्चात न लोभ रहता है, न भय।
🔵 III. मध्यम दीर्घ (एक अनुच्छेद)
🔹 Q11. कबीर के पदों में ‘खाक’ शब्द का सांकेतिक महत्व स्पष्ट करें।
✅ उत्तर: ‘खाक’ अर्थात मिट्टी, जिससे सब घट निर्मित हैं। कबीर इसे मानव-समानता के प्रतीक के रूप में रखते हैं। जब बर्तन एक ही मिट्टी से बने तो उनमें ऊँच-नीच कैसे? यह प्रतीक सामाजिक भेदभाव पर तीखा प्रहार करता है।
🔹 Q12. ‘टोपी पहिरे माला पहिरे’ जैसी पंक्तियों में निहित व्यंग्य-भाव पर टिप्पणी कीजिए।
✅ उत्तर: कबीर बाह्य धार्मिक प्रतीकों—टोपी, माला, तिलक—को केवल दिखावे का साधन मानते हैं। वे व्यंग्य से बताते हैं कि लोग प्रतीकों पर इतरा रहे हैं जबकि ‘आतम-खबर’ यानी आत्म-साक्षात्कार से कोसों दूर हैं। इस व्यंग्य के माध्यम से वे अंत:शुद्धि को प्राथमिकता देते हैं।
🔹 Q13. कबीर ने हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों की किन समान कमजोरियों की ओर ध्यान दिलाया है?
✅ उत्तर: बाह्य कर्मकांड, गुरु-केंद्री अंधानुकरण, मूर्ति या पखान-पूजा बनाम पीर-औलिया-पूजा, और ग्रंथ-रटन्ती प्रवृत्ति। दोनों में ही आध्यात्मिक रस बस आडंबर में उलझा दिखता है। कबीर सत्य की खोज भीतर करने को कहते हैं।
🔹 Q14. कबीर की भाषा में ‘लोकसंवादिता’ का गुण कैसे झलकता है?
✅ उत्तर: सधुक्कड़ी मिश्रित बोलचाल के शब्द, सीमित अलंकार, सीधे बिंब—जैसे कुम्हार, बढ़ई—आम जन के रोजमर्रा के बोध से जुड़े हैं। इससे पद जटिल दार्शनिक कथन भी सहज लोकभाषी मुहावरे में संप्रेषित करते हैं।
🔴 IV. विशद उत्तर (दीर्घ)
🔹 Q15. “संतो देखत जग बौराना” पद सामाजिक-धार्मिक सुधार का घोषणापत्र कहा जा सकता है। इस कथन की पुष्टि करते हुए पद के अंतर्विरोध-निर्घोष, आलोचनात्मक दृष्टि और समाधान प्रस्ताव को विवेचित कीजिए।
✅ उत्तर (संकेत-बिंदु सहित):
✦ आलोचना का शस्त्र:
‘सांच कहों तो मारन धावै’ – असहिष्णुता पर तीखा प्रहार।
✦ समान दोष-निर्देश:
हिंदू–मुस्लिम दोनों की अंध-परंपराओं की आलोचना।
✦ ज्ञान-केंद्रिक समाधान:
बाह्य कर्म नहीं, आत्मज्ञान ही मुक्ति का मार्ग।
✦ समाज-सुधारक स्वर:
लोकभाषा में रचना – आमजन तक सीधा संदेश।
✦ विवेकपूर्ण निर्भयता:
‘निरभै भया कछू नहिं ब्यापै’ – भय-मुक्ति का मूल संदेश।
👉 इन बिंदुओं से स्पष्ट है कि यह पद आध्यात्मिक के साथ-साथ सामाजिक चेतना का घोषणापत्र भी है।
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अतिरिक्त ज्ञान
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दृश्य सामग्री
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