Class 11, HINDI COMPULSORY

Class 11 : हिंदी अनिवार्य – Lesson 3 अपु के साथ

संक्षिप्त लेखक परिचय

🖋️ सत्यजीत राय – जीवन और लेखक परिचय (120 शब्दों में):

सत्यजीत राय भारत के महान फिल्म निर्देशक, लेखक, पटकथाकार और संगीतकार थे। उनका जन्म 2 मई 1921 को कोलकाता में हुआ था। वे प्रसिद्ध साहित्यकार उपेन्द्रकिशोर रायचौधुरी के परिवार से थे। राय ने अपने करियर की शुरुआत एक विज्ञापन एजेंसी से की और बाद में सिनेमा की ओर रुख किया। उनकी पहली फिल्म पथेर पांचाली ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई। उन्होंने ‘अपूर संसार’ त्रयी, चारुलता, शतरंज के खिलाड़ी जैसी अनेक कालजयी फिल्में बनाई। वे बांग्ला साहित्य में भी सक्रिय थे और बच्चों के लिए फेलूदा जैसी लोकप्रिय रचनाएँ लिखीं। उन्हें ऑस्कर सहित अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। उनका निधन 23 अप्रैल 1992 को हुआ। वे आज भी भारतीय सिनेमा की आत्मा माने जाते हैं।

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन



📘 ‘अपू के साथ ढाई साल’ पाठ की सूक्ष्म व्याख्या (लगभग 750 शब्दों में):
‘अपू के साथ ढाई साल’ सत्यजीत राय का एक अत्यंत प्रेरणादायक संस्मरण है जो उनकी पहली फिल्म ‘पथेर पांचाली’ के निर्माण की संघर्षमयी यात्रा को दर्शाता है। यह न केवल एक फिल्म निर्देशक के रूप में उनके आरंभिक अनुभवों का दस्तावेज है, बल्कि यह भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय भी है, जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को पहचान दिलाई।


सत्यजीत राय उस समय एक विज्ञापन कंपनी में कार्यरत थे और फिल्म निर्माण का कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था। उनका कार्य समय निर्धारित था, अतः वे केवल अवकाश या छुट्टियों में ही फिल्म की शूटिंग कर पाते थे। इसके अलावा, फिल्म के निर्माण के लिए उन्हें बार-बार आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। इसी कारण से यह फिल्म ढाई साल में पूरी हो पाई।


अपना अनुभव साझा करते हुए लेखक बताते हैं कि ‘पथेर पांचाली’ के निर्माण में कलाकारों का चयन भी बड़ी चुनौती था। अपू की भूमिका के लिए उपयुक्त बाल कलाकार खोजने में उन्हें कठिनाई हुई। एक बार तो कोई अपनी बेटी के बाल कटवाकर लड़के के रूप में प्रस्तुत करने आया। अंततः पड़ोसी का लड़का सुबीर बनर्जी अपू के रूप में चुना गया — यह पूर्णतः संयोग था।
फिल्म के कई दृश्य तकनीकी समस्याओं से प्रभावित हुए। पालसित गाँव में काशफूलों के दृश्य का आधा भाग फिल्माने के बाद जब टीम सात दिन बाद वापस लौटी, तो पाया कि जानवरों ने सभी फूल खा लिए थे। यह दृश्य की निरंतरता (continuity) को बाधित करता। ऐसे में अगली शरद ऋतु तक इंतज़ार करना पड़ा।


रेलगाड़ी के दृश्य की शूटिंग में निर्देशक की सूझबूझ स्पष्ट दिखती है। तीन अलग-अलग रेलगाड़ियों के शॉट्स को इस प्रकार फिल्माया गया कि दर्शकों को एक ही रेलगाड़ी प्रतीत होती है — यह निर्देशक की तकनीकी दक्षता को दर्शाता है।
एक मार्मिक प्रसंग ‘भूलो’ नामक कुत्ते से जुड़ा है। छह महीने बाद जब शूटिंग पूरी करने के लिए टीम लौटी, तो पता चला कि भूलो मर चुका था। एक वैसा ही दूसरा कुत्ता लाया गया और शूटिंग पूरी की गई। लेकिन फिल्म में यह भेद दर्शकों को पता नहीं चला।
इसी प्रकार, श्रीनिवास नामक मिठाईवाले की भूमिका भी दो व्यक्तियों ने निभाई। पहले व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर दूसरे से कार्य कराया गया। लेकिन फिल्मांकन में ऐसा संयोजन रखा गया कि यह अंतर दर्शकों को पता नहीं चल सका।


बारिश का दृश्य फिल्म के सबसे भावनात्मक दृश्यों में से एक है। पैसे की कमी के कारण वर्षा ऋतु में शूटिंग संभव नहीं हो सकी। जब पैसे आए तब शरद ऋतु थी, लेकिन निर्देशक ने कई सप्ताह बारिश का इंतजार किया। एक दिन अचानक वर्षा होने पर उन्होंने यह दृश्य शूट किया जो फिल्म की आत्मा बन गया।
इसके अतिरिक्त, राय ने गाँव के कुछ स्थानीय चरित्रों का भी चित्रण किया है। ‘सुबोध दा’ नामक एक विक्षिप्त व्यक्ति, जो वायलिन बजाता था, लेखक की स्मृति में रह गया। इस प्रकार यह पाठ सिनेमा के साथ-साथ ग्रामीण भारत की विविधता को भी उद्घाटित करता है।
सत्यजीत राय के अनुसार पहली फिल्म बनाना एक अबूझ पहेली होती है — यह केवल तकनीकी कार्य नहीं, बल्कि धैर्य, कल्पना, सामंजस्य और आत्मविश्वास की कसौटी है। उन्होंने अपने संस्मरण में बताया कि कैसे वे एक-एक दृश्य के लिए वर्षों इंतजार करते रहे, लेकिन गुणवत्ता से समझौता नहीं किया।


यह पाठ केवल एक संस्मरण नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो सीमित साधनों में कुछ बड़ा रचना चाहता है। राय का संघर्ष, उनकी रचनात्मकता, और सच्चे कलाकार की जिद, सभी इस पाठ में झलकते हैं। ‘पथेर पांचाली’ का निर्माण भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक क्रांतिकारी घटना थी, जिसने सत्यजीत राय को विश्व-स्तरीय फिल्मकारों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया।

📚 ‘अपू के साथ ढाई साल’ पाठ का सारांश (लगभग 250 शब्दों में):
‘अपू के साथ ढाई साल’ सत्यजीत राय द्वारा रचित एक संस्मरण है जो उनकी प्रसिद्ध फिल्म ‘पथेर पांचाली’ के निर्माण से जुड़ी कठिनाइयों और अनुभवों को प्रस्तुत करता है। फिल्म को पूरा करने में ढाई साल लगे क्योंकि लेखक उस समय एक विज्ञापन एजेंसी में कार्यरत थे और केवल फुर्सत में ही शूटिंग कर पाते थे। आर्थिक तंगी के कारण भी बार-बार शूटिंग रुकती रही।
अपू की भूमिका के लिए उपयुक्त बच्चा ढूँढना कठिन कार्य था। अंततः पड़ोसी का लड़का सुबीर बनर्जी ही अपू बना। शूटिंग के दौरान पालसित गाँव में काशफूलों के दृश्य में जानवरों द्वारा फूल खा लिए जाने के कारण पुनः शरद ऋतु तक इंतज़ार करना पड़ा।


भूलो नामक कुत्ते की मृत्यु के बाद वैसा ही दूसरा कुत्ता लाकर दृश्य पूरा किया गया। श्रीनिवास मिठाईवाले की भूमिका भी दो अलग व्यक्तियों ने निभाई। बारिश का दृश्य शरद ऋतु में कई सप्ताह इंतजार के बाद अचानक हुई वर्षा में फिल्माया गया।
‘सुबोध दा’ जैसे रोचक ग्रामीण चरित्रों का वर्णन भी पाठ में है। यह संस्मरण दिखाता है कि किस प्रकार सीमित संसाधनों और कठिन परिस्थितियों में भी एक सच्चा कलाकार धैर्य और रचनात्मकता से एक महान कृति का निर्माण कर सकता है।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न



🔷 1. पथेर पांचाली फिल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक क्यों चला?
उत्तर: पथेर पांचाली फ़िल्म की शूटिंग ढाई साल तक चली क्योंकि लेखक विज्ञापन कंपनी में कार्यरत थे और केवल फुर्सत में ही शूटिंग कर पाते थे। आर्थिक तंगी के कारण शूटिंग बार-बार रोकनी पड़ी। पात्रों और स्थानों से जुड़ी समस्याओं तथा तकनीकी बाधाओं ने समय और बढ़ा दिया।

🔷 2. अब अगर हम उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे सीन के साथ उसका मेल कैसे बैठता? उसमें से ‘कंटिन्युइटी’ नदारद हो जाती – इस कथन के पीछे क्या भाव है?
उत्तर: इस कथन में दृश्य की निरंतरता बनाए रखने की चिंता प्रकट होती है। काशफूलों का दृश्य जब दो हिस्सों में शूट किया गया, तो बीच के दिनों में जानवरों द्वारा फूल खा लिए जाने से दृश्य में समानता नहीं रहती। इससे फ़िल्म की वास्तविकता भंग होती, इसलिए अगली शरद ऋतु तक प्रतीक्षा करनी पड़ी।

🔷 3. किन दो दृश्यों में दर्शक यह पहचान नहीं पाते कि उनकी शूटिंग में कोई तरकीब अपनाई गई है?
उत्तर: श्रीनिवास मिठाईवाले और भूलो कुत्ते के दृश्य। भूलो की मृत्यु के बाद दूसरा वैसा ही कुत्ता लाकर दृश्य पूरा किया गया। श्रीनिवास के निधन के बाद दूसरे व्यक्ति से कैमरे की पीठ करके दृश्य फ़िल्माया गया, जिससे दर्शकों को फर्क मालूम नहीं पड़ा।

🔷 4. ‘भूलो’ की जगह दूसरा कुत्ता क्यों लाया गया? उसने फ़िल्म के किस दृश्य को पूरा किया?
उत्तर: भूलो की मृत्यु के कारण उसकी जगह वैसा ही दिखने वाला दूसरा कुत्ता लाया गया। उसने गमले में भात खाने वाला दृश्य पूरा किया, जहाँ सर्वजया थाली में बचा भात डालती हैं और कुत्ता उसे खा लेता है।

🔷 5. फ़िल्म में श्रीनिवास की क्या भूमिका थी और उनसे जुड़े बाकी दृश्यों को उनके गुज़र जाने के बाद किस प्रकार फ़िल्माया गया?
उत्तर: श्रीनिवास की भूमिका मिठाई बेचने वाले की थी। उनके निधन के बाद दूसरे व्यक्ति से मिलती-जुलती कद-काठी का आदमी लिया गया और उसके पीछे की तरफ से कैमरे से दृश्य फ़िल्माए गए, जिससे दर्शकों को अंतर का पता न चले।

🔷 6. बारिश का दृश्य चित्रित करने में क्या मुश्किल आई और उसका समाधान किस प्रकार हुआ?
उत्तर: बरसात के मौसम में पैसे की कमी के कारण शूटिंग नहीं हो पाई। बाद में शरद ऋतु में पैसे आने पर भी बारिश का इंतजार करना पड़ा। कई दिनों की प्रतीक्षा के बाद अचानक हुई वर्षा में दृश्य फ़िल्माया गया।

🔷 7. किसी फ़िल्म की शूटिंग करते समय फ़िल्मकार को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
पैसों की तंगी
उपयुक्त पात्रों का चयन
मौसम की अनिश्चितता
पात्रों की अनुपलब्धता या मृत्यु
स्थान की उपलब्धता
दृश्य की निरंतरता बनाए रखना

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न



🔷 1. ‘अपू के साथ ढाई साल’ के लेखक कौन हैं?
(A) विभूतिभूषण बंद्योपाध्याय
(B) सत्यजीत राय
(C) तपन सिन्हा
(D) मृणाल सेन
उत्तर: B) सत्यजीत राय

🔷 2. ‘पथेर पांचाली’ फिल्म की शूटिंग में कितना समय लगा?
(A) एक साल
(B) दो साल
(C) ढाई साल
(D) तीन साल
उत्तर: C) ढाई साल

🔷 3. फिल्म में ‘भूलो’ कौन था?
(A) एक बच्चा
(B) एक कुत्ता
(C) एक बूढ़ा आदमी
(D) एक मिठाईवाला
उत्तर: B) एक कुत्ता

🔷 4. अपू की भूमिका अंततः किसने निभाई?
(A) रासबिहारी का एक लड़का
(B) सुबीर बनर्जी
(C) विज्ञापन में आया कोई लड़का
(D) लेखक का पड़ोसी
उत्तर: B) सुबीर बनर्जी

🔷 5. श्रीनिवास कौन था?
(A) फिल्म का निर्देशक
(B) कैमरामैन
(C) मिठाईवाला
(D) संगीतकार
उत्तर: C) मिठाईवाला

🔷 6. ‘पथेर पांचाली’ फिल्म में शूटिंग में देरी के मुख्य कारण क्या थे?
उत्तर: मुख्य कारण आर्थिक तंगी, लेखक की नौकरी की व्यस्तता और तकनीकी समस्याएं थीं।

🔷 7. काशफूलों वाले दृश्य में क्या समस्या आई?
उत्तर: सात दिन बाद वापस जाने पर जानवरों ने सारे काशफूल खा लिए थे, जिससे दृश्य की निरंतरता भंग हो जाती।

🔷 8. ‘कंटिन्युइटी’ से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर: फिल्म के दृश्यों में निरंतरता और तारतम्यता बनी रहना ताकि दर्शकों को भ्रम न हो।

🔷 9. बारिश के दृश्य की शूटिंग में क्या कठिनाई थी?
उत्तर: शरद ऋतु में बारिश का इंतजार करना पड़ा क्योंकि पैसों की कमी के कारण बरसात के मौसम में शूटिंग नहीं हो सकी।

🔷 10. चुन्नीबाला देवी कौन थीं?
उत्तर: वे अस्सी वर्षीय महिला थीं जिन्होंने इंदिरा ठाकरून की भूमिका निभाई थी।

🔷 11. अपू के किरदार के लिए बच्चे की तलाश में लेखक को क्या कठिनाइयां आईं?
उत्तर: लेखक को छह साल के लड़के की जरूरत थी। उन्होंने विज्ञापन दिए, पर कोई उपयुक्त बच्चा नहीं मिला। एक व्यक्ति अपनी बेटी को लड़के के रूप में ले आया था। अंततः उनकी पत्नी के कहने पर सामने वाले घर के लड़के सुबीर बनर्जी का चयन हुआ।

🔷 12. ‘भूलो’ और श्रीनिवास के दृश्यों में किस प्रकार की तरकीब अपनाई गई?
उत्तर: भूलो की मृत्यु के बाद वैसा ही दूसरा कुत्ता लाया गया। श्रीनिवास की भूमिका दूसरे व्यक्ति ने निभाई, जिसकी पीठ ही दिखाई गई ताकि चेहरा न दिखे और दृश्य की निरंतरता बनी रहे।

🔷 13. फिल्म निर्माण के दौरान आने वाली आर्थिक कठिनाइयों का वर्णन करें।
उत्तर: लेखक के पास धन की कमी थी। वे नौकरी से फुर्सत मिलने पर शूटिंग करते थे। जब पैसे मिलते तब शूटिंग होती, अन्यथा महीनों तक रुकती। बारिश के दृश्य के लिए भी पैसे के अभाव में शूटिंग शरद ऋतु तक टल गई।

🔷 14. लेखक के अनुसार पहली फिल्म का क्या महत्व है?
उत्तर: लेखक के अनुसार पहली फिल्म किसी भी फिल्मकार के जन्म की तरह होती है। यह एक अबूझ और रोमांचक अनुभव होता है जो जीवन भर स्मृति में जीवित रहता है। इसमें सफलता और असफलता दोनों की आशंका होती है।

🔷 15. “‘अपू के साथ ढाई साल’ संस्मरण के आधार पर फिल्म निर्माण की चुनौतियों और कलाकार के संघर्ष का विश्लेषण करते हुए यह स्पष्ट करें कि कैसे सत्यजीत राय ने इन कठिनाइयों से पार पाकर एक कालजयी कृति का निर्माण किया।”
उत्तर: ‘अपू के साथ ढाई साल’ सत्यजीत राय के संघर्ष, धैर्य और कलात्मक दृष्टि का प्रमाण है। फिल्म ‘पथेर पांचाली’ का निर्माण अनेक कठिनाइयों से भरा रहा — पैसे की कमी, कलाकारों की अनुपलब्धता, प्राकृतिक बाधाएँ, तकनीकी समस्याएँ, जैसे भूलो कुत्ते और श्रीनिवास मिठाईवाले की मृत्यु, काशफूलों की अनुपस्थिति, और बारिश का इंतजार। इन सबके बावजूद राय ने हार नहीं मानी और हर समस्या का रचनात्मक समाधान निकाला। उन्होंने भूलो जैसे दिखने वाला दूसरा कुत्ता लाया, श्रीनिवास की जगह दूसरा व्यक्ति लिया और दृश्य में उसकी पीठ दिखाकर अंतर छिपाया। वे लगातार प्रयास करते रहे और अपनी पहली फिल्म को सच्ची लगन और आत्मबल से पूरा किया। ‘पथेर पांचाली’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा के आत्मबल की प्रतीक बन गई। यह संस्मरण यह सिखाता है कि सीमित संसाधनों में भी समर्पित कलाकार महान कृति गढ़ सकता है।

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अतिरिक्त ज्ञान

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दृश्य सामग्री

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