Class 10 : Hindi – Lesson 19. अतिरिक्त ज्ञान
📘 हिंदी साहित्य का काल विभाजन — प्रमुख विशेषताओं सहित
🔶 परिचय
🔹 हिंदी साहित्य के इतिहास को चार मुख्य कालों में विभाजित किया गया है।
🔹 प्रत्येक काल की अपनी विशिष्ट साहित्यिक प्रवृत्तियाँ, सामाजिक परिस्थितियाँ और भाषागत विशेषताएँ हैं जो उसे अन्य कालों से अलग बनाती हैं।
🏰 1. आदिकाल (वीरगाथा काल)
📅 संवत् 1050–1375 (993 ई.–1318 ई.)
🔹 यह हिंदी साहित्य का प्रारंभिक काल है जिसमें वीरता और युद्ध की कथाएँ प्रमुख रहीं।
🔹 आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसे “वीरगाथा काल” कहा।
✨ आदिकाल की मुख्य विशेषताएँ
🟢 वीर रस की प्रधानता: युद्ध, शौर्य और पराक्रम का सजीव वर्णन किया गया।
🔵 आश्रयदाताओं की प्रशंसा: कवि राजाओं के दरबारी थे और उन्होंने अपने आश्रयदाताओं का गुणगान किया।
🟡 युद्ध वर्णनों में सजीवता: कवि युद्ध स्थलों पर उपस्थित रहकर यथार्थ चित्रण करते थे।
🔴 श्रृंगार और वीर रस का सामंजस्य: नायिका-सौंदर्य के माध्यम से नायक की वीरता को उभारा गया।
🟢 ऐतिहासिकता का अभाव: कल्पना और अतिशयोक्ति का प्रयोग प्रचुर मात्रा में हुआ।
🔵 अपभ्रंश और डिंगल भाषा का प्रयोग: संस्कृत से हिंदी की ओर संक्रमण का काल था।
📜 प्रमुख कवि और रचनाएँ
🔹 चंदबरदाई – पृथ्वीराज रासो
🔹 नरपति नाल्ह – बीसलदेव रासो
🔹 जगनिक – परमाल रासो (आल्हाखंड)
🔹 सरहपा – दोहाकोश
🔹 अमीर खुसरो – पहेलियाँ, मुकरियाँ
🔹 विद्यापति – पदावली
🕉️ 2. भक्तिकाल (पूर्व मध्यकाल)
📅 संवत् 1375–1700 (1318 ई.–1643 ई.)
🔹 इसे हिंदी साहित्य का “स्वर्ण युग” कहा गया।
🔹 इस काल में भक्ति भावना, ईश्वर प्रेम और समर्पण मुख्य विषय बने।
✨ भक्तिकाल की मुख्य विशेषताएँ
🟢 भक्ति भावना की प्रधानता: ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना।
🔵 नाम और गुरु की महिमा: कबीर और तुलसीदास ने गुरु को ईश्वर से भी श्रेष्ठ बताया।
🟡 समन्वय की भावना: धर्म, संप्रदाय और विचारों में एकता स्थापित करने का प्रयास।
🔴 सामाजिक समानता: जाति-पाँति, छुआछूत और आडंबरों का विरोध।
🟢 राज्याश्रय का त्याग: कवियों ने स्वान्तः सुखाय लेखन किया।
🔵 शांत और श्रृंगार रस का संयोजन: माधुर्य भाव की प्रधानता।
🟡 संगीतात्मकता: कविताएँ मधुर और गेय रहीं।
🔴 ब्रज और अवधी भाषा: सगुण काव्य में ब्रज, निर्गुण में अवधी व राजस्थानी।
📜 प्रमुख कवि
🔹 निर्गुण धारा: कबीरदास, रैदास, गुरु नानक, दादू दयाल, मलिक मुहम्मद जायसी
🔹 सगुण धारा: तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई, रसखान, नंददास
💐 3. रीतिकाल (उत्तर मध्यकाल)
📅 संवत् 1700–1900 (1643 ई.–1843 ई.)
🔹 इस काल में काव्य रचना ‘रीति’ अर्थात् काव्यशास्त्रीय नियमों पर आधारित रही।
🔹 इसे श्रृंगार काल भी कहा गया क्योंकि इसमें श्रृंगार रस का उत्कर्ष हुआ।
✨ रीतिकाल की मुख्य विशेषताएँ
🟢 लक्षण ग्रंथों का निर्माण: रस, अलंकार, नायिका भेद, छंद आदि पर ग्रंथ रचे गए।
🔵 श्रृंगार रस की प्रधानता: संयोग-वियोग दोनों रूपों में चित्रण।
🟡 नायिका भेद और नख-शिख वर्णन: नारी-सौंदर्य का सूक्ष्म विवरण।
🔴 आश्रयदाताओं की प्रशंसा: दरबारी कवियों ने राजाओं की प्रशंसा की।
🟢 अलंकारों और छंदों का प्रयोग: काव्य को सौंदर्यपूर्ण बनाया गया।
🔵 पांडित्य प्रदर्शन: कठिन व जटिल रचनाएँ रची गईं।
🟡 नारी को भोग्या दृष्टिकोण से चित्रित किया गया।
🔴 ब्रज भाषा की प्रधानता: इस युग की प्रमुख साहित्यिक भाषा।
🟢 मुक्तक शैली की प्रधानता: दोहा, सवैया, कवित्त जैसे छंद प्रचलित रहे।
📜 प्रमुख कवि
🔹 रीतिबद्ध: केशवदास, चिंतामणि, देव, मतिराम
🔹 रीतिसिद्ध: बिहारी, पद्माकर
🔹 रीतिमुक्त: घनानंद, बोधा, आलम
🔹 वीर रस: भूषण
🌅 4. आधुनिक काल (गद्य काल)
📅 संवत् 1900 से अब तक (1843 ई. से वर्तमान)
🔹 आधुनिक काल को गद्य काल भी कहा जाता है क्योंकि इसमें गद्य का उत्कर्ष हुआ।
🔹 यह हिंदी साहित्य का सबसे विविधतापूर्ण और परिपक्व युग है।
✨ आधुनिक काल की मुख्य विशेषताएँ
🟢 गद्य का विकास: निबंध, उपन्यास, नाटक, कहानी, आलोचना आदि का विस्तार।
🔵 राष्ट्रीय चेतना और देशभक्ति: स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रप्रेम की भावना।
🟡 सामाजिक सुधार: बाल विवाह, जातिप्रथा और नारीशिक्षा जैसे विषय प्रमुख।
🔴 खड़ी बोली का उत्कर्ष: यह मानक साहित्यिक भाषा बनी।
🟢 विभिन्न वादों का उदय: छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नई कविता, हालावाद।
🔵 पाश्चात्य प्रभाव: पश्चिमी विचार और साहित्य से प्रभावित काव्यधारा।
🌟 आधुनिक काल के उपकाल
🟣 क. भारतेंदु युग (1868–1902 ई.)
मुख्य विशेषताएँ:
🔹 देशभक्ति और राष्ट्रीय चेतना
🔹 सामाजिक कुरीतियों का विरोध
🔹 अंग्रेजी शासन के आर्थिक शोषण का चित्रण
🔹 हास्य-व्यंग्य का प्रयोग
🔹 ब्रज में काव्य और खड़ी बोली में गद्य
प्रमुख कवि: भारतेंदु हरिश्चंद्र, प्रतापनारायण मिश्र, बालमुकुंद गुप्त, अंबिकादत्त व्यास
🔵 ख. द्विवेदी युग (1903–1920 ई.)
मुख्य विशेषताएँ:
🔹 खड़ी बोली का परिष्कार
🔹 राष्ट्रीयता और समाज सुधार
🔹 नैतिकता और आदर्शवाद की प्रधानता
🔹 इतिवृत्तात्मक और उपदेशात्मक प्रवृत्ति
🔹 ऐतिहासिक व पौराणिक विषयों का समावेश
प्रमुख कवि: महावीर प्रसाद द्विवेदी, मैथिलीशरण गुप्त, हरिऔध, रामनरेश त्रिपाठी
🟢 ग. छायावाद युग (1918–1936 ई.)
मुख्य विशेषताएँ:
🔹 आत्माभिव्यक्ति और व्यक्तिवाद की प्रधानता
🔹 प्रकृति का मानवीकरण
🔹 नारी-सौंदर्य और प्रेम का कोमल चित्रण
🔹 रहस्यवाद और आध्यात्मिकता
🔹 कल्पना और प्रतीकात्मक भाषा
🔹 करुणा, वेदना और स्वच्छंदता की अभिव्यक्ति
प्रमुख कवि: जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा
🔴 घ. छायावादोत्तर युग (प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नई कविता)
मुख्य विशेषताएँ:
🔹 यथार्थवाद और जीवन की कठोर सच्चाइयाँ
🔹 सामाजिक समानता और वर्ग संघर्ष
🔹 प्रयोगधर्मिता और नवीन काव्य रूप
🔹 मुक्त छंद और नए उपमान
🔹 अस्तित्ववाद और आधुनिक बोध
प्रमुख कवि: रामधारी सिंह दिनकर, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, अज्ञेय, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन
🏁 निष्कर्ष
📚 यह काल विभाजन हिंदी साहित्य के विकास को समझने में अत्यंत सहायक है।
🔹 प्रत्येक काल की प्रवृत्तियाँ अपने समय की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों से प्रभावित रहीं।
🔹 इस विकास यात्रा ने हिंदी साहित्य को समृद्ध और बहुआयामी बनाया।
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📘 हिंदी साहित्य की प्रमुख विधाएँ — विस्तृत वर्णन सहित
🟣 परिचय
🔹 हिंदी साहित्य को दो मुख्य भागों में बाँटा जाता है — पद्य साहित्य और गद्य साहित्य।
🔹 प्रत्येक विधा का अपना स्वरूप, उद्देश्य और शैलीगत सौंदर्य है।
🟢 क. पद्य साहित्य की प्रमुख विधाएँ
✳️ 1. महाकाव्य
🔹 महाकाव्य काव्य साहित्य का सबसे विशाल और गौरवपूर्ण रूप है।
🔹 इसमें किसी ऐतिहासिक या पौराणिक महापुरुष के जीवन का विस्तृत चित्रण होता है।
🔹 इसमें कम से कम आठ या अधिक सर्ग होते हैं।
🔹 नायक उदात्त चरित्र वाला और रस सामान्यतः वीर, शांत या श्रृंगार होता है।
🔹 भाषा अलंकृत, गंभीर और छंदयुक्त होती है।
🔹 इसमें प्रकृति, युद्ध, प्रेम, और जीवन के विविध पक्षों का समावेश होता है।
📜 प्रमुख महाकाव्य और कवि:
रामचरितमानस – तुलसीदास
पद्मावत – जायसी
साकेत – मैथिलीशरण गुप्त
कामायनी – जयशंकर प्रसाद
प्रियप्रवास – हरिऔध
उर्वशी – दिनकर
🟡 2. खंडकाव्य
🔹 यह महाकाव्य का लघु रूप है जिसमें किसी विशेष प्रसंग या घटना का वर्णन होता है।
🔹 इसमें सर्ग कम या आवश्यक नहीं होते।
🔹 कथा एक ही घटना पर केंद्रित होती है और आकार छोटा परंतु पूर्ण होता है।
🔹 एक ही रस की प्रधानता रहती है।
🔹 कथा ऐतिहासिक या काल्पनिक दोनों हो सकती है।
📜 प्रमुख खंडकाव्य और कवि:
पंचवटी, जयद्रथ वध – मैथिलीशरण गुप्त
पथिक – रामनरेश त्रिपाठी
तुलसीदास – निराला
हिमतरंगिणी – माखनलाल चतुर्वेदी
सुदामा चरित्र – सुभद्रा कुमारी चौहान
🔵 3. मुक्तक काव्य
🔹 प्रत्येक छंद या दोहा स्वतंत्र होता है और पूर्ण अर्थ रखता है।
🔹 कोई क्रमबद्ध कथा नहीं होती।
🔹 भावों की गहनता और संक्षिप्तता इसका गुण है।
🔹 भक्तिकाल और रीतिकाल में इसकी प्रधानता रही।
📜 प्रमुख मुक्तक कवि:
बिहारी सतसई – बिहारी
साखी – कबीर
पदावली – सूरदास, मीराबाई
रसखान की रचनाएँ – प्रमुख उदाहरण
🔴 ख. गद्य साहित्य की प्रमुख विधाएँ
🟣 1. कहानी
🔹 यह गद्य की सबसे लोकप्रिय विधा है।
🔹 इसमें एक ही घटना या स्थिति का चित्रण सीमित पात्रों के माध्यम से किया जाता है।
🔹 उद्देश्य पाठक पर गहरा प्रभाव छोड़ना होता है।
🔹 तत्व: कथावस्तु, चरित्र, संवाद, देशकाल, भाषा, उद्देश्य।
📜 प्रमुख कहानीकार:
प्रेमचंद (ईदगाह, कफन)
चंद्रधर शर्मा गुलेरी (उसने कहा था)
जयशंकर प्रसाद (आकाशदीप)
फणीश्वरनाथ रेणु (तीसरी कसम)
मोहन राकेश, यशपाल, जैनेंद्र कुमार
🟢 2. उपन्यास
🔹 गद्य की सबसे विस्तृत और व्यापक विधा है।
🔹 मानव जीवन का यथार्थ और विस्तृत चित्रण किया जाता है।
🔹 अनेक पात्र, घटनाएँ और उपकथाएँ होती हैं।
🔹 समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था के विविध पहलू उजागर होते हैं।
📜 प्रमुख उपन्यासकार:
प्रेमचंद (गोदान, निर्मला, रंगभूमि)
जयशंकर प्रसाद, जैनेंद्र कुमार, यशपाल
फणीश्वरनाथ रेणु (मैला आँचल)
भगवतीचरण वर्मा (चित्रलेखा)
हजारीप्रसाद द्विवेदी
🟡 3. नाटक
🔹 यह दृश्य काव्य है जो मंचन के लिए लिखा जाता है।
🔹 संवादों के माध्यम से कथा आगे बढ़ती है।
🔹 पात्र, अंक, दृश्य, वेशभूषा और संगीत का समन्वय होता है।
🔹 उद्देश्य मनोरंजन के साथ सामाजिक शिक्षा देना है।
📜 प्रमुख नाटककार:
भारतेंदु हरिश्चंद्र (अंधेर नगरी, भारत दुर्दशा)
जयशंकर प्रसाद (चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी)
मोहन राकेश (आषाढ़ का एक दिन)
धर्मवीर भारती (अंधा युग)
🔵 4. निबंध
🔹 किसी विषय पर लेखक के विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति।
🔹 भाषा सरल, प्रवाहमयी और तर्कपूर्ण होती है।
🔹 दो प्रकार: ललित निबंध और विचारात्मक निबंध।
📜 प्रमुख निबंधकार:
भारतेंदु हरिश्चंद्र, बालकृष्ण भट्ट
आचार्य रामचंद्र शुक्ल (चिंतामणि)
हजारीप्रसाद द्विवेदी (अशोक के फूल)
विद्यानिवास मिश्र
🟢 5. आलोचना (समीक्षा)
🔹 किसी साहित्यिक कृति के गुण-दोषों का निष्पक्ष मूल्यांकन।
🔹 आलोचक रचना के रूप, अर्थ और प्रभाव का विवेचन करता है।
🔹 उद्देश्य रचना की सुंदरता और दोष दोनों का स्पष्ट विश्लेषण है।
📜 प्रमुख आलोचक:
आचार्य रामचंद्र शुक्ल (हिंदी साहित्य का इतिहास)
हजारीप्रसाद द्विवेदी
डॉ. नगेंद्र
रामविलास शर्मा
नामवर सिंह
🟡 6. जीवनी
🔹 किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के जीवन का कालक्रमानुसार वर्णन।
🔹 इसमें उसके जीवन के संघर्ष, उपलब्धियाँ और व्यक्तित्व का विवरण होता है।
🔹 यह तथ्यात्मक और प्रेरणादायी विधा है।
📜 प्रमुख जीवनीकार:
गोपाल शर्मा शास्त्री (दयानंद दिग्विजय)
विष्णु प्रभाकर (आवारा मसीहा)
बच्चन सिंह
🔴 7. आत्मकथा
🔹 लेखक स्वयं अपने जीवन की कथा लिखता है।
🔹 इसमें व्यक्तिगत अनुभव, संघर्ष और विचार प्रस्तुत होते हैं।
🔹 यह प्रथम पुरुष में लिखी जाती है।
🔹 आत्मनिरीक्षण और ईमानदारी इसकी विशेषता है।
📜 प्रमुख आत्मकथाकार:
हरिऔध (मेरी आत्मकहानी)
राहुल सांकृत्यायन (मेरी जीवन यात्रा)
यशपाल (सिंहावलोकन)
हरिवंशराय बच्चन (क्या भूलूँ क्या याद करूँ)
🟢 8. संस्मरण
🔹 किसी व्यक्ति, घटना या स्थान से जुड़ी स्मृतियों का वर्णन।
🔹 लेखक की भावनाएँ और अनुभव प्रमुख होते हैं।
🔹 यह आत्मकथा से भिन्न है क्योंकि इसमें किसी विशेष प्रसंग का वर्णन होता है।
📜 प्रमुख संस्मरणकार:
महादेवी वर्मा (अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी)
बालमुकुंद गुप्त
विष्णु प्रभाकर
🏁 निष्कर्ष
📚 हिंदी साहित्य की ये सभी विधाएँ इसकी समृद्ध परंपरा और विविधता को प्रदर्शित करती हैं।
🔹 प्रत्येक विधा की अपनी विशिष्टता और महत्व है।
🔹 महान रचनाकारों ने अपनी प्रतिभा से इन विधाओं को अमर बनाया है।
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