Class 10, Hindi

Class 10 : Hindi – Lesson 11. नौबतखाने में इबादत: यतींद्र मिश्र

संक्षिप्त लेखक परिचय

✒️ लेखक परिचय – यतीन्द्र मिश्र
जन्म – 12 मई 1977, अयोध्या (उत्तर प्रदेश) में।
शिक्षा – हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर; कला, संगीत, सिनेमा और चित्रकला में विशेष रुचि एवं अध्ययन।


व्यक्तित्व – यतीन्द्र मिश्र समकालीन हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवि, संपादक, अनुवादक, कला-आलोचक और सांस्कृतिक शोधकर्ता हैं। वे कविता, संगीत, चित्रकला और सिनेमा पर अपने संवेदनशील, गंभीर और शोधपूर्ण लेखन के लिए जाने जाते हैं।


प्रमुख कृतियाँ –
कविता संग्रह: याद, अयोध्या तथा अन्य कविताएँ, यक़ीन
गद्य / साक्षात्कार / आलोचना: गिरिजा (गिरिजा देवी पर), अख्तरी (बेगम अख्तर पर), गुलज़ार – यार जुलाहे (संपादन), लता: सुर-गाथा
विशेष योगदान – उन्होंने भारतीय संगीत, सिनेमा और चित्रकला से जुड़े अनेक रचनाकारों पर गहन शोध किया है। उनकी रचनाओं में रचनात्मकता और तथ्यों का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है।


पुरस्कार एवं सम्मान –
साहित्य अकादमी पुरस्कार (लता: सुर-गाथा के लिए)
भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार
देवीशंकर अवस्थी पुरस्कार
64वाँ राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (लता: सुर-गाथा – सर्वश्रेष्ठ पुस्तक ऑन सिनेमा)


विशेषता – उनके लेखन में भारतीय संस्कृति, संगीत और जीवन के सूक्ष्म भावों का सुंदर और प्रामाणिक चित्रण मिलता है। वे लोक और शास्त्रीय परंपराओं के बीच सेतु का कार्य करते हैं।

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पाठ का विश्लेषण  एवं  विवेचन


📜 पाठ का परिचय
✨ यतीन्द्र मिश्र द्वारा लिखित नौबतखाने में इबादत एक उत्कृष्ट व्यक्ति-चित्र है जो विश्वप्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ के जीवन, उनकी कला-साधना और व्यक्तित्व का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है।


✨ यह पाठ न केवल एक महान कलाकार की जीवनी है, बल्कि भारतीय संगीत परंपरा, सांस्कृतिक एकता और धार्मिक सदभावना का भी श्रेष्ठ उदाहरण है।

🎶 पाठ की मुख्य विषयवस्तु
🎵 बिस्मिल्लाह खाँ का परिचय


🌟 उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ (मूल नाम: अमीरुद्दीन) का जन्म 21 मार्च, 1916 को बिहार के डुमराँव गाँव में हुआ।
🌟 उनका परिवार पाँच पीढ़ियों से शहनाई वादन की परंपरा का वाहक था।
🌟 नाना अली बख्श और मामा सादिक हुसैन देश के प्रसिद्ध शहनाई वादक थे।


🛕 काशी से गहरा नाता


🌸 छह वर्ष की आयु में अमीरुद्दीन डुमराँव छोड़कर ननिहाल काशी आए।
🌸 पंचगंगा घाट स्थित बालाजी मंदिर का नौबतखाना उनकी संगीत साधना का केंद्र बना।
🌸 14 वर्ष की आयु से उन्होंने गंभीर रियाज़ आरंभ किया।


🎤 संगीत की प्रेरणा
💠 बालाजी मंदिर जाते समय वे रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर से होकर जाते थे।
💠 इन गायिका बहनों की ठुमरी, टप्पा और दादरा सुनकर उनके मन में संगीत के प्रति गहरी आसक्ति पैदा हुई।
💠 स्वयं बिस्मिल्लाह खाँ ने स्वीकार किया कि इन बहनों ने उनकी संगीत प्रेरणा की वर्णमाला उकेरी।


🎼 शहनाई की महत्ता
💎 शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों का शाह’ कहा गया है।
💎 इसकी ध्वनि मधुर और कर्णप्रिय होती है, जिसका प्रयोग मांगलिक अवसरों पर होता है।
💎 बिस्मिल्लाह खाँ को ‘शहनाई की मंगल-ध्वनि का नायक’ कहा जाता है।


🏞 डुमराँव का महत्व
🌿 शहनाई के लिए आवश्यक रीड सोन नदी के किनारे उगने वाली नरकट से बनाई जाती है।
🌿 यह बिस्मिल्लाह खाँ की जन्मस्थली होने के कारण भी प्रसिद्ध है।

🤝 धार्मिक सदभावना और सांस्कृतिक एकता


🌈 मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक


💖 वे कट्टर मुसलमान होते हुए भी हिंदू देवी-देवताओं के प्रति गहरी श्रद्धा रखते थे।
💖 नियमित नमाज, मुहर्रम के दस दिन शोक, साथ ही गंगामैया, बालाजी और बाबा विश्वनाथ में आस्था।


🕋 मुहर्रम से गहरा जुड़ाव
🕊 मुहर्रम में वे न तो शहनाई बजाते थे, न कार्यक्रम में भाग लेते थे।
🕊 आठवीं तारीख को दालमंडी से फातमान तक आठ किलोमीटर पैदल जाकर भींगी आँखों से नोहा बजाते थे।

🎯 कला के प्रति समर्पण


🕰 निरंतर साधना


🔔 अस्सी वर्ष की उम्र में भी नियमित रियाज।
🔔 पाँचों वक्त नमाज के बाद खुदा से सच्चे सुर की नेमत माँगते थे –
“मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती जैसे आँसू निकल आएँ।”


🌿 सादगीपूर्ण जीवन
💬 कहते थे – “फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।”
💬 भौतिक सुख-सुविधाओं से अधिक उन्हें सुर प्रिय था।

🏯 काशी से अटूट प्रेम
🌼 अनेक विदेश यात्राओं के प्रस्ताव ठुकराए।
🌼 कहते थे – “मेरी शहनाई बनारस का हिस्सा है और बनारस का रस मेरी शहनाई में टपकता है।”
🌼 काशी में होते परिवर्तनों से व्यथित होते – पक्का महाल से मलाई बर्फ वालों का गायब होना, कुलसुम की कचौड़ियाँ न मिलना, संगीत के प्रति घटता सम्मान।

✍️ साहित्यिक विशेषताएँ


💫 लेखकीय शैली
🌹 सहज, प्रवाहमान और प्रसंगों से भरपूर भाषा।
🌹 बिस्मिल्लाह खाँ के व्यक्तित्व का ईमानदार चित्रण।


🎻 संगीत की गहरी समझ


🌟 शास्त्रीय परंपराओं, रागों और वाद्यों का सुंदर वर्णन।

📢 पाठ का संदेश


🌍 धार्मिक सदभावना


🎶 कला और संगीत धर्म की सीमाओं से परे हैं; ये सबको जोड़ते हैं।


🎯 कला के प्रति समर्पण
📚 निरंतर अभ्यास, धैर्य और विनम्रता कलाकार के लिए अनिवार्य है।


🌿 सादगी का महत्व


💎 असली धन सुर में है, भौतिक संपत्ति में नहीं।

🌟 निष्कर्ष
‘नौबतखाने में इबादत’ केवल एक जीवनी नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की गंगा-जमुनी तहज़ीब का अद्भुत दस्तावेज है।
यतीन्द्र मिश्र ने यह दर्शाया है कि संगीत धर्म, जाति और सम्प्रदाय से ऊपर है। यह पाठ प्रेरित करता है कि हम अपनी कला के प्रति समर्पित रहें, धार्मिक सौहार्द बनाए रखें और सादगी से जीवन जिएँ।

📝 सारांश
‘नौबतखाने में इबादत’ उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ का मार्मिक व्यक्ति-चित्र है। डुमराँव में जन्मे अमीरुद्दीन ने काशी के बालाजी मंदिर में शहनाई सीखी। वे मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे – मुसलमान होकर भी हिंदू देवताओं की पूजा करते थे। अस्सी वर्ष की उम्र तक रियाज़ करते रहे और सच्चे सुर की प्रार्थना करते रहे। यह पाठ धार्मिक सदभावना, कला के प्रति समर्पण और सादगी का संदेश देता है।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न


❓ प्रश्न 1. शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर: शहनाई की दुनिया में डुमराँव को याद किए जाने के मुख्यतः दो कारण हैं –

🌿 रीड का स्रोत –
शहनाई बजाने के लिए जिस रीड का प्रयोग किया जाता है, वह डुमराँव में सोन नदी के किनारे मिलती है।
रीड नरकट से बनाई जाती है जो एक प्रकार की घास है।
यह रीड अंदर से पोली होती है जिसकी मदद से शहनाई को फूंका जाता है।
इस रीड के बिना शहनाई बजना मुश्किल है।


🎼 बिस्मिल्लाह खाँ की जन्मस्थली –
विश्वप्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ का जन्म डुमराँव गाँव में हुआ।
उनकी जन्मस्थली होने के कारण भी डुमराँव का शहनाई की दुनिया में विशेष महत्व है।

❓ प्रश्न 2. बिस्मिल्लाह खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
उत्तर:
🎵 शहनाई की प्रकृति – शहनाई की ध्वनि मंगलदायी मानी जाती है और इसका वादन मांगलिक अवसरों पर किया जाता है।
🏆 बिस्मिल्लाह खाँ की सर्वश्रेष्ठता – अस्सी बरस से भी अधिक समय तक शहनाई वादन में सक्रिय रहकर वे भारत के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक बने।
🌍 विश्वव्यापी प्रसिद्धि – उन्होंने शहनाई को विश्वभर में लोकप्रिय बनाया।
💖 शहनाई से अटूट रिश्ता – शहनाई का नाम आते ही बिस्मिल्लाह खाँ का नाम याद आता है।

❓ प्रश्न 3. सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तर:
🎶 सुषिर वाद्यों का अभिप्राय – ऐसे वाद्य जिनमें सूराख होते हैं और जिन्हें फूंक मारकर बजाया जाता है, जैसे शहनाई, बाँसुरी, श्रृंगी।
👑 ‘शाह’ की उपाधि के कारण –
शहनाई की ध्वनि सबसे सुरीली और कर्णप्रिय है।
इसकी ध्वनि बेजोड़ है।
यह मंगल ध्वनि उत्पन्न करती है।
मधुरता के कारण इसे ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ कहा जाता है।

❓ प्रश्न 4. आशय स्पष्ट कीजिए:
(क) ‘फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।’
उत्तर:
🎯 सुर की महत्ता – बिस्मिल्लाह खाँ के लिए कपड़ों से अधिक महत्वपूर्ण सुर थे।
🪡 कपड़े बनाम सुर – कपड़ा फटने पर सीया जा सकता है, पर सुर बिगड़ने पर ठीक करना कठिन है।
🌟 पहचान का आधार – उनकी पहचान उनके सुरों से थी, न कि कपड़ों से।
🙏 खुदा से प्रार्थना – वे हमेशा सच्चे सुर की नेमत माँगते थे।


(ख) ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।’
उत्तर:
🙏 निरंतर प्रार्थना – पाँचों वक्त नमाज़ के बाद सच्चे सुर की दुआ करते थे।
💎 महान कलाकार की विनम्रता – सफलता के बावजूद अभिमान नहीं था।
🎶 प्रभावशाली संगीत की चाह – सुरों में ऐसी तासीर चाहते थे कि दिल को छू जाए।
😢 आँखों को भिगो देने वाला असर – चाहते थे कि संगीत सुनकर श्रोताओं की आँखों से सच्चे मोती जैसे आँसू बहें।

❓ प्रश्न 5. काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्लाह खाँ को व्यथित करते थे?
उत्तर:
🍽 खान-पान की परंपरा का ह्रास –
पक्का महाल से मलाई बर्फ वालों का गायब होना।
कुलसुम की कचौड़ियाँ और जलेबियाँ न मिलना।


🎭 संगीत और साहित्य के प्रति घटता सम्मान –
लोगों में आदरभाव की कमी।
गायकों द्वारा संगतकारों को सम्मान न देना।


☮ धार्मिक सद्भावना में कमी –
सांप्रदायिक एकता में गिरावट।


📜 परंपराओं का लुप्त होना –
कई पुरानी सांस्कृतिक परंपराओं का समाप्त होना।

❓ प्रश्न 6. (क) बिस्मिल्लाह खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
उत्तर:
❤️ काशी से प्रेम – “काशी छोड़कर कहाँ जाऊँ…” जैसे कथन।
🕌 इस्लामी आस्था – नमाज़, सिजदा, मुहर्रम के शोक।
🛕 हिंदू आस्था – गंगामैया, बालाजी, बाबा विश्वनाथ में विश्वास।
🌈 गंगा-जमुनी तहज़ीब – दोनों संस्कृतियों के मेल में विश्वास।


(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इनसान थे।
उत्तर:
☮ धार्मिक उदारता – सभी धर्मों का सम्मान।
🌟 मानवीय मूल्य – धन से ऊपर सुर को महत्व।
🙏 विनम्रता – सफलता के बावजूद अभिमान नहीं।
❤️ भाईचारा – गंगा-जमुनी संस्कृति में विश्वास।

❓ प्रश्न 7. बिस्मिल्लाह खाँ के जीवन से जुड़ी घटनाएँ और व्यक्ति जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया
उत्तर:
👴 नाना का प्रभाव – मीठी शहनाई सुनकर प्रेरणा मिली।
👨‍👦 मामूजान का योगदान – सम पर पत्थर मारकर दाद देने की आदत ने ताल-समझ बढ़ाई।
🎤 रसूलनबाई और बतूलनबाई – ठुमरी, टप्पा, दादरा सुनकर संगीत में रुचि बढ़ी।
🛕 बालाजी मंदिर की भूमिका – प्रतिदिन रियाज़ का केंद्र।
🍴 कुलसुम हलवाइन – कचौड़ियाँ तलने में भी संगीत की लय का अनुभव।

❓ प्रश्न 8. बिस्मिल्लाह खाँ के व्यक्तित्व की विशेषताएँ
उत्तर:
🌿 सादा जीवन, उच्च विचार
🙏 निरभिमानी स्वभाव
☮ धार्मिक सदभाव
💪 परिश्रमशील स्वभाव
📚 सीखने की ललक
🇮🇳 देशप्रेम
🎶 कला के प्रति समर्पण

❓ प्रश्न 9. मुहर्रम से बिस्मिल्लाह खाँ का जुड़ाव
उत्तर:
😢 शोक का महीना – हज़रत इमाम हुसैन की शहादत पर शोक।
🎼 संगीत से दूरी – दस दिन शहनाई या कार्यक्रमों में भाग नहीं।
📅 आठवीं तारीख का महत्व – खड़े होकर नोहा बजाना।
🚶 भावनात्मक यात्रा – दालमंडी से फातमान तक आठ किलोमीटर पैदल, भींगी आँखों से नोहा।
❤️ गहरी श्रद्धा – इस दिन कोई राग नहीं बजाना।
🕌 सच्चे मुसलमान का प्रमाण – परंपराओं का पूर्ण पालन।

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

🎯 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
1️⃣ बिस्मिल्लाह खाँ का मूल नाम क्या था?
(क) अब्दुल्लाह खाँ
(ख) अमीरुद्दीन
(ग) अली हुसैन
(घ) अकबर अली
उत्तर: (ख) अमीरुद्दीन


2️⃣ बिस्मिल्लाह खाँ की आयु के अनुसार, वे कितने वर्षों तक शहनाई बजाते रहे?
(क) सत्तर बरस
(ख) पचहत्तर बरस
(ग) अस्सी बरस से भी अधिक
(घ) पैंसठ बरस
उत्तर: (ग) अस्सी बरस से भी अधिक


3️⃣ शहनाई की रीड किस स्थान की नरकट से बनाई जाती है?
(क) वाराणसी की गंगा के किनारे
(ख) डुमराँव की सोन नदी के किनारे
(ग) हरिद्वार की गंगा के किनारे
(घ) इलाहाबाद की गंगा के किनारे
उत्तर: (ख) डुमराँव की सोन नदी के किनारे


4️⃣ रसूलनबाई और बतूलनबाई कौन थीं?
(क) शहनाई वादिकाएँ
(ख) तबला वादिकाएँ
(ग) गायिका बहनें
(घ) नृत्यांगनाएँ
उत्तर: (ग) गायिका बहनें


5️⃣ बिस्मिल्लाह खाँ मुहर्रम के किस दिन विशेष रूप से नौहा बजाते थे?
(क) दसवीं तारीख
(ख) आठवीं तारीख
(ग) पहली तारीख
(घ) पाँचवीं तारीख
उत्तर: (ख) आठवीं तारीख

✏ लघु उत्तरीय प्रश्न
1️⃣ बिस्मिल्लाह खाँ के संगीत गुरु कौन थे और उन्होंने कैसे प्रभावित किया?
उत्तर: उनके मुख्य गुरु मामा अली बख्श ‘विलायती’ थे, जिन्होंने शहनाई वादन की बारीकियाँ सिखाईं। रसूलनबाई और बतूलनबाई की ठुमरी, टप्पे और दादरा ने उनमें संगीत के प्रति गहरी आसक्ति जगाई।


2️⃣ काशी छोड़ने के बारे में उनकी भावना
उत्तर: वे कहते थे – “काशी छोड़कर कहाँ जाऊँ। गंगा मैया यहाँ, बालाजी यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ।” विदेश यात्राओं के प्रस्ताव ठुकराकर काशी से जुड़े रहे।


3️⃣ दैनिक रियाज़ का महत्व
उत्तर: अस्सी वर्ष की उम्र में भी नियमित रियाज़ करते, नमाज के बाद सच्चे सुर की नेमत माँगते, और बालाजी मंदिर के नौबतखाने में प्रतिदिन अभ्यास करते थे।


4️⃣ शहनाई को ‘मंगल वाद्य’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर: मांगलिक अवसरों, विवाह, पूजा–अर्चना, आरती आदि में इसका वादन होता है और यह शुभता का प्रतीक है।


5️⃣ शीर्षक की सार्थकता
उत्तर: नौबतखाना वाद्य–वादन का स्थान है और इबादत उपासना। बिस्मिल्लाह खाँ के लिए शहनाई वादन ईश्वर की उपासना थी, इसलिए शीर्षक उपयुक्त है।

🖊 मध्यम उत्तरीय प्रश्न
1️⃣ धर्मनिरपेक्षता का वर्णन
उत्तर: जन्म से मुसलमान, पर हिंदू धर्म के प्रति भी श्रद्धावान। गंगा मैया, बालाजी, बाबा विश्वनाथ में आस्था; नमाज, रोजा, मुहर्रम का पालन। संगीत को सभी धर्मों को जोड़ने वाली भाषा मानते थे।


2️⃣ सादगी और विनम्रता
उत्तर: भारत रत्न मिलने के बाद भी अभिमान नहीं। लुंगी पहनकर मिलते और कहते – “फटा सुर न बख्शें।” खुद को अधूरा मानकर निरंतर सीखने की ललक रखते थे।


3️⃣ काशी के बदलते स्वरूप से पीड़ा
उत्तर: मलाई बर्फ वालों और कुलसुम की कचौड़ियों का गायब होना, संगीत–साहित्य के प्रति सम्मान में कमी, सांप्रदायिक सद्भावना में गिरावट।


4️⃣ संगीत में आध्यात्मिक तत्व
उत्तर: शहनाई वादन को ईश्वर की उपासना मानते थे। नमाज के बाद सुर की नेमत माँगते, बालाजी मंदिर में रियाज़ करते, मुहर्रम में नौहा बजाकर आत्मा की पुकार व्यक्त करते थे।

📜 विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
1️⃣ गंगा–जमुनी तहज़ीब और वर्तमान प्रासंगिकता
उत्तर:
तहज़ीब का चित्रण – मुसलमान होकर भी हिंदू धर्म में गहरी आस्था; गंगा मैया, बालाजी, बाबा विश्वनाथ के प्रति श्रद्धा। नमाज, रोजा, मुहर्रम का पालन।
सांस्कृतिक समन्वय – मुस्लिम कलाकार का हिंदू मंदिर में रियाज़; हिंदू श्रोता का प्रभावित होना। विदेश में भी विश्वनाथ मंदिर की दिशा में शहनाई बजाना।
कला में धर्मनिरपेक्षता – संगीत सभी धर्मों को समान रूप से प्रभावित करता है; हिंदू मंगल कार्यों और मुस्लिम समुदाय दोनों में सम्मान।
वर्तमान प्रासंगिकता – धर्मनिरपेक्षता का अर्थ सभी धर्मों का सम्मान; कला, संस्कृति और मानवता धर्म से बड़े। भारत की विविधता में एकता का संदेश।
चुनौतियाँ और समाधान – कट्टरता, कला के प्रति घटता सम्मान, ध्रुवीकरण। समाधान: कला–संस्कृति को प्रोत्साहन, धर्म को निजी आस्था तक सीमित रखना, सामाजिक सद्भावना को बढ़ावा देना, शिक्षा से समन्वयवादी सोच।
निष्कर्ष – यह केवल एक कलाकार की जीवनी नहीं, बल्कि भारत की आत्मा की कहानी है। उनका संदेश है कि संगीत, प्रेम और सद्भावना की भाषा सबसे शक्तिशाली है।

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“शहनाई के इसी मंगलध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी बरस से सुर माँग रहे हैं। सच्चे सुर की नेमता। अस्सी बरस की पाँचों वक्त वाली नमाज़ इसी सुर को पाने की प्रार्थना में खर्च हो जाती है। लाखों सज्दे, इसी एक सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते हैं। वे नमाज़ के बाद सज्दे में गिड़गिड़ाते हैं—‘मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगिनत आँसू निकल आएँ।’ उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा और अपनी झोली से सुर का फल निकालकर उनकी ओर उछालेगा, फिर कहेगा, ले जा अमीरुद्दीन इसको खा ले और कर ले अपनी मुराद पूरी।”


प्रश्न (5×1 = 5) —


1.इस अंश में “एक सच्चे सुर” की साधना किस भावभूमि में स्थित है?
(A) कारीगरी का सामान्य अभ्यास
(B) सांसारिक उपलब्धि की प्रतिस्पर्धा
(C) आध्यात्मिक तप और इबादत की अनुभूति
(D) बाज़ारगत लोकप्रियता की रणनीति
उत्तर: (C)


2.“अपनी झोली से सुर का फल निकालकर उनकी ओर उछालेगा”—यह रूपक सर्वाधिक किस आशय को सूचित करता है?
(A) गुरु-परंपरा की औपचारिक दीक्षा
(B) ईश-कृपा से सिद्धि-प्राप्ति और नाद-साक्षात्कार
(C) श्रोताओं की ताली से मिली सफलता
(D) यांत्रिक साधना-क्रम की अनिवार्य परिणति
उत्तर: (B)


3.नमाज़, सज्दे, इबादत जैसे संकेतों का प्रयोग लेखक ने किस विमर्श को पुष्ट करने हेतु किया है?
(A) धार्मिक कर्मकाण्डों की श्रेष्ठता
(B) संगीत-साधना का दैवी आराधना से तादात्म्य
(C) इस्लामी इतिहास का विवरण
(D) लोक-संगीत की सीमाएँ
उत्तर: (B)


4.सत्य संयोजन चुनिए—
(i) पाँचों वक्त की नमाज़ उसी एक सुर की प्रार्थना में व्यय हो जाती है।
(ii) बिस्मिल्ला खाँ साहब अनेक सुर माँगते हैं, इसलिए वे दुविधा में हैं।
(iii) उन्हें विश्वास है कि अनुकम्पा से सुर-सिद्धि मिल सकती है।
(iv) लेखक भीड़-प्रसिद्धि को सर्वोपरि ठहराता है।
विकल्प:
(A) (i) और (iii) केवल
(B) (i), (ii), (iii)
(C) (ii) और (iv) केवल
(D) (iii) और (iv) केवल
उत्तर: (A)


5.कथन–कारण: उपयुक्त विकल्प चुनिए।
कथन: बिस्मिल्ला खाँ साहब की साधना में विनय और आत्मसमर्पण का केन्द्रीय भाव है।
कारण: वे सज्दे में गिड़गिड़ाकर “एक सुर बख्श दे” की याचना करते हैं और उसे ईश-कृपा का प्रसाद मानते हैं।
(A) कथन और कारण दोनों गलत हैं।
(B) कारण गलत है, किंतु कथन सही है।
(C) कथन तथा कारण दोनों सही हैं तथा कारण उसकी सही व्याख्या करता है।
(D) कथन सही है, किंतु कारण उसकी सही व्याख्या नहीं करता।
उत्तर: (C)

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