Class 10, Hindi

Class 10 : Hindi – Lesson 1. सूरदास

संक्षिप्त लेखक परिचय

🌟 सूरदास 🌟

📜 जन्म एवं जीवन परिचय
🔵 सूरदास का जन्म लगभग 1478 ई. में रुनकता (आगरा के समीप) में हुआ था।
🟢 वे जन्म से नेत्रहीन थे, परंतु उनकी अंतर्दृष्टि ने उन्हें अमर कवि बना दिया।
💠 उन्होंने श्री वल्लभाचार्य के सान्निध्य में भक्ति मार्ग अपनाया और कृष्ण भक्ति को जीवन का केंद्र बनाया।
🌿 जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने गोवर्धन (वृंदावन) के निकट निवास किया और वहीं भक्ति तथा काव्य की साधना में लीन रहे।
🕊️ उनका जीवन भक्ति, करुणा और आत्मज्ञान का उज्ज्वल उदाहरण है।

📚 साहित्यिक योगदान एवं कृतियाँ
✨ सूरदास हिंदी भक्ति युग के सगुण भक्त कवियों में सर्वोच्च स्थान रखते हैं।
💫 उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं — ‘सूरसागर’, ‘सूरसारावली’ और ‘साहित्य लहरी’, जिनमें श्रीकृष्ण की बाल लीलाएँ, वात्सल्य और भक्ति का अनुपम चित्रण है।
🌸 उनकी कविता में ब्रजभाषा की मधुरता, भावों की गहराई और आध्यात्मिक अनुभव का अनूठा संगम है।
💎 उन्हें “कवित्व-शिरोमणि” कहा जाता है जिन्होंने हिंदी साहित्य को भक्ति-रस की अमर निधि प्रदान की।
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सूरदास के पद – चारों पदों का भावार्थ


पद 1
मूल पद:
ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।।

भावार्थ:
इस पद में गोपियाँ उद्धव से व्यंग्यपूर्ण स्वर में कहती हैं कि हे उद्धव! तुम वास्तव में अत्यंत भाग्यशाली हो क्योंकि श्रीकृष्ण के इतने निकट रहकर भी तुम उनके प्रेम-बंधन में नहीं बंधे हो। तुम्हारा हृदय प्रेम की भावना से सर्वथा अछूता है। गोपियाँ तीन सुंदर उदाहरण देती हैं – पहला, तुम कमल के पत्ते के समान हो जो जल में रहकर भी जल से अछूता रहता है। दूसरा, तुम उस तेल के घड़े के समान हो जिसे जल में डुबोने पर भी उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती। तीसरा, तुमने कभी प्रेम-नदी में अपने पैर नहीं डुबोए और न ही तुम्हारी दृष्टि कभी सुंदरता से मुग्ध हुई है।

अंत में गोपियाँ अपनी स्थिति का चित्रण करते हुए कहती हैं कि हम तो भोली-भाली स्त्रियाँ हैं, इसलिए हम श्रीकृष्ण के प्रेम में उसी प्रकार चिपक गई हैं जैसे चीटियाँ गुड़ से चिपक जाती हैं। यहाँ गोपियों का व्यंग्य यह है कि उद्धव का ज्ञान और निर्लिप्तता उन्हें श्रीकृष्ण के सच्चे प्रेम से वंचित रखे हुए है।

पद 2
मूल पद:
मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
‘सूरदास’अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।।

भावार्थ:
इस पद में गोपियाँ अपनी मानसिक व्यथा की गहराई को व्यक्त करती हैं। वे कहती हैं कि हमारे मन की सारी बातें मन में ही रह गई हैं। हे उद्धव! हम इन्हें किससे कहें? ये बातें कहने योग्य ही नहीं हैं क्योंकि ये केवल श्रीकृष्ण के लिए हैं।

गोपियाँ बताती हैं कि वे श्रीकृष्ण के वापस आने की आशा को ही अपना आधार बनाकर शारीरिक और मानसिक व्यथा सहती रही हैं। परंतु अब उद्धव के योग-संदेश सुन-सुनकर विरहिणी गोपियों का विरह और भी तीव्र हो गया है। जिस स्थान से वे श्रीकृष्ण से रक्षा की गुहार लगाना चाहती थीं, उसी स्थान से अब निर्गुण योग की धारा बह रही है।

अंत में गोपियाँ कहती हैं कि अब वे धैर्य कैसे रखें? उनकी सारी मर्यादा ही नष्ट हो गई है। यह पद गोपियों की विरह-वेदना की चरम अवस्था को दर्शाता है जहाँ वे अपनी सामाजिक मर्यादाओं को भी तोड़ने के लिए तैयार हैं।

पद 3
मूल पद:
हमारैं हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ ‘सूर’ तिन्हीं लै सौंपौ, जिनकैं मन चकरी।।

भावार्थ:
इस पद में गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति और एकनिष्ठ प्रेम को व्यक्त करती हैं। वे कहती हैं कि हमारे हरि हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं। जिस प्रकार हारिल पक्षी अपनी लकड़ी को कभी नहीं छोड़ता, उसी प्रकार हमने भी नंद-नंदन को अपने मन, वचन और कर्म से दृढ़तापूर्वक पकड़ रखा है।

गोपियाँ बताती हैं कि वे जागते, सोते, स्वप्न में, दिन-रात केवल कान्ह-कान्ह का ही जाप करती रहती हैं। उनके लिए योग की बात सुनना उतना ही कष्टकारी है जितना कि करेले का कड़वा स्वाद होता है।

वे उद्धव से कहती हैं कि तुम तो एक नई बीमारी लेकर आए हो जिसे हमने पहले कभी न देखा है और न सुना है। अंत में गोपियाँ व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि यह योग का उपदेश उन लोगों को दो जिनका मन चंचल है, हमारा मन तो श्रीकृष्ण में स्थिर हो चुका है।

पद 4
मूल पद:
हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-संदेस पठाए।
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
तैं क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।।

भावार्थ:
इस अंतिम पद में गोपियाँ श्रीकृष्ण पर व्यंग्य करते हुए राजनीति और राजधर्म की चर्चा करती हैं। वे कहती हैं कि श्रीकृष्ण ने राजनीति पढ़ ली है और उद्धव रूपी भँवरे के माध्यम से जो संदेश भेजा है, उससे सब समाचार मिल गए हैं।

गोपियाँ व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि श्रीकृष्ण पहले से ही बहुत चतुर थे, अब उन्होंने गुरु से शास्त्र भी पढ़ लिए हैं। उनकी बुद्धि और भी बढ़ गई है, तभी तो योग का संदेश भेजा है। वे कहती हैं कि पुराने समय के भले लोग दूसरों की भलाई के लिए घूमा करते थे।

गोपियाँ आरोप लगाती हैं कि अब श्रीकृष्ण अपने मन को बदल गए हैं जबकि पहले वे हमारे हृदय चुरा चुके हैं। वे प्रश्न करती हैं कि जो दूसरों को अन्याय से रोकते हैं, वे स्वयं अन्याय क्यों करें? अंत में सूरदास कहते हैं कि राजधर्म यही है कि प्रजा को कष्ट न दिया जाए।

यह पद गोपियों के तर्कसंगत प्रेम को दर्शाता है जहाँ वे न्याय और अन्याय के सिद्धांतों को भी अपने प्रेम के समर्थन में प्रस्तुत करती हैं।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न


प्रश्न 1. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
उत्तर: गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में गहरा व्यंग्य छिपा हुआ है। वे व्यंग्यपूर्वक कहती हैं कि उद्धव वास्तव में अत्यंत भाग्यशाली हैं क्योंकि श्रीकृष्ण के इतने निकट रहकर भी वे उनके प्रेम-रस से अछूते रह गए हैं। जो व्यक्ति कृष्ण जैसे प्रेम के सागर के साथ रहकर भी उनके प्रेम की मधुरता का अनुभव नहीं कर सका, वह वास्तव में भाग्यहीन है। गोपियों का व्यंग्य यह है कि उद्धव प्रेम की सबसे सुंदर अनुभूति से वंचित रह गए हैं, जबकि यही तो जीवन का सबसे बड़ा सुख है।

प्रश्न 2. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर: गोपियों ने उद्धव के निर्लिप्त व्यवहार की तुलना दो मुख्य उदाहरणों से की है। पहली तुलना कमल के पत्ते से की गई है जो जल में रहकर भी जल से अछूता रहता है और उस पर जल की बूंदें भी नहीं ठहरतीं। दूसरी तुलना तेल से भरे घड़े से की गई है जिसे जल में डुबोने पर भी उस पर पानी की एक बूंद भी नहीं चिपकती। इन दोनों उदाहरणों के माध्यम से गोपियां यह बताना चाहती हैं कि उद्धव श्रीकृष्ण के सानिध्य में रहकर भी उनके प्रेम से पूर्णतः अप्रभावित रहे हैं।

प्रश्न 3. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर: गोपियों ने उद्धव को कई प्रभावशाली उदाहरणों के माध्यम से उलाहने दिए हैं। उन्होंने कमल के पत्ते का उदाहरण देकर कहा कि वे जल में रहकर भी गीले नहीं होते। प्रेम की नदी का उदाहरण देकर कहा कि उद्धव ने कभी इसमें अपने पैर नहीं डुबोए। तेल की गागरी का उदाहरण देकर बताया कि जैसे उस पर पानी नहीं ठहरता, वैसे ही उद्धव पर कृष्ण प्रेम का प्रभाव नहीं पड़ा। इन सभी उदाहरणों के माध्यम से गोपियां यह व्यक्त करती हैं कि उद्धव कितने अभागे हैं जो कृष्ण के प्रेम रूपी अमृत से वंचित रह गए।

प्रश्न 4. उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उत्तर: गोपियां पहले से ही श्रीकृष्ण के वियोग में जल रही थीं और उनके वापस आने की प्रतीक्षा कर रही थीं। वे अपने मन की प्रीति श्रीकृष्ण से कहना चाहती थीं। किंतु जब उद्धव योग साधना का संदेश लेकर आए और कहा कि कृष्ण को भूल जाओ, तो यह गोपियों के लिए और भी कष्टकारी हो गया। जैसे जलती हुई आग में घी डालने से आग और तेज हो जाती है, वैसे ही योग का संदेश सुनकर गोपियों की विरह व्यथा और भी बढ़ गई। यह संदेश उनके प्रेम की अवहेलना लगा और उनकी पीड़ा को दोगुना कर दिया।

प्रश्न 5. ‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर: यहां प्रेम की मर्यादा न रहने की बात कही जा रही है। गोपियों के अनुसार प्रेम की यही मर्यादा होती है कि प्रेमी और प्रेमिका दोनों एक-दूसरे के प्रति निष्ठावान रहें और अपने प्रेम को निभाएं। श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ प्रेम का रिश्ता बनाया था, लेकिन अब योग संदेश भेजकर उन्होंने प्रेम की इस मर्यादा का उल्लंघन किया है। गोपियां यह कहना चाहती हैं कि कृष्ण ने उनके सच्चे प्रेम के साथ छल किया है और प्रेम धर्म का पालन नहीं किया है।

प्रश्न 6. कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
उत्तर: गोपियों ने अपने अनन्य प्रेम को अत्यंत मार्मिक रूप में व्यक्त किया है। उन्होंने अपनी स्थिति की तुलना गुड़ से चिपकी चीटियों से की है जो किसी भी हालत में गुड़ को नहीं छोड़तीं। उन्होंने कृष्ण को हारिल पक्षी की लकड़ी के समान बताया है जिसे हारिल कभी नहीं छोड़ता। वे मन, वचन और कर्म से कृष्ण के प्रति समर्पित हैं। वे दिन-रात, जागते-सोते केवल कान्ह-कान्ह का जाप करती रहती हैं। योग संदेश उन्हें कड़वी ककड़ी के समान लगता है क्योंकि उनका तो पूरा अस्तित्व ही कृष्ण प्रेम में समाया हुआ है।

प्रश्न 7. गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर: गोपियों ने बड़े व्यंग्यपूर्ण अंदाज में उद्धव से कहा है कि वे योग की शिक्षा उन लोगों को दें जिनका मन चंचल है और जो अभी तक किसी के प्रेम में नहीं पड़े हैं। जिन लोगों ने प्रेम की मधुरता का अनुभव नहीं किया है, वे ही योग साधना कर सकते हैं। गोपियां यह कहना चाहती हैं कि जिनका मन पहले से ही कृष्ण प्रेम में स्थिर हो चुका है, उन्हें योग की आवश्यकता नहीं है। उनके लिए तो कृष्ण प्रेम ही सबसे बड़ा योग है। यह एक प्रकार से योग की निरर्थकता को दर्शाने वाला कटाक्ष है।

प्रश्न 8. प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर: गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण पूर्णतः नकारात्मक है। उनके अनुसार योग एक नई बीमारी के समान है जिसे उन्होंने पहले कभी न देखा है और न सुना है। योग का संदेश उन्हें कड़वी ककड़ी की तरह अरुचिकर लगता है। वे मानती हैं कि जिनका मन पहले से ही कृष्ण प्रेम में स्थिर है, उन्हें योग की आवश्यकता नहीं। उनके लिए प्रेम ही सबसे बड़ा योग है। वे योग को निर्गुण उपासना मानती हैं जो उनके सगुण प्रेम के विपरीत है। उनका स्पष्ट मत है कि प्रेम योग से कहीं श्रेष्ठ और सरल मार्ग है।

प्रश्न 9. गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर: गोपियों के अनुसार राजा का सबसे बड़ा धर्म यह है कि वह अपनी प्रजा को कष्ट न पहुंचाए और उन्हें सुखी रखे। राजा को अन्याय से प्रजा की रक्षा करनी चाहिए, न कि स्वयं अन्याय करना चाहिए। गोपियां कृष्ण पर आरोप लगाती हैं कि वे राजधर्म भूल गए हैं और अपनी प्रजा को सताने का काम कर रहे हैं। एक आदर्श राजा वही होता है जो प्रजा के कल्याण को सर्वोपरि रखता है और उनकी भलाई के लिए काम करता है। यह गोपियों का कृष्ण के प्रति एक तर्कसंगत आरोप है जो राजनीतिक और नैतिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 10. गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?
उत्तर: गोपियों को कृष्ण में कई नकारात्मक परिवर्तन दिखाई दिए हैं। पहले वे सरल और प्रेमी थे, अब वे राजनीति पढ़कर चतुर और कूटनीतिज्ञ बन गए हैं। उन्होंने प्रेम की मर्यादा का त्याग कर दिया है और अब वे राजधर्म भी भूलते जा रहे हैं। पहले वे दूसरों को अत्याचार से बचाते थे, अब स्वयं अन्याय कर रहे हैं। उन्होंने गोपियों के हृदय चुराकर अब अपना मन बदल लिया है। योग संदेश भेजकर उन्होंने गोपियों के प्रेम का अपमान किया है। इन सभी परिवर्तनों को देखकर गोपियां निराश हो गई हैं और अपना मन वापस पाना चाहती हैं।

प्रश्न 11. गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए?
उत्तर: गोपियों के वाक्चातुर्य की अनेक विशेषताएं हैं। उनकी भाषा में गहरा व्यंग्य और कटाक्ष है जो उद्धव को निरुत्तर कर देता है। वे उपमाओं और उदाहरणों का बहुत प्रभावी प्रयोग करती हैं। उनके तर्क अत्यंत तर्कसंगत और मार्मिक हैं। वे भावुकता और बुद्धि का संतुलित प्रयोग करती हैं। उनकी बातों में सच्चे प्रेम की शक्ति है जो किसी भी ज्ञान को मात दे देती है। वे अपनी सरलता के माध्यम से जटिल दार्शनिक प्रश्नों का उत्तर देती हैं। उनका वाक्चातुर्य प्रेम की श्रेष्ठता को सिद्ध करता है और दिखाता है कि सच्चा प्रेम ज्ञान से भी बड़ा होता है।

प्रश्न 12. संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए?
उत्तर: सूरदास के भ्रमरगीत की अनेक महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं। इसमें सगुण भक्ति की श्रेष्ठता का प्रतिपादन है और निर्गुण योग का खंडन किया गया है। गोपियों के माध्यम से प्रेम की निर्गुण ज्ञान पर विजय दिखाई गई है। इसमें विरह वेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति है। वाक्चातुर्य, व्यंग्य और उपालंभ का सुंदर प्रयोग है। भाषा में संगीतात्मकता और गेयता का गुण विद्यमान है। गोपियों के चरित्र चित्रण में मनोवैज्ञानिक गहराई है। प्रेम की एकनिष्ठता और अनन्यता का चित्रण है। तत्कालीन सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों पर व्यंग्य है। कुल मिलाकर यह भक्ति काव्य की उत्कृष्ट कृति है जो प्रेम की महानता को प्रतिष्ठित करती है।

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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न




🔵 प्रश्न 1: गोपियों ने उद्धव को ‘अति बड़भागी’ क्यों कहा?
🟢 (क) क्योंकि वे कृष्ण के मित्र थे
🟡 (ख) क्योंकि वे कृष्ण के स्नेह से अछूते रहे
🔴 (ग) क्योंकि वे योग सिखाते थे
🟣 (घ) क्योंकि वे बहुत धनवान थे
✔️ उत्तर: (ख) क्योंकि वे कृष्ण के स्नेह से अछूते रहे

🔵 प्रश्न 2: ‘हमारैं हरि हारिल की लकरी’ में ‘हारिल की लकरी’ का क्या अर्थ है?
🟢 (क) एक साधारण लकड़ी
🟡 (ख) हारिल पक्षी की पकड़ी हुई लकड़ी जिसे वह कभी नहीं छोड़ता
🔴 (ग) पूजा में प्रयुक्त लकड़ी
🟣 (घ) एक प्रकार का वृक्ष
✔️ उत्तर: (ख) हारिल पक्षी की पकड़ी हुई लकड़ी जिसे वह कभी नहीं छोड़ता

🔵 प्रश्न 3: गोपियाँ कृष्ण को किस-किस समय याद करती हैं?
🟢 (क) केवल दिन में
🟡 (ख) केवल रात में
🔴 (ग) जागते, सोते, स्वप्न में, दिन-रात सदैव
🟣 (घ) केवल पूजा के समय
✔️ उत्तर: (ग) जागते, सोते, स्वप्न में, दिन-रात सदैव

🔵 प्रश्न 4: ‘करुई ककरी’ किसका प्रतीक है?
🟢 (क) गोपियों की विरह व्यथा
🟡 (ख) उद्धव का योग संदेश
🔴 (ग) कृष्ण का प्रेम
🟣 (घ) मथुरा नगरी
✔️ उत्तर: (ख) उद्धव का योग संदेश

🔵 प्रश्न 5: सूरदास के पदों में किस भाषा का प्रयोग हुआ है?
🟢 (क) खड़ी बोली
🟡 (ख) अवधी
🔴 (ग) ब्रजभाषा
🟣 (घ) भोजपुरी
✔️ उत्तर: (ग) ब्रजभाषा

🔵 प्रश्न 6: गोपियों ने उद्धव की तुलना किन-किन से की है?
🟢 उत्तर: गोपियों ने उद्धव की तुलना कमल के पत्ते और जल में तेल की बूँद से की है।

🔵 प्रश्न 7: ‘मन की मन ही माँझ रही’ का क्या अर्थ है?
🟢 उत्तर: गोपियों की कृष्ण से मिलन की इच्छाएँ और अभिलाषाएँ मन में ही रह गई हैं, पूरी नहीं हुईं।

🔵 प्रश्न 8: गोपियों ने कृष्ण को अपने हृदय में किस प्रकार बसाया है?
🟢 उत्तर: गोपियों ने मन, कर्म और वचन से कृष्ण को अपने हृदय में दृढ़ता से पकड़ रखा है।

🔵 प्रश्न 9: ‘राज धरम’ से क्या तात्पर्य है?
🟢 उत्तर: राज धरम से तात्पर्य प्रजा की रक्षा करना और उनका हित करना है, शोषण नहीं।

🔵 प्रश्न 10: सूरदास की रचना ‘सूरसागर’ का कौन सा भाग इन पदों में शामिल है?
🟢 उत्तर: इन पदों को सूरसागर के ‘भ्रमरगीत’ भाग से लिया गया है।

🔵 प्रश्न 11: गोपियों ने उद्धव को ‘अपरस’ क्यों कहा? इसमें क्या व्यंग्य निहित है?
🟢 उत्तर: गोपियों ने उद्धव को ‘अपरस’ (अछूते) इसलिए कहा क्योंकि वे कृष्ण के निकट रहते हुए भी उनके प्रेम से प्रभावित नहीं हुए। जैसे कमल का पत्ता जल में रहकर भी गीला नहीं होता और तेल की बूँद जल में मिलती नहीं, वैसे ही उद्धव कृष्ण के स्नेह से अलिप्त रहे। इसमें गोपियों का यह व्यंग्य निहित है कि उद्धव सच्चे प्रेम से वंचित हैं और इसलिए दुर्भाग्यशाली हैं, न कि भाग्यवान।

🔵 प्रश्न 12: गोपियों की कृष्ण-भक्ति की क्या विशेषताएँ हैं?
🟢 उत्तर: गोपियों की कृष्ण-भक्ति एकनिष्ठ, दृढ़ और सर्वव्यापी है। वे जागते, सोते, स्वप्न में, दिन-रात हर पल कृष्ण को याद करती हैं। उनकी भक्ति में पूर्ण समर्पण, निस्वार्थता और गहरी आसक्ति है। वे कृष्ण को अपने मन, कर्म और वचन से हृदय में दृढ़तापूर्वक बसाए हुई हैं, जैसे हारिल पक्षी अपनी लकड़ी को कभी नहीं छोड़ता। उनका प्रेम भावुकता और आत्मिक समर्पण से परिपूर्ण है।

🔵 प्रश्न 13: गोपियों ने योग-संदेश को ‘करुई ककरी’ और योग को ‘व्याधि’ क्यों कहा?
🟢 उत्तर: गोपियों के लिए कृष्ण से प्रेम ही सब कुछ है। जब उद्धव उन्हें योग का संदेश देते हैं, तो यह उनकी विरह-वेदना को और बढ़ा देता है। योग-संदेश उनके लिए कड़वी ककड़ी (करुई ककरी) के समान है क्योंकि यह उन्हें कृष्ण से दूर करने का प्रयास है। योग को व्याधि (बीमारी) इसलिए कहा गया है क्योंकि यह उनकी प्रेममयी भक्ति के विपरीत है और उनकी पीड़ा को कम करने के बजाय बढ़ा रहा है।

🔵 प्रश्न 14: गोपियों ने कृष्ण पर ‘अनीति’ का आरोप क्यों लगाया?
🟢 उत्तर: गोपियों का कहना है कि कृष्ण ने मथुरा जाकर राजनीति का पाठ पढ़ लिया है और अब वे कूटनीति का प्रयोग कर रहे हैं। उन्होंने गोपियों को प्रेम का वचन दिया था, लेकिन अब योग का झूठा संदेश भेज रहे हैं। गोपियाँ याद दिलाती हैं कि राजधर्म प्रजा की रक्षा करना है, न कि उन्हें सताना। कृष्ण ने मर्यादा का उल्लंघन किया है, इसलिए गोपियाँ उन पर अनीति (अन्याय) का आरोप लगाती हैं।

🔵 प्रश्न 15: सूरदास के पदों में गोपियों की मनोदशा का वर्णन करते हुए उनके प्रेम और विरह की गहराई को स्पष्ट कीजिए।
🟢 उत्तर: सूरदास के पदों में गोपियों की मनोदशा अत्यंत व्याकुल और विरह-पीड़ित है। कृष्ण के मथुरा चले जाने के बाद गोपियों का जीवन निराशा और वेदना से भर गया है। उनका प्रेम इतना गहरा और एकनिष्ठ है कि वे मन, कर्म और वचन से कृष्ण को अपने हृदय में दृढ़ता से बसाए हुई हैं, जैसे हारिल पक्षी अपनी लकड़ी को कभी नहीं छोड़ता।
गोपियाँ जागते, सोते, स्वप्न में, दिन-रात हर क्षण कृष्ण का स्मरण करती रहती हैं। उनकी भक्ति सर्वकालिक और निरंतर है। वे ‘कान्ह-कान्ह’ रटती रहती हैं, जो उनकी मानसिक बाध्यता को दर्शाता है।
जब उद्धव योग का संदेश लेकर आते हैं, तो गोपियाँ उसे कड़वी ककड़ी और व्याधि कहती हैं क्योंकि यह उनकी विरह-वेदना को और बढ़ा देता है। उनका प्रेम निस्वार्थ, अमाप्य और सर्वग्रासी है, जैसे नदी का प्रवाह।
गोपियाँ कृष्ण के आने की अनिश्चित प्रतीक्षा में पीड़ा सह रही हैं और उनके योग-संदेश ने उन्हें और अधिक दुःखी कर दिया है। वे कृष्ण पर अनीति का आरोप लगाती हैं और कहती हैं कि जब कृष्ण ने ही मर्यादा का त्याग कर दिया, तो वे धैर्य कैसे धारण करें।

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अतिरिक्त ज्ञान :

Q भ्रमरगीत को भ्रमरगीत क्यों कहते हैं और सूरदास के भ्रमरगीत को सबसे श्रेष्ठ क्यों माना जाता हैं?

भ्रमरगीत नामकरण का कारण :


भ्रमरगीत को इस नाम से इसलिए पुकारा जाता है क्योंकि जब उद्धव ब्रज में गोपियों के पास कृष्ण का संदेश लेकर गए, तो उनके साथ वार्तालाप के दौरान एक भ्रमर (भौंरा) वहां आकर उड़ने लगा। गोपियों ने उस भ्रमर को प्रतीक बनाकर अन्योक्ति (परोक्ष कथन) के माध्यम से उद्धव और कृष्ण पर व्यंग्य किए तथा उपालंभ दिए। भारतीय साहित्य में भ्रमर रसलोलुप और व्यभिचारी नायक का प्रतीक माना जाता है, जो एक फूल पर स्थिर न रहकर विविध पुष्पों का रसास्वादन करता है।

# भ्रमरगीत के रचयिता
हिंदी साहित्य में भ्रमरगीत परंपरा के प्रमुख कवि हैं:

*सूरदास (सबसे प्रसिद्ध)

*नंददास

*परमानंददास

*मैथिलीशरण गुप्त (द्वापर काव्य में)

*जगन्नाथदास रत्नाकर (उद्धव प्रसंग)

विद्वान मानते हैं कि विद्यापति के पदों से इस परंपरा का प्रारंभ हुआ, किंतु विधिवत भ्रमरगीत परंपरा सूरदास से ही शुरू हुई।

सूरदास के भ्रमरगीत की श्रेष्ठता


सूरदास का भ्रमरगीत अन्य सभी भ्रमरगीतों से श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि:

आचार्य रामचंद्र शुक्ल (हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ आलोचक) के अनुसार, “सूरसागर(सूरदास की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक)का सबसे मर्मस्पर्शी और वाग्वैदग्ध्यपूर्ण अंश भ्रमरगीत है”। उन्होंने लगभग 400 पदों का भ्रमरगीत सार के रूप में संग्रह किया था।

सूरदास के भ्रमरगीत की विशिष्ट विशेषताएं:

*वाग्विदग्धता और वक्रता का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण

*गोपियों की तर्कपूर्ण वाक्पटुता और प्रेम की गहराई

*सगुण भक्ति का मंडन और निर्गुण भक्ति का खंडन

*संगीतात्मकता और गेयता का अद्भुत संयोजन

*मनोवैज्ञानिक गहराई और भावप्रधानता

यह विशेषताएं सूरदास के भ्रमरगीत को हिंदी साहित्य में अप्रतिम और अद्वितीय बनाती हैं।

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सूरदास : पद
“ऊधौ, तुम हो अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहीं मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यों जल माहैं तेल की गागरि, बूँद न ताको लागी।
प्रीति-नदी में पाउँ न बोर्यो, दृष्टि न रूप पचागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुरु चाँटी ज्यौं पागी॥”


प्रश्न (5×1 = 5)


1.“ऊधौ, तुम हो अति बड़भागी”—इस उद्बोधन का आशय कौन-सा है?
(A) कृष्ण-सान्निध्य के सौभाग्य का सहज अभिनंदन
(B) वैराग्य-उपदेश पर करुण-व्यंग्य कि निकट होकर भी अनुराग से रिक्त हो
(C) गोपियों की विनम्र क्षमा-याचना
(D) युद्ध-विजय का अभिनंदन
उत्तर: (B)


2.“पुरइनि पात” और “तेल की गागरि” की छवियाँ किस तात्पर्य का संकेत देती हैं?
(A) प्रकृति-चित्रण की रुचि
(B) स्नेह-संसर्ग से अछूते, निष्प्रभावित मन का रूपक
(C) विलास-प्रेम का महिमामंडन
(D) लोक-रीति का वर्णन
उत्तर: (B)


3.कथन-संयोजन—सत्य विकल्प चुनिए:
(i) “प्रीति-नदी” में “पाऊँ न बोर्यो” से उपदेशात्मक वैराग्य की निष्क्रियता पर आपत्ति व्यक्त है।
(ii) “दृष्टि न रूप पचागी” से संकेत है कि सौंदर्य-वस्तु भी अनुराग-विहीन मन को स्पर्श नहीं करती।
(iii) कवि ज्ञान-योग की श्रेष्ठता स्वीकारते हुए भक्ति को गौण ठहराते हैं।
(iv) “गुरु चाँटी ज्यौं पागी” में दृढ़ आसक्ति का बिंब आता है।
विकल्प:
(A) (i), (ii) और (iv) केवल
(B) (ii) और (iii) केवल
(C) (i) और (iii) केवल
(D) (i) और (iv) केवल
उत्तर: (A)


4.इस पद में कथ्य-परिस्थिति का संकेत किसमें निहित है?
(A) नंद–यशोदा संवाद
(B) राधा–कृष्ण अंतरंग वार्ता
(C) उद्धव–गोपियों की तर्क–संधि
(D) गोपालों का सामूहिक गीत
उत्तर: (C)


5.कथन–कारण—सही विकल्प चुनिए:
कथन: कवि के यहाँ “अनुराग-विमुख” मन “अपरस” माना गया है।
कारण: ऐसा मन “जल भीतर पुरइनि पात” की भाँति स्पर्शित होकर भी भीगता नहीं—अर्थात प्रेम का प्रभाव नहीं लेता।
(A) कथन और कारण दोनों गलत हैं।
(B) कारण गलत है, किंतु कथन सही है।
(C) कथन तथा कारण दोनों सही हैं तथा कारण उसकी सही व्याख्या करता है।
(D) कथन सही है, किंतु कारण उसकी सही व्याख्या नहीं करता।
उत्तर: (C)

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