Class 9, Hindi

Class : 9 – Hindi : Lesson 20. अपठित बोध

==================== अपठित बोध 1

हुनरमंद कारीगर किसी भी क्षेत्र की पहचान होते हैं। उनके हाथों का काम स्थानीय इतिहास, प्रकृति और जीवन–शैली को रूप देता है। पर मशीन–निर्मित सामान के सस्ते बाज़ार ने पारम्परिक शिल्प पर दबाव बढ़ा दिया है। यदि मंडियों में असली और नकली की साफ़ पहचान हो, कारीगर के नाम का उल्लेख किया जाए और मूल्य–निर्धारण पारदर्शी हो, तो सम्मान और आय दोनों बढ़ सकते हैं।

भौगोलिक संकेत वाला शिल्प उस क्षेत्र की विशिष्ट तकनीक और कच्चे माल से जुड़ा रहता है। विद्यालय और सामुदायिक मेलों में शिल्प–प्रदर्शन, घरों में हस्तनिर्मित वस्तुओं का उपयोग और यात्रियों द्वारा सीधे कारीगर से ख़रीद जैसी आदतें इस परम्परा को जीवित रखती हैं। जब खरीदार स्रोत को समझता है तो वह टिकाऊ वस्तु लेकर लौटता है और कारीगर को उचित दाम मिलता है।

प्रश्न 1: ऊपर दिए गद्य का मुख्य विचार क्या है? (1 अंक)
(क) मशीन–निर्मित सामान श्रेष्ठ है
(ख) कारीगर और शिल्प को पहचान व उचित दाम मिलना चाहिए
(ग) शिल्प केवल संग्रहालय के लिए है
(घ) कच्चा माल ही सब कुछ तय करता है
उत्तर: (ख)

प्रश्न 2: भौगोलिक संकेत से कारीगर को क्या लाभ होता है? (1 अंक)
(क) वस्तु सस्ती हो जाती है
(ख) पहचान और भरोसा बढ़ता है, इसलिए दाम स्थिर मिलते हैं
(ग) केवल सजावट बढ़ती है
(घ) कच्चा माल बदलना आसान हो जाता है
उत्तर: (ख)

प्रश्न 3: कथन — पारदर्शी मूल्य–निर्धारण से कारीगर की आय बढ़ती है। कारण — खरीदार को स्रोत और असलियत पर भरोसा मिलता है। (1 अंक)
(क) दोनों गलत
(ख) कारण सही, कथन गलत
(ग) कथन सही, कारण उचित व्याख्या नहीं करता
(घ) दोनों सही और कारण सही व्याख्या करता है
उत्तर: (घ)

प्रश्न 4: विद्यालय स्तर पर शिल्प–संरक्षण के लिए क्या किया जा सकता है? (2 अंक)
उत्तर: विद्यालय में शिल्प–प्रदर्शन, कारीगर–वार्ता और परियोजनाओं के माध्यम से विद्यार्थियों को निर्माण–प्रक्रिया दिखाकर जागरूक किया जा सकता है, जिससे वे परिवार और समुदाय में हस्तनिर्मित वस्तुओं को अपनाने की पहल करते हैं और स्थानीय शिल्प को स्थायी सहारा मिलता है।

प्रश्न 5: खरीदार का व्यवहार शिल्प–परम्परा पर कैसे असर डालता है? (2 अंक)
उत्तर: जब खरीदार असल उत्पाद पहचाने, कारीगर का नाम पढ़े और सीधी खरीद को प्राथमिकता दे, तो नकली माल का दबाव घटता है, टिकाऊ वस्तु का सम्मान बढ़ता है और कारीगर को नियमित, न्यायसंगत आय प्राप्त होती है।

==================== अपठित बोध 2

गरमी के दिनों में मीठे पेय पदार्थों का आकर्षण बढ़ जाता है, पर अधिक चीनी शरीर में अतिरिक्त कैलोरी लाकर थकान, दन्त–क्षय और समय के साथ कई रोगों का जोखिम बढ़ाती है। प्यास बुझाने के लिए सादा जल, निंबू–जल, छाछ और मौसमी फलों का ताज़ा रस उचित विकल्प हैं, क्योंकि इनमें जल के साथ आवश्यक लवण और कुछ प्राकृतिक तत्त्व मिलते हैं।

कई पेयों में चीनी छिपे रूप में मिलाई जाती है, इसलिए बोतल पर लिखे अंशों को पढ़ना उपयोगी होता है। घर में यदि मीठे पेयों की मात्रा और आवृत्ति सीमित की जाए, भोजन के साथ सलाद और फल रखे जाएँ तथा बच्चों को पानी पीने की आदत पड़ाई जाए, तो स्वाद और स्वास्थ्य दोनों का संतुलन बना रहता है।

प्रश्न 1: गद्यांश के अनुसार मुख्य चिंता क्या है? (1 अंक)
(क) गर्मी में प्यास कम लगना
(ख) मीठे पेयों से चीनी का अत्यधिक सेवन
(ग) फलों की उपलब्धता
(घ) पानी का स्वाद
उत्तर: (ख)

प्रश्न 2: प्यास बुझाने के लिए उचित विकल्प कौन–से हैं? (1 अंक)
(क) केवल रंग–मिश्रित पेय
(ख) सादा जल, निंबू–जल और छाछ
(ग) नमकीन नाश्ता
(घ) अत्यधिक ठंडा मिठाई–पदार्थ
उत्तर: (ख)

प्रश्न 3: कथन — बोतल पर लिखे अंश पढ़ना लाभकारी है। कारण — कई पेयों में चीनी छिपे रूप में मिलाई जाती है। (1 अंक)
(क) दोनों गलत
(ख) कारण सही, कथन गलत
(ग) कथन सही, कारण उचित व्याख्या नहीं करता
(घ) दोनों सही और कारण सही व्याख्या करता है
उत्तर: (घ)

प्रश्न 4: परिवार में मीठे पेयों पर नियंत्रण कैसे सम्भव है? (2 अंक)
उत्तर: घर में मीठे पेयों की ख़रीद सीमित करके, भोजन के साथ सादा जल और फल परोसकर तथा बच्चों को प्यास लगने पर पहले पानी चुनने की आदत सिखाकर चीनी का अनावश्यक सेवन घटाया जा सकता है और स्वाद–इच्छा को स्वाभाविक विकल्पों से पूरा किया जा सकता है।

प्रश्न 5: विद्यालय की क्या भूमिका हो सकती है? (2 अंक)
उत्तर: विद्यालय जल–कूलर की साफ–सुथरी व्यवस्था रखकर, मध्यांतर में पानी पीने की याद दिलाकर और कैंटीन में अत्यधिक मीठे पेयों के स्थान पर छाछ, निंबू–जल जैसे विकल्प उपलब्ध कराकर विद्यार्थियों में स्वस्थ पान–संस्कृति विकसित कर सकता है।

==================== अपठित बोध 3

नदी किनारे बसी बस्तियों में बरसात के दिनों में जल–स्तर तेज़ी से बढ़ सकता है। बिना तैयारी के अचानक आई बाढ़ घर, दवा, अनाज और पढ़ाई–लिखाई पर असर डालती है। यदि समय रहते चेतावनी–घंटी, ऊँचे स्थानों की सूची, आवश्यक सामान की थैली और परिवार–सम्पर्क योजना तैयार हो, तो हानि कम की जा सकती है।

पंचायत द्वारा सुरक्षित मार्ग–अभ्यास, स्कूलों को अस्थायी शरण–स्थल में बदलने की योजना और नाव–दल का प्रशिक्षण बाढ़–प्रबंधन को मजबूत बनाते हैं। तटबंध की मरम्मत, जल–निकासी की साफ–सफाई और बच्चों को सरल मानचित्र पढ़ना सिखाना भी आवश्यक है, ताकि संकट के समय निर्णय शीघ्र और सुव्यवस्थित ढंग से लिये जा सकें।

प्रश्न 1: बाढ़ आने पर सबसे पहली समस्या क्या बताई गई है? (1 अंक)
(क) केवल यात्रा महँगी होना
(ख) घर और आवश्यक वस्तुओं पर असर
(ग) पहाड़ की ऊँचाई बढ़ना
(घ) सर्दी बढ़ना
उत्तर: (ख)

प्रश्न 2: बाढ़–प्रबंधन का उपयुक्त उपाय पहचानिए। (1 अंक)
(क) चेतावनी–घंटी और सुरक्षित मार्ग–अभ्यास
(ख) रात में सभी मार्ग बंद कर देना
(ग) नदी–किनारे अतिरिक्त कचरा जमा करना
(घ) स्कूल बन्द कर देना और कोई योजना न बनाना
उत्तर: (क)

प्रश्न 3: कथन — ऊँचे स्थानों की सूची और आवश्यक थैली तैयार रखना उपयोगी है। कारण — संकट के समय जल्दी निकलते हुए ज़रूरी सामान सुरक्षित रहता है। (1 अंक)
(क) दोनों गलत
(ख) कारण सही, कथन गलत
(ग) कथन सही, कारण उचित व्याख्या नहीं करता
(घ) दोनों सही और कारण सही व्याख्या करता है
उत्तर: (घ)

प्रश्न 4: पंचायत स्तर पर क्या तैयारियाँ आवश्यक हैं? (2 अंक)
उत्तर: पंचायत को सुरक्षित मार्ग–अभ्यास नियमित कराना, नाव–दल और प्राथमिक उपचार का प्रशिक्षण देना, तटबंध और जल–निकासी की मरम्मत समय पर पूरी कराना तथा स्कूल–भवन को शरण–स्थल के रूप में तैयार रखना चाहिए, ताकि आपदा के समय लोगों को त्वरित सहायता मिल सके।

प्रश्न 5: बच्चों को बाढ़–सुरक्षा के लिए कैसे तैयार किया जाए? (2 अंक)
उत्तर: बच्चों को सरल मानचित्र पढ़ना, चेतावनी–ध्वनि पहचानना, परिवार–सम्पर्क सूची संभालना और बिना घबराहट सुरक्षित मार्ग पर चलना सिखाया जाए, ताकि वे स्वयं सुरक्षित रहें और आवश्यकता पड़ने पर बड़े–बुजुर्गों की सहायता कर सकें।

==================== अपठित बोध 4

सार्वजनिक परिवहन किसी भी नगर की जीवन–धारा है। समय–पालन, पंक्ति में खड़ा होना, वरिष्ठ नागरिकों व असहाय यात्रियों को सीट देना, टिकट साथ रखना और हल्की आवाज़ में बातचीत करना—ये साधारण आदतें यात्रा को सुगम बनाती हैं। वाहन के भीतर स्वच्छता रखना, खिड़की–दरवाज़े अनावश्यक रूप से न खोलना और सुरक्षा–निर्देशों का पालन करना सभी की जिम्मेदारी है।

जब अधिक लोग बस–मेट्रो का प्रयोग करते हैं तो सड़कों पर भीड़ घटती है, ईंधन की बचत होती है और वायु–प्रदूषण कम होता है। नियमित समय–सारिणी, स्पष्ट सूचना–पट्ट और शिकायत–निवारण की सरल व्यवस्था से नागरिकों का भरोसा बढ़ता है; परिणामस्वरूप निजी वाहन पर निर्भरता घटती है और यात्रा सस्ती व सुरक्षित बनती है।

प्रश्न 1: गद्य का मुख्य संदेश क्या है? (1 अंक)
(क) निजी वाहन ही सबसे बेहतर हैं
(ख) शिष्टाचार और नियमों से सार्वजनिक परिवहन कुशल बनता है
(ग) बस–मेट्रो केवल आपात स्थिति के लिए हैं
(घ) बिना टिकट यात्रा करना स्वीकार्य है
उत्तर: (ख)

प्रश्न 2: उपयुक्त आचरण कौन–सा है? (1 अंक)
(क) तेज़ संगीत बजाना
(ख) पंक्ति तोड़कर चढ़ना
(ग) ज़रूरतमन्द को सीट देना और टिकट रखना
(घ) कूड़ा सीट के नीचे रखना
उत्तर: (ग)

प्रश्न 3: कथन—सार्वजनिक परिवहन से प्रदूषण घट सकता है। कारण—एक वाहन में अधिक यात्री सफ़र करते हैं। (1 अंक)
(क) दोनों गलत
(ख) कारण सही, कथन गलत
(ग) कथन सही, कारण उचित व्याख्या नहीं करता
(घ) दोनों सही और कारण सही व्याख्या करता है
उत्तर: (घ)

प्रश्न 4: समय–पालन सार्वजनिक परिवहन में क्यों आवश्यक है? (2 अंक)
उत्तर: समय–पालन से गाड़ियाँ निर्धारित क्रम में चलती हैं, भीड़–भाड़ व देरी घटती है और यात्री अपने आगे–पीछे की सेवाओं से सहज जोड़ बना पाते हैं, जिससे संपूर्ण तंत्र की विश्वसनीयता और सुरक्षा बढ़ती है।

प्रश्न 5: नागरिकों का भरोसा बढ़ाने के लिए संचालक संस्थाएँ क्या कर सकती हैं? (2 अंक)
उत्तर: स्पष्ट समय–सारिणी, पठनीय सूचना–पट्ट, साफ–सफाई और सरल शिकायत–निवारण उपलब्ध कराकर वे यात्रा को नियमित, सुरक्षित और सुविधाजनक बनाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप लोग सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता देने लगते हैं।

==================== अपठित बोध 5

स्थानीय बोलियाँ किसी क्षेत्र की स्मृतियों, लोक–गीतों, कहावतों और जीवन–दृष्टि का भण्डार होती हैं। घरों में दादा–दादी की कहानियाँ, खेत–खलिहान की शब्द–सम्पदा और पर्व–त्योहारों की पुकार इन बोलियों में ही रस घोलती है। यदि इन्हें नज़रअंदाज़ किया जाए तो पीढ़ियों के बीच संवाद कमज़ोर पड़ता है और सांस्कृतिक पहचान धूमिल होने लगती है।

संरक्षण के लिए विद्यालयों में बोली–क्लब, लोक–वाचन और वयोवृद्धों की कथाएँ रिकॉर्ड करने जैसी गतिविधियाँ सहायक हैं। नगर–स्तर पर सूचना–पट्टों में दो–भाषीय प्रस्तुति, स्थानीय कलाकारों के उत्सव और पुस्तकालयों में बोली–साहित्य का कोना बनाया जाए तो युवाओं की दिलचस्पी बढ़ती है और वे अपनी जड़ों से जुड़ाव महसूस करते हैं।

प्रश्न 1: संरक्षण का मुख्य उद्देश्य क्या है? (1 अंक)
(क) सभी बोलियों को एक ही रूप देना
(ख) केवल पुराने शब्दों का संग्रह रखना
(ग) सांस्कृतिक पहचान और पीढ़ियों के संवाद को सशक्त करना
(घ) विद्यालयों में केवल मानक भाषा रखना
उत्तर: (ग)

प्रश्न 2: उपयुक्त उपाय पहचानिए। (1 अंक)
(क) घर–घर में बोली पर रोक
(ख) विद्यालयों में बोली–क्लब और लोक–वाचन
(ग) पुस्तकालयों से बोली–ग्रन्थ हटाना
(घ) कलाकार–उत्सव रद्द करना
उत्तर: (ख)

प्रश्न 3: कथन—बोली का सम्मान होने पर सीखने में रुचि बढ़ती है। कारण—बालक घर की भाषा में स्वाभाविक रूप से सहज होता है। (1 अंक)
(क) दोनों गलत
(ख) कारण सही, कथन गलत
(ग) कथन सही, कारण उचित व्याख्या नहीं करता
(घ) दोनों सही और कारण सही व्याख्या करता है
उत्तर: (घ)

प्रश्न 4: विद्यालय इस दिशा में क्या भूमिका निभा सकते हैं? (2 अंक)
उत्तर: विद्यालय बोली–क्लब बनाकर लोक–वाचन, कहावत–संग्रह और वयोवृद्ध–संवाद जैसी गतिविधियाँ आयोजित करें, पुस्तकालय में बोली–साहित्य का कोना बनायें और वार्षिकोत्सव में स्थानीय गीत–नृत्य को स्थान देकर विद्यार्थियों में गर्व व संवेदनशीलता विकसित करें।

प्रश्न 5: नगर–स्तर पर किन कदमों से युवाओं की भागीदारी बढ़ेगी? (2 अंक)
उत्तर: सूचना–पट्टों को दो–भाषीय बनाना, स्थानीय कलाकार–उत्सव आयोजित करना और सामुदायिक केन्द्रों में बोली–कार्यशालाएँ चलाना युवाओं को मंच देता है, जिससे वे अपनी भाषा–परम्परा से सक्रिय रूप से जुड़ते हैं।

==================== अपठित बोध 6

घर–घर कचरा–पृथक्करण स्वच्छ नगर की बुनियाद है। रसोई का गीला कचरा अलग, कागज़–धातु–काँच जैसे सूखे कचरे अलग, तथा बैटरी–शीशी जैसे हानिकारक अवशेष अलग जमा किए जाएँ तो निपटान सरल हो जाता है। रंग–चिन्हित डिब्बे, समय–बद्ध संग्रह और मोहल्ला–जागरण से आदतें स्थिर होती हैं और गलियों में गन्दगी घटती है।

गीले कचरे से जैव–खाद बनती है, सूखे कचरे का पुनर्चक्रण सम्भव होता है और हानिकारक अवशेष सुरक्षित केन्द्रों तक पहुँचते हैं। जब परिवार और नगर–प्रशासन साथ–साथ काम करते हैं तो डम्प–स्थलों का बोझ घटता है, रोग–जोखिम कम होता है और पर्यावरण स्वस्थ रहता है।

प्रश्न 1: कचरा–प्रबन्धन का मूल आधार क्या बताया गया है? (1 अंक)
(क) सब कुछ एक ही डिब्बे में डालना
(ख) स्रोत पर कचरे का पृथक्करण
(ग) कचरा सड़क पर छोड़ देना
(घ) केवल डम्प–स्थल बढ़ाना
उत्तर: (ख)

प्रश्न 2: सही व्यवहार कौन–सा है? (1 अंक)
(क) रसोई का अवशेष सूखे कचरे में डालना
(ख) बैटरी–शीशी गीले कचरे में डालना
(ग) कागज़–धातु सूखे में और रसोई–अवशेष गीले में रखना
(घ) सब कुछ मोहल्ले के कोने में फेंकना
उत्तर: (ग)

प्रश्न 3: कथन—कचरा–पृथक्करण से नगर–स्वच्छता सुधरती है। कारण—जैव–खाद और पुनर्चक्रण सुगमता से हो पाता है। (1 अंक)
(क) दोनों गलत
(ख) कारण सही, कथन गलत
(ग) कथन सही, कारण उचित व्याख्या नहीं करता
(घ) दोनों सही और कारण सही व्याख्या करता है
उत्तर: (घ)

प्रश्न 4: परिवार में यह आदत स्थायी बनाने के उपाय बताइए।
उत्तर: घर में रंग–चिन्हित डिब्बे रखकर, बच्चों को सिखाकर और संग्रह–समय के अनुसार कचरा सौंपकर परिवार सरल नियमों को दैनिक जीवन में शामिल कर लेता है, जिससे पृथक्करण सहज और निरन्तर बना रहता है।

प्रश्न 5: नगर–स्तर पर क्रियान्वयन कैसे सुदृढ़ किया जा सकता है?
उत्तर: वार्ड–स्तरीय निगरानी, समय–बद्ध संग्रह–वाहन, स्वच्छता–जागरण और उल्लंघन पर दण्ड के साथ अच्छी कार्य–प्रणाली अपनाने वालों को प्रोत्साहन देकर व्यवस्था विश्वसनीय बनायी जा सकती है और डम्प–स्थलों का बोझ क्रमशः घटाया जा सकता है।

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==================== पद्यांश 1

भोर हुई तो गली–गली से झाड़ू की सरगम आई,
कूड़े की थकान उतारें थैले, कंधों पर परछाईं।
नींद अभी खिड़की पर ठहरी, पर चौक पड़ोस जगाया,
चुप–चुप से ये कर्म–दीपक, शहर को फिर चमकाया।

हाथों में रोटी की गर्मी, माथे पर बूंदें पानी,
रोज़मर्रा की छोटी–सी जीत, कितनी बड़ी कहानी।
सूरज उगते ही पग–पग पर साफ़ सिरे दिखते हैं,
श्रम का प्रकाश बता देता—यही हमारे रिश्ते हैं।

प्रश्न 1: इस पद्यांश का मुख्य सन्देश क्या है?
(क) सुबह बेकार समय है
(ख) श्रम और अनुशासन से शहर सजता है
(ग) नींद सबसे आवश्यक है
(घ) चमक केवल त्यौहार पर आती है
उत्तर: (ख)

प्रश्न 2: “झाड़ू की सरगम” में कौन–सा अलंकार है?
(क) उपमा
(ख) मानवीकरण
(ग) अनुप्रास
(घ) रूपक
उत्तर: (ख)

प्रश्न 3: “कर्म–दीपक” किसके लिए संकेत है?
(क) त्योहार की आरती
(ख) सफ़ाईकर्मियों के निस्वार्थ प्रयास
(ग) दुकान के दीये
(घ) बच्चों के खिलौने
उत्तर: (ख)

प्रश्न 4: “रोज़मर्रा की छोटी–सी जीत, कितनी बड़ी कहानी” — इसका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: प्रतिदिन किया गया साधारण–सा श्रम भी जीवन में गरिमा और सम्मान का बड़ा अर्थ रचता है; छोटी–छोटी सफलताएँ मिलकर समाज को स्वच्छ और सुन्दर बनाती हैं, इसलिए इन अनुभवों में बड़ी प्रेरक कहानी छिपी रहती है।

प्रश्न 5: कवि शहर और श्रमिकों के सम्बन्ध को कैसे देखता है?
उत्तर: कवि मानता है कि शहर की चमक श्रमिकों से जुड़ी है; उनके परिश्रम की रोशनी गलियों–चौकों को नया रूप देती है और नागरिकों से एक आत्मीय, कृतज्ञ सम्बन्ध स्थापित करती है।

==================== पद्यांश 2

पहाड़ की पगडंडी ने धीरज से बात बताई,
कंकड़–कंकड़ जोड़ के ही राह बनी ऊँचाई।
चरवाही बाँसुरी बोली—धीमे चढ़ो, मत घबराओ,
बादल का साया बदले, मन अपना मत डुलाओ।

दूर कहीं देवदारों ने झुककर राह दिखाई,
धूप ने छाया बाँटी, थककर पगड़ी सम्हलाई।
चोटी पर पहुँचे तो आँसू नमक–सा मीठा था,
साँसों में जंग लगी हिम्मत, मन भीतर दीठा था।

प्रश्न 1: कविता का केन्द्र क्या है?
(क) जल्दी जीतने की चाह
(ख) धैर्य और क्रमिक प्रयास का महत्व
(ग) भाग्य पर निर्भरता
(घ) शोर और उत्सव
उत्तर: (ख)

प्रश्न 2: “पगडंडी ने धीरज से बात बताई” — अलंकार पहचानिए।
(क) उपमा
(ख) मानवीकरण
(ग) अतिशयोक्ति
(घ) यमक
उत्तर: (ख)

प्रश्न 3: “आँसू नमक–सा मीठा था” — यह किस अनुभव का प्रतीक है?
(क) असफलता का दुख
(ख) थकान से चिड़चिड़ापन
(ग) परिश्रम के बाद उपलब्धि की तृप्ति
(घ) भय का आतंक
उत्तर: (ग)

प्रश्न 4: “बादल का साया बदले, मन अपना मत डुलाओ” — पंक्ति का भाव लिखिए।)
उत्तर: बाहरी परिस्थितियाँ अस्थिर होती हैं; कभी धूप, कभी बादल आते–जाते रहते हैं, पर लक्ष्य तक पहुँचने के लिए मन की स्थिरता आवश्यक है—इसी धीरज से कठिन चढ़ाई सम्भव होती है।

प्रश्न 5: चोटी पर पहुँचने के क्षण का चित्र कवि ने कैसे उकेरा है?
उत्तर: वह आँसुओं की मिठास और साँसों की तपिश के माध्यम से विजय का आन्तरिक सुख दिखाता है; संघर्ष की थकान भी सार्थक लगती है और भीतर देखने की दृष्टि तीव्र हो जाती है।

==================== पद्यांश 3

शाम ढली तो पुस्तकालय में दीपक की लौ जागी,
मौन के गलियारों में अक्षर–अक्षर धुन बिखरी।
खुले पन्नों पर चाँद उतर कर रेखाएँ खींच गया,
ज्ञान की नदी ने काग़ज़ पर धीरे–धीरे नांव चलाई।

काँच की अलमारी के भीतर इतिहास साँसें लेता,
नक्शों पर भविष्य की राहें हल्की–हल्की दिखतीं।
जो भी पढ़कर लौटा, उसकी चाल में नर्मी थी,
मन में जैसे नया कस्बा बस कर घर बन जाता।

प्रश्न 1: इस पद्यांश का केन्द्रीय भाव क्या है?
(क) पुस्तकालय उबाऊ स्थान है
(ख) पठन से मन में नई दुनिया जागती है
(ग) केवल परीक्षा की तैयारी आवश्यक है
(घ) रात में पढ़ना हानिकारक है
उत्तर: (ख)

प्रश्न 2: “ज्ञान की नदी” किसके लिए रूपक है?
(क) नदी का बाढ़–जल
(ख) पुस्तक–पठन से प्रवाहित विचारों का सतत प्रवाह
(ग) स्कूल की घंटी
(घ) शहर का शोर
उत्तर: (ख)

प्रश्न 3: “अक्षर–अक्षर धुन बिखरी” — इसमें निहित अर्थ क्या है?
(क) कक्षा में शोर
(ख) शब्दों की लय से उत्पन्न मानसिक संगीत
(ग) वाद्य–यंत्रों की ध्वनि
(घ) खिड़की टूटना
उत्तर: (ख)

प्रश्न 4: “जो भी पढ़कर लौटा, उसकी चाल में नर्मी थी” — इसका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: पठन व्यक्ति के भीतर संवेदनशीलता और विनम्रता जगाता है; ज्ञान से अहं कम होता है, इसलिए लौटते समय उसकी चाल, व्यवहार और दृष्टि में सहज कोमलता दिखाई देती है।

प्रश्न 5: “नक्शों पर भविष्य की राहें” — पंक्ति पाठक को क्या संदेश देती है?
उत्तर: अध्ययन केवल अतीत की जानकारी ही नहीं देता, वह आगे की दिशा भी सुझाता है; योजनाएँ, कल्पनाएँ और लक्ष्य पठन से स्पष्ट होते हैं, इसलिए पाठक अपने भविष्य के मार्ग को सूझ–बूझ के साथ तय कर पाता है।

==================== पद्यांश 4

बरगद ने ओट बिछा दी, दोपहर की धूप पिघली,
चौपाल पर बैठा दिन, चाय की भाप में घुला।
खेतों से लौटी पगडंडी खबरें लेकर आई,
आँगन–आँगन बातों में बीजों–सा प्रेम फूला।

बुजुर्गों की धीमी बोली नदियों–सी बहती,
बच्चे कंकर गिन–गिन समय की धुन कहते।
रात हुई तो तारे भी गिनती में शामिल हुए,
गाँव की नींद पर पहरा देती पीपल की छाया।

प्रश्न 1: पद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
(क) अकेलेपन का शोक
(ख) गाँव का सामुदायिक स्नेह और संवाद
(ग) युद्ध का वर्णन
(घ) बाजार की चहल–पहल
उत्तर: (ख)

प्रश्न 2: “बरगद ने ओट बिछा दी”—यहाँ कौन–सा अलंकार है?

(क) उपमा
(ख) मानवीकरण
(ग) अनुप्रास
(घ) यमक
उत्तर: (ख)

प्रश्न 3: रात को गाँव की नींद पर पहरा कौन देता प्रतीत हुआ?
(क) नदी
(ख) पुलिस
(ग) चाँद
(घ) पीपल की छाया
उत्तर: (घ)

प्रश्न 4: “बुजुर्गों की धीमी बोली नदियों–सी बहती” — आशय लिखिए।
उत्तर: बुजुर्गों की बातों में सरलता, गहराई और निरन्तरता है; उनकी स्मृतियाँ और अनुभव नदियों की धारा की तरह शांत, टिकाऊ और जीवनदायी होकर समुदाय को दिशा और सान्त्वना देते हैं।

प्रश्न 5: “खबरें लेकर आई पगडंडी” — इस अभिव्यक्ति से क्या संकेत मिलता है?
उत्तर: खेतों और चौपाल के बीच सतत आवागमन से गाँव का संवाद जीवित रहता है; पगडंडी को व्यक्ति की तरह दिखाकर कवि बताता है कि श्रम, मौसम और लोगों के हाल–चाल इसी रास्ते से पूरे समाज में फैलते हैं।

==================== पद्यांश 5

सुबह की रेल ने पटरी पर धूप बिछा दी,
सीटी में जाग उठा नगर का पहला सपना।
बोरियों के साथ चला कुली का संतुलन,
घड़ी ने बाँह पकड़ समय को आगे धकेला।

खिड़की के पास बच्चे खेतों को गिनते,
तालाब के तट पर कौवों की सभा जगी।
यात्रा के नक्शे पर हर ठहराव एक विराम,
फिर भी पहिए कहते—मंज़िलें चलती रहें।

प्रश्न 1: कविता का केन्द्रीय विचार क्या है?

(क) ठहराव ही सर्वोत्तम है
(ख) यात्रा और श्रम से जीवन गतिमय बनता है
(ग) भीड़–भाड़ से परेशानी
(घ) केवल खेल–तमाशा
उत्तर: (ख)

प्रश्न 2: “रेल ने पटरी पर धूप बिछा दी”—अलंकार पहचानिए।
(क) उपमा
(ख) मानवीकरण
(ग) श्लेष
(घ) अतिशयोक्ति
उत्तर: (ख)

प्रश्न 3: “सभाएँ” किसकी लगी हुई दिखती हैं?
(क) मछलियों की
(ख) पहियों की
(ग) कौवों की
(घ) दुकानों की
उत्तर: (ग)

प्रश्न 4: “बोरियों के साथ चला कुली का संतुलन” — पंक्ति का भाव लिखिए।

उत्तर: कुली का श्रम कुशलता और गरिमा से भरा है; वह भार उठाते हुए भी अपने कदम, श्वास और लय को साधे रखता है, जिससे जीवनयापन के साथ–साथ नगर की यात्रा–व्यवस्था सुचारु चलती है।

प्रश्न 5: “मंज़िलें चलती रहें” — इस कथन में कवि का दृष्टिकोण क्या है?
उत्तर: यहाँ मंज़िल स्थिर लक्ष्य नहीं, निरन्तर उन्नति का बोध है; मनुष्य को रुककर ठहराव में नहीं, बल्कि सीखते–बढ़ते हुए अगली सम्भावनाओं की ओर बढ़ते रहना चाहिए—यही जीवन की सच्ची यात्रा है।

==================== पद्यांश 6

चाक पर घूमती मिट्टी हथेली का गीत सुनाती,
धीरे–धीरे आकार में घड़ा अपना रूप पाता।
आँच के आलिंगन से माटी पुख्ता हो जाती,
दरारों के डर में भी पानी का स्वप्न पलता।

कुम्हार की आँखों में नदी की चाल समायी,
धीरज की साँसें गिनकर वह चुपचाप रचता।
जब घड़े के होंठों पर पहली रोशनी ठहरी,
घर–आँगन में हँसता मीठा, शीतल जल उतरता।

प्रश्न 1: इस पद्यांश का मुख्य सन्देश क्या है?
(क) भाग्य ही सब कुछ है
(ख) सृजन धैर्य, लगन और संयम से संभव होता है
(ग) केवल गति से सफलता मिलती है
(घ) मिट्टी बेकार है
उत्तर: (ख)

प्रश्न 2: “हथेली का गीत” — कौन–सा अलंकार है?
(क) उपमा
(ख) मानवीकरण
(ग) अनुप्रास
(घ) रूपक
उत्तर: (ख)

प्रश्न 3: माटी किसके “आलिंगन” से पुख्ता बनती है?
(क) वर्षा
(ख) आँच
(ग) हवा
(घ) धूप
उत्तर: (ख)

प्रश्न 4: “दरारों के डर में भी पानी का स्वप्न” — पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: निर्माण के दौरान टूट–फूट का भय बना रहता है, फिर भी घड़ा अपने नियत उद्देश्य—जल धारण करने—की कल्पना सँजोए रहता है; इसी आशा से कलाकार सावधानी और धीरज के साथ कार्य पूरा करता है।

प्रश्न 5: “पहली रोशनी ठहरी” — इससे घड़े और कुम्हार के मनोभाव पर क्या प्रकाश पड़ता है?
उत्तर: यह क्षण सृजन–सफलता का है; घड़ा पूर्णता की ओर बढ़ चुका है और कुम्हार के मन में संतोष, अपनापन तथा उपयोगिता का उजास भर गया है, क्योंकि उसकी मेहनत अब लोगों के जीवन को सुगम बनाएगी।

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